हिन्दी साहित्य – कविता – शेष कुशल है – श्री हेमन्त बावनकर

श्री हेमन्त बावनकर

 

शेष कुशल है

ये तीन शब्द

“शेष कुशल है”

काफी कुछ समेटे हैं

अपने आप में।

 

एक पुस्तक गढ़ दी है

इन तीन शब्दों नें।

मेरी चिट्ठी पढ़ी आपने

मैंने आपकी चिट्ठी पढ़ी

अपने आप में।

 

सच ही तो है

मन बड़ा चंचल है।

जाने क्या-क्या है सोचता?

जाने क्या-क्या है सुनता?

जैसे

हरि अनन्त

हरि कथा अनन्ता।

 

कुछ बातें चिट्ठी में

नहीं लिखी हैं जाती

अन्तर्मन की

पीड़ाएँ खुलकर के

मुखरित नहीं हैं होती।

 

वैसे तो आज

चिट्ठी कौन लिखता है?

सोशल मीडिया पर

नकली मुस्कराहट लिए चेहरा

और बेमन मन

दोनों ही दिखता है?

चिट्ठी उसे वही है लिखता

जिसका जमीर

कहीं नहीं है बिकता

या फिर

ऐसा हो मजमून

ताकि सनद रहे

वक्त जरूरत पर काम आवे।

 

गाँव की मिट्टी की सौंधी खुशबू

जाने कहाँ खो जाती है?

भैया भाभी की याद

सदा एकान्त में

सदा रुलाती है।

 

अलमारी सिरहाने में

चिट्ठी के एक-एक शब्द में

आपका अथाह प्रेम झलकता है।

एक-एक लिखी घटना से

सारा हृदय धड़कता है।

 

कितने भोले हो भैया

सारे गाँव की बात बताते हो।

अपना मर्म अपनी तकलीफ़ें

संकेतों में समझाते हो।

खुद आंबाहल्दी – चूना

गुड़ का लेप लगाते हो

और

भाभी के इलाज के खर्चे की

चिन्ता बहुत जताते हो।

 

आपका छोटे हूँ

ऐसी बहुत सी बाते हैं

लिखना मुश्किल है

अब क्या लिखूँ

बस

यही सोच सोच

अपना मन बहलाते हैं।

 

यह सच है कि

साठ सत्तर के बाद

हम सब

बोनस जीवन ही जीते हैं

और

अपने आपको

मुक्तिधाम की कतार में पाते हैं।

 

अब तो

मन साझा करने

चिट्ठियाँ लिखें भी तो

लिखें किसे?

 

आपकी लाड़ी भी छूट गईं!

 

बस

अब तो

खुद को ही लिखना है

और

खुद को ही पढ़ना है।

 

शेष कुशल है।

शेष कुशल है।

 

© हेमन्त बावनकर  

(वरिष्ठ साहित्यकार अग्रज  डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी की कृति  ‘शेष कुशल है’ से प्रेरित कविता।)

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हिन्दी साहित्य- लघुकथा – अनूठी बोहनी – डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

अनूठी बोहनी —–

 

साँझ होने को आई किन्तु आज एक पैसे की बोहनी तक नहीं हुई।

बांस एवं उसकी खपच्चियों से बने फर्मे के टंग्गन में गुब्बारे, बांसुरियाँ, और फिरकी, चश्मे आदि करीने से टाँग कर रामदीन रोज सबेरे घर से निकल पड़ता है।

गली, बाजार, चौराहे व घरों के सामने कभी बाँसुरी बजाते, कभी फिरकी घुमाते और कभी फुग्गों को हथेली से रगड़ कर आवाज निकालते ग्राहकों/ बच्चों का ध्यान अपनी ऒर आकर्षित करता है रामदीन ।

बच्चों के साथ छुट्टे पैसों की समस्या के हल के लिए वह अपनी  बाईं जेब में घर से निकलते समय ही कुछ चिल्लर रख लेता है। दाहिनी जेब आज की बिक्री के पैसों के लिए होती

खिन्न मन से रामदीन अँधेरा होने से पहले घर लौटते हुए रास्ते में एक पुलिया पर कुछ देर थकान मिटाने के लिए बैठकर बीड़ी पीने लगा। उसी समय सिर पर एक तसले में कुछ जलाऊ उपले और लकड़ी के टुकड़े रखे मजदुर सी दिखने वाली एक महिला एक हाथ से ऊँगली पकड़े एक बच्चे को लेकर उसी पुलिया पर सुस्ताने लगी।

गुब्बारों पर नज़र पड़ते ही वह बच्चा अपनी माँ से उन्हें दिलाने की जिद करने लगा। दो चार बार समझाने के बाद भी बालक मचलने लगा, तो उसके गाल पर एक चपत लगाते हुए उसे डांटने लगी  कि,

दिन भर मजूरी करने के बाद जरा सी गलती पर ठेकेदार ने आज पूरे दिन के पैसे हजम कर लिए और तुझे फुग्गों की पड़ी है।। बच्चा रोने लगता है।

पुलिया के एक कोने पर बैठे रामदीन का इन माँ-बेटे पर ध्यान जाना स्वाभाविक ही था।

वह उठा और रोते हुए बच्चे के पास गया । एक गुब्बारा, एक बांसुरी और एक फिरकी उसके हाथों में दे कर सर पर हाथ रख  उसे चुप कराया। फिर अपनी बाईं जेब में हाथ डालकर  उसमें से इन तीनो की कीमत के पैसे निकाल कर अपनी दाहिनी जेब में रख लिए।

अचानक हुई इस अनूठी और सुखद बोहनी से प्रसन्न मन मुस्कुराते हुए रामदीन घर की ओर चल दिया।

 

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

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मराठी साहित्य – कथा/लघुकथा – आशिर्वादाचं पाकिट – सुश्री ज्योति हसबनीस

सुश्री ज्योति हसबनीस

आशिर्वादाचं पाकिट

(e-abhivyakti welcomes Mrs. Jyoti Hasabnis who is a renowned Marathi Author/Poetess. Her articles are being published in Sakal Nagpur Edition.) 

कपाट आवरता आवरता एक रिकामं पाकिट दिसलं . जसं जपून ठेवलंय अगदी ! मनात विचार येतोय , रिकामं पाकिट कशासाठी जागा अडवून बसलंय फेकायला हवंय तेवढ्यात त्याच्या अक्षराने लक्ष वेधलं , बारीक बारीक डोळ्यांनी त्यावरचा मजकूर वाचला , चष्मा डोळ्यावर चढवला , पुन्हा पुन्हा वाचलं , हळूवार हात फिरवला त्यावर …आईच्या सुरेख हस्ताक्षरांतलं तोंड भरून आशिर्वाद देणारं पाकिट होतं ते ! होतंच ते जपून ठेवण्यासारखं ! ते पाहिलं आणि मन जाऊन पोहोचलं माहेरच्या अंगणात ! आठवणींचे लक्षावधी फुटवेच फुटले मनात !

माहेरचं वारं काही वेगळंच असतं का ?

अधिकच मंदशीतल  , गंधभरलं ! घराच्या कट्ट्यावरच्या रंगलेल्या तिच्याबरोबरच्या गप्पा अजूनही मनात ठाण मांडून आहेत अगदी बकुळफुलांच्या गंधासारख्या ! मुलांच्या धबडग्यात जो संध्याकाळचा वेळ मिळायचा तो असा खास दोघींचा ! संध्याकाळचं भणाण वारं अंगावर घेत जिव्हाळ्याच्या विषयांना कुरवाळत,  कधी दिवेलागण व्हायची कळायचं देखील नाही !

माहेरचं आभाळ काही वेगळंच असतं का ? त्या आभाळाच्या छताखाली ना एक अन्नपूर्णा असायची ! आभाळाएवढे अमाप लाड पुरवणारी , लाडाकोडाने खाऊ घालणारी , सुगरण हातांची ! आईचा हात जादूचा असतो का ? तशीच आमटी मी पण करते  पण आईच्या आमटीची सर तिला कधीच नसते , तसाच मसालेभात मी पण करते पण मसालेभात असावा तर अस्साच असं तिच्या मसालेभाताचा पहिला घास घेताक्षणी प्रकर्षाने जाणवायचं  ! आणि सांजा …तो तर खास तिच्याच हातचा , त्याची सजावट तर तिनेच करावी ! खरंच तिच्या हातात जादूच होती !

