हिन्दी साहित्य – कविता – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – मनुष्य जाति में ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

??? मनुष्य जाति में ???

 

होता है एकल प्रसव,
कभी-कभार जुड़वाँ
और दुर्लभ से दुर्लभतम
तीन या चार,
डरता हूँ
ये निरंतर
प्रसूत होती लेखनी
और जन्मती रचनाएँ
कोई अनहोनी न करा दें,
मुझे जाति बहिष्कृत न करा दें।

 

हर दिन निर्भीक जियें।

 

(प्रकाशनाधीन कविता संग्रह से )

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ आशीष साहित्य – # 6 – तत्वनाश ☆ – श्री आशीष कुमार

श्री आशीष कुमार

 

(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में  साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। अब  प्रत्येक शनिवार आप पढ़ सकेंगे  उनके स्थायी स्तम्भ  “आशीष साहित्य”में  उनकी पुस्तक  पूर्ण विनाशक के महत्वपूर्ण अध्याय।  इस कड़ी में आज प्रस्तुत है   “तत्वनाश।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ आशीष साहित्य – # 6 ☆

 

☆ तत्वनाश 

 

रावण अपने दरबार में अपने मंत्रियों के साथ अपने सिंहासन पर  बैठा हैं, और उसके सामने तीन अप्सरायें नृत्य कर रही हैं, जिन्हें इंद्र द्वारा मेघानाथ को शुल्क के रूप में दिया गया था, जब मेघनाथ ने भगवान ब्रह्मा के अनुरोध पर इंद्र को अपने बंधन से मुक्त कर दिया था । गंधर्व संगीत बजा रहे हैं ।

गंधर्व गंध का अर्थ है खुशबू और धर्व का अर्थ है धारण करना इसलिए गंधर्व पृथ्वी की गंध के धारक हैं, खासकर वृक्ष   और पौधों की । असल में हम कह सकते हैं कि गंधर्व किसी भी वृक्ष   या पौधे का सार या आत्मा हैं । ये अप्सराओं के पति हैं । यह निम्न वर्ग के देवता हैं । यही सोम के रक्षक भी हैं, तथा देवताओं की सभा में गायक हैं । हिन्दू धर्मशास्त्र में यह देवताओं तथा मनुष्यों के बीच दूत (संदेश वाहक) होते हैं । भारतीय परंपरा में आपसी तथा पारिवारिक सहमति के बिना गंधर्व विवाह अनुबंधित होता है । इनके शरीर का कुछ भाग पक्षी, पशु या जानवर हो सकता हैं जैसे घोड़ा इत्यादि । इनका संबंध दुर्जेय योद्धा के रूप में यक्षों से भी है । पुष्पदंत (अर्थ : पुष्प का चुभने वाला भाग) गंधर्वराज के रूप में जाने जाते हैं ।

मारीच ब्राह्मण के रूप में वन  में भगवान राम के निवास के द्वार पर पहुँचा और जोर से कहा, “भिक्षा देही” (मुझे दान दो) ।

लक्ष्मण ने मारीच को देखा और कहा, “कृपया आप यहाँ  बैठिये, मेरी भाभी अंदर है । वह जल्द ही आपको दान देगी” कुछ समय बाद देवी सीता अपने हाथों में भोजन के साथ झोपड़ी से बाहर आयी, और उस भोजन को मारीच को दे दिया ।

मारीच ने सीता को आशीर्वाद दिया और फिर कहा, “मेरी प्यारी बेटी, मुझे लगता है कि तुम किसी चीज़ के विषय में चिंतित हो, तुम जो भी जानना चाहती हो मुझसे पूछ सकती हो?”

देवी सीता ने उत्तर  दिया, “हे! महान आत्मा, मेरे ससुर जी लगभग 12 साल पहले स्वर्गवासी हो गए थे, और उनकी मृत्यु सामान्य नहीं थी । उनकी मृत्यु के समय हम वन  में आ गए थे और उसके कारण हम उनकी आत्मा की शांति के लिए किसी भी रीति-रिवाजों को करने में असमर्थ थे, उनकी मृत्यु का कारण अपने बच्चो का व्योग था । तो अब मेरी चिंता का कारण यह है कि हम इतने लंबे समय के बाद वन में सभी रीति-रिवाजों को कैसे पूरा करे जिससे की मेरे ससुर जी की आत्मा को शांति मिल सके?”

