हिन्दी साहित्य – कविता – ☆ गुरु वन्दना ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

गुरु पुर्णिमा विशेष 

श्री संतोष नेमा “संतोष”

 

(आज प्रस्तुत है आदरणीय श्री संतोष नेमा जी की  गुरु पुर्णिमा पर विशेष रचना “गुरु वंदना”  “गुरु वन्दना”)

 

गुरु वन्दना☆ 

बिन गुरु कृपा न हरि मिलें,बिनु सत्संग न विवेक

हरि सम्मुख जो कर सके,गुरू वही हैं नेक।

 

गुरु की है महिमा अंनत ,है ऊंचा गुरु मुकाम

पहले सुमरें गुरू को,फिर सुमिरें श्री राम।

 

गुरु को हिय में राखिये, गुरु चरणो में प्रेम

दिग्दर्शक नहीं गुरु सा,वही सिखाते नेम।

 

भय भ्रांति हरते गुरू,दिखा सत्य की राह

थामी जिसने गुरु शरण,मिलती कृपा अथाह।

 

गुरु कृपा से काम बनें,गुरू का पद महान

सेवा से ही सुखद फल,जानत सकल जहान।

 

गुरु का वंदन नित करें,गुरु का रखें ध्यान

प्रेरक न कोई गुरु सा,गुरु सृष्टि में महान।

 

गुरु में गुरुता वही गुरु,गुरु में न हो ग़ुरूर

ज्ञान सिखाता गुरु हमें,गुरु से रहें न दूर।

 

नीर क्षीर करते वही,करें शिष्य उपचार

तम हरके रोशन करें,सिखाते सदाचार।

 

गुरु भक्ति हम सदा करें,हर दिन हो गुरुवार

आता जो भी गुरु शरण,उसका हो उद्धार।

 

गुरु सागर हैं ज्ञान के,गुरू गुणों की खान

अंदर बाहर एक रहें,वही गुरु हैं महान।

 

गुरु पारस सम जानिये, स्वर्ण करें वो लोह

पूज्यनीय हैं गुरु सदा,करें न गुरु से द्रोह।

 

भय वश बोलें जबहिं गुरु,होता नहीं कल्याण

पद,प्रतिष्ठा,प्रभाव से,गुरु का घटता मान।

 

जिस घर में होता नहीं,सदगुरु का सत्कार

उस घर खुशियां ना रहें,रहता वो लाचार।

 

गुरु चरणों मे स्वर्ग है,गुरु ही चारों धाम

संकट में गुरु साधना,सदैव आती काम।

 

गुरु शरण “संतोष”सदा,गुरु से रखता प्रेम

चाहत गुरु आशीष की,है निश दिन नित नेम।

 

@ संतोष नेमा “संतोष”

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)

मोबा 9300101799

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं – #8 – सगुन ☆ – श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

सुश्री सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

 

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं शृंखला में आज प्रस्तुत हैं  उनकी  शिक्षाप्रद लघुकथा  “सगुन ”। )

 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं # 8  ☆

 

☆ सगुन ☆

 

सभ्रांत परिवार बड़ा घर हर तरफ से सभी चीजों से परिपूर्ण। वहाँ पर सिर्फ शासन दादी माँ का। किसी को कुछ देना, किसी के यहाँ जाना, किसी के यहाँ आना, क्या खाना, क्या बनाना सब कुछ दादी माँ ही तय करती थी। दादाजी ने सब कुछ उन्हीं पर छोड़ रखा था। 3 – 3 बेटे – बहुओं का घर। बच्चे भी बहुत। काम वाली बाई का आना – जाना लगा रहता था। दूर से ही उसको सामान फेंक कर देना जैसे दादी की दिनचर्या बनी हुई थी। बाई की बहुत ही सुंदर बिटिया अपनी माँ के साथ आ जाती थी। दादी उसे भी रोटी फेंक कर देती थी। सब कुछ देती परन्तु छुआछूत की भावना बहुत भरी हुई थी। बाई की बिटिया जिसका नाम सगुन था हमेशा कहती अपनी माँ से कि “क्यों हमसे इतना घृणा करती है”

