ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 31 – हेमन्त बावनकर

ई-अभिव्यक्ति:  संवाद–31               

कई बार विलंब एवं अत्यधिक थकान के कारण आपसे संवाद नहीं  कर पाता। कई बार प्रतिक्रियाएं भी नहीं दे पाता और कभी कभी जब मन नहीं मानता तो अगले संवाद में आपसे जुड़ने का प्रयास करता हूँ।

अब कल की ही बात देखिये । मुझे आपसे कई बातें करनी थी फिर कतिपय कारणों से आपसे संवाद नहीं कर सका। तो विचार किया कि – चलो आज ही संवाद कर लेते हैं।

प्रोफेसर चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी केंद्रीय विद्यालय, जबलपुर में मेरे प्रथम प्राचार्य थे। उनका आशीष अब भी बना हुआ है। ईश्वर ने मुझे उनके द्वारा रचित श्रीमद् भगवत गीता पद्यानुवाद की शृंखला प्रकाशित करने का सौभाग्य प्रदान किया। ईश्वर की कृपा से वे आज भी स्वस्थ हैं एवं साहित्य सेवा में लीन हैं। यदि मेरी वय 62 वर्ष है तो उनकी वय क्या होगी आप कल्पना कर सकते हैं?

श्री जगत सिंह बिष्ट जी भारतीय स्टेट बैंक में भूतपूर्व वरिष्ठ अधिकारी रहे हैं। योग साधना, ध्यान  एवं हास्य योग में उन्होने महारत हासिल की है। इसके अतिरिक्त वे एक प्रेरक वक्ता के तौर पर भी जाने जाते हैं। हास्य योग पर आधारित उनकी हास्य योग यात्रा की शृंखला अत्यंत रोचक बन पड़ी है।

श्री रमेश चंद्र तिवारी जी की “न्यायालय के आदेश के परिपालन में लिखी गई किताब – भारत में जल की समस्या एवं समाधान” पुस्तक पर श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी की टिप्पणी काफी ज्ञानवर्धक एवं रोचक है। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव जी ने स्वयं इसी परिपेक्ष्य में  काफी शोध के पश्चात “जल, जंगल और जमीन” पुस्तक लिखी है।

सुश्री ऋतु गुप्ता जी की लघुकथा “वृद्धाश्रम” एवं आज डॉ मुक्ता जी की कविता “कुम्भ की त्रासदी” वृद्ध जीवन के विभिन्न पक्षों से हमें रूबरू कराती है। किन्तु इसके विपरीत कभी कभी मुझे क्यों लगता है कि वृद्ध जीवन की त्रासदी के लिए हम बच्चों को ही क्यों दोष देते हैं? क्या कभी हमने अपने जीवन में झांक कर देखा कि हममे से कितने लोगों ने अपने माता पिता की सेवा की है जो अपने बच्चों से अपेक्षा करें। फिर निम्न मध्य वर्ग के परिवार के पालक गण के तौर पर हम ही तो बचपन से उन्हें विदेश में पढ़ने बढ़ने के लिए स्वप्न देखते और स्वप्न दिखाते हैं।  यह पक्ष भी विचारणीय है।

श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी का व्यंग्य “वो दिन हवा हुए” हमें अपने जमाने के चुनावों, चुनाव चिन्हों और माहौल से रूबरू कराती है।

अंत में सुश्री सुजाता काले जी कविता “खारा प्रश्न”, खारा ही नहीं बल्कि “खरा प्रश्न” जान पड़ता है। इस संदर्भ  में मुझे मेरी कविता “दिल, आँखें और आँसू” की कुछ पंक्तियाँ याद आती हैं जिसमें मैंने पुरुष की आँखों केहै।  खारे पानी की कल्पना की है।

 

कहते हैं कि –

स्त्री मन बड़ा कोमल होता है

उसकी आँखों में आँसुओं का स्रोत होता है।

 

किन्तु,

मैंने तो उसको अपनी पत्नी की विदाई में

मुंह फेरकर आँखें पोंछते हुए भी देखा है।

 