मारीच ने कहा, “तो यह तुम्हारी चिंता का कारण है । चिंता मत करो पुत्री चार दिनों के एक पूर्णिमा दिवस होगा, उस दिन तुम्हारे पति को कुछ यज्ञ (बलिदान) करना होगा और याद रखना कि उसे यज्ञ में वेदी के रूप में सुनहरे हिरण की खाल का उपयोग करना है । मैं उस दिन आऊँगा और उस यज्ञ को करने में तुम्हारे पति की सहायता करूँगा । बस तुम्हे इतना याद रखना है की चार दिनों के भीतर तुम्हे सुनहरे हिरण की त्वचा की आवश्यकता है”

तब मारीच वहाँ  से चला गया । जब भगवान राम लौटे, देवी सीता और लक्ष्मण ने उन्हें उन्ही ऋषि के विषय   में बताया जो आये  थे, और अपने पिता की आत्मा की शांति के लिए सुनहरे हिरण की त्वचा के साथ यज्ञ का सुझाव दिया था

 

© आशीष कुमार  

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हिन्दी साहित्य – श्रीकृष्ण जन्माष्टमी विशेष – लघुकथा – ☆ आज का कान्हा ☆ – श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी“

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी विशेष

श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

 

(सुप्रसिद्ध, ओजस्वी,वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती हेमलता मिश्रा “मानवी”  जी  विगत ३७ वर्षों से साहित्य सेवायेँ प्रदान कर रहीं हैं एवं मंच संचालन, काव्य/नाट्य लेखन तथा आकाशवाणी  एवं दूरदर्शन में  सक्रिय हैं। आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय स्तर पर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, कविता कहानी संग्रह निबंध संग्रह नाटक संग्रह प्रकाशित, तीन पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद, दो पुस्तकों और एक ग्रंथ का संशोधन कार्य चल रहा है।आज प्रस्तुत है  श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर एक लघुकथा   “आज का कान्हा”। 

 

☆ आज का कान्हा ☆

 

चल भाग बड़ा आया मेरे बेड पर मेरे साथ सोने। जा अपनी दादी के साथ सो।

माँ की झिड़की से सहम गया शिवम। मगर ढीठ बना वहीं खड़ा रहा। आहत स्वाभिमान आँखों की राह बह निकला परंतु आँखों में आशा की ज्योत जलती रही। भले ही उसकी माँ उसे जन्म देते ही गुजर गई हो मगर कल कन्हैया के बारे में कहानी सुनाते वक्त दादी ने कहा था कि यशोदा मैया भी कान्हा की सगी माँ नहीं थी। वे भी तो उन्हें ऊखल से बांध दिया करती थी। माखन मिश्री खाने से रोकती थी।

फिर भी तो कान्हा उन्हीं के बेटे कहलाते हैं— यशोदानंदन ही कहते हैं कान्हा को। फिर संध्या माँ भी तो मेरी यशोदा मैया हैं। सोचते सोचते आज का वह नन्हा कान्हा वहीं माँ के बेड पर सिकुड़ कर एक कोने में सो गया–माँ के सपनों में खो गया।

 

© हेमलता मिश्र “मानवी ” ✍

नागपुर, महाराष्ट्र

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हिन्दी साहित्य – श्रीकृष्ण जन्माष्टमी विशेष – कविता – ☆ दो गीत/भजन ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

 

(आज प्रस्तुत है श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  द्वारा रचित दो गीत/भजन  “आज जन्मे कृष्ण कन्हाई” तथा “मोरे मन में बस गए श्याम”)

 

☆ गीत/भजन – “आज जन्मे कृष्ण कन्हाई” तथा “मोरे मन में बस गए श्याम”☆ 

एक

☆ आज जन्मे कृष्ण कन्हाई☆

 

