हिन्दी साहित्य ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 20 ☆ लघुकथा – समझदारी …….. ☆ श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि‘

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’  

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’ जी  एक आदर्श शिक्षिका के साथ ही साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे गीत, नवगीत, कहानी, कविता, बालगीत, बाल कहानियाँ, हायकू,  हास्य-व्यंग्य, बुन्देली गीत कविता, लोक गीत आदि की सशक्त हस्ताक्षर हैं। विभिन्न पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत एवं अलंकृत हैं तथा आपकी रचनाएँ आकाशवाणी जबलपुर से प्रसारित होती रहती हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी एक अतिसुन्दर और शिक्षाप्रद लघुकथा समझदारी   ….।  पति पत्नी का सम्बन्ध एक नाजुक डोर सा होता है और विश्वास उसकी सबसे बड़ी कड़ी होती है।  इस तथ्य को श्रीमती कृष्णा जी ने  पति पत्नी के इस सम्बन्ध में निहित समझदारी  को बेहद  खूबसूरती से दर्शाया है। इस अतिसुन्दर रचना के लिए श्रीमती कृष्णा जी बधाई की पात्र हैं।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 20 ☆

☆ लघुकथा  – समझदारी   …. ☆

 

पति  अजय ने आभा को अपने पास बैठाकर समझाया। बीती बातें एक बुरा सपना समझकर भूल जाओ मैं  तुम्हारे साथ हूँ   पर आभा नजरें नहीं मिला पा रही थी। अजय ने उसे गले लगाया बस फिर तो आभा के सब्र का बांध ही टूट गया हिचकी के साथ आँसू बहे और आँसुओं के साथ मित्र द्वारा की गयी गद्दारी  तार तार हो गई।

शाह ने पहले अजय से दोस्ती की और फिर बाद में आभा की गतिविधियों पर नजर रख उसका फायदा उठाया। अजय जानते थे। शाह बदमाश और गंदा व्यक्ति है पर उसकी  वाकपटुता से वे भी मोहित हो गये। किन्तु, उसका घर में घुसकर घरघुलुआ खेलना बहुत बुरा लगा। वे उस पर नजर रखते फिर भी शाह आभा से मिलना न छोड़ता।  अजय ने घर बर्बाद न हो, यह कोशिश शुरू कर दी।  अभी नयी नयी गृहस्थी थी एक दूसरे को समझ ही रहे थे, कि बीच में शाह का आ जाना  घर का टूटने जैसे होगा।

अजय ने आभा को बहुत प्यार और सम्मान, धीरज के साथ समझाया और शाह की कोई भी बुराई न कर आभा के मन को जीत  लिया।  नारी स्वभाव एक चढ़ती बेल ही तो होता है।  जो प्यार से संवारे,  उसी की हो ली।

अजय कुछ सामान लेने बाहर निकले ही थे कि झट से दूर खड़े शाह ने आभा के घर में प्रवेश किया।  अजय शाह को आते देख चुके थे।  वे आकर चुपचाप  बाहर कमरे में बैठ गये। शाह आभा से प्यार भरी बातें करने लगा। सब्जबाग दिखाने की कोशिश करने का प्रयास किया।  तभी आभा ने ऊंची आवाज में शाह को डाँटा कि आज के बाद इस घर में कदम मत रखना।  यह मेरा और मेरे पति का घर है, इसमें किसी तीसरे का कोई स्थान नहीं। और शाह अपनी चालबाजियों के आगे खुद ही हार गया। जब वह बाहर निकल रहा था, तभी अजय ने बड़े प्यार से उसकी ओर मुस्कुरा कर देखा। शाह सिर नीचे किए चुपचाप तेज कदमों से बाहर निकल गया।

 

© श्रीमती कृष्णा राजपूत  ‘भूमि ‘

अग्रवाल कालोनी, गढ़ा रोड, जबलपुर -482002 मध्यप्रदेश

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हिन्दी साहित्य- लघुकथा ☆ आस्तीन के सांप ☆ डॉ . प्रदीप शशांक