उसे अपनी बहन को

और फिर बेटी को

आँसुओं से विदा करते हुए भी देखा है।

 

उसकी आँखों में फर्ज़ के आँसुओं को तब भी देखा है

जब वह दूसरे घर की बेटी को

विदा करा कर लाया था।

अपनी बहन के विदा करने के अहसास एहसास के साथ।

अपनी बेटी के विदा करने के अहसास के साथ।

 

उसकी आँखों में खुशी के आँसुओं को तब भी देखा है

जब तुमने आहट दी थी

अपनी माँ के गर्भ में आने की।

 

उसकी आँखों में खुशी के आँसुओं को तब भी देखा है

जब वह तुम्हें अच्छी-अच्छी कहानियाँ सुनाता था

जब तुम गर्भ में थे

ताकि तुम सहर्ष निकल सको

जीवन के चक्रव्यूह से।

 

उसकी आँखों में विवशता के आँसुओं को तब भी देखा है

जब उसने स्वयं को विवश पाया

तुम्हारी जरूरी जरूरतों को पूरा करने में।

 

आज बस इतना ही।

 

हेमन्त बवानकर 

2  मई 2019

 

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ कुम्भ की त्रासदी ☆ –डा. मुक्ता

डा. मुक्ता

☆ कुम्भ की त्रासदी ☆

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। कुछ लोगों के लिए कुम्भ एक पर्व है और कुछ लोगों के लिए त्रासदी। जिनके लिए कुम्भ एक पर्व है उस पर तो सब लिखते हैं किन्तु, जिसके लिए त्रासदी है , उसके लिए वे ही लिख पाते हैं जो संवेदनशील हैं। डॉ मुक्ता जी की लेखनी को सादर नमन।)

 

कुम्भ के अवसर पर

छोड़ दी जाती हैं वृद्धाएं

अपने आत्मजों

जिगर के टुकड़ों द्वारा

अनुपयोगी समझ

क्योंकि इक्कीसवीं सदी

उपभोक्तावाद पर केंद्रित

“यूज़ एंड थ्रो” जिसका मूल-मंत्र

और वे अगले कुंभ की प्रतीक्षा में

अपने बच्चों पर आशीष बरसातीं

दुआओं के अम्बार लगातीं

ढोती रहती हैं ज़िंदगी

नितांत अकेली…इसी इंतज़ार में

शायद! लौट आए उसका लख्ते-जिगर

और उसे अपने घर ले जाए

जहां बसी है उसकी आत्मा

और मधुर स्मृतियां।

 

© डा. मुक्ता

पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी,  #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com

 

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मराठी साहित्य – मराठी कविता – ☆ बहावा ☆ – सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

 

? बहावा ?

(सुश्री प्रभा सोनवणे जी  हमारी  पीढ़ी की एक वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं ।  प्रस्तुत है सुश्री प्रभा जी की एक  संवेदनशील एवं भावप्रवण मराठी  कविता “बहावा।)

 

बहावा बहरलाय

भर उन्हात ,

त्याच्या बुंध्याशी —

सिमेन्ट चा फूटपाथ

आणि शेजारी

डांबरी सडक ,

माथ्यावर —

आग ओकणारा सूर्य !

वैशाख वणवा

पेटेल आता !

ही कुठली अग्निपरिक्षा देतोय हा

बहावा ??

सुरक्षित छपराखाली

फॅन च्या वा-यातही

बाहेरच्या ऊन्हाच्या

झळा जाणवताहेत मला !

खिडकीतून दिसणारा

बहावा —-

मस्त मजेत झेलतोय

दाह आणि त्याच्या

सावलीत —

कुणी सरबतवाला

तहानलेल्या

पांथस्थांना

करतोय

तृष्णामुक्त !

बहाव्याची पिवळुली फुले डोलताहेत

वा-यावर तृप्ततेने !

खिडकीच्या आत

मी कासावीस !

न्याहाळतेय निसर्गसोहळा !

बहावा बहरलाय

भर उन्हात मग मी का

कोमेजावं

सावलीतही?

हा संदेश पाठवतोच

बहावा —

बहरण्याचा, फुलण्याचा, फुलवण्याचा !