आज जन्मे कृष्ण कन्हाई

नंदबाबा के बजत बधैया,घर घर खुशियां छाई

नगर नगर में धूम मची है,देते सभी बधाई

यमुना गद गद पांव पखारे,शेषनाग परछाई

धन्य धन्य ब्रज भूमि सारी,गायें देत दुहाई

नंद भी नाचे,नाचीं मैया,खूबै धूम मचाई

संग संग “संतोष” भी नाचे,मन में हर्ष समाई

 

 

दो

मोरे मन में बस गए श्याम

 

मोरे मन में बस गए श्याम

सबसे पावन नाम तिहारो,तेरे चरण सब धाम

तू ही बिगड़े काज संवारे,दुनिया से क्या काम

पीर द्रोपदी पल में हर ली,बनाये बिगड़े काम

मोर मुकुट मुरलीधर मोहन,मधुसूदन घनश्याम

भव सागर से पार लगाते,हरें सब पाप तमाम

“संतोष” भजे नाम तिहारा,रोज ही सुबहो शाम

© संतोष नेमा “संतोष” ✍

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)

मोबा 9300101799

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हिन्दी साहित्य – श्रीकृष्ण जन्माष्टमी विशेष – कविता – ☆ कान्हा ! एक दिन तु्मको आना ही होगा ☆ – डॉ प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी विशेष 

डॉ प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव 

 

(डॉ. प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव जी की एक  भावप्रवण कविता।)

 

☆ कान्हा ! एक दिन तु्मको आना ही होगा ☆

 

कान्हा ! एक दिन तु्मको आना ही होगा,

अनंत प्रतीक्षा राधा की अंत करना होगा।

नियति का चक्र भी तुम्हे बदलना होगा,

तन मन प्राणों की पीड़ा हरना ही होगा।।

कान्हा ! एक दिन तुमको आना ही होगा।

 

कोटि-कोटि सावन बीते, कलियुग बीते,

मधु यौवन बीते, विरह ताप हरना होगा।

विरहणी मृगनयनी के चछु रो रोकर रीते,

प्रीति घट हुए रीते, प्रेम रस भरना होगा।।

कान्हा ! एक दिन तुमको आना ही होगा।

 

कान्हा ! निज प्रथम प्रेम कैसे तुम भूल गए,

गोकुल वृंदावन भूले, मधुवन हर्षाना होगा।

नियति कोई हो, प्रेमांजलि चख के चले गए !!

राधेय यौवन लौटा, मदन रस वर्षाना होगा।।

कान्हा ! एक दिन तुमको आना ही होगा।

 

अगर नहीं आओगे, गीता का मान घटाओगे,

नियंता तुम ही जग के अब दिखलाना होगा।

प्रथम प्रेम भुलाओगे, नारी सम्मान मिटाओगे,

मान दिला हर्षाओगे, प्रेम अमर कर जाओगे।।

कान्हा ! एक दिन तुमको आना ही होगा,

 

अनंत प्रतीक्षा राधा की अंत करना होगा।

नियति का चक्र भी तुम्हे बदलना होगा,

तन मन प्राणों की पीड़ा हरना ही होगा।।

कान्हा ! एक दिन तुमको आना ही होगा।

 

डा0.प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव

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हिन्दी साहित्य – श्रीकृष्ण जन्माष्टमी विशेष – कविता ☆ गोपाला-गोपाला ☆ – श्री मच्छिंद्र बापू भिसे

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी विशेष

श्री मच्छिंद्र बापू भिसे

(श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के विशेष पर्व पर प्रस्तुत है  श्री मच्छिंद्र बापू भिसे जी की कविता  “गोपाला – गोपाला“। 

 

एकता का जश्न हो,
मानवता ही श्रीकृष्ण हो,
नाम भले अनेक हो,
हम सब भारतीय बनेंगे,
हृदय हम सबका एक हो.

 

? गोपाला-गोपाला  ?

