हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ गांधी चर्चा # 21 – महात्मा गांधी : आज़ादी का ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो आन्दोलन ☆ श्री अरुण कुमार डनायक

गांधीजी के 150 जन्मोत्सव पर  विशेष

श्री अरुण कुमार डनायक

(श्री अरुण कुमार डनायक जी  महात्मा गांधी जी के विचारों केअध्येता हैं. आप का जन्म दमोह जिले के हटा में 15 फरवरी 1958 को हुआ. सागर  विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के उपरान्त वे भारतीय स्टेट बैंक में 1980 में भर्ती हुए. बैंक की सेवा से सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृति पश्चात वे  सामाजिक सरोकारों से जुड़ गए और अनेक रचनात्मक गतिविधियों से संलग्न है. गांधी के विचारों के अध्येता श्री अरुण डनायक वर्तमान में गांधी दर्शन को जन जन तक पहुँचानेके लिए कभी नर्मदा यात्रा पर निकल पड़ते हैं तो कभी विद्यालयों में छात्रों के बीच पहुँच जाते है. 

आदरणीय श्री अरुण डनायक जी  ने  गांधीजी के 150 जन्मोत्सव पर  02.10.2020 तक प्रत्येक सप्ताह  गाँधी विचार, दर्शन एवं हिन्द स्वराज विषयों से सम्बंधित अपनी रचनाओं को हमारे पाठकों से साझा करने के हमारे आग्रह को स्वीकार कर हमें अनुग्रहित किया है.  लेख में वर्णित विचार  श्री अरुण जी के  व्यक्तिगत विचार हैं।  ई-अभिव्यक्ति  के प्रबुद्ध पाठकों से आग्रह है कि पूज्य बापू के इस गांधी-चर्चा आलेख शृंखला को सकारात्मक  दृष्टिकोण से लें.  हमारा पूर्ण प्रयास है कि- आप उनकी रचनाएँ  प्रत्येक बुधवार  को आत्मसात कर सकें.  आज प्रस्तुत है इस श्रृंखला का अगला आलेख  “महात्मा गांधी : आज़ादी का ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो आन्दोलन। )

☆ गांधीजी के 150 जन्मोत्सव पर  विशेष ☆

☆ गांधी चर्चा # 21 – महात्मा गांधी : आज़ादी का ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो आन्दोलन

द्वितीय विश्व युद्ध के समय गठित ब्रिटिश वार कैबिनेट ने कुछ प्रस्ताव के साथ सर स्टैफर्ड क्रिप्स को भारत भेजा ताकि काँग्रेस व ब्रिटिश सरकार के बीच जारी गतिरोध समाप्त किए जा सकें।यह प्रयास क्रिप्स मिशन  के नाम से जाना गया। चूंकि इन प्रस्तावों में कोई खास नई बात न थी अत: काँग्रेस व गांधीजी इससे सहमत न हुये और सर स्टैफर्ड क्रिप्स बैरंग वापस लौट गए। बम्बई में 7 व 8 अगस्त 1942 को अखिल भारतीय काँग्रेस कमेटी ने खुली सभा कर भारत छोड़ो प्रस्ताव पास किया। गांधीजी  देश को अगले दिन 9 अगस्त  को विशाल आम सभा में ‘करो या मरो’ का जोशीला नारा देते उसके पहले ही वे गिरफ्तार कर लिए गए। पंडित जवाहरलाल नेहरू अपनी किताब डिस्कवरी आफ इंडिया में लिखते हैं –

“8 अगस्त 1942 को काफी रात गए यह प्रस्ताव आखरी तौर पर मंजूर हुआ। चंद घंटों बाद, 9 अगस्त को सुबह बम्बई में और देश में दूसरी जगहों से बहुत-सी गिरफ्तारियाँ हुई। सारे प्रमुख नेता अचानक ही अलग हटा दिये गए थे और जान पड़ता है कि किसी की समझ में न आता था कि क्या करना चाहिए। विरोध तो होता ही और अपने-आप ही उसके प्रदर्शन हुये। इन प्रदर्शनों को कुचला गया, उन पर गोली चलाई गई, आँसू गैस इस्तेमाल की गई और सार्वजनिक भावना को प्रकट करने वाले सारे तरीके रोक  दिये गए। और तब ये सारी दबी हुई भावनाएँ फूट पड़ी और शहरों में और देहाती हलकों में भीड़ें इकट्ठी हुई और पुलिस और फौज के साथ खुली लड़ाई हुई। इस तरह 1857 के गदर के बाद बहुत बड़ी जनता हिदुस्तान में  ब्रिटिश राज्य के ढांचे को चुनौती देने के लिए पहली बार बलपूर्वक उठ खड़ी हुई। यह चुनौती बेमानी और बेमौके थी, क्योंकि दूसरी तरफ सुसंगठित हथियारबंद ताकत थी। यह हथियारबंद ताकत इतिहास में पहले किसी मौके पर इतनी ज्यादा नहीं थी।“

