हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ चिंतन करे पर चिंता मुक्त रहकर परिणाम सुनहरे होंगे ☆ श्री कुमार जितेन्द्र

श्री कुमार जितेन्द्र

 

(युवा साहित्यकार श्री कुमार जितेंद्र जी  कवि, लेखक, विश्लेषक एवं वरिष्ठ अध्यापक (गणित) हैं। आज प्रस्तुत है उनका एक विचारार्थ आलेख उनकी एक समसामयिक आलेख चिंतन करे पर चिंता मुक्त रहकर परिणाम सुनहरे होंगे। )

☆ चिंतन करे पर चिंता मुक्त रहकर परिणाम सुनहरे होंगे☆

 चिंता और चिंतन – ओह चिंता शब्द पढ़ते ही चिंता में डाल दिया है। क्या लिखे, क्या नहीं लिखे, क्या करे… क्या नहीं करे.. और जो लिखे या कुछ ऎसा करे वो किसी अनुकूल हो सकता है। अगर नहीं हुआ तो परिणाम क्या होगा। ऎसे हजारों अनगिनत प्रश्नों की मन में बौसार लग जाती है। यही चिंता है जिसका परिणाम भयंकर होता है। दूसरी तरफ किसी बात या कार्य को करने से पहले उस पर चिन्तन किया जाए तो परिणाम कुछ और होगा। कहने का तात्पर्य यह है कि दोनो शब्दों में बहुत बड़ा फ़र्क है। वैसे फर्क होना भी स्वाभाविक है। तो आईए मित्रों आज हम कुमार जितेन्द्र “जीत” के साथ चिंता और चिन्तन को एक विश्लेषण से समझने का धीरे धीरे प्रसास करते हैं। विश्वास है मेरा विश्लेषण आपके के अनुकूल होगा।

मन में क्यों उत्पन्न होती है चिंता –  जी हां एक अच्छा प्रश्न उभर कर सामने आया है कि आख़िर हमारे मन में क्यों उत्पन्न होती है चिंता? क्या वजह है उसकी जो इंसान को अन्दर से खोखला कर देती है। सरल शब्दों में कहा जाए तो चिंता जब हम मन में किसी को पाने की चाहत रखते हैं, जो हमारे पास नहीं है और वह पूरी न हो या उसको खो जाने का डर लगा रहता है। किसी काम को तय समय पर पूरा नहीं करने से हमारा मन एवं बुद्धि दोनों अशांत से रहते हैं। जिससे चिंता उत्पन्न होती है। दूसरे रूप में नजर डाली जाए तो चिंता एक संज्ञानात्मक रूप, शारीरिक रूप, भावनात्मक रूप और व्‍यवहारिक रूप से उत्पन्न घटको की  मनोवैज्ञानिक दशा है।

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार चिंताचिन्ता को अनेक मनोवैज्ञानिकों ने अपने-अपने ढंग से परिभाषित किया है। जिसमें से कुछ प्रमुख विश्लेषण निम्न है-

‘‘चिन्ता एक ऐसी भावनात्मक एवं दु:खद अवस्था होती है, जो व्यक्ति के अहं को आलंबित खतरा से सतर्क करता है, ताकि व्यक्ति वातावरण के साथ अनुकूली ढंग से व्यवहार कर सके।’’

‘‘प्रसन्नता अनुभूति के प्रति संभावित खतरे के कारण उत्पन्न अति सजगता की स्थिति ही चिन्ता कहलाती है।’’

 

‘‘चिन्ता एक ऐसी मनोदशा है, जिसकी पहचान चिन्ह्त नकारात्मक प्रभाव से, तनाव के शारीरिक लक्षणों लांभवित्य के प्रति भय से की जाती है।

‘‘चिन्ता का अवसाद से भी घनिष्ठ संबंध है।’’

‘‘चिन्ता एवं अवसाद दोनों ही तनाव के क्रमिक सांवेगिक प्रभाव है। अति गंभीर तनाव कालान्तर में चिन्ता में परिवर्तित हो जाता है तथा दीर्घ स्थायी चिन्ता अवसाद का रूप ले लेती है।’’

जानिए क्या होता है चिंतन –  जब हम किसी बात को लेकर मन में कुछ पल के लिए सोचे और सोचने के बाद हमें शांति, एकाग्रता, उत्साहपूर्ण और प्रेम की अनुभूति होने लगे तो उसे हम चिंतन कह सकते हैं।

चिंतन के रूप – वर्तमान समय में इंसान किसी बात को लेकर चिंतन जरूर करता है। आज हम आपको चिंतन के रूप के बारे जागरूक करेंगे। ताकि हमारी भविष्य की पीढ़ी अच्छी राह मिले।

सकारात्मक चिंतन –  ओह शब्द पढ़ते ही मन में कुछ अच्छे ख्याल आने शुरू हो जाते हैं। वैसे आना भी स्वाभाविक है क्योंकि हम ठहरे इंसान….. हाँ हाँ… थोड़ा हंस लेते हैं। मित्रों  वर्तमान परिस्थितियों में अगर देखा जाए तो एक गहरी चिंता पूरे विश्व के सामने खड़ी हो गई है। और वो हम सब जानते ही हैं। समझ भी गए होंगे… वो है नोवेल कोरोना वायरस का कहर जो पूरे विश्व में फैल गया है। जिसका इलाज पूर्णतः अभी हुआ नहीं है। हजारों की संख्या में लोगों की मौते भी हो गई है। अब अगर हम उस चिंता पर सकारात्मक ऊर्जा से चिंतन करना शुरू कर दिया जाए तो परिणाम अपने स्वयं, परिवार, समाज, क्षेत्र और देश के लिए अच्छा रहेंगा। कहने का तात्पर्य यह है कि कोरोना वायरस के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए हम सरकार द्वारा जो हमे सावधानी रखने की सलाह दी जाती है। उन सावधानियों को समझे उस पर मनन करे। क्योकि वर्तमान स्थिति को देखते हुए कोरोना वायरस से बचने का एकमात्र उपाय बचाव ही है। यानी हम अपने आप को कितना सुरक्षित रख सकते हैं। *मित्रों* पूरी दुनिया विषम परिस्थितियों से गुजर रही है। हमे आवश्यकता है उस पर सकारात्मक चिंतन कर सभी को जागरूक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाए।

