(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है श्री अरविन्द तिवारी जी के व्यंग्य -संग्रह “डोनाल्ड ट्रम्प की नाक” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा । )
पुस्तक चर्चा के सम्बन्ध में श्री विवेक रंजन जी की विशेष टिपण्णी :- पठनीयता के अभाव के इस समय मे किताबें बहुत कम संख्या में छप रही हैं, जो छपती भी हैं वो महज विज़िटिंग कार्ड सी बंटती हैं । गम्भीर चर्चा नही होती है । मैं पिछले 2 बरसो से हर हफ्ते अपनी पढ़ी किताब का कंटेंट, परिचय लिखता हूं, उद्देश यही की किताब की जानकारी अधिकाधिक पाठकों तक पहुंचे जिससे जिस पाठक को रुचि हो उसकी पूरी पुस्तक पढ़ने की उत्सुकता जगे। यह चर्चा मेकलदूत अखबार, ई अभिव्यक्ति व अन्य जगह छपती भी है । जिन लेखकों को रुचि हो वे अपनी किताब मुझे भेज सकते हैं। – विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘ विनम्र’
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 32 ☆
☆ पुस्तक चर्चा – व्यंग्य-संग्रह – डोनाल्ड ट्रम्प की नाक☆
☆ व्यंग्य – संग्रह – डोनाल्ड ट्रम्प की नाक – श्री अरविन्द तिवारी – चर्चाकार…विवेक रंजन श्रीवास्तव ☆
इस सप्ताह व्यंग्य के एक अत्यंत सशक्त सुस्थापित मेरे अग्रज वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री अरविन्द तिवारी जी की नई व्यंग्य कृति डोनाल्ड ट्रम्प की नाक पढ़ने का अवसर मिला. तिवारी जी के व्यंग्य अखबारो, पत्र पत्रिकाओ सोशल मीडिया में गंभीरता से नोटिस किये जाते हैं. जो व्यंग्यकार चुनाव टिकिट और ब्रम्हा जी, दीवार पर लोकतंत्र, राजनीति में पेटीवाद, मानवीय मंत्रालय, नल से निकला सांप, मंत्री की बिन्दी, जैसे लोकप्रिय, पुनर्प्रकाशित संस्करणो से अपनी जगह सुस्थापित कर चुका हो उसे पढ़ना कौतुहल से भरपूर होता है. व्यंग्य संग्रह ही नही तिवारी जी ने दिया तले अंधेरा, शेष अगले अंक में हैड आफिस के गिरगिट, पंख वाले हिरण शीर्षको से व्यंग्य उपन्यास भी लिखे हैं. बाल कविता, स्तंभ लेखन के साथ ही उनके कविता संग्रह भी चर्चित रहे हैं. वे उन गिने चुने व्यंग्यकारो में हैं जो अपनी किताबों से रायल्टी अर्जित करते दिखते हैं. तिवारी जी नये व्यंग्यकारो की हौसला अफजाई करते, तटस्थ व्यंग्य कर्म में निरत दिखते हैं.
पाठको से उनकी यह किताब पढ़ने की अनुशंसा करते हुये मैं किसी पूर्वाग्रह से ग्रस्त नहीं हूं. जब आप स्वयं ४० व्यंग्यों का यह संग्रह पढ़ेंगे तो आप स्वयं उनकी लेखनी के पैनेपन के मजे ले सकेंगे. प्रमाण पत्रो वाला देश, अपने खेमे के पिद्दी, राजनीति का रिस्क, साहित्य के ब्लूव्हेल, व्यंग्य के मारे नारद बेचारे, दिल्ली की धुंध और नेताओ का मोतियाबिन्द, पुस्तक मेले का लेखक मंच, उठौ लाल अब डाटा खोलो, पूरे वर्ष अप्रैल फूल, अपना अतुल्य भारत, जुगाड़ टेक्नालाजी, देशभक्ति का मौसम, टीवी चैनलो की बहस और शीर्षक व्यंग्य डोनाल्ड ट्रम्प की नाक सहित हर व्यंग्य बहुत सामयिक, मारक और संदेश लिये हुये है.इन व्यंग्य लेखो की विशेषता है कि सीमित शब्द सीमा में सहज घटनाओ से उपजी मानसिक वेदना को वे प्रवाहमान संप्रेषण देते हैं, पाठक जुड़ता जाता है, कटाक्षो का मजा लेता है, जिसे समझना हो वह व्यंग्य में छिपा अंतर्निहित संदेश पकड़ लेता है, व्यंग्य पूरा हो जाता है. मैं चाहता हूं कि इस पैसा वसूल व्यंग्य संग्रह को पाठक अवश्य पढ़ें.
