हिन्दी साहित्य – व्यंग्य – ☆ खिचड़ी सरकार और कोप भवन की जरूरत ☆ – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव “विनम्र”

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव “विनम्र”

☆ खिचड़ी सरकार और कोप भवन की जरूरत ☆

(प्रस्तुत है श्री विवेक  रंजन  श्रीवास्तव जी  का  सटीक एवं सार्थक व्यंग्य।  बतौर सिविल इंजीनियर  कोपभवन के आर्किटेक्ट की परिकल्पना उनका तकनीकी अधिकार है किन्तु एक सधे हुए व्यंग्यकार के तौर पर उन्होने वर्तमान राजनीति में कोपभवन की आवश्यकता का सटीक विश्लेषण किया है। निश्चित ही श्री विवेक जी ने ऐसे रेसोर्ट्स की भी परिकल्पना की होगी  जो कोपभवन के रास्ते में पड़ते  हैं । एक बेहतरीन व्यंग्य के लिए श्री विवेक जी को बधाई।)

भगवान श्री राम के युग की स्थापत्य कला का अध्ययन करने में एक विशेष तथ्य उद्घाटित होता है, कि तब भवन में रूठने के लिये एक अलग स्थान होता था। इसे कोप भवन कहते थे। गुस्सा आने पर मन ही मन घुनने के बजाय कोप भवन में जाकर अपनी भावनाओं का इजहार करने की परम्परा थी। कैकेयी को श्री राम का राज्याभिषेक पसंद नहीं आया वे कोप भवन में चली गई। राजा दशरथ उन्हें मनाने कोप भवन पहुंचे- राम का वन गमन हुआ। मेरा अनुमान है कि अवश्य ही इस कोप भवन की साज-सज्जा, वहां का संगीत, वातावरण, रंग रोगन, फर्नीचर, इंटीरियर ऐसा रहता रहा होगा, जिससे मनुष्य की क्रोधित भावना शांत हो सके, उसे सुकून मिल सके। यह निश्चित ही हम सिविल इंजीनियर्स के लिये शोध का विषय है। बल्कि मेरा कहना तो यह है कि पुरातत्व शास्त्रि़यों को श्री राम जन्म भूमि प्रकरण सुलझाने के लिये अयोध्या की खुदाई में कोप भवन की विशिष्टता का ध्यान रखना चाहिए।

अटल जी की सरकार, जार्ज साहब के समय  पुन: कोप भवन प्रासंगिक हो गया था ।  खिचड़ी सरकारों के युग में यह सर्वविदित सत्य है कि खिचड़ी में दाल-चावल से ज्यादा महत्व घी, अचार, पापड़, बिजौरा, सलाद, नमक और मसालों तथा दही, प्याज का होता है। सुस्वादु खिचड़ी के लिये इन सब की अपनी-अपनी अहमियत होती है, भले ही ये सभी कम मात्रा में हो, पर प्रत्येक का महत्व निर्विवाद है।

प्री पोल एक्जिट पोल के चक्कर में हो, या कई चरणों के मतदान के चक्कर में, पर हमारे वोटर ने जो `राम भरोसे´ है कई बार ऐसा मेन्डेट दिया कि सरकार ही `राम भरोसे´ बन कर रह गई .  राम भक्तों के द्वारा, राम भरोसे के लिये, राम भरोसे चलने वाली सरकार। आम आदमी इसे खिचड़ी सरकार कहता है। खास लोग इसे `एलायन्स´ वगैरह के उम्दा नामों से पुकारते हैं।

इन सरकारों के नामकरण संस्कार, सरकारों के मकसद वगैरह को लेकर मीटिंगों पर मीटिंगें होती हैं, नेता वगैरह  रूठते ही हैं, जैसे बचपन में मै रूठा करता था, कभी टॉफी के लिये, कभी खिलौनों के लिये, या आजकल मेरी पत्नी रूठती है, कभी गहनों के लिये, कभी साड़ी के लिये, या मेरे बच्चे रूठते हैं, कभी बड़े टी वी के लिये या कभी मूवी के लिये .देश-काल, परिस्थिति व हैसियत के अनुसार रूठने के मुद्दे बदल जाते हैं, पर रूठना एक `कामन´ प्रोग्राम है।