देवकी का लाल भी तू,
यशोदा का गोपाल भी तू,
वासुदेव का प्यारा भी तू,
नंद का दुलारा भी तू,
गोपियों का मतवाला तू,
सृष्टी का रखवाला,
गोपाला, गोपाला,
सबके प्यारे-प्यारे गोपाला.

कंस का भाँजा भी तू,
बना उसका काल भी तू,
बलराम का भ्राता भी तू,
सबका बना दाता भी तू,
द्रौपदी की लाज भी तू,
अर्जुन का सरताज भी तू,
रामायण का राम भी तू,
महाभारत का कृष्ण भी तू,
सबमें तू और तुझमें है सब,
कैसा यह खेल  निराला?
गोपाला, गोपाला,
सबके प्यारे-प्यारे गोपाला.

आज….
राम का रामचंद्र भी तू,
रहीम का रहमान भी तू,
मंदिर का भजन भी तू,
मस्जिद की अजान भी तू,
गीता का वचन भी तू,
पाक कुरान का कहन भी तू,
गुरूग्रंथ का नानकदेव भी तू,
बाइबिल का ईसा-मसीह भी तू,
न तेरा धर्म कोई,
न किसी को माना है निराला,
गोपाला, गोपाला,
सबके प्यारे-प्यारे गोपाला.

 

© मच्छिंद्र बापू भिसे

भिराडाचीवाडी, डाक भुईंज, तहसील वाई, जिला सातारा – ४१५ ५१५ (महाराष्ट्र)

मोबाईल नं.:9730491952 / 9545840063

ई-मेल[email protected] , [email protected]

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हिन्दी साहित्य – श्रीकृष्ण जन्माष्टमी विशेष – आलेख – ☆ आओ मनायें…श्रीकृष्ण’ का जन्मोत्सव ☆ – सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी विशेष 

सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’

(श्रीकृष्ण जन्माष्टमी  के शुभ अवसर पर प्रस्तुत है ,नरसिंहपुर मध्यप्रदेश की वरिष्ठ साहित्यकार सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’ जी का आलेख “आओ मनाएँ….श्रीकृष्ण  जन्मोत्सव”। )

✍   आओ मनायें…श्रीकृष्ण’ का जन्मोत्सव ✍ 

 

भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि की भयानक तूफानी अंधियारी रात में धरती को असुरों के अत्याचारों से मुक्त कराने ‘कृष्ण’ रूपी सूर्य उदित हुआ, जिनका जन्मदिन हम हर साल बड़े ही हर्ष-उल्लास से मनाते हैं… द्वापर युग में सृष्टिपालक भगवान विष्णु सोलह कला संपन्न पूर्णावतार लेकर आये और अपने इस स्वरूप में उन्होंने मर्यादा पालन के साथ-साथ बालपन से ही सभी प्रकार की लीलायें दिखाई… परन्तु दुर्बल मानव मन केवल कुछ ही लीला के आधार पर उनके संपूर्ण जीवन का आकलन कर स्वयं को उनके समकक्ष खड़ा कर लेता हैं…
अक्सर लोग उनके माखनचोर, मटकीफोड़, वस्त्रचोर, रास रचैया, मुरली बजैया, छलिया, रणछोड़, बहुपत्नीवादी, कूटनीतिज्ञ आदि कुछ प्रसंगों का ज़िक्र कर अपनी हरकतों पर पर्दा डालना चाहते हैं… जबकि उनके कर्मयोगी, संयमी, आदर्श शिष्य, पुत्र, भाई, राजा, मित्र, सलाहकार, सारथी, सहयोगी, सेवक, योद्धा, विवेकी, कला मर्मज्ञ, राजनीतिज्ञ आदि और भी कई महत्वपूर्ण उल्लेखनीय तथ्यों को अनदेखा कर देते हैं…
इसकी वजह शायद ये हैं कि कर्तव्य पालन, धर्मरक्षक, कर्मवादी होना थोड़ा मुश्किल होता हैं जबकि उन सब हरकतों का हवाला देकर खुद की गलतियों को न्यायसंगत ठहराना अपेक्षाकृत सहज होता हैं… उनका वास्तविक विराट स्वरूप वही हैं, जो उन्होंने ‘महाभारत’ के दौरान अपने सखा कुंतीपुत्र ‘अर्जुन’ को दिखाया था, जिसे इन मानवीय नेत्रों से देख पाना संभव नहीं उसके लिये तो दिव्य दृष्टि चाहिये और जिनके पास वो हैं केवल वही उन्हें समग्रता में देख सकते हैं…
उन सभी लीलाओं के मर्म को समझने की बुद्धि हमारे पास नहीं इसलिये यदि हम जीवन में कुछ बनना चाहते हैं तो आज उनके जन्मदिवस के इस पावन दिन पर उनसे यही विनती करें कि वो हमें कर्मपथ पर अनवरत चलने का साहस और दृढ इच्छाशक्ति प्रदान करें… उनके ‘गीता’ के कर्मसिद्धांत को अपने जीवन में अक्षरशः उतार सकें हम सबको ऐसा विवेक दे… तो आओ मिलकर मनायें उन विराट व्यक्तित्व महानायक और हमारे अपने श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव… सभी को उनके अवतार दिवस की हार्दिक शुभकामनायें… ???!!!
*© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’*
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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 4 ☆ अंगाराची साथ तुला… ☆ – सौ. सुजाता काळे

