आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – एकादश अध्याय (19) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(अर्जुन द्वारा भगवान के विश्वरूप का देखा जाना और उनकी स्तुति करना )

 

अनादिमध्यान्तमनन्तवीर्यमनन्तबाहुं शशिसूर्यनेत्रम् ।

पश्यामि त्वां दीप्तहुताशवक्त्रंस्वतेजसा विश्वमिदं तपन्तम् ।। 19।।

आदि मध्य औ” अन्त से ,रहित अमित विस्तार

जिसका बल अनुमेय न  , जिसके हाथ हजार

चंद्र – सूर्य हैं आँख दो , मुख ज्वाला- अंगार

जिसके दीप्त प्रकाश से भासित यह संसार ।। 19।।

भावार्थ :  आपको आदि, अंत और मध्य से रहित, अनन्त सामर्थ्य से युक्त, अनन्त भुजावाले, चन्द्र-सूर्य रूप नेत्रों वाले, प्रज्वलित अग्निरूप मुखवाले और अपने तेज से इस जगत को संतृप्त करते हुए देखता हूँ।। 19।।

 

I see Thee without beginning, middle or end, infinite in power, of endless arms, the sun and the moon being Thy eyes, the burning fire Thy mouth, heating the entire universe with Thy radiance.

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – कोरोना वायरस और हम- 2 ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – कोरोना वायरस और हम- 2☆

1) वुहान.., मानो शब्द ही संक्रमित हो चला है। कोई उच्चारण भी नहीं करना चाहता। चीन के हुबेई प्रांत की राजधानी इस शहर से शुरू हुआ कोरोनावायरस और कोविड-19 का कहर। इसी शहर में फँसे हैं कुछ भारतीय नागरिक, विशेषकर छात्र। भारत सरकार लेती है एक दायित्वपूर्ण और साहसिक निर्णय। एयर इंडिया के पायलट, को-पायलट, क्रू ने बांधा मास्क, आवश्यक दवाइयाँ लिए साथ चली डॉक्टरों की टीम। ग्रामीण मेले में ‘मौत का कुआँ’ खेल दिखाया जाता है। ज़रा-सा संतुलन बिगड़ा कि मौत ने निगला। मौत के कुएँ में उतरा विमान, भारतीयों को साथ लिया और अपने देश के लिए भारी उड़ान।

2) इटली हो, ईरान, फिलीपींस, स्पेन या दुनिया का कोई भी देश, कर्तव्य, राष्ट्रनिष्ठा और साहस की यह गाथा हर जगह लागू है। देश या देश से बाहर, हमारा एक भी नागरिक संकट में है तो हमारी सरकार उसे उबारने के लिए तत्पर खड़ी है।

3) सरकारी अस्पतालों में भीड़ है। डॉक्टर, नर्सिंग स्टाफ, सफाई कर्मचारी, कपड़े धोने वाला सब अपनी ड्यूटी पर हैं। अपने प्राण की चिंता न कर हरेक मुस्तैदी से डटा है मरीज़ों की सुश्रुषा में।

4) कोविड-19 का संक्रमण बढ़ रहा है। सरकार ने शहरों को सैनिटाइज़ करने का निर्णय किया है। सफाई कर्मचारी अपने कर्तव्य का निर्वाह करते हुए शहर का कोना-कोना सैनिटाइज कर रहे हैं।

5) रेल चल रही है, ड्राइवर अपनी ड्यूटी पर है। बस चल रही है, कंडक्टर और ड्राइवर ऑनड्यूटी हैं।

6) इस वैश्विक संकट का विश्व की अर्थव्यवस्था पर दुष्परिणाम होगा। लेकिन बैंक बंद कर दिए तो व्यवस्था चरमरा जाएगी। अत: समर्पण से अपना काम कर रहे हैं, बैंककर्मी।

7) भय, अफवाहों को जन्म देता है। ऐसी स्थिति में अपने प्राणों को संकट में डाल कर यथासंभव ऑनग्राउंड रिपोर्टिंग कर रहे हैं प्रसार माध्यमों के कर्मी।