रूठने की इसी प्रक्रिया को देखते हुये `कोप भवन´ की जरूरत प्रासंगिक  है। कोप भवन के अभाव में बडी समस्या होती रही है। ममता रूठ कर सीधे कोलकाता चली जाती थी, तो जय ललिता रूठकर चेन्नई। बेचारे जार्ज साहब कभी इसे मनाने यहां, तो कभी उसे मनाने वहां जाते रहते थे। खैर अब उस युग का पटाक्षेप हो गया है. जार्ज साहब को विनम्र श्रद्धांजली, उनका रूठो को मनाने में एक्सपर्टाईज था.  भगवान उन्हें कम से कम अब चिर विश्राम दे , वरना उस युग में उनके जैसा संयोजक ही था जो सरकार को संयोजित रख सका. पर आज भी केवल किरदार ही तो बदले हैं। कभी अचार की बाटल छिप जाती है, कभी घी की डिब्बी, कभी पापड़ कड़कड़ कर उठता है, तो कभी सलाद के प्याज-टमाटर-ककड़ी बिखरने लगते हैं- खिचड़ी का मजा किरकिरा होने का डर बना रहता है।जार्ज साहब ने रूठो को मनाने की, संयोजन की अपनी कला का चार्ज किसी को नही दिया .

अब जब हमें खिचड़ी संस्कृति को ही प्रश्रय देना है, तो मेरा सुझाव है, प्रत्येक राज्य की राजधानी में जैसे विधान सभा भवन और दिल्ली में संसद भवन है, उसी तरह एक एक कोप भवन भी बनवा दिया जावे। इससे सबसे बड़ा लाभ मोर्चा के संयोजको को होगा। विभागो के बंटवारे को लेकर, किसी पैकेज के न मिलने पर, अपनी गलत सही मांग न माने जाने पर जैसे ही किसी का दिल टूटेगा, वह कोप भवन में चला जाएगा। रेड अलर्ट का सायरन बजेगा। संयोजक दौड़ेगा। सरकार प्रमुख अपना दौरा छोड़कर कोप भवन पहुंच, रूठे को मना लेगा- फुसला लेगा। लोकतंत्र पर छाया खतरा टल जायेगा।

जनता राहत की सांस लेगी। न्यूज वाले चैनलों की रेटिंग बढ़ जायेगी। वे कोप भवन से लाइव टेलीकास्ट दिखायेंगे। रूठना-मनाना सार्वजनिक पारदर्शिता के सिद्धांत के अनुरूप, सैद्धांतिक वाग्जाल के तहत पब्लिक हो जायेगा। आने वाली पीढ़ी जब `घर-घर´ खेलेगी तो गुडिया का कोपभवन भी बनाया करेगी बल्कि, मैं तो कल्पना करता हूँ  कि कहीं कोई मल्टीनेशनल कंपनी `कोप-भवन´ के मेरे इस 24 कैरेट विचार का पेटेन्ट न करवा ले, इसलिये मैं जनता जनार्दन के सम्मुख इस परिकल्पना को प्रस्तुत कर रहा हूँ . स्वर्गीय जार्ज साहब को नमन करते हुये .

मनोवैज्ञानिक भी मानते हैं कि कुण्ठित रहने से बेहतर है, कुण्ठा को उजागर कर बिन्दास ढंग से जीना। अब हम अपने राजनेताओं में त्याग, समर्पण, परहित के भाव पैदा नहीं कर पा रहे हैं, तो उनके स्वार्थ, वैयक्तिक उपलब्धियों की महत्वकांक्षाओं के चलते, खिचड़ी सरकारों में उनका कुपित होना जारी रहेगा, और कोप भवन की आवश्यकता, अनिवार्यता में बदल जायेगी।

© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव  “विनम्र”

ए-1, एमपीईबी कालोनी, शिलाकुंज, रामपुर, जबलपुर, मो ७०००३७५७९८

 

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हिन्दी साहित्य- कथा-कहानी – लघुकथा – ☆ अछूत ☆ – डॉ . प्रदीप शशांक

डॉ . प्रदीप शशांक 

☆ अछूत ☆

(डॉ प्रदीप शशांक जी द्वारा प्रस्तुत यह लघुकथा  वर्तमान सामाजिक परिवेश के ताने बाने पर आधारित है। डॉ प्रदीप जी की शब्द चयन एवं सांकेतिक शैली  मौलिक है। )

