हिन्दी साहित्य – व्यंग्य – सवाल एक – जवाब अनेक – 4 – श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

 

 

 

 

 

“सवाल एक –  जवाब अनेक (4)”

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी के एक प्रश्न का  विभिन्न  लेखकों के द्वारा  दिये गए विभिन्न उत्तरआपके ज्ञान चक्षु  तो अवश्य ही खोल  देंगे।  तो प्रस्तुत है यह प्रश्नोत्तरों की श्रंखला।  

वर्तमान समय में ठकाठक दौड़ता समाज घोड़े की रफ्तार से किस दिशा में जा रहा, सामूहिक द्वेष और  स्पर्द्धा को उभारकर राजनीति, समाज में बड़ी उथल पुथल मचा रही है। ऐसी अनेक बातों को लेकर हम सबके मन में चिंताएं चला करतीं हैं। ये चिंताएं हमारे भीतर जमा होती रहतीं हैं। संचित होते होते ये चिंताएं क्लेश उपजाती हैं, हर कोई इन चिंताओं के बोझ से त्रास पाता है ऐसे समय लेखक त्रास से मुक्ति की युक्ति बता सकता है। एक सवाल के मार्फत देश भर के यशस्वी लेखकों की राय पढें इस श्रृंखला में………

तो फिर देर किस बात की जानिए वह एकमात्र प्रश्न  और उसके अनेक उत्तर।  प्रस्तुत है  चौथा उत्तर  दैनिक विजय दर्पण टाइम्स , मेरठ से कार्यकारी संपादक श्री संतराम पाण्डेय जी की ओर से   –  

सवाल :  आज के संदर्भ में, क्या लेखक  समाज के घोड़े की आंख है या लगाम ?

मेरठ से श्री संतराम पाण्डेय जी  ___4  

(श्री  संतराम पाण्डेय जी मेरठ से दैनिक  विजय दर्पण टाइम्स के कार्यकारी संपादक हैं।) 

सवाल-आज के संदर्भ में, क्या लेखक  समाज   के घोड़े की आंख है या लगाम?

-संतराम पाण्डेय-

मूल प्रश्न पर आने से पहले हम एक अन्य तथ्य की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं। लेखक है क्या? वह क्या कर सकता है? इसका जवाब यही है कि लेखक में बहुत शक्ति है। वह कुछ भी कर सकता है।

संत तुलसीदास का कार्यकाल (1511-1623 ई.) ऐसा समय था, जब भारतीय समाज भटका हुआ था। इतिहास की जानकारी रखने वाले जानते हैं कि उस वक्त देश में लोदी वंश, सूरी वंश, मुगल वंश (1526 से लेकर 1857 तक, जब मुगल वंश का शासन समाप्त हुआ) का शासन था। भारतीय समाज बिखरा हुआ था। उसमें एक डर बसा हुआ था। वह खुलकर अपनी बात भी नहीं कह सकता था। ऐसे वक्त में उसे कोई राह दिखाने वाला भी नहीं था। तब संत तुलसीदास का जन्म हुआ। संत बनने के बाद निश्चित रूप से उन्होंने समाज की दयनीय हालत को देखा होगा। लेकिन, एक संत क्या कर सकता था। वह किसी से न तो खुद लड़ सकता था और न ही किसी को लडने की सलाह दे सकता था। ऐसे में उन्हें यह समझ में आया होगा कि इस वक्त भारतीय समाज को एक सूत्र में बांधने और उसके मन से डर निकालने की जरूरत है और उसी वक्त उनके द्वारा राम चरित मानस की रचना की गई। भारतीय समाज उसमें रच बस गया। वह कहीं एकत्र होता तो अपनी गुलामी की बात न करके राम के प्रति भक्ति की बात करता। उन्होंने समाज को एक दिशा दी। समाज बदलने लगा था।

आते हैं लेखक के समाज के घोडे की आंख होने या लगाम होने की। एक लेखक निश्चित रूप से समाज के घोड़े की आंख है। शर्त यही है कि उसका लक्ष्य तय हो। समाज के घोड़े की आंख। यानी, घोड़े की आंख आजाद नहीं होती। इच्छा यही रहती है कि वह उतना ही देखे, जितना समाज चाहे। इसे इस तरह समझ सकते हैं कि समाज की जरूरत के हिसाब से ही घोड़ा देखे। घोड़े की आंख की प्रकृति यह है कि उसकी दृष्टि का दायरा लगभग 180 डिग्री तक है। इसलिए घोड़े की दृष्टि में आसपास का क्षेत्र और कुछ हद तक पीछे का भी रहता है। ऐसे में घोड़ा बहुत कुछ देखता है। इसलिए उसके भटकने की संभावना ज्यादा रहती है। बहुत कुछ देखकर घोड़ा बिदक जाता है और इससे नुकसान की गुंजाइश बन ही जाती है।

घोड़ा तो घोड़ा है। लेखक में घोड़े की प्रकृति तो है लेकिन वह आत्मनियन्ता है। उसमें स्वयं को नियंत्रित करने की क्षमता होती है, घोड़े में नहीं। जिस लेखक में स्वयं को नियंत्रित करने की क्षमता नहीं होती, उसके भटकने की प्रबल संभावना रहती है और समाज को नुकसान पहुंचाने का कारण बन जाता है। इसलिये यह कहना उपयुक्त है कि लेखक सशर्त समाज के घोड़े की आंख है।