माँ हमेशा एक ही जवाब देती “बड़े लोग हैं बिटिया यहाँ ऐसे ही व्यवहार होता है।” दिन जाते गए सगुन भी बड़ी होने लगी। माँ के साथ अब काम में भी हाथ बंटा लेती थी। उसके काम करने के तरीके से दादी थोड़ा प्रसन्न रहती थी। कभी सिर पर तेल लगाना, कभी पाँव दबाना बहुत ही लगन से करती थी। परन्तु, दादी यह सब काम कराने के बाद स्नान करती थी। सगुन के मन में एक लकीर बन गई थी ‘कि हम सब काम करते हैं साफ-सफाई से रहते भी हैं पर फिर भी हम से इतनी नफरत क्यों हैं?’ इसका जवाब किसी के पास नहीं था। सगुन बच्चों के साथ खेलती पर किसी को छूने या उसके साथ बैठने का अधिकार नहीं था।

एक दिन की बात है घर के आँगन पर सगुन अपना बैठे-बैठे खेल रही थी। घर के बाकी सदस्य लगभग सभी एक पारिवारिक कार्यक्रम में बाहर गए हुए थे। दादी धूप में खाट पर बैठी कुछ पढ़ रही थी। अचानक उनको सिर दर्द और चक्कर आने लगा। आँखें ततरा गईं पर बोल नहीं पा रही थी। सगुन ने देखा दादी गिर पड़ी है और दौड़ कर नल से पानी डिब्बे में लाकर उनके ऊपर छिड़कने लगी और जल्दी से सिर मलने लगी। पानी का घूंट जाते ही दादी जी को कुछ अच्छा लगा। सगुन पास पड़ोस सबको बुलाकर ले आई। तुरन्त अस्पताल ले जाया गया। 3-4 दिन बाद जब दादी घर आई सभी सदस्यों ने दादी के ठीक होने पर प्रसाद मिठाई बाँटना चाहा और सब लेकर आए। आसपास सभी खड़े थे।

दादी की कड़क आवाज आई “सगुन को भुलाकर लाओ”। सभी ने सोचा कि सामान को शायद सगुन हाथ लगाई है अब तो खैर नहीं पर कोई कुछ ना बोल सके। सगुन डरते- डरते अपनी माँ के साथ आई। दादी ने कहा आज से हमारे घर में सभी शुभ काम सगुन के हाथों होगा।

सभी एक दूसरे का मुंह देख रहे थे समझ आने पर और जोरदार तालियों से सगुन के ‘शगुन’ बांटने का काम होने लगा। सगुन को कुछ समझ नहीं आया पर आज बहुत खुश थी। अपने को सब के बीच पाकर माँ भी मुस्कुरा उठी। खुशी से आंसू बहने लगे। अब सगुन “शगुन” बन गई थी।

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #8 – त्याचा गुरू ☆ – श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

 

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है ।  साप्ताहिक स्तम्भ  अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक भावप्रवण  कविता  “ त्याचा गुरू”।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #  8 ☆

? त्याचा गुरू ?

 

वाट सारुनीया मागे चालला हा वाटसरू

सोबतीला नाही कुणी त्याचे पाय त्याचे गुरू

 

हिरवळीचा मी पांथ कधी काट्यामध्ये फिरू

वेल कोवळ्या फुलांची तिला सावरून धरू

 

सुख पुढे नेण्यामध्ये कधी यशस्वी ही ठरू

अपयशाचे गारूड त्याला मातीमध्ये पुरू

 

जेव्हा  सूर्य माथ्यावर तेव्हा  छाया देती तरू

पंख वाटतात फांद्या त्याच्या कुशीमध्ये शिरू

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

[email protected]