माहेरचं घड्याळ खुप फास्ट असतं का ?  , कॅलेंडर मधल्या तारखांना पुढे पुढे जायची खुप घाई झालेली असते का ?आत्ताच तर आलो आणि निघायचा दिवसही आला , इतक्या लवकर हे असं कसं झालं हे एक न सुटलेलं कोडंच !

ओट्यापाशी आई असणार पण तिचं चित्त स्वैंपाकात नसणार , नजर सतत माझ्या हालचालीवर , मध्येच ,अगं कॉफी घेते का , ह्या प्रश्नाने मी चमकणार , कॉफी आणि ह्या वेळी ..? आता उमगतेय  ह्या प्रश्नामागची तिची मन:स्थिती .. तिची घालमेल !

माहेरचं प्रेम इतकं हळवं असतं का ?

दरच वेळी निरोप घेतांना तिच्या डोळ्यात दाटलेली आभाळमाया वाटभर माझ्या सोबत असायची ! आतल्या आत हुंदके जिरवणारी ती माऊली  मला जवळ घेत हळूच तिचं ते आशिर्वादाचं पाकिट माझ्या हातात सरकवायची ! आणि …तिचं सुंदर हस्ताक्षरातलं , खुप छान प्रेमाचे चार बोल लिहीलेलं पाकिट घेतांना मला काय वाटायचं ते शब्दांतच व्यक्त नाही करू शकणार मी ! गाडीत देखील सारखा अधून मघून त्या पाकिटावरून हात फिरत असायचा माझा ! मुलं निरागसपणे विचारायची , आई आजीने किती पैसे दिले , त्यांना काय माहित ..माझ्यासाठी ते पैशाचं पाकिट नव्हतं ,  माझ्या आईचा आशिर्वाद होता तो तिच्या प्रेमळ शब्दातून कायम माझ्याजवळ असणारा !

आज ते रिकामं पाकिट दिसलं , तिचं सुरेख अक्षर , प्रेमळ शब्द बघितले , आणि असं आठवणींचं मोहोळ उठलं …

आई किती व्यापून असते ना आपल्याला कितीही काळ लोटला तरी !

 

© ज्योति हसबनीस

 

 

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English Literature – Book-Review/Abstract – Tales from Venus – Ms. Neelam Saxena Chandra

Tales from Venus

Short story collection written by Ms. Neelam Saxena Chandra by LiFi Publications

 “Tales from Venus” recently traveled to Sharjah International Book Fair.

About the Book : “A woman is a palette of hues and has various shades to her persona. She desires nothing, but love. If she feels loved, she shines, opens her wings and touches the sky; radiating the whole world. If she does not, she cribs for some time, may get angry too; but then finds her own horizons in the space provided. She does not stop anywhere. She is always adapting to the situations and then also modifying herself accordingly and learning to grow in the worst of situations. Tales from Venus makes you aware of the various colours of a woman right from teens till she matures. There are tales that tickle your bones, tales that make you feel emotional, tales of courage, tales of treachery, tales that thrill you and tales that make you happy. Ultimately, you are bound to remain glued to the book because of the surprise element offered by each story.”

Excerpts from the book – Tales from Venus   

Papa, I am in Love

“Papa, I think I am in love. I had never thought that this miracle will happen to me. Now that it has happened, I am so happy!”

“Wow! That is wonderful! So very wonderful! And who is the lucky chap?”

“Papa, he will come to meet you in an hour by 5 p.m. I want you to see him and accept him totally. I know that you will like him.”

“What if I don’t? Do I have the option of liking him or not liking him? Or is it compulsory for me to like him?”

“Of course, you have the option of not liking him. But, I am sure that you will like him. He is so good. He is someone whom everyone marvels at. Papa, he is awesome!”

“Are you talking about your boyfriend or some material in a show room?”

“Papa, you are too funny. You always talk nonsense. Obviously, I am talking about Sandy. I love Sandy with all my heart, my soul and my spirit. It is so nice a feeling to be in love. I am enjoying being in love.”

“Yeah, I can see that. Since when are you in love with this Sandy?”

“Papa, he proposed to me yesterday. And I am in love with him since then.”

Amazon Link: Tales from Venus

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English Literature – Book-Review/Abstract – Love Incomplete – Mr. Ashish Kumar

Love Incomplete

Blurb : Ashish Kumar, a young college boy from small town Haridwar, dreams of falling in love with the perfect girl, little knowing that she is waiting for him right around the corner. When they meet, love blossoms between the two people, who are poles apart, being from different countries, different cultures and different races. Above all, the perfect girl is perhaps too perfect for Ashish and he fails to reveal his heart to her leading to disastrous consequences.

