हिन्दी साहित्य – कविता – ☆ साहित्यिक सम्मान की सनक ☆ – श्री मनीष तिवारी

श्री मनीष तिवारी 

☆ साहित्यिक सम्मान की सनक ☆

(प्रस्तुत है संस्कारधानी जबलपुर ही नहीं ,अपितु राष्ट्रीय ख्यातिलब्ध साहित्यकार -कवि  श्री मनीष तिवारी जी  की यह कविता  जो आईना दिखाती है उन समस्त  तथाकथित साहित्यकारों को जो साहित्यिक सम्मान की सनक से पीड़ित हैं ।  यह उन साहित्यिकारों पर कटाक्ष है जो सम्मान की सनक में किसी भी स्तर तक जा सकते हैं।  संपर्क, खेमें,  पैसे और अन्य कई तरीकों से प्राप्त सम्मान को कदापि सम्मान की श्रेणी में रखा ही नहीं जा सकता।

साथ ही मुझे डॉ. राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’ जी के पत्र  की  निम्न  पंक्तियाँ  याद आती हैं  जो उन्होने  मुझे आज से  37  वर्ष पूर्व  लिखा था  – 

“एक बात और – आलोचना प्रत्यालोचना के लिए न तो ठहरो, न उसकी परवाह करो। जो करना है करो, मूल्य है, मूल्यांकन होगा। हमें परमहंस भी नहीं होना चाहिए कि हमें यश से क्या सरोकार।  हाँ उसके पीछे भागना नहीं है, बस।”)    

 

सच कह रहा हूँ भाईजान

मेरी उम्र को मत देखिए

न ही बेनूर शक्ल की हंसी उड़ाइए

आईये

मैं आपको बतलाऊँ

मेरी साहित्यिक सनक को देखिए

सम्मान के कीर्तिमान गढ़ रही है,

जिसे साहित्य समझ में नहीं आता

मेरे साहित्य को पढ़ रही है।

 

सनक एकदम नयी नयी है

नया नया लेखन है

नया नया जोश है,

मैं क्या लिख रहा हूँ

इसका मुझे पूरा पूरा होश है।

 

सब माई की कृपा है

कलम घिसते बनने लगी

कितनी घिसना है

कहाँ घिसना है

कैसी घिसना है

ये तो मुझे नहीं मालूम

पर घिसना है तो घिस रहे हैं।

 

हमने कहा- भाईजान जरूर घिसिये

पर इतना ध्यान रखिये

आपके घिसने से कई

समझदार साहित्यकार पिस रहे हैं।

वे अकड़कर बोले,

मेरा हाथ पकड़कर बोले-

आप बड़े कवि हैं

हम पर व्यंग्य कर रहे हैं

अत्याचार कर रहे हैं

आपको नहीं मालूम

पूरी दुनिया के पाठक

मेरी साहित्यिक सनक की

जय जयकार कर रहे हैं।

 

मेरा अभिनंदन कर रहे हैं

मैं उन्हें बाकायदा धनराशि देता हूँ

पर वे लेने से डर रहे हैं।

जबकि मैं जानता हूँ

मेरे जैसे लोगो का

अभिनन्दन करने वाले

अपना घर भर रहे हैं।

 

हमारी रचनाएं अनेक देशों में

साहित्यिक रक्त पिपासुओं द्वारा

भरपूर सराही जा रही हैं।

घनघोर वाहवाही पा रही हैं।

 

हमने कहा- भाईसाब

मेरा ये ख्याल है

इसी सनकी प्रतिभा का तो हमें मलाल है।

जो कविता हमें और

हमारे साहित्यिक कुनबे को

समझ में नहीं आ रही है

आपकी सर्जना को

सिरफिरी दुनिया सिर पर उठा रही है।

 

आखिर आप क्यों?

हिंदी साहित्य में स्वाइन फ्लू फैला रहे हैं,

और अफसोस

उस बीमारी को समझकर भी

लोग तालियां बजा रहे हैं।

 

आप क्या समझते हैं

आपके तथाकथित सृजन और पठन से

श्रोता जाग रहे हैं,

आपको पता ही नहीं आपका नाम सुनते ही

श्रोता दहशत में हैं और भाग रहे हैं।

आयोजकों के पीछे डंडा लेकर पड़े हैं,

हाल खाली है और दरवाजे पर ताले जड़े हैं।

 