 

© प्रभा सोनवणे,  

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पुणे – ४११०११

मोबाईल-9270729503

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ Laughter Yoga – A Return Gift of Everlasting Cheer to the Society ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator and Speaker.)

Laughter Yoga – A Return Gift of Everlasting Cheer to the Society

 

My journey of Laughter Yoga (LY) has been a very fulfilling and satisfying one. I feel blessed to practice LY almost daily with a large number of people and bring joy to their lives. I express my sincere gratitude to Dr Madan Kataria and Madhuri Kataria who have imparted this divine life skill by which I can touch human lives instantly, anywhere and at any time.

I have been closely studying Positive Psychology and Authentic Happiness for a long time and believe that doing something worthwhile and meaningful for your fellow beings and intimate social interactions with those around you alone brings true happiness. LY is the best tool to achieve this. We can have warm relationships with people and also bring unlimited joy in their lives.

I always wanted to give back something to the great institution where I have been working for more than thirty-one years. I also wished I could inculcate positive values in school children and bring smiles on the faces of the sick and old people. The society has given me so much and I wanted to give a return gift of everlasting cheer to its people. LY has equipped and enabled me to do that on a continuous basis, each and every day of my life.

I was a shy kid and a studious student. I always wanted to sing, dance, play and laugh freely in groups. Now, I can do that and also make others experience joy by doing that.

We have formed a social group Laughter Yoga @ Indore comprising of LY lovers and professionals in Indore, India. Our mission is to propagate LY in and around our town for health, wellness, joy and peace. We wish to take it to the schools, colleges, workplaces, communities, hospitals, clubs, gyms, slums, old age homes, orphanages and even prisons.

We run two regular laughter clubs here. Suniket Laughter Club meets every Sunday morning for LY exercises at the Shrinagar Extension PublicPark, Indore. In addition, my wife, Radhika, who is also a Certified LY Teacher, holds Ladies’ Laughter Kitty every Saturday evening  at the Community Hall of Suniket Apartments, Shrinagar Extension, Khajarana Road, Indore.

Laughter Club of State Bank Learning Centre, Indore was formally launched on the 13th September 2010 at the State Bank Learning Centre, Manik Bagh Road, Indore. It is a unique laughter club. Every week, new trainees come to the centre for learning. They join the club, leave by the week-end and spread laughter back at their homes. Next week, another set of new participants join, and so on..

I first saw Dr Kataria and

Jagat Singh Bisht

Founder: LifeSkills

Seminars, Workshops & Retreats on Happiness, Laughter Yoga & Positive Psychology.
Speak to us on +91 73899 38255
[email protected]

 

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – द्वितीय अध्याय (62) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

द्वितीय अध्याय

साँख्य योग

( अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद )

 

ध्यायतो विषयान्पुंसः संगस्तेषूपजायते ।

संगात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते ।।62।।

विषयों के नित ध्यान से बढ़ती है अनुरक्ति

आसक्ति से कामना उससे क्रोधोत्पत्ति।।62।।

भावार्थ :   विषयों का चिन्तन करने वाले पुरुष की उन विषयों में आसक्ति हो जाती है, आसक्ति से उन विषयों की कामना उत्पन्न होती है और कामना में विघ्न पड़ने से क्रोध उत्पन्न होता है।।62।।

 

When a man thinks of the objects, attachment to them arises; from attachment desire is born; from desire anger arises. ।।62।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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मराठी साहित्य – मराठी कविता – ☆ अमलताश ☆ – सुश्री ज्योति हसबनीस

सुश्री ज्योति हसबनीस

?अमलताश?