इस जिले में स्थानांतरित होकर आये देवांश को लगभग एक वर्ष हो गया था । परिवार पुराने शहर में ही था । देवांश छुट्टियों में ही अपने घर आता जाता था एवं परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति करता था । केवल वेतन के सहारे उसका दो जगह का खर्च ब- मुश्किल चल रहा था । अनिवार्य आवश्यकता की पूर्ति हेतु उधारी के कुचक्र में वह उलझता ही जा रहा था ।

विगत कुछ माहों से वह अनुभव कर रहा था कि यहां पर भ्रष्टाचार की नदी का बहाव कुछ ज्यादा ही तेज है । इस नदी में यहां कार्यरत कुछ पण्डों का एकाधिकार था । ये पण्डे रोज ही भ्रष्टाचार की नदी में डुबकी लगाकर पूण्य लाभ कमा रहे थे, इसका प्रसाद भी उन्हीं के भक्तों में वितरित होता था ।

देवांश की ईमानदारी की बदनामी उसके यहां आने के बाद तेजी से फैल चुकी थी । अतः वह यहां पर अछूत का जीवन व्यतीत कर रहा था । वह रोज दूर से ही नदी मैं तैरते, अठखेलियाँ करते इन लोगों को देखता रहता था । निरन्तर बढ़ते आर्थिक बोझ को कुछ कम करने के लिये उसका मन भी भ्रष्टाचार की नदी में डुबकी लगाने को प्रेरित करने लगा, लेकिन उसके आदर्श आड़े आ जाते, फिर उसे तैरना भी तो नहीं आता था क्योंकि वह इस कार्य में अनाड़ी जो था ।

आखिर एक दिन उसने सोचा कि जब सब ही भ्रष्टाचार की नदी में डुबकी लगाकर अपना जीवन सुखमय बना रहे हैं तो वह भी क्यों न किनारे पर बैठ कर लोटा -दो– लोटा लेकर, अपनी आर्थिक कठिनाइयों को कुछ कम कर ले । इसी सोच के तहत देवांश ने हिम्मत बटोरी एवं किनारे पर जाकर जैसे ही लोटा भरना चाहा, वहां पर तैर रहे पण्डों ने चिल्लाना शुरू कर दिया –

“अरे—रे — इस अछूत ने पवित्र नदी को भ्रष्ट कर दिया, पकड़ो इसे । इस घिनौने कृत्य के लिये इसे सजा अवश्य मिलनी चाहिये।”

सबके एकजुट स्वर में उसकी आवाज दबी रह गई ।

सभी भ्रष्टाचार विशेषज्ञ पण्डों ने मिलकर उसके विरूद्ध गवाही दी और उसे भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के अंतर्गत दोषी मानते हुए निलंबित कर दिया गया ।

वह निलंबन पत्र हाथ में लिये खड़ा था। उधर वे पण्डे, नदी में पुनः उसी आनंद के साथ डुबकी लगा रहे थे, तैर रहे थे, अठखेलियाँ कर रहे थे ।

© डॉ . प्रदीप शशांक 
37/9 श्रीकृष्णपुरम इको सिटी, श्री राम इंजीनियरिंग कॉलेज के पास, कटंगी रोड, माढ़ोताल, जबलपुर ,म .प्र . 482002
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मराठी साहित्य – मराठी कविता – ? गझल ? – सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

 

? गझल ?

(सुश्री प्रभा सोनवणे जी  हमारी  पीढ़ी की एक वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं ।   प्रस्तुत है सुश्री प्रभा जी की एक भावप्रवण मराठी गजल।)

फुका शोध घेशी, तुला ज्ञात आहे
तुझा आप्त कोणी न शहरात आहे
कधी ना मिळाली कुणाची दीदारी
सदा वैर माझ्याच नशिबात आहे
दिवा एक नाही कुणी लावणारा
इथे फक्त अंधारली रात आहे
कुणी भाव खातो फुकाचा इथेही
मला माहिती, काय औकात आहे
व्यथा साहते मी मुक्याने तरीही
कुणा वाटते मारवा गात आहे

© प्रभा सोनवणे,  

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पुणे – ४११०११

मोबाईल-9270729503

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – द्वितीय अध्याय (59) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

द्वितीय अध्याय

साँख्य योग

( अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद )

 

विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः ।

रसवर्जं रसोऽप्यस्य परं दृष्टवा निवर्तते ।।59।।

भूख देह की मिटाते तो हैं विषय विकार

किंतु लालसा मिटाता प्रभु का साक्षात्कार।।59।।

 

भावार्थ : इन्द्रियों द्वारा विषयों को ग्रहण न करने वाले पुरुष के भी केवल विषय तो निवृत्त हो जाते हैं, परन्तु उनमें रहने वाली आसक्ति निवृत्त नहीं होती। इस स्थितप्रज्ञ पुरुष की तो आसक्ति भी परमात्मा का साक्षात्कार करके निवृत्त हो जाती है।।59।।

 

The objects  of  the  senses  turn  away  from  the  abstinent  man,  leaving  the  longing (behind); but his longing also turns away on seeing the Supreme. ।।59।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ Laughter Yoga – A Life Changing Experience ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator and Speaker.)