अब लगाम की बात करते हैं। एक लेखक अपनी लेखनी से समाज की दिशा तय करने की सामथ्र्य रखता है। वह समाज को नियंत्रित भी करता है। समाज को भटकने से बचाता भी है। जैसे कि संत तुलसीदास ने अपने समय में समाज को भटकने से बचाया। क्या लेखक समाज के घोड़े की आंख है या लगाम? तो माकूल जवाब मेरी नजर में यही है कि एक आदर्श लेखक समाज के घोड़े की आंख भी है और लगाम भी।

आज के संदर्भ की बात करते है तो पाते है कि कुछ लेखक न तो समाज के घोड़े की आंख ही बन पा रहे है और न ही लगाम। वह न घर के हो रहे हैं और न ही घाट के। स्वार्थ ने ऐसे लेखकों को भटका दिया है। इसके बावजूद अधिकांश लेखक ऐसे हैं जिन्होंने अपनी लेखनी से समझौता नहीं किया और वह समाज के घोड़े की आंख भी बने और लगाम भी। घोड़े की आंख पर चश्मा बांधकर उसकी दृष्टि के दायरे को 30 डिग्री तक सीमित किया जा सकता है लेकिन एक लेखक की दृष्टि के साथ ऐसा नहीं किया जा सकता। उसकी आंख पर पट्टी नहीं बंधी जा सकती। वह सब कुछ देखता है और विषम परिस्थितियों में भी वह अपने भटकने की संभावना को स्वयं ही खारिज कर देता है। समाज हित में भी यही है कि एक लेखक समाज की आंख का घोड़ा भी बना रहे और लगाम भी।

बता दें कि इंसानी जीवन में घोड़े का इस्तेमाल इंसान अपने फायदे के लिए करता आया है और लेखक का भी इस्तेमाल समाज हित में ही हुआ है। वर्तमान संदर्भ में लेखक बहु उद्देशीय बन गया है। वह बहुत कुछ एक साथ करना चाहता है और देखना चाहता है। ऐसे में वह भटकाव का शिकार भी हुआ है। इससे बचने की जरूरत है। जरूरत यह भी है कि लेखक समाज के घोड़े की आंख भी बना रहे और लगाम भी।

 

-संतराम पाण्डेय

कार्यकारी संपादक, दैनिक विजय दर्पण टाइम्स, मेरठ

मो. 9412702596, 8218779805

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हिन्दी साहित्य – कविता – ☆ पोस्टर्स ☆ – श्रीमति सुजाता काले

श्रीमति सुजाता काले

☆ पोस्टर्स ☆
(प्रस्तुत है श्रीमति सुजाता काले जी  की एक भावप्रवण कविता जो उजागर करती है शायद आपके ही आसपास  के पोस्टर्स  की दुनिया की एक झलक।)

 

वर्षा ऋतू खत्म हुई,
पुनः स्वच्छता अभियान शुरू हुआ है,
पालिका द्वारा रास्ते, गलियों की
सफाई जोरों से हो रही है ।
शैवाल चढ़े झोपड़ों की
दीवारें पोंछी गई हैं …!

सुन्दर बंगलों की चारदीवारी
साफ़ की गई हैं … !
उन्हें रंगकर उनपर गुलाब, कमल
के चित्र बनाये गए हैं … !
दीवारों पर रंगीन घोष वाक्य लिखे गए हैं :
‘स्वस्थ रहो, स्वच्छ रहो।’
‘जल बचाओ, कल बचाओ।’
‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ।’

जगह- जगह पोस्टर्स लगे हुए हैं;
सूखा और गीला कचरा अलग रखें !
पांच ━ छह वर्ष के बच्चें ,
कचड़े में  अन्न ढूँढ रहे हैं… !
झोंपड़ी की बाहरी रंगीन दीवार देखकर,
दातुन वाले दाँत हँस रहे हैं !
अंदरूनी दीवारों की दरारें,
गले मिल रही हैं !
कहीं-कहीं दीवारों की परतें,
गिरने को बेताब हैं !

‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ लिखी –
दीवार के पीछे सोलह वर्ष की
लड़की प्रसव वेदना झेल रही है !
बारिश में रोती हुई छत के निचे,
रखने के लिए बर्तन कम पड़ रहे हैं।
‘जल बचाओ’ लिखी हुई दिवार,
चित्रकार पर हँस रही है…..!

बस्ती के कोने में कचड़े का ढेर है ।
सूखे और गीले कचड़े के डिब्बे,
उलटे लेटे हुए हैं !
पालिका का सफाई कर्मचारी,
तम्बाकू मल रहा है !
‘जब पढ़ेगा इंडिया, तब आगे बढ़ेगा इंडिया’
का पोस्टर उदास खड़ा है …..!

यह कैसी विसंगति लिखने में है !!
इन झोपड़ियों के अंदर का विश्व,
पोस्टर्स छिपा हुआ है,
कोई कहीं से दो पोस्टर्स ला दे मुझे
जो गरीबी और बेकारी
ढूँढकर ……. हटा दे उन्हें !!!

© सुजाता काले ✍

पंचगनी, महाराष्ट्र।

9975577684

 

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मराठी साहित्य – मराठी कथा/लघुकथा – ☆ शिकवण ☆ श्री सुजित कदम

श्री सुजित कदम

☆ शिकवण ☆ 

(श्री सुजित कदम जी  की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं  अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं। इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं।)

 

काल खूप वर्षांनंतर एक ओळखीचे काका भेटले,  मस्त गप्पा मारल्या…!