करेंगे या मरेंगे और इस मंत्र ने देश दीवाना बना दिया

आज अगस्त क्रान्ति की शुरुआत की वर्षगांठ है। आज से छियत्तर वर्ष पूर्व महात्मागांधी के आह्वान पर देश भर में राष्ट्र को स्वतंत्र कराने का जूनून जन जन में व्याप्त हो गया था। कुछ मुट्ठी भर लोगों और एकाध संगठन को छोड़ सारा देश महात्मागांधी के मंत्र करेंगे या मरेंगे की भावना के साथ अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन के साथ खड़ा हो गया।

बलिया का नाम मैंने अपनी युवावस्था में तब सुना जब जय प्रकाश नारायण की जीवनी पढ़ते समय जाना कि उनका जन्म स्थान सिताबदियारा बलिया से लगा हुआ है। फिर बलिया चन्द्रशेखर की कर्म स्थली भी थी। वहीं चन्द्रशेखर जो कांग्रेस में युवा तुर्क थे, इन्दिरा गांधी की नीतियों के घोर विरोधी और उनके मंत्रीमंडल को छोड़ने वाले  समाजवादी जो आपातकाल के दौरान जेल भी गये, बाद को भारत के प्रधानमंत्री बने तथा जिनके समय हमें सोना गिरवी रख देश की प्रतिष्ठा बचानी पड़ी।

स्टेट बैंक की लंबी सेवा के दौरान मैं अनेक बार बलिया वासियों से मिला और मैंने उनसे बलिया की क्रांति के बारे में जाना पर सटीक जानकारी तो मुझे पढ़ने मिली राजस्थान के कांग्रेसी  श्री गोवर्धन लाल पुरोहित द्वारा रचित  स्वतंत्रता-संग्राम का इतिहास में। वे लिखते हैं :-

” नौ अगस्त को यहां के सभी कार्यकर्ता बंदी बना लिए गए। सरकारी दमन के बाद भी  10 से  12 अगस्त को बलिया में पूर्ण हड़ताल रही। 12 अगस्त  को सारे जिले में तार काटने व यातायात के सभी साधन नष्ट करने का काम शुरु हुआ।14अगस्त तक तो सारे बलिया जिले का संबंध पूरे प्रांत से तोड़ डाला गया। 15अगस्त को जिला कांग्रेस के दफ्तर पर कांग्रेस का फिर से अधिकार हो गया। यहां के मजिस्ट्रेट ने जनता के सामने आत्म समर्पण कर दिया।

सोलह अगस्त को कांग्रेस कमेटी की आज्ञा से समस्त बाजार खुले। पुलिस ने सत्ता को जाते देख, गोली चला दी, परंतु स्वातंत्र्य वीरों पर उसका कुछ भी असर नहीं हुआ।19अगस्त को बलिया में ब्रिटिश शासन समाप्त कर दिया गया।सभी कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को जेल से छोड़ दिया गया।20अगस्त को चित्तू पांडे की अध्यक्षता में नवीन राष्ट्रीय सरकार की स्थापना हुई।इस सरकार के अधीन गांवों में ग्राम पंचायतें स्वतंत्र रुप से काम करने लगीं। 22 अगस्त तक बलिया में जनता सरकार चलती रही। 23 अगस्त की रात को गोरी पल्टन ने बलिया में प्रवेश किया, लूट खसोट व मारपीट का तांडव नृत्य होने लगा। सेना से मुठभेड़ करते हुए 46स्वातंत्र्य वीर काम आए। एक सौ पांच मकान फूंक दिये गये।लगभग अडतीस लाख रुपए की हानि समस्त जिले को उठानी पड़ी।

मन्मथ नाथ गुप्त ने लिखा कि बलिया प्रजातंत्र बना और कांग्रेस कमेटी का दफ्तर उसका केन्द्र बना। पंडित चीतू पांडे पहले जिलाधीश कहलाये। सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक  इस समय तक जिले के दस थानों में से सात पर क्रान्तिकारियों का अधिकार हो गया था। शहर में ढिंढोरा पीट कर यह बता दिया गया कि अब बलिया में कांग्रेसी राज्य है।

