हिन्दी साहित्य- व्यंग्य – * उधार प्रेम का बंधन है * – श्री रमेश सैनी

श्री रमेश सैनी

उधार प्रेम का बंधन है

(प्रस्तुत है सुप्रसिद्ध लेखक/व्यंग्यकार श्री रमेश सैनी जी का  व्यंग्य – “उधार प्रेम का बंधन है”।)

आज रामलाल की दूकान पर पान खाने पहुँच गया। पान खाकर पैसे देने लगा तो उन्होंने नोट देखकर कहा – भैया छुट्टे नहीं हैं। तब मैंने कहा – कल ले लेना। तब नई-नई चिपकी सूक्ति की ओर इशारा किया जिसमें लिखा था – उधार प्रेम की कैंची है। दूसरी ओर इशारा किया, वहाँ लिखा था – आज नगद कल उधार। बस मेरा भेजा उखड़ गया – क्या तमाशा है, यह सब गलत है, इस संबंध में भ्रम फैला रहे हो तुम। मैंने कहा तो यह सुनकर वह मुस्करा दिया। उसकी मुस्कराहट में व्यंग्य छिपा था, जो मुझे अंदर तक भेद गया। अब वक़्त आ गया है कि उन्हें एक लम्बा डोज़् पिलाऊं। वैसे उनकी आदत है साल-छः महीने में एक लम्बे डोज़् की। तभी वे काफी समय तक ठीक रहते हैं।

रामलाल जी आप गलतफहमी मत पालिए आज उधार का जमाना  है – उधार बिन सब सून। उधार प्रेम का बंधन है। उधार से प्रेम के रिश्ते बनते हैं और लम्बे चलते हैं। नहीं चलते हैं तो चलाना पड़ता है। उधार ऐसा माध्यम है जिसमें दोनों पक्षों को प्रेम सम्बंध बनाए रखना पड़ता है। इससे ऐसी संभावना बलवती रहती है कि सम्बंध बने रहेंगे। ऐसे सम्बंध में हर रंग और स्वाद मौजूद रहता है। आप उधार ले लो, उधार देने वाला आपकी पूरा ध्यान और खोज-ख़बर रखने लगता है। वह समय-समय पर आपको फोन करता है। कभी-कभी आपके घर भी आ जाता है, यह पता लगाने के लिए आप ठीक-ठाक तो हैं न…। आप ठीक रहेंगे तो उधार भी चुका ही देंगे। यहाँ वह याचक सा हो जाता है। अपने पैसे की सलामती के लिए वह भगवान से दुआ मांगता है कि आप स्वस्थ और प्रसन्न रहें। प्रसन्नता का निर्णय उधार देने वाला करता है। आप बीमार हैं तो आपको इलाज के लिए पैसा दे देता है ताकि आप ठाक हो जाएं। वरना उसकी उधारी…? पहले उधारी शर्म की बात मानी जाती थी। मगर आज वही शान की बात है – कि देखो हमारी औकात इतनी है, कि लोग हमें उधार देने खड़े रहते हैं।

मान लीजिए कि उधार अब एक फैशन हो गया है। आपके पास इतना पैसा है कि आपका काम आसानी से चल सकता है। फिर भी आप उधार लेते हैं। टी.व्ही., फ्रिज, सिलाई मशीन, मिक्सी, मोबाइल, प्रेशर कुकर, माइक्रोवेव आदि अनेक चीज़् बाजार में हैं जो आपके घर आने को उतावली हैं। बस आप अपनी इच्छा व्यक्त कीजिए, एक-एक कर वे घर आने लगेंगी। इज्जत का फालूदा न निकले इसलिए पहले लोग उधार छिपाते थे। पर इसके उलट अब प्रचार करते हैं कि उन्होंने मकान, गाड़ी या किसी अन्य चीज़् – जो उनका सम्मान बढ़़ाती है – के लिए लोन लिया है। मतलब यह कि घर में जो महँगी नई चीज़् है वह लोन की। अब यह बताना पड़ता है कि कौन सी चीज़् बिना लोन के खरीदी गई है। जो लोग लोन नहीं लेते उन्हें पिछड़ा समझा जाता है। और जो पिछड़ा नहीं दिखना चाहते या कहलाना चाहते वे लोन लेकर कुछ ने कुछ खरीदते ज़रूर हैं।

उधार विकास की कुंजी है।’ इसके बिना विकास रूपी ताला खुल नहीं सकता। उधार से आप सम्पन्न हो जाते हैं। उधार से आपके पास हर चीज़् पलक झपकते आ सकती है। विकास की गति तीव्र हो जाती है। बस इशारा करना पड़ता है। उधार का बंधन ऐसा अटूट है कि आदमी उसमें जकड़ जाता है। उधार या कहें लोन के लिए एक बात और निहायत ज़रूरी है… कि आप उधार लो और भूल जाओ… वरना आप हर पल तनाव में रहोगे। यह काम अगले का है कि वह आपका ख़्याल रखे। मतलब ‘टेंशन लेने का नहीं देने का…।’ अपन यह कह सकते हैं कि अधार टेंशन मुक्त जीवन का अवसर देता है। बस, आपमें उधार लेने का टेलेण्ट होना चाहिए कि आप अवसर का लाभ उठा सकें। जो लोग उधार लेकर टेंशन में रहते हैं उनके लिए ‘बेवकूफ’ से अच्छा शब्द किसी कोश में नहीं।

उधार की महिमा अपरम्पार है।’ जिसने इस सूक्ति वाक्य को समझ लिया उसका इहलोक तो संवर ही गया, परलोक भी सुधर जाता है। आगे आने वाली पीढ़ियाँ आपको याद कर इस रास्ते पर आत्मविश्वास से विकास रथ पर सवार हो आगे बढ़ती जाती हैं।