Laughter Yoga – A Life Changing Experience

Laughter lowers blood pressure, relaxes muscles, improves blood circulation, increases oxygen level in the body, elevates mood, brings hope, enhances communication and boosts immune system. Dr Madan Kataria has contributed to the happiness of mankind by successfully blending free laughter with yogic breathing and evolving the unique concept of Laughter Yoga.

Laughter Yoga is a revolutionary idea – simple and profound. It is a breakthrough laughter delivery system that enables a person to laugh continuously for fifteen to twenty minutes. It is a powerful exercise routine and a complete wellbeing workout which is fast sweeping the world.

Dr Madan Kataria, an Indian physician, along with his wife Madhuri, started the first laughter club in a park in Mumbai on 13th March 1995 with just five members. Today it is a worldwide phenomenon with more than six thousand social laughter clubs in sixty countries.

It combines unconditional laughter with pranayama – yogic breathing. Laughter is simulated in a group exercise with childlike playfulness and eye contact, which soon turns into real and contagious laughter, without relying upon jokes or comedy. The concept is based on a scientific fact that the human body cannot differentiate between fake and real laughter – one gets the same physiological and psychological benefits from both types of laughter.

Natural laughter comes just for a few seconds here and there but to get scientifically proven health benefits of laughter, we need to laugh continuously for ten to fifteen minutes at least – loud and deep from our diaphragm – which is possible only in social laughter clubs. They are non-political, non-religious and non-profit social clubs run by volunteers trained as laughter teachers and have no membership fee, no forms and no fuss.

A typical laughter yoga session includes clapping and warming up, deep breathing exercises, childlike playfulness and laughter exercises which may be yoga based, playful or value based exercises. Laughter yoga exercises are sometimes followed by laughter meditation where laughter may flow spontaneously like a fountain. The session ends with guided relaxation and grounding exercises.

Clinical research on laughter yoga methods has shown that laughter lowers the level of stress hormones in the blood. It fosters a positive and hopeful attitude and one is less likely to succumb to depression and helplessness. The regular club members say it makes them happy, healthy and energized. In effect, it has changed their lives.

Laughter yoga is an effective cardio workout and helps in staying fit. It increases blood circulation and relaxes muscles. Laughter yoga changes your mood within minutes by releasing endorphins in your brain. One feels energized and fresh throughout the day and can work more without getting tired. Laughter clubs provide a rich social network of people who care about one another. One learns to handle difficult situations effectively without losing composure by imbibing the essence of laughter yoga.

In India, laughter yoga has been introduced in many schools in Baroda, Surat and Bangalore. It has recently been included as a subject in the curriculum in one of the universities in the United States. Scientific research shows that laughter can help to resolve many workplace issues and is gaining popularity in companies and corporations across the globe. Laughter yoga is being practiced among seniors in many aged care facilities in Canada, USA, Israel and Europe. There are hundreds of people in laughter clubs all over the world who are suffering from cancer but laughter has brought a new hope into their lives.

The ultimate objective is to bring good health, joy and world peace through laughter. This innovative concept has been widely accepted and reported in Time magazine, National Geographic, BBC, CNN and many others.

Jagat Singh Bisht

Founder: LifeSkills

Seminars, Workshops & Retreats on Happiness, Laughter Yoga & Positive Psychology.
Speak to us on +91 73899 38255
[email protected]

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ दोज़ख ☆ –डा. मुक्ता

डा. मुक्ता

☆ दोज़ख ☆  

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं।  जीवन के कटु सत्य को उजागर करती  हृदयस्पर्शी कविता।)

 