डॉ . प्रदीप शशांक 

(डॉ प्रदीप शशांक जी द्वारा रचित एक समसामयिक विषय पर आधारित सार्थक एवं शिक्षाप्रद लघुकथा   “ आस्तीन के सांप”.  )

☆ लघुकथा – आस्तीन के सांप

कालोनी में सन्नाटा पसरा हुआ था । हर कोई अपने घर में बंद  था । तभी एक घर से शोरगुल उठा और घर के लोग बदहवास बाहर निकल कर सांप -सांप चिल्लाने लगे । कालोनी के लोग केम्पस में जमा हो गये । कुछ साहसी युवकों ने सांप को भगा दिया ।

लोग पुनः अपने घरों में दुबक गये और समाचार चैनलों से चिपक गये । संवाददाता बता रहा था कि भारत में कुछ पढे लिखे जाहिलों के द्वारा शासन के नियमों का पालन न करने से कोरोना के मरीजों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है ।

समाचार देखते हुए वह सोचने लगा – “कालोनी में घुसकर साँप तो यही जानना चाहता था  कि यहां इतना सन्नाटा क्यों है? वास्तविक सांप आजकल बहुत कम दिखते हैं । अब तो चारों ओर आस्तीन के सांपों की भरमार है । डर और दहशत का माहौल इन्हीं की वजह से है । यह शासन के आदेशों की अवहेलना कर मानवता के विरुद्ध क़ानून तोड़ने का ही कार्य करते हैं ।”

यह एक बड़ा प्रश्नचिन्ह है कि-  “आखिर, इन आस्तीन के सांपों का क्या करना चाहिए?”

 

© डॉ . प्रदीप शशांक 

37/9 श्रीकृष्णपुरम इको सिटी, श्री राम इंजीनियरिंग कॉलेज के पास, कटंगी रोड, माढ़ोताल, जबलपुर ,मध्य प्रदेश – 482002

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे # 41☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के हृदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)  

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे # 41 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

 

सुख व्यापे इस जगत में, दुखिया रहे न कोय ।

सबके मन जागे धरम, सबका मंगल होय ।।

– आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

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Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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आध्यत्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – एकादश अध्याय (36) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(भयभीत हुए अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति और चतुर्भुज रूप का दर्शन कराने के लिए प्रार्थना)

 

अर्जुन उवाच

स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या जगत्प्रहृष्यत्यनुरज्यते च ।

रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसङ्‍घा: ।। 36 ।।

अर्जुन ने कहा-

सच , प्रभु कीर्तन आपका देता सुख – आनंद

असुरों को भय आपका , साधक परम प्रसन्न ।। 36 ।।

भावार्थ :  अर्जुन बोले- हे अन्तर्यामिन्! यह योग्य ही है कि आपके नाम, गुण और प्रभाव के कीर्तन से जगत अति हर्षित हो रहा है और अनुराग को भी प्राप्त हो रहा है तथा भयभीत राक्षस लोग दिशाओं में भाग रहे हैं और सब सिद्धगणों के समुदाय नमस्कार कर रहे हैं।। 36 ।।

 

It is meet, O Krishna, that the world delights and rejoices in Thy praise; demons fly in fear to all quarters and the hosts of the perfected ones bow to Thee!।। 36 ।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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आध्यत्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – एकादश अध्याय (35) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(भयभीत हुए अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति और चतुर्भुज रूप का दर्शन कराने के लिए प्रार्थना)