 

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मराठी साहित्य – कविता ☆ गुरूपौर्णिमा विशेष चारोळी लेखन – गुरूपौर्णिमा ☆ – कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

 

(आज प्रस्तुत है कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की   गुरूपौर्णिमा पर विशेष चारोळी लेखन। )

 

☆ गुरुपौर्णिमा . . . ! ☆

 

ज्ञानार्जन,  ज्ञानदान

नित्य हवे देणे घेणे

शिकविते चराचर

ज्ञान सृजनाचे लेणे. . . . !

 

गुरू रूप ईश्वराचे

जगण्याचा मार्ग देते.

कृपा प्रसादे करून

सन्मार्गाच्या पथी येते. . . . . !

 

गुरू ईश्वरी संकेत

संस्काराची जपमाळ

शिकविते जिंकायला

संकटांचा वेळ,  काळ. . . . . !

 

चंद्र  प्रकाशात जसे

तेज चांदणीला येते

पौर्णिमेत आषाढीच्या

व्यास रूप साकारते.. . . !

 

माणसाने माणसाला

घ्यावे जरा समजून

ऋण मानू त्या दात्यांचे

गुरू पुजन करून. . . . !

 

संस्काराचा  ज्ञानवसा

एक हात देणार्‍याचा

पिढ्या पिढ्या चालू आहे

एक हात घेणार्‍याचा.

 

असे ज्ञानाचे सृजन

अनुभवी धडे देते

जीवनाच्या परीक्षेत

जगायला शिकविते. . . !

 

ज्ञानियांचा ज्ञानराजा

व्यासाचेच नाम घेई.

महाकाव्ये , वेद गाथा

ग्रंथगुरू ज्ञान देई. . . . !

 

✒  © विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकारनगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

 

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ Remembering My Gurus On Guru Purnima ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Guru Purnima Special 

 

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer,  Author, Blogger, Educator and Speaker.)

☆ Remembering My Gurus On Guru Purnima☆

 

Today is Guru Purnima.

Guru is the one who shows you the path and takes you from darkness to light, from ignorance to knowledge and wisdom. Purnima is full moon.

Today is a special day to remember and revere our Gurus.

I pay my regards to five thinkers and influencers who have been revolutionaries in their fields.

They are my Gurus and have shown me the path to authentic happiness, well-being and fulfilment in life:

MARTIN SELIGMAN is known as the father of the new science of Positive Psychology. He has applied his wisdom and experience to the task of increasing wellness, resilience, and happiness for everyone. No psychologist in history has done more than him to discover the keys to flourishing and then give them away to the world.

 “I have been part of a tectonic upheaval in psychology called positive psychology, a scientific and professional movement. In 1998, as president of the American Psychological Association, I urged psychology to supplement its venerable goal with a new goal: exploring what makes life worth living and building the enabling conditions of a life worth living.”

Flourish, MARTIN SELIGMAN

MIHALY CSIKSZENTMIHALYI is the leading researcher into ‘flow states’. He has explored a happy state of mind called flow, the feeling of complete engagement in a creative or playful activity. The manner in which Csikszentmihalyi integrates research on consciousness, personal psychology, and spirituality is illuminating.

 “The wisdom of the mystics, of the Sufi, of the great yogis, or of the Zen masters might have been excellent in their own time – and might still be the best, if we lived in those times and in those cultures. But when transplanted to contemporary California those systems lose quite a bit of their original power.”

Flow, MIHALY CSIKSZENTMIHALYI

SWAMI SATYANANDA SARASWATI gave us the gift of Yoga Nidra – a simple yet profound technique adapted from the traditional tantric practice of nyasa. Realizing the need of the times as scientific rendition of the ancient system of yoga, he founded the International Yoga Fellowship in 1956 and the Bihar School of Yoga in 1963 and authored over 80 major texts on yoga, tantra and spirituality.

