( अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद )
(सांख्ययोग का विषय)
अव्यक्तोऽयमचिन्त्योऽयमविकार्योऽयमुच्यते ।
तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमर्हसि।।25।।
अविकारी,अव्यक्त है,तथा अचिन्त्य अपार
इससे इसके शोक का नहीं कोई आधार।।25।।
भावार्थ : यह आत्मा अव्यक्त है, यह आत्मा अचिन्त्य है और यह आत्मा विकाररहित कहा जाता है। इससे हे अर्जुन! इस आत्मा को उपर्युक्त प्रकार से जानकर तू शोक करने के योग्य नहीं है अर्थात्तुझे शोक करना उचित नहीं है।।25।।
This (Self) is said to be unmanifested, unthinkable and unchangeable. Therefore, knowing This to be such, thou shouldst not grieve. ।।25।।
(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)
Meditation, Yoga, Laughter Yoga, The Science of Happiness, Spirituality
Can we be happy on a continuous basis?
How can we attain and sustain a tranquil mind?
Is it possible for us to develop a simple routine that can keep us charged throughout the day?
Can we prevent stress from arising in our daily life?
Is there a way to be child-like once again in body, mind and spirit?
These are some of the questions I have been pondering over for more than two decades now. Not just pondering but researching and experimenting. I feel happy and fulfilled that years of hard work has borne fruit and I can now share something worthwhile which will be of great benefit to many.
I began my journey as a behavioural science trainer facilitating people to discover their real self. Sometimes I was with them for long hours and felt satisfied that I was able to help them. But when I went back home, I found it difficult to share the experience I had during the day with my wife. It felt sad as some of them were valuable experiences indeed.
We, therefore, decided to take up an activity that we could do together. It proved to be our wisest decision ever.
Laughing together
We went to learn laughter yoga and thereafter conducted sessions to bring smiles on the faces around. It was our way of giving back. We had never imagined that we would go so deep into it and engage with participants coming from almost the whole world.
Laughter yoga is one of the happiest activities that one can imagine of. It generates a lot of positivity. It is good for health and generates instant joy.
Unconditional laughter many a times leads you to a deep meditative state freeing you of all stress and worries of life. It is also a sweet spiritual experience when you can make the depressed ones laugh and the tough ones crack like kids.
Despite numerous positives, we felt that it had its own limitations. It was like a pudding and human beings need wholesome meal for mind and body, heart and soul.
We started exploring yoga nidra – a systematic method for inducing complete physical, mental and emotional relaxation. As we went deeper and deeper, we unearthed hidden treasures. That lead us to the ancient techniques of meditation and subsequently to Buddha’s mindfulness and insight meditation.
The Science of Happiness
Concurrently, I was following the latest developments in positive psychology. Per its founder, Martin Seligman, the five elements of well-being are positive emotions, engagement, relationships, meaning and accomplishment. Being a student of science myself, I have all the reverence for Seligman but, having delved a bit into spirituality, I believe that well-being is not only a construct but is multi-dimensional and much more complex.
Sonja Lyubomirsky, professor of psychology, describes the most effective happiness activities in her book entitled ‘The How of Happiness’. It is interesting that these activities include: practicing religion and spirituality, taking care of your body (meditation), taking care of your body (physical activity), taking care of your body (acting like a happy person).
Mihaly Csikszentmihalyi, psychologist, finds great similarities between yoga and flow. He considers yoga as a “thoroughly planned flow activity” as both try to achieve a joyous, self-forgetful involvement through concentration, which in turn is made possible by a discipline of the body.
Stephen Covey, Daniel Goleman, Matthieu Ricard and Richard Gere, to name just a few of the luminaries, practice meditation and have deep faith in meditation as a contributing factor for enduring happiness.
Experiments with happiness
Based on our study, we carried out some experiments with happiness. We created and administered four programmes to different sets of participants in different environment.
The first programme is named ‘The Wheel of Happiness and Well-Being’ for participants in a formal set-up like workplace or educational institution. It includes inputs of positive psychology, meditation, yoga, laughter yoga and spirituality. The sessions are well appreciated and the audience find great value in it.