लगता है विदेशियों ने

साहित्यिक षड्यंत्र रचा दिया है

जैसे पूरी दुनिया ने

भारतीय बाजार पर कब्ज़ा कर

कोहराम मचा दिया है।

 

ये लाईलाज बीमारी है

आपके अनर्गल प्रलाप को सम्मानित कर भारत के

गीत, ग़ज़ल, व्यंग्य, कथा, कहानी और

नाटक को कुचलने की तैयारी है।

 

आप अपने सम्मान पर गर्वित हैं, ऐंठे हैं

आपको पता नहीं

आप एक बारूद के ढेर पर बैठे हैं।

आपको पता नहीं चल रहा कि

आपकी दशा है या दुर्दशा है

आपको सम्मान का अफीमची नशा है।

 

आपको पता ही नहीं कि

आपके सम्मान के रंग में

कितनी मिली भंग है,

सच कहूं आपकी सृजनशीलता

पूरी तरह से नंग धड़ंग है।

 

मर्यादा का कलेवर आपके

तथाकथित अभिमान को ढक नहीं सकता

और, मेरे मना करने पर भी

आपका इस तरह लेखन रूक नहीं सकता।

 

आप अपनी वैचारिक विकलांगता

साहित्यिक विकलांगों के बीच में ही रहने दो

आप अपनी कीर्ती के कमल

गंदगी के कीच में ही रहने दो।

 

आपने हिंदी साहित्य का गला घोंटने

अपना जीवन अर्पित कर दिया,

परिणामस्वरूप स्वम्भू साहित्यकारों ने

आपको सम्मानित किया और चर्चित कर दिया।

आपके सम्मान से साहित्य के सम्रद्धि कलश भर नहीं सकते

और सायनाइट में भी डुबोने पर भी

आपके अंदर हलचल मचा रहे

साहित्यिक कीटाणु मर नहीं सकते।

 

आपकी गलतफहमी है

इक्कसवीं सदी के प्रारंभिक दशकों के

साहित्यिक सांस्कृतिक अवदान में

आपका भी नाम लिखा जाएगा

ध्यान रखना

वास्तविक साहित्यिक समालोचक

आपको आईना दिखा जाएगा।

 

आप आत्ममुग्ध हो

अपने सम्मान से स्वयं अविभूत हो

आप सोचते हो कि

अनन्तकाल तक जीते रहोगे

भूत नहीं बन सकते,

प्रेमचंद, परसाई, नीरज, महादेवी, दुष्यंत और

जयशंकर प्रसाद के वंशज

आपके तथाकथित साहित्य को

अलाव में भी फेंक दें पर

आप भभूत नहीं बन सकते।

 

मैंने पढ़ा है-

दूषित धन की कभी शुद्धि नहीं हो सकती

ऐसे ही

दूषित विचारों के रचनाकार की

शुद्ध बुद्धि नहीं हो सकती।

आपकी इस तरह की सृजनशीलता से

राष्ट्र की वैचारिक अभिवृद्धि नहीं हो सकती।

 

आपका पेन सामाजिक, सांस्कृतिक,

कुरीतियों, कुप्रथाओं पर

अमोघ बाण नहीं हो सकता

आप जैसे सनकियों से

राष्ट्र का कल्याण नहीं हो सकता।

 

हे ! माँ सरस्वती

या तो इनकी कलम को

शुभ साहित्य से भर दीजिये

या इन्हें तथाकथित साहित्यिक सम्मान की

सनक से मुक्त कर दीजिए।

 

©  पंडित मनीष तिवारी, जबलपुर

 

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हिन्दी साहित्य – व्यंग्य – ☆ हेलो व्हाट्सएप ☆ – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव “विनम्र”

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव “विनम्र”

☆ हेलो व्हाट्सएप ☆

 

(प्रस्तुत है श्री विवेक  रंजन  श्रीवास्तव जी  का  सटीक एवं सार्थक व्यंग्य।  हमारी और हमारी वरिष्ठ पीढ़ी ने पत्र ,टेलीग्राम और टेलीफ़ोन से कैसे दिन गुजारे होंगे इसका एहसास, कष्ट और मजा नई पीढ़ी को क्या मालूम। उन्होने तो ऑर्कुट  या इससे मिले जुले डिजिटल सोशल मीडिया मंच से लेकर व्हाट्सएप तक की ही यात्रा तय की है। अभी भी हमारी वरिष्ठ पीढ़ी इन डिजिटल सोशल मीडिया मंचों से सहज नहीं है। जिन्होने स्वयं को अपडेट नहीं किया है इसका कष्ट वे ही जानते हैं।)