हर दिन घटित हादसों को देख

मन उद्वेलित हो,चीत्कार करता

कैसी है हमारी

सामाजिक व्यवस्था

और सरकारी तंत्र

जहां मां,बेटी,बहन की

अस्मत नहीं सुरक्षित

जहां मासूम बच्चों को अगवा कर

उनकी ज़िंदगी को दोज़ख में झोंक

नरक बनाया जाता

जहां दुर्घटनाग्रस्त

तड़पता,चीखता-चिल्लाता इंसान

सड़क पर सहायता हेतु

ग़ुहार लगाता

और सहायता ना मिलने पर

अपने प्राण त्याग देता

और परिवारजनों को

आंसू बहाने के लिए छोड़ जाता

जहां दाना मांझी को

पत्नी के शव को कंधे पर उठा

बारह किलोमीटर पैदल चलना पड़ता

उड़ीसा में एंबुलेंस के बीच राह

उतार देने पर

सात साल की बेटी के शव को

कंधे पर उठा

एक पिता को छह किलोमीटर

पैदल चलना पड़ता

जहां एक मां को रात भर

अपनी बेटी का शव सीने से लगा

खुले आसमान के नीचे बैठ

हाथ पसारना पड़ता

ताकि वह दाह-संस्कार के लिए

जुटा सके धन

यह सामान्य सी घटनाएं

उठाती हैं प्रश्न…..

क्या गरीब लोगों को संविधान द्वारा

नहीं मौलिक अधिकार प्रदत्त?

क्या उन्हें नही प्राप्त

जीने का अधिकार?

क्या उन्हें नहीं

रोटी,कपड़ा,मकान की दरक़ार

क्यों मूलभूत सुविधाएं हैं

उनसे कोसों दूर?

हमारी संसद सजग है,परंतु मौन है

एक वर्ष में दो बार

अपना वेतन व भत्ते बढ़ाने निमित्त

हो जाती हैं

सभी विरोधी पार्टियां एकमत

और मेज़ें थपथपा कर

करते हैं सब अनुमोदन

क्यों नहीं उन पर

सर्विस रूल्स लागू होते

क्यों हमारे नुमाइंदे हर पांच वर्ष बाद

बन जाते नई पेंशन पाने के हक़दार

जबकि आमजन को

तेतीस वर्ष के पश्चात्

मिलता था यह अधिकार

जो वर्षों पहले छीन लिया गया

कैसा है यह विरोधाभास?

कैसा है यह भद्दा मज़ाक?

हमारे नुमाइंदों को क्यों है—

ज़ेड सुरक्षा की आवश्यकता

शायद वे सबसे अधिक

कायर हैं,डरपोक हैं

असुरक्षित अनुभव करते हैं

और जनता के बीच जाने से

घबराते हैं,कतराते हैं

वे सत्ताधीश…जिनके हाथ है

देश की बागडोर।

© डा. मुक्ता

पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी,  #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com

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मराठी साहित्य – मराठी कविता – ? अर्धवट कविता ? –श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

? अर्धवट कविता ?

 

(प्रस्तुत है श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी की एक  अतिसुन्दर रचना ।  निःसन्देह उनकी यह  मुक्त छंद रचना… किसी भी तरह से उनके जीवन से कम नहीं।)

 

उपवर झालेली

माझी अर्धवट कविता

योग्य शब्दांच्या शोधात

थांबली आहे अजून

वय उलटून चाललंय तरी…

 

कधी शब्द सापडलाच चांगला

तर मात्रेत बसत नाही

आणि मुक्त छंद लिहायचाच नाही

हे तर ठरवून टाकलंय मी…

 

ती मात्र हुशार निघाली

लिहिते मुक्त छंदात

शब्दही असतात

अगदी बाळसेदार

व्यासपीठावर मिरवते

टाळ्याही घेते…

 

मुक्त छंदाच्या संसारात

तिची कविता रमली आहे

आणि माझी कविता थांबली आहे

वाट पहात

आशय, विषय, मात्रांच्या प्रतिक्षेत…

 

लोक मला हेकेखोर म्हणतात

पण

कुठलीच तडजोड

चालणार नाही मला

जीवनात आणि कवितेच्या बाबतीतही…

 

जीवन आणि कविता ही

वेगळी काढता येत नाही

म्हणूनच दोन्ही कागद

कोरे आहेत अजून

एक कवितेचा आणि दुसरा माझा

याही वयात…!

 

© अशोक भांबुरे, धनकवडी

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

[email protected]

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English Literature – ☆ Happiness ☆ – Shri Jay Prakash Pandey

Shri Jay Prakash Pandey

☆ Happiness ☆ 

(We present a very motivating article by Shri Jay Prakash Pandey.  Shri Jay Prakash ji worked a lot for the overall development and happiness of tribal people while he was working in State Bank of India.  We will try to share his experiences in future.)