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत हैं उनकी एक समसामयिक बालमन के मनोविज्ञान को उकेरती एक बेहद सुन्दर लघुकथा “रावण जैसा कोरोना”। श्रीमती सिद्धेश्वरी जी की यह एक सार्थक एवं शिक्षाप्रद कथा है जो बालमन के माध्यम से संकेतों में काफी कुछ सकारात्मक सन्देश देती है। इस सर्वोत्कृष्ट समसामयिक लघुकथा के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 42 ☆
☆ लघुकथा – रावण जैसा कोरोना ☆
रिया छोटी सी चार साल की बिटिया। उसे दादी से कहानी सुनना बहुत अच्छा लगता था। जब से लॉक डाउन हुआ था, दादी जी के पास बैठकर रोज रामायण का पाठ सुनती थी ।
दादी ने सोचा, समय अच्छा है पूरा रामायण पढ़ लेती हूं।लॉक डाउन में भगवान का भजन भी हो जाएगा और घर के सभी सदस्य भी घर पर ही हैं।
बाकी सभी सदस्य तो टेलीविजन, मोबाइल, पेपर पर लगे रहते थे, मम्मी भोजन बनाने में लगी रहती थी, परंतु रिया अपनी दादी के पास बैठकर रामायण की कहानी सुनती। कितना पढ़ी है? उसमें क्या कहानी है? दादी भी उसे बड़े चाव से रोज कहानी सुनाती थी।
बालमन में दिनभर कोरोना की बातें भी आ जा रही थी। चर्चा का विषय भी कोरोना ही बना हुआ था। इसी बीच आज दादी जी की रामायण का पाठ ‘रावण के वर्णन’ के पास आया। दादी ने रिया को रावण के बारे में बताई। रावण के दस सिर और बीस हाथ थे। बहुत बलशाली राक्षस था। वह सभी तरफ देख सकता था।उसका बहुत बड़ा परिवार था। यदि भगवान राम ना होते तो रावण का वध कोई नहीं कर सकता था, और राक्षस बढ़ते ही जाते।
बड़े ध्यान से रिया दादी की बात सुन रही थी, और दौड़कर पापा के पास पहुंची, और बोली :- “ पापा क्या यह कोरोना भी रावण की तरह ही है? यह बहुत बलशाली है! हमारे भारत में कोई राम नहीं जो कोरोना रावण को मार सके? ”
पापा धीरे से मुस्कुरा कर बोले:-” हैं ना बेटा और वह कोरोना रावण रूपी राक्षस को मार ही रहे है। वह अपना काम कर रहे हैं। बहुत जल्दी यह कोरोना रुपी रावण खत्म हो जाएगा।”खुश होकर रिया दीपक जलाने का इंतजार करने लगी।
(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना एक काव्य संसार है । आप मराठी एवं हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आज साप्ताहिक स्तम्भ –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती शृंखला की अगली कड़ी में प्रस्तुत है एक समसामायिक भावप्रवण कविता “कोरोना, नकोच तुझे सरकार”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 44 ☆
(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं। सुश्री रंजना एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं। सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से जुड़ा है एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है। निश्चित ही उनके साहित्य की अपनी एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को उनके साप्ताहिक स्तम्भ रंजना जी यांचे साहित्य के अंतर्गत पढ़ सकते हैं । आज प्रस्तुत है आपकी एक समसामयिक एवं भावप्रवण कविता ” सलोखा”।)
(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills इंदौर के हृदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में सहायता की है। आप आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)
☆ कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे # 41 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆
(हम प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )
आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :
A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.
Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.
Our Fundamentals:
The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga. We conduct talks, seminars, workshops, retreats, and training.
Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University. Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.
भावार्थ : द्रोणाचार्य और भीष्म पितामह तथा जयद्रथ और कर्ण तथा और भी बहुत से मेरे द्वारा मारे हुए शूरवीर योद्धाओं को तू मार। भय मत कर। निःसंदेह तू युद्ध में वैरियों को जीतेगा। इसलिए युद्ध कर॥34॥
Drona, Bhishma, Jayadratha, Karna and all the other courageous warriors—these have already been slain by Me; do thou kill; be not distressed with fear; fight and thou shalt conquer thy enemies in battle.
( ई- अभिव्यक्ति में डॉ निधि जैन जी का हार्दिक स्वागत है। आप भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक कुछ लम्हे आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। आपने हमारे आग्रह पर हिंदी / अंग्रेजी भाषा में साप्ताहिक स्तम्भ – World on the edge / विश्व किनारे पर प्रारम्भ करना स्वीकार किया इसके लिए हार्दिक आभार। स्तम्भ का शीर्षक संभवतः World on the edge सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद एवं लेखक लेस्टर आर ब्राउन की पुस्तक से प्रेरित है। आज विश्व कई मायनों में किनारे पर है, जैसे पर्यावरण, मानवता, प्राकृतिक/ मानवीय त्रासदी आदि। आपका परिवार, व्यवसाय (अभियांत्रिक विज्ञान में शिक्षण) और साहित्य के मध्य संयोजन अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य के सिद्धांत के प्रणेता भगवान महावीर जी की जयंती पर आपकी विशेष कविता “महावीर भगवान आज तुम होते तो कोरोना ना होता”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ World on the edge / विश्व किनारे पर # 2 ☆
☆ महावीर भगवान आज तुम होते तो कोरोना ना होता ☆
(महावीर जयंती पर शाश्वत सुख पाने के लिए सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य के सिद्धांत पर चलकर विश्व में कोरोना जैसी महामारी को हटाएं)
महावीर भगवान आज तुम कलयुग में होते तो,
विश्व में कोरोना जैसी महामारी नहीं होती।
हिंसा से अहिंसा का मूल सिखाकर मांसाहार छुड़ाते,
तो विश्व में कोरोना जैसी महामारी नहीं होती।
स्वच्छता और सत्य का मानव को पाठ पढ़ा जाते,
तो विश्व में कोरोना जैसी महामारी नहीं होती।
अपरिग्रह (संतुष्टि) की राह दिखाते, दान धर्म को सब अपनाते,
तो विश्व में कोरोना जैसी महामारी नहीं होती।
जिन (आत्मा) सब में एक है, तो जात पात का भेद मिटा देते,
तो विश्व में कोरोना जैसी महामारी नहीं होती।
तेरा मेरा छोड़ सब का खून का रंग एक है, सब की पीड़ा एक है, विश्व को सिखा जाते,
तो विश्व में कोरोना जैसी महामारी नहीं होती।
मन को जीता महावीर ने, विश्व को जीता बिन लड़ाई के, हम भी जीत जाते,
तो विश्व में कोरोना जैसी महामारी नहीं होती ।
आओ हम सब महावीर भगवान की राह पर चले जाएं,
मानवता को मानव बन कर जी जाएं,
और इस कलयुग में कोरोना जैसी महामारी को हमेशा के लिए मिटाएं ।
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि – जलाएँ एक दीप ☆