 

स्टेटस सिंबल के चक्कर में लांच के साथ ही लेटेस्ट माडेल महंगी कीमत पर स्मार्ट फोन खरीदा गया है. पत्नी से मोबाईल खरीदी का बजट स्वीकृत करवाने में उनका  तर्क बहुत वजनदार था,  “महिलाओ के पास तो ज्वेलरी, कभी जभी ही पहने जाने वाली साड़ियां, इंटरनेशनल ब्रांड के बैग और परफ्यूम, लाइटवेट ब्रांडेड फुटवियर और तो और किसी और को न दिखने वाले इनर वियर हर कुछ कीमती होता है” जबकि बेचारे पुरुष के पास स्टेटस सिंबल के नाम पर एक मोबाईल ही तो होता है. श्रीमती जी ने तर्क दिया कि  कहने को तो आप १० पैसे मिनट टाक वैल्यू का प्लान रिचार्ज करते हैं पर आपकी बातें १० रु मिनट से कम की नही पड़ती. उन्होने  चौंकते हुये पूछा आखिर कैसे ? प्लान तो दस पैसे मिनिट वाला ही है. पत्नी ने जबाब दिया,  आप किसी से भी मेरी तरह लम्बी बातें नहीं करते इसलिये आपकी मोबाईल का टोटल यूज टाइम बहुत कम है, मुश्किल से साल भर में या तो मोबाईल गुमा देते हैं या मोबाईल टूट जाता है या  फिर माडल बदल लेते हैं, तो मोबाईल की मंहगी कीमत में जितनी देर बातें हुई उससे तुलना करें तो आप की प्रति  मिनिट बातचीत दस रु मिनिट से ज्यादा  ही पड़ेगी. पत्नी के जबाब में दम था . फिर भी पत्नी ने थोड़ा तरस खाते और थोड़ा प्यार जताते हुये, मंहगा लेटेस्ट एप्पल लांच के साथ ही दिलवा ही दिया था. भले ही वे वन एप्पल ए डे न खाते हो पर अपना न्यू लेटेस्ट माडेल का एप्पल मोबाईल सदैव हाथो में गर्व से थामे रहते हैं, सारे दिन दो पांच मिनिट के अंतर से  उस पर दृष्टि बनाये रखते हैं, प्ले स्टोर से डाउनलोडेड अनेकानेक एप्स पर निरंतर सर्फिंग करते रहते हैं.

युग व्हाट्सअप का है. वे सोकर उठते ही वे पाखाना जाने से पहले व्हाट्सअप मैसेजेज चैक करते हैं. हाजमा ठीक रहा और हाजत तेज हुई तो मोबाईल सहित स्वच्छ कमोट पर भीतरी तन से फिजकली  आउटगोईंग  और मस्तिष्क में व्हाट्सएप से वर्चुएल वैचारिक  इनकमिंग साथ साथ जारी रहती है. आखिर इतने मंहगे  मोबाईल और घोटाला मुक्त सस्ती दरो पर सुलभ फोर जी स्पीड का क्या फायदा यदि समय पर दूर बैठे आत्मीय जनो को सचलितचित्र गुड मार्निग ही नही की . ये और बात है कि छै बाई छै के सुकोमल बैड पर बाजू में ही पसरी सात जनमो की साथिन की ओर मुस्कान भरी निगाहें तक डालने का ध्यान इस व्हाट्सअप अपडेट के चक्कर में नही जाता. वैसे भी  अब कौन सी नई नवेली शादी है. एप्पल का मोबाईल जरूर बीबी से बहुत नया है.