मला म्हटले ,”काय करतोस..?” मी म्हटलं…”.छोटसं दुकान आहे…”

मी काही बोलायच्या आधीच.. त्यांनी बोलायला सुरुवात केली..;

”ह्या सोसायटीत माझा मोठा फ्लॅट आहे..,

घरात धुणं भाड्यांला कामवाली आहे..,

फोर व्हिलर ही आहे..; पण ह्या वयात चालवायला भिती वाटते, आम्ही दोघंच असतो बघ इथे रहायला…!

पेन्शन मध्ये जेवढं भागवता येईल तेवढं भागवतो .

मोठा मुलगा अमेरिकेत असतो…

दुसरा मुलगा ईथे जवळजच राहतो …,

दोघांनाही त्यांच्या मनासारखं शिकवलं..

आता  ते दोघेही *वेल सेटल* आहेत…”

काका  मनसोक्त बोलत होते मी ऐकत होतो…,

”वर्षां दोन वर्षांनी मोठा अमेरिकेतून मुलगा येतो भेटायला.. काही दिवस राहतो.. त्याची इथली कामे झाली की विचारतो,  ” किती पैसे देऊ? ”

”बेटा पैसाच आता  आमच्यातला दुरावा बनत चाललाय बघ.  आमच्या गरजा आता भावनिक  आहेत. ”

”दुसरा मुलगा खूपच बिझी असतो त्याला तर अजिबात वेळ मिळत नाही…  मीच दिवसभर एखादी चक्कर मारतो त्याच्याकडे..!”

“मुलं मोठी झाल्यावर… थोडं आपणच समजून घ्यायला हवं..आपणच..,मुलांना आभाळ मोकळं करून दिलंय किती उंच उडायचय हे त्यांच त्यांनी ठरवायचं….;फक्त उडताना त्यांनी घरचा रस्ता विसरू नये एवढंच…!”

“बरं माझ सोड …

तू सांग तूझ कस चाललय …?

मी म्हटलं..” छान चाललयं….”

“दोन मुलं आहेत… लहान आहेत अजून..”

यावर ते म्हणाले  , “वाह… छान..

त्यांना ही आभाळ मोकळ करून दे…!

तुझ्या मुलांना ते म्हणतील ते सारं काही दे पण दुसर्‍या साठी वेळ द्यायचा  असतो हे देखील शिकवता  आलं तर जरूर शिकव या नव्या पिढीला. . . !

तुझ्या  लेकरांना दैदीप्यमान भरारी घेण्यासाठी दशदिशा खुल्या करून दे  पण त्यांना घरी परतण्यासाठी रस्ता मात्र एकच ठेव…;

पुस्तके वाचायला शाळेत शिकतीलच . . पण या दुनियेत जगण्यासाठी माणसं वाचायला शिकव.  म्हातारपणी  आधार हवा  असतो बेटा. . डेबिट कार्ड नको  असतं . . आपल माणूस  आपल्या शिलकीत पाहिजे. . . यशोकीर्तीच्या घडणावणीत आपल लेकरू आपल रहात नाही आणि मग सुरु होतं वाट पहाणं.

तुझ्या मुलांना पैसा कमवायला  आणि प्रेम वाटायला शिकव म्हणजे मग माझ्यासारखी तुला वाट पहावी लागणार नाही…! ”

 

© सुजित कदम, पुणे

मोबाइल 7276282626.
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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – द्वितीय अध्याय (34) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

द्वितीय अध्याय

साँख्य योग

( अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद )

(क्षत्रिय धर्म के अनुसार युद्ध करने की आवश्यकता का निरूपण)

 

अकीर्तिं चापि भूतानि कथयिष्यन्ति तेऽव्ययाम्‌।

सम्भावितस्य चाकीर्ति-र्मरणादतिरिच्यते ।।34।।

 

दीर्घ काल तक करेगें लोग तुझे बदनाम

भले व्यक्ति को,मृत्यु से अधिक दुखद यह काम।।34।।

      

भावार्थ :  तथा सब लोग तेरी बहुत काल तक रहने वाली अपकीर्ति का भी कथन करेंगे और माननीय पुरुष के लिए अपकीर्ति मरण से भी बढ़कर है।।34।।

 

People, too, will recount thy everlasting dishonour; and to one who has been honoured, dishonour is worse than death. ।।34।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

 

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल – Happiness and Well-Being – Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator and Speaker.)

Happiness and Well-Being

Each one of us seeks happiness.

Happiness and well-being is not a thing. The modern science of happiness and well-being describes it as a ‘construct’.

For example, ‘weather’ is a construct. Ask any meteorologist, and he will tell you: weather is not a thing, it is a construct – a construct of temperature, humidity, barometric pressure, wind speed and a host of other factors.

The elements of well-being include positive emotion, engagement or flow, positive relationships, meaning and accomplishment.

A couple of additional features from out of self-esteem, optimism, resilience, vitality and self-determination are required to really flourish.

This means you have to dig a bit deeper to understand fully what is happiness and well-being. It’s not as simplistic as saying: happiness is within us.

Happiness does not come to you on its own. You have to act in order to achieve it.

The good news is that we can learn to enhance our levels of happiness and well-being.