नकारात्मक चिंतन – ओह पड़ गए न सोचने की अब किसकी बात होने जा रही है। तो मित्रों आज हम चिंतन के दूसरे रूप जो सदियों से मानव जाति के लिए नुकसानदेह रहा है वो है नकारात्मक चिंतन। चलो हम वर्तमान परिस्थितियों पर ही विश्लेषण करे… आज हमारे सामने कोरोना वायरस के कहर को लेकर जो चारों ओर घमासान मचा हुआ है। हम उसको समझ नहीं रहे हैं। कुछ लोग उस पर नकारात्मक चिंतन करने में लगे हुए हैं। कोरोना वायरस के प्रभाव को हल्के में ले रहे हैं। उसके ऊपर न जाने कितने हँसी मजाक के संदेश, वीडियो बना रहे हैं। जो हमारे लिए घातक हो सकता है। क्योकि कोरोना वायरस की जागरूकता के बिना हम उसको रोक नहीं सकते हैं। और यह सब नकारात्मक चिंतन का ही एक भाग है। जिसका परिणाम कैसा होगा उसके बारे में हम कह नहीं सकते हैं। जैसा नाम वैसे परिणाम होंगे।

नकारात्मक चिंतन से फैलती है अफवाहें – ओह…. सबसे बड़ा वायरस जो कोरोना से भी तेज फैलता है वो है नकारात्मकत चिंतन से फैलती अफवाहें। *मित्रों*  वर्तमान में इन अफवाहें से बच के रहना होगा। किसी प्रकार का भ्रामक संदेश  फैलाने की कोशिश ना करे। हमें सोशल मीडिया पर सावधानी रखनी होगी। और एक अच्छे जागरूक इंसान बनने की कोशिश करनी होगी।

मित्रों आपसे सकारात्मक चिंतन में सहयोग की आशा –  मित्रों वर्तमान समय में साफ़ सफाई का विशेष ध्यान रखें। यही सबसे बड़ा उपाय है। किसी भीड़ भाड़ वाले इलाकों में एक पल भी नहीं रुके। किसी स्वास्थ्य संबधी कोई तकलीफ हो तो उसे छिपाने की कोशिश कताई ना करे। समय रहते अपने नजदीकी अस्पताल में दिखाने की मेहरबानी जरुर करे। तथा वर्तमान में अगर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो 24 घंटे का कर्फ्यू कोरोना वायरस चक्र में एक ब्रेक साबित हो सकता है। जी हां मित्रों 24 घंटे अगर कोरोना वायरस को नए इंसानी रूपी शरीर देखने को नहीं मिलेंगे तो वातावरण में मौजूद बड़ी संख्या में कोरोना वायरस खत्म हो जाएँगे। और हमारे लिए एक नए उजाले की किरण होगी।

मित्रों  हमारी सड़कें, बाज़ार ,दफ्तरों के दरवाजे, रैलिंग लिफ्ट आदि स्वतः ही स्टरलाइज हो जाएंगे। अंतः आप सभी से हाथ जोड़ कर निवेदन है कि आप इस मुहिम में साथ दें और सकारात्मक चिंतन कर अपने सकारात्मक विचारो से दूसरो को जागरूक करे । और हमारे लिए काम करने वाले जन सेवकों, चिकित्सकों व सैनिकों का उत्साह वर्धन करे।  चिंतन जरूरी है अवश्य करे, पर चिंता मुक्त रहकर

 

✍?कुमार जितेन्द्र

साईं निवास – मोकलसर, तहसील – सिवाना, जिला – बाड़मेर (राजस्थान)

मोबाइल न. 9784853785

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #29 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के ह्रदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे # 29 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

 

जो चाहे सुख ना घटे, होय दुखों का नाश ।

दासी बन तृष्णा रहे, मत बन तृष्णादास ।।

 आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

Our Fundamentals:

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga.  We conduct talks, seminars, workshops, retreats, and training.

Email: [email protected]

Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – एकादश अध्याय (21) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(अर्जुन द्वारा भगवान के विश्वरूप का देखा जाना और उनकी स्तुति करना )

 

अमी हि त्वां सुरसङ्घा विशन्ति केचिद्भीताः प्राञ्जलयो गृणन्ति।

स्वस्तीत्युक्त्वा महर्षिसिद्धसङ्घा: स्तुवन्ति त्वां स्तुतिभिः पुष्कलाभिः ॥

देवताओं  के संघ जो तुममें निरत प्रवेश

हाथ जोड़कर कर रहे विनती सतत विशेष

स्वस्ति , स्वस्ति यों कह रहे ऋषि व सिद्ध के संघ

करते  है प्रार्थनायें कई ,सब मिल के एक संग ।। 21 ।।

 

भावार्थ :  वे ही देवताओं के समूह आप में प्रवेश करते हैं और कुछ भयभीत होकर हाथ जोड़े आपके नाम और गुणों का उच्चारण करते हैं तथा महर्षि और सिद्धों के समुदाय ‘कल्याण हो’ ऐसा कहकर उत्तम-उत्तम स्तोत्रों द्वारा आपकी स्तुति करते हैं।। 21 ।।

 

Verily, into Thee enter these hosts of gods; some extol Thee in fear with joined palms: “May it be well.” Saying thus, bands of great sages and perfected ones praise Thee with complete hymns.।। 21 ।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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☆ राष्ट्रीय धैर्य की परीक्षा – मानवता के हित में सकारात्मक सन्देश ☆ डॉ आर के पालीवाल, डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’, डॉ राजेश पाठक ‘प्रवीण’, सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

राष्ट्रीय धैर्य की परीक्षा  – मानवता के हित में सकारात्मक सन्देश

(ई- अभिव्यक्ति सम्पूर्ण विश्व में विश्वयुद्ध से भी भयावह इस दौर में ईश्वर से मानवीय संवेदनाओं एवं मानवता की रक्षा की कामना करता है। बस पहल आपको करनी है। )

 

यह साहस और रौशनी दिखाने का समय है

लेखक का काम रोशनी दिखाना होता है न कि डर बढ़ाना या निराशा फैलाना। यह दहशत फैलाने का समय नहीं है बल्कि, साहस, संयम और धैर्य के साथ मजबूती से खड़े होकर एहतियात बरतने का समय है।

ऐसे समय में लेखन और पत्रकारिता की जिम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है।

 

कोरोना से बचाव के पांच सुझाव :

(यह एक बायालोजिस्ट के नाते दे रहा हूं)

सोशल डिस्टेंसिंग तो सबसे कारगर उपाय है ही, इसके साथ निम्न उपाय भी बहुत महत्वपूर्ण हैं ….