व्हाट्सएप उन्हें मोबाईल मय बनाये रखने में सर्वाधिक मदद करता है. हर थोड़े अंतराल पर व्हाट्स अप नोटिफिकेशन उनके वैश्विक संबंधो की पुष्टि करता है. कहीं गलती से कुछ घंटे वे मोबाईल न देख पायें तो विभिन्न ग्रुप्स से प्राप्त पेंडिग मैसेजेज की गिनती हजारो में पहुंच जाती है. वो तो भला हो मैसेजेज का कि वे वर्चुएल होते हैं, वरना होली, दीवाली, ईद, न्यूईयर जैसे  मौको पर तो व्हाट्सएप मैसेजेज से मोबाईल ऐसा भर जाता है कि यदि ये मैसेज वर्चुएल न होते तो शायद उन्हें संभालना मुश्किल हो जाता. दरअसल ये मैसेज अनेकता में एकता के राष्ट्रीय चरित्र के परिचायक होते हैं.  गणतंत्र दिवस और स्वाधीनता दिवस का अंतर भले ही पता न हो पर इन राष्ट्रीय त्यौहारो पर भी बड़े प्रेम से हर मोबाईल धारक अपनी डी पी बदलने से लेकर हर कांटेक्ट को मैसेज करना नही भूलता. स्कूल के, कालेज के, साहित्य के, कार्यालय के, शहर के स्वजातीय बंधुओ के  ग्रुप्स ने कनेक्टिविटी ऐसी बढ़ा दी है कि पास के लोग दूर और दूर के लोग पास हो गये हैं. ससुराल के ग्रुप, परिवार के ग्रुप और बच्चों के ग्रुप की नोटीफिकेशन टोन ही उन्होने बिल्कुल अलग रख ली है, जिससे वे सदैव सबके निकट  बने रहें.

यदि व्हाट्सअप को मालूम हो जावे कि उनका कार्यालय ही व्हाट्सअप पर चल रहा है तो निश्चित ही इसके एवज में व्हाट्सअप कुछ रायल्टी क्लेम कर सकता है. आजकल आफिस में मीटिंग की सूचना से लेकर फोटो सहित कम्पलाइंस रिपोर्ट व्हाट्सअप पर ही ली दी जा रही हैं. इधर मैसेज में दो नीली टिक हुई नहीं कि दूसरे छोर से अपेक्षा की जाती है कि साइट से फोटो सहित रिपोर्ट आ जावे. ग्रुप में परिपत्र डालकर यह मान लिया जाता है कि सभी को सूचना मिल चुकी है. वे जमाने यादें बनकर रह गये हैं, जब डाकिया लिफाफा लाता था, रिसीप्ट क्लर्क शाम को सारी डाक खोलकर तरीके से सील ठप्पे लगाकर डाक पैड में बांधकर करीने से टेबिल के कोने में रखा करता था, फिर हम इत्मिनान से एक एक पत्र पढ़ते और उसके मार्जिन में सबार्डिनेट्स को इंस्ट्रक्शन्स लिखा करते थे.

पहले  लोग सामूहिक ठहाके लगाते थे, एक जोक सुनाता था सब हंसते थे, अब जमाना व्हाट्सअप युगीन है, मैसेज पढ़कर मैं मंद मंद मुस्करा रहा था, मित्र ने देखा तो कहा मुझे भी फारवर्ड कर दे मैं भी हंसू. तो व्हाट्सअप युग के साक्षी बने रहिये जब तक कोई और इसे धक्का मारने न आ जावे, मौलिकता छोड़िये,  फारवर्ड करिये, डाउनलोड करिये अपलोड करिये बस दिल पर लोड मत लीजिये.

 

© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव  “विनम्र”

ए-1, एमपीईबी कालोनी, शिलाकुंज, रामपुर, जबलपुर, मो ७०००३७५७९८

 

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ Laughter Yoga with Carolyn and Des ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator and Speaker.)

Laughter Yoga with Carolyn and Des

Carolyn Laughalot and Desmond Nicholson, Laughter Yoga Leaders from Eltham Laughter Club, Melbourne, Australia visited Suniket Laughter Club and Laughter Club of State Bank Learning Centre, Indore, India under the exchange  rogramme of Laughter Yoga International Clubs. They also giggled with the school girls of Sarada Ramakrishna School, Indore and laughed with their teachers.

It was an enriching experience for the members of these clubs in Indore as Carolyn and Desmond enthralled them with the Victorian flavour of Laughter Yoga, especially Kangaroo Laughter, Giggle and Wriggle, New Zealand Rugby Hakka Laughter and Donkey Laughter.

Carolyn and Desmond were guests of Dr Madan Kataria, the founder of Laughter Yoga, at Bangalore. They stayed with us at Indore and we had deep discussions till late in the night on the inner spirit of laughter, new laughter exercises and the manner in which we conduct laughter sessions.

While we appreciated their fusion of energy healing and dance with Laughter Yoga, they loved Follow-the-Leader and Singing+Dancing+Playing+Laughing=Joy incorporated in our laughter sessions. While switching between laughter, they used Hoho Hahaha and deep breathing; whereas in our clubs we use Very Good Very Good Yay more often. They loved Cricket Laughter exercise created in our club and Desmond added a piece to it.

I prepared Indian Chai (Tea) for them every morning while my wife Radhika, who is also a Laughter Teacher, cooked Poha (Rice flakes) for them in the Indorean style which they relished. My mother, who is almost 80 years old, usually doesn’t prefer to move out of house, accompanied us for an excursion to nearby Maheshwar and Mandu, which are places of great historical value, as she felt that it would be too long a day without her new found daughter Carolyn. I had long, leisurely strolls with Desmond, who has a great sense of humour, in the evenings and talked about everything from Cricket to Kashmir and Australian grapes to Indian wine.

We would like to express our gratitude to Dr Madan Kataria who arranged this exchange and would like to share that it has been a really great motivating experience for the laughter lovers in this part of the country.

Jagat Singh Bisht

Founder: LifeSkills

Seminars, Workshops & Retreats on Happiness, Laughter Yoga & Positive Psychology.
Speak to us on +91 73899 38255
[email protected]

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मराठी साहित्य – मराठी कविता – ☆ व्रुत्त अनलज्वाला ☆ – सुश्री विजया देव

सुश्री विजया देव

☆ व्रुत्त अनलज्वाला ☆ – 

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार सुश्री विजया देव जी  की एक  भावप्रवण व्रुत्तबध्द  मराठी कविता।)

 

स्पंदने तुझी मला सांगती कथाच सारी

दूरदूर तू तिथे अन आस इथे अंतरी

पंचप्राण हे थकले ,वाहून मनाचे व्याप

तरीही जीव गुंतले ,तुझ्या काळजावरी

कधी न वाटे ल्यावी मी नवनवीन वसने

जीर्णॆ झाले बासनात ते शालु भरजरी

चारी बाजू जलभरला ताे सागर हाेता

परि क्षुधीत मी, हरले फिरले रे माघारी

साैख्यानीही नेहमीच कां निषेध केला?

राेजचेच दुखं तेच राेजच्या जीवनलहरी

ढाळू कां मी आसवे ?रंग मनाचे फिके

भेटण्यास,ये सजणा घे उंच भरारी।

 

©  विजया देव

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – द्वितीय अध्याय (63) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

द्वितीय अध्याय

साँख्य योग

( अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद )

क्रोधाद्‍भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः ।

स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति ।।63।।

क्रोध  नष्ट करता विवेक,उससे खोती याद

याद बिना सदबुद्धि ओै” बुद्धि के बिना विनाश।।63।।

भावार्थ :   क्रोध से अत्यन्त मूढ़ भाव उत्पन्न हो जाता है, मूढ़ भाव से स्मृति में भ्रम हो जाता है, स्मृति में भ्रम हो जाने से बुद्धि अर्थात ज्ञानशक्ति का नाश हो जाता है और बुद्धि का नाश हो जाने से यह पुरुष अपनी स्थिति से गिर जाता है॥63॥

 

From anger comes delusion; from delusion the loss of memory; from loss of memory the destruction of discrimination; from the destruction of discrimination he perishes. ।।63।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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हिन्दी साहित्य- कथा-कहानी – लघुकथा – ☆ उम्मीद ☆ – डॉ कुन्दन सिंह परिहार

डॉ कुन्दन सिंह परिहार

☆ उम्मीद ☆

(प्रस्तुत है  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  की एक विचारोत्तेजक लघुकथा। कहते हैं कि उम्मीद पर दुनिया टिकी है। किन्तु, डॉ कुन्दन सिंह जी नें यह सिद्ध कर दिया है कि उम्मीद पर दुनिया ही नहीं इंसानियत भी टिकी है। लघुकथा की अन्तिम पंक्ति के लिए तो मैं निःशब्द हूँ।  मैं आभारी हूँ डॉ कुन्दन सिंह परिहार जी का जिन्होने अपनी कालजयी लघुकथा उम्मीद को e-abhivyakti के माध्यम से आप तक पहुंचाने का सौभाग्य प्रदान किया।)

महीनों से शहर में हिंसा का नंगा नाच हो रहा था। रोज़ सबेरे सड़क के किनारे दो तीन लाशें पड़ी दिखायी देतीं। पता नहीं यह हत्या वहीं होती थी या लाश दूर से लाकर सड़क के किनारे छोड़ दी जाती थी। लोगों के मन में हर वक्त डर समाया रहता। दूकानें खुलतीं, जन-जीवन भी चलता, लेकिन किसी भी अफवाह पर दूकानें बन्द हो जातीं और लोग घरों में बन्द हो जाते। सब तरफ जले मकानों और मलबे का साम्राज्य था। लोग आत्मसीमित हो गये थे। ज़िन्दगी का हिसाब-किताब एक दिन के लिए ही होता—पता नहीं कल का सबेरा देखने को मिले या नहीं।

