हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 279 – साक्षर ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है। साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆  संजय उवाच # 279 ☆ साक्षर… ?

बालकनी से देख रहा हूँ कि सड़क पार खड़े,  हरी पत्तियों से लकदक  पेड़ पर कुछ पीली पत्तियाँ भी हैं। इस पीलेपन से हरे की आभा में उठाव आ गया है,  पेड़ की छवि में समग्रता का भाव आ गया है।

रंगसिद्धांत के अनुसार नीला और पीला मिलकर बनता है हरा..। वनस्पतिशास्त्र बताता है कि हरा रंग अमूनन युवा और युवतर पत्तियों का होता है। पकी हुई पत्तियों का रंग सामान्यत: पीला होता है। नवजात पत्तियों के हरेपन में पीले की मात्रा अधिक होती है।  

पीले और हरे से बना दृश्य मोहक है। परिवार में युवा और बुजुर्ग की रंगछटा भी इसी भूमिका की वाहक होती है। एक के बिना दूसरे की आभा फीकी पड़ने लगती है। अतीत के बिना वर्तमान शोभता नहीं और भविष्य तो होता ही नहीं। नवजात हरे में अधिक पीलापन बचपन और बुढ़ापा के बीच अनन्य सूत्र दर्शाता है। इस सूत्र पर अपनी कविता स्मरण हो आती है-

पुