☆ Laughter Yoga – A Tool For Personality Development Of Children ☆
We have just concluded a personality development workshop for 30 children in the age group of 5 – 20 years using Laughter Yoga as a tool. The children really liked it. We feel Laughter Yoga is a powerful tool for personality development which enhances communication skills, leadership qualities, team building, creativity and self-confidence in children.
The workshop was held in Suniket Park, Indore, India. We spent about two-and-a-half hours each on Saturday and Sunday evenings. For the initial ice-breaking, we had pizza-pasta game at the beginning of the programme. It was followed by a brief session of Laughter Yoga. The children were then asked to conduct one exercise each of their choice for the group laying special emphasis on their communication and presenting skills.
On the second day, we again had a quick round of pizza-pasta game and a short session of Laughter Yoga. Then, we formed six groups of five children each and asked them to create new laughter exercises as a group work. The results were astonishing! They came out with some novel exercises like Joke Book Laughter, Basket Ball Laughter, Boxing Laughter, Snake Dance Laughter and modified versions of Milkshake Laughter and Mobile Bill Laughter. Their creative talents were further displayed in ‘Follow The Leader’ game. They were awarded certificates at the end of the programme.
Laughter Yoga can be extensively used as a tool for personality development of children in schools as colleges. We have been practicing Laughter Yoga regularly with mentally challenged children at Rotary Paul Harris School here for almost a year now and find a perceptible change in the personality of children and their levels of joy. Now, a daily session of Laughter Yoga is included in their schedule and the Teachers conduct it with deep devotion as they witness the impact continuously.
About a year back, we were with the girls of Laxmi Ashram, Kausani, Uttarakhand and had long sessions of Laughter Yoga, Follow The Leader and Singing-Dancing-Playing and laughter for three consecutive days. The Principal there and the Teachers were quick to realize the inherent value and power of Laughter Yoga.
We plan to conduct more such workshops for children. It is a fulfilling experience indeed!
(ज्ञानयोग और कर्मयोग के अनुसार अनासक्त भाव से नियत कर्म करने की श्रेष्ठता का निरूपण)
यज्ञशिष्टाशिनः सन्तो मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषैः ।
भुञ्जते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात्।।13।।
यज्ञ से बचे का ही करें लोग सभी उपयोग
आत्म हेतु ही जो लगे वे है पापी लोग।।13।।
भावार्थ : यज्ञ से बचे हुए अन्न को खाने वाले श्रेष्ठ पुरुष सब पापों से मुक्त हो जाते हैं और जो पापी लोग अपना शरीर-पोषण करने के लिए ही अन्न पकाते हैं, वे तो पाप को ही खाते हैं।।13।।
The righteous, who eat of the remnants of the sacrifice, are freed from all sins; but those sinful ones who cook food (only) for their own sake, verily eat sin. ।।13।।
(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)
(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। आज से प्रत्येक शनिवार आप पढ़ सकेंगे उनकी लेखमाला के अंश स्मृतियाँ/Memories। आज प्रस्तुत है इस लेखमाला की पहली कड़ी जिसे पढ़कर आप निश्चित ही बचपन की स्मृतियों में खो जाएंगे। )
☆ स्मृतियाँ/Memories – #1 – बचपन वाले विज्ञान का BOX ☆
बचपन वाला विज्ञान का Box
कक्षा 10 में मेरे पास एक box हुआ करता था।जिसमे मैं विज्ञानं से सम्बंधित वस्तुएँ रखा करता था।
स्कूल में पढ़ता और प्रयोग करने के लिए विज्ञान की उन वस्तुओ को एक box मे रख लेता।
एक दिशा सूचक यंत्र (compass) था जिसकी सुईया नाचती तो थी पर रूकती हमेशा उत्तर-दक्षिण दिशा में ही थी ।
एक उत्तल लेंस था जो वस्तुओ का प्रतिबिम्ब एक खास दूरी पर ही बनता था।
कभी कभी जाड़ो की गुठली मारती धूप में उसे कागज के ऊपर फोकस (focus) करके सूरज की ऊर्जा से उस कागज़ को जलाया करता था।
उस box में मैंने दो लिटमस पेपरो की छोटी छोटी गड्डिया भी रख रखीं थी एक नीले लिटमस की और दूसरी लाल लिटमस की, जो अम्ल और क्षार से क्रिया करके रंग बदलते थे।
चुपके से एक फौजी वाली ताश की गड्डी भी मैंने उस box में छिपा रखीं थी और राजा, रानी, इक्का सब मेरे कब्ज़े में थे।
और कई सारी चीजों के साथ एक वो पेन्सिल भी थी जिसमे एक पारदर्शी खांचे में छोटे छोटे कई सारे तीले होते है और अगर एक तीला घिस का ठूठ हो जाये तो उसे निकल कर सबसे पीछे लगा दो और नया नुकीला तीला आगे आ जाता था।
बरसो बाद पता नहीं आज क्यों उस box की याद आ गयी।
अब मैं घर से दूर हूँ इस बार जब घर जाऊँगा तो ढूंढूंगा उस box को स्टोर मे कही खोल कर देखूँगा फिर से वही बचपन वाला विज्ञानं।
जीवन जो अब दिशाहीन सा हो गया है कोशिश करूँगा उसे उस compass से एक दिशा में ही रोकने की।
इस बार जाकर देखूँगा की क्या वो उत्तल लेंस मेरे बचपन की यादो के प्रतिबिम्ब अभी भी बना पायेगा?