  1. डर, क्रोध, नकारात्मक सोच और स्ट्रैस हमारे शरीर की इम्यूनिटी कमजोर करते हैं और सकारात्मकता एवं हल्का फुल्का हास्य एवम मन पसन्द काम (पढ़ना, लिखना, बागवानी आदि) हमारी इम्यूनिटी बढ़ाते हैं और स्वस्थ एवं सुरक्षित रखते हैं।
  2. थोड़ी देर धूप में रहना, कपड़ों को धूप देना बहुत लाभकारी है
  3. स्वास्थ्यवर्धक ताजा पका सात्विक भोजन बीमारी को दूर रखता है।
  4. अच्छी नींद और दोपहर भोजन के बाद आराम जरूर कीजिए
  5. कुछ दिन के लिए कोरोना के डरावने टी वी समाचारों, व्हाटसएप मेसेज और नकारात्मक फेसबुक पोस्ट से दूर रहें।

यह पांच सूत्रीय फार्मूला लाक डाउन में स्वस्थ और प्रसन्न रहने का आजमाया हुआ नुस्खा है। इसमें आयुर्वेद एवम बायलॉजी का ज्ञान और ख़ाकसार का अनुभव शामिल है

इसका कोई कापी राइट नहीं है। जो चाहे कापी पेस्ट कर सकता है।

 डॉ आर  के पालीवाल 

 

अभावों व कठिनाईयों का दृढ़ इच्छाशक्ति से सामना करना होगा

मैं हिन्दी साहित्य संगम, विसुधा सेवा समिति एवं पाथेय संस्था की ओर से आप सभी को कोविड-19 अर्थात कोरोना वायरस बीमारी-2019 के संदर्भ में अवगत कराना चाहता हूँ कि इस विश्वव्यापी महामारी के प्रकोपकाल में जब इस बीमारी का निरोधक टीका अभी तक नहीं बना है, न ही इसका समुचित इलाज सुगम हुआ है, तब इन विषम परिस्थितियों में इससे बचाव के दृष्टिगत हमारा सबसे सामाजिक दूरी बनाए रखना ही श्रेष्ठ एवं सुरक्षित उपाय है। हमें थोड़े या बड़े अभावों व कठिनाईयों का दृढ़ इच्छाशक्ति से सामना करना होगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं शासन-प्रशासन के निर्देशों का पालन करना हमारा नैतिक दायित्व है। हमारे सहयोगी रवैये के चलते निश्चित रूप से हम कोरोना वायरस की बीमारी पर नियंत्रण पा सकेंगे। उम्मीद है, हम स्वस्फूर्त भाव से इन बातों पर अमल करेंगे।

सबके स्वस्थ रहने की कामना सहित।

  – डॉ विजय तिवारी किसलय‘, जबलपुर 

 

राष्ट्रीय धैर्य की परीक्षा

मानव सभ्यता के इतिहास में आज वक़्त के इस पड़ाव पर हम ‘विजय’ और ‘पराजय’ के बीच मे खड़े हैं. हमारी थोड़ी सी कोताही ‘दुर्भाग्य’ में बदल सकती है. इतने विशाल राष्ट्र को ‘लॉक-डाउन’ करना प्रधानमंत्री जी का बहुत बड़ा निर्णय है. प्रधानमंत्री जी ने हाथ जोड़कर निवेदन किया है, इसे मान लेना ही देशहित में है. यह सच है कि राष्ट्रीय धैर्य की परीक्षा की इस कठिन घड़ी में वक़्त एक तरह से ठहर सा गया है. इस विकसित सभ्यता के इतिहास में इसके पहले आदमी इस कदर लाचार कब हुआ था, पता नहीं. शायद प्रकृति आज हम इंसानों की परीक्षा ले रही है और कह रही है कि- “सुनो, मेरे ख़िलाफ़ हर साजिश का हिसाब, हर इंसान को करना होगा.”

ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में जब दुनिया एक ‘ग्लोबल विलेज’ बन गयी है, इसमें हम सबके सुख ही नहीं बल्कि हम सबके दुःख भी एक हो गए हैं. बेशक हम सबके लिए ये दिन कठिन परीक्षा के दिन हैं. वैश्विक संकट संसार की सभ्यताओं के परीक्षण का एक प्रयोजन भी होता है. मुझे पूरी उम्मीद है कि भारत और हम भारत के लोग इस आपदा पर ऐतिहासिक जीत हासिल करेंगें. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने आज जो कहा है वह सब उन्होंने देश और दुनिया के Epidemiologists, Virologists, Scientists के द्वारा सुझाए गए सुझावों के आधार पर कहा है. इसलिए हमें उनके दिशा-निर्देशों को बस मानते जाना है.