 

(सुश्री ज्योति हसबनीस जी का पुष्पों एवं प्रकृति के प्रति अपार स्नेह की साक्षी है । इसके पूर्व हमने सुश्री ज्योति जी की “कदंब के फूल” एवं “गुलमोहर ” पर कवितायें  प्रकाशित की थी जिसे पाठको का अपार स्नेह प्राप्त हुआ था। )

 

संपली शिशिराची पानगळ,

नवोन्मेषांनी बहरले भंवताल ।

 

रृतुबदलाचे संकेत देत,

मंद वाहे पहाट वारा ।

शिरीषाच्या फांदीतून ऊसळे,

अत्तर कुपीचा गोड फवारा ।

 

मंगलमय सृष्टीची शुचिता रेखी,

धवल शुभ्र वलयांकित अनंत हा

लालकेशरी पखरण करी,

गुलमोहोर राजस,अग्नीशिखेसम पलाश हा ।

 

घेत होते भरूनी गंध

मी श्वासाश्वासांत ,

धुंद पाऊले वाट चालती,

सृष्टीच्या स्पंदनांत ।

 

अवचित एका वळणावरती,

पाऊले मग अडखळली ।

देखोनि सुवर्णचित्र ते ,

नजर तयावरच खिळली ।

 

भार तोलत, लय साधत ,

फांदी फांदीही लवली ।

सोनपुटे लेऊन दैवी ,

हंड्या झुंबरे सजली ।

 

नेत्र अनिमिष टिपे

दृष्य हे लडिवाळ,

मति होई कुंठीत ,

बघूनी कांचन झळाळ ।

 

जणू चैत्रगौरीच्या स्वागता ,

चित्रकार तो सरसावला ।

फांदीफांदीतून झुंबरांचा ,

सुवर्ण साज हा अवतरला ।

 

अधोवदना ही सालंकृत तरुणी,

जणू पुढ्यात ऊभी साक्षात् ।

घरंदाज हे , अवनत रूप सोनसळी,

ठसले मम अंतर्मनांत  ।

 

उधळून सारे ऐश्व़र्य आपले,

अमलताश हा पुढ्यात उभा ।

ऐश्वर्यसंपन्न होई परिसर सारा,

लेऊन त्याची कांचन आभा ।

 

©  सौ. ज्योति हसबनीस

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हिन्दी साहित्य- पुस्तक समीक्षा – * भारत में जल की समस्या एवं समाधान  * श्री रमेश चंद्र तिवारी – (समीक्षक – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र‘)

भारत में जल की समस्या एवं समाधान –  श्री रमेश चन्द्र तिवारी

न्यायालय के आदेश के परिपालन में लिखी गई किताब – भारत में जल की समस्या एवं समाधान

लेखक – रमेश चंद्र तिवारी

मूल्य – २८० रु पृष्ठ २७४

शकुंतला प्रकाशन, २१७६, राइट टाउन , जबलपुर

टिप्पणीकार – इंजी विवेक रंजन श्रीवास्तव , मो ७०००३७५७९८ जबलपुर

 

सामान्यतः किताबें लेखक के मनोभावो की अभिव्यक्ति स्वरूप लिखी जाती हैं, जिन्हें वह सार्वजनिक करते हुये सहेजना चाहता है जिससे समाज उनसे लम्बे समय तक अनुप्राणित होता रह सके. पर्यावरण पर अनेक विद्वानो ने समय समय पर चिंता जताई है. मैंने भी मेरी किताब जल जंगल और जमीन भी इसी परिप्रेक्ष्य में लिखी थी. भारत में जल की समस्या एवं समाधान श्री रमेश चंद्र तिवारी की पुस्तक इस मामले में अनोखी है कि यह किताब माननीय उच्च न्यायालय के एक निर्णय के परिपालन में लिखी गई है.