लोग धीरे-धीरे तटस्थ और उदासीन हो रहे थे।पहले सड़क के किनारे घायल आदमी या लाश को देखकर भीड़ लग जाती थी। लोग आँखें फैलाकर, गर्दन बढ़ाकर उत्सुकता से देखते। जो ज़्यादा संवेदनशील थे वे उसे देखकर बार-बार सिहरते। बाद में उसके बारे में दूसरों को बताते। वह दुर्घटना उनके लिए दिन भर चर्चा का विषय बनी रहती।

लेकिन हत्याओं की आवृत्ति इतनी बढ़ी कि हिंसा और हत्या के प्रति लोगों की दिलचस्पी कुन्द होने लगी। भीड़ों का आकार क्रमशः कम होने लगा। फिर धीरे-धीरे हाल यह हुआ कि लाशें सड़क के किनारे पड़ी रहतीं और लोग तटस्थ भाव से उनकी बगल से गुज़रते रहते।

स्थिति यह हो गयी कि सामने लाश पड़ी रहती और लोग दूकानों पर चाय पीते रहते या सौदा-सुलुफ लेते रहते। लेकिन इस सहजता के बावजूद सबके चेहरे पर गंभीरता रहती थी। संबंधों में ठंडापन आ गया था। गर्मी और उत्साह ख़त्म हो गये थे। लगता था जैसे सब इंसानियत के मर जाने का मातम कर रहे हों।

फिर एक दिन एक जगह भीड़ दिखायी दी। वहाँ से गुज़रने वाले उत्सुकतावश भीड़ में शामिल होते जा रहे थे, लेकिन भीड़ इतनी घनी थी कि पीछे वालों को आगे का कुछ ठीक-ठीक दिखायी नहीं दे रहा था।

एक आदमी भीड़ से अलग होकर लौटा तो पीछे से देखने का उपक्रम कर रहे एक दूसरे आदमी ने पूछा, ‘क्या हो रहा है?’

लौट रहे आदमी के चेहरे पर पुलक और आँखों में चमक थी। मुस्कराकर बोला, ‘बच्चे गेंद खेल रहे हैं।’

© कुन्दन सिंह परिहार
जबलपुर (म. प्र.)
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ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 31 – हेमन्त बावनकर

ई-अभिव्यक्ति:  संवाद–31               

कई बार विलंब एवं अत्यधिक थकान के कारण आपसे संवाद नहीं  कर पाता। कई बार प्रतिक्रियाएं भी नहीं दे पाता और कभी कभी जब मन नहीं मानता तो अगले संवाद में आपसे जुड़ने का प्रयास करता हूँ।

अब कल की ही बात देखिये । मुझे आपसे कई बातें करनी थी फिर कतिपय कारणों से आपसे संवाद नहीं कर सका। तो विचार किया कि – चलो आज ही संवाद कर लेते हैं।

प्रोफेसर चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी केंद्रीय विद्यालय, जबलपुर में मेरे प्रथम प्राचार्य थे। उनका आशीष अब भी बना हुआ है। ईश्वर ने मुझे उनके द्वारा रचित श्रीमद् भगवत गीता पद्यानुवाद की शृंखला प्रकाशित करने का सौभाग्य प्रदान किया। ईश्वर की कृपा से वे आज भी स्वस्थ हैं एवं साहित्य सेवा में लीन हैं। यदि मेरी वय 62 वर्ष है तो उनकी वय क्या होगी आप कल्पना कर सकते हैं?