Some people seek peace and serenity. For them we conduct a programme named ‘Meditate like Buddha’ once a week early in the morning. It’s only ingredient is meditation – pure meditation, nothing else. All the participants desire to have the programme daily.
We conduct ‘Happiness boot camp’ on weekends for families in a park. It includes yoga, meditation, laughter yoga and fun activities. The response has been getting better and better.
Then, we also have a longish, multi-dimensional retreat of a week’s duration named ‘East meets West’ which blends the best of modern science with ancient wisdom. Here you learn to make your life happier, meaningful and worthwhile and also train to be a versatile and multi-faceted Happiness and Well-Being Facilitator.
It has plentiful inputs from Positive Psychology, Yoga, Meditation, Laughter Yoga and Spirituality along with special offerings of Yoga Nidra, Surya Namaskara, Anapana Meditation, Sufi Meditation and Happiness Activities.
We have planned one such retreat on the bank of Ganga in the Himalayas at Rishikesh, India.
Having conducted sessions and interacted with thousands of people for years now, we feel that we have the recipe for happiness and well-being with us. Being able to touch lives is the ultimate fulfillment.
कल ई-अभिव्यक्ति-संवाद में हमने मुख्यतया दो विषयों पर चर्चा की थी उस आधार पर एक व्हाट्सएप्प ग्रुप www.e-abhivyakti.com बनाया गया है जिसके माध्यम से आपको प्रतिदिन प्रकाशित रचनाओं की जानकारी मिल सकेगी। हाँ, आप इस ग्रुप में कुछ पोस्ट नहीं कर पाएंगे। इसके लिए आपको अपनी रचनाएँ एवं संवाद मेरे व्यक्तिगत व्हाट्सएप्प नंबर पर ही पोस्ट करना होगा अन्यथा आपकी पोस्ट तो लोग व्हाट्सएप्प पर ही पढ़ लेंगे और प्रकाशित रचनाओं का आनंद लेने से सभी वंचित रह जाएंगे। और मुझे प्रत्येक सम्माननीय लेखकों को उनकी प्रकाशित रचनाओं की सूचना अलग से देने की आवश्यकता नहीं होगी। मुझे खुशी है कि कई लेखकगण मेरी बात से सहमत हो गए हैं। मुझे पूर्ण आशा है कि आप भी मुझसे सहमत होंगे।
इसके अतिरिक्त हमने स्व-प्रकाशन (Self-Publication) के बारे में चर्चा की थी। इस प्रक्रिया से आज अधिकतर लेखक मित्र अवगत हैं। इस प्रक्रिया के कारण प्रिंट ऑन डिमांड (POD) की मांग अचानक ही बढ़ गई है। लेखक अपने पसीने की कमाई और अपने कठोर परिश्रम से पुस्तकें तो प्रकाशित कर लेते हैं किन्तु, वे अपनी पुस्तकों का बाजार नहीं बना पाते हैं। साहित्य की रचना करना एक बात है और उसका विक्रय करना दूसरी बात है।
मेरे अधिकतर मित्र मुद्रित संस्करणों के बारे में जानते हैं। यदि नवीन पीढ़ी की बात छोड़ दी जाए तो मेरी समवयस्क एवं वरिष्ठ पीढ़ी ई-बुक्स की तकनीकी जानकारी से अनभिज्ञ हैं। ई-बुक्स में अमेज़न, फ्लिपकार्ट, बुकबेबी जैसी ऑनलाइन प्रणालियाँ ई-बुक्स के व्यापार में क्रांतिकारी साबित हुए हैं। हम ई-बुक्स को अपने मोबाइल, टेबलेट, लेपटोप, डेस्कटॉप आदि में डाउनलोड कर आसानी पुस्तक जैसे पढ़ सकते हैं।