यह संघर्ष प्रकृति की दो सफ़ल species का संघर्ष है और हम सर्वाधिक सफ़ल species थे और रहेंगे. अकाल और महामारी इस देश की सामूहिक-स्मृति के लिए कोई नई बात नहीं है, हालाँकि यह जरूर है कि इस बार चुनौती बहुत बड़ी है. हमने ‘Small pox’ जैसे जानलेवा वायरस को हराया है जिसमें भारत ने अग्रणी भूमिका निभाई थी. ‘पोलियो’ और ‘प्लेग’ को हराया है, ‘स्वाइन फ्लू’ को भी नियंत्रित किया है. हमारी यह पावन भारत भूमि युद्धों से भले ही परेशान रही हो, मानवीय उत्पातों ने भले ही इसे रक्त रंजित किया हो, लेकिन प्रकृति की सर्वाधिक चहेती भूमि भी यही रही है, जहाँ समुद्र है तो रेगिस्तान भी है, जहाँ जंगल हैं तो हिमाच्छादित विशाल पर्वत भी हैं. तभी हर रंग, रूप, संस्कृति और भौगोलिक क्षेत्र के करोड़ों लोग हज़ारों वर्षों से यहाँ रहकर इसे सर्वाधिक जनसंख्या घनत्व का देश बनाते हैं. भारत की गौरवशाली संस्कृति में रचे-बसे हम लोग अपने भोजन में कुछ ऐसी औषधियों का उपयोग करते आए हैं, जो हमारी इम्युनिटी को बढ़ाती हैं. हम लोग हज़ारों सालों से हाथ मिलाने के बजाय ‘नमस्ते’ कर रहे हैं, पशुओं की पूजा कर रहे हैं, शाकाहारी भोजन कर रहे हैं और घर में प्रवेश करने के बाद नियमित हाथ-पैर धोते हैं. भारत की रक्षा हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता कर रही है और इसका मूल हमारी जीवन-शैली में है और यह वही जीवन-शैली है, जिसे अस्वच्छ मानकर पश्चिम एक लम्बे अर्से से हमारा उपहास उड़ाता रहा है. हम भोजन में भरपूर हल्दी लेने वाले लोग हैं इसलिए हम इतनी जल्दी बीमार नहीं पड़ते. हम भारत के लोग अक्सर बिना किसी ग्लानि और लज्जा के कहते हैं कि यह देश तो भगवान भरोसे चल रहा है- “जेहि विधि राखे राम…”. इस भाव के पीछे हमारा आशय यह होता है कि प्रकृति की स्वयं की जो चैतन्य-मेधा है, भारत की गति-मति उसके अनुरूप है. इस सच से मुँह नहीं मोड़ा जा सकता कि भोजन और भजन का जीवन में बड़ा महात्म्य है. जो तामसी और विषाक्त भोजन नहीं करेगा, आहार में औषध के तत्वों का सम्यक निर्वाह करेगा और जीवन के उपादानों, देवताओं और मातृभूमि के प्रति परम्परा से ही धन्यभाव रखेगा, वह प्राकृत-चेतना के प्रकोप का भाजन नहीं बनेगा. और फिर अगर सर्वनाश में सच्चरित्र का भी अवसान होना ही विधि के विधान में लिखा है तो कम से कम वह अपने साथ प्रारब्ध की गठरी लेकर नहीं जाएगा. मुझे भरोसा है कि हम इस वैश्विक त्रासदी पर जल्द ही विजय प्राप्त करेंगें. इस आश्वस्ति के मूल में परम्परा से संचित कर्म और संस्कार का चिंतन समाया हुआ है.

“जो जहाँ हैं वहीं ठहर जाइए,

वक़्त माकूल नहीं है सफर के लिए.”

  – डॉ राजेश पाठक प्रवीण ‘, सनाढ्य संगम, जबलपुर

 

जान है तो जहां है

चीन मध्ये निर्माण झालेल्या कोरोना नावाच्या विषाणू ची सगळ्या जगात दहशत निर्माण झाली आहे. या विषाणू ची बाधा म्हणजे “महामारी” असे दृश्य दिसतेय, पूर्वी “करोना” नावाची एक शूज कंपनी होती, या कंपनीची चप्पल वापरल्याचेही मला स्मरते आहे..आज एक मजेशीर विचार मनात आला, हा “क्राऊन” च्या  आकाराचा विषाणू विधात्या च्या पायताणाखाली चिरडला जावा.हीच प्रार्थना!

या आपत्तीमुळे संपूर्ण मानवजात हादरली आहे.योग्य काळजी तर आपण घेतच आहोत, घरात रहातोय, घरातली सर्व कामं स्वतः करतोय, कौटुंबिक सलोखा राखतोय, प्रत्येकाला ही जाणीव आहेच, “जान है तो जहां है।”

 सुश्री प्रभा सोनवणे, पुणे  

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अग्निकांड ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – अग्निकांड ☆

 

शरीर के साथ

धू-धू करके

जल रही थीं

गोबरियाँ,उपले,

लकड़ियाँ,

साथ ही

इन सबमें विचरते

असंख्य जीव..,

पार्थिव के सच्चे प्रेमी

मुर्दे के साथ

ज़िंदा जलने को

अभिशप्त..,

सोचता हूँ

त्रासदियों को

रोज ख़बर बनानेवाला मीडिया,

रोजाना के

इन भीषण

अग्निकांडों पर

अपनी चुप्पी

कब तो़ड़ेगा?

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

(2.10.2007)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य # 40 – आमंत्रण…… ☆ डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से  लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं।  आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ  “तन्मय साहित्य ”  में  प्रस्तुत है  अग्रज डॉ सुरेश  कुशवाहा जी  के काव्य संग्रह “शेष  कुशल है ”  से एक अतिसुन्दर कविता   “आमंत्रण……। )

☆  साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य  # 40 ☆

☆ आमंत्रण…… ☆  

 

समय मिले तो

आ कर हमको पढ़ लो

हम बहुत सरल हैं।

 

न हम पंडित, न हैं ज्ञानी

न भौतिक, न रसविज्ञानी

हम नदिया के बहते पानी

भरो अंजुरी

और आचमन कर लो

हम बहुत तरल हैं। समय मिलेतो …..

 

न मस्जिद , न चर्च शिवालै

ऊंच – नीच के, भेद न पाले

लगे सोच पर, कभी न ताले

निश्छल मन से

छंद मधुरतम गढ़ लो

ये स्वर्णिम पल हैं। समय मिले तो……

 

नहीं समझ से, गूंगे बहरे

न ही उथले, न हम गहरे

हम तो सहज मुसाफिर ठहरे

जीवन पथ पर

कदम मिला कर बढ़ लो

पावन सम्बल है। समय मिले तो……

 

मिलकर खोजें, नई दिशाएं

बंजर भू पर, पुष्प  खिलाएं

जो अभिलाषित है, वो पाएं

कलुषित भाव

विसर्जित सारे कर लो

मन गंगा जल है। समय मिले तो……

 

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

जबलपुर, मध्यप्रदेश

मो. 989326601

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 42 – कोरोना व्हायरस चे थैमान ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ  “कवितेच्या प्रदेशात” में  एक समसामयिक भावपूर्ण  आलेख एवं कविता “कोरोना व्हायरस चे थैमान“ ।  मैं सुश्री प्रभा जी के विचारों से सहमत हूँ एवं सम्पूर्ण विश्व में शान्ति एवं मानवता के लिए रचित प्रार्थना का सर्वजन हिताय एवं सर्वजन सुखाय के सिद्धांत हेतु  उनकी प्रार्थना में उनके साथ एक प्रार्थी हूँ । इस भावप्रवण अप्रतिम रचना  एवं प्रार्थना के लिए  उनको साधुवाद एवं  उनकी लेखनी को सादर नमन ।  

मुझे पूर्ण विश्वास है  कि आप निश्चित ही प्रत्येक बुधवार सुश्री प्रभा जी की रचना की प्रतीक्षा करते होंगे. आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी  के उत्कृष्ट साहित्य का साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 42☆

☆ कोरोना व्हायरस चे थैमान ☆ 

चीन मध्ये निर्माण झालेल्या कोरोना नावाच्या विषाणू ची सगळ्या जगात दहशत निर्माण झाली आहे. या विषाणू ची बाधा म्हणजे “महामारी” असे दृश्य दिसतेय, पूर्वी “करोना” नावाची एक शूज कंपनी होती, या कंपनीची चप्पल वापरल्याचेही मला स्मरते आहे..आज एक मजेशीर विचार मनात आला, हा “क्राऊन” च्या  आकाराचा विषाणू विधात्या च्या पायताणाखाली चिरडला जावा.हीच प्रार्थना!