8) मनुष्य ‘सोशल एनिमल’ है। हम ‘फिजिकल डिस्टेंसिंग मोड’ पर हैं लेकिन सोशल मीडिया ने हमें सोशल बनाए रखा है। इंटरनेट और टेलीफोन विभाग के कर्मी चौबीस घंटे मुस्तैद हैं।

9) व्यापार का लाभ नहीं दायित्व का बोध है जो मेडिकल स्टोर्स,पंसारी, फल, सब्जी, दूध की दुकान, पेट्रोल, सीएनजी, डीजल के पम्प पर मालिक और कर्मचारी को निरंतर कार्यरत रखे हुए है।

10) ‘होम क्वारंटीन’, ‘आइसोलेशन’, ‘वर्क फ्रॉम होम’ अनेक विकल्पों का भार एक साथ ढो रही है महिलाएँ। परिवार के छोटे-बड़े हर एक के लिए दिन-रात जुटी है महिलाएँ।

11) ये कुछ उदाहरण भर हैं। अनेक ऐसे क्षेत्र हैं जिनके कर्मियों के बल पर देश चल रहा है और हम सबका अस्तित्व टिका है। इन सब के साथ खड़ी दिखती है भारत सरकार और राज्य सरकारों की सक्रियता, केंद्रीय स्वास्थ्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्रालय की चेतना।

महाभारत में योगेश्वर श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपना विराट रूप दिखाया था। असंख्य राष्ट्रसेवकों के रूप में योगेश्वर, कलयुग के इस महाभारत में साक्षात दृष्टिगोचर हो रहे हैं।

आज शाम 5:00 बजे अपने घर की बालकनी में आकर थाली, ताली, घंटानाद, शंखनाद से इस विराट रूप को नमन अवश्य कीजिएगा। साथ ही नमन कीजिएगा उस विलक्षण सेनापति को भी जिसके नेतृत्व में देश कोरोना से अभूतपूर्व युद्ध लड़ रहा है।….जय हिंद!

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

22.3 2020, 13.21 बजे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 39 ☆ – विश्व कविता दिवस विशेष – जीवन प्रवाह ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  अगली कड़ी में   wishw कविता दिवस पर उनकी विशेष कविता   जीवन प्रवाह । आप प्रत्येक सोमवार उनके  साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।) 

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 39

☆  विश्व कविता दिवस विशेष  – जीवन -प्रवाह  ☆ 

(विश्व कविता दिवस पर जीवन की कविता – – – )
सबसे बड़ी होती है आग,

     और सबसे बड़ा होता है पानी।

तुम आग पानी से बच गए,

     तो तुम्हारे काम की चीज़ है धरती ।

धरती से पहचान कर लोग ,

तो हवा भी मिल सकती है ,

धरती के आंचल से लिपट लोगे

तो रोशनी में पहचान बन सकती है ,

तुम चाहो तो धरती की गोद में ,

       पांव फैलाकर सो भी सकते हो ,

धरती को नाखूनों से खोदकर ,

        अमूल्य रत्नों  को भी पा सकते हो ,

या धरती में खड़े होकर ,

        अथाह समुद्र नाप भी सकते हो ,

तुम मन भर जी भी सकते हो ,

         धरती पकडे यूं मर भी सकतेहो ,

कोई फर्क नहीं पड़ता ,

          यदि जीवन खतम होने लगे ,

असली बात तो ये है कि ,

धरती पर जीवन प्रवाह चलता रहे

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ कोरोना -केवल वायरस नहीं है! ☆ श्रीमती तृप्ति रक्षा

श्रीमती तृप्ति रक्षा  

(श्रीमती तृप्ति रक्षा जी  शिक्षिका हैं एवं  आपकी वेब पोर्टल पर कवितायेँ प्रकाशित होती रहती हैं। संगीत, पुस्तकें पढ़ना एवं सामाजिक कार्यों में विशेष अभिरुचि है।  विचार- स्त्री हूँ स्त्री के साथ खड़ी हूँ।  आज  प्रस्तुत है  आपकी एक समसामयिक कविता  “कोरोना -केवल वायरस नहीं है!” )

☆ कोरोना -केवल वायरस नहीं है! 

