हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा # 31 ☆ व्यंग्य संग्रह – डांस इण्डिया डांस – श्री  जय प्रकाश पाण्डेय ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है  श्री  जय प्रकाश पाण्डेय जी  के  व्यंग्य -संग्रह  “ डांस इंडिया डांस” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा । )

पुस्तक चर्चा के सम्बन्ध में श्री विवेक रंजन जी की विशेष टिपण्णी :- पठनीयता के अभाव के इस समय मे किताबें बहुत कम संख्या में छप रही हैं, जो छपती भी हैं वो महज विज़िटिंग कार्ड सी बंटती हैं ।  गम्भीर चर्चा नही होती है  । मैं पिछले 2 बरसो से हर हफ्ते अपनी पढ़ी किताब का कंटेंट, परिचय  लिखता हूं, उद्देश यही की किताब की जानकारी अधिकाधिक पाठकों तक पहुंचे जिससे जिस पाठक को रुचि हो उसकी पूरी पुस्तक पढ़ने की उत्सुकता जगे। यह चर्चा मेकलदूत अखबार, ई अभिव्यक्ति व अन्य जगह छपती भी है । जिन लेखकों को रुचि हो वे अपनी किताब मुझे भेज सकते हैं।   – विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘ विनम्र’

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 31 ☆ 

☆ पुस्तक चर्चा – व्यंग्य-संग्रह   – डांस इण्डिया डांस

पुस्तक – डांस इण्डिया डांस ( व्यंग्य-संग्रह) 

लेखक – श्री जय प्रकाश पाण्डेय

प्रकाशक – रवीना प्रकाशन, नई दिल्ली

मूल्य – रु 250/-

अमेज़न लिंक पर ऑनलाइन उपलब्ध  >>  डांस इण्डिया डांस ( व्यंग्य-संग्रह)

 

 ☆  व्यंग्य – संग्रह   –  डांस इण्डिया डांस – श्री  जय प्रकाश पाण्डेय  –  चर्चाकार…विवेक रंजन श्रीवास्तव

आशीर्वचन स्वरुप पुस्तक की प्रस्तावना सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ कुंदन सिंह परिहार जी द्वारा लिखी गई है,  जिसे आप निम्न लिंक पर पढ़ सकते हैं।

पुस्तक चर्चा ☆ डांस इंडिया डांस – श्री जय प्रकाश पांडेय ☆ “व्यंग्य-लेखन गंभीर कर्म है” – डॉ कुंदन सिंह परिहार

जय प्रकाश पाण्डेय जी व्यंग्यकार के साथ ही कहानीकार भी हैं. प्रायः कहानीकार किसी  पात्र का सहारा लेकर कथा बुनता है । प्रेमचंद का होरी प्रसिद्ध है । अमिताभ बच्चन अनेक बार विजय बने हैं । स्वयं मैं रामभरोसे को केंद्र में रख कई व्यंग्य लिखता हूँ । इसी तरह  श्री पाण्डेय जी का प्रिय पात्र गंगू है ।

उनका पाठक गंगू के साथ ग्रामीण परिवेश से कस्बाई और वर्तमान वैश्विक भिन्नता में व्यंग्य के संग मजे लेता जाता है।

उनका व्यंग्य झिंझोड़ता है, तंज करता है  पाठक को सोचने पर विवश करता है ।

जबलपुर परसाई की नगरी है ।

पाण्डेय जी को परसाई जी का सानिध्य भी मिला है जो उनके व्यंग्य में दिखता भी है ।

वे व्यंग्यम के प्रारंभिक सदस्यों में हैं, सामाजिक कार्यो में संलिप्त रहते हैं।  बैंक में काम करते हुए उन्हें खूब एक्सपोजर मिला है यह सब इस पुस्तक के व्यंग्य बताते हैं ।

नए समय मे हर हाथ में मोबाईल होने से फोटो कला में पारंगत श्री पाण्डेय जी ने कवर फ़ोटो स्वयं खींच कर, एकदम सम्यक टाइटिल किताब को दिया है ।

मुझे ज्ञात है रवीना प्रकाशन ने फटाफट पुस्तक मेले के पहले यह किताब छापी हैं  किन्तु, पुस्तक स्तरीय है ।