या आपत्तीमुळे संपूर्ण मानवजात हादरली आहे.योग्य काळजी तर आपण घेतच आहोत, घरात रहातोय, घरातली सर्व कामं स्वतः करतोय, कौटुंबिक सलोखा राखतोय, प्रत्येकाला ही जाणीव आहेच, “जान है तो जहां है।”

आज चैत्र प्रतिपदेला माझी ही प्रार्थना सा-या विश्वा साठी—–

? प्रार्थना ?

 येवो प्रचंड शक्ती या प्रार्थनेत माझ्या

येथे पुन्हा नव्याने चैतन्य दे विधात्या

आयुष्य लागले हे आता इथे पणाला

हे ईश्वरा सख्या ये प्राणास वाचवाया

अगतिक नको करू रे तू धाव पाव आता

साई तुझ्या कृपेची आम्हा मिळोच छाया

लागो तुझ्याच मार्गी ओढाळ चित्त रामा

सारी तुझीच बाळे सर्वांस रक्षि राया

हे बंध ना तुटावे सांभाळ या जिवाला

देवा तुझ्याच हाती प्रारब्ध सावरायला

येथे पुन्हा नव्याने बहरोत सर्व बागा

नूतन वर्षाच्या हार्दिक शुभेच्छा!

 

© प्रभा सोनवणे

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

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मराठी साहित्य ☆ कविता ☆ विश्वमारी म्हणा किंवा महामारी ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। कुछ रचनाये सदैव  समसामयिक होती हैं।

ज प्रस्तुत है  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  द्वारा  मानवता के लिए मेरी कविता विश्वमारी या महामारी “ का मराठी भावानुवाद ।  मैं  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी  ( हिंदी , संस्कृत, अंग्रेजी एवं उर्दू के विद्वान ) एवं  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  का  हृदय से आभारी हूँ जो उन्होंने मेरे आग्रह को स्वीकार कर इस समसामयिक कविता का क्रमशः अंग्रेजी एवं मराठी  में भावानुवाद किया।  आप मौलिक हिंदी कविता एवं अंग्रेजी भावानुवाद निम्न लिंक्स पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं – 

 

☆ कविता –  विश्वमारी म्हणा किंवा महामारी ☆

 

विश्वमारी म्हणा किंवा  महामारी

तुम्ही मला काहीही म्हणा

नैसर्गिक आपत्ती  किंवा

मानव निर्मित षडयंत्र म्हणा.

अखेर हरणार तुम्हीच.

 

असेनही मी.. .  तुमच्या लेखी

भयानक नैसर्गिक आपत्ती

यापूर्वीही तुम्ही मला पाहिलय

वादळापूर्वीची शांतता म्हणून

सहन देखील केलय… !

प्रचंड घाबरून गेला होतात तुम्ही

चक्रीवादळे,  गारपीट

भुकंप, ज्वालामुखी  आणि त्सुनामी.

तुम्ही  अनुभवलीत या  आधी

ओझोन प्रणीत घालमेल

वैश्विक उष्णता

अनाठायी बाष्पीभवन

आणि नैसर्गिक समतोल ढासळणारी

अस्मानी संकटे

पण

तुम्हाला ते पटलं नाही

मग  आत्ता तरी मान्य करा…

ही नैसर्गिक आपत्ती नाही

मानव निर्मित षडयंत्रच आहे

ज्याचे कर्ते धर्ते तुम्हीच आहात

तुम्हीच धरलय वेठीला

निसर्गाला नाही

पण

समस्त मानव जातीला.

 

लाभली होती तुम्हालाही

नश्वर संसार – ब्रह्मांड

सुजलाम सुफलाम वसुंधरा

आणि

हा  अलौकिक  मानव जन्म

सृजनशील, रमणीय, विहंगम दृश्य

सहा  ऋतुचे सहा सोहळे

परीपूर्ण समृद्ध निरोगी जीवन

वनौषधी,  वनसंपदा

सुंदर रमणीय धबधबे

शांत समुद्र किनारे

आणि

आणि बरंच काही. . .

अमूल्य ठेव होती ही

आनंदी जीवन जगण्यासाठी.

 

पण नाही

तुम्ही तुमचेच म्हणणे खरे केले.

या सदाहरित, सुजलाम भुमी पेक्षा

‘वैश्विक ग्राम’ संकल्पना तुम्ही जवळ केलीत.

परंतु ‘वसुधैव कुटुंबकम’  हा  मूलमंत्र

तुम्ही सोयीस्करपणे विसरलात.

 

तुम्ही मानवता,  माणुसकी

याचही वर्गीकरण केले

रंगभेद, धर्म आणि जातियवादाच्या  नावाखाली.

प्राधान्य दिले तुम्ही

लढाई, युद्ध, विश्वयुद्ध आणि राजकारणाला

प्राधान्य दिले महाशक्ती,  अणुशक्तीला

पर्यावरणाच्या असंतुलित लिकसनाला

मद्य,  मांसाहार  आणि अवैध तस्करीला

विनाश कारी अस्त्र शस्त्रांना

स्वसंहारक जैविक  विघातक शस्त्रांना

अहिंसे ऐवजी हिंसेला

प्रेमा  ऐवजी ईर्षेला..  स्वार्थाला

तुम्ही तुमची सारी ताकद

खर्ची घातलीत विध्वंसात

गॅस चेम्बर आणि कॉन्सेंट्रेशन कैम्प

हिरोशिमा-नागासाकी आणि भोपाल गॅस दुर्घटना

आहेत साक्षीला.