संजय उवाच

एतच्छ्रुत्वा वचनं केशवस्य कृतांजलिर्वेपमानः किरीटी ।

नमस्कृत्वा भूय एवाह कृष्णंसगद्गदं भीतभीतः प्रणम्य ।। 35 ।।

संजय ने कहा –

केशव के ये वचन सुन , कॅंप , कर विनत प्रणाम

अर्जुन बोले कृष्ण से फिर ये वचन ललाम। ।। 35 ।।

भावार्थ :  संजय बोले- केशव भगवान के इस वचन को सुनकर मुकुटधारी अर्जुन हाथ जोड़कर काँपते हुए नमस्कार करके, फिर भी अत्यन्त भयभीत होकर प्रणाम करके भगवान श्रीकृष्ण के प्रति गद्‍गद्‍ वाणी से बोले।। 35 ।।

 

Having heard that speech of Lord Krishna, the crowned one (Arjuna), with joined palms, trembling,  prostrating  himself,  again  addressed  Krishna,  in  a  choked  voice,  bowing  down, overwhelmed with fear.।। 35 ।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 34 ☆ बौनापन ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  कविता “बौनापन”। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 34☆

☆  बौनापन ☆

 

ए ख़ुदा!

कितना विशाल है

तेरा जिगर

और कितनी छोटी है मेरी हस्ती!

 

जब भी अपने आप को

नापने लग जाती हूँ,

तो एक मिटटी का कण भी

मुझसे बड़ा ही लगता है,

सच, नहीं हूँ मैं,

एक कतरा भी!

 

ए ख़ुदा!

अक्सर सीली सी शामों में

सोचती हूँ कि

कैसे तू ख़याल रखता है

अपने इतने सारे चाहने वालों का?

कैसे तू निभाता जाता है साथ

हर अलग-अलग दिशा में उड़ते हुए

इन तिनकों का?

कैसे बटोरता है तू

इनके एहसास?

कैसे कर लेता है तू

हर किसी से इतनी मुहब्बत?

और कैसे इन्हें आभास दिलाता है

अपनेपन का?

 

आज

जब मेरे आवारा से कदम

फिर तौलने लगे खुद को

तो उन्हें एक बार फिर

हवाएँ एहसास दिला गयीं

मेरे बौनेपन का!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – चौकन्ना ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – चौकन्ना ☆

सीने की

ठक-ठक

के बीच

कभी-कभार

सुनता हूँ

मृत्यु की

खट-खट भी,

ठक-ठक..

खट-खट..,

कान अब

चौकन्ना हुए हैं

अन्यथा ये

ठक-ठक और

खट-खट तो

जन्म से ही

चल रही हैं साथ

और अनवरत..,

आदमी यदि

निरंतर

सुनता रहे

ठक-ठक के साथ

खट-खट भी,

बहुत संभव है

उसकी सोच

निखर जाए,

खट-खट तक

पहुँचने से पहले

ठक-ठक

सँवर जाए..!

 

घर में रहें, सुरक्षित रहें। 

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – लघुकथा ☆ सबकी माई ☆ श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

मानवीय एवं राष्ट्रीय हित में रचित रचना 

श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

(सुप्रसिद्ध, ओजस्वी,वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती हेमलता मिश्रा “मानवी” जी  विगत ३७ वर्षों से साहित्य सेवायेँ प्रदान कर रहीं हैं एवं मंच संचालन, काव्य/नाट्य लेखन तथा आकाशवाणी  एवं दूरदर्शन में  सक्रिय हैं। आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय स्तर पर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, कविता कहानी संग्रह निबंध संग्रह नाटक संग्रह प्रकाशित, तीन पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद, दो पुस्तकों और एक ग्रंथ का संशोधन कार्य चल रहा है। आज प्रस्तुत है श्रीमती  हेमलता मिश्रा जी  की एक अत्यंत प्रेरक एवं शिक्षाप्रद लघुकथा  सबकी माई । इस सन्दर्भ में मैं मात्र इतना ही कहूंगा – निःशब्द, अतिसुन्दर लघुकथा, कथानक एवं कथाशिल्प। आदरणीया श्रीमती हेमलता जी की लेखनी को नमन। )