सभी लेख वैचारिक हैं । जुगलबंदी के चलते कई व्यंग्य लिखने को प्रेरित हुए श्री पाण्डेय जी ने हमारे बारम्बारआग्रह को स्वीकार कर इन लेखों को पुस्तक रुप दिया है । पढिये , प्रतिक्रिया दीजिये इसी में व्यंग्यकार व साहित्य की सफलता है ।

 

चर्चाकार .. विवेक रंजन श्रीवास्तव

ए १, शिला कुंज, नयागांव, जबलपुर ४८२००८

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 43 ☆ मावृत्वाचा पदर ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक भावप्रवण कविता  “मावृत्वाचा पदर।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 43 ☆

☆ मावृत्वाचा पदर ☆

मी नाही देऊ शकत

तुझ्या मातृत्वाच्या पदराला

सागर किंवा आकाशाचं परिमाण…

 

अमृताहू मधुर अशा मातेच्या दुधावर वाढलेला जीव

अमृतासारख्या भ्रामक कल्पनेला

कसा देऊ शकेल थारा…

 

ॐकाराचा ध्वनी, चित्त शांत करीत असला तरी

माझ्या मातेच्या मुखातून निघालेले ध्वनी

मला आजही उर्जा देऊन पुलकीत करतात…

 

सूर्याचा प्रखर प्रकाश सौम्य करण्यासाठी

ती होते चंद्र

आणि

लेकराच्या आयुष्याचं करून टाकते तारांगण…

 

तारांगणाला बांधलेल्या पाळण्याची दोरी

तिच्या हातात असते म्हणून

चंदनाच्या पाळण्यातलं आणि

झोळीतलं बाळही तेवढ्याच निर्धास्तपणे झोपतं

गरीब श्रीमंतीचा भेदभाव विसरून…

 

जगातली कुठलीच माता गरीब नसते

मातृहृदयाच्या तिजोरीत

न मावणारी श्रीमंती

तिच्या प्रत्येक कृतीतून दिसत असते.

 

म्हणूनच  मातृत्वाच्या पदराला

मी नाही देऊ शकत

सागर किंवा आकाशाचं परिमाण…

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 40 – लघुकथा – मुआवजा ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत हैं उनकी एक समसामयिक लघुकथा  “मुआवजा।  श्रीमती सिद्धेश्वरी जी की यह  सर्वोत्कृष्ट लघुकथा है जो अत्यंत कम शब्दों में वह सब कह देती है जिसके लिए कई पंक्तियाँ लिखी जा सकती थीं।  मात्र चार पंक्तियों में प्रत्येक पात्र का चरित्र और चित्र अपने आप ही मस्तिष्क में उभर  आता है। इस सर्वोत्कृष्ट समसामयिक लघुकथा के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई।

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 40☆

☆ लघुकथा  – मुआवजा

कोरोना से गांव में बुधनी की मौत।

अस्सी साल की बुधनी बेटा बहू के साथ टपरे पर रहती थी। गरीबी की मार और उस पर कोरोना का द्वंद। बुधनी अभी दो-तीन दिन से उल्टा पुल्टा चीज खाने को मांग रही थी और रह-रहकर खट्टी दही अचार खा रही थी।  उसे सांस लेने में तकलीफ की बीमारी थी। बेटे ने मना किया पर मान ही नहीं रही थी। अचानक बहुत तबीयत खराब हो गई सांस लेने में तकलीफ और खांसी बुखार । बेटा समझ नहीं पाया अम्मा को क्या हो गया बुधनी अस्पताल पहुंचकर शांत हो गई।  कोरोना से मरने वालों के परिवार को मुआवजा मिलता है। बुधनी ने  पडोस में बातें करते सुन लिया था। शांत होकर भी बुधनी मुस्करा रही थी। अब बेटे के टपरे घर पर खपरैल लग जायेगा।

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ कर्म से कोरोना ☆ श्री कुमार जितेन्द्र

श्री कुमार जितेन्द्र

 

(युवा साहित्यकार श्री कुमार जितेंद्र जी  कवि, लेखक, विश्लेषक एवं वरिष्ठ अध्यापक (गणित) हैं। आज प्रस्तुत है उनकी एक समसामयिक रचना। )

☆ कर्म से कोरोना ☆

 

हे! मानव,

कैसा कर्म कर लिया तुमने,

कोरोना को जन्म देकर ।

त्राहिम- त्राहिम मचाया तुमने,

कोरोना को फैलाकर ।।

 

हे! मानव,

प्रकृति को भूल कर,

तोड़ी तुमने मर्यादा ।

मार पड़ी जब प्रकृति की,

तो हो गया हक्का – बक्का ।।

 