 कोरोना -केवल वायरस  नहीं है,
यह प्रकोप है
परमात्मा का ,
जिसे हमने खाद और पानी दियाहै
अपने अपराधों और
कुकृत्यों को बढ़ाकर ।
यह संतुलन है
हमारी प्रकृति का
जिसे हमने तार-तार किया है
धरती और पहाड़ों को बेधकर।
यह सूचक है
हमारी महत्त्वकांक्षा का,
जिसे हमने विकसित किया है
जैविक हथियारों के रूप में
मौत का सामान बनाकर।
यह आह्वान है
हमारी संस्कृति का
जिसे हम भूलने लगे  है,
और आगे बढ़ चले हैं
सब कुछ पीछे छोड़ कर।
यह अनुभूति है
उस दर्द का
जिसे हम महसूस कर सकते हैं,
आपस में  दूरी बढ़ाकर
या एक दूसरे को खोकर।
यह लड़ाई है
हम सबकी
आइए मिलकर लड़े,
मानवता के लिए
सारी कटुता भुलाकर।

© तृप्ति रक्षा

सिवान, बिहार

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ कोरोना कैसे होगा, कोई समझाए? ☆ श्री विनीत खरपाटे 

श्री विनीत खरपाटे 

( श्री  विनीत  खरपाटे जी का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। आप ऐरोली नवी मुंबई में व्यवसायी हैं। विगत 30 वर्षों से समय समय पर स्वान्तः सुखाय कविता व लेख लिख कर संग्रहित करते हैं । अब तक चार हजार से अधिक रचनाएँ संग्रहित हैं । स्थानीय सामाजिक कार्यों में सक्रिय सहभागिता।  कभी प्रकाशित नहीं किया। यह आपकी प्रथम प्रकाशित रचना है। इसके लिए श्री विनीत जी को बधाई एवं शुभकामनाएं। आज प्रस्तुत है उनकी एक  समसामयिक  कविता  कोरोना कैसे होगा, कोई समझाए?)

☆ कोरोना कैसे होगा कोई समझाए ?

कुछ ना होगा जानू मैं यह

कैसे होगा कोई समझाए?

यह करोना तो फैलेगा

जो विदेश में रहता है।।

व्यक्ति से व्यक्ति तक पहुंचे

मीटर से ज्यादा ना कूदे

हवा से तो यह ना फैले

12 घंटे से ज्यादा जिए

28 डिग्री के बाद न जिए

 

कुछ ना होगा जानू मैं यह

कैसे होगा कोई समझाए ?

यह करोना तो फैलेगा

जो विदेश में रहता है

हां जीव समुंदर का खाएं तो

करोना हो सकता है

जो विदेश से घर को आए

उनसे भी ये हो सकता है

बस करना है चौकीदारी

मांस किसी का भी ना खाएं

जो विदेशों से घर को आए

इलाज कर ही घर पहुंचाएं।।

 

© विनीत खरपाटे

ऐरोली, नवी मुम्बई।

मोबाईल  9371319798.

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मराठी साहित्य ☆ कविता ☆ करोना करोना माजलास काय ?  ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। कुछ रचनाये सदैव सामयिक होती हैं। आज प्रस्तुत है विश्व भर में फैली महामारी कोरोना वाइरस से सम्बंधित समसामयिक, विचारणीय कविता  “ कोरोना कोरोना माजलास काय  )

 ☆ कविता –  कोरोना कोरोना माजलास काय ? ☆

 

कोरोना कोरोना

माजलास काय

गर्दीच्या ठिकाणी

घुसलास काय ?

गर्दीच्या ठिकाणी जमावबंदी

करणार तुझी संचारबंदी.

सर्दी खोकला आणि ताप

लक्षणे तुझी घेऊन जा.

घाबरणार नाही

मरणार नाही

तुझ्या गमजा

चालणार नाही .

आम्ही घेतोय सावधानी

नको तुझी मनमानी.