 “Yoga is not an ancient myth buried in oblivion. It is the most valuable inheritance of the present. It is the essential need of today and the culture of tomorrow.”

Asana Pranayama Mudra Bandha, SWAMI SATYANANDA SARASWATI

MATTHIEU RICARD is a Buddhist monk who had a promising career in cellular genetics before leaving France to study Buddhism in the Himalayas over forty years ago. He is an active participant in current scientific research on the effects of meditation on the brain. Through his experience as a monk, his close reading of sacred texts and his deep knowledge of the Buddhist masters, he demonstrates the significant benefits that meditation, based on selfless love and compassion, can bring to each one of us.

“Meditation is a process of training and transformation. It is important to devote time to meditation. Especially if you practise in the morning, meditation can give your day an entirely new ‘fragrance’.”

The Art of Meditation, MATTHIEU RICARD

MADAN KATARIA, a medical doctor, founded the first Laughter Club with just five members in Mumbai in the year 1995. Today there are thousands of laughter clubs all over the world where laughter is initiated as an exercise in a group but with eye contact and childlike playfulness, it soon turns into real and contagious laughter. It’s called Laughter Yoga because it combines laughter exercises with yoga breathing. This brings more oxygen to the body and the brain which makes one feel more energetic and healthy.

 “Laughter Yoga is a unique concept where anyone can laugh for no reason without relying on humour, jokes or comedy. The concept is based on a scientific fact that the body cannot differentiate between real and fake laughter if done with willingness. One gets the same physiological and psychological benefits.”

Dr Madan Kataria, Founder, Laughter Yoga

Founders: LifeSkills

Jagat Singh Bisht

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University. Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht:

Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer Areas of specialization: Yoga, Five Tibetans, Yoga Nidra, Laughter Yoga.

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – चतुर्थ अध्याय (20) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

चतुर्थ अध्याय

( योगी महात्मा पुरुषों के आचरण और उनकी महिमा )

 

त्यक्त्वा कर्मफलासङ्गं नित्यतृप्तो निराश्रयः ।

कर्मण्यभिप्रवृत्तोऽपि नैव किंचित्करोति सः ।।20।।

 

फलासक्ति से दूर व्यक्ति जो निज कर्मो में तृप्त सदा

बिना किसी के आश्रय खुद जो करता कुछ वह नहि करता।।20।।

 

भावार्थ :  जो पुरुष समस्त कर्मों में और उनके फल में आसक्ति का सर्वथा त्याग करके संसार के आश्रय से रहित हो गया है और परमात्मा में नित्य तृप्त है, वह कर्मों में भलीभाँति बर्तता हुआ भी वास्तव में कुछ भी नहीं करता।।20।।

 

Having abandoned attachment to the fruit of the action, ever content, depending on nothing, he does not do anything though engaged in activity. ।।20।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

 

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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English Literature – Short Story – ☆ The Right Choice ☆ – Shri Suraj Kumar Singh

Shri Suraj Kumar Singh

 

(Mr. Suraj Kumar Singh is a young and dynamic author.  He is also an editor of “Young Literati”  (E-Magazine). Today, we present an excellent story “The Right Choice”

 

☆ The Right Choice ☆

 

My ten year old son came back home from school frustrated. I shifted my gaze from the newspaper I held open with both hands onto him. “What happened my boy? Is everything alright?” He didn’t reply. I remembered it was result declaration day today and thought that his grades are bad and that’s why he is tensed and is not talking straight. “So what was your result champ?” He pushed his report card across the table and said in a not so enthusiastic tone, “Eighty nine percent only.”

“Brilliant! Excellent! Amazing! But are you going to tell me now why you are so upset?” He said he was unhappy because a classmate of his scored one percent more and became class topper. “That’s it? That is the reason you are upset champ? Come on dear bring it on. Your grades are too good to be upset.” I tried to raise his spirit but all my efforts went in vain.