☆ लघुकथा – सबकी माई  ☆

हाय री मैया। बडो़ दरद उठ रहो हे। प्रभू  भगवन भली करो—चैती के स्वर में भरी वेदना से पड़ोसन माई परेशान हो रही थी, मगर अपने फ्लैट से निकल कर सामने उसके कमरे पर जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी। बीच-बीच में राजन की आवाज सुनाई देती – – – धीरज रख चैती–धीरज रख।।

बड़ी सी फ्लैट स्कीम के सामने एक खाली प्लाट में बने छोटे से कच्चे कमरे में चैती और राजन रहते थे। राजन रोज मजदूर था। दूर दूर तक आॅटो ढूँढ कर थक चुका था मगर संपूर्ण बंद के कारण लाचार था।बगल की दुकान से एंबुलेंस के लिए उसने फोन करवाया था।

वह चैती को समझा रहा था— बस अभी एंबुलेंस पहुँचती ही होगी। वैसे भी तेरी डिलेवरी में समय है घबरा मत – – धीरज धर चैती।

दो घंटे बीत गए। एंबुलेंस नहीं पहुँची थी। चैती की चीखें थोड़ी और व्याकुल हो रहीं थीं। आस पास फ्लैटों से लोग-बाग झाँक रहे थे।

अचानक  एंबुलेंस के रुकने की आवाज सुनाई दी मगर वह चैती के नहीं उसके ठीक सामने माई के बड़े से फ्लैट के आगे रुकी। माई ने एंबुलेंस बुलवाई थी। अब माई से और रहा नहीं गया।सोचा मैं अकेली जान। बेटी विदेश में फँसी है— किसके लिए अपनी जान की इतनी परवाह करूं। यह विचार करते ही माई उठ खड़ी हुई, घर को ताला डाल कर राजन के साथ एंबुलेंस में बैठ गई उसके साथ अस्पताल जाने के लिए और पाँच हजार रुपये की गड्डी उसके हाथ में थमा दी। चैती और राजन हैरान हो गए— पूरे मोहल्ले में झगडालू चिड़चिड़ी बुढिया के रूप में मशहूर माई का यह रूप देखकर।!

माई की पूरी कालोनी में किसी से पटती नहीं थी दूधवाले सब्जी वाले भी उससे डरते। लेकिन आज जब कोरोना के डर से सगे रिश्तेदार भी अपने अपने फ्लैटों घरोंदों में दुबके बैठे हैं वहाँ माई का यह साहस अभिभूत कर गया।

चार दिन बाद जब  माई के साथ चैती गोद में नन्हें से बच्चे को लेकर लौटी तो निवासियों के साथ साथ सभी फ्लैटों के दरो दीवार देहरी तक माई के सम्मान और स्नेह से भर उठे–दूर से ही सही सबकी तालियों से परेशान चिड़चिड़ी माई ने सबको अपनी पुरजोर आवाज में दपट दिया और जोर से दरवाजा लगा लिया लेकिन तालियाँ बजती ही रहीं – – – बजती ही रहीं।।

© हेमलता मिश्र “मानवी ” 

नागपुर, महाराष्ट्र

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हिन्दी साहित्य ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अभिव्यक्ति # 14 ☆ अंधविश्वास के ताले ☆ हेमन्त बावनकर

हेमन्त बावनकर

(स्वांतःसुखाय लेखन को नियमित स्वरूप देने के प्रयास में इस स्तम्भ के माध्यम से आपसे संवाद भी कर सकूँगा और रचनाएँ भी साझा करने का प्रयास कर सकूँगा। अब आप प्रत्येक मंगलवार को मेरी रचनाएँ पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है मेरी एक प्रिय कविता कविता “अंधविश्वास के ताले ”