लेखक गण अपनी पुस्तकों को आसानी से ई-बुक्स में परिवर्तित कर ऑनलाइन स्टोर्स में अपलोड कर बेच सकते हैं। अमेज़न की किंडल डाइरेक्ट पब्लिशिंग प्रक्रिया एक आसान प्रणाली है। संभवतः हमारे युवा लेखक इस प्रक्रिया को जानते हैं। यदि आप इस बारे में और ज्यादा जानकारी चाहते हैं तो प्रथम लिंक पर लॉग-इन कर विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। द्वितीय लिंक के माध्यम से आप विस्तार से ई-बुक प्रकाशन की तकनीक सीख सकते हैं।
मैं आशा करता हूँ कि मित्र लेखकों के लिए उपरोक्त जानकारी उपयोगी साबित होगी। इसके माध्यम से आप अङ्ग्रेज़ी के अतिरिक्त कई भारतीय भाषाओं में ई-बुक्स तैयार कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त भारत में भी नोशन प्रेस , पोथी डॉट कॉम आदि कई अन्य कंपनियाँ भी ई-बुक्स तैयार करने में मदद करते हैं। जिसके बारे में आप उनकी साइट पर जाकर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
आज बस इतना ही ।
हेमन्त बावनकर
29 मार्च 2019
(ई-बुक्स से संबन्धित उपरोक्त जानकारी उपलब्ध कराने का उद्देश्य मात्र आपको इस प्रक्रिया से अवगत करना है एवं किसी भी प्रकार की मार्केटिंग कतिपय नहीं है। )
(श्रीमति अर्चना चतुर्वेदी जी का e-abhivyakti में स्वागत है। “आओ कंधे से कंधा मिलाएं” महिला-पुरुष समानता की विचारधारा पर एक चुटीला व्यंग्य है। हम भविष्य में श्रीमति अर्चना चतुर्वेदी जी की अन्य विधाओं की रचनाओं की भी अपेक्षा करते हैं।)
मानो जैसे कल की बात हो पूरी दुनिया पर सिर्फ मर्दों का ही साम्राज्य था, तब औरतें घर की चारदीवारी में रहती थीं। चूँकि मर्द कमाकर लाते थे और और उनके हिसाब से दिमाग भी उन्ही के पास था सो वो खुद को बड़ा तुर्रमखाँ समझते थे। फिर अचानक महिला और पुरुष की बराबरी की लहर उठी जिससे मर्द के एकछत्र राज्य वाली दीवार में दरार आने लगी। अपने कार्यक्षेत्र में यूं अचानक हुई घुंसपैंठ पुरुष बौखला गए, परेशान हो गए क्योंकि उनकी मर्दवादी सोच ये हजम नहीं कर पा रही थी कि महिलाएं उनसे कंधे से कंधा मिलाकर चलें उनसे बराबरी करें। वो महिलाओं को परेशान करने के हर हथकंडे अपनाता, कुछ मर्द तो जानबूझ कर बस में उसी सीट पर बैठते जो महिलाओं के लिए आरक्षित होती यदि महिला कहती ये मेरी सीट हैं तो वेशर्मी से कहते कहाँ लिखा है,या जहाँ लिखा है वही बैठ जा टाइप।
अरे भई मैं कोई फालतू कहानी सुना कर बोर नहीं कर रही आप इस किस्से के अंततक जायेंगे तो अपने आप समझ आएगा मैं क्या कहना चाहती हूँ …………….
महिलाओं में पुरुषों से बराबरी और कंधे से कंधा मिलाने का इतना जोश था कि आखिरकार पुरुषों की सोच में परिवर्तन आने लगे और मर्दवादी सोच उदारवादी सोच में बदलने लगी,अब पत्नी गाड़ी या स्कूटर चलाती तो पति आराम से बिना किसी शर्म के उसके साथ या पीछे बैठने लगा अरे भई बराबरी की बात जो है।
बल्कि कईयों ने तो अतिउदारवादी सोच का प्रदर्शन किया और महिलाओं के सामने घुटने टेक महिलाओं को पूरा मौका दिया कि वो चाहें तो कंधे से कंधा मिलाएं या कंधे पर सवार हो जाये सारे रस्ते खुले हैं। महिलाओं ने पुरुषों की हर तरीके से बराबरी की, पुरुषों जैसा पहनावा, बालों की कटिंगयहाँ तक कि उनकी जैसी भाषा तक को नहीं छोड़ा।