आलास तसाच निघून जा

धुतलेत हात निसटून जा.

तुझे चाळे तुझ्या पाशी

आमचे स्वास्थ्य आमच्या पाशी.

तुझी  डाळ शिजणार नाही

संसर्गाने मरणार नाही.

असला जरी तू सर्वनाशी

पुरे झाल्या पापराशी.

नसलो जरी अविनाशी

आम्ही आहोत पापनाशी.

आम्ही आहोत पापनाशी.

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 40 – माझी मायभूमि ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। आज  प्रस्तुत है  मातृभूमि पर आधारित आपकी एक अतिसुन्दर मौलिक कविता   “माझी मायभूमि ”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – रंजना जी यांचे साहित्य # 40 ☆ 

 ☆ माझी मायभूमि  

 

माझी मायभूमी। विश्वाचे भूषण। संस्कृती रक्षण। सर्वकाळ।।१।।

 

उंच हिमालय। मस्तकी मुकूट।तैसा चित्रकूट। शोभिवंत ।।२।।

 

सप्त सरितांचे। जल आचमन। पावन जीवन।सकलांचे।।३।।

 

तव चरणासी।जलधी तरंग। उधळीती रंग। अविरत ।।४।।

 

नाना धर्म पंथ । अगणित  जाती। नांदती सांगाती। आनंदाने ।।५।।

 

संत महंत हे। ख्यातनाम धामी। नर रत्न नामी। पुत्र तुझे।।६।

 

वीर धुरंधर ।रत्न ते अपार। करिती संहार । अधमांचा।।७।।

 

असे माय तुझी।  परंपरा थोर । जपू निरंतर । प्रेमभावे।।८।।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

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मराठी साहित्य – आलेख ☆ उतारवयातील लग्न… ☆ सौ .योगिता किरण पाखले

सौ .योगिता किरण पाखले

(आदरणीया सौ .योगिता किरण पाखले जी  मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं की  सशक्त हस्ताक्षर हैं। आप कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपकी रचनाएँ स्तरीय पत्र पत्रिकाओं / चैनलों में प्रकाशित/प्रसारित हुई हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  जीवन के संध्याकाळ में विवाह पर एक विचारोत्तेजक आलेख    उतारवयातील लग्न… ।  आपने इस आलेख में  उपरोक्त विषय पर जीवन के संध्याकाळ में होने वाले विवाह का भरे पूरे परिवार पर प्रभाव साथ ही यदि वृद्ध युगल में कोई एक शेष रहता है अथवा वृद्धाश्रम में रहता है तो जीवन पर प्रभाव पर विस्तृत विमर्श किया है।  हम भविष्य में आपकी और चुनिन्दा रचनाओं को प्रकाशित करने की अपेक्षा करते हैं।)   

 ☆ उतारवयातील लग्न… ☆

काही दिवसांपूर्वी व्हाट्स अप वर एका लेखकाचा प्रेमाविषयीचा लेख वाचला. प्रेमाचे अनेक टप्पे ज्यात त्यांनी मांडले होते. प्रत्येक वयात होणाऱ्या प्रेमाचे स्वरूप ,त्याची कारणं आणि गरज सुद्धा वेगवेगळी असते. मग ते प्रेम किशोर वयातील प्रेमापासून  ते वृद्धत्वा पर्यंत नव्हे तर  शेवटच्या श्वासापर्यंतचे असो….

प्रेमाला वयाचं बंधन कुठे? होय ना … आणि ते नसतंच आणि नसावं सुद्धा.

“संसारी लोणचं मुरतं  तारुण्य सरल्यावर

चाखतो चव त्याची जशी प्रेमात पडल्यावर”

पण या मुरलेल्या लोणच्याची चव चाखण्यासाठी जोडीदार मधेच सोडून गेला तर ?आज समाजात बघितले तर 50 ते 60 वर्षापुढील माणसे ही एकटी आहेत. संसाराच्या अर्ध्या वाटवेर जोडीदाराने साथ सोडली. त्यांच्या परिवारात मुलं ,मुली ,नातवंड आहेत पण….. उणीव आहे ती हक्काच्या आधाराची !!!