पृष्ठभूमि यह है कि श्री रमेश चंद्र तिवारी वन विभाग में सेवारत थे, उनके सेवाकाल में उन्हें विभिन्न पदो पर अवसर मिले कि वे धरती के गिरते जल स्तर, पर्यावरण परिवर्तन से सुपरिचित होते रहे. सेवानिवृति के बाद उन्होने हाई कोर्ट में एड्वोकेट के रूप में कार्य शुरू किया, तथा अपनी पर्यावरण सजगता के चलते उन्होने समाज के प्रति जिम्मेदारी निभाते हुये मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में याचिका क्र डब्लू पी ५१७८ वर्ष २००८ आर सी तिवारी विरुद्ध भारत सरकार व अन्य दायर की. याचिका में गिरते भू जल स्तर पर चिंता व्यक्त करते हुये वैधानिक आधार पर न्यायालय के समक्ष रखा गया. यहां यह लिखना प्रासंगिक है कि वर्तमान में सरकारो की जो स्थितियां हैं उनसे ऐसा लगने लगा है कि देश न्यायालय ही चला रहे हैं. लगभग हर छोटी बड़ी राष्ट्रीय समस्या से संबंधित जनहित याचिकायें या प्रकरण न्यायालय में लंबित हैं. यह स्थिति जहां एक ओर जागरूखता का परिचय देती हैं वही सरकारो की कार्य प्रणाली पर प्रश्न चिन्ह भी खड़े करती है . यह स्वस्थ्य लोकतंत्र की दृष्टि से चिंतनीय कही जा सकती है. अस्तु, माननीय न्यायालय ने आर सी तिवारी जी की याचिका पर निर्णय देते हुये २८ जुलाई २०१५ को निर्देश दिये  कि जल समस्या के समाधान हेतु शासन को प्रस्ताव बनाकर भेजा जावे. और इस परिपालन में इस किताब की रचना श्री आर सी तिवारी द्वारा की गई है.

 

ब्रम्हाण्ड के अनेकानेक ग्रहो में से केवल पृथ्वी पर जीवन है, और जीवन के लिये जल, वायु, पर्यावरण के महत्व से सभि सुपरिचित हैं. जल का प्रबंधन केवल मनुष्य कर रहा है पर धरती के समस्त प्राणी, व वनस्पतियां भी जीवन के लिये जल पर निर्भर हैं. अतः भावी पीढ़ीयो के लिये जल के समुचित संरक्षण व उपयोग की मानवीय जबाबदारी कही ज्यादा है. जल संचय  मानवीय विकास हेतु जरुरी है, इसलिये बांध बनाये जा रहे हैं.  बड़े बांधो से जल संग्रहण में डूब क्षेत्र की समस्या के विकल्प के रूप में मैंने जल संग्रहण हेतु ऊंचे बांधो की अपेक्षा धरती पर नदियो की तलहटी में चम्मच की तरह के जल संग्रहण का सुझाव दिया है, जिसे व्यापक सराहना मिली, किन्तु मैदानी स्तर पर कोई अमल परिलक्षित नही हुआ है. आम नागरिक  सुझाव ही तो दे सकते हैं, परिपालन सरकार के हाथ में है, अतः सरकार पर इन सुझावो के क्रियांवयन का दबाव बनाने के लिये समाज में जल चेतना का वातावरण बनाना आवश्यक है. भारत में जल की समस्या एवं समाधान जैसी किताबें और रमेश चंद्र तिवारी जैसे एक्टिविस्ट इस दिसा में महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं जिनकी सराहना जरूरी है. प्रस्तुत किताब में जल का महत्व, जल की उपलब्धता, वर्तमान जल समस्या, प्राचीन भारत की जल आपूर्ति व्यवस्थायें, तो वर्णित हैं ही, न्यायालय के आदेश के परिपालन में जल समस्या समाधान के उपाय व कार्यविधि, राष्ट्रीय जल नीति, तथा जल की उपलब्धता व आर्थिक विकास को जोरते आंकड़े भी प्रस्तु किये गये हैं, जिसके लिये सेंटर फार साइंस एण्ड इंवार्नमेंट की पुस्तक बूंदो की संस्कृति से सहयोग लिया गया है. श्री रमेश चंद्र तिवारी ने इस न्यायालयीन प्रकरण तथा फिर इस किताब के रूप में एक पर्यावरण प्रहरी की अपने हिस्से की सजग नागरिक की जबाबदारी निभाई है, जो सराहनीय है, पर देखना है कि  जमीनी स्तर पर वास्तविलक बदलाव लाने में इस तरह के प्रयासो को कब सफलता मिलती है, जो ऐसे एक्टिविस्ट का वास्तविक उद्देश्य है.