यह संसार विचित्र है। यहाँ उधार देने वालों की कतार लगी रहती है। आप एक से उधार मांगते हो और कई लोग कतार तोड़ आप पर झपट्टा मारने के दौड़ पड़ते हैं। इसलिए उधार लेने वालों के आजकल भाव बढ़े हुए हैं। उधार देने वाले से उधार लेने वाले अब बड़े माने जाने लगे हैं।

उधार लेने और देने से चरित्रगत परिवर्तन भी आ जाते हैं। ऐसे लोग सामान्य धारा से अलग दिखते हैं। देने वाले के चेहरे पर आत्मविश्वास टपकता-टपकता सा दिखाई देता है। चेहरे पर कठोरता आ जाती है। रहम का भाव केवल उधार देते वक़्त दिखाता है। उसकी भाषा विकसित हो जाती है। माषा में माँ-बहन से सम्बंधित मृदु वचन धारा प्रवाह निकलने लगते हैं। उसकी सहनशक्ति विकसित हो जाती है। कज़र्दाता चाहता है कि उसे ब्याज मिलता रहे। मूलधन न भी मिले तो चलेगा। वह उपदेशक हो जाता है। साधुओं के बाद वही अर्थतंत्र और बाजार तंत्र की व्यवस्था को समझता समझाता है। एक सिद्ध पुरुष की तरह उसे अपने ऊपर पैसा खर्चना अपमान लगता है। सिर्फ उधार लेने वाले से पैसा खर्च करवाना अपना उसे धर्म प्रतीत होता है।

इसी तरह उधार लेने वाले के चरित्र में भी आमूल परिवर्तन आ जाता है। उसमें  माँ-बहन से सम्बंधित वचन सुनने और सहने की क्षमता बढ़ जाती है। कभी-कभार एकाध हाथ भी सह लेता है। वह पैसे की महत्ता को समझने लगता है। उसे पैसे लौटाने की अपेक्षा लटकाने में अधिक विश्वास रहता है। वह छुपा-छुपी के खेल में भी माहिर हो जाता है, बहाने बनाना सीख जाता है। समय आने पर बहानों का, वह रक्षा कवच की तरह भलीभाँति उपयोग करने लगता है। उसमें एक कला और विकसित हो जाती है। वह टोपी बदलना सीख कर अपनी टोपी दूसरे, तीसरे को पहनाने की कुशलता हासिल कर लेता है। यह अद्भुत कला अर्थतंत्र में जादुई महत्व रखती है। और उधार लेने की कला से ही यह गुण पनपता विकसित होता है।

बड़े-बड़े लोग और उनकी कम्पनियाँ उधार लेना अपनी शान समझती हैं। खुद का पैसा लगाना उन्हें बेवकूफी लगती है। वह कम्पनी, कारख़ाना, प्रतिष्ठान खोलने के लिए सरकार या बैंक को चूना लगाते हैं। उनको लगता है पराये चूने से पान का रंग और स्वाद बढ़ जाता है। ‘‘हर्रा लगे न फिटकरी और रंग चोखा।’’ बिन पैसे का खेल और उसका मजा। मतलब  बाय वन  गेट वन फ्री। मतलब धंधा चल कर रफ़्तार पकड़ गया तो पैसा चुका दिया और साख बनाकर दुगना उधार ले लिया और न चला तो कुण्लली मार कर चिंता का त्याग कर चुपचाप बैठ जाओ। देश में न बैठ सको तो विदेश में आसन जमा लो। चिन्ता फिर सरकार करेगी या बैंक। बस कोशिश यह होनी चाहिए कि उधार इतना हो कि सरकार या बैंक वसूलते वसूलते थक जाएँ, पर वसूल न कर पायें। प्रतिभाशालियों के लिए यह बहुत आसान है। इसमें शान तो बनती ही है मुफ़्त में प्रचार भी मिलता रहता है। इसमें राजयोग और तंत्रयोग का सहयोग मिलना निहायत ज़्ारूरी है अन्यथा उधार योजना में आपकी सफलता संदेह से परे नहीं।

अभी कुछ समय पहले की बात है। एक उद्योगपति शराब पिलाकर पहले दूसरों को हवा में उड़ाते रहे। फिर उन्होंने सोचा कि ख़ुद ही क्यों न उड़ा जाये। सरकार, बैंक और अन्य शासकीय संस्थाओं की मदद से वे हवा में उड़ने लगे। फिर उन्होंने इतनी ऊंचाई पर उड़ान भरी कि सबके होश उड़ गये। मदद देने वाले और उसमें हाथ बंटाने वालों के तो हाथ-पाँव ही फूल गए। वे उड़ते गये… ऊंचे और ऊंचे… जब उन्हें समझ में आया कि अब ज़्यादा उड़ना ख़तरनाक होगा तो अपनी लेंडिंग विदेश में कर ली। अब जिम्मेदार लोग उनकी लेंडिंग देश में कराने के प्रयास में जी जान से लगे हैं। अब वह बड़ा उधारची है। यह सब उधार का कमाल है।

अब यही लफड़ा देश के मामले में है। देश का विकास करना है तो उधार लो भी और दो भी। उधार नहीं दोगे तो कोई माल को नकद नहीं खरीदेगा और माल डंप होगा। उधार और विकास का चोली-दामन का सम्बंध है। दोनों एक दूसरे के लिए बने हैं। एक दूसरे के बिना दोनों असहाय।

मुझे रोकते हुए रामलाल ने कहा – भाई साहब बस करो अब। मैं पूरी तरह समझ गया। मुझे माफ कर दो। आपसे पैसा मांगकर हमने गल्ती कर दी। आप अब उधार ही रहने दें। रामलाल ने खड़े होकर भाई साब से माफी मांगने लगे और भाई जी पीक को दूकान के बाजू में थूककर आगे बढ़ गये।

