हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सूत्र ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – सूत्र ☆

 

उदासीन हो

उदासीनता बयान करो,

इस विषय पर

एक रचना हो सकती है,

कुछ नहीं लिखता

यह सोच कर, जो

सूत्र, सूक्ति ना दे पाठक को

भला कविता कैसे हो सकती है?

 

# सुरक्षित रहना है, घर में रहना है।

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

प्रातः 10:19 बजे, 19 अप्रैल 2020

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

writersanjay@gmail.com

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English Literature – Poetry ☆ Wait ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(We are extremely thankful to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for sharing his literary and artworks with e-abhivyakti.  An alumnus of IIM Ahmedabad, Capt. Pravin has served the country at national as well international level in various fronts. Presently, working as Senior Advisor, C-DAC in Artificial Intelligence and HPC Group; and involved in various national-level projects.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi Poetry  “ प्रतीक्षा ” published previously as  ☆ संजय दृष्टि – प्रतीक्षा   We extend our heartiest thanks to the learned author  Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit,  English and Urdu languages) for this beautiful translation.)

☆ Wait ☆

 

Just tossed few water

droplets skywards

Drops knew

their source of existence,

Returned back

towards the river…,

 

Bounced fistful

of grains

towards the sky,

Grains knew

their place to grow

Returned back to earth…,

 

Launched the mankind,

With the wings of wealth,

status, authority,

praise, and muscle power

Towards the lofty heights…,

………., ……… ..,

O’ Mankind…!

When will you return…?

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 35 ☆ तुममें और चाँद में क्या अलगता है ? ☆ सौ. सुजाता काळे

सौ. सुजाता काळे

(सौ. सुजाता काळे जी  मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं।  उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है  सौ. सुजाता काळे जी  द्वारा  प्रकृति के आँचल में लिखी हुई एक अतिसुन्दर भावप्रवण  कविता  “तुममें और चाँद में क्या अलगता है ?”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 35 ☆

  ☆ तुममें और चाँद में क्या अलगता है ? ☆

 

छुप जाते हो तुम

जब जरूरत होती है,

बताओ, तुममें और चाँद में

क्या अलगता है ?

 

कभी पूनम बनकर आते हो,

कभी अमावस बन जाते हो।

बताओ, तुममें और चाँद में

क्या अलगता है ?

 

घटते चाँद की तरह

तुम भी घट जाते हो।

जब जी चाहा

तब तुम भी आगे चल

बढ़ते हो।

बताओ, तुममें और चाँद में

क्या अलगता है ?

 

आँखों से बारिश होती है

तुम बादल ही बन जाते हो।

तपिश मन में उबलती हो

तुम भाप बन उड़ जाते हो।

बताओ, तुममें और चाँद में

क्या अलगता है ?

 

© सुजाता काळे

पंचगनी, महाराष्ट्र, मोबाईल 9975577684

sujata.kale23@gmail.com

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हिंदी साहित्य – फिल्म/रंगमंच ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हिंदी फिल्मों के स्वर्णिम युग के कलाकार # 2 – के एन सिंह ☆ श्री सुरेश पटवा

सुरेश पटवा 

 

 

 

 

 

((श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं।  अभी हाल ही में नोशन प्रेस द्वारा आपकी पुस्तक नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास)  प्रकाशित हुई है। इसके पूर्व आपकी तीन पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी एवं पंचमढ़ी की कहानी को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है।  आजकल वे  हिंदी फिल्मों के स्वर्णिम युग  की फिल्मों एवं कलाकारों पर शोधपूर्ण पुस्तक लिख रहे हैं जो निश्चित ही भविष्य में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज साबित होगा। हमारे आग्रह पर उन्होंने  साप्ताहिक स्तम्भ – हिंदी फिल्मोंके स्वर्णिम युग के कलाकार  के माध्यम से उन कलाकारों की जानकारी हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा  करना स्वीकार किया है  जो आज भी सिनेमा के रुपहले परदे पर हमारा मनोरंजन कर रहे हैं । आज प्रस्तुत है  हिंदी फ़िल्मों के स्वर्णयुग का खलनायक: के.एन.सिंह पर आलेख ।)

 ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हिंदी फिल्म के स्वर्णिम युग के कलाकार # 2 ☆ 

☆ हिंदी फ़िल्मों के स्वर्णयुग का खलनायक: के.एन.सिंह ☆ 

बरसात की रात (1960), वो कौन थी (1964), मेरा साया (1966), मेरे हुज़ूर (1968), दुश्मन, हाथी मेरे साथी(1971), लोफ़र, कच्चे धागे (1973) बढ़ती का नाम दाढ़ी (1974) जैसी भारतीय सिनेमा की यादगार फ़िल्मों की एक लंबी सूची है, जिनमें एक बात सामान्य है और वह है इन फ़िल्मों में के एन सिंह का अभिनय।

धीरे-धीरे के एन का मन इस नई फिल्मी दुनिया से खिन्न होने लगा। अमिताभ बच्चन स्टारर कालिया (1983) तक पहुंचते पहुंचते केएन का मन अभिनय से उचाट हो गया। तभी उनके साथ एक हादसा यह हुआ कि वे जिन आँखों  से अभिनय में रहस्य घोलते थे, उन आंखों की रोशनी जाती रही। और जीवन के संध्याकाल में केएन कैमरा, लाइट, एक्शन और कट की दुनिया से पूरी तरह कट गए। 1987 में उनकी पत्नी का निधन हो गया।

के.एन की कोई संतान नहीं हुई इसलिए उन्होंने अपने भतीजे पुष्कर को बेटे की तरह पाला। पत्नी के निधन के बाद केएन की आवाज़ में तो पहले जैसी ही खनक बरकरार रही, लेकिन अंदर से टूट से गए। 1999 में वे फिसल कर गिर गए जिससे उनके पैर की हड्डी टूट गयी तब से वे 31 जनवरी 2000 में मृत्यु होने तक पलंग पर ही पड़े रहे। उनकी रिलीज़ होने वाली अंतिम फ़िल्म अजूबा (1991) थी।

कुदरत ने उन्हें गरजदार आवाज दी थी, भाव भंगिमाओं को खास आकार देने की शैली उन्होंने खुद विकसित की और इन दो चीजों के मेल ने भारतीय फ़िल्म जगत को बेमिसाल खलनायक दिया। सुअर के बच्चों, कमीने या इसी तरह की गालियां दिए बिना और चीखे चिल्लाए बग़ैर केएन सिंह भय और घृणा की भावना दर्शकों के मन में पैदा कर देने का हुनर रखते थे। न कभी अभिनय का शौक़ रहा न फ़िल्मों में काम करने की तमन्ना लेकिन बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिले ना भीख की कहावत ने के एन सिंह के जीवन में महत्वपूर्ण रोल अदा किया।

के. एन. सिंह की पत्नी प्रवीण पाल भी सफल चरित्र अभिनेत्री थीं। उनकी अपनी कोई संतान नहीं थी। उनके छोटे भाई विक्रम सिंह थे, जो मशहूर अंग्रेज़ी पत्रिका फ़िल्मफ़ेयर के कई साल तक संपादक रहे। उनके पुत्र पुष्कर को के.एन. सिंह दंपति ने अपना पुत्र माना था।

 

© श्री सुरेश पटवा

भोपाल मध्य प्रदेश

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मराठी साहित्य – कविता ☆ केल्याने होतं आहे रे # 33 – वैशाखातल्या झळा ☆ – श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