अब इसे पुरुषों के दिमाग की खुराफात कहो या कोई बदले की भावना। आज उन्होंने महिलाओं की बराबरी हर क्षेत्र में करनी शुरू कर दी है और कंधे से कंधा मिलाकर चलने की बात को अति गंभीरता से लेना भी शुरू कर दिया है। पहले हॉस्पिटल में सिर्फ सिस्टर होती थी आज ब्रदर भी होते हैं। अच्छे कुक पुरुष ही होते हैं। रिसेप्शन पर आप पुरुषों को देख सकते हैं और भी बहुत सी ऐसी जगह हैं जहाँ आप पहले सिर्फ महिलाओं को देखते थे वहाँ आज पुरुष आसानी से देखे जा सकते हैं। और तो और कुछ पुरुषों ने तो मानो महिलाओं से बदला लेने की ठान ली है। जिस फैशन, स्टाइल और खूबसूरती के बल पर महिलाएं पूरी दुनिया पर राज कर रही थी, उस क्षेत्र में आज पुरुषों ने महिलाओं को भी पछाड़ दिया है। आज के पुरुष अपने लुक्स पर पूरा ध्यान देते हैं, स्मार्ट दिखने के लिए घंटो जिम में लगाते हैं, सुन्दर दिखने के लिए ब्यूटी पार्लर में जाते हैं और वो सब यानि फेशियल,आई ब्रो और वो सारे कार्यक्रम करते हैं जिन्हें करके महिलाएं सुन्दर दिखती हैं। कुछ तो नाक कान में वालियां पहनते हैं, लड़कियों की तरह हेयर स्टाइल रखते हैं, तरह तरह की ज्वेलरी और एक्सेसरीज इस्तेमाल करते हैं। आज के लड़कों का फैशन और स्टाइल किसी का भी दिमाग चकराने के लिए काफी है कि ये लड़का है या लड़की। फ़िल्मों और टीवी में तो मर्द औरतों के पहनावे तक को अपना रहे हैं बल्कि कुछ हीरो तो हिरोइन के चरित्र में ही ज्यादा नाम कमा रहे हैं, गुत्थी, पलक, दादी की तरह। यानि हिरोइन का पत्ता साफ़।
और एक बात आज के युग में आप महिलाओं को कतई दोष नहीं दे सकते कि वो अपनी उम्र छिपाती हैं या आंटी कहने पर नाराज होती हैं। आज के पुरुष जवान और सुन्दर दिखने के लिए वो सारे हथकंडे अपनाते हैं जिनके लिए सिर्फ महिलाएं विख्यात क्या कुख्यात मानी जाती थी। अपने बाल रंगेंगे, खाने पीने का ध्यान रखेंगे, बोटोक्स लगवाएंगे, हेयर ट्रांसप्लांट करवाएंगे, अपनी उम्र छिपायंगे और तो और कुछ को तो आप अंकल कह दो तो चिढ़ जायेंगे आज वो मिस्टर शर्मा टाइप संबोधन सुनना पसंद करते हैं।
वो दिन दूर नहीं जब पुरुष भी महिलाओं वाले नाम रखने लगेंगे। उदाहरण के लिए अब आपको मिस्टर सीता, सावित्री, कामिनी मिलेंगे। वो दिन दूर नहीं जब पुरुषों के बैग से लिपिस्टिक या दूसरी चीजें बरामद होंगी। बस एक ही काम है जो मर्द नहीं कर सकते। क्या करें, प्रकृति ने उन्हें इस मामले में लाचार कर दिया है। वे मां नहीं बन सकते। लेकिन कुछ जिद्दी पुरुष महिलाओं को मात देने के लिए प्रेग्नेंट होने का नाटक तो कर ही सकते हैं। पता चला कि कई पुरुष पेट में कुछ बांधे हुए चले आ रहे हैं। मेट्रो में ऐसे लोग धीमे कदमों से चलते हुए आएंगे और ‘प्रेगनेंसी’ के नाम पर सीट भी क्लेम कर लेंगे।
इंट्रो : वो दिन दूर नहीं जब पुरुष भी महिलाओं वाले नाम रखने लगेंगे। उदाहरण के लिए अब आपको मिस्टर सीता, सावित्री, कामिनी मिलेंगे।
( अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद )
(सांख्ययोग का विषय)
अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च ।
नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः ।।24।।
यह अच्छेद्य,अक्लेद्य है,अमर सर्व परिव्याप्त
अचल सनातन अलख है स्वयं आप में आप्त।।24।।
भावार्थ : क्योंकि यह आत्मा अच्छेद्य है, यह आत्मा अदाह्य, अक्लेद्य और निःसंदेह अशोष्य है तथा यह आत्मा नित्य, सर्वव्यापी, अचल, स्थिर रहने वाला और सनातन है।।24।।
This Self cannot be cut, burnt, wetted nor dried up. It is eternal, all-pervading, stable, ancient and immovable. ।।24।।
(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)
A Pathway to Authentic Happiness, Well-being and a Meaningful Life
Happiness, say the positive psychologists, is the experience of joy, contentment, or positive well-being, combined with a sense that life is good, meaningful, and worthwhile.