Everyone wants to be happy. Here are some simple happiness mantras:

  • Every morning, do yoga and meditation – or walk and exercise.
  • During the day, smile and be kind to all.
  • In the evening, look back at 3 things that went well in the day.
  • During the week-end, spend quality time with your family and friends.
  • Engage deeply in work, studies, play, love and parenting.
  • Devote yourself to a meaningful humanitarian or social cause.
  • Share an occasional ice-cream or chocolate with a child.
  • Be happy and make others happy.

Jagat Singh Bisht

Founder: LifeSkills

Seminars, Workshops & Retreats on Happiness, Laughter Yoga & Positive Psychology.
Speak to us on +91 73899 38255
[email protected]
Courtesy – Shri Jagat Singh Bisht, LifeSkills, Indore

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हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ हिन्दू नववर्ष, चैत्र नवरात्रि, गुड़ी पड़वा वर्ष प्रतिपदा ☆ – डॉ उमेश चंद्र शुक्ल

डॉ उमेश चन्द्र शुक्ल  

हिन्दू नववर्ष, चैत्र नवरात्रि, गुड़ी पड़वा वर्ष प्रतिपदा

(हिन्दू नववर्ष, चैत्र नवरात्रि, गुड़ी पड़वा वर्ष प्रतिपदापर्व पर  डॉ उमेश चंद्र शुक्ल जी का  विशेष  आलेख  उनके व्हाट्सएप्प  से साभार। )

 

*हिन्दू नववर्ष, चैत्र नवरात्रि, गुड़ी पड़वा वर्ष प्रतिपदा पर आपको एवम् आपके परिवार को ढेर  सारी हार्दिक शुभकामनाएं*

*चैत्र शुक्ल प्रतिपदा,*
*विक्रमी संवत् २०७६*
*सृष्टि संवत् १९६०८५३१२० वर्ष*
*दिनांक – ६ अप्रैल शनिवार २०१९ ई.
*सनातन महत्व-*
  1. सृष्टि संवत्
  2. मनुष्य उत्पत्ति संवत्
  3. वेद संवत्
  4. देववाणी भाषा संवत्
  5. सम्पूर्ण प्राणी उत्पत्ति संवत्
*ऐतिहासिक महत्व -*
  1.    विक्रम संवत्
  2.    शक संवत्
  3.    आर्य सम्राट विक्रमादित्य जन्मदिवस
  4.    युधिष्ठिर राज्याभिषेक दिवस
  5.    आर्यसमाज स्थापना दिवस

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नव वर्ष प्रारंभ होता है। इसी दिन सूर्योदय के साथ सृष्टि का प्रारंभ परमात्मा ने किया था। अर्थात् इस दिन सृष्टि प्रारंभ हुई थी तब से यह गणना चली आ रही है।