सौ. सुजाता काळे

(सौ. सुजाता काळे जी  मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य  विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं ।  वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं।  उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है सौ. सुजाता काळे जी की  ऐसी ही एक संवेदनात्मक भावप्रवण मराठी कविता  ‘अंगाराची साथ तुला…’।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 4 ☆

☆ अंगाराची साथ तुला…

कोण हरतो ! कोण जिंकतो!
इथे कुणाची खंत कुणा,
जो धडपडतो, जो कळवळतो,
रोजच पडतो ही खंत मना..
अंगाराची साथ तुला…

अंधारातुन दिशा काढ तू,
हाच मानवा संदेश तुला,
हृदयातून पेटव मशाल तू,
मार्ग दाखवी रोज तुला..
अंगाराची साथ तुला…

वादळात जरी पडले घरटे,
जोमाने तू बांध पुन्हा,
थरथरणारे हात ही दबतील,
दगडाखालून काढ जरा..
अंगाराची साथ तुला…

सूर्य सोबती नसो तुझ्या,
ना चंद्र सोबती दिमतीला,
काजव्याची माळ ओवून,
बांध तुझ्या तू भाळाला…
अंगाराची साथ तुला…

लखलखणारा तारा नसू दे,
नशीब तारा चमकव ना,
वसंतातल्या रंग छटा या,
पानगळीत ही पसरव ना…
अंगाराची साथ तुला…

वितळूनी पोलाद स्वतःस बनव तू,
अंगाराची साथ तुला,
ढाल नसु दे चिलखताची,

छाती मधूनी श्वास हवा..
अंगाराची साथ तुला…

© सुजाता काळे ✍

पंचगनी, महाराष्ट्र।

9975577684

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – पंचम अध्याय (19) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

पंचम अध्याय

(सांख्ययोग और कर्मयोग का निर्णय)

 (ज्ञानयोग का विषय)

 

इहैव तैर्जितः सर्गो येषां साम्ये स्थितं मनः ।

निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद् ब्रह्मणि ते स्थिताः ।।19।।

 

साम्य भाव में रम गया जिनका मन संसार

जन्म मरण से मुक्त वे,प्रभु उनका आधार।।19।।

 

भावार्थ :  जिनका मन समभाव में स्थित है, उनके द्वारा इस जीवित अवस्था में ही सम्पूर्ण संसार जीत लिया गया है क्योंकि सच्चिदानन्दघन परमात्मा निर्दोष और सम है, इससे वे सच्चिदानन्दघन परमात्मा में ही स्थित हैं।।19।।