जुबाँ में अम्ल घुल चुका है सोचता हूँ उस box से निकाल कर नीले लिटमस पेपर की पूरी गड्डी ही मुँह में रख लूँगा मुझे यक़ीन है मेरा मुँह भी हनुमान जी की तरह लाल हो जायेगा।
इस दफा वर्षो के बाद जब वो box खोलूँगा तो राजा, रानी, गुलाम सब को आज़ाद कर दूँगा।
और वो कई तीलो वाली पेन्सिल, उसे अपने साथ ले आऊंगा क्योकि गलतियाँ तो मैं अब भी करता हूँ पर अब उन्हें मानने भी लगा हूँ। पेन्सिल से लिखीं गलतियों को सही करने मैं शायद ज्यादा कठनाई ना हो?
कुछ दिनों की बाद मैं गया था घर अपने बचपन वाले विज्ञानं का वो box फिर से खोलने पर दीमक ने अब उसके कुछ अवशेष ही छोड़े है।
वो कंपास (compass) तो मेरे से भी ज्यादा दिशाहीन हो गया है। मैं कोशिश करता हूँ उसकी सूइयों को उत्तर दक्षिण में रोकने की पर वो तो पश्चिम की ओर ही जाती प्रतीत होती है।
वो उत्तल लेंस अब किसी को जलता नहीं है उसके बीच में पड़ी एक दरार ने उसे बहुत कुछ सिखा दिया है शायद।
Box खोला तो पहचान ही नहीं पाया की लाल लिटमस की गड्डी कौन सी है ओर नीले की कौन सी? शायद दोनों लिटमसो की गड्डियाँ ज्यादा ही पुरानी हो गयी है या फिर मैं?
फौजी वाली ताश की गड्डी के फौजियों की बंदूकों पर जंग लग गया है अब उनसे निकली गोलिया फौजियों के हाथो में ही फट जाती है।
राजा, रानी गुलाम जैसे लगने लगे है।
वो कई तीलो वाली पेन्सिल के सारे तीले इतने ठूठ हो गए है की उसके पारदर्शी भाग से देखने पर उनके बीच में दूरिया नजर आती है। कुछ के बीच की दूरिया तो इतनी बढ़ गयी है की पीछे वाले तीले का हाथ अब उससे आगे वाले तीले के कंधो तक नहीं पहुँचता है।
वो मेरे बचपन का जादू भरा विज्ञान वाला box कबाड़ी 5 रूपये में ले गया।
मैं गया था बाजार में वो 5 रूपये लेकर कंपास (compass) ख़रीदने …………
पर शायद सही दिशा बताने वाले कंपास (compass) अब 5 रुपये में नहीं आते ………………
(सुश्री सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी का e-abhivyakti में स्वागत है। प्रस्तुत है उनकी लघुकथा ‘गुड्डी’। सुश्री सिद्धेश्वरी जी ने जीवन के कटु सत्य को बड़े ही सहज तरीके से लिपिबद्ध कर दिया है। संभवतः यही उनके लेखन की विशेषता है। )
??? गुड्डी ???