तुम्ही विसरलात

किती केल्या भृणहत्या

गर्भजल परीक्षा

प्रत्येक सेकंदाला वाढणारी महामारी

कुपोषण समस्या, बेरोजगारी साथीचे रोग

आणि

द्वेष, हिंसा यांनी घेतलेले बळी…

पण तेव्हाच जर का

सारी शक्ती  एकवटून

जर केले असते माणुसकीचे संघटन

जर दिला असता  आधाराचा हात

आणि केले असते प्रथमोपचार

तर लाभले  असते आरोग्य वरदान.

 

विश्वमारी म्हणा किंवा  महामारी

तुम्ही मला काहीही म्हणा

नैसर्गिक आपत्ती  किंवा

मानव निर्मित षडयंत्र म्हणा.

अखेर हरणार तुम्हीच.

 

आज जेव्हा तुम्ही

स्वतःला  आरश्यात पाहिले

तेव्हा खरे घाबरलात

आपापल्या घरात दडून बसलात

आत्ता  उठा

आणि लढा माझ्याशी

तुम्हीच  आहात जबाबदार

या परिस्थितीतीला

अजूनही वेळ गेलेली नाही

निसर्ग समतोल साधा

निसर्गाविरूद्ध जाऊन वागू नका

रंगभेद, धर्म  आणि जातियवाद

यातून बाहेर पडा

माणसातल्या माणुसकी वर प्रेम करा.

 

अगदी स्वतःसाठी नाही

पण येऊ घातलेल्या तुमच्या

पुढील पिढीसाठी तरी

आपल्या जन्माचे सार्थक करा.

तुम्ही जगत  आहात

मी पण जगते आहे

तुम्हाला देण्यासाठी

 

सृजनतेचे वरदान आहे.

ही सुजलाम सुफलाम वसुंधरा

तुमची होती,  तुमची आहे

आणि तुमच्या पुढील पिढीकडे ही

समृद्ध होऊन जाईल

 

तुमच्यातला माणूस फक्त

जीवंत ठेवा

हा शाश्वत ठेवा जपण्यासाठी. . . !

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ गांधी चर्चा # 21 – महात्मा गांधी : आज़ादी का ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो आन्दोलन ☆ श्री अरुण कुमार डनायक

गांधीजी के 150 जन्मोत्सव पर  विशेष

श्री अरुण कुमार डनायक

(श्री अरुण कुमार डनायक जी  महात्मा गांधी जी के विचारों केअध्येता हैं. आप का जन्म दमोह जिले के हटा में 15 फरवरी 1958 को हुआ. सागर  विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के उपरान्त वे भारतीय स्टेट बैंक में 1980 में भर्ती हुए. बैंक की सेवा से सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृति पश्चात वे  सामाजिक सरोकारों से जुड़ गए और अनेक रचनात्मक गतिविधियों से संलग्न है. गांधी के विचारों के अध्येता श्री अरुण डनायक वर्तमान में गांधी दर्शन को जन जन तक पहुँचानेके लिए कभी नर्मदा यात्रा पर निकल पड़ते हैं तो कभी विद्यालयों में छात्रों के बीच पहुँच जाते है. 

आदरणीय श्री अरुण डनायक जी  ने  गांधीजी के 150 जन्मोत्सव पर  02.10.2020 तक प्रत्येक सप्ताह  गाँधी विचार, दर्शन एवं हिन्द स्वराज विषयों से सम्बंधित अपनी रचनाओं को हमारे पाठकों से साझा करने के हमारे आग्रह को स्वीकार कर हमें अनुग्रहित किया है.  लेख में वर्णित विचार  श्री अरुण जी के  व्यक्तिगत विचार हैं।  ई-अभिव्यक्ति  के प्रबुद्ध पाठकों से आग्रह है कि पूज्य बापू के इस गांधी-चर्चा आलेख शृंखला को सकारात्मक  दृष्टिकोण से लें.  हमारा पूर्ण प्रयास है कि- आप उनकी रचनाएँ  प्रत्येक बुधवार  को आत्मसात कर सकें.  आज प्रस्तुत है इस श्रृंखला का अगला आलेख  “महात्मा गांधी : आज़ादी का ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो आन्दोलन। )

☆ गांधीजी के 150 जन्मोत्सव पर  विशेष ☆

☆ गांधी चर्चा # 21 – महात्मा गांधी : आज़ादी का ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो आन्दोलन

द्वितीय विश्व युद्ध के समय गठित ब्रिटिश वार कैबिनेट ने कुछ प्रस्ताव के साथ सर स्टैफर्ड क्रिप्स को भारत भेजा ताकि काँग्रेस व ब्रिटिश सरकार के बीच जारी गतिरोध समाप्त किए जा सकें।यह प्रयास क्रिप्स मिशन  के नाम से जाना गया। चूंकि इन प्रस्तावों में कोई खास नई बात न थी अत: काँग्रेस व गांधीजी इससे सहमत न हुये और सर स्टैफर्ड क्रिप्स बैरंग वापस लौट गए। बम्बई में 7 व 8 अगस्त 1942 को अखिल भारतीय काँग्रेस कमेटी ने खुली सभा कर भारत छोड़ो प्रस्ताव पास किया। गांधीजी  देश को अगले दिन 9 अगस्त  को विशाल आम सभा में ‘करो या मरो’ का जोशीला नारा देते उसके पहले ही वे गिरफ्तार कर लिए गए। पंडित जवाहरलाल नेहरू अपनी किताब डिस्कवरी आफ इंडिया में लिखते हैं –

“8 अगस्त 1942 को काफी रात गए यह प्रस्ताव आखरी तौर पर मंजूर हुआ। चंद घंटों बाद, 9 अगस्त को सुबह बम्बई में और देश में दूसरी जगहों से बहुत-सी गिरफ्तारियाँ हुई। सारे प्रमुख नेता अचानक ही अलग हटा दिये गए थे और जान पड़ता है कि किसी की समझ में न आता था कि क्या करना चाहिए। विरोध तो होता ही और अपने-आप ही उसके प्रदर्शन हुये। इन प्रदर्शनों को कुचला गया, उन पर गोली चलाई गई, आँसू गैस इस्तेमाल की गई और सार्वजनिक भावना को प्रकट करने वाले सारे तरीके रोक  दिये गए। और तब ये सारी दबी हुई भावनाएँ फूट पड़ी और शहरों में और देहाती हलकों में भीड़ें इकट्ठी हुई और पुलिस और फौज के साथ खुली लड़ाई हुई। इस तरह 1857 के गदर के बाद बहुत बड़ी जनता हिदुस्तान में  ब्रिटिश राज्य के ढांचे को चुनौती देने के लिए पहली बार बलपूर्वक उठ खड़ी हुई। यह चुनौती बेमानी और बेमौके थी, क्योंकि दूसरी तरफ सुसंगठित हथियारबंद ताकत थी। यह हथियारबंद ताकत इतिहास में पहले किसी मौके पर इतनी ज्यादा नहीं थी।“