(वरिष्ठ  मराठी साहित्यकार श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी का धार्मिक एवं आध्यात्मिक पृष्ठभूमि से संबंध रखने के कारण आपके साहित्य में धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्कारों की झलक देखने को मिलती है. इसके अतिरिक्त  ग्राम्य परिवेश में रहते हुए पर्यावरण  उनका एक महत्वपूर्ण अभिरुचि का विषय है। आज प्रस्तुत है श्रीमती उर्मिला जी की वैशाख मास  मनाये जाने वाले पर्वों से लेकर पर्यावरण तक का विमर्श करती हुई  एक कविता  “वैशाखातल्या झळा”उनकी मनोभावनाएं आने वाली पीढ़ियों के लिए अनुकरणीय है।  ऐसे सामाजिक / धार्मिक /पारिवारिक साहित्य की रचना करने वाली श्रीमती उर्मिला जी की लेखनी को सादर नमन। )

☆ केल्याने होतं आहे रे # 33 ☆

☆ वैशाखातल्या झळा ☆ 

काव्यप्रकार:षडाक्षरी

विषय: वैशाख वणवा

 

अक्षय तृतीया

मुहुर्ताचा सण

आंब्यांचा नैवेद्य

देवाजीचं देण !!१!!

 

वैशाख वणवा

उसळली आग

गेली करपून

द्राक्षांची ती बाग !!२!!

 

बुद्ध पूर्णिमेला

पूजा चैत्यभूमी

बाबासाहेबांची

हीच कर्मभूमी !!३!!

 

वैशाख वणवा

उष्म्याचा कहर

वसंत ऋतूत

फुलांना बहर !!४!!

 

वैशाख वणवा

अंगाची हो लाही

उन्हामुळं सारी

करपली मही !!५!!

 

तप्त झाली हवा

तापली ती धरा

आता आम्हा वृक्ष

देतील सहारा !!६!!

 

त्याच्याच साठीहो

वृक्ष तुम्ही लावा

देखभाल करा

झाडे ती जगवा !!७!!

 

©️®️ उर्मिला इंगळे

सातारा, महाराष्ट्र.

दिनांक.२-५-२०

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मराठी साहित्य – कविता ☆ गुलमोहर दिनानिमित्त – गुलमोहर ☆ सुश्री स्वप्ना अमृतकर

☆ सुश्री स्वप्ना अमृतकर ☆ 
सुप्रसिद्ध युवा कवियित्रि सुश्री स्वप्ना अमृतकर जी का अपना काव्य संसार है । आपकी कई कवितायें विभिन्न मंचों पर पुरस्कृत हो चुकी हैं।  आप कविता की विभिन्न विधाओं में  दक्ष हैं और साथ ही हायकू शैली की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आज प्रस्तुत है सुश्री स्वप्ना जी की  हायकू शैली में कविता “गुलमोहर”(७ रचना)”।  प्रत्येक वर्ष 1 मई को सतारा जिले में गुलमोहर का जन्म दिवस मनाया जाता है और यह क्रम 1999 से चला आ रहा है।
सुश्री स्वप्ना अमृतकर जी के ही शब्दों में  – दरवर्षीप्रमाणे मे महिन्यात लाल,केशरी,पिवळ्या फुलांचा बहर पसरलेला दिसतो,हा बहर असतो गुलमोहर फुलांचा.रणरणत्या ऊन्हातही दिसतो देखणा माझा लाडका गुलमोहर सखा साजणा.. कवीमनाला लिखाणाची उभारी देतो अन् तो स्तब्ध जसाच्या तसाच मोहात पाडतो हा गुलमोहर. महाराष्र्टात १९९९ पासून सातारा जिल्ह्यात गुलमोहराचा वाढदिवस साजरा केला जातो.
म्हणून आजच्या गुलमोहर दिनानिमित्त पुढील माझी हायकू 

☆ गुलमोहर दिनानिमित्त – गुलमोहर ☆ 

(हायकू: “गुलमोहर”)

गुलमोहर

ग्रीष्मात बहरला

जीव गुंतला        १,

बहरामुळे

वाराही थबकला

सांजवेळेला          २,

पुलावरून

फुलांचा पाझरला

बहर ओला          ३,

नदीचा काठ

गुलमोहर फांदी

पाखरें नांदी          ४,

ऊन्हाळ्यातच

सुनसान रस्त्यात

रूबाबदार          ५,

अनाथ वाटे

लाल,केसरी सडा

नसे सरडा          ६,

जन्म मिळावा

हो गुलमोहराचा

भुईवरचा            ७..