Happiness is the big ingredient everyone wants in his life. Happiness is, in many ways, a personal matter.

There are three things to remember about happiness:

  1. Happiness is important
  2. Happiness is desirable
  3. Happiness is possible

No matter what your past circumstances have been, no matter what your present conditions are, happiness is possible for you. You can learn to develop it and this happiness will give you a healthier and richer life

  • Happiness is not achieved by devious or false methods. The first step building a state of happiness in your life is to raise the level of your own self-respect. Happiness is only within your reach if you first admit that is a definite possibility. Once you have reached that awareness, you can reorient your thinking and life-style towards happiness.
  • Happiness is knowing your true identity, for you will not be happy if you fail to see yourself in a true perspective

There are four requirements in a program for happiness

  1. Take an interest in the world around you: You are living in the wider world that includes all of humanity and your interest in the world should naturally extend to a desire to help and share in the work of the world
  2. Have a willingness to work intensively:  Work means an involvement with other people and extending the limits of your personal interests for doing something special with the job. The extra efforts and added interest can bring you dividends of happiness
  3. Have an appreciation of leisure: Leisure means freedom from the demands and responsibilities of work or duty and it does not mean the absolute cessation of all other efforts
  4. Have an understanding of solitude: You should look forward to your periods of solitude. Being alone gives you a chance to sit down with yourself and assess your situation honestly

There are seven principal characteristics of happy people:

  1. – Happy people are thinking people
  2. – Happy people are considerate people
  3. – Happy people have better health
  4. – Happy people show their age less
  5. – Happy people like themselves
  6. – Happy people are liked by others
  7. – Happy people are successful in what they do

The following are some practical tips which help you in your quest for happiness:

  • Add up your blessings and catalog them
  • List your past accomplishments and achievements
  • List your anticipations that you feel are attainable
  • Learn how to sharpen and develop your powers of observation
  • Learn how to take time to enjoy your life
  • Learn how to replace fear in your life with happiness

 

“Happiness resides not in possessions and not in gold, the feeling of happiness dwells in the soul” – DEMOCRITUS

 

©  Jay Prakash Pandey

416 – H, Jay Nagar, Near IBM Office, Jabalpur – 482002 Mobile – 9977318765

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हिन्दी साहित्य- पुस्तक समीक्षा – * शिवांश से शिव तक * श्री ओम प्रकाश श्रीवास्तव एवं श्रीमति भारती श्रीवास्तव – (समीक्षक – प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘)

कैलाश मानसरोवर यात्रा – “शिवांश से शिव तक” –  श्री ओम प्रकाश श्रीवास्तव एवं श्रीमति भारती श्रीवास्तव

पुस्तक समीक्षा
शिवांश से शिव तक (कैलाश मानसरोवर यात्रा वर्णन)
लेखक- श्री ओम प्रकाश श्रीवास्तव एवं श्रीमती भारती श्रीवास्तव
प्रकाशक- मंजुल पब्लिषिंग हाउस प्रा.लि. अंसारी रोड दरियागंज नई दिल्ली।
मूल्य – 225 रु. पृष्ठ संख्या-284, अध्याय-25, परिषिष्ट 8, चित्र 35

 

कैलाश और मानसरोवर भारत के धवल मुकुट मणि हिमालय के दो ऐसे पवित्र प्रतिष्ठित स्थल हैं जो वैदिक संस्कृति के अनुयायी भारतीय समाज के जन मानस में स्वर्गोपम मनोहर और पूज्य है। मान्यता है कि ये महादेव भगवान शंकर के आवास स्थल है। गंगाजी के उद्गम स्त्रोत स्थल है और नील क्षीर विवेक रखने वाले निर्दोष पक्षी जो राजहंस माॅ सरस्वती का प्रिय वाहन है उसका निवास स्थान है।

हर भारतीय जो वैदिक साहित्य से प्रभावित है मन में एक बार अपने जीवन काल में इनके सुखद और पुण्य दर्शन की लालसा संजोये होता है। भारत के अनेको पवित्र तीर्थस्थलों में से ये प्रमुख तीर्थ है। इसीलिये इनकी पावन यात्रा के लिये भारत शासन कुछ चुने स्वस्थ्य व्यक्तियों को यात्रा की अनुमति दे उनकी यात्रा व्यवस्था प्रतिवर्ष करता है। अनेकों व्यक्ति सारे विशाल भारत से यात्रा की अनुमति पाने आवेदन करते है। उनमें कुछ भाग्यशाली जनों को यह अवसर प्राप्त होता है।