© रमेश सैनी , जबलपुर 

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हिन्दी साहित्य- कविता/गजल – * यहाँ सब बिकता है  * – डॉ उमेश चन्द्र शुक्ल

डॉ उमेश चन्द्र शुक्ल  

यहाँ सब बिकता है 

(प्रस्तुत है  डॉ उमेश चंद्र शुक्ल जी  की एक बेहतरीन गजल)

 

खुला नया बाज़ार यहाँ सब बिकता है,
कर लो तुम एतबार यहाँ सब बिकता है॥

जाति धर्म उन्माद की भीड़ जुटा करके,
खोल लिया व्यापार यहाँ सब बिकता है॥

बदल गई हर रस्म वफा के गीतों की,
फेंको बस कलदार यहाँ सब बिकता है॥

दीन धरम ईमान जालसाजी गद्दारी,
क्या लोगे सरकार यहाँ सब बिकता है॥

एक के बदले एक छूट में दूँगा मैं,
एक कुर्सी की दरकार यहाँ सब बिकता है॥

सुरा-सुन्दरी नोट की गड्डी दिखलाओ,
लो दिल्ली दरबार यहाँ सब बिकता है॥

अगर चाहिए लोकतन्त्र की लाश तुम्हें,
सस्ता दूँगा यार यहाँ सब बिकता है॥

 

©  डॉ उमेश चन्द्र शुक्ल, मुंबई 

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आध्यात्म / Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – प्रथम अध्याय (20-21) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रथम अध्याय

अर्जुनविषादयोग

( दोनों सेनाओं के प्रधान शूरवीरों की गणना और सामर्थ्य का कथन )

( अर्जुन द्वारा सेना-निरीक्षण का प्रसंग )

 

अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान्‌कपिध्वजः ।

प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डवः ।।20।।

 

तब कुरू सेना को सजी और व्यवस्थित देख

उद्यत लड़ने पार्थ भी हुआ धनुष्य सहेज।।20।।

 

हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते ।

अर्जुन उवाचः

सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत ।।21।।

 

तभी कहा श्री कृष्ण से अर्जुन ने यह वाक्य

अर्जुन ने कहा-

अच्युत,रथ को ले चलो सेना मध्य तत्काल।।21।।

 

भावार्थ :  हे राजन्‌! इसके बाद कपिध्वज अर्जुन ने मोर्चा बाँधकर डटे हुए धृतराष्ट्र-संबंधियों को देखकर, उस शस्त्र चलने की तैयारी के समय धनुष उठाकर हृषीकेश श्रीकृष्ण महाराज से यह वचन कहा- हे अच्युत! मेरे रथ को दोनों सेनाओं के बीच में खड़ा कीजिए॥20-21॥

 

Then, seeing all the people of Dhritarashtra’s party standing arrayed and the dischargeof weapons about to begin, Arjuna, the son of Pandu, whose ensign was that of a monkey, took up his bow and said the following to Krishna, O Lord of the Earth! place my chariot, O Krishna,In the middle of the two armies. ॥20-21॥

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

vivek1959@yah oo.co.in

मो ७०००३७५७९८

 

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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हिन्दी साहित्य- व्यंग्य – * तलाश एक अदद प्रेमिका की * – डॉ . प्रदीप शशांक

डॉ . प्रदीप शशांक 

तलाश एक अदद प्रेमिका की

पिछले कुछ दिनों से श्रीमती जी हमारी साहित्यिक गतिविधियों पर जरूरत से ज्यादा नजर रखने लगीं थीं । उनकी पैनी निगाहैं न जाने हमारे किस अन किये अपराध को ढूंढने में लगी रहती थीं। जब उन्हें कुछ समझ नहीं आया तो आखिर एक दिन मुझसे पूछ ही बैठीं- “क्यों जी, शादी के पूर्व आपकी कोई प्रेमिका थी क्या?”

उनके इस सवाल पर हमने आश्चर्य चकित हो उनकी ओर देखते हुए उनसे ही पूछा – “क्यों, क्या बात है ? आज तुम्हारी तबियत तो ठीक है न।”  “अरे तबियत खराब हो मेरे दुश्मनों की, में सिर्फ यह पूछ रही हूँ कि तुम्हारी कोई प्रेमिका है या नहीं । क्योंकि हमने पिछले दिनों  टी.व्ही. में देखा था जिसमें तुम्हारे  ही जैसे लेखक ने अपने इंटरव्यू में कहा था कि ये सब लिखने की प्रेरणा मुझे अपनी प्रेमिका से ही मिलती है, पत्नी से नहीं।”

श्रीमती जी के इतने दिनों की जासूसी का रहस्य मुझे आज समझ आया था कुछ देर तो हम चुप रहे फिर एक जोरदार ठहाका लगाया और श्रीमती जी से कहा -“अरी भागवान, उसने जो कहा ठीक ही कहा । प्रेमिका की प्रेरणा से रचनाकार महान हो जाता है किंतु पत्नी की प्रेरणा से अच्छे से अच्छा लेखक भी  आटा, दाल, तेल, घी, शक्कर के प्रपंच में उलझकर सिर्फ आदमी रह जाता है । लेकिन मेरी बन्नो यदि मेरी कोई प्रेमिका होती तो मैं भी  उसकी प्रेरणा से  शादी से पहले श्रंगार रस का कवि एवं शादी के बाद उसकी याद में विरह रस का कवि बनकर कविता के आकाश की ऊंचाइयां नाप रहा होता । दोनों ही स्थिति में मेरी जिंदगी में रस तो होता , लेकिन हमारी किस्मत इतनी अच्छी कहां जो हमें एक प्रेमिका भी नसीब होती । यही तो मेरी बदकिस्मती है तभी तो मैं कवि न बनकर व्यंग्यकार बन गया हूँ,  हाय तुमने मेरी दुखती रग पर हाथ रख दिया है । मेरी वर्षों  से सोई हुई तमन्ना  को जगा दिया है अब तुम्हीं बताओ में कैसे प्रेमिका की तलाश करूं।”