 

टिप्पणीकार .. श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव  “विनम्र”

ए-1, एमपीईबी कालोनी, शिलाकुंज, रामपुर, जबलपुर, मो ७०००३७५७९८

 

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हिन्दी साहित्य- कथा-कहानी – लघुकथा – ☆ वृद्धाश्रम ☆ – सुश्री ऋतु गुप्ता

सुश्री ऋतु गुप्ता

☆ वृद्धाश्रम ☆

(प्रस्तुत है सुश्री ऋतु गुप्ता जी की जीवन में मानवीय अपेक्षाओं और बच्चों के प्रति कर्तव्य तथा बच्चों से अपेक्षाओं के मध्य हमारी के कटु सत्य पर आधारित एक विचारणीय लघुकथा।)

मुझे गठिया की दिक्कत हो गई। मैं अपने घर से 10-12 किलोमीटर की दूरी पर एक केरल की आयुर्वेदिक दवाओं के लिए प्रसिद्ध आयुर्वेदिक अस्पताल से इलाज कराने लगी। सर्दियों का वक्त था। मैं वहाँ जब भी जाती, देखती कि बुजुर्गों की एक टोली अस्पताल के प्रांगण में धूप सेंकती मिलती। सब एक-दूसरे के साथ परिवार के लोगों की तरह घुल मिल कर बातें करते दिखते। शुरुआत में लगता की इनका भी इलाज चल रहा होगा। पर जब देखती की वो लोग सामने बने कमरों से निकल कर आ रहे हैं। उनके वहाँ बैठने पर एक-दो अटेंडेंट साथ रहते हैं। फिर वहाँ धार्मिक संगीत चला दिया जाता। मुझे ऑब्जर्वर के बाद मामला कुछ अलग लगा। मुझ से रहा न गया मैनें अस्पताल के एक कर्मचारी से पूछ ही लिया कि यह लोग कौन हैं? उसने जो बताया उसके बाद मेरी वहाँ जाने की हिम्मत जवाब देने लगी।

उसने बताया “मैम, अस्पताल के उस सामने वाले हिस्से में डॉक्टर साहब के भाई ने वृद्धाश्रम खोला हुआ है। वे लोग जो आप देख रही हैं न बेहद पैसे वाले घरों से हैं । इनके बच्चे इनको यहाँ रखने की मोटी रकम देकर जाते हैं । पैसा तो जरूर है पर दिल नहीं है कैसे अपने बड़ों को यहाँ पटक गये । आजकल बुजुर्गों से भीड़ हो जाती है घर में न ही उनके पास इन लोगों के लिए वक्त।” वह तो अपनी बात कह गया घृणा उसके चेहरे पर भी साफ झलक रही थी पर दर्द की मानो आदत हो गई थी। मेरी आँखें डबडबा आई सोचने पर विवश हो गई कि क्या माँ-बाप इसी दिन के लिए बच्चों को बड़ा करते हैं? क्या वे कभी वृद्ध नहीं होगें? जिन बच्चों को उंगली पकड़ कर चलना सिखाते हैं,तब थोड़ा सा हड़बड़ाते ही घबरा जाते हैं। अपनी सारी जमा पूंजी अपने लिए कंजूसी कर-कर बच्चों का भविष्य सुरक्षित करने के लिए खर्च कर देते हैं वे ही बच्चे वक्त पड़ने पर उनकी सेवा की जगह उनको वृद्धाश्रम पहुंचा आते हैं । बच्चों की तरह मासूमियत लिए उन बुजुर्गों की इस दयनीय दशा को देखना मेरे वश में न था। मेरा वहाँ और खड़ा होना मुश्किल हो गया । मैं भारी कदमों से गाड़ी में जा बैठी।

© ऋतु गुप्ता

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हिन्दी साहित्य – कविता – ☆ खारा प्रश्न ☆ – श्रीमति सुजाता काले

श्रीमति सुजाता काले

☆ खारा प्रश्न ☆
(प्रस्तुत है श्रीमति सुजाता काले जी  की एक भावप्रवण कविता । यह सच है कि सिर्फ समुद्र का पानी ही खारा नहीं होता। आँखों का पानी भी खारा होता है। हाँ, यह एक प्रश्नचिन्ह है कि स्त्री और पुरुष दोनों की आँखों का खारा पानी क्या  क्या कहता है? किन्तु, एक स्त्री की आँखों के खारे पानी  के पीछे की पीड़ा  एक स्त्री ही समझ सकती है।  इस तथ्य पर कल ई-अभिव्यक्ति संवाद में चर्चा करूंगा । ) 