पुस्तक लेखक श्री ओंकार श्रीवास्तव जी को सपत्नीक इस यात्रा का सौभाग्य प्राप्त हुआ और उन्होनें इस अविस्मरणीय तीर्थयात्रा का वर्णन कर अपने पाठको व जन सामान्य के लिये हितकारी जानकारी उपलब्ध करने का बडा अच्छा कार्य किया है। उन्होनें यात्रा की तैयारी, यात्रा का प्रारंभ, विभिन्न पडावों, वहाँ के दृश्यों, मार्ग के रूप और विभिन्न कठिनाईयों को वर्णित कर अपने सपरिवार प्राप्त अनुभवों का उल्लेख करके अनेकों श्रद्धालुओं को जो इस यात्रा पर जाने की इच्छा रखते हैं उनके कौतूहल व मार्गदर्षन के लिये बडी सच्चाई और निर्भीकता से सरल सुबोध भाषा में अपने हृदय की बात लिखी है। 22 दिनों की यात्रा का दैनिक वर्णन है। कैलाश मानसरोवर का दर्शन अलौकिक अद्भुत व सुखद तो है ही जो जीवन में अविस्मरणीय हैं किंतु यात्रा मे अनेको कठिनाईयां भी है। हिंदी मे एक कहावत है- बिना मरे स्वर्ग नहीं मिलता। अभिप्राय है कि स्वर्ग का सुख पाने के लिये अनेकों मृत्यु को सहना आवश्यक होता है तभी स्वर्ग का सुख प्राप्त करना संभव है। पुस्तक के पढने से विभिन्न  पड़ावों पर ऊंचा नीचा भूभाग पैदल चलकर पार करना और वहाँ अचानक उत्पन्न जलवायु परिवर्तन, स्थानीय निवासियों  के व्यवहार और भारतीयों की आदतो के विपरीत नये परिवेश को बर्दाश्त कर यात्रा करना कितना कठिन होता है। इसका सजीव चित्रण मिलता है। यात्रा पर जाने वालो को पूरा उपयोगी मार्गदर्शन मिलता है। तिब्बत के मठ वहाँ के साधु सन्यासियों, बाजारों और लोक व्यवहार की झलक मिलती है। धार्मिक सामाजिक और व्यवहारिक रीति रिवाजों से पाठको को अवगत कराने वाली उपयोगी पुस्तक है। भाषा, भाव और विचारो की अभिव्यक्ति में लेखक सफल है। पाठक को पढने से स्वतः यात्रा करने की सी भावानुभूति होती है। भौगोलिक चित्र भी दिये गये है। धार्मिको की मान्यताओं के अनुरूप शिव और प्रकृति का सुरम्य दृश्य यात्री को देखने का अवसर मिलता है।

प्रतिवर्ष  एक हजार से अधिक यात्री मानसरोवर की यात्रा करते है पर उन हजारों में से श्रीवास्तव दंपत्ति बिरले यात्री है, जिन्होेंने अपनी यात्रा के अनुभवों को लोक व्यापी बनाकर इस पुस्तक के माध्यम से अद्भुत साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं वैज्ञानिक विवेचना कर जनहितकारी कार्य किया है। कृति बांरबार  पठनीय है।

 

समीक्षक – प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘,

A 1, एमपीईबी कालोनी, रामपुर, जबलपुर 

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – द्वितीय अध्याय (58) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

द्वितीय अध्याय

साँख्य योग

( अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद )

यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गनीव सर्वशः ।

इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ।।58।।

कछुआ सा इंद्रियों को जो समेट रख शांत

प्रज्ञावान किसी समय होता नही अंशांत।।58।।

 

भावार्थ : और कछुवा सब ओर से अपने अंगों को जैसे समेट लेता है, वैसे ही जब यह पुरुष इन्द्रियों के विषयों से इन्द्रियों को सब प्रकार से हटा लेता है, तब उसकी बुद्धि स्थिर है (ऐसा समझना चाहिए)।।58।।

 

When, like the tortoise which withdraws its limbs on all sides, he withdraws his senses from the sense-objects, then his wisdom becomes steady. ।।58।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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