सेना ने बलिया में प्रवेश करते हुए घोर दमन चक्र चलाया। सबसे पहले नौजवानों को पकड़ा गया। इन्हें ठोकरों से मारा गया, जेलों में अनेक कष्ट दिये गये। उमाशंकर दीक्षित, सूरज प्रसाद, हीरा पंसारी, विश्वनाथ, बच्चालाल व राजेन्द्र लाल बेरहमी से पीटे गए। बलिया के बाद अन्य गांवों में भी सेना ने कहर ढा दिया। सुखपुरा गांव के महन्त को इसलिए पीटा गया कि उसने बलिया प्रजातंत्र सरकार को दस हजार रुपए का चंदा दिया था। बासडी में जहां सरकारी खजाना लूटा गया था, वहां पर अंग्रेज सेनापति नेदरशील ने अंधाधुंध गोलियां चलवाई। रामकृष्ण सिंह व वागेश्वर सिंह को इतना पीटा गया कि वे शहीद हो गये। बलिया के तीस गांव में आग लगाई गई। रेवती गांव का सारा बाजार लूट लिया गया। जेल में बंद क्रान्तिकारियों पर अत्याचार का वर्णन यहां लिखते भी नहीं बनता है। थोड़े में गोरी सरकार के काले कारनामों की यह पराकाष्ठा थी।

देवनाथ उपाध्याय ने 64ऐसे लोगों की सूची तैयार की है जो बलिया क्रान्ति में शहीद हुए। वास्तव में इनका बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अमिट रहेगा।”

यह तो बलिया की कहानी है। सारे देश में भारत छोड़ो आंदोलन  फैल गया। 1857के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद विदेशी सत्ता के विरूद्ध भारत में यह सबसे बड़ा व व्यापक संघर्ष था। दमोह जहां कभी मैंने पढ़ाई की वहां के महादेव गुप्ता सबसे कम उम्र के स्वतंत्रता सेनानी बने। वे शायद तब नाबालिग ही थे जब उन्होंने कांग्रेस का झंडा दमोह के  थाने या स्कूल भवन में फहराया था। गली गली शहर शहर स्वतंत्रता के दीवाने महात्मागांधी के मंत्र करो या मरो को दीवारों पर लिख रहे थे या जोर शोर से बोल रहे थे। इस अगस्त क्रान्ति का भारत की स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान है।

आज पद्मनाथ तैंलग का एक लेख सन 42 का क्रान्ति-पर्व पढ़ने मिला। शायद वे सागर के निवासी होंगे ऐसा अंदाज मैंने लेख पढ़कर लगाया। इस लेख की दो घटनाओं ने मुझे आकर्षित भी किया और प्रभावित भी। आप भी सुनिए :-

” ज्यों ही मैंने अपने साथी पं ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी के साथ अपनी स्कूल की नौकरी से त्याग पत्र दिया हम लोग की गिरफ्तारी के वारंट निकल गए। ज्योतिषी जी गिरफ्तार होकर जेल भेज दिए गए और सागर के डिप्टी कमिश्नर श्री एस.एन. मेहता ने भी मुझे गिरफ्तार करते हुए मेरे पाकिट में जो सत्याग्रह संबंधी  पर्चे थे, उन्हें फड़वा दिया ताकि मेरे उपर जुर्म साबित न हो सके। कुछ दिन पहले भी इन्ही श्रीनाथ मेहता ने  कटरा बाजार आंदोलन के समय अपने अंग्रेज पुलिस कप्तान वाटसन का हाथ पकड़ कर उसे रिवाल्वर की गोली चलाने से रोका था, जो एक नवयुवक सत्याग्रही पर रिवाल्वर तान ही रहा था, क्योंकि उस नवयुवक ने पुलिस कप्तान वाटसन के सर पर डंडा मारा था। उन दिनों विदेशी शासनकाल में भी ऐसे अधिकारियों की कमी नहीं थी। श्रीनाथ मेहता उनमें  एक थे।”

बाद में शायद इन घटनाओं के कारण उनका तबादला अंग्रेज सरकार ने कर दिया और उनकी जगह एक अंग्रेज को सागर का डिप्टी कमिश्नर बनाया गया। श्रीनाथ मेहता खेड़ावाल ब्राह्मण थे । वे दमोह जिले की हटा तहसील में पैदा हुए थे और हम सबके  पूर्वज कोई तीन सौ बरस हुए गुजरात से आकर पहले पन्ना और फिर हटा, दमोह में बस गए।