श्रीमती ने मुझे कल्पना के सागर  में गोते लगाने से पहले ही यथार्थ के कठोर धरातल पर पटकते हुए कहा – “बस बस बहुत हो गयी आपकी ये रामायण, आप मुझसे ही मेरी सौतन का पता पूछने चले हैं, खबरदार जो ये ख्याल भी अब मन में लाया, नहीं तो आपकी इस रामायण के बाद में अपनी महाभारत की तैयारी शुरू करूं।”

श्रीमती जी के चंडी रूप का ध्यान आते ही हमने उन्हें शांत कर कहा  -“बस देवी जी, फिलहाल महाभारत के ये एपिसोड अभी शुरू मत कीजिये,  दर्शक (यानि हमारे बच्चे) अपने घरेलू महाभारत के दृश्य देख देख कर बोर हो चुके हैं।”

हमारे दिमाग में प्रेमिका ढूढ़ने का कीड़ा कुलबुलाने लगा।  बस क्या था हम घर से थोड़ा सज संवर कर निकले, कालोनी में प्रेमिका ढूंढना बेकार था क्योंकि बहुत जल्दी पोल खुलने की संभावना रहती है और वैसे भी कालोनी की प्रायः सभी खूबसूरत विवाहित- अविवाहित कन्यायें हमें अंकल जी के लेबिल से नवाज चुकी  हैं । अतः हमने  अपना प्रेमिका ढूंढो अभियान कालोनी के बाहर से ही प्रारंभ किया । सड़क पर हर आती जाती लड़की में  मैं अपनी प्रेमिका की छवि ढूढ़ने लगा ।

दो तीन दिन में यहां से वहां भटकता रहा, बहुत सी प्रेमिकाएं नजर आईं लेकिन वे सब किसी और  की थीं , मेरी कोई भी प्रेमिका नजर नहीं आ रहीं  थीं । एक दिन मेरे मित्र ने मुझे सलाह दी कि यार क्या तुम यहाँ से वहां भटकते फिर रहे हो । अरे प्रेमिका चाहिये तो लड़कियों के  कालेज के पास खड़े हो जाओ, एक ढूढोगे हजार मिलेंगी । हमने अपने मित्र की नेक? सलाह मानकर अपने खिचड़ी बालों  पर हाथ फेर लड़कियों के कॉलेज के पास खड़ा हो  गया । कुछ देर इधर उधर ताकने के बाद  में निराश होकर घर लौटने ही वाला था कि मुझे एक रूपसी बाला नजर आयी जो मेरे नजदीक से इठलाती बलखाती एक तिरछी चितवन और मोनालिसा सी मुस्कान बिखेरती आगे बढ़ गई ।

मेरा दिल अचानक बल्लियों उछला (ऐसा तो श्रीमती जी को शादी के बाद पहली बार देखकर भी नहीं उछला था) और दिल से बस यही आवाज निकली – “यूरेका -यूरेका” यानी पा लिया, पा लिया । और दिल के हाथों हम मजबूर होकर उस रूपसी बाला के पीछे हो लिये, हमारे कदम उस रूपसी के हमकदम होने को बेताब थे और हम ख्यालों में खोये प्रेमिका पा जाने की खुशी में फूले न समा रहे थे तभी हमारे गालों पर एक झन्नाटेदार थप्पड़ रसीद हुआ और हम ख्यालों की दुनिया से निकलकर यथार्थ की सड़क पर जा गिरे और हमारे कानों में ‘मारो साले को’ की आवाजें थोड़ी देर तक गूंजती रहीं और हम पर लातों घूसों की बारिश होती रही ।

हमें जब होश आया तो हम अस्पताल के बिस्तर पर थे और हमारे चारों ओर हमारे परिचितों के साथ ही पुलिस के सिपाही भी थे , उनमें एक खाकी वर्दी वाली महिला पर नजर पड़ी तो हमारे होश पुनः फाख्ता हो गये क्योंकि जिसे हमने समझा था प्रेमिका, वह निकली महिला पुलिस ।

बस जनाब आगे का किस्सा क्या  सुनायें , आप लोग खुद समझदार हैं ।

© डॉ . प्रदीप शशांक 
37/9 श्रीकृष्णम इको सिटी, श्री राम इंजीनियरिंग कॉलेज के पास, कटंगी रोड, माढ़ोताल, जबलपुर ,म .प्र . 482002
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हिन्दी साहित्य – कविता – ‘शब्द’ – डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’

डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ 

(डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ पूर्व प्रोफेसर (हिन्दी) क्वाङ्ग्तोंग वैदेशिक अध्ययन विश्वविद्यालय, चीन)

शब्द !
यह जानते हुए भी कि
हर शब्द
हर कविता में फिट नहीं बैठता
ज़िद बस
कवि गण
बिना ढक्कन की
कोने में फेंक दी जाने वाली
खाली बोतल-सी
 कविता में
ऊपर से ठोंकी गई
खुखड़ी की तरह
ठोंकते ही रहते हैं
छवि विहीन
मनचाहे शब्द
और ,
शब्द हैं कि
ठुँक भी जाते हैं
अपनी कमर छिलाकर
कुछ कम नहीं हैं
ये भी
नई चाल की हर कविता पर
लार टपकाते …
थिरक उठते हैं
किसी कामी की तरह
असमय विधुर हुए शब्द !
© डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ 
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आध्यात्म / Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – प्रथम अध्याय (19) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रथम अध्याय