हे! मानव,

तुम हल्के में नहीं लेवे,

कोरोना की महामारी को ।

इटली और चाइना की तबाही,

देख रोके नहीं रुकती ।।

 

हे! मानव,

कैसा कर्म कर लिया तुमने,

कोरोना को जन्म देकर ।

त्राहिम- त्राहिम मचाया तुमने,

कोरोना को फैलाकर ।।

 

हे! मानव,

बच्चे, बूढ़े और बेघर का,

तुम्हें रखना है ख्याल ।

सभी रहें अपने घर,

कोरोना का हैं ईलाज ।।

 

हे! मानव,

नहीं होवे जनहानि,

कोरोना महामारी से ।

अफवाहों को न फैलाएं,

अफवाहें हैं बड़ा वायरस ।।

 

हे! मानव,

कैसा कर्म कर लिया तुमने,

कोरोना को जन्म देकर।l

त्राहिम- त्राहिम मचाया तुमने,

कोरोना को फैलाकर ।।

 

हे! मानव,

संबंधो में थी दूरिया,

पहले से ही गहरी ।

कोरोना के वायरस से,

गहरी हो गई और दूरिया ।।

 

हे! मानव,

स्वच्छता और एकांतपन है,

कोरोना का बचाव ।

समय नहीं है घबराने का,

सतर्कता का दे सुझाव ।।

 

हे! मानव,

कैसा कर्म कर लिया तुमने,

कोरोना को जन्म देकर ।

त्राहिम- त्राहिम मचाया तुमने,

कोरोना को फैलाकर ।।

 

✍?कुमार जितेन्द्र

साईं निवास – मोकलसर, तहसील – सिवाना, जिला – बाड़मेर (राजस्थान)

मोबाइल न. 9784853785

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #27 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के ह्रदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे # 27 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

यही धर्म का नियम है, यही धर्म की रीत ।

धारे ही निर्मल बने, पावन बने पुनीत ।।

 आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

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Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – एकादश अध्याय (19) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(अर्जुन द्वारा भगवान के विश्वरूप का देखा जाना और उनकी स्तुति करना )

 

अनादिमध्यान्तमनन्तवीर्यमनन्तबाहुं शशिसूर्यनेत्रम् ।

पश्यामि त्वां दीप्तहुताशवक्त्रंस्वतेजसा विश्वमिदं तपन्तम् ।। 19।।

आदि मध्य औ” अन्त से ,रहित अमित विस्तार

जिसका बल अनुमेय न  , जिसके हाथ हजार

चंद्र – सूर्य हैं आँख दो , मुख ज्वाला- अंगार

जिसके दीप्त प्रकाश से भासित यह संसार ।। 19।।

भावार्थ :  आपको आदि, अंत और मध्य से रहित, अनन्त सामर्थ्य से युक्त, अनन्त भुजावाले, चन्द्र-सूर्य रूप नेत्रों वाले, प्रज्वलित अग्निरूप मुखवाले और अपने तेज से इस जगत को संतृप्त करते हुए देखता हूँ।। 19।।

 

I see Thee without beginning, middle or end, infinite in power, of endless arms, the sun and the moon being Thy eyes, the burning fire Thy mouth, heating the entire universe with Thy radiance.

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – कोरोना वायरस और हम- 2 ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – कोरोना वायरस और हम- 2☆

1) वुहान.., मानो शब्द ही संक्रमित हो चला है। कोई उच्चारण भी नहीं करना चाहता। चीन के हुबेई प्रांत की राजधानी इस शहर से शुरू हुआ कोरोनावायरस और कोविड-19 का कहर। इसी शहर में फँसे हैं कुछ भारतीय नागरिक, विशेषकर छात्र। भारत सरकार लेती है एक दायित्वपूर्ण और साहसिक निर्णय। एयर इंडिया के पायलट, को-पायलट, क्रू ने बांधा मास्क, आवश्यक दवाइयाँ लिए साथ चली डॉक्टरों की टीम। ग्रामीण मेले में ‘मौत का कुआँ’ खेल दिखाया जाता है। ज़रा-सा संतुलन बिगड़ा कि मौत ने निगला। मौत के कुएँ में उतरा विमान, भारतीयों को साथ लिया और अपने देश के लिए भारी उड़ान।