 

© स्वप्ना अमृतकर

पुणे, महाराष्ट्र

चित्र सौजन्य – सुश्री ज्योति हसबनीस, नागपुर 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आशीष साहित्य # 41 – अंश कला देवी ☆ श्री आशीष कुमार

श्री आशीष कुमार

(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में  साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। अब  प्रत्येक शनिवार आप पढ़ सकेंगे  उनके स्थायी स्तम्भ  “आशीष साहित्य”में  उनकी पुस्तक  पूर्ण विनाशक के महत्वपूर्ण अध्याय।  इस कड़ी में आज प्रस्तुत है  एक महत्वपूर्ण  एवं  ज्ञानवर्धक आलेख  “अंश कला देवी । )

Amazon Link – Purn Vinashak

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ आशीष साहित्य # 41 ☆

☆ अंश कला देवी 

स्त्री ऊर्जा के कई आंशिक रूप हैं जो वास्तव में प्रकृति के विभिन्न रूप में से हैं और कुछ लोग उनकी प्रार्थना करते हैं कि वे हमें हमारे जीवन को शांतिपूर्वक चलाने में सहायता करें, जबकि अन्य कुछ रूपों से लोग डरते हैं ऊर्जा के इन आंशिक रूपों की देवियों को ‘अंश कला देवी’ कहा जाता है । अंशकला देवी दोनों प्रकार की होती हैं जो हमारे जीवन को शांतिपूर्ण बनाती हैं और जिनसे हम डरते हैं । स्त्री ऊर्जा के आंशिक चरणों की मुख्य 26 अंशकला देवी है :

1) स्वाहा देवी (अर्थ : माध्यम की देवी) :  स्वाहा देवी वो माध्यम है जिससे अग्नि में डाली गयी वस्तु भस्म होकर शुद्ध होती है । वह अग्नि की पत्नी है । स्वाहा की दुनिया भर में पूजा की जाती है । यदि हव्य (oblation) उनके नाम को दोहराए बिना अर्पण किया जाता है, तो देवता इसे स्वीकार नहीं करते हैं ।

2) दक्षिणा देवी (अर्थ : दान की देवी) : ये यज्ञ के पूरा होने के बाद धन के रूप में पुरोहित को दिए जाने वाले दान की देवी है । वह यज्ञ देव (बलिदान के देवता) की पत्नी है इस देवी के बिना, दुनिया के सभी कर्म व्यर्थ हो जाएंगे ।

3) दीक्षा देवी (अर्थ : यज्ञ के अनुसार संकल्प पूर्ण दान की देवी) :  भोजन या कपड़े आदि के रूप में दान की देवी, जिसे उनके द्वारा यज्ञ पूरा करने के बाद पुजारी को दिया जाता है । वह यज्ञ देव की पत्नी है, यह देवी शुद्ध ज्ञान प्रदान करती है ।

4) स्वधा देवी (अर्थ : पितरों के निमित्त दिया जानेवाला अन्न या भोजन की देवी) : आत्म-शक्ति, शासन, अपनी जगह या घर की देवी । ये प्रथा, प्रचलन या आदत अदि को संदर्भित करती है । यह देवी पितृ (मृतक पूर्वजों) की पत्नी है, जिनकी मनुष्यों द्वारा पूजा की जाती है । इस देवी का सम्मान किए बिना पितरों को दिया गया चढ़ावा व्यर्थ साबित होता है ।