Twenty-three hundred years ago, Aristotle concluded that, more than anything else, men and women seek happiness. It is the meaning and the purpose of life, the whole aim and end of human existence. Different men seek after happiness in different ways and by different means, and so make for themselves different modes of life.
What is the pathway to authentic happiness, well-being and a meaningful life? How can we equip ourselves with sustainable scientific tools to cultivate a happy and fulfilling life with a greater sense of well-being? This article attempts to answer these questions.
Taking care of body, mind and spirit is of utmost importance. It’s like a tripod. All limbs must be equally strong for balance and harmony. We need to transform the entire experience of life by taking care of all the relevant dimensions – physiological, psychological and spiritual.
After years of deep study and practical sessions with people from all walks of life, a holistic approach has emerged that blends carefully the best of positive psychology, meditation, yoga, laughter yoga, and spirituality.
Positive psychology is the science of happiness. It provides authentic understanding of happiness and well-being and dispels myths and wrong notions about happiness. It is a treasure trove of evidence-based happiness-increasing strategies from which one may choose activities suitable for oneself.
Meditation is an invaluable tool for calming, concentration and purification of the mind. It clears clouds and lets you seek wisdom. According to Matthieu Ricard, happiest monk on this planet, “Meditation is a practice that makes it possible to cultivate and develop certain basic positive human qualities in the same way as other forms of training make it possible to play a musical instrument or acquire any other skill.”
Yoga can do wonders for your health by stimulating endocrinal systems and taking care of neuro-muscular systems. It is suitable for modern day lifestyle diseases and brings about body-mind union. If you don’t have enough time, even then surya namaskara can be easily integrated into your daily life as it requires only five to fifteen minutes’ practice daily to obtain beneficial results remarkably quickly.
Laughter yoga combines laughter exercises with yogic breathing. It is instrumental in oxygenation of the body, strengthening immune system, and stress relief as feel good hormones known as endorphins are generated during the process. Just ten minutes of gentle laughter in the morning can change the complexion of your day.
Spirituality provides right view and right understanding of life. It gives spiritual insight into right speech, right action and right livelihood. Inner wisdom steers us in the right direction. If you desire everlasting health and happiness, cultivate wisdom.
All the five components – positive psychology, meditation, yoga, laughter yoga and spirituality – put together, enable complete transformation of the entire experience of life.
The benefits include health, happiness and peace for individuals; stress relief, team building, higher productivity, leadership and positivity at workplaces; health, bonding and integration in communities; and creativity, better concentration, emotional intelligence, spiritual growth, strong immune system and all-round personality development of youngsters.
In conclusion, may we say that the practice of yoga, meditation and laughter yoga along with fundamental understanding of positive psychology and spirituality can lead you to lasting happiness and peace.
Jagat Singh Bisht, Founder: LifeSkills
LifeSkillsis a pathway to authentic happiness, well-being and a meaningful life!