दूसरी घटना और भी लोमहर्षक है और बुंदेलखंडी गौरव की प्रतीक है।

“उन दिनों स्वाधीनता संग्राम की  लहर देहातों तक में फ़ैल  गई थी हम लोग प्रथम श्रेणी के सुरक्षा बंदी के रुप में सागर जेल में खुले मैदान में बैठे हुए थे कि आठ नौ साल का एक देहाती बालक कुर्ता और चड्डी पहने तथा अपना स्कूल बैग दबाए कुछ देहाती सत्याग्रहियों को लेकर जेल के अंदर दाखिल हुआ। हम लोगों ने उससे सरलता से पूंछा काय भैया , तुम्हें अपने बऊ द्ददा की याद तो आऊत हुईये। तुम माफी मांग के चले जैहो।

उस छोटे भोले भाले अपढ़ देहाती बालक ने जिस सरलता और निर्भीकता से उत्तर दिया, उसको सुनकर हम लोग दंग रह गये।उस बालक ने कहा कुतका मांगे माफी। हमारी बऊ ने कै दई है कि बैटा मर जइयो पै माफी मांग के अपनों करिया मौं हमें न दिखाइयो। एक टुरवा तो बिमारी से मर गओ, एक देस की खातिर सई, दादा मैं तो अपना जो बस्ता दबाए पढबै मदरसा जा रओ थो। रस्ता में कछु गांव वारे पेड़े काट के गिरफ्तार हो रये हते। मैंने भी एक कुल्हरिया मांग के एक पेड़े पै हनके दो हत दैं मारे। बस पुलिस को एक सिपाही हमें सोई गिरफ्तार करकें बंडा से मोटर गाड़ी पै बिठार के इनै लै आऔ। दादा, आपई  बताओ हम माफी कायखों मांगन चले।”

ऐसा जादू था महात्मा गांधी के आह्वान अंग्रेजों भारत छोड़ो और उनके मूल मंत्र करेंगे या मरेंगे का। इस बालक सरीखे असंख्य ऐसे लोग उस आंदोलन के साक्षी बने जिनके मन में आजादी की लौ महात्मागांधी ने जगाई और वे सब निस्वार्थ भाव से इस आंदोलन में कूद पड़े। उन सबको नमन।

 

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

(श्री अरुण कुमार डनायक, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं  एवं  गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित हैं। )

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हिन्दी साहित्य ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 18☆ कविता (हाईकु) – प्रकृति ☆ श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि‘

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’  

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’ जी  एक आदर्श शिक्षिका के साथ ही साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे गीत, नवगीत, कहानी, कविता, बालगीत, बाल कहानियाँ, हायकू,  हास्य-व्यंग्य, बुन्देली गीत कविता, लोक गीत आदि की सशक्त हस्ताक्षर हैं। विभिन्न पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत एवं अलंकृत हैं तथा आपकी रचनाएँ आकाशवाणी जबलपुर से प्रसारित होती रहती हैं। आज प्रस्तुत है  हाईकु शैली में  रचित एक भावपूर्ण कविता  “ प्रकृति  ।  इस अतिसुन्दर रचना के लिए श्रीमती कृष्णा जी बधाई की पात्र हैं।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 18☆

☆ हाईकु – प्रकृति   ☆

 

मचा बवंडर

त्राहि त्राहि मची

जल समाहित

 

बाढ़  उफनती

बढ़ती न रुकती

रौद्र दिखती.

 

जड़ें हिलाती

कमाल ही करती

अस्तित्व समझाती

 

मत खेलो

मुझको तो समझो

माँ तुम सबकी.

 

कहीं खाली

कहीं  भर दिया

लिया दिया.