5) स्वेच्छा देवी (अर्थ : अपनी इच्छा की देवी) :  यह इच्छा की देवी है जो अच्छा करती है । यह वायु की पत्नी है । अगर स्वेच्छा से उपहार नहीं दिया जाता है तो उपहारों का कोई फायदा नहीं होता ।

6) पुष्टि देवी (अर्थ : पोषण की देवी) : यह पोषण या अनुमोदन की देवी है और गणपति की पत्नी है । यदि यह देवी अस्तित्व में ना हो, तो पुरुष और स्त्री कमजोर हो जाएँगे, क्योंकि वह सभी ताकतों का स्रोत है ।

7) तुष्टि देवी (अर्थ : तुष्ट होने की अवस्था की देवी) : शांति या खुशी की देवी । यह अनंत की पत्नी है । अगर यह देवी अस्तित्व में ना हो तो दुनिया में कोई खुशी नहीं होगी ।

8) संपत्ति देवी (अर्थ : धन दौलत जायदाद आदि जो किसी के अधिकार में हो और खरीदी या बेची जा सकती हो की देवी) : संपत्ति की देवी । यह इशाना (अमीर) की पत्नी है । अगर यह देवी अस्तित्व में नहीं रहती तो पूरी दुनिया गरीब और स्वदेशी हो जाएगी ।

9) धरती देवी (अर्थ : भूमि की देवी) : यह दृढ़ संकल्प की देवी एवं कपिल (अर्थ : लाल भूरे रंग) की पत्नी है । अगर यह देवी अस्तित्व में नहीं रहती है तो पूरी दुनिया भयानक और डरपोक हो जायेंगी ।

10) सती देवी (अर्थ : सत की देवी) : सत्त्व की देवी जो मानव में सभी अच्छी गुणवत्ता के लिए जिम्मेदार है । वह सत्य (सत्य) की पत्नी है । अगर यह देवी अस्तित्व में नहीं रहती है तो लोगों के बीच कोई मित्रता और शांति नहीं होगी ।

11) दया देवी (अर्थ : करुणा और सहानुभूति की देवी) : करुणा और सहानुभूति की देवी । यह मोह (भ्रम, सुस्तता) की पत्नी है । यदि यह देवी अस्तित्व में नहीं रहती है तो दुनिया नरक हो जाएगी और एक भयंकर युद्ध क्षेत्र बन जाएगी ।

12) प्रतिष्ठा देवी (अर्थ : ख्याति की देवी) : प्रतिष्ठा की देवी । यह पुण्य (दान, इनाम) की पत्नी है । अगर यह देवी अस्तित्व में नहीं रहती है तो दुनिया ख़त्म हो जाएगी ।

13) सिद्ध देवी (अर्थ : परिपूर्ण करने वाली देवी), और कीर्ति देवी (अर्थ : प्रसिद्धि की देवी) : ये दोनों सुकर्मा (अर्थ : अच्छा स्वभाव) की पत्नियां हैं । अगर वे अस्तित्व में ना रहें तो पूरी दुनिया प्रतिष्ठा से बेकार हो जाएगी और मृत शरीर की तरह निर्जीव हो जाएगी ।

14) क्रिया देवी : कार्य की देवी वह उद्योग (अर्थ : व्यापार) की पत्नी है । अगर वह अस्तित्व में नहीं रहती है तो पूरी दुनिया निष्क्रिय हो जाएगी और कार्य करना बंद कर देगी ।

15) मिथ्या देवी (अर्थ : झूठी मान्यताओं की देवी) : वह अधर्म (अप्राकृतिकता, गलतता) की पत्नी है । हठी और चरित्रहीन लोग इस देवी की पूजा करते हैं । अगर यह देवी पूरी दुनिया में अस्तित्व में नहीं रहती है तो ब्राह्मण ही अस्तित्व में नहीं रहेगा । सत युग के दौरान दुनिया में कहीं भी यह देवी दिखाई नहीं देती थी । वह त्रेता युग के दौरान यहाँ और वहाँ एक सूक्ष्म रूप में दिखाई देने लगी थी । द्वापार युग में उन्होंने अधिक विकास प्राप्त किया और फिर उनके अंग और मजबूत हो गए । कलियुग में वह अपने पूर्ण स्तर और विकास के रूप में विकसित हुई और अपने भाई कपट (अर्थ :धोखा) के साथ हर जगह चली आयी ।