2) इटली हो, ईरान, फिलीपींस, स्पेन या दुनिया का कोई भी देश, कर्तव्य, राष्ट्रनिष्ठा और साहस की यह गाथा हर जगह लागू है। देश या देश से बाहर, हमारा एक भी नागरिक संकट में है तो हमारी सरकार उसे उबारने के लिए तत्पर खड़ी है।

3) सरकारी अस्पतालों में भीड़ है। डॉक्टर, नर्सिंग स्टाफ, सफाई कर्मचारी, कपड़े धोने वाला सब अपनी ड्यूटी पर हैं। अपने प्राण की चिंता न कर हरेक मुस्तैदी से डटा है मरीज़ों की सुश्रुषा में।

4) कोविड-19 का संक्रमण बढ़ रहा है। सरकार ने शहरों को सैनिटाइज़ करने का निर्णय किया है। सफाई कर्मचारी अपने कर्तव्य का निर्वाह करते हुए शहर का कोना-कोना सैनिटाइज कर रहे हैं।

5) रेल चल रही है, ड्राइवर अपनी ड्यूटी पर है। बस चल रही है, कंडक्टर और ड्राइवर ऑनड्यूटी हैं।

6) इस वैश्विक संकट का विश्व की अर्थव्यवस्था पर दुष्परिणाम होगा। लेकिन बैंक बंद कर दिए तो व्यवस्था चरमरा जाएगी। अत: समर्पण से अपना काम कर रहे हैं, बैंककर्मी।

7) भय, अफवाहों को जन्म देता है। ऐसी स्थिति में अपने प्राणों को संकट में डाल कर यथासंभव ऑनग्राउंड रिपोर्टिंग कर रहे हैं प्रसार माध्यमों के कर्मी।

8) मनुष्य ‘सोशल एनिमल’ है। हम ‘फिजिकल डिस्टेंसिंग मोड’ पर हैं लेकिन सोशल मीडिया ने हमें सोशल बनाए रखा है। इंटरनेट और टेलीफोन विभाग के कर्मी चौबीस घंटे मुस्तैद हैं।

9) व्यापार का लाभ नहीं दायित्व का बोध है जो मेडिकल स्टोर्स,पंसारी, फल, सब्जी, दूध की दुकान, पेट्रोल, सीएनजी, डीजल के पम्प पर मालिक और कर्मचारी को निरंतर कार्यरत रखे हुए है।

10) ‘होम क्वारंटीन’, ‘आइसोलेशन’, ‘वर्क फ्रॉम होम’ अनेक विकल्पों का भार एक साथ ढो रही है महिलाएँ। परिवार के छोटे-बड़े हर एक के लिए दिन-रात जुटी है महिलाएँ।

11) ये कुछ उदाहरण भर हैं। अनेक ऐसे क्षेत्र हैं जिनके कर्मियों के बल पर देश चल रहा है और हम सबका अस्तित्व टिका है। इन सब के साथ खड़ी दिखती है भारत सरकार और राज्य सरकारों की सक्रियता, केंद्रीय स्वास्थ्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्रालय की चेतना।

महाभारत में योगेश्वर श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपना विराट रूप दिखाया था। असंख्य राष्ट्रसेवकों के रूप में योगेश्वर, कलयुग के इस महाभारत में साक्षात दृष्टिगोचर हो रहे हैं।

आज शाम 5:00 बजे अपने घर की बालकनी में आकर थाली, ताली, घंटानाद, शंखनाद से इस विराट रूप को नमन अवश्य कीजिएगा। साथ ही नमन कीजिएगा उस विलक्षण सेनापति को भी जिसके नेतृत्व में देश कोरोना से अभूतपूर्व युद्ध लड़ रहा है।….जय हिंद!

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

22.3 2020, 13.21 बजे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 39 ☆ – विश्व कविता दिवस विशेष – जीवन प्रवाह ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  अगली कड़ी में   wishw कविता दिवस पर उनकी विशेष कविता   जीवन प्रवाह । आप प्रत्येक सोमवार उनके  साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।) 