 

 

© श्रीमती कृष्णा राजपूत  ‘भूमि ‘

अग्रवाल कालोनी, गढ़ा रोड, जबलपुर -482002 मध्यप्रदेश

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #28 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के ह्रदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे # 28 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

मन बंधन का मूल है, मन ही मुक्ति उपाय ।

विकृत मन जकड़ा रहे, निर्विकार खुल जाए ।। 

 आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

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Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – एकादश अध्याय (20) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(अर्जुन द्वारा भगवान के विश्वरूप का देखा जाना और उनकी स्तुति करना )

द्यावापृथिव्योरिदमन्तरं हि व्याप्तं त्वयैकेन दिशश्च सर्वाः ।

दृष्ट्वाद्भुतं रूपमुग्रं तवेदंलोकत्रयं प्रव्यथितं महात्मन् ।। 20।।

पृथ्वी औ” आकाश बिच , अन्तर अमित अपार

सभी दिशाओं व्याप्त है प्रभु का ही अधिकार

देख तुम्हें इस रूप  में आकुल है संसार

थकित व्यथित त्रैलोक है देख विचित्र विकार  ।। 20।।

 

भावार्थ :  हे महात्मन्! यह स्वर्ग और पृथ्वी के बीच का सम्पूर्ण आकाश तथा सब दिशाएँ एक आपसे ही परिपूर्ण हैं तथा आपके इस अलौकिक और भयंकर रूप को देखकर तीनों लोक अतिव्यथा को प्राप्त हो रहे हैं।। 20।।

 

The space between the earth and the heaven and all the quarters are filled by Thee alone; having seen this, Thy wonderful and terrible form, the three worlds are trembling with fear, O  great-souled Being!।। 20।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 32 ☆ सीलापन ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जीसुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  कविता “सीलापन ”। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 32☆

☆ सीलापन  

जब बारिश ज़्यादा हो जाती है,

न जाने क्यों

ये शामें बड़ी बेवफा सी लगने लगती हैं-

कुछ गुजरी कहानियां याद आती हैं,

कुछ छूटने का ग़म होता है,

कुछ बिछुड़ने का दर्द होता है,

कुछ घुटन सी लगती है,

कुछ वादे याद आते हैं,

और फिर बिजली के कड़कने के साथ

कुछ टूट सा जाता है!

 

बारिश का क्या है

अगले दिन ख़त्म हो जाती है,

पर उसका सीलापन

ज़हन को भिगोये रखता है!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – कोरोना वायरस और हम- 3 (घर बैठे क्या करें ) ?☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – कोरोना वायरस और हम- 3☆

घर बैठे क्या करें?

भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर देश ने 22 मार्च 2020 को जनता कर्फ्यू का जिस तरह समर्थन किया वह अभूतपूर्व था। इस समय भारत के कुछ राज्यों में लॉकडाउन है। इसके सिवा देश के विभिन्न राज्यों के 76 जिलों में भी लॉकडाउन घोषित हो चुका है। पंजाब ने लॉकडाउन को सख्ती से लागू करने के लिए कर्फ्यू लगा दिया है। महाराष्ट्र के 10 जिलों में लॉकडाउन है पर पूरे प्रदेश में निषेधाज्ञा लगा दी गई है। यह लेख पोस्ट करते समय महाराष्ट्र में भी कर्फ्यू की घोषणा कर दी गई है।

सरकार और प्रशासन के स्तर पर जो हो सकता है, वह किया जा रहा है। आज भारत के मुख्य न्यायाधीश ने भी भारत सरकार की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। विश्व स्वास्थ्य संगठन पहले ही हमारे प्रधानमंत्री की पीठ थपथपा चुका है।

आज चर्चा हमारे स्वानुशासन और घर की व्यवस्था की। दौड़ती-भागती ज़िंदगी के हम ऐसे आदी हो चुके हैं कि अब घर पर रुकने की मानसिकता ही नहीं रही। इस समय घर पर रहना हम सब का सबसे बड़ा धर्म है पर घर में क्या करें, यह भी हम सबके सामने सबसे बड़ा प्रश्न है।

परिजनों के घर पर होने के कारण इस समय घर की महिलाओं का वर्कलोड बेतहाशा बढ़ा हुआ है। अपेक्षित है कि सभी परिजन विशेषकर पुरुष सदस्य घर के सभी कामों में बराबरी से नहीं अपितु ज्यादा से ज्यादा हाथ बटाएँ। घर के हर सदस्य का साथ मिलेगा तो घर की स्त्री पर काम का बोझ तो कम होगा ही, साथ ही वह परिजनों के घर में रहने का सही सुख भी उठा सकेगी।