16) शांति देवी (अर्थ  : शांति की देवी) और लज्जा देवी (अर्थ  : विनम्रता की देवी) : ये दो देवी अच्छी प्रकृति की हैं । अगर वे अस्तित्व में ना रहे तो दुनिया सुस्त और आलसी हो जाएगी ।

17) बुद्धि देवी (अर्थ  : समझने और जानने की इच्छा की देवी), मेधा देवी (अर्थ  : ज्ञान की देवी) और धृत देवी (अर्थ  : संभाले रखने की देवी) : यह तीनों देवियाँ ज्ञान की पत्नियां है । अगर ये देवियाँ अस्तित्व में ना रहे तो दुनिया अज्ञानता और मूर्खता में डूब जाएगी ।

18) मूर्ति (अर्थ  : रूपों की देवी) : वह धर्म (सही कर्तव्य) की पत्नी है । उनकी अनुपस्थिति में सार्वभौमिक आत्मा जीवन शक्ति से विरक्त, असहाय और अर्थहीन हो जाएगी ।

19) श्रीदेवी : यह सौंदर्य और समृद्धि की देवी है । वह माली की पत्नी है । इनकी अनुपस्थिति दुनिया को निर्जीव बना देगी ।

20) निन्द्रा देवी : यह नींद की देवी है । यह कालाग्नि (समय की अग्नि ) की पत्नी है । ये देवी रात्रि के दौरान दुनिया में हर किसी को प्रभावित करती है और उनकी चेतना को खो कर उन्हें नींद में डाल देती है । इस देवी की अनुपस्थिति में दुनिया एक पागलों की शरण स्थली बन जाएगी ।

21) रात्री (अर्थ  : रात्रि  की देवी), संध्या (अर्थ  : शाम की देवी) और दिवस (अर्थ  : दिन की देवी) : ये तीनों काल (अर्थ : समय) की पत्नियां हैं । उनकी अनुपस्थिति में किसी को भी समय की कोई समझ नहीं होगी और कोई भी समय की गणना और निर्धारण करने में सक्षम नहीं होगा ।

22) विसापू (अर्थ  : यह भूख की देवी है) और दहम (अर्थ  : यह प्यास की देवी है) : ये दो देवियाँ लोभ (अर्थ  : लालच) की पत्नियाँ हैं, वे दुनिया को प्रभावित करती हैं और इस तरह उन्हें चिंतित और दुखी बनाती हैं ।

23) प्रभा देवी (अर्थ  : प्रकाश की देवी) और दहक देवी (अर्थ  : अग्नि से उत्पन्न प्रकाश और गर्मी की देवी) : ये दोनों तेजस की पत्नियां हैं इनके बिना भगवान को सृष्टि के कार्य को जारी रखना असंभव हो जायेगा ।

24) मृत्यु देवी (अर्थ : मृत्यु की देवी) और जरा देवी (अर्थ : मातृत्व की देवी) : ये दोनों प्रकृस्ताजवारा (अर्थ  : अनिर्मित भगवान), और काल (अर्थ : समय) की  पुत्री हैं । और यदि ये अस्तित्व में रहना बंद कर देती हैं, तो ब्रह्मा नयी रचना नहीं बना सकते हैं । क्योंकि मृत्यु  सृजन, जन्म की पूर्व शर्त है । यदि कोई मृत्यु नहीं है तो जन्म भी नहीं है ।