Later that day I found him quarrelling with his sister about the lights. “Ease up children.” I asked them to stop shouting and then requested them to stay quite. I asked my daughter first, what is the matter? She said that when she switched on the lights he came uninvited and started yelling at her for no reason. I interrupted her right there. “There my child you are not entirely correct. If smoke is there then there must have been a fire! As much as I know my son he is not mad that he will yell at anyone for no reason. There has to be a reason. There must be a reason. Now you champ, it s your turn to defend your action. So say.

” He began, “It is daytime and there is already enough natural light in here. So why it is necessary to light all the lamps around here?”

“Hmm…. you have a got a point champ! But isn’t it the same stuff that you have been doing all along?” This one statement perplexed him.

I continued, “Yes champ that is what you and your friends were doing! Lighting a lamp where there is already enough light.” His confusion deepened further.

So I asked him a few question to begin with. “Why is it that you want to stand out in the field of academics only? Even in academics you performed exceptionally well but you are still not satisfied with yourself as you are jealous of your classmate whose score was just one percent greater than yours. You are very good musician and as much as I know there no musicians other than you in the whole class. So, why do you want to compete with that guy? And why do you wish to stand out by lowering someone else’s stature? Why don’t you try raising your own instead? I mean you can showcase your musical talent to feature your uniqueness and individuality before others. And that boy who came third is a very good painter if I am not wrong. And I have also heard that there is no artist like him in the entire class. Ask yourselves if you require anything else to be unique. Never solely focus to excel in one field. Explore the unexplored, try to go where nobody else has ventured before because it’s never wise to light the lamp where it’s already bright. Wise are those who try to light a lamp where there is dark. And that is what I call the right choice.”

 

© Suraj Kumar Singh, Ranchi

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य #5 – राजनीति के तीतर ☆ – श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

 

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  पाँचवी  कड़ी में उनकी  एक सार्थक व्यंग्य कविता “राजनीति के तीतर”। अब आप प्रत्येक सोमवार उनकी साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।)

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य #5 ☆

 

☆ व्यंग्य कविता – राजनीति के तीतर ☆

तीतर के दो आगे तीतर,

तीतर के दो पीछे तीतर,

बढ़  ना पाये तीनों तीतर ।

 

कुंठित रह गये भीतर-भीतर,

बढ ना जाये अगला तीतर,

खींच रहा है पिछला तीतर।

 

बाहर खूब दिखावा करते,

कुढ़ते रहते भीतर-भीतर,

जहां खड़े थे पहले तीतर।

 

वही खड़े हैं अब भी तीतर,

तीतर के दो आगे तीतर,

तीतर के दो पीछे तीतर।

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ सकारात्मक सपने – #8 – आपदा प्रबंधन ☆ – सुश्री अनुभा श्रीवास्तव

सुश्री अनुभा श्रीवास्तव 

(सुप्रसिद्ध युवा साहित्यकार, विधि विशेषज्ञ, समाज सेविका के अतिरिक्त बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी  सुश्री अनुभा श्रीवास्तव जी  के साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत हम उनकी कृति “सकारात्मक सपने” (इस कृति को  म. प्र लेखिका संघ का वर्ष २०१८ का पुरस्कार प्राप्त) को लेखमाला के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने के अंतर्गत आज आठवीं  कड़ी में प्रस्तुत है “आपदा प्रबंधन ”  इस लेखमाला की कड़ियाँ आप प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे।)  

Amazon Link for eBook :  सकारात्मक सपने

 

Kobo Link for eBook        : सकारात्मक सपने

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने  # 8 ☆

 

☆ आपदा प्रबंधन ☆

 