टीवी और स्मार्टफोन तक खुद को सीमित रखने के कारण घर के सदस्यों में आपसी संवाद निरंतर कम हो रहा है। इसका दुष्परिणाम पुणे में देखने को मिला। घर से बाहर खेलने जाने पर मना किए जाने के कारण 11 वर्षीय बच्चे ने आत्महत्या का प्रयास किया। यह सुन्न कर देने वाली घटना है। बेटा या बेटी जिस भी आयु के हैं, प्रयास करके हम उसी आयु में लौटें और उनके मित्र बनें। गैजेट्स एकमात्र विकल्प नहीं हैं। मोक्षपटम/ शतरंज, लूडो, सांप-सीढ़ी, शब्दसंपदा, व्यापार जैसे अनेक बैठे खेल हम बाल-गोपालों और अन्य सदस्यों के साथ खेल सकते हैं। हमें अपने बचपन के खेल याद करने चाहिएँ। इससे हमारा बचपन लौटेगा और हमारे बच्चों का बचपन खिल उठेगा।

हम इस समय घर में आर्ट, क्राफ्ट से जुड़ी चीज़ें बनाना सीख सकते हैं और बना सकते हैं।ललित कलाओं से सम्बंधित लोगों के लिए यह आपाधापी से परे शांत समय है। इसका सृजनात्मक उपयोग कीजिए।

घर पर समय बिताना इस समय हमारी अनिवार्य आवश्यकता है। अलबत्ता इस समय को ‘क्वालिटी टाइम’ में बदल पाना हमारी प्रगल्भता होगी। क्वालिटी टाइम के लिए पुस्तकें पढ़ना और संगीत सुनना दो उत्कृष्ट साधन हैं।

मित्रों से अनुरोध है कि आप अपना समय कैसे बिता रहे हैं, इसे शेयर करें। इससे अनेक लोगों का मार्गदर्शन होगा।

करोना से लड़ना है हर पल। सार्थक बिताना  है  हर पल। शुभकामनाएँ।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

4:57 बजे, 23.3.2020

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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English Literature – Poetry ☆ Epidemic or Pandemic ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(We are extremely thankful to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for sharing his literary and artworks with e-abhivyakti.  An alumnus of IIM Ahmedabad, Capt. Pravin has served the country at national as well international level in various fronts. Presently, working as Senior Advisor, C-DAC in Artificial Intelligence and HPC Group; and involved in various national-level projects.

Please read an English Version of my Hindi Poem विश्वमारी या महामारी”  published previously as  विश्वमारी या महामारी   . I extend my heartiest thanks to the learned author  Captain Pravin Raghuvanshi J for this beautiful translation.   Captain Pravin Raghuwanshi ji is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages.)

☆  English Version  of  Poem of  Hemant Bawankar ☆ 

☆ Epidemic or Pandemic – by Captain Pravin  Raghuwanshi ☆

 

You can call me by any name

Epidemic or pandemic

Natural disaster or man-made conspiracy

But in the end, you will

only lose…

 

Agreed that

I’m a natural disaster,

You saw my cool-and-calm composure

And sometimes,

the catastrophic ones too,

However much I tried

to scare you

Through,

Cyclones

Earthquakes and landslides;

From the

Ozone hole to

Global warming

From the

Climate change

To countless other

representational signs…

But,

You did not mend your ways,

Let’s agree now that

It’s a man made conspiracy…

You are the one

solely responsible for catastrophe

You messed up

Not only with me

But,

With the entire humanity…

 

I gave you

The whole mortal world,

the entire universe

And, above all

Rare human birth…

Beautiful natural locales,

Winter, Spring, Autumn, Summer and Monsoon seasons;

Lush green forests filled with

Flora fauna and myriad reptiles

Blissful enchanting waterfalls

Golden sandy beaches

And plentiful natural bounties

and many more priceless gifts…

Whom you could have enjoyed blissfully…

 

But, Alas!

Again, you didn’t agree

Instead of the serene picturesque nature

You chose the ‘Global village’

But, forgot the principle of

‘Vasudhaiva Kutumbakam’ –the world is one family concept…

 

Based on apartheid, religion and racism,

You fractured the humanity

into several pieces…

You preferred

battles, wars and World-Wars…

 

You played politics of becoming superpower

Messed up with the environment

Made the reptiles and animals your diet,

Created destructive biological weapons,

Replaced peace with violence

Spread hatred instead of love

 

You prioritized the power-politics of:

Domination and demolition

Gas chambers and concentration camps

Hiroshima-Nagasaki and Bhopal Gas Tragedy,

Which bear  silent testimony

of your atrocities

You forgot

How many foeticide did you commit

How many innocent children and humans

were subjected to

starvation, epidemics, diseases

and victims of hate violence…

every second, poignantly…

 