Links to buy Book of Mr. Ashish Kumar :

Amazon: Love Incomplete

Excerpts from the book: ‘Love Incomplete

These are true incidents from my life that make me believe that heaven is somewhere here, on this earth and nowhere else.

Love, yes, love is the most mysterious word in the English language. I believe that love is the integration of affections for a single object. Love is the most beautiful aspect of life. It is the feeling in which you only want to give and not expect anything in return. Above all, love believes in hope.

The best thing about love is that when you are in love, you don’t need to do anything. Your heart will handle all your stupid steps.

In my eyes, I think love is:

It makes you feel like football players,

Sometimes loses hope and brings a river of tears.

Folks say love is like a prayer to God,

But I know it’s uninvited trouble come at a nod.

Some keep pictures to remember her face,

Some stupidly hold on, even if she breaks his face.

Some say they will hold you till the end of the race

Thorns or roses, no matter what be the case.

Some buy costly clothes and S-class Mercedes on rent,

Some will wash her hair with sunshine, old stars and paint.

Some write poetry to impress their girls,

Some direct kisses, some chocolate, some pearls.

Broken hearts say it’s the same old mad game,

You win it or lose it, love always gets the fame.

One waits in the dark lane to touch soft hands.

When the luckiest finds it, he shares secrets with friends.

One night he was fooled by fake lover’s eyes,

Coffee and Internet, this time search area wise.

You said you didn’t care, flirting was your main game,

Better to melt the clock through the days, over your name.

But some still say that love is ultimate,

Love’s a memory lane that never will wait.

Now, first I want to tell you about myself to help you understand the feelings of my heart and the state of my mind during this story.

I am Ashish Kumar. I was born in a small town, Haridwar, in India. It is a very peaceful, holy and, though very few know it as such, a romantic city as well. I was born in a middle class family which believed that the purpose of life was to help each other at any cost. I have never seen anyone who came for help to my home to leave without a smile. I have grown up listening to the stories of Ram, Hanuman and other gods.

Let me begin my story from the point of my first adult appearance.

I had completed my schooling from a public school. Till then I had never looked at a girl. Even if a girl had looked at me, I would always panic, wondering why she was watching me.

Of course, somewhere in my heart there was always the feeling that someday I would find a girl who would fall for me. In school, I used to think that I was very handsome and smart due to my funny nature. I would also respond to the questions asked in class faster than a laser beam. It didn’t matter whether my answers were right or wrong. I have been always the first to answer all questions, compared to other students.

This is why the girls in our tuition enjoyed my company. My responses to my teachers and other students would be amusing as well, which gave me a special place in their hearts.

In the 12th standard, our physics teacher had declared in front of all the students that I was the best student he had ever taught. Other teachers too had made similar statements, but those are not important enough to be discussed here. The days I didn’t come to class, other students, mainly girls, said, “Today we are not enjoying because Ashish is absent.”

Such statements made me feel like I was in seventh heaven and I thought that I didn’t need ‘a’ girl, because if ‘girls’ wanted to be my friends then it was all the better for me.

Like other Virgos, I am also a perfectionist, rather more than other Virgos. I like things to be perfect according to me. I don’t care about what other people think. I knew that I wanted a particular kind of girl who would be perfect according to me. She would be simple but also the most beautiful in the world, because I was also looking for an angel.

During my high school days, a few girls had tried to impress me. But at that time, I was completely devoted to my studies, science experiments, sports and with my family, so I never returned their emotions.

Those were the days when I always wondered why boys wasted time on girls. In my eyes, those boys were the biggest fools. Whenever I would come across such belles and beaus, I would pass them by with a big smile on my face, wondering how they could be so stupid as to waste time in these matters. When my friends would talk about girls, I would start thinking about other things. At that time, I used to believe that love was a word created to make fools out of people.