करेंगे या मरेंगे और इस मंत्र ने देश दीवाना बना दिया

आज अगस्त क्रान्ति की शुरुआत की वर्षगांठ है। आज से छियत्तर वर्ष पूर्व महात्मागांधी के आह्वान पर देश भर में राष्ट्र को स्वतंत्र कराने का जूनून जन जन में व्याप्त हो गया था। कुछ मुट्ठी भर लोगों और एकाध संगठन को छोड़ सारा देश महात्मागांधी के मंत्र करेंगे या मरेंगे की भावना के साथ अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन के साथ खड़ा हो गया।

बलिया का नाम मैंने अपनी युवावस्था में तब सुना जब जय प्रकाश नारायण की जीवनी पढ़ते समय जाना कि उनका जन्म स्थान सिताबदियारा बलिया से लगा हुआ है। फिर बलिया चन्द्रशेखर की कर्म स्थली भी थी। वहीं चन्द्रशेखर जो कांग्रेस में युवा तुर्क थे, इन्दिरा गांधी की नीतियों के घोर विरोधी और उनके मंत्रीमंडल को छोड़ने वाले  समाजवादी जो आपातकाल के दौरान जेल भी गये, बाद को भारत के प्रधानमंत्री बने तथा जिनके समय हमें सोना गिरवी रख देश की प्रतिष्ठा बचानी पड़ी।

स्टेट बैंक की लंबी सेवा के दौरान मैं अनेक बार बलिया वासियों से मिला और मैंने उनसे बलिया की क्रांति के बारे में जाना पर सटीक जानकारी तो मुझे पढ़ने मिली राजस्थान के कांग्रेसी  श्री गोवर्धन लाल पुरोहित द्वारा रचित  स्वतंत्रता-संग्राम का इतिहास में। वे लिखते हैं :-

” नौ अगस्त को यहां के सभी कार्यकर्ता बंदी बना लिए गए। सरकारी दमन के बाद भी  10 से  12 अगस्त को बलिया में पूर्ण हड़ताल रही। 12 अगस्त  को सारे जिले में तार काटने व यातायात के सभी साधन नष्ट करने का काम शुरु हुआ।14अगस्त तक तो सारे बलिया जिले का संबंध पूरे प्रांत से तोड़ डाला गया। 15अगस्त को जिला कांग्रेस के दफ्तर पर कांग्रेस का फिर से अधिकार हो गया। यहां के मजिस्ट्रेट ने जनता के सामने आत्म समर्पण कर दिया।

सोलह अगस्त को कांग्रेस कमेटी की आज्ञा से समस्त बाजार खुले। पुलिस ने सत्ता को जाते देख, गोली चला दी, परंतु स्वातंत्र्य वीरों पर उसका कुछ भी असर नहीं हुआ।19अगस्त को बलिया में ब्रिटिश शासन समाप्त कर दिया गया।सभी कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को जेल से छोड़ दिया गया।20अगस्त को चित्तू पांडे की अध्यक्षता में नवीन राष्ट्रीय सरकार की स्थापना हुई।इस सरकार के अधीन गांवों में ग्राम पंचायतें स्वतंत्र रुप से काम करने लगीं। 22 अगस्त तक बलिया में जनता सरकार चलती रही। 23 अगस्त की रात को गोरी पल्टन ने बलिया में प्रवेश किया, लूट खसोट व मारपीट का तांडव नृत्य होने लगा। सेना से मुठभेड़ करते हुए 46स्वातंत्र्य वीर काम आए। एक सौ पांच मकान फूंक दिये गये।लगभग अडतीस लाख रुपए की हानि समस्त जिले को उठानी पड़ी।

मन्मथ नाथ गुप्त ने लिखा कि बलिया प्रजातंत्र बना और कांग्रेस कमेटी का दफ्तर उसका केन्द्र बना। पंडित चीतू पांडे पहले जिलाधीश कहलाये। सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक  इस समय तक जिले के दस थानों में से सात पर क्रान्तिकारियों का अधिकार हो गया था। शहर में ढिंढोरा पीट कर यह बता दिया गया कि अब बलिया में कांग्रेसी राज्य है।

सेना ने बलिया में प्रवेश करते हुए घोर दमन चक्र चलाया। सबसे पहले नौजवानों को पकड़ा गया। इन्हें ठोकरों से मारा गया, जेलों में अनेक कष्ट दिये गये। उमाशंकर दीक्षित, सूरज प्रसाद, हीरा पंसारी, विश्वनाथ, बच्चालाल व राजेन्द्र लाल बेरहमी से पीटे गए। बलिया के बाद अन्य गांवों में भी सेना ने कहर ढा दिया। सुखपुरा गांव के महन्त को इसलिए पीटा गया कि उसने बलिया प्रजातंत्र सरकार को दस हजार रुपए का चंदा दिया था। बासडी में जहां सरकारी खजाना लूटा गया था, वहां पर अंग्रेज सेनापति नेदरशील ने अंधाधुंध गोलियां चलवाई। रामकृष्ण सिंह व वागेश्वर सिंह को इतना पीटा गया कि वे शहीद हो गये। बलिया के तीस गांव में आग लगाई गई। रेवती गांव का सारा बाजार लूट लिया गया। जेल में बंद क्रान्तिकारियों पर अत्याचार का वर्णन यहां लिखते भी नहीं बनता है। थोड़े में गोरी सरकार के काले कारनामों की यह पराकाष्ठा थी।

देवनाथ उपाध्याय ने 64ऐसे लोगों की सूची तैयार की है जो बलिया क्रान्ति में शहीद हुए। वास्तव में इनका बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अमिट रहेगा।”