ती मिळवून देण्यासाठी समाजाने घालून दिलेली किंबहुना स्वतःच कुठेतरी बिंबवून घेतलेली अलिखित नियम आडवी येतात. काळानुसार बदल आणि गरजेनुसार काळ कुठेतरी बदलतोय म्हणून या अलिखित नियमांच्या (चौकटीच्या) बाहेर जाऊन या वयात लग्न ही गोष्ट जन्म घेऊ लागली आहे.

पूर्वी एकत्र कुटुंब पद्धती म्हणजेच दोन चार भाऊ आणि त्यांचे कुटुंब एकत्र होते. त्यात जर कुणाचा जोडीदार सोडून गेला याचे दुःख हे कुटुंबासोबत राहून विरून जायचे.आणि मी वर म्हटल्याप्रमाणे अलिखित नियम तर होताच; परंतु फार फार तर दोन किंवा एक अपत्य असलेल्या आई वडिलांच्या जीवनात असा प्रसंग येतो तेव्हा हा विचार जन्म घेतो.

आता हा विचार योग्य की अयोग्य या दोन शब्दात उत्तर देणं म्हणजे फक्त बुद्धी किंवा मन याच्या एकाच अंगाने विचार करण्यासारखे असेल. खरं तर कुठलीही गोष्ट ही व्यक्तिपरत्वे तिच्या प्राप्त परिस्थितीनुसार  योग्य आणि अयोग्य यात बांधली जाते. परंतु एक तटस्थ व्यक्ती एका बाजूला झुकलेल्या मापापेक्षा फक्त मधोमध असलेल्या काट्या कडे पहातो तेव्हा तो विचार हा योग्य आणि अयोग्य या शब्दांच्या पलीकडचा होतो. त्याला वास्तवाची झालर असतेच असते.

जर या वयातील व्यक्तींनी दुसरा जोडीदार निवडला तर त्याची आज 30 ते 35शीत असलेली मुलं, मुली हे बाहेरून आलेली आई किंवा वडील स्वीकारतील का ?त्यांना आई बाबा म्हणून हाक मारतील का ? सख्यांसारख नाही पण किमान आपूलकीचं नात निर्माण होईल का? याच उत्तर कदाचित हो राहील असतं पण जेव्हा मुलं ही लहान असती. कारण लहानपणापासून त्यांचं संगोपन बाहेरून आलेल्या आई किंवा वडिलांनी केलं असतं .पण मुलांचीही आज 4 ते 5   वर्षाची मुलं असतात ते त्याचा संसारात गुंतलेली असतात अशात आई वडिलांचे लग्न हे स्वीकारणे खरचं झेपेल का? हे झालं मुलांच्या बाबतीत. पण सुनेचा विचार केला तर आज सख्खे सासू सासरे ही जिथे नको असतात तिथे परक्या व्यक्तीचा विचार होईल की नाही  याची शाश्वती कशी देणार..?

उदाहरणासह सांगायचं तर (सासूचा विचार करू) सासूचे दुसरे लग्न करायचे यात  बघितलं तर सासूला हक्काचा जोडीदार मिळेल म्हणजेच तिची आर्थिक जबाबदारी त्याचप्रमाणे भविष्यात  वयोमानानुसार येणाऱ्या शारीरिक व्याधी याची मोठया प्रमाणात जबादारी जोडीदार घेईल. यामुळे आपोआपच सासूचे मुलं, सूना यातून बऱ्याच अंशी  जबाबदारीतून मोकळे होतील.

परंतू जेव्हा घरात नवीन आई, सासू आणायची आहे तेव्हा मुलं व सुनेची जबाबदारी वाढेल  सर्वच बाजूने. या सर्व परिणामांचा विचार सर्व अंगाने करणे गरजेचे आहे.