यह नववर्ष किसी जाति, वर्ग, देश, संप्रदाय का नहीं है अपितु यह मानव मात्र का नववर्ष है। यह पर्व विशुद्ध रुप से भौगोलिक पर्व है। क्योकि प्राकृतिक दृष्टि से भी वृक्ष वनस्पति फूल पत्तियों में भी नयापन दिखाई देता है। वृक्षों में नई-नई कोपलें आती हैं। वसंत ऋतु का वर्चस्व चारों ओर दिखाई देता है। मनुष्य के शरीर में नया रक्त बनता है। हर जगह परिवर्तन एवं नयापन दिखाई पडता है। रवि की नई फसल घर में आने से कृषक के साथ संपूर्ण समाज प्रसन्नचित होता है। वैश्य व्यापारी वर्ग का भी आर्थिक दृष्टि से यह महीना महत्वपूर्ण माना जाता है। इससे यह पता चलता है कि जनवरी साल का पहला महीना नहीं है पहला महीना तो चैत्र है, जो लगभग मार्च-अप्रैल में पड़ता है। १ जनवरी में नया जैसा कुछ नहीं होता किंतु अभी चैत्र माह में देखिए नई ऋतु, नई फसल, नई पवन, नई खुशबू, नई चेतना, नया रक्त, नई उमंग, नया खाता, नया संवत्सर, नया माह, नया दिन हर जगह नवीनता है। यह नवीनता हमें नई ऊर्जा प्रदान करती है।
नव वर्ष को शास्त्रीय भाषा में नवसंवत्सर (संवत्सरेष्टि) कहते हैं। इस समय सूर्य मेष राशि से गुजरता है इसलिए इसे *”मेष संक्रांति”* भी कहते हैं।
प्राचीन काल में नव-वर्ष को वर्ष के सबसे बड़े उत्सव के रूप में मनाते थे। यह रीत आजकल भी दिखाई देती है जैसे महाराष्ट्र में गुडीपाडवा के रुप में मनाया जाता है तथा बंगाल में पइला पहला वैशाख और गुजरात आदि अनेक प्रांतों में इसके विभिन्न रूप हैं।
नववर्ष का प्राचीन एवं ऐतिहासिक महत्व-
  1. आज चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ही परम पिता परमात्मा ने १९६०८५३१२० वर्ष पूर्व यौवनावस्था प्राप्त मानव की प्रथम पीढ़ी को इस पृथ्वी माता के गर्भ से जन्म दिया था। इस कारण यह “मानव सृष्टि संवत्” है।
  2. इसी दिन परमात्मा ने अग्नि वायु आदित्य अंगिरा चार ऋषियों को समस्त ज्ञान विज्ञान का मूल रूप में संदेश क्रमशः ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद के रूप में दिया था। इस कारण इस वर्ष को ही वेद संवत् भी कहते हैं।
  3. आज के दिन ही मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने लंका पर विजय प्राप्त कर वैदिक धर्म की ध्वजा फहराई थी। (ज्ञातव्य है कि भगवान श्रीराम का राज्याभिषेक चैत्र शुक्ल षष्ठी को हुआ था ना की प्रतिपदा अथवा दीपावली पर) (विजयादशमी व दीपावली का श्रीराम से कोई संबंध नहीं है देखे श्रीमद् वाल्मीकि रामायण)।प0
  4. आज ही से कली संवत् तथा भारतीय विक्रम संवत् युधिष्ठिर संवत् प्रारंभ होता है।
  5. आज ही के शुभ दिन विश्व वंद्य अद्वितीय वेद द्रष्टा महर्षि दयानन्द सरस्वती ने संसार में वेद धर्म के माध्यम से सब के कल्याणार्थ “आर्य समाज” की स्थापना की थी। इसी भावना को ऋषि ने आर्य समाज के छठे नियम में अभिव्यक्त करते हुए लिखा *”संसार का उपकार करना इस समाज का मुख्य उद्देश्य है अर्थात शारीरिक आत्मिक और सामाजिक उन्नति करना”*
         महानुभावों! इन सब कारणों से यह संवत् केवल भारतीय या किसी पंथ विशेष के मानने वालों का नहीं अपितु संपूर्ण विश्व मानवों के लिए है।
आइए! हम सार्वभौम संवत् को निम्न प्रकार से उत्साह पूर्वक  मनाएं -*
  1. यह संवत् मानव संवत् है इस कारण  हम सब स्वयं को एक परमात्मा की संतान समझकर मानव मात्र से प्रेम करना सीखें। जन्मना ऊंच-नीच की भावना, सांप्रदायिकता, भाषावाद, क्षेत्रीयता, संकीर्णता आदि भेदभाव को पाप मानकर विश्वबंधुत्व एवं प्राणी मात्र के प्रति मैत्री भाव जगाएं। अमानवीयता व दानवता का नाश तथा मानवता की रक्षा का व्रत लें।
  2. आज वेद संवत् भी प्रारंभ है। इस कारण हम सब अनेक मत पंथों के जाल से निकलकर संपूर्ण भूमंडल पर एक वेद धर्म को अपनाकर प्रभु कार्य के ही पथिक बनें। हम भिन्न-भिन्न समयों पर मानवों से चलाए पंथों के जाल में न फसकर मानव को मानव से दूर न करें। जिस वेद धर्म का लगभग २ अरब वर्ष से सुराज्य इस भूमंडल पर रहा उस समय (महाभारत से पूर्व तक) संपूर्ण विश्व त्रिविध तापों से मुक्त होकर मानव सुखी समृद्धि व आनंदित था। किसी मजहब का नाम मात्र तक ना था। इसलिए उस वैदिक युग को वापस लाने हेतु सर्वात्मना समर्पण का व्रत लें। स्मरण रहे धर्म मानव मात्र का एक ही है, वह है वैदिक धर्म।
  3. वैदिक धर्म के प्रतिपालक मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की विजय दिवस पर हम आज उस महापुरुष की स्मृति में उनके आदर्शों को अपनाकर ईश्वर भक्त, आर्य संस्कृति के रक्षक, वेद भक्त, सच्चे वेदज्ञ गुरु भक्त, मित्र व भातृवत्सल, दुष्ट संहारक, वीर, साहसी, आर्य पुरुष व प्राणी मात्र के प्रिय बने। रावण की भोगवादी सभ्यता के पोषक ना बनें।
  4. आज राष्ट्रीय संवत् पर महाराज युधिष्ठिर विक्रमादित्य आदि की स्मृति में अपने प्यारे आर्यावर्त भारत देश की एकता अखंडता एवं समृद्धि की रक्षा का व्रत लें। राष्ट्रीय स्वाभिमान का संचार करते हुए देश की संपत्ति की सुरक्षा संरक्षा के व्रति बनें। जर्जरीभूत होते एवं जलते उजड़ते देश में इमानदारी, प्राचीन सांस्कृतिक गौरव, सत्यनिष्ठा, देशभक्ति, कर्तव्यपरायणता व वीरता का संचार करें।
  5. आज आर्य समाज स्थापना दिवस होने के कारण *”कृण्वन्तो विश्वमार्यम्”* वेद के आदेशानुसार सच्चे अर्थों में आर्य बनें एवं संसार को आर्य बनाए न की नामधारी आर्य। आर्य शब्द का अर्थ है- सत्य विज्ञान  न्याय से युक्त वैदिक अर्थात ईश्वरीय मर्यादाओं का पूर्ण पालक, सत्याग्रही, न्यायकारी, दयालु, निश्छल, परोपकारी, मानवतावादी व्यक्ति। इस दिवस पर हम ऐसा ही बनने का व्रत लें तभी सच्चे अर्थों में आर्य (श्रेष्ठ मानव) कहलाने योग्य होंगे। आर्यत्व आत्मा व अंतःकरण का विषय है। न कि कथन मात्र का।

 