गांव में एक संभ्रांत परिवार में जन्मी गुड्डी बहुत ही सुंदर, सुशील और गुणवान थी। बचपन बहुत सादगी से बीता। गांव में स्कूल नहीं होने से पढा़ई भी नही कर सकी। पढा़ई का बहुत शौक था उसे। कहीं की किताब और कहीं का भी पेपर हमेशा पढ़ कर दूसरों को सुनाती थी । बाल विवाह बहुत खुशी खुशी कर दिया गया । गुड्डी दुल्हन बन गई। दुल्हन बनने के बाद जैसे उसका बचपन छीन सा गया। चहकती फिरती अब वह घर का काम करने लगी। विधी का विधान उसका पति जो उम्र में २ साल बड़ा था, गांव में मस्तिष्क ज्वर के कारण उसकी मृत्यु हो गई ।
गुड्डी अब बाल विधवा बन चुकी थी । सारा समय कोई न कोई उसे ताने देता रहता । किसी के कारण वह बहुत परेशान भी होती । बचपन में उसे समझ में नहीं आया कि ये सब क्या हो रहा है । मगर थी तो बच्ची ही, खेलना कूदना उसे भाता था । दिनचर्या फिर से शुरु हो गई । मगर ताने का सिलसिला जारी रहा । जैसे जैसे बड़ी हुई उसे सब बातें बड़ों के द्वारा सुनने पर समझ में आने लगी। सुंदरता की मूरत मगर सफेद साडी़ सबका मन एक जैसा नहीं होता। कोई उसकी बेबसी और कोई उसकी तरफ अलग दृष्टि रखने लगा। वह भी सब जान रही थी। गांव में ही सिलाई केन्द्र खुला। उसने उसमे दाखिला ले अपनी जीविका चलाने लगी । घर वाले भी खुश थे कि अब उसका जीवन यापन चल जाएगा। पर सपने और हकीकत कुछ अलग अलग होते हैं ।
पास मे एक निम्न जात का एक अच्छा लड़का गुड्डी को बहुत ही चाहने लगा था। उसे आते जाते देखता, उसकी तकलीफ देखकर उसको सहारा देना चाहता था। पर बडे़ समाज के बंधन और रीति रिवाज के कारण वह बोल नहीं पा रहा था। एक दिन हिम्मत कर उसने गुड्डी से अपनी मन की बात रखी, वह भी उसको मन ही मन अच्छा लगता था। तो तैयार हो गई। मंदिर में विवाह कर लिया दोनों ने।
दोनों के परिवारो ने उन्हें अलग कर दिया। अपनी दुनिया बसा ली उन्होंने। समय पंख लगा कर उड़ चला। दो सुंदर बेटियों को गुड्डी ने जन्म दिया। मगर तानों की कमी नही थी। हमेशा चलते आते जाते उसे सुनना ही पड़ता। धीरे धीरे वह मानसिक रूप से परेशान होने लगी। एक दिन उसका पति गांव से बाहर था और बच्चियां स्कूल में। मन में उठते सवाल जवाब को लेकर वह चुल्हे पर खाना बना रही थी। अचानक ही साडी़ का पल्ला आग की चपेट में आ गया। उसे सुध नहीं थी और ना ही उसने अपने आप को बचाने की कोशिश की। क्षण भर में जीवन समाप्त हो चला।
अर्थी उठाई गई, अब गुड्डी को सब देवी मानने लगे। सभी गांव वालों की सहानुभूति अचानक जग उठी। मगर गुड्डी का पति इन सब को जानता था। वह सब काम निपटने के बाद अपनी बेटियों को लेकर दूसरे शहर चला गया। जहाँ वह स्कूल की जिन्दगी और अपनी बेटियों को पाल सके। बड़ी बिटिया ने शहर में पढ़ लिख कर ब्यूटिशियन का कोर्स कर अपनी माँ के नाम पर “गुड्डी ब्यूटी पार्लर” खोल दिया और छोटी बिटिया स्कूल की अध्यापिका बन गई। गांव की सारी महिलाए उसके पार्लर पर आने लगी, अब गुड्डी उनके लिए देवी बन गई। और सब उसी के जैसी सुंदर और सुशील होना चाहती है। जिसको पल पल जिल्लत की जिन्दगी मिली उसी के तस्वीर की पूजा कर सब अपने परिवार की सुख शांति मांगने लगे है । उस गांव में अब गुड्डी, ‘गुड्डी देवी ” बन चुकी थी।
☆ A Return Gift of Everlasting Cheer to the Society ☆
My journey of Laughter Yoga (LY) has been a very fulfilling and satisfying one. I feel blessed to practice LY almost daily with a large number of people and bring joy to their lives. I express my sincere gratitude to Dr Madan Kataria and Madhuri Kataria who have imparted this divine life skill by which I can touch human lives instantly, anywhere and at any time.
I have been closely studying Positive Psychology and Authentic Happiness for a long time and believe that doing something worthwhile and meaningful for your fellow beings and intimate social interactions with those around you alone brings true happiness. LY is the best tool to achieve this. We can have warm relationships with people and also bring unlimited joy in their lives.