एक सत्य घटना नमूद करावीशी वाटते. ‘एका व्यक्तीने वयाच्या 50 व्या वर्षी दुसरे लग्न केले . मुलांची इच्छा नसतांना. तो आर्थिक दृष्ट्या अतिशय सधन. त्याची मुले ही कमावती ज्यांना वडिलांच्या संपत्तीची हाव आणि गरज नाही . ते जोडपे  त्या मुलांमध्ये न रहाता वेगळे रहायचे. ती व्यक्ती आजारी पडल्यानंतर त्याची पत्नी काळजी देखील घेत नव्हती आणि शेवटी ती व्यक्ती वारली  या आधीच त्या व्यक्तीची सर्व संपत्ती त्या बाईने स्वतःच्या नावावर करून ठेवली होती . तुमचा  बाप वारला हे सुद्धा त्या मुलांना  कळविण्याची तसदी तिने घेतली नाही .  याचे मुलांना फार वाईट वाटले .तिचा हेतू फक्त संपत्ती मिळवणे इतकाच होता.’ या घटनांचा विचार अशा वयात लग्न करतांना घ्यायला हवा.

ज्यांना मुलबाळ नाही व जीवनसाथी अर्ध्यात सोडून गेला त्यांच्यासाठी या वयातील लग्न हे त्यांच्या आयुष्याला सुखाचे वळण नक्कीच देणारे आहे. ज्यांची मुले  त्यांचा सांभाळ करीत नाहीत अथवा वृद्धाश्रमात रहातात अशा साठी सुद्धा जीवनसाथी मिळणं सुखावह आहे.

तारुण्यात लग्न करतांना शिक्षण, सौंदर्य, पैसा ,प्रतिष्ठा या गोष्टीचा मुख्यतः विचार होतो मात्र  उतरत्या वयात फक्त निखळ प्रेम,आधार आणि सगळ्यात महत्त्वाचा शुद्ध हेतू ठेवून लग्न व्हायला हवीत कारण या वयात जर विश्वासघात झाला तर ते दुःख सहन करण्याची ताकद कशी बरं राहील…..!

उतरत्या वयात होणारी लग्न ही काळाची गरज आहे. हा बदल स्वागतार्ह नक्कीच आहे  परंतु तो  प्रत्येकाच्या कौटुंबिक परिस्थिती नुसार ,वास्तविकतेला अनुसरून,परिणामांचा विचार या सर्व बाबी (condition) त्यात रहाणाऱ्या आहेतच. जशा नाण्याला दोन बाजू असतात त्यातील एक बाजू किंवा दोन्ही बाजू देखील  बघून चालणार नाही तर त्याची तिसरी बाजू जो बघू शकतो तो यशस्वी नक्कीच होईल यात शंका नाही.

 

© सौ. योगिता किरण पाखले, पुणे

मोबा 9225794658

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #26 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के ह्रदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे # 26 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

यही धर्म का नियम है, यही धर्म की रीत ।

धारे ही निर्मल बने, पावन बने पुनीत ।।

 आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

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The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga.  We conduct talks, seminars, workshops, retreats, and training.

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Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – एकादश अध्याय (18) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(अर्जुन द्वारा भगवान के विश्वरूप का देखा जाना और उनकी स्तुति करना )

 

त्वमक्षरं परमं वेदितव्यंत्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् ।

त्वमव्ययः शाश्वतधर्मगोप्ता सनातनस्त्वं पुरुषो मतो मे ।। 18।।

एकमात्र ज्ञातव्य प्रभु अजर , अनूप , अपार

तुम ही नाथ ! इस विश्व के एकमात्र आधार

तुम ही शाश्वत धर्म के , रक्षक प्राणाधार

मेरा मत, चलता जगत ,प्रभु की मति अनुसार ।। 18।।

 

भावार्थ :  आप ही जानने योग्य परम अक्षर अर्थात परब्रह्म परमात्मा हैं। आप ही इस जगत के परम आश्रय हैं, आप ही अनादि धर्म के रक्षक हैं और आप ही अविनाशी सनातन पुरुष हैं। ऐसा मेरा मत है॥18॥

 

Thou art the Imperishable, the Supreme Being, worthy of being known; Thou art the great treasure-house of this universe; Thou art the imperishable protector of the eternal Dharma; Thou art the ancient Person, I deem.

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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