© Ashkuva (Ashish Kumar Vaasyaan)

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मराठी साहित्य – कविता – मेघ सरले – सुश्री स्वप्ना अमृतकर

कवयित्री : स्वप्ना अमृतकर (पुणे)

आत्मकथ्य : लिखाणाच्या शैलीत, शब्दसुमनांच्या वेलीत, विचारांच्या स्वरचित, मनाच्या काल्पनिक, माझा प्रवास सुरु आहे.   साहित्यिक लिखाणांत कविता, चारोळी, गजल, लेख, कथा लिखाण, प्राचीन आणि नव नव्या गोष्टी, तंत्रज्ञान समजुन त्यावर स्वरचित विचारमांडणी करणे.

विशेष : पालकांकडुन लाभलेल्या स्वच्छ विचारसरणी आणि लिखाणाची कला शैली जोपासता यावी हाच प्रयत्न .. – स्वप्ना अमृतकर

 

मेघ सरले

 

मेघ सरले,

मोर हासले,

थेंब थांबले,

वादळ हरवले,

 

नकळत तेव्हांच तू माझ्याकडे पहिले,

आणि मी माझे सर्वस्व गमावले,

तुझ्या बघण्याचा इशारा होता जणू,

पाऊस पडल्यानंतर होणारा आनंद,

ओल्या मातीचाही चोहीकडे दरवळलेला सुगंध,

वाऱ्यानेही कहर केला होता मनी,

कोमल अंगालाही शहारल्या लहरी बेधुंद,

मनाला पालवी फुटावी एवढा गजर झाला त्या क्षणी,

हरवलेल्या राधेला मिळावा तिचा कृष्ण,

असाच काही आहे तू माझ्यासाठी परमानंद,

आपल्या दोघांमध्ये होत होता संवाद केवळ त्या मेघांमुळे,

आता शेवट जरी केला तरी तो केवळ तुझ्या माझ्या प्रेमामुळे,

 

म्हणूनच,

मेघ सरले,

मोर हासले,

थेंब थांबले,

वादळ हरवले….!

 

© स्वप्ना अमृतकर

 

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल–Meditation: Breathing with Wisdom – Learning Video #8 -Shri Jagat Singh Bisht

Learning Video #8

 

Video link:

Learn meditation step by step.Practise meditation breath by breath. The breath can take you all the way to nirvana.

When mindfulness of breathing is developed and cultivated, it is of great fruit and great benefit.

Instructions:

Sit down with legs folded crosswise, back straight and eyes closed.

Always mindful, breathe in; mindful, breathe out.

FIRST TETRAD (BODY GROUP):

Be aware of your breath around your nostrils as you breathe in and as you breathe out.

Breathing in long, understand: I am breathing in long; breathing out long, understand: I am breathing out long.

Breathing in short, understand: I am breathing in short; breathing out short, understand: I am breathing out short.

Do not try to regulate your breath in any way. Observe your natural breath as it is.

Be aware of your body as you breathe in and as you breathe out.

Breathe in experiencing the whole body, breathe out experiencing the whole body.

Breathe in tranquilizing the whole body, breathe out tranquilizing the whole body.

Don’t worry if your mind wanders away, gently bring it back and observe your breath.

Ever mindful, breathe in; mindful, breathe out.

SECOND TETRAD (FEELINGS GROUP):

Be aware of your feelings you breathe in and as you breathe out.

Breathe in experiencing your feelings, breathe out experiencing your feelings.

Breathe in experiencing rapture, breathe out experiencing rapture.

Breathe in experiencing pleasure, breathe out experiencing pleasure.

Be aware of your mental processes as you breathe in and as you breathe out.

Breathe in experiencing mental formations, breathe out experiencing mental formations.

Breathe in tranquilizing mental formations, breathe out tranquilizing mental formations.

Ever mindful, breathe in; mindful, breathe out.

THIRD TETRAD (MIND GROUP):

Be aware of your mind as you breathe in and as you breathe out.

Breathe in experiencing the mind, breathe out experiencing the mind.

Breathe in gladdening the mind, breathe out gladdening the mind.

Breathe in concentrating the mind, breathe out concentrating the mind.

Breathe in liberating the mind, breathe out liberating the mind.

Ever mindful, breathe in; mindful, breathe out.

FOURTH TETRAD (WISDOM GROUP)

As you breathe in and as you breathe out, contemplate on the impermanence of physical and mental events.

Breathe in focusing on impermanence, breathe out focusing on impermanence.

As you breathe in and as you breathe out, contemplate on the fading away of formations.