श्री जगत सिंह बिष्ट जी भारतीय स्टेट बैंक में भूतपूर्व वरिष्ठ अधिकारी रहे हैं। योग साधना, ध्यान  एवं हास्य योग में उन्होने महारत हासिल की है। इसके अतिरिक्त वे एक प्रेरक वक्ता के तौर पर भी जाने जाते हैं। हास्य योग पर आधारित उनकी हास्य योग यात्रा की शृंखला अत्यंत रोचक बन पड़ी है।

श्री रमेश चंद्र तिवारी जी की “न्यायालय के आदेश के परिपालन में लिखी गई किताब – भारत में जल की समस्या एवं समाधान” पुस्तक पर श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी की टिप्पणी काफी ज्ञानवर्धक एवं रोचक है। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव जी ने स्वयं इसी परिपेक्ष्य में  काफी शोध के पश्चात “जल, जंगल और जमीन” पुस्तक लिखी है।

सुश्री ऋतु गुप्ता जी की लघुकथा “वृद्धाश्रम” एवं आज डॉ मुक्ता जी की कविता “कुम्भ की त्रासदी” वृद्ध जीवन के विभिन्न पक्षों से हमें रूबरू कराती है। किन्तु इसके विपरीत कभी कभी मुझे क्यों लगता है कि वृद्ध जीवन की त्रासदी के लिए हम बच्चों को ही क्यों दोष देते हैं? क्या कभी हमने अपने जीवन में झांक कर देखा कि हममे से कितने लोगों ने अपने माता पिता की सेवा की है जो अपने बच्चों से अपेक्षा करें। फिर निम्न मध्य वर्ग के परिवार के पालक गण के तौर पर हम ही तो बचपन से उन्हें विदेश में पढ़ने बढ़ने के लिए स्वप्न देखते और स्वप्न दिखाते हैं।  यह पक्ष भी विचारणीय है।

श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी का व्यंग्य “वो दिन हवा हुए” हमें अपने जमाने के चुनावों, चुनाव चिन्हों और माहौल से रूबरू कराती है।

अंत में सुश्री सुजाता काले जी कविता “खारा प्रश्न”, खारा ही नहीं बल्कि “खरा प्रश्न” जान पड़ता है। इस संदर्भ  में मुझे मेरी कविता “दिल, आँखें और आँसू” की कुछ पंक्तियाँ याद आती हैं जिसमें मैंने पुरुष की आँखों केहै।  खारे पानी की कल्पना की है।

 

कहते हैं कि –

स्त्री मन बड़ा कोमल होता है

उसकी आँखों में आँसुओं का स्रोत होता है।

 

किन्तु,

मैंने तो उसको अपनी पत्नी की विदाई में

मुंह फेरकर आँखें पोंछते हुए भी देखा है।

 

उसे अपनी बहन को

और फिर बेटी को

आँसुओं से विदा करते हुए भी देखा है।

 

उसकी आँखों में फर्ज़ के आँसुओं को तब भी देखा है

जब वह दूसरे घर की बेटी को

विदा करा कर लाया था।

अपनी बहन के विदा करने के अहसास एहसास के साथ।

अपनी बेटी के विदा करने के अहसास के साथ।

 

उसकी आँखों में खुशी के आँसुओं को तब भी देखा है

जब तुमने आहट दी थी

अपनी माँ के गर्भ में आने की।

 

उसकी आँखों में खुशी के आँसुओं को तब भी देखा है

जब वह तुम्हें अच्छी-अच्छी कहानियाँ सुनाता था

जब तुम गर्भ में थे

ताकि तुम सहर्ष निकल सको

जीवन के चक्रव्यूह से।

 

उसकी आँखों में विवशता के आँसुओं को तब भी देखा है

जब उसने स्वयं को विवश पाया

तुम्हारी जरूरी जरूरतों को पूरा करने में।

 

आज बस इतना ही।

 

हेमन्त बवानकर 

2  मई 2019

 

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ कुम्भ की त्रासदी ☆ –डा. मुक्ता

डा. मुक्ता

☆ कुम्भ की त्रासदी ☆

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। कुछ लोगों के लिए कुम्भ एक पर्व है और कुछ लोगों के लिए त्रासदी। जिनके लिए कुम्भ एक पर्व है उस पर तो सब लिखते हैं किन्तु, जिसके लिए त्रासदी है , उसके लिए वे ही लिख पाते हैं जो संवेदनशील हैं। डॉ मुक्ता जी की लेखनी को सादर नमन।)

 

कुम्भ के अवसर पर

छोड़ दी जाती हैं वृद्धाएं

अपने आत्मजों

जिगर के टुकड़ों द्वारा

अनुपयोगी समझ

क्योंकि इक्कीसवीं सदी

उपभोक्तावाद पर केंद्रित

“यूज़ एंड थ्रो” जिसका मूल-मंत्र

और वे अगले कुंभ की प्रतीक्षा में

अपने बच्चों पर आशीष बरसातीं

दुआओं के अम्बार लगातीं

ढोती रहती हैं ज़िंदगी

नितांत अकेली…इसी इंतज़ार में

शायद! लौट आए उसका लख्ते-जिगर

और उसे अपने घर ले जाए

जहां बसी है उसकी आत्मा

और मधुर स्मृतियां।

 

© डा. मुक्ता

पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी,  #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com

 

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मराठी साहित्य – मराठी कविता – ☆ बहावा ☆ – सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

 

? बहावा ?