अर्जुनविषादयोग

( दोनों सेनाओं के प्रधान शूरवीरों की गणना और सामर्थ्य का कथन )

( दोनों सेनाओं की शंख-ध्वनि का कथन )

स घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत्‌।

नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलो व्यनुनादयन्‌ ।।19।।

वह स्वर कौरव सैन्य के हदयों को तब चीर

हुआ व्याप्त नभ-धरा पै गहन और गंभीर।।19।।

भावार्थ :   और उस भयानक शब्द ने आकाश और पृथ्वी को भी गुंजाते हुए धार्तराष्ट्रों के अर्थात आपके पक्षवालों के हृदय विदीर्ण कर दिए॥19॥

 

The tumultuous sound rent the hearts of Dhritarashtra’s party, making both heaven and earth resound ।।19।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

vivek1959@yah oo.co.in

मो ७०००३७५७९८

 

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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हिन्दी साहित्य – आलेख – * पैसा कमाने के चक्कर में निजी अस्पतालों ने दिया सिजेरियन डिलीवरी को बढ़ावा * – सुश्री ऋतु गुप्ता

सुश्री ऋतु गुप्ता

पैसा कमाने के चक्कर में निजी अस्पतालों ने दिया सिजेरियन डिलीवरी को बढ़ावा

(सुश्री ऋतु गुप्ता जी  का एक सार्थक, सामयिक  एवं सटीक लेख। सुश्री ऋतु जी ने एक अत्यंत ज्वलंत  समस्या  पर अपने विचार रखे हैं । इस विषय  पर  हमारे साथ ही चिकित्सा जगत से जुड़े लोगों को मानवीय दृष्टिकोण से विचार करने की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त मैं यह भी कहना चाहूँगा कि अभी भी  कुछ सम्माननीय चिकित्सक हैं, जो बिना हिम्मत हारे अथक प्रयास करते  हैं ताकि सर्जरी की आवश्यकता न पड़े। हम उनका सादर सम्मान करते हैं।) 

जब मैनें 20 जनवरी रविवारीय दैनिक ट्रिब्यून में एक न्यूज का हैडलाइन पढ़ा कि मोटी कमाई के लिए सिजेरियन डिलीवरी को बढ़ावा दे रहे हैं निजी अस्पताल, मेरे अपने साथ बीती एक-एक घटना मेरी आँखों के सामने तैर गई।आज क्या आज से दस साल पहले भी तो यही तो होता था। तब भी तो सिजेरियन डिलीवरी के नये -नये बहाने खोज लिए जाते थे और बेचारे घरवाले डॉक्टर्स के सामने कुछ बोल नहीं पाते और मजबूरन हाँ भर देते।

मुझे पूरा टाईम हो चुका था  डिलीवरी कभी भी हो सकती थी। एक दिन जब मेरी तबीयत थोड़ा बिगड़ी तो मैं अपने डॉक्टर के पास गई उसने कहा कि तुरंत एडमिट करना पड़ेगा बच्चे ने अंदर ही पॉटी कर ली है।मुझे आर्टिफिशियल दर्द चालू किये गये लेकिन असफल रहे। इंजेक्शन व दवाओं के जरिये कोशिश की जाती रही लेकिन दर्द रूक रहे थे। मैं जब तक होश में थी मुझे याद है कई डाक्टर व स्टाफ के लोग खड़े थे।मेरे कानों में यह शब्द साफ पड़ रहे थे कि बच्चे का सिर नीचे फंस चुका है,ऑपरेशन भी नहीं कर सकते फोरसेप्स डिलीवरी करनी पड़ेगी वो भी जल्दी क्योंकि बच्चे की हार्ट बीट कम होती जा रही हैं।उसके बाद पता नहीं मुझे होश नहीं रहा मालूम नहीं जान बूझ  कर बेहोश किया गया था या फिर दवाओं की ओवरडोज से ऐसा हुआ था। मेरे शरीर का ज्यादातर ब्लड बह चुका था शायद गलत कट लग गया था। मुझे 24घंटों के बाद होश आया। बेटे को 5 दिन तक नर्सरी में डाल दिया गया।बहुत कोशिशों के बाद  ही मेरी तबीयत में कुछ सुधार आना शुरू हुआ।बाद में उन डॉक्टर्स में से हमारे जान पहचान के एक ने बताया कि केस बिगड़ चुका था. दूसरे अस्पताल में शिफ्ट करने की पूरी योजना बना ली थी अगर कुछ झण और देरी होती तो। बाद में पता चला इतने नामी नर्सिंगहोम में भी ज्यादातर डिलीवरी सिजेरियन के चक्कर में ऐसे ही करते हैं। एक बार तो दिल किया कि केस कर दें डॉक्टर पर लेकिन सबूत क्या था कि मुझे यह समस्या नहीं थी। सिजेरियन डिलवरी तो नहीं हो पाई मेरी पर फोरसेप्स डिलीवरी व नाजुक हालत की वजह से कई दिन वहाँ रख पूरा पैसा वसूल लिया।

पिछले एक दशक में एनएचएफएस के अनुसार सिजेरियन डिलीवरी की प्रतिशत दुगुनी हो गई है जो 2005 में 8.5%  थी वह 2016 तक  17.2% पहुंच गई। निजी अस्पतालों में 40% व सरकारी अस्पतालों में 16.44% डिलीवरी सीजेरियन होती हैं। डॉक्टर्स के अनुसार वे बहुत जरूरत पड़ने पर ही ऐसा करते हैं, उनके अनुसार ऐसी कई विभिन्न परिस्थितियों में जैसे यूटरस का मूहँ नहीं खुलना, बी.पी. हाई होना,बच्चे की धड़कन कम होना, गले में गर्भनाल फंसना, बच्चे का, उल्टा या फिर कमजोर होना इत्यादि। लेकिन जो भी है निजी अस्पतालों में नॉर्मल डिलीवरी का इंतजार न कर आननफानन में कुछ ऐसा प्रेशर बना देते हैं कि हार कर घरवाले तैयार हो जाते हैं।