e-abhivyakti में नित नए लेखकों एवं पाठकों के जुड़ने से मुझे इस साइट पर और अधिक परिश्रम कर इसे तकनीकी एवं साहित्यिक दृष्टि से पठनीय बनाने के लिए असीम ऊर्जा प्रदान करते हैं। मैंने प्रारम्भ से ही साहित्य के स्तर पर किसी भी प्रकार का समझौता स्वीकार नहीं किया। इस साइट के माध्यम से और नए प्रयोग करने की संभावनाएं प्रबल हैं और उन्हें समय-समय पर आप सबके सहयोग से करने के लिए मैं कृतसंकल्प हूँ।
पहला प्रयोग हिन्दी, मराठी एवं अङ्ग्रेज़ी साहित्य को एक मंच पर लाने का सफल प्रयोग किया। संभवतः यह प्रथम वेबसाइट है जिसके माध्यम से इन तीनों भाषाओं के उन्नत साहित्य को आप तक पहुँचाने का प्रयास कर रहे हैं।
एक व्हाट्सएप्प ग्रुप www.e-abhivyakti.com भी बना रहा हूँ जिसके माध्यम से आपको प्रतिदिन प्रकाशित रचनाओं की जानकारी मिल सकेगी। हाँ, आप इस ग्रुप में कुछ पोस्ट नहीं कर पाएंगे। इसके लिए आपको अपनी रचनाएँ एवं संवाद मेरे व्यक्तिगत व्हाट्सएप्प नंबर पर ही पोस्ट करना होगा अन्यथा आपकी पोस्ट तो लोग व्हाट्सएप्प पर ही पढ़ लेंगे और प्रकाशित रचनाओं का आनंद लेने से सभी वंचित रह जाएंगे। और मुझे प्रत्येक लेखक को प्रकाशित रचनाओं की अलग से सूचित करने की आवश्यकता नहीं होगी। आशा है आप मेरी बात से सहमत होंगे।
निश्चित ही स्वस्थ लेखन एवं पठनीयता अभी भी जीवित है और यह वेबसाइट इसका जीता जागता प्रमाण है। इस स्नेह के लिए मैं आप सबका हृदय से आभारी हूँ।
यह सत्य है कि प्रकाशित पुस्तकें अवश्य तकनीकी दृष्टि से उत्कृष्ट होती जा रही हैं किन्तु, उसको पढ़ने वाले ढूंढते नहीं मिल रहे हैं। प्रिंट ऑन डिमांड (POD) प्रक्रिया ने इस दिशा में क्रांतिकारी कदम उठाए हैं। साथ ही मुद्रित संस्करणों की जगह ई-बुक्स ने ले लिया है। यह निश्चित ही नवीनतम तकनीकों में एक अग्रणी कदम है किन्तु, मेरी समवयस्क पीढ़ी एवं वरिष्ठतम पीढ़ी के कई सदस्य इस विधा से अनभिज्ञ हैं। इन सबके बाद सोशल मीडिया ने कई कट-पेस्ट साहित्यकारों को जन्म दे दिया है। कई बार तो उनकी प्रतिभा एवं ज्ञान के असीम भंडार को देखकर दाँतो तले उँगलियाँ दबानी पड़ती है।
इस संदर्भ में मुझे मेरी गजल की दो पंक्तियाँ याद आ रही हैं:
अब ना किताबघर रहे, ना किताबें,ना ही उनको पढ़ने वाला कोई
सोशल साइट्स पर कॉपी पेस्ट कर सब ज्ञान बाँट रहे हैं मुझको ।
(प्रस्तुत है कविराज विजय यशवंत सातपुते जी का मराठी आलेख “माझ्या गावी भेट दिलीच पाहिजे कारण….” अत्यंत हृदयस्पर्शी है। श्री विजय जी को जितना प्रेम अपने साहित्य से है उनके गाँव से उनका प्रेम उनके साहित्य से किसी भी दृष्टि से कम नहीं है। उनके गाँव से जुड़ी स्मृतियों से सजी इतनी भावप्रवण रचना के लिए उनकी लेखनी को नमन।)
गाव बदललं, गावातली माणसं बदलली, पण मनातल गाव, गावातलं घर, ते मात्र जसंच्या तसं राहिलं. आठवण झाली . . . कुठं काहीही कार्यक्रम नसताना, कविसंमेलनाच कारण सांगून घराबाहेर पडलो, नीट तडक गावची एसटी धरली.