आपदा प्रबंधन का महत्व इसी से समझा जा सकता है कि आज अनेक संस्थायें इस विषय में एम.बी.ए. सहित अनेक पाठ्यक्रम चला रहे हैं।  जापान या अन्य विकसित देशों में आबादी का घनत्व भारत की तुलना में बहुत कम है। अतः वहाँ आपदा प्रबंधंन अपेक्षाकृत सरल है। हमारी आबादी ही हमारी सबसे बड़ी आपदा है, किन्तु , दूसरी ओर छोटे-छोटे बिखरे हुए गांवों की बढी संख्या से बना भारत हमें आपदा के समय किसी बडे नुकसान से बचाता भी है।

आम नागरिकों में आपदा के समय किये जाने वाले व्यवहार की शिक्षा बहुत आवश्यक है। संकट के समय संयत व धैर्यपूर्ण व्यवहार से संकट का हल सरलता से निकाला जा सकता है। नये समय में प्राकृतिक आपदा के साथ-साथ मनुष्य निर्मित यांत्रिक आकस्मिकता से उत्पन्न दुर्घटनाओं की समस्यायें बड़ी होती जा रही है। जैसे भोपाल गैस त्रासदी हुई थी तथा हाल ही जापान में न्यूक्लियर रियेक्टर में विस्फोट की घटना हुई है। खदान दुर्घटनायें, विमान, रेल व सडक दुर्घटनायें, आंतकवादी तथा युद्ध की आपदायें हमारी स्वंय की तेज जीवनशैली से उत्पन्न आपदायें है। प्राकृतिक आपदाओं में बाढ, चक्रवात, भूकंप, सुनामी, आग की दुर्घटनायें सारे देश में जब-तब होती रहती हैं। इनसे निपटने के लिये सामान्य प्रशासन, पुलिस, अग्निशमन व स्वास्थ्य सेवाओं को ही सरकारी तौर पर प्रयुक्त किया जाता है। जरूरत है कि आपदा प्रबंधंन हेतु अलग से एक विभाग का गठन किया जाये।

फायर ब्रिगेड व एम्बुलेंस से झूठी खबरों के द्वारा मजाक करना, लोगो के असंवेदनशील  व्यवहार का प्रतीक है। भेड़िया आया भेड़िया आया वाला मजाक कभी बहुत महँगा  भी पड़ सकता है। इंटरनेट, मोबाइल व रेडियो के माध्यम से आपदा प्रबंधंन में नये प्रयोग किये जा रहे हैं। हमें यही कामना करनी चाहिए कि आपदा प्रबंधंन इतना सक्षम हो जिससे दुर्घटनायें हो ही नहीं।

 

© अनुभा श्रीवास्तव

 

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ? रंजना जी यांचे साहित्य #-7 – अभंग – आम्ही वारकरी ? – श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। अब आप उनकी अतिसुन्दर रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनके द्वारा रचित  “अभंग – आम्ही वारकरी”।)

 

? साप्ताहिक स्तम्भ – रंजना जी यांचे साहित्य #-7 ? 

 

? अभंग – आम्ही वारकरी ?

(अभंग- 6 6 6 4)

नित्य नेम वारी।

पावन पंढरी।

आम्ही वारकरी।

पंढरीचे।

 

वारीची पताका।

ऐक्याचा संदेश।

जात, धर्म, वेश।

एक आम्हा।

 

पवित्र तुळस।

मांगल्य कळस।

सोडून आळस।

घेऊ डोई।

 

टाळ विणा करी।

नाद गगनांतरी।

विठाई आंतरी।

अखंडीत

 

वैष्णवांची भक्ती ।

अलौकिक शक्ती।

कलीची आसक्ती ।

व्यर्थ जाय।

 

नामामृत गोडी।

चाखतो आवडी।

ध्यास घडोघडी

माऊलींचा।

 

निर्गुण माऊली।

भक्तांची सावली।

संकटी धावली।

सर्वकाळ।

 

संत सज्जनास।

आस ही मनास।

द्वैत बंधनास।

तोडी वारी।

 

©  रंजना मधुकर लसणे✍

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

 

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