25) तन्द्रा देवी (अर्थ : नींद की झपकी) और प्रीति (अर्थ : खुशी की देवी जो प्रेम से आती है) : ये दोनों निद्रा (अर्थ : नींद) की पुत्रियाँ हैं और सुख (अर्थ : खुशी) की पत्नियाँ हैं । ये देवी ब्रह्मा के आदेश पर दुनिया भर में घूमती रहती हैं ।

26) श्रद्धा देवी (अर्थ : भक्ति के विश्वास) और भक्ति देवी (अर्थ : वैराग्य की देवी) : ये देवी सांसारिक सुखों के प्रति उलझन और दुनिया के लोगों की आत्माओं को मोक्ष देती हैं ।

आप इन देवी-देवताओं के महत्व को समझ सकते हैं । मैं आपको इनमें से 3-4 के विषय में बता देता हूँ । सबसे पहले ‘स्वाहा देवी’ को ले लो, जो हमारी भेंट को अग्नि को देती है। इसे अन्यथा लें, जब हम भोजन खाते हैं तो यह हमारे पेट में पहुँचता है जहाँ जठारग्नि (पेट में भोजन के पाचन के लिए जिम्मेदार अग्नि) इसे पचती है । तो क्या ‘स्वाहा देवी’ से ये प्रार्थना करना गलत है, की ‘कृपया देवी मेरे द्वारा खाया हुआ भोजन पचाकर मुझे स्वस्थ बनाएं’। इसी प्रकार यदि हम अग्नि को कुछ भी देते हैं तो हम स्वाहा देवी’ से प्रार्थना करते हैं ताकि यह जलने के बाद एक या दूसरे रूप में उपयोगी हो सके ।

© आशीष कुमार 

नई दिल्ली

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ मई दिवस विशेष ☆ हे श्रमिक तुम्हारा वंदन ‌है ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

( आज  प्रस्तुत है श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” जी द्वारा मई दिवस के अवसर पर  रचित  एक कविता   “हे श्रमिक तुम्हारा वंदन ‌है”।   

 

? मई दिवस विशेष  – हे श्रमिक तुम्हारा वंदन ‌है ?

किसी राष्ट्र के विकास का घूमता पहिया, उस राष्ट्रके विकास की स्थिति का आकलन, उस राष्ट्रीय की श्रमशक्ति श्रमिक वर्ग की‌ स्थिति पर निर्भर करता है। राष्ट्रीय ‌विकास में जितना योगदान कुशल प्रबंधन का है, उससे ज्यादा संगठित कुशल श्रमिक शक्ति का‌ भी‌ है।जब कुशल प्रबंधन और श्रमशक्ति मिल कर समूह‌ भावना से कार्य करते हैं तो उस संगठन, उस संस्थान, उस राष्ट्र के विकास को कोई रोक नहीं सकता। किसी भी ‌राष्ट्र के विकास का मानक कुशल एवम् सुखी श्रमिक वर्ग ‌के आधार पर‌ तय‌ होता है।

 

हे श्रमिक तुम्हारा वंदन ‌है, वंदन है, अभिनंदन ‌है।

तुम श्रमशक्ति ‌हो दुनिया की, माथे पे‌ रोली चंदन है ।

      ।   । हे श्रमिक तुम्हारा।।1।।

 

तुम ही अपने श्रमशक्ति ‌से, बागों में फूल ‌खिलाते ‌हो।

सड़कें पुल बांध बना देश को विकास पथ पर लाते ‌हो।

अपने हुनर के‌‌ बल पर‌ सबके, तन पर वस्त्र ‌सजाते हो।

तुम ही अपनी मेहनत से, इन खेतो‌ में अन्न उगाते हो।

तुम भाग्य विधाता जग के, सबकी‌ किस्मत‌ चमकाते हो।।

।।   हे श्रमिक तुम्हारा वंदन ‌है।।2।।

 