संजय दृष्टि के अंतर्गत आज की रचना प्रस्तुत करने के पूर्व हम आप सबका आभार प्रकट करना चाहेंगे। इस सन्दर्भ में श्री संजय भरद्वाज जी की दीप प्रज्वलित करने हेतु आह्वान स्वरूप कविता को कृपया पुनः पढ़ें एवं उसमे निहित भावार्थ को आत्मसात करने का प्रयास करें।
जलाएँ एक दीप
उस दरवाजे, अंधविश्वास
जिसका प्रहरी हो,
एक दीप उस गली के आगे
भूख जहाँ आकर ठहरी हो,
एक दीप उस चबूतरे पर
भारतीयता का जिस पर बसेरा हो,
एक दीप उस कँगूरे पर
फहराता जहाँ तिरंगा मेरा हो,
एक दीप शहीदों की समाधि पर,
एक भीतर भीतर घुमड़ती
परिवर्तन की आँधी पर,
एक दीप आपदा के विरुद्ध जलाएँ,
एकता की शक्ति से
नभ-थल आलोकित हो जाएँ।
(कल 5 अप्रैल 2020 रात 9 बजे, 9 मिनट तक आपने अपने दरवाजे/बालकनी में दीप / मोमबत्ती जलाकर या मोबाइल की फ्लैश लाइट/ टॉर्च ऑन करके भारत की सामूहिकता का परिचय दिया ।इस जज्बे के लिए आप सबको सलाम। )
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
(आदरणीय अग्रज एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी विगत दो दशक से भी अधिक समय से व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी पुस्तक ‘न जाना इस देश’ को साहित्य अकादमी के राजेंद्र अनुरागी पुरस्कार से नवाजा गया है। इसके अतिरिक्त आप कई ख्यातिनाम पुरस्कारों से अलंकृत किए गए हैं। इनमें हरिकृष्ण तेलंग स्मृति सम्मान एवं डॉ ज्ञान चतुर्वेदी पुरस्कार प्रमुख हैं। आज प्रस्तुत है श्री शांतिलाल जैन जी का एक समसामयिक सटीक व्यंग्य “समस्याएँ कम नहीं हैं वर्क फ्रॉम होम में”। इस व्यंग्य को पढ़कर निःशब्द हूँ। श्री शांतिलाल जी की तीक्ष्ण व्यंग्य दृष्टि से कोई भी ऐसा पात्र नहीं बच सकता ,जिस पात्र के चरित्र को वे अत्यंत सहजता से अपनी मौलिक शैली में न रच डालते हों । फिर वर्तमान परिस्थितियों में वर्क फ्रॉम होम से कई लोग खुश हैं तो कई नाखुश। आखिर नाखुश लोगों की समस्याओं की भी विवेचना तो होनी ही चाहिए न, सो श्री शांतिलाल जी ने वह विवेचना आपके लिए कर दी है। इस व्यंग्य को वर्क फ्रॉम होम के ब्रेक में पढ़ना भी वर्क फ्रॉम होम का हिस्सा है। श्री शांतिलाल जैन जी के प्रत्येक व्यंग्य पर टिप्पणी करने के जिम्मेवारी पाठकों पर है । अतः आप स्वयं पढ़ें, विचारें एवं विवेचना करें। हम भविष्य में श्री शांतिलाल जैन जी से ऐसी ही उत्कृष्ट रचनाओं की अपेक्षा रखते हैं। )
☆ व्यंग्य – ‘समस्याएँ कम नहीं हैं वर्क फ्रॉम होम में’☆
“हद्द है यार, ऑफिस का काम कोई घर से कैसे कर सकता है? आप ही बताईये शांतिबाबू कोई तम्बाकू थूके तो कहाँ थूके?”
सच कहा चंद्राबाबू ने. डेस्क के दायीं ओर जैसा कोना घर में तो होता नहीं. फिर, सत्ताईस बरस की नौकरी में एक आदत सी पड़ जाती है. सिर के उप्पर जाले लगे हों, छत के टपकते पलस्तर से बचने के लिए कहीं कहीं काली बरसाती बांध दी गयी हो, मरा-मरा सा घूमता छत का पंखा हो, टूटे हत्थों वाली कुर्सियाँ हों, स्टाम्प पेड की इंक के धब्बों वाले टेबल-कवर हों, समोसा खाकर लाल चटनी के पोंछे गये हाथ वाले परदे हों, सरकारी योजना के ध्येय वाक्यों से पुती बदरंग दीवारें हों, फाईलों के पहाड़ हों, उन पर ढेर सी धूल, कुछ कुछ सीलन सी हो. दफ्तर जैसा माहौल मिले तब तो मन लगाकर काम करे आदमी.