सरकार भी चिंतित है इन सिजेरियन डिलीवरी की वजह से क्योंकि एक तो प्रसूता के शरीर पर इससे गलत असर होता है,दूसरे नॉर्मल डिलीवरी व सिजेरियन डिलीवरी के खर्चे में कई गुणा अंतर है। जहाँ नॉर्मल में दस हजार के आसपास तो सिजेरियन में लगभग पचास हजार के आसपास का खर्चा है।स्वास्थय मंत्रालय ने इन बातों को ध्यान में रखते हुए सीजीएचएस से जूड़े सभी प्राईवेट व सरकारी अस्पतालों के लिए जरुरी कर दिया है कि इस तरह हर दिन हुई डिलीवरी को बोर्ड लगा कर सार्वजनिक करें।

सुप्रीम कोर्ट में भी गुहार लगाई गई है कि कोई ऐसा कानून व नियम निकाले जाये कि बेवजह सिजेरियन डिलीवरी से बचा जा सकें। वैसे भी निजी अस्पतालों पर इल्जाम लगते रहें हैं कि पैसा कमाने के चक्कर में मरीज को जबरदस्ती ज्यादा दिन एडमिट रखते हैं, जबरदस्ती की ज्यादा दवाईयां आदि लिख देते हैं।इन शिकायतों में भी कुछ सुधार हो सकेगा। इसके लिए भी और ज्यादा जागरूक होना पड़ेगा कि प्रेग्नेंसी के दौरान उचित व पौष्टिक डाइट, कैल्शियम, आयरन व अन्य जरूरी विटामिन मिल सके।उचित देखरेख से इन परस्थितियों से बचा जा सकता है। भगवान स्वरूप डॉक्टर्स को भी चाहिए की वे बिना किसी जरूरी वजह ऐसी डिलीवरी करने से बचें। क्योंकि इससे स्वास्थ्य व पैसे दोनों का ही नुकसान हैं। वे अपने इस सम्मानजनक पेशे व ओहदे का ध्यान रखें।

© ऋतु गुप्ता

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आध्यात्म / Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – प्रथम अध्याय (17-18) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रथम अध्याय

अर्जुनविषादयोग

( दोनों सेनाओं के प्रधान शूरवीरों की गणना और सामर्थ्य का कथन )

( दोनों सेनाओं की शंख-ध्वनि का कथन )

काश्यश्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथः ।

धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः ।।17।।

काशिराज धनुवीर ने औ” शिखण्डी रथवान

राजा विराट, धृष्टद्युम्न व सात्यकि वीर महान।।17।।

द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशः पृथिवीपते ।

सौभद्रश्च महाबाहुः शंखान्दध्मुः पृथक्पृथक्‌।।18।।

द्रुपद द्रौपदी पुत्र सब,महाबाहु अभिमन्यु

सब राजाओं ने किया शंखनाद निज भिन्न।।18।।

भावार्थ :  श्रेष्ठ धनुष वाले काशिराज और महारथी शिखण्डी एवं धृष्टद्युम्न तथा राजा विराट और अजेय सात्यकि, राजा द्रुपद एवं द्रौपदी के पाँचों पुत्र और बड़ी भुजावाले सुभद्रा पुत्र अभिमन्यु- इन सभी ने, हे राजन्‌! सब ओर से अलग-अलग शंख बजाए॥17-18॥

 

The king of Kasi, an excellent archer, Sikhandi, the mighty car-warrior, Dhristadyumna and Virata and Satyaki, the unconquered ।।17।।

 

Drupada and the sons of Draupadi, O Lord of the Earth, and the son of Subhadra, the mighty-armed, all blew their respective conches! ।।18।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

 

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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हिन्दी साहित्य- व्यंग्य – * रिटायरमेंट का चैक * – श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

रिटायरमेंट का चैक 

(प्रस्तुत है श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी  की एक सार्थक एवं सटीक व्यंग्य कथा।) 

महीने का आखिरी दिन होता है और तोप गाड़ी फैक्ट्री के गेट के सामने ढोल – ढमाके और डांस इंडिया डांस का नजारा देखने लायक होता है। इतनी भीड़ बढ़ जाती है कि ट्रेफिक जाम हो जाता है, रंग गुलाल और फूलों से सड़क तरबतर हो जाती है। हर महीने की आखिरी तारीख को तोप गाड़ी फैक्ट्री से दस – पन्द्रह लोग रिटायर होते हैं और उनके परिवार, रिश्तेदार और दोस्त भाई ढोल – ढमाके के साथ फैक्ट्री के गेट के सामने डेरा डाल देते हैं। अनुमान है कि ठंड के नौ महीने बाद पैदा हुए लोग जुलाई – अगस्त में ज्यादा रिटायर होते हैं।

आज जानकी प्रसाद का भी रिटायरमेंट है नात – रिश्तेदार और मोहल्ले वाले ढोल – नगाड़ों एवं सजी बग्घी लेकर जानकी प्रसाद का इंतजार कर रहे हैं। गेट के सामने भीड़ ज्यादा बढ़ रही है ढोल – ढमाकों का शोर बढ़ रहा है क्योंकि आज अधिक लोग रिटायर हो रहे हैं जो लोग रिटायर होकर चैक लेकर बाहर आ गए हैं उनके खेमे में उछलकूद बढ़ गई है डांस हो रहे हैं। फूल माला की बिक्री अचानक बढ़ गई है ढोल की थाप पर सब लोग थिरक रहे हैं।