जवळ जवळ दहा वर्षांनंतर गावी येत होतो. गावच्या घरापर्यंत आता टमटम जात होत्या. मला गाव पहायचा होता. गावातले बदल जवळून पहायचे होते. तेली आळीतला लाकडी घाणा. वेशीवरचा मारूती, शाळेजवळचा पिंपळाचा पार, दत्त मंदिर, राम मंदिर, बाजारपेठ, लालू शेठची पतपढी,कासार आउट, मोमीन आउट, पोस्ट ऑफीस, ग्रामपंचायत कार्यालय, सार सार नजरेखालून घालायचं होत. गावात उतरलो अन् टवाळ पोरागत भिरभिरत्या नजरेने गाव बघू लागलो.
माणस भेटत होती. ओळखीचं हसत होती. जुजबी चौकश्या करीत आपापल्या कामाला लागत होती. पारावरचे म्हातारेही हातची तंबाखू, अन तोंडचा विषय सोडायला तयार नव्हते. .
”एकलाच आलासा जणू? पोराबाळांना तरी आणायचं, आरं, आंबे, फणसाचा सिझन हाय. . . गावचा रानमेवा तुमची पोरं खाणार कवा ?घेऊन यायचं त्यानला बी , म्होरल्या बारीला ध्यानी ठेव बर. ” असा जिव्हाळ्याचा संवाद करीत,गावच्या मातीचा सुगंध मनात भरून घेत गावच्या घरात शिरलो.
गावाकडं एक बरं असत. . . अचानक जाऊन भेटण्याची मजा काही औरच असते. थोडी गडबड, धावपळ, धांदल उडते. काहिंची थोडक्यात चुकामूक होते, त्यांना भेटण्या साठी मुक्काम वाढवण्याचा आग्रह होतो. मी ही मुक्काम वाढवला. कार्यक्रम उशीरा संपणार असल्याची आणखी एक लोणकढी थाप पचवली.अन गावी जाण अपरिहार्य असल्याचं पटवून दिलं.अन् गावच्या माणसात हरवून गेलो. मनातल्या गावातनं ,प्रत्यक्ष वास्तवात जाताना थोड अवघड जातं. पण जुन्या आठवणी न भेटलेल्या माणसांची आठवण भरून काढतात.
माझ्या गावाने. नुकतेच तंटामुक्त गाव म्हणून नावलौकिक प्राप्त केला होता. दारू नको दूध प्या सारखे उपक्रम गावातली युवक मंडळी पुढाकार घेऊन राबवीत होती. गावात पिढ्यान पिढ्या पैलवानकी करणार्या कुटुंबातील नवयुवक सैन्य दलात भरती झाल्याचे कळले. अभिमानाने उर भरुन आला. सामुदायिक विवाह, प्रोढ शिक्षण, बचत गट, बालवाडी, अंगणवाडी अशा उपक्रमातून गावातील महिला मोठय़ा उत्साहात सहभागी झाल्या होत्या.
अरू काकाचा मतीमंद पोरगा, गावातल्या वातावरणात स्थिरावला होता. कोंबड्या पाळायचा,चार म्हशी, दोन दुभत्या गायी, चरायला न्यायचा. त्यांची देखभाल करायचा. धारा काढायचा. चार घरी दूध पोचवायचा. गतीमंद होता पण मतीमंद नव्हता. निसर्गाच्या सानिध्यात, मनसोक्त जगायचा. वेड वाकड का होईना, पोरगं नजरेसमोर हसतयं यात आई बापाला समाधान वाटत होत.
गावातल्या घरान गावकी, भावकी जीवापाड जपली होती. वाटण्या झाल्या होत्या. वेळप्रसंगी मन दुखावली तरी माणस दुरावली नव्हती. माझ जाण नसल तरी भाऊ , पत्नी, आई , वहिनी, काका, काकी, आज्जी, यांनी घरोबा जपला होता. वाडवडिलांनी राखलेली वाडी, फुलवलेलं परसदार, आजही सणावाराला वानवळ्याच्या रूपात भरभरून प्रतिसाद देत होतं.
भावकीतले चार हात शेतीत, फुलमळ्यात,फळबागेत, परसात, राबायचे, त्यांच्या कष्टान काळ्या मातीचं सोनं व्हायचं. ज्या मातीत लहानपणी खेळत लहानाचे मोठे झालो ती माती राबणारा हातांना भरभरून यश देत होती. माझं गावाकडं प्रत्यक्ष येणं नसलं तरी गावची भावकी संपर्कात होती. घरातले कुणी ना कुणी तरी गावाकडे फेरफटका टाकायचे. त्यामुळे ख्याली खुशाली कळायची. पण रानवारा प्रत्यक्ष श्वासात भरून घेण्याचा आनंद काही औरच असतो. त्याचा आनंद मी घेत होतो. जमेल तितके गाव नजरेत साठवून ठेवण्याचा प्रयत्न करीत होतो.