तुम राष्ट्र पुरूष हो दुनिया में, तुमसे विकास का नारा है।

तुमसे ही दुनिया सुखी हुई, सब पे‌ अहसान तुम्हारा है।

अरमान तुम्हारे ‌दिल में है, आंखों में सपना प्यारा है।

पहचान ‌तुम्हारी ताकत है श्रम से अस्तित्व तुम्हारा है।

।। हे श्रमिक तुम्हारा वंदन है।।3।।

 

तेरी त्याग‌ तपस्या से, आलोकित यह जग सारा है।

अपनी हस्ती मिटाकर के, लाखों को दिया सहारा है।

सारी दुनिया का गम‌ पीकर, मुस्कान‌ तुम्हारे चेहरे ‌पर।

इस जहां ‌की रक्षा खातिर ही, जीवन बलिदान ‌तुम्हारा है।

।।हे श्रमिक तुम्हारा वंदन है।।4।।

 

© सुबेदार पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208

मोबा—6387407266

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆  Meditation – Breathing with the Body – Meditation Learning VIDEO #4  (Hindi) ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  Meditation – Breathing with the Body ☆ 

Video Link >>>>

Meditation Learning VIDEO # 4

This is the fourth video in a series of videos – a step-by-step tutorial – to learn and practice meditation by yourself by listening to and following the instructions given in the video.

In this session, we are re-visiting and deepening what we have learned in the three earlier videos.

Instructions:

Please sit down – legs folded crosswise, back straight and eyes closed.

Focus your attention on the nostrils as you breathe in and as you breathe out.

In this session, we will re-visit and deepen what we have learned earlier.

Begin by simply bringing attention to the breathing.

Always mindful of your breath, breathe in; mindful, breathe out.

If you breathe in long, know: I am breathing in long. If you breathe out long, know: I breathe out long.

If you breathe in short, know: I am breathing in short. If you breathe out short, know: I breathe out short.

Don’t worry if your mind wanders away, bring it back gently. Observe your breath.

As the breathing becomes deeper, focus on the body.

Keeping a watch on your breath in the background, look inwards to the major parts of your body: head, shoulders, hands, palms, chest, stomach, upper back, lower back, legs and the feet.

Sensitive to the whole body, breathe in. Sensitive to the whole body, breathe out.

As you familiarize with your body, while keeping a watch on your breathing, relax your limbs one-by-one: forehead, eyes, cheeks, neck, shoulders, heart, stomach, upper back, lower back, thighs, calf muscles, ankles, and soles of your feet.

Calming the whole body, breathe in. Calming the whole body breathe out.

May all beings be happy, be peaceful, be liberated!

Open your eyes gently and come out of meditation.

Continue your practice of meditation. When you feel, you have mastered this segment, you may proceed to the next video. Remember, meditation is a lifetime’s work.

We will be happy to have your feedback and would answer any questions that you may have. Questions may be sent to us at lifeskills.happiness@gmail.com.

 

LifeSkills

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga. We conduct talks, seminars, workshops, retreats and trainings.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email lifeskills.happiness@gmail.com if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – द्वादश अध्याय (5) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

द्वादश अध्याय

(साकार और निराकार के उपासकों की उत्तमता का निर्णय और भगवत्प्राप्ति के उपाय का विषय)

 

क्लेशोऽधिकतरस्तेषामव्यक्तासक्तचेतसाम्‌ ।

अव्यक्ता हि गतिर्दुःखं देहवद्भिरवाप्यते ।।5।।

 

निराकार की साधना दिखती कठिन महान

क्यों कि मन को टिकाने का न कोई आधान ।।5।।

 

भावार्थ :  उन सच्चिदानन्दघन निराकार ब्रह्म में आसक्त चित्तवाले पुरुषों के साधन में परिश्रम विशेष है क्योंकि देहाभिमानियों द्वारा अव्यक्तविषयक गति दुःखपूर्वक प्राप्त की जाती है।।5।।

 

Greater is their trouble whose minds are set on the Unmanifested; for the goal-the Unmanifested-is very difficult for the embodied to reach।।5।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

vivek1959@yahoo.co.in

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