वो देखो माला पहने जानकी प्रसाद फैक्ट्री गेट के सुरक्षा गार्ड से गले मिलकर बिदा ले रहे हैं उनको देखते ही उनके रिश्तेदारों में बिजली सी कौंध गई, ढोल – नगाड़े बजने चालू हो गए मोहल्ले वाले थिरकने लगे। बहू-बेटे फूल माला लेकर दौड़ पड़े और देखते देखते जानकी फूलों से लद गए, चारों तरफ हबड़धबड़ मच गई, रंग गुलाल से रंग गए। दोनों बहू बेटे खुशी से झूम कर नाचने लगे। डांस चालू… ढोल में तेजी… सजी बग्घी तैयार, युवाओं की टोली का सरसराहट लिए नागिन डांस…. वीडियो की बहार…. तड़ा तड़…. भड़ा भड़… सब तरफ उत्साह, उमंग, थिरकन दिख रही है पर इन सबके पीछे नेपथ्य में चुपचाप वो चालीस लाख का चैक हंस रहा है जो रिटायरमेंट में जानकी को मिला है जिसमें बहुओं एवं बेटों की उम्मीद के पंख लग गए हैं। मोहल्ले वालों और रिश्तेदारों की रिटायरमेंट पार्टी के छप्पन व्यंजन में नजर है इसलिए डांस करके ज्यादा उचक रहे हैं।

सजी हुई चमचमाती बग्घी में जानकी प्रसाद दूल्हे जैसे बैठ चुके हैं। सामने एक चैनल वाले ने माइक अड़ा दिया, पूछ रहा है अब कैसा लग रहा है ? नाईट ड्यूटी जब लगती थी तो काम करते थे कि सो जाते थे ? फैक्ट्री के अंदर जुआ – सट्टा में भाग लिया कि नहीं ?

बड़ा लड़का आ गया, एक हजार रुपये की न्यौछावर कर पत्रकार को दी, जब तक जानकी प्रसाद ने बोल ही दिया – रात सोने के लिए बनी है इसलिए घर हो या फैक्ट्री सोना जरूरी था और सीधी सी बात है कि जब नाईट ड्यूटी लगती थी तो मनमाना ओवरटाइम भी मिलता था। पत्रकार डांस करते हुए अगले ठिकाने तरफ बढ़ गया था। इतने सारे रिटायरमेंट हुए हैं कि सारी सड़कों में जाम लग गया है डांस मोहल्ला डांस चल रहा है। ट्रेफिक पुलिस वाले परेशान हैं जाम की खबर एसपी तक पहुंच गई है और पुलिस फोर्स पहुंच गई है, डांस की भीड़ को तितर-बितर करने डंडे भी चलाये नहीं जा सकते इसलिए पुलिस वाले ढोल की थाप पर मटक रहे हैं। जानकी प्रसाद ये सब देख देख मस्त हो रहा है आज न गांजा मिला है न भाँग, पर मजा उनसे ज्यादा मिल रहा है। सबसे बड़ा जुलूस जानकी का है क्यूँ न हो, जानकी विनम्र रहा है रामलीला में रावण के रोल में हिट हुआ है, लाल झंडे के साथ नारे लगवाने में पापुलर रहा है, मधुर मुस्कान से दिलों को जीता है, अहीर नृत्य में हर बार टॉप पर रहा है तभी न इतने सारे लोग डांस करके पसीना बहा रहे हैं। जानकी को अचानक धर्मपत्नी याद आ गई, वो लेने नहीं आई.. वो घर में थाली सजाकर दिया जलाकर इंतजार कर रही होगी। जानकी को बग्घी में दूल्हे जैसा सुख मिल रहा है फर्क इतना है कि दूल्हे बनकर तन्दुरस्त घोड़े में बैठे थे और आज बग्घी को बुढ़िया घोड़ी खींच रही है। डांस करती टोलियाँ मस्ती में चूर हैं उसे याद आया…. चालीस साल पहले जब बारात निकली थी तो डांस के चक्कर में गोली चल गई थी 30-35 बरातियों को पुलिस पकड़ कर ले गई थी….

जुलूस घर पहुंचने वाला है, घरवाली देख कर दंग हो जाएगी उसको आज समझ आ जाएगा कि दमदार आदमी मिला है। चैक की चिंता में बेटे बहू ने रास्ते भर पानी को पूछा, इसका मतलब चैक में दम तो है। बेटे बहू जानकी से ज्यादा खुश दिख रहे हैं और बीच-बीच में चैक ठीक से रखने की हिदायत भी दे रहे हैं।

रिटायरमेंट ग्रांट पार्टी के लिए मुंबई से बार-बालाओं को खास तरह के डांस के लिए बुलाया गया है रिश्तेदार और मोहल्ले वाले भी इस खबर से खुश हैं।

पान की दुकानों में आजकल डब्बू अंकल के चर्चे चल रहे हैं। विदिशा की शादी के डांसिंग अंकल ने सड़ा सा डांस क्या कर दिया, मुख्यमंत्री ने एंबेसडर बना दिया, स्थूलकाय डब्बू अंकल की नचनिया देह के थिरकने से सोशल मीडिया कांप गया, गोविंदा का दिल थरथराके डांस करने लगा। कुछ जले भुने ताली बजा  बजाकर कहने लगे डब्बू अंकल नर है कि नारी कि ……. ।