 

प्रिय,
तुम्हारा मुझसे प्रश्न पूछना,
“तुम कैसी हो?”
और मेरा
आँखों का खारा पानी
छिपाकर कहना,
“मैं ठीक हूं।”

तब तुम्हारी व्यंग्य भरी
हँसी चुभ जाती थी
और गहरा छेद करती थी
हृदय में।

आज उसी प्रश्न का
उत्तर देने के लिए
आँखें डबडबा रही हैं।

प्रिय,
अब पुछो ना
तुम कैसी हो?

 

© सुजाता काले ✍

पंचगनी, महाराष्ट्र।

9975577684

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ Laughter Yoga – A Divine Life Skill ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator and Speaker.)

Laughter Yoga – A Divine Life Skill

The compliment that I cherish most came from Anurag, my 24-year old son. He loves adventure sports and takes care of fire and safety hazards at Nestle. I was visiting Gurgaon, the town where he works, and was suddenly asked to do a presentation on Laughter Yoga. When I told him about it, he remarked, “Papa, this is a unique life skill you have acquired. You can do it anytime, anywhere, for anyone. Now, you have the heavenly gift of giving joy to other beings. That is really wonderful.”

This insight coming from a youngster is amazing. I had gone to attend a workshop on leadership skills at the State Bank Academy. It was an awfully cold morning – the earlier day was the coldest in the last 46 years. There were 44 participants, all senior officials of the Bank, in the workshop. When the Principal of the Academy came to address the participants, he observed, “The energy level appears to be low. I have never witnessed something like this at the beginning of any programme. What’s the reason?”

One of us responded,” It is terribly cold and foggy, sir. We are not used to such a climate. Our flights landed very late in the night. It was chilling cold and windy. We have not had enough sleep. Moreover, we carry a lot of stress in our roles as such.”

As the class didn’t appear to take-off convincingly, I requested for a 5-minute slot and assured that the class would cheer up in a while. The Principal was magnanimous enough. I asked everyone to clap and chant ‘hoho-hahaha’ and ‘very good very good yay’ and followed it up with a few laughter exercises. The atmosphere brightened instantly and there was warmth all around.

Thereafter, we did some laughter exercises every morning before the start of sessions and everyone relished it. I also did a presentation on Laughter Yoga in the auditorium where several officers of the Bank, senior and junior, from all over India were present. The presentation was well received. After a few months, I went there again with my wife, Radhika, to give one more presentation before a much bigger audience.

We have done sessions for school children, housewives and elders. Everyone loves it. We are regularly invited to a reputed yoga and naturopathy centre in our town for laughter therapy. The feedback from patients is very positive.

One of the members of our laughter club told us that her parents stayed at a remote place far away and felt lonely. She learned the steps of laughter yoga from us and jotted down some exercises which would be more suitable for them. Now, she has gone to them and would be spreading some good cheer in the neighbourhood.

Laughter Yoga can be done for those in the orphanages, hospitals and prisons. The educational institutions are very conducive to Laughter Yoga. It takes stress out of workplaces and makes life vibrant for those who feel lonely.

We were curiously watching sunrise with many tourists in a hill station recently. As the sun came up, everyone was thrilled and clicked their cameras vigorously. Then, after introducing ourselves as Laughter Yoga trainers to the crowd, we requested them to join us for a brief session of laughter exercises before moving back. All agreed readily. A short but sweet session followed and the joy of watching the sun rise was enhanced manifold.

Laughter Yoga is truly an invaluable life skill which we can use to bring joy to all around us anytime, anywhere. It is Divine!

Jagat Singh Bisht

Founder: LifeSkills

Seminars, Workshops & Retreats on Happiness, Laughter Yoga & Positive Psychology.
Speak to us on +91 73899 38255
[email protected]

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