दफ्तर के अहाते में विचरते देसी कुत्तों को वे रोजाना पार्ले-जी बिस्कुट डालते हैं. मोती तो आस लगाये उनकी टेबल के नीचे ही बैठा रहता है. बिस्किट की हसरत पाले हुये बार बार ऑफिस में घुसते पिल्लै चंदू की लात खाते रहते हैं. तो श्रीमान, परेशानी नंबर एक तो ये कि काम करने का ऐसा प्रेरक माहौल मिस कर रहे हैं चंद्राबाबू. दूसरे, बार बार थूकने गैलरी में आना पड़ता है.
“ये तो सही कहा आपने, लेकिन घर से काम करने में बहुत सी चीज़ों का आराम भी तो रहता है”. – अपनी गैलरी से ही मैंने कहा.
चंद्राबाबू ने ध्यान से पीछे देखा. वाइफ दिखी नहीं, तब भी स्वर थोड़ा धीमे ही करके बोले – “चाय की दिक्कत है, अपन को लगती तो कट है लेकिन होना छोटे छोटे इंटरवल में. इसको बनाने में कंटाला जो आता है”.
“आपके दफ्तर के बाकी कर्मचारी भी घर से ही काम कर रहे होंगे ना?”
“भोत भोले हैं आप शांतिबाबू, जो दफ्तर में ही दफ्तर का काम नहीं करते वे घर से दफ्तर का काम क्या करेंगे.”
वार्तालाप सुनकर, वर्मा साब भी बाहर आ गये. वे एक अन्य दफ्तर में अफसर हैं. वर्क फ्रॉम होम को लेकर दुखी वे भी कम नहीं हैं. उनके दफ्तर का रामदीन गाँव चला गया है. था तो दिन में चपरासगिरी कर लेता था और सुबह शाम घर के काम देख लेता था. कोरोना का कहर बजरिये रामदीन के मिसेज वर्मा पर टूट पड़ा है. समय की मार देखिये श्रीमान, आज धुली नाईटी पे प्रेस करके देनेवाला रामदीन है नहीं और नजला वर्मा साब पर गिरा है.
दूसरा, वर्मा साब भावना मैडम को बुरी तरह मिस कर रहे हैं. वाईफ की कर्कश जुबां के मराहिलों से गुजरते हुवे वे जब दफ्तर पहुँचते थे तो भावनाजी के बोल कानों में मिश्री घोलते प्रतीत होते थे. ये लॉकडाउन और ये बिछोह. मन आर्द्र हो उठा उनका. साढ़े ग्यारह तक आती है. तो क्या हुआ, उसे घर भी देखना पड़ता है. काम पूरा न भी कर पाये लेकिन वर्मा साब से बिहेव प्रॉपरली करती है. वैरी फ़ास्ट इन लाईफ – लंच में निकलती है तो बाज़ार जाकर सब्जी, किराना, पनीर-शनीर ले कर दो घंटे से कम में लौट आती है, फाल-पिको के लिये साड़ी डाल आती है, बच्चों का होमवर्क निपटा लेती है, शहनाज़ पर रुककर आई-ब्रो बनवा लेती है, पीहर में वाट्सअप चैट कर लेती है. तीन किटी ग्रुप में मेंबर है, दफ्तर से निकलकर जल्दी-जल्दी अटेंड करके साढ़े चार तक वापस भी आ जाती है. वेरी एक्टिव, वेरी एजाईल. हम आज ‘वर्क फ्रॉम होम’ कर रहे हैं, वो बेचारी तो कब से ‘होम फ्रॉम वर्क’ कर रही है. फ़िज़ूल खर्ची नहीं करती – बच्चों के लिए पेन, पेन्सिल, शार्पनर ऑफिस से ले जाती है, कभी संकोच नहीं किया. मैडम है तो जिंदगी में रस है. ख्यालों पर ब्रेक लगा तो पान की तलब लगी. बाबा चटनी, किवाम, एक सौ बीस का मीठा पत्ता अभी कहाँ मिलेगा. दफ्तर में हों तो पप्पू चौरसिया ध्यान रख लेता है, शाम को घर के लिये भी बाँध देता है. ‘नास हो चीनियों का’ – बुदबुदाये और मजबूरी में पूछा – “चंद्रा, राजश्री रखे हो क्या?”