जानकी ने चालीस साल फैक्ट्री में नौकरी करी। फैक्ट्री की नौकरी में समय पर गेट के अंदर घुसने का बड़ा महत्व है, हर दिन का जेल जैसा है। सुबह सात बजे हूटर बजने के साथ घुसो, शाम को हूटर बजने पर साईकिल लेकर भागो, चालीस साल में जानकी ने इतना ही सीखा है। चालीस साल पहले जुगाड़ से फैक्ट्री में भर्ती हो गई थी ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे। लड़किया के बाप ने फैक्ट्री की नौकरी देख के शादी कर दी थी। बारात में सबने गेटपास वाला आई कार्ड देखा था जिसमें नाम के आगे जानकी प्रसाद अहीर लिखा था और दांत निपोरते फोटो लगी थी। सो रिटायरमेंट की पार्टी में धर्मपत्नी के मायके के लोगों की भीड़ रही। सबने खूब मस्ती की, बार-बालाओं के भड़काऊ डांस को देखकर सब पगलाए रहे फिर सबने पेट भर खाया पिया और पार्टी में जानकी प्रसाद तगड़े से उतर गए।

दो चार दिन तो शान्ति रही फिर बहू बेटों को चैक की सेहत की चिंता सताने लगी तब धर्मपत्नी ने चैक छुपा कर संदूक में रखा और अलीगढ़ का ताला लगा दिया।

एक रात जानकी को सपना आया कि चैक को चूहे कुतर रहे हैं तब संदूक से चैक निकाला गया। जानकी चैक लेकर बैंक पहुंचे, बैंक वालों ने चैक देखा और जमा करने से इंकार कर दिया। खाता जानकी प्रसाद यादव के नाम पर था जबकि चैक जानकी प्रसाद अहीर के नाम पर जारी हुआ था। आधार कार्ड देखा गया उसमें भी जानकी प्रसाद यादव लिखा था। जब चैक जमा नहीं हुआ तो जानकी ने बैंक वालों को बताया कि चालीस साल पहले फैक्ट्री में जानकी प्रसाद अहीर के नाम से भर्ती हुए थे। ज्यादा पढ़े लिखे नहीं है तो नये जमाने के लड़कों ने खाता खोलने के फार्म में यादव लिख दिया होगा और आधार भी उसी नाम से बना होगा। क्या है कि जबसे लालू, मुलायम, शरद बड़े नेता बने हैं तब से नयी उमर के लड़कों को यादव लिखने का शौक चरार्या है, जे सालों ने खाते में यादव लिखवा के चैक को डांस करने मजबूर कर दिया है बैंक वाले ने सलाह दी कि फैक्ट्री से जानकी प्रसाद यादव के नाम का चैक बनवा लो तब खाते में चैक जमा हो जाएगा।

जानकी प्रसाद की दौड़ फैक्ट्री तरफ बढ़ने लगी, फैक्ट्री का बाबू एक न माना बोला – चालीस साल से फैक्ट्री के रिकॉर्ड में जानकी प्रसाद अहीर चल रहा था तो चैक भी वही नाम से बनेगा। बाबू ने सलाह दे दी कि कोई दूसरे बैंक में जानकी प्रसाद अहीर नाम से खाता खोल कर जमा कर दो। अब तक जानकी समझ चुका था कि लापरवाही में किसी का बस नहीं है। सलाह सुनकर जानकी बैंक दर बैंक भटकने लगा पर किसी बैंक ने खाता नहीं खोला इसप्रकार चालीस लाख का चैक तीन महीने तक बैंक से फैक्ट्री और फैक्ट्री से बैंक डांस करता रहा पर किसी को दया नहीं आयी। नब्बे दिन बाद एक बैंक वाले ने कह दिया चैक तो मर चुका है अब कोई काम का नहीं रहा। चैक का जीवनकाल तीन महीने का था, जानकी के काटो तो खून नहीं….. अचानक दिमाग में विस्फोट सा हुआ और जानकी का दिमाग खिसक गया…… अंट-संट बकने लगा..कभी नाचने लगता… कभी रोने लगता…. तंग आकर बहू – बेटों ने घर से निकाल दिया।

अब वो कभी बैंक के सामने कभी फैक्ट्री के गेट पर बड़बड़ाता, चिल्लाता, रोने लगता, डांस करने लगता, लोग भीड़ लगाकर मजा लूटते।  एक दिन चैक लेकर फैक्ट्री के गेट में जबरदस्ती घुसने की कोशिश की तो सिक्योरिटी गार्ड ने डण्डा पटक दिया, चैक डांस करते हुए जेब से बाहर गिरा तो जानकी झुक कर नाचने लगा… नाचते नाचते वहीं गिरा और मर गया……….

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765
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हिन्दी साहित्य – कविता – * रसोई * – सुश्री मीनाक्षी भालेराव 

सुश्री मीनाक्षी भालेराव 

रसोई

(कवयित्री सुश्री मीनाक्षी भालेराव जी का e-abhivyakti में स्वागत है।)

 

जब हर रोज़ रसोई घर में
कैद हो जाती है सांसें
कुछ बदल नहीं सकती हूँ
अपनी सीमाओं को तब
कभी कभी खाने में परोस
दिया करती हूँ ।

अपना भरोसे से भरा परांठा
अपनी खुशी, नाराजगी, उदासी की मिक्स सब्जी
टुटे, बिखरे, सहमे ख्यालों का पुलाव
कभी तीखे, खट्टे, रूखे स्वभाव को
ढेर सारा उंडेल कर
बेस्वाद, बदहजमी वाला खाना
कभी-कभी खाने में परोस देती हूँ ।

खाने की टेबल पर बिछा देतीं हूँ
अपनी अधुरी महत्वाकांक्षाएं से बुना
टेबल क्लोथ
खाली ग्लास में भर देती हूँ
उम्मीदों का पानी ।

थाली, कटोरी, चम्मच जब सब को
भर देती हूँ
अपनी आंखों की नमीं से
मुंह में कैद हुऐ अलफाजों से
कुछ गीले लम्हों से
और थोड़ी सी खामोशी से

तब अस्तित्व टूट कर टेबिल के
नीचे बिखर जाता है
जूठन सा और
आत्मविश्वास सहम जाता है
खरखट सा हो जाता है ।

© मीनाक्षी भालेराव, पुणे 

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