Hope good sense prevails now, and

You stop the evil chase

of power supremacy

And, dedicate your life for the

upliftment of humanity

Provide two square meals

to the deprived ones,

Make hospitals to extend love and care

to the sick and geriatrics…

 

You can call me by any name

Epidemic or pandemic

Natural disaster or man-made conspiracy

But the loser in the end,

will be you and only you…

 

Today when I’m showing you the mirror

You’re mortally scared

Hiding in your homes

Get up, awaken now

Fight me bravely, Take me head on

For, it’s question of survival of your own species

To whom you are solely responsible

 

You still have a chance

Follow the laws of nature

Save the environment

Rise above apartheid,

religion and casteism

Love the humanity and

brotherhood of man…

 

If not for yourself

Then, at least,

for your generations,

of which you are

representative like me…

And, critically for

your future generations

Which is your responsibility…

 

This beautiful loving

nature is a gift

To you

To your future generations

To the humanity per se,

But mind you,

Time is running out…

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा # 31 ☆ व्यंग्य संग्रह – डांस इण्डिया डांस – श्री  जय प्रकाश पाण्डेय ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है  श्री  जय प्रकाश पाण्डेय जी  के  व्यंग्य -संग्रह  “ डांस इंडिया डांस” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा । )

पुस्तक चर्चा के सम्बन्ध में श्री विवेक रंजन जी की विशेष टिपण्णी :- पठनीयता के अभाव के इस समय मे किताबें बहुत कम संख्या में छप रही हैं, जो छपती भी हैं वो महज विज़िटिंग कार्ड सी बंटती हैं ।  गम्भीर चर्चा नही होती है  । मैं पिछले 2 बरसो से हर हफ्ते अपनी पढ़ी किताब का कंटेंट, परिचय  लिखता हूं, उद्देश यही की किताब की जानकारी अधिकाधिक पाठकों तक पहुंचे जिससे जिस पाठक को रुचि हो उसकी पूरी पुस्तक पढ़ने की उत्सुकता जगे। यह चर्चा मेकलदूत अखबार, ई अभिव्यक्ति व अन्य जगह छपती भी है । जिन लेखकों को रुचि हो वे अपनी किताब मुझे भेज सकते हैं।   – विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘ विनम्र’

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 31 ☆ 

☆ पुस्तक चर्चा – व्यंग्य-संग्रह   – डांस इण्डिया डांस

पुस्तक – डांस इण्डिया डांस ( व्यंग्य-संग्रह) 

लेखक – श्री जय प्रकाश पाण्डेय

प्रकाशक – रवीना प्रकाशन, नई दिल्ली

मूल्य – रु 250/-

अमेज़न लिंक पर ऑनलाइन उपलब्ध  >>  डांस इण्डिया डांस ( व्यंग्य-संग्रह)

 

 ☆  व्यंग्य – संग्रह   –  डांस इण्डिया डांस – श्री  जय प्रकाश पाण्डेय  –  चर्चाकार…विवेक रंजन श्रीवास्तव

आशीर्वचन स्वरुप पुस्तक की प्रस्तावना सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ कुंदन सिंह परिहार जी द्वारा लिखी गई है,  जिसे आप निम्न लिंक पर पढ़ सकते हैं।

पुस्तक चर्चा ☆ डांस इंडिया डांस – श्री जय प्रकाश पांडेय ☆ “व्यंग्य-लेखन गंभीर कर्म है” – डॉ कुंदन सिंह परिहार

जय प्रकाश पाण्डेय जी व्यंग्यकार के साथ ही कहानीकार भी हैं. प्रायः कहानीकार किसी  पात्र का सहारा लेकर कथा बुनता है । प्रेमचंद का होरी प्रसिद्ध है । अमिताभ बच्चन अनेक बार विजय बने हैं । स्वयं मैं रामभरोसे को केंद्र में रख कई व्यंग्य लिखता हूँ । इसी तरह  श्री पाण्डेय जी का प्रिय पात्र गंगू है ।

उनका पाठक गंगू के साथ ग्रामीण परिवेश से कस्बाई और वर्तमान वैश्विक भिन्नता में व्यंग्य के संग मजे लेता जाता है।

उनका व्यंग्य झिंझोड़ता है, तंज करता है  पाठक को सोचने पर विवश करता है ।

जबलपुर परसाई की नगरी है ।

पाण्डेय जी को परसाई जी का सानिध्य भी मिला है जो उनके व्यंग्य में दिखता भी है ।

वे व्यंग्यम के प्रारंभिक सदस्यों में हैं, सामाजिक कार्यो में संलिप्त रहते हैं।  बैंक में काम करते हुए उन्हें खूब एक्सपोजर मिला है यह सब इस पुस्तक के व्यंग्य बताते हैं ।