(सुश्री प्रभा सोनवणे जी  हमारी  पीढ़ी की एक वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं ।  प्रस्तुत है सुश्री प्रभा जी की एक  संवेदनशील एवं भावप्रवण मराठी  कविता “बहावा।)

 

बहावा बहरलाय

भर उन्हात ,

त्याच्या बुंध्याशी —

सिमेन्ट चा फूटपाथ

आणि शेजारी

डांबरी सडक ,

माथ्यावर —

आग ओकणारा सूर्य !

वैशाख वणवा

पेटेल आता !

ही कुठली अग्निपरिक्षा देतोय हा

बहावा ??

सुरक्षित छपराखाली

फॅन च्या वा-यातही

बाहेरच्या ऊन्हाच्या

झळा जाणवताहेत मला !

खिडकीतून दिसणारा

बहावा —-

मस्त मजेत झेलतोय

दाह आणि त्याच्या

सावलीत —

कुणी सरबतवाला

तहानलेल्या

पांथस्थांना

करतोय

तृष्णामुक्त !

बहाव्याची पिवळुली फुले डोलताहेत

वा-यावर तृप्ततेने !

खिडकीच्या आत

मी कासावीस !

न्याहाळतेय निसर्गसोहळा !

बहावा बहरलाय

भर उन्हात मग मी का

कोमेजावं

सावलीतही?

हा संदेश पाठवतोच

बहावा —

बहरण्याचा, फुलण्याचा, फुलवण्याचा !

 

© प्रभा सोनवणे,  

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पुणे – ४११०११

मोबाईल-9270729503

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ Laughter Yoga – A Return Gift of Everlasting Cheer to the Society ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator and Speaker.)

Laughter Yoga – A Return Gift of Everlasting Cheer to the Society

 

My journey of Laughter Yoga (LY) has been a very fulfilling and satisfying one. I feel blessed to practice LY almost daily with a large number of people and bring joy to their lives. I express my sincere gratitude to Dr Madan Kataria and Madhuri Kataria who have imparted this divine life skill by which I can touch human lives instantly, anywhere and at any time.

I have been closely studying Positive Psychology and Authentic Happiness for a long time and believe that doing something worthwhile and meaningful for your fellow beings and intimate social interactions with those around you alone brings true happiness. LY is the best tool to achieve this. We can have warm relationships with people and also bring unlimited joy in their lives.

I always wanted to give back something to the great institution where I have been working for more than thirty-one years. I also wished I could inculcate positive values in school children and bring smiles on the faces of the sick and old people. The society has given me so much and I wanted to give a return gift of everlasting cheer to its people. LY has equipped and enabled me to do that on a continuous basis, each and every day of my life.

I was a shy kid and a studious student. I always wanted to sing, dance, play and laugh freely in groups. Now, I can do that and also make others experience joy by doing that.

We have formed a social group Laughter Yoga @ Indore comprising of LY lovers and professionals in Indore, India. Our mission is to propagate LY in and around our town for health, wellness, joy and peace. We wish to take it to the schools, colleges, workplaces, communities, hospitals, clubs, gyms, slums, old age homes, orphanages and even prisons.

We run two regular laughter clubs here. Suniket Laughter Club meets every Sunday morning for LY exercises at the Shrinagar Extension PublicPark, Indore. In addition, my wife, Radhika, who is also a Certified LY Teacher, holds Ladies’ Laughter Kitty every Saturday evening  at the Community Hall of Suniket Apartments, Shrinagar Extension, Khajarana Road, Indore.

Laughter Club of State Bank Learning Centre, Indore was formally launched on the 13th September 2010 at the State Bank Learning Centre, Manik Bagh Road, Indore. It is a unique laughter club. Every week, new trainees come to the centre for learning. They join the club, leave by the week-end and spread laughter back at their homes. Next week, another set of new participants join, and so on..

I first saw Dr Kataria and

Jagat Singh Bisht

Founder: LifeSkills

Seminars, Workshops & Retreats on Happiness, Laughter Yoga & Positive Psychology.
Speak to us on +91 73899 38255
[email protected]

 

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