शहरातील बरीचशी खरेदी माझ्याच सल्ल्याने व्हायची. कथा, कविता, जशी माणसाला जगायला शिकवते ना तसा हा निसर्ग, गावच घर जोडून ठेवण्यात यशस्वी ठरला होता. कुणी फुले, फळे, दूध, दही, ताक, लोणी, तूप, खवा, खरवस, अंडी ,नारळ ,सुपार्माया मागायला यायचं. बाहेर पेक्षा निम्मा किमतीन परसबागेत फुलवलेलं विकलं जायचं. धार्मिक कार्यात तर सढळ हाताने हा दानधर्म व्हायचा.
साहित्यिक जसा साहित्यात रमतो ना, तसं गावच घर या निसर्गरम्य परिसरात व्यस्त झालं होत. लेखकाने कागदावर लेखणी टेकवावी अन (मोबाईलची बटणे दाबावीत..) अन प्रतिभा शक्तीने भरभरून दान पदरात घालाव तशी गावच्या घरी चारदोन जण मशागत करायची. घरातली जुनी जाणती परसबाग फुलवायची. कुणाला रोजगार मिळाला होता. कुणाला आधार मिळाला होता. गावचा निसर्ग माझ्या आठवणींशी स्पर्धा करीत मला एकट पाडीत होता. निसर्ग त्याच काम चोख करीत होता. करवंद , आंबा, काजू, फणस, केळी, पेरू, नारळ, पोफळी यांची वर्णन मी जितक्या उत्स्फूर्ततेने करायचो, तितक्याच उत्कटतेने निसर्ग त्या त्या ऋतूत भरभरून फुलायचा.
दोन दिवसांनी जेव्हा भरभरून रानमेवा घेऊन घराकडे निघालो ना, तेव्हा त्या जडावलेल्या पिशव्यां सारखंच मनही भरून आलेलं. दहा वर्षानंतर अचानक मला पाहिल्यावर आजीच डोळही असंच भरलेलं. निसर्गाच हे देणं, मांगल्याचं समृद्धीचं लेण अजमावून घेण्यासाठी मी ठरवल. माझ गाव जमेल तस विकसित होत होत. गाव त्याच्या परीने गावातील माणसांना आपलेपणाने बांधून ठेवत होत. गावातून शिक्षणासाठी बाहेर पडलेला मी…. माझ्या कडे गाव मोठ्या आशेने बघते आहे. मायेने साद घालते आहे असा भास सारखा होत होता. पाय जडावले होते.
आता जास्तीत जास्त वेळा, वेळ काढून गावाकडे यायचंच. माझ्या या गावी भेट दिलीच पाहिजे. . जमेल तेव्हा जमेल तसा वेळ काढलाच पाहिजे. माझ नाव मोठ करताना गावाच नाव देखील मोठ झाल पाहिजे माझा विचार सर्वांना बोलून दाखवला तोच दारातली बकुळीची फुलं अंगावर पडली… परतीचा अहेर द्यावा असं सुगंधी लेणं लेवून मी सर्वांचा नाही निरोप घेतला.
अचानक पणे गावात जाण्याचा योग मनात गावासाठी काहीतरी करायला हवे हा विचार मनात दृढ करीत गेला. त्याकरिता काय काय करता येईल याचा विचार करीत शहरातील घरी परत आलो. परतीचा प्रवास करताना हाच दरवळ मनात ठेवून गावच घर, आणि बाजूचा निसर्ग यांचे आभार मानत शहरातल्या प्रापंचिक घरात प्रवेश केला. निसर्गाच हे अविरत देणं मनात साठवीत…. प्रसन्न मनाने माझ्या दुनियेत परतलो. काही जिवंत अनुभूती सोबत घेऊन. . . . ! माझ्या गावात पुन्हा पुन्हा यायला हवं.