© डॉ.उमेश चन्द्र शुक्ल
अध्यक्ष हिन्दी-विभाग परेल, मुंबई-12
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ई-अभिव्यक्ति: संवाद-19 – हेमन्त बावनकर

ई-अभिव्यक्ति:  संवाद–19       

सर्वप्रथम आप सबको आप सबको भारतीय नववर्ष, गुड़ी पाडवा, चैत्र नवरात्रि एवं उगाड़ी पर्व की हार्दिक शुभकामनायें। पर्व हमारे जीवन में उल्लास तो लाते ही हैं साथ ही हमें एवं हमारी आने वाली पीढ़ी को हमारी संस्कृति से अवगत भी कराते हैं।

आज इन सभी पर्वों के साथ आप सबसे यह संदेश साझा करने में गर्व का अनुभव हो रहा है कि विगत दिनों www.e-abhivyakti.com परिवार के दो सदस्यों ने अभूतपूर्व सफलता अर्जित की जिसके लिए मैं दोनों सदस्यों को हार्दिक शुभकामनायें एवं बधाई देना चाहता हूँ।

इन पंक्तियों के लिखे जाने तक सम्माननीय साहित्यकार श्री संतोष ज्ञानेश्वर भुमकर जी की कविता “असीम बलिदान ‘पोलिस'” को विगत दो दिनों में 252 पाठकों  ने इस वेबसाइट पर पढ़ा। यह अपने आप में उनकी रचना के लिए एक कीर्तिमान है।

विगत दिवस  हमारी वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी को मशाल न्यूज़  नेटवर्क स्पर्धा में   द्वितीय  पुरस्कार प्राप्त करने के लिए हार्दिक  अभिनंदन।

मैं आपका हृदय से आभारी हूँ। आप सभी साहित्यकार मित्रगणों  का स्नेह ही मेरी पूंजी है।  पुनः आपका सभी  साहित्यकार  मित्र गणों  का अभिनंदन एवं  लेखनी को सादर नमन।

आज बस इतना ही।

हेमन्त बावनकर

6 अप्रैल 2019

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हिन्दी साहित्य – कविता – ☆ अब क्यूँ ? ☆ – डॉ ऋतु अग्रवाल

डॉ ऋतु अग्रवाल 

☆ अब क्यूँ ? ☆

(डॉ ऋतु अग्रवाल जी का e-abhivyakti में स्वागत है। आप भीम राव आंबेडकर कॉलेज, दिल्ली में प्राध्यापक हैं । सोशल मीडिया से परिपूर्ण वर्तमान एवं विगत जीवन के एहसास की अद्भुत अभिव्यक्ति स्वरूप यह कविता “अब क्यूँ?” हमें विचार करने के लिए प्रेरित करती है।)

 

अब क्यूँ

हमारे शर्म से

चेहरे गुलाब नहीं होते.

अब क्यूँ

हमारे मिजाज मस्त मौला नहीं होते

इजहार किया करते थे

दिल की बातों का

अब क्यूँ

हमारे मन खुली किताब नहीं होते

कहते हैं तब, बिना बोले

मन की बात समझते

आलिंगन करते ही हालात समझ लेते

ना होता था

व्हाट्सएप, फेसबुक

ख़त होता था

खुली किताब

मिल जाता था दिलों का हिसाब

हम कहां थे कहां आ गए

नहीं पूछता बेटा बाप से

उलझनों का समाधान

नहीं पूछती बेटी मां से

घर के सलीको का निदान

अब कहां गई

गुरु के चरणों में बैठकर

ज्ञान की बातें

परियों की वह कहानी

न रही ऐसी जुबानी

अपनों की वह यादें

न रहे वो दोस्त,न रही वो दोस्ती

ऐ मेरी जिंदगी

हम सब

व्यावहारिक हो गए

मशीनी दुनिया में इंसानियत खो गए.

 

© डॉ.ऋतु अग्रवाल 

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मराठी साहित्य – मराठी कविता – ? प्रेमाला उपमा नाही ? – सुश्री ज्योति हसबनीस

सुश्री ज्योति हसबनीस

 

? प्रेमाला उपमा नाही ?

 

प्रेम करावे भरभरून , जीव ओवाळून , कधी कधी स्वतःत रमतांना स्वतःला विसरून !

 

प्रेम करावे तृणपात्याच्या दंवबिंदूवर

प्रेम करावे उषःकालच्या क्षितिजावर

प्रेम करावे किलबिलणा-या पाखरांवर

प्रेम करावे गंधित वायुलहरींवर

प्रेम करावे शहारणा-या जललहरींवर

प्रेम करावे रविकिरणांच्या ऊर्जेवर

प्रेम करावे चांद्रकालच्या भरतीवर

प्रेम करावे सांध्यकालच्या ओहोटीवर

प्रेम करावे सृष्टीच्या अथक सृजनावर

प्रेम करावे  पहाडाच्या उंचीवर

प्रेम करावे सागराच्या अथांगतेवर

प्रेम करावे आकाशाच्या असीमतेवर

प्रेम करावे आईच्या निरंतर वात्सल्यावर

प्रेम करावे बाल्याच्या निर्व्याज हास्यावर

प्रेम करावे दोस्तीच्या निखळ नितळपणावर

 

प्रेम खळाळत्या बालपणावर करावे

प्रेम सळसळत्या तारूण्यावर करावे

प्रेम शांत समंजस वानप्रस्थावर करावे

सर्व चराचर व्यापून असलेल्या चिरंतनावर तर प्रेम करावेच करावे

 

©  सौ. ज्योति हसबनीस

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मराठी साहित्य – मराठी आलेख – ? आनंदाचं फुलपाखरू ?- श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 ? आनंदाचं फुलपाखरू ?