I always wanted to give back something to the great institution where I have been working for more than thirty-one years. I also wished I could inculcate positive values in school children and bring smiles on the faces of the sick and old people. The society has given me so much and I wanted to give a return gift of everlasting cheer to its people. LY has equipped and enabled me to do that on a continuous basis, each and every day of my life.
I was a shy kid and a studious student. I always wanted to sing, dance, play and laugh freely in groups. Now, I can do that and also make others experience joy by doing that.
I have formed a social group Laughter Yoga @ Indore comprising of LY lovers and professionals in Indore, India. Our mission is to propagate LY in and around our town for health, wellness, joy and peace. We wish to take it to the schools, colleges, workplaces, communities, hospitals, clubs, gyms, slums, old age homes, orphanages and even prisons.
We run two regular laughter clubs here. Suniket Laughter Club meets every Sunday morning for LY exercises at the Shrinagar Extension Public Park, Indore. In addition, my wife, Radhika, who is also a CLYT, holds Ladies’ Laughter Kitty every Saturday evening at the Community Hall of Suniket Apartments, Shrinagar Extension, Khajarana Road, Indore.
Laughter Club of State Bank Learning Centre, Indore was formally launched on the 13th September 2010 at the State Bank Learning Centre, Manik Bagh Road, Indore. It is a unique laughter club. Every week, new trainees come to the centre for learning. They join the club, leave by the week-end and spread laughter back at their homes. Next week, another set of new participants join, and so on..
I first saw Dr K and Madhuri conducting a laughter session at the Lokhandwala Park, Mumbai, India more than a decade ago and feel overwhelmed to conduct laughter sessions with my wife Radhika at Indore. It has transformed our lives totally. Our joy knew no bounds when Dr K remarked recently, “You are doing a wonderful job. I am proud of Radhika and you!”
(ज्ञानयोग और कर्मयोग के अनुसार अनासक्त भाव से नियत कर्म करने की श्रेष्ठता का निरूपण)
इष्टान्भोगान्हि वो देवा दास्यन्ते यज्ञभाविताः ।
तैर्दत्तानप्रदायैभ्यो यो भुंक्ते स्तेन एव सः ।।12।।
यज्ञ तृप्ति से देव दे तुमको वांछित दान
केवल खुद जो भोगता वह है चोर समान।।12।।
भावार्थ : यज्ञ द्वारा बढ़ाए हुए देवता तुम लोगों को बिना माँगे ही इच्छित भोग निश्चय ही देते रहेंगे। इस प्रकार उन देवताओं द्वारा दिए हुए भोगों को जो पुरुष उनको बिना दिए स्वयं भोगता है, वह चोर ही है।।12।।
The gods, nourished by the sacrifice, will give you the desired objects. So, he who enjoys the objects given by the gods without offering (in return) to them, is verily a thief. ।।12।।
(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)
(डॉ प्रदीप शशांक जी द्वारा प्रस्तुत यह लघुकथा भी वर्तमान सामाजिक परिवेश के ताने बाने पर आधारित है। डॉ प्रदीप जी की शब्द चयन एवं सांकेतिक शैली मौलिक है। )
☆ कुत्तों से सावधान ☆
चंदा बंगले का गेट खोलकर जैसे ही अंदर दाखिल हुई ,मेमसाहब ने तीखी आवाज में चिल्लाना शुरू कर दिया – ” कहाँ मर गई थीं , इतनी देर से आ रही है ? ”
” मेमसाब , अभी 9 ही तो बजा है , देर कहां हुई । ”
” जुबान लड़ाती है , चुपचाप काम कर ।” मेमसाब नें डांटते हुए कहा ।
वह चुपचाप बर्तन मांजने एवं कपड़े धोने लगी । जब तक उसका काम खत्म नहीं हुआ तब तक मेमसाब बड़बड़ाती ही रही ।
काम खत्म कर वह बाहर निकलने लगी तो देखा गार्डन में खड़े साहब माली पर चिल्ला रहे थे ।
गेट के अंदर एक कोने में टॉमी दुबका पड़ा था । चंदा ने उसे देखा तो सोचने लगी कि टॉमी के भोंकने की आवाज तो कभी सुनाई भी नहीं पड़ी, लेकिन रोज सुबह से साहब और मेमसाब जरूर माली, धोबी, सब्जी वाले जैसे हम छोटे लोगों पर भोंकते रहते हैं ।
बाहर निकलकर जब वह गेट बंद कर रही थी, तब उसकी निगाह गेट पर लगी तख्ती पर पड़ी , जिसमें लिखा था – कुत्तों से सावधान ।
चंदा व्यंग्यात्मक मुस्कान के साथ दूसरे घर की ओर बढ़ गई ।