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 39

☆  विश्व कविता दिवस विशेष  – जीवन -प्रवाह  ☆ 

(विश्व कविता दिवस पर जीवन की कविता – – – )
सबसे बड़ी होती है आग,

     और सबसे बड़ा होता है पानी।

तुम आग पानी से बच गए,

     तो तुम्हारे काम की चीज़ है धरती ।

धरती से पहचान कर लोग ,

तो हवा भी मिल सकती है ,

धरती के आंचल से लिपट लोगे

तो रोशनी में पहचान बन सकती है ,

तुम चाहो तो धरती की गोद में ,

       पांव फैलाकर सो भी सकते हो ,

धरती को नाखूनों से खोदकर ,

        अमूल्य रत्नों  को भी पा सकते हो ,

या धरती में खड़े होकर ,

        अथाह समुद्र नाप भी सकते हो ,

तुम मन भर जी भी सकते हो ,

         धरती पकडे यूं मर भी सकतेहो ,

कोई फर्क नहीं पड़ता ,

          यदि जीवन खतम होने लगे ,

असली बात तो ये है कि ,

धरती पर जीवन प्रवाह चलता रहे

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ कोरोना -केवल वायरस नहीं है! ☆ श्रीमती तृप्ति रक्षा

श्रीमती तृप्ति रक्षा  

(श्रीमती तृप्ति रक्षा जी  शिक्षिका हैं एवं  आपकी वेब पोर्टल पर कवितायेँ प्रकाशित होती रहती हैं। संगीत, पुस्तकें पढ़ना एवं सामाजिक कार्यों में विशेष अभिरुचि है।  विचार- स्त्री हूँ स्त्री के साथ खड़ी हूँ।  आज  प्रस्तुत है  आपकी एक समसामयिक कविता  “कोरोना -केवल वायरस नहीं है!” )

☆ कोरोना -केवल वायरस नहीं है! 

 कोरोना -केवल वायरस  नहीं है,
यह प्रकोप है
परमात्मा का ,
जिसे हमने खाद और पानी दियाहै
अपने अपराधों और
कुकृत्यों को बढ़ाकर ।
यह संतुलन है
हमारी प्रकृति का
जिसे हमने तार-तार किया है
धरती और पहाड़ों को बेधकर।
यह सूचक है
हमारी महत्त्वकांक्षा का,
जिसे हमने विकसित किया है
जैविक हथियारों के रूप में
मौत का सामान बनाकर।
यह आह्वान है
हमारी संस्कृति का
जिसे हम भूलने लगे  है,
और आगे बढ़ चले हैं
सब कुछ पीछे छोड़ कर।
यह अनुभूति है
उस दर्द का
जिसे हम महसूस कर सकते हैं,
आपस में  दूरी बढ़ाकर
या एक दूसरे को खोकर।
यह लड़ाई है
हम सबकी
आइए मिलकर लड़े,
मानवता के लिए
सारी कटुता भुलाकर।

© तृप्ति रक्षा

सिवान, बिहार

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ कोरोना कैसे होगा, कोई समझाए? ☆ श्री विनीत खरपाटे 

श्री विनीत खरपाटे 

( श्री  विनीत  खरपाटे जी का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। आप ऐरोली नवी मुंबई में व्यवसायी हैं। विगत 30 वर्षों से समय समय पर स्वान्तः सुखाय कविता व लेख लिख कर संग्रहित करते हैं । अब तक चार हजार से अधिक रचनाएँ संग्रहित हैं । स्थानीय सामाजिक कार्यों में सक्रिय सहभागिता।  कभी प्रकाशित नहीं किया। यह आपकी प्रथम प्रकाशित रचना है। इसके लिए श्री विनीत जी को बधाई एवं शुभकामनाएं। आज प्रस्तुत है उनकी एक  समसामयिक  कविता  कोरोना कैसे होगा, कोई समझाए?)

☆ कोरोना कैसे होगा कोई समझाए ?

कुछ ना होगा जानू मैं यह

कैसे होगा कोई समझाए?

यह करोना तो फैलेगा

जो विदेश में रहता है।।

व्यक्ति से व्यक्ति तक पहुंचे

मीटर से ज्यादा ना कूदे

हवा से तो यह ना फैले

12 घंटे से ज्यादा जिए

28 डिग्री के बाद न जिए

 

कुछ ना होगा जानू मैं यह

कैसे होगा कोई समझाए ?

यह करोना तो फैलेगा

जो विदेश में रहता है

हां जीव समुंदर का खाएं तो

करोना हो सकता है

जो विदेश से घर को आए

उनसे भी ये हो सकता है

बस करना है चौकीदारी

मांस किसी का भी ना खाएं

जो विदेशों से घर को आए

इलाज कर ही घर पहुंचाएं।।

 

© विनीत खरपाटे

ऐरोली, नवी मुम्बई।

मोबाईल  9371319798.

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