इस कविता के सन्दर्भ  में मेरे जीवन के अनमोल क्षण जुड़े हुए हैं। इस कविता को 2014 की यूरोप यात्रा के दौरान लिखा है किन्तु  इसका सन्दर्भ इससे भी पूर्व 2012 की यूरोप यात्रा से जुड़ा है। कविता के साथ लगा चित्र इटली के वेरोना शहर का है जिसमें सपत्नीक जूलियट की प्रतिमा के साथ हूँ।  जूलियट की प्रतिमा के पीछे बाड़ में प्रेमियों के अनगिनत ताले लगे हैं। हमने भी एक ताला जोड़ा था  यह सोचकर कि- पता नहीं कब दोबारा आना होगा और हमारा प्रेम भी वैसा ही बना रहे जैसा सब सोचते हैं। आज वह सब स्वप्न सा लगता है। मैं नहीं जानता वे अनगिनत जोड़े कहाँ हैं जिन्होंने इन प्रेमी स्मारकों पर ताले लगाए थे ।

आज इटली के सन्दर्भ में अनायास ही यह कविता स्मृति से निकल कर  बाहर आ गई ।  मेरी पुस्तक ” शब्द और कविता “ से  यह कविता उद्धृत कर रहा हूँ।  ईश्वर इटली और सारे विश्व  में महामारी पीड़ितों  के परिवारों को सम्बल प्रदान करे  तथा  दिवंगतों को विनम्र श्रद्धांजलि । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अभिव्यक्ति # 14

☆ अंधविश्वास के ताले ☆

वेरोना

जूलियट की बालकनी

बालकनी के नीचे

जूलियट की प्रतिमा

और

प्रतिमा के पीछे

जंगले में टंगे

अनगिनत ताले।

पेरिस

सीयेन  नदी के ऊपर

लवर्स ब्रिज पर

पुल की बाड़ के तारों पर टंगे

अनगिनत ताले।

 

बेम्बर्ग का पुराना शहर

शहर के बीचों बीच

रेनिट्ज़ नदी का पुल

और

पुल की बाड़ के तारों पर टंगे

अनगिनत ताले।

 

पुल के नीचे

शांत रेनिट्ज़ नदी की सतह पर

अठखेलियाँ करती

बदक की जोड़ियाँ

अनजान हैं

आधुनिक पश्चिमी संस्कृति के

अंधविश्वास से।

 

उन्हें भ्रम है

कि बन्द टंगे तालों की तरह

उनकी जोड़ियाँ

हो जाएंगी

‘अटूट’ और ‘अमर’।

 

मैंने सुना है कि –

अक्सर

ताले टंगे रहते हैं।

जोड़े टूट जाते हैं।

जूलियट वही रहती है

और

रोमियो बदल जाते हैं।

 

थोड़े बहुत अंधविश्वासी तो

हम भी हैं ।

हम भी जाते हैं

गाहे बगाहे

मंदिर – मस्जिद में

चर्च – गुरुद्वारे में

पीर – पैगंबर कि मजार पर।

 

जाने अनजाने

बाँध आते हैं धागे ।

अपनी औलादों की

सलामती के लिए

माँग आते हैं दुआ।

 

इस आस के साथ

कि – यदि

औलाद नेक

और

सलामत रहे

तो जोड़े ही क्या

भला

घर भी कैसे टूट सकते हैं ?

 

© हेमन्त बावनकर, पुणे 

बेम्बर्ग 28 मई 2014

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ असंख्य दीप-शिखा प्रज्ज्वलित ☆ ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं। आज प्रस्तुत है कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी  की  व्यक्तिगत मनोभावनाओं की काव्याभिव्यक्ति असंख्य दीप-शिखा प्रज्ज्वलित। )

 ☆ असंख्य दीप-शिखा प्रज्ज्वलित ☆ 

 

दुष्कर मानव जीवन-पथ पर

अनेक समस्याएँ, अकल्पनीय!

समस्त भारत  का  अनवरत

कल्याण-प्रयास,  सराहनीय!!

 

करें असंख्य दीप-शिखा प्रज्ज्वलित,

हों पूरित मनोवांछित आकांक्षाएं !

प्रधानमंत्री जी के समस्त संकल्प

पूर्ति हेतु, अनंत शुभ-कामनाएं!!

 

©  कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

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