Breathe in focusing on fading away, breathe out focusing on fading away.

As you breathe in and as you breathe out, contemplate on the cessation of suffering.

Breathe in focusing on cessation, breathe out focusing on cessation.

As you breathe in and as you breathe out, contemplate on the giving up of defilements.

Breathe in focusing on relinquishment, breathe out focusing on relinquishment.

Ever mindful, breathe in; mindful, breathe out.

 

May all beings be happy, be peaceful, be liberated.

Be happy and stay blessed!

(Based on the Anapanasati Sutta)

Jagat Singh Bisht, Founder: LifeSkills

[email protected]

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हिन्दी साहित्य-कविता – पिता की याद – श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

 

 

 

 

 

पिता की याद

 

पिता बैठते हैं कभी

कभी इधर कभी उधर,

कभी अमरूद के नीचे

कभी परछी के किनारे

कभी खोलते हैं कुण्डी

कभी बंद करते हैं किवाड़

गाय को डालते हैं चारा

बछिया को पिलाते दूध

लौकी की बेल पकड़ लेते

फिर खीरा तोड़ ले आते

अम्मा पर चिल्लाने लगते

आंगन के कचरे से चिढ़ते

चिड़ियों को दाना डाल देते

कभी चिड़चिड़े रोने लगते

बरसते पानी में भीगने लगते

पिता हर जगह मौजूद रहते

सूरज की रोशनी के साथ

पिता जब भी याद आते

तन मन में भूकंप भी लाते

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जय प्रकाश पाण्डेय, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा हिन्दी व्यंग्य है। )

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल – Meditation

Meditation

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator and Speaker.)

 

Meditation isn’t about becoming a different person, a new person, or even a better person. It’s about training in awareness and getting a healthy sense of perspective. You’re not trying to turn off your thoughts or feelings. You’re learning to observe them without judgment. And eventually, you may start to better understand them as well. LifeSkills will teach you learn meditation!

LifeSkills

Courtesy – Shri Jagat Singh Bisht, LifeSkills, Indore

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संस्थाएं – पाथेय  साहित्य कला अकादमी जबलपुर मध्य प्रदेश

पाथेय  साहित्य कला अकादमी जबलपुर मध्य प्रदेश

(पाथेय साहित्य कला अकादमी संस्कारधानी जबलपुर की प्रतिष्ठित संस्थाओं में से एक है। यह संस्था  डॉ.राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’ और उनकी जीवनसंगिनी डॉ. गायत्री तिवारी का दिवा स्वप्न है।)

वरिष्ठ साहित्यकार पत्रकार डॉ.राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’ और उनकी जीवनसंगिनी डॉ. गायत्री तिवारी ने अक्टूबर 1995 को पाथेय  प्रकाशन, पाथेय संस्था और पाथेय साहित्य कला अकादमी की स्थापना की.

प्रारंभ में अकादमी ने पारिवारिक स्तर पर प्रियजनों की स्मृति में, विविध विषयों के लिए 2100 और 1100 के 16 पुरस्कार प्रारंभ किए. निर्णय प्रविष्टियों के आधार पर होता था.

8 सितंबर 2015 को डॉ.गायत्री तिवारी के देहावसान से उत्पन्न स्थिति के कारण पुरस्कार योजना बंद कर दी गई.

27 दिसंबर 2015 से ही अकादमी ने ‘गायत्री जन्म स्मृति’ मनाने का निश्चय किया. गायत्री कथा सम्मान के लिए 11000 की राशि निश्चित की गई.

गायत्री सृजन सम्मान से नगरीय क्षेत्रीय प्रतिभाओं को सम्मानित करने का निर्णय लिया गया.

गायत्री कथा सम्मान से अब तक सम्मानित कथाकार –

सन 2015 – श्री राजेंद्र दानी 

सन 2016 – श्री कैलाश बनवासी 

सन 2017 – श्रीमती सुषमा मुनींद्र 

(सन 2018 के लिए का चयन किया जा रहा है)

अकादमी देशीय  स्तर पर अन्य संस्थाओं को भी सहयोग देती है.

वर्तमान में अकादमी के पदाधिकारी हैं.

अध्यक्ष – डॉ भावना शुक्ल

महासचिव – श्री राजेश पाठक प्रवीण

सचिव – डॉ हर्ष कुमार तिवारी

 

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