नए समय मे हर हाथ में मोबाईल होने से फोटो कला में पारंगत श्री पाण्डेय जी ने कवर फ़ोटो स्वयं खींच कर, एकदम सम्यक टाइटिल किताब को दिया है ।

मुझे ज्ञात है रवीना प्रकाशन ने फटाफट पुस्तक मेले के पहले यह किताब छापी हैं  किन्तु, पुस्तक स्तरीय है ।

सभी लेख वैचारिक हैं । जुगलबंदी के चलते कई व्यंग्य लिखने को प्रेरित हुए श्री पाण्डेय जी ने हमारे बारम्बारआग्रह को स्वीकार कर इन लेखों को पुस्तक रुप दिया है । पढिये , प्रतिक्रिया दीजिये इसी में व्यंग्यकार व साहित्य की सफलता है ।

 

चर्चाकार .. विवेक रंजन श्रीवास्तव

ए १, शिला कुंज, नयागांव, जबलपुर ४८२००८

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 43 ☆ मावृत्वाचा पदर ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक भावप्रवण कविता  “मावृत्वाचा पदर।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 43 ☆

☆ मावृत्वाचा पदर ☆

मी नाही देऊ शकत

तुझ्या मातृत्वाच्या पदराला

सागर किंवा आकाशाचं परिमाण…

 

अमृताहू मधुर अशा मातेच्या दुधावर वाढलेला जीव

अमृतासारख्या भ्रामक कल्पनेला

कसा देऊ शकेल थारा…

 

ॐकाराचा ध्वनी, चित्त शांत करीत असला तरी

माझ्या मातेच्या मुखातून निघालेले ध्वनी

मला आजही उर्जा देऊन पुलकीत करतात…

 

सूर्याचा प्रखर प्रकाश सौम्य करण्यासाठी

ती होते चंद्र

आणि

लेकराच्या आयुष्याचं करून टाकते तारांगण…

 

तारांगणाला बांधलेल्या पाळण्याची दोरी

तिच्या हातात असते म्हणून

चंदनाच्या पाळण्यातलं आणि

झोळीतलं बाळही तेवढ्याच निर्धास्तपणे झोपतं

गरीब श्रीमंतीचा भेदभाव विसरून…

 

जगातली कुठलीच माता गरीब नसते

मातृहृदयाच्या तिजोरीत

न मावणारी श्रीमंती

तिच्या प्रत्येक कृतीतून दिसत असते.

 

म्हणूनच  मातृत्वाच्या पदराला

मी नाही देऊ शकत

सागर किंवा आकाशाचं परिमाण…

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 40 – लघुकथा – मुआवजा ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत हैं उनकी एक समसामयिक लघुकथा  “मुआवजा।  श्रीमती सिद्धेश्वरी जी की यह  सर्वोत्कृष्ट लघुकथा है जो अत्यंत कम शब्दों में वह सब कह देती है जिसके लिए कई पंक्तियाँ लिखी जा सकती थीं।  मात्र चार पंक्तियों में प्रत्येक पात्र का चरित्र और चित्र अपने आप ही मस्तिष्क में उभर  आता है। इस सर्वोत्कृष्ट समसामयिक लघुकथा के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई।

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 40☆

☆ लघुकथा  – मुआवजा

कोरोना से गांव में बुधनी की मौत।

अस्सी साल की बुधनी बेटा बहू के साथ टपरे पर रहती थी। गरीबी की मार और उस पर कोरोना का द्वंद। बुधनी अभी दो-तीन दिन से उल्टा पुल्टा चीज खाने को मांग रही थी और रह-रहकर खट्टी दही अचार खा रही थी।  उसे सांस लेने में तकलीफ की बीमारी थी। बेटे ने मना किया पर मान ही नहीं रही थी। अचानक बहुत तबीयत खराब हो गई सांस लेने में तकलीफ और खांसी बुखार । बेटा समझ नहीं पाया अम्मा को क्या हो गया बुधनी अस्पताल पहुंचकर शांत हो गई।  कोरोना से मरने वालों के परिवार को मुआवजा मिलता है। बुधनी ने  पडोस में बातें करते सुन लिया था। शांत होकर भी बुधनी मुस्करा रही थी। अब बेटे के टपरे घर पर खपरैल लग जायेगा।

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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