☆ किटी पार्टी ☆
(प्रख्यात व्यंग्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव जी ने किटी पार्टी पर काफी शोध कर लिया है। किन्तु, शोध के पश्चात ऐसे पारिवारिक /सामाजिक विषय पर व्यंग्य लिखने के लिए काफी हिम्मत की आवश्यकता पड़ती है। श्री विवेक जी को बधाई।)
पुराने जमाने में महिलाओं की परस्पर गोष्ठियां पनघट पर होती थी। घर परिवार की चर्चायें, ननद, सास की बुराई, वगैरह एक दूसरे से कह लेने से मनो चिकित्सकों की भाषा में, दिल हल्का हो जाता है, और नई ऊर्जा के साथ, दिन भर काटने को, पारिवारिक उन्नति हेतु स्वयं को होम कर देने की हमारी सांस्कृतिक विरासत वाली ’नारी’ मानसिक रूप से तैयार हो लेती थी। समय के साथ बदलाव आये हैं। अब नल-जल व्यवस्था के चलते पनघट इतिहास में विलीन हो चुके हैं। स्त्री समानता का युग है। पुरूषों के क्लबों के समकक्ष महिला क्लबों की संस्कृति गांव-कस्बों तक फैल रही है। सामान्यतः इन क्लबों को किटी-पार्टी का स्वरूप दिया गया है। प्रायः ये किटी पार्टियां दोपहर में होती है, जब पतिदेव ऑफिस, और बच्चे स्कूल गये होते हैं। महिलायें स्वयं अपने लिये समय निकाल लेती है। और मेरी पत्नी इस दौरान सोना, टी.वी. धारावाहिक देखना, पत्रिकायें-पुस्तकें पढ़ना, संगीत सुनना, और कुछ समय बचाकर लिखना जैसे षौक पाले हुए थी। पर हाल ही उसे भी किटी पार्टी का रोग लग ही गया।
प्रत्येक मंगलवार को मैं महावीर मंदिर जाता हूं, अब श्रीमती जी इस दिन किटी पार्टी में जाने लगी है। कल क्या पहनना है, ज्वेलरी, साड़ी से लेकर चप्पलें और पर्स तक इसकी मैंचिंग की तैयारियां सोमवार से ही प्रारंभ हो जाती हैं। कहना न होगा इन तैयारियों का अर्थिक भार मेरे बटुये पर भी पड़ रहा है। जिसकी भरपाई मेरा जेबखर्च कम करके की जाने लगी है। ब्यूटी कांषेस श्रीमती जी, नई सखियों से नये-नये ब्यूटी टिप्स लेकर, मंहगी हर्बल क्रीम, फेस पैक वगैरह के नुस्खे अपनाने लगी है। किटी पार्टी कुछ के लिये आत्म वैभव के प्रदर्शन हेतु, कुछ के लिये पति के बॉस की पत्नी की बटरिंग के द्वारा उनकी गुडबुक्स में पहुंचने का माध्यम कुछ के लिये नये फैशन को पकड़ने की अंधी दौड़, तो कुछ के लिये अपना प्रभुत्व स्थापित करने का एक प्रयास कुछ के लिये इसकी-उसकी बुराई भलाई करने का मंच, कुछ के लिये क्लब सदस्यों से परिचय द्वारा अपरोक्ष लाभ उठाने का माध्यम तो कुछ के लिये सचमुच विशुद्ध मनोरंजन होती है। कुछ इसे नेटवर्क मार्केटिंग का मंच बना लेती हैं।
क्लब में हाउजी का प्रारंपरिक गेम होता है, जिस किसी की टर्न होती है, उसकी रूचि, क्षमता एवं योग्यता के अनुरूप सुस्वादु नमकीन-मीठा नाश्ता होता है। चर्चायें होती हैं। गेम आफ द वीक होता है, जिसमें विनर को पुरस्कार मिलता है। मेरी इटेलैक्चुअल पत्नी जब जाती है, ज्यादातर कुछ न कुछ जीत लाती है। आंख बंद कर अनाज पहचानना, एक मिनट में अधिकाधिक मोमबत्तियां जलाना, जिंगल पढ़कर विज्ञापन के प्राडक्ट का नाम बताना, एक रस्सी में एक मिनट में अधिक से अधिक गठाने लगाना, जैसे कई मनोरंजक खेलों से, किटी पार्टी के जरिये हम वाकिफ हुये हैं। मेरा लेखक मन तो विचार कर रहा है एक किताब लिखने का- गेम्स आफ किटी पार्टीज मुझे भरोसा है, यह बेस्ट सैलर होगी। क्योंकि हर हफ्ते एक नया गेम तलाशने में महिलायें काफी श्रम कर रही है।
इस हफ्ते मेरी श्रीमती जी ’लेडी आफ दि वीक’ बनाई गई है। यानी इस बार टर्न उनकी हैं। चलतू भाषा में कहें तो उन्हें मुर्गा बनाया गया है- नहीं शायद मुर्गी। श्रीमती जी ने सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुति देने के अंदाज में मेरे सारे मातहत स्टाफ को तैनात कर रखा है, चाट वाले को मय ठेले के क्लब बुलवाया जाना है, आर्डर पर रसगुल्ले बन रहे हैं, एस्प्रेसों काफी प्लांट की बुकिंग कराई जा चुकी है, हरेक को रिटर्न गिफ्ट की शैली में कुछ न कुछ देने के लिये मेरी किताबों के गिफ्ट पैकेट बनाये गये हैं- ये और बात है कि इस तरह श्रीमती जी लाफ्ट पर लदी मेरी किताबों का बोझ हल्का करने का एक और असफल प्रयास कर रही है, क्योंकि जल्दी ही मेरी नई किताब छपकर आने को है। क्या गेम करवाया जावे इस पर बच्चों से, सहेलियों से, बहनों से मोबाईल पर, लम्बे-लम्बे डिस्कशंस हो रहे हैं- मोबाईल पर कर्टसी काल करके वैयक्तिक आमंत्रण भी श्रीमती जी अपने क्लब मेम्बरस् को दे रही है। श्रीमती जी की सक्रियता से प्रभावित होकर लोग उन्हें क्लब सेक्रेटरी बनाना चाह रहे हैं। मैं चितिंत मुद्रा में श्रीमती जी की प्रगति का मूक प्रशंसक बना बैठा हूँ। उन्हें चाहकर भी रोक नहीं सकता क्योंकि क्लब से लौटकर जब चहकते हुये, वे वहाँ के किस्से सुनाती है, तो उनकी उत्फुल्लता देखकर मैं भी किटी पार्टी में रंग जमाने वाली संदर, सुशील, सुगढ़ पत्नी पाने हेतु स्वयं पर गर्व करने का भ्रम पाल लेता हूं। अब कुछ प्रस्ताव किटी पार्टी को आर्थिक लाभों से जोड़ने के भी चल रहे हैं, जिनमें बीसी के साथ ही, नेटवर्क मार्केटिंग, सहकारी खरीद, पारिवारिक पिकनिक वगैरह के हैं। आर्थिक सामंजस्य बिठाते हुये, श्रीमती जी की प्रसन्नता के लिये उनकी पार्टी में हमारा पारिवारिक सहयोग बदस्तूर जारी है। क्योंकि परिवार की प्रसन्नता के लिये पत्नी की प्रसन्नता सर्वोपरि है।
© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव
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