 

(विगत दिवस आदरणीया श्रीमति रंजना जी को मशाल न्यूज़  नेटवर्क स्पर्धा में पुरस्कार के लिए अभिनंदन। आपने इस आलेख में  मेरे लिए सम्मान जाहिर  किया है  उसके लिए मैं आपका हृदय से आभारी हूँ। आप सभी साहित्यकार मित्रगणों  का स्नेह ही मेरी पूंजी है।  पुनः आपका अभिनंदन एवं  लेखनी को सादर नमन)

आज मशाल न्यूज नेटवर्कने घेतलेल्या स्पर्धेचा निकाल जाहीर झाला  आणि मला या स्पर्धेत दुसरा क्रमांक मिळाला . स्पर्धेला जाताना एक सादरीकरणाची संधी म्हणून गेले. प्रचंड तणाव  असताना सादरीकरण केले.  शुभांगी यशस्वी झाले. व्हिडीओ तयार झाला. त्याची  लिंक आली.

सुरुवातीला भीत भीत मित्र मंडळींना फॕमिली मेंबरला ती लिंक  शेअर केली ,हळूहळू शैक्षणिक समुह काव्य समुहात सुद्धा फिरू माझी कविता घराघरात वाजू लागली .भेटणारा प्रत्येकजण आवर्जून त्या बद्दल बोलू लागला , आणि नकळत आयुष्यातील चाळीशीचे वळण आठवले. या वयात जवळपास आपली मुलं साधारणपणे मोठी झालेली असतात . अगदी दहा  पंधरा वर्षे आई आई करत मागेपुढे घुटमळणारी मुलं शिक्षण, नोकरीच्या निमित्ताने एकाएकाने दूर जाऊ लागतात.

सुरूवातीला शरीराने आणि हळूहळू मनाने कार्यक्षेत्र  बदलते  चर्चेचे विषय बदलतात. बरेच वेळा आपल्याला  त्यांची चर्चा  समजत ही नाही मग मुलं बाबांशी, मित्रांशी थोडीफार चर्चा करतात, त्यांचा सल्ला घेतात, ही गोष्ट सुद्धा मनाला  नक्कीच खटकत असे .

आज पर्यंत आपल्या आवडीने कपडेलत्ते खाणे पिणे करणारी मुलांना मित्र, मैत्रीणींचा , सल्ले घ्यावे लागतात हे पाहून कुठतरी चुकल्या सारखं वाटे. प्रत्येक बाबींवर मनसोक्त चर्चा करणारी मुलं मित्रांना फोनवर नंतर बाहेर आल्यावर बोलू म्हणतात, पुरणपोळी खीर आवडीने खाणारी मुलं पिझ्झा बरगर आवडीने खातात आणि कुठेतरी नवरा देखील त्यांना साथ देतो  ही  आशा अनेक गोष्टी ज्या    आजवर फक्त आपल्या मनाप्रमाणे चाललेल्या होत्या त्यात बदल झालेला असतो कुठेतरी आपल्या हातातून सत्ता निसटून जात आहे  पेक्षा आता आपली कुणालाही गरज राहिली नाही ही भावना  अंतरंगात डोकावत असते . आपण एकटे पडत चालल्याची जाणीव वाढायला लागते. यातून चिडचिड वाढायला लागते आणि घरातील माणसे  दुरावत जातात . कारण आपल्या चिडण्या पेक्षा आपल्या पासून दूर राहाणेच योग्य असे त्यांना वाटायला लागतं.

अगदी जीवन नकोस वाटायला लागले . रिकामा वेळ खायला ऊठला. ज्या मुलांसाठी घरासाठी आपण रात्रीचा दिवस करतो. स्वतःची प्रकृती, शिक्षण छंद कशाचा ही विचार केला नाही परंतु आज मात्र हळूहळू चित्र बदलताना दिसत होतं मन खट्टू झालं.

थोडंस थांबून  शांतपणे विचार केला. आपलं तरूणपण आठवले. हवेत तरंगणारे दिवस आठवले. आणि आर्धी चिडचिड नक्कीच कमी झाली .  लक्षात आले की या घराला सावरण्यात आपल्याला स्वतःसाठी करावयाच्या कितीतरी गोष्टी राहून गेलेल्या आहेत अनेक छंदांना आपण तिलांजली दिली होती.

आता आपल्याकडे भरपूर वेळ आहे. मग कुरकुरत कशाला बसायचं ऊठा लागा कामाला . मुख्य म्हणजे रडणारी आणि चिडणारी माणसं कुणालाही आवडत नाहीत त्यामुळे आता स्वतःसाठी जगायचं असं मनाशी ठरवलं . अगदी वयाच्या बेचाळीसाव्या वर्षी बी.  ए. फायनलचा फॉर्म भरला तेही इंग्रजी ऐच्छिक घेऊन आता आपल्याला झेपेल का भीती होती परंतु जमलं.पुढे बी. एड . सुद्धा केले. गल्लीत महिला बचत गट सुरू केला .यातून बऱ्याच महिलांना शिलाई मशीन मिर्ची पल्वलायझर, शेवयाची मशीन , छोटी गिरणी, छोटे लेडीज एम्पोरियम सुरू करणे अशी अनेक छोटी मोठी कामे यातून सुरू करण्यात आली. मुख्य म्हणजे रिकामा वेळ सार्थकी लागला. नोकरी आणि घर या कसरतीत मैत्री हा प्रकार जीवनातून जणू हद्दपारच झाला होता, तो पुन्हा सापडला .