यह तो बलिया की कहानी है। सारे देश में भारत छोड़ो आंदोलन  फैल गया। 1857के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद विदेशी सत्ता के विरूद्ध भारत में यह सबसे बड़ा व व्यापक संघर्ष था। दमोह जहां कभी मैंने पढ़ाई की वहां के महादेव गुप्ता सबसे कम उम्र के स्वतंत्रता सेनानी बने। वे शायद तब नाबालिग ही थे जब उन्होंने कांग्रेस का झंडा दमोह के  थाने या स्कूल भवन में फहराया था। गली गली शहर शहर स्वतंत्रता के दीवाने महात्मागांधी के मंत्र करो या मरो को दीवारों पर लिख रहे थे या जोर शोर से बोल रहे थे। इस अगस्त क्रान्ति का भारत की स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान है।

आज पद्मनाथ तैंलग का एक लेख सन 42 का क्रान्ति-पर्व पढ़ने मिला। शायद वे सागर के निवासी होंगे ऐसा अंदाज मैंने लेख पढ़कर लगाया। इस लेख की दो घटनाओं ने मुझे आकर्षित भी किया और प्रभावित भी। आप भी सुनिए :-

” ज्यों ही मैंने अपने साथी पं ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी के साथ अपनी स्कूल की नौकरी से त्याग पत्र दिया हम लोग की गिरफ्तारी के वारंट निकल गए। ज्योतिषी जी गिरफ्तार होकर जेल भेज दिए गए और सागर के डिप्टी कमिश्नर श्री एस.एन. मेहता ने भी मुझे गिरफ्तार करते हुए मेरे पाकिट में जो सत्याग्रह संबंधी  पर्चे थे, उन्हें फड़वा दिया ताकि मेरे उपर जुर्म साबित न हो सके। कुछ दिन पहले भी इन्ही श्रीनाथ मेहता ने  कटरा बाजार आंदोलन के समय अपने अंग्रेज पुलिस कप्तान वाटसन का हाथ पकड़ कर उसे रिवाल्वर की गोली चलाने से रोका था, जो एक नवयुवक सत्याग्रही पर रिवाल्वर तान ही रहा था, क्योंकि उस नवयुवक ने पुलिस कप्तान वाटसन के सर पर डंडा मारा था। उन दिनों विदेशी शासनकाल में भी ऐसे अधिकारियों की कमी नहीं थी। श्रीनाथ मेहता उनमें  एक थे।”

बाद में शायद इन घटनाओं के कारण उनका तबादला अंग्रेज सरकार ने कर दिया और उनकी जगह एक अंग्रेज को सागर का डिप्टी कमिश्नर बनाया गया। श्रीनाथ मेहता खेड़ावाल ब्राह्मण थे । वे दमोह जिले की हटा तहसील में पैदा हुए थे और हम सबके  पूर्वज कोई तीन सौ बरस हुए गुजरात से आकर पहले पन्ना और फिर हटा, दमोह में बस गए।

दूसरी घटना और भी लोमहर्षक है और बुंदेलखंडी गौरव की प्रतीक है।

“उन दिनों स्वाधीनता संग्राम की  लहर देहातों तक में फ़ैल  गई थी हम लोग प्रथम श्रेणी के सुरक्षा बंदी के रुप में सागर जेल में खुले मैदान में बैठे हुए थे कि आठ नौ साल का एक देहाती बालक कुर्ता और चड्डी पहने तथा अपना स्कूल बैग दबाए कुछ देहाती सत्याग्रहियों को लेकर जेल के अंदर दाखिल हुआ। हम लोगों ने उससे सरलता से पूंछा काय भैया , तुम्हें अपने बऊ द्ददा की याद तो आऊत हुईये। तुम माफी मांग के चले जैहो।

उस छोटे भोले भाले अपढ़ देहाती बालक ने जिस सरलता और निर्भीकता से उत्तर दिया, उसको सुनकर हम लोग दंग रह गये।उस बालक ने कहा कुतका मांगे माफी। हमारी बऊ ने कै दई है कि बैटा मर जइयो पै माफी मांग के अपनों करिया मौं हमें न दिखाइयो। एक टुरवा तो बिमारी से मर गओ, एक देस की खातिर सई, दादा मैं तो अपना जो बस्ता दबाए पढबै मदरसा जा रओ थो। रस्ता में कछु गांव वारे पेड़े काट के गिरफ्तार हो रये हते। मैंने भी एक कुल्हरिया मांग के एक पेड़े पै हनके दो हत दैं मारे। बस पुलिस को एक सिपाही हमें सोई गिरफ्तार करकें बंडा से मोटर गाड़ी पै बिठार के इनै लै आऔ। दादा, आपई  बताओ हम माफी कायखों मांगन चले।”

ऐसा जादू था महात्मा गांधी के आह्वान अंग्रेजों भारत छोड़ो और उनके मूल मंत्र करेंगे या मरेंगे का। इस बालक सरीखे असंख्य ऐसे लोग उस आंदोलन के साक्षी बने जिनके मन में आजादी की लौ महात्मागांधी ने जगाई और वे सब निस्वार्थ भाव से इस आंदोलन में कूद पड़े। उन सबको नमन।

 

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

(श्री अरुण कुमार डनायक, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं  एवं  गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित हैं। )

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हिन्दी साहित्य ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 18☆ कविता (हाईकु) – प्रकृति ☆ श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि‘

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’  

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’ जी  एक आदर्श शिक्षिका के साथ ही साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे गीत, नवगीत, कहानी, कविता, बालगीत, बाल कहानियाँ, हायकू,  हास्य-व्यंग्य, बुन्देली गीत कविता, लोक गीत आदि की सशक्त हस्ताक्षर हैं। विभिन्न पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत एवं अलंकृत हैं तथा आपकी रचनाएँ आकाशवाणी जबलपुर से प्रसारित होती रहती हैं। आज प्रस्तुत है  हाईकु शैली में  रचित एक भावपूर्ण कविता  “ प्रकृति  ।  इस अतिसुन्दर रचना के लिए श्रीमती कृष्णा जी बधाई की पात्र हैं।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 18☆

☆ हाईकु – प्रकृति   ☆

 

मचा बवंडर

त्राहि त्राहि मची

जल समाहित

 

बाढ़  उफनती

बढ़ती न रुकती

रौद्र दिखती.

 

जड़ें हिलाती

कमाल ही करती

अस्तित्व समझाती

 

मत खेलो

मुझको तो समझो

माँ तुम सबकी.

 

कहीं खाली

कहीं  भर दिया

लिया दिया.

 

 

© श्रीमती कृष्णा राजपूत  ‘भूमि ‘

अग्रवाल कालोनी, गढ़ा रोड, जबलपुर -482002 मध्यप्रदेश

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