आठ बजे जननायक ने लॉकडाउन की घोषणा की और आठ पाँच पर चंद्राबाबू बनारसी की दुकान पर थे. थोक में राजश्री वोई रखता है. सौ वाला कार्टन उठा लाये. दूरदर्शिता से काम लिया तो आज सुख है. चंद्राबाबू ने साधकर वर्मासाब की गैलरी में दो फैंके. आपने सेवा का अवसर प्रदान किया, आभार आपका जैसे भाव मन में लाये और कृतज्ञ अनुभव किया. संकट की घड़ी में इंसान ही इंसान के काम आता है. बोले – ‘आप भी खाया करो शांतिबाबू, कोरोना का वायरस फेफड़े में उतरने से पहले तीन चार दिन तक गले में ही रहता है. तम्बाकू खाने से मर जाता है. इटली वाले ज्यादा मरे ही इसलिए – साले राजश्री नहीं खाते हैं ना’.
चंद्राबाबू यूं तो जननायक के समर्थक थे मगर इस बार खिन्न थे. जो लॉकडाउन की घोषणा एक दिन लेट की होती तो वे बुढार के दौरे पर निकल चुके होते. ससुराल है वहां. ठाठ से रहते, टीए के साथ-साथ डीए इक्कीस दिन का मिलता. होम इकॉनमी स्ट्रेस में चल रही है.
लॉकडाउन ने वर्मा साब और चंद्राबाबू दोनों की निजी अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव डाला है. घर से ही बिल तो निकाल दिये, कट बाकी है. सोशल डिस्टेंसिंग के बहाने ठेकेदार, वेंडर, सप्लायर मिलने में कन्नी काट रहे. घर का फिस्कल डेफिसिट बढ़ रहा है, परकेपिटा इनकम कम हो रही है. सत्ताईस साल में पहली बार मार्च की बेलेंसशीट रेड में जायेगी. घर से काम करते रहो तो साला कोई ओवरटाइम भी नहीं देगा. बड़े साब मोबाइल पर देर शाम को भी कोई काम बोल देते हैं. समस्या की जड़ तो बस दो – चाईनीज़ वायरस और चाईनीज़ मोबाइल. मन किया फेंक ही दें इसको. फिर ध्यान आया कि धनराज कांट्रेक्टर का दिया हुआ है तो क्या, है तो पैतीस हज़ार का.
इस बीच वर्मा साब के घर की डोअर बेल बजी. कुड़ाकुड़ाये मन में. दफ्तर में ठाठ से बेल बजाते हैं, यहाँ बेल सुननी पड़ती है. उन्होंने एक बार इधर-उधर देखा. मेरे अलावा कोई बाहर था नहीं. मेरी परवाह उन्होंने की नहीं. राजश्री थूका और बोले – ‘शाम को बात करते हैं’. आदमी पढ़ा-लिखा ओहदेदार हो तो थूकने में कांफिडेंस आ ही जाता है. वे अन्दर चले गये.
मैं कभी उन खाली गैलरियों को, कभी सड़क पर पड़े थूक को देख रहा हूँ. वर्क फ्रॉम होम कराने की इतनी कीमत तो देश को चुकानी ही पड़ेगी.
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की अगली कड़ी में उनकी एक सोचती समझती गिलहरी द्वारा सन्देश देती एक कविता “.. गिलहरी ….. । आप प्रत्येक सोमवार उनके साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे ।)