Even here (in this world) birth (everything) is overcome by those whose minds rest in equality; Brahman is spotless indeed and equal; therefore, they are established in Brahman ।।19।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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हिन्दी साहित्य – श्रीकृष्ण जन्माष्टमी विशेष – कविता – ☆ दो कवितायें ☆ – श्रीमति विशाखा मुलमुले

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी विशेष

श्रीमति विशाखा मुलमुले 

 

 

(श्रीमती  विशाखा मुलमुले जी  का  e-abhivyakti में हार्दिक स्वागत है।  आप कविताएँ, गीत, लघुकथाएं लिखती हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो रही हैं। आपकी कविताओं का पंजाबी एवं मराठी में भी अनुवाद हो चुका है। हम आशा करते हैं कि हम भविष्य में उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर दो कवितायें  निरागस जिज्ञासा तथा एकात्मकता )

संक्षिप्त परिचय 

  • कविताओं को कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में स्थान मिला है जैसे अहा! जिंदगी, दुनिया इन दिनों, समहुत, कृति ओर, व्यंजना (काव्य केंद्रित पत्रिका) सर्वोत्तम मासिक, प्रतिमान, काव्यकुण्ड, साहित्य सृजन आदि।
  • आपकी रचनाओं को कई ई-पत्रिकाओं/ई-संस्करणों में भी स्थान मिला है जैसे सुबह सवेरे (भोपाल), युवा प्रवर्तक, स्टोरी मिरर (होली विशेषांक ई पत्रिका), पोषम पा, हिन्दीनामा आदि।
  • राजधानी समाचार भोपाल के ई न्यूज पेपर में ‘विशाखा की कलम से’ खंड में अनेक कविताओं का प्रकाशन
  • कनाडा से प्रकाशित होने वाली पत्रिका ‘पंजाब टुडे’ में भाषांतर के अंतर्गत एक कविता अमरजीत कुंके जी ने पंजाबी में अनुदित
  • आपकी कविता का ‘सर्वोत्तम मासिक’ एवं ‘काव्यकुण्ड’ पत्रिका के लिए वरिष्ठ कवयित्री अलकनंदा साने जी द्वारा मराठी में अनुवाद व आशीष
  • कई कवितायें तीन साझा काव्य संकलनों में प्रकाशित

 

☆ दो कवितायें – निरागस जिज्ञासा तथा एकात्मकता  ☆

1.

निरागस जिज्ञासा

 

मुझे तो तेरे मुकुट पर फूल गोकर्ण का

मोरपंख सा लगता है,

कृष्ण बता, तुझे ये कैसा लगता है?

 

मुझे तो तेरी मुरली की धुन

अब भी सुनाई देती है,

कृष्ण बता अब भी तू क्या

ग्वाला बन के फिरता है?

 

तुझे तो मैं कई सदियों से

माखन मिश्री खिलाती हूँ,

कृष्ण बता अब भी तू क्या

माखनचोरी करता है?

 

मुझे तो अब भी यमुना में

अक्स तेरा दिखता है,

कृष्ण बता अब भी तू क्या

कालियामर्दन करता है?

 

मुझे तो हर एक माँ

यशोदा सी लगती है,

कृष्ण बता अब भी तू क्या

जन्म धरा पर लेता है?

 

2. 

एकात्मता 

तू मुझे प्यार करे या मैं तुझे प्यार करूँ

बात एक है ना, प्यार है ना!

तू मेरे साथ चले या मैं तेरे साथ चलूँ,

बात एक है ना ,साथ है ना!

 

कि दोनों  ही ऊर्जा बड़ी सकारात्मक है,

“प्यार” संग “साथ “हो तो पंथ ही दूजा है

 

वो आत्मा हो जाती है कृष्णपंथी

फिर मुरली हो या पाँचजन्य, बात एक है ना!

 

कि कृष्ण कहाँ सबके साथ था,

सबमे उनकी अनंत ऊर्जा का निवास था

फिर वो राधा हो या मीरा,

देवकी हो या यशोदा,

बात एक ही है ना!

 

© विशाखा मुलमुले  ✍

पुणे, महाराष्ट्र

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