कामासाठी का असेना पण अनेक जणींशी गप्पागोष्टी वाढल्या आणि एकटेपणा पळून गेला. आठवड्यातून एकदा गुरूवारी व एकादशीला सत्संगाच्या निमित्ताने रात्री एकत्र जमायला लागलो . भजनाच्या निमित्ताने जुना संगिताचा छंद डोकावू लागला वीस वर्षे माळ्यावर ठेवलेली हार्मोनियम खाली आली. नकळत सूर जुळायला लागले. शिक्षणोत्सव सर्व शिक्षा अभियानाच्या निमित्तानं शैक्षणिक साहित्य निर्मिती करणे शैक्षणिक साहित्य जत्रेत स्टॉल लावणे, इत्यादीमुळे बाजुला सारलेली चित्रकला पुन्हा उपयोगात आली . ओळखीच्या मोठ्या मुली शिवण काम शिकवणे, रुखवताचे साहित्य शिकवणे, अशा अनेक गोष्टी त्याही विनामूल्य असल्यामुळे सहाजिकच अनेकजणी जवळ आल्या जगण्याचा सूर कुठेतरी गवसला आनंदाचे वारे पुन्हा वाहू लागले.

यात भर पडली ती स्मार्ट फोनची whats app सुरू झाले सुरूवातीला मैत्रीणींचे समुह नंतर शैक्षणिक समुह जॉईन केले. उत्तम सादरीकरणामुळे अनेक समुहात संचालिका म्हणून कामाची संधी मिळाली. आणि अचानक एक दिवस काव्य समुहाची लिंक मिळाली.समुह जॉईन केला आणि पंचवीस वर्षापूर्वीचं कवी मन नकळत जागे झाले. हा कदाचित दैवयोग असेल परंतु मला या समुहात सुद्धा संचालिका म्हणून काम करण्याची संधी मिळाली . आयुष्यात कधी काव्य संमेलन पाहायला जाण्याचं सुद्धा स्वप्न न पाहिलेली मी परंतु नागपूर शिलेदार समुहाच्या संमेलनात कविता सादरीकरणाची संधी मिळाली आणि खूप आनंद झाला . राज्यस्तरीय समुहातून अनेक कवी कवयित्रींची ओळख झाली .आणि स्वतःचे समुह तयार केले . दररोज लेखन वाढले .

अनेक दिग्गज लेखक कवी कवयित्रींच्या ओळखी झाल्या कवी संमेलनातील सहभाग वाढला आणि आत्मविश्वास सुद्धा वाढला . यातच मशाल न्यूज नेटवर्क ने काव्य स्पर्धा ठेवली आणि गुपचूप लिहिणारी मी नकळत घराघरात पोहचले. या स्पर्धेत सुद्धा राज्यात दुसरा नंबर मिळाल्या मुळे झालेला आनंद नक्कीच शब्दात व्यक्त करणे अशक्य आहे.

दरम्यानच्या काळात हेमंतजी बावनकर यांच्या वेबसाईटवर ब्लॉक लेखिका म्हणून लेख कथा लेखनाची संधी मिळाली. आयुष्यातील पन्नास वर्षात अनुभवलेले अनेक अनुभव नकळत कागदावर उतरायला लागले.मुख्य म्हणजे हेमंतजींच्या प्रोत्साहनामुळे लेखनास चालना मिळाली.

आज मला प्रश्न पडला की आयुष्यात एवढं भरभरून करण्यासाठी बरच काही असताना आपण म्हातारे झालो . आपली कुणाला गरज नाही या विचाराने कुढत का बसावं आपले ज्ञान अपडेट करा . भरपूर वाचन करा ,जमेल तसे लेखन करा. भरपूर व्यायाम करा. तुमच्याकडे इतरांसाठी वेळ नाही हे लक्षात आल्यानंतर घरातल्यांना सुद्धा तुमची किंमत कळेल . मुख्य म्हणजे हे सर्व हसत खेळत करा.

आयुष्यातील या वळणावर जसा जसा वेळ मिळत जाईल तसे तसे एकेक उपक्रम वाढवत जा म्हणजे आयुष्यातील ही पोकळी जाणवणार नाही . मुख्य म्हणजे रडणारी आणि चिडणारी माणसं कुणालाही आवडत नाहीत त्यामुळे संयमाने वागा. लहानात लहान , तरूणांत तरूण होऊन वागावं आपलीच रट लावून धरता.

आपण इतरांचे जर  ऐकायला शिकलो तर  पाहा जे आनंदाचे फुलपाखरू पकडण्यासाठी तुम्ही अकांड तांडव करत होतात . ते फुलपाखरू नकळत तुमच्या खांद्यावर येऊन बसेल अगदी सहजपपणे . . . . !

एक आनंदी सर्व समावेशक समाजशील प्रौढत्व आकाराला येईल जे अगदी प्रसंन आणि परिपूर्ण असेल.

 

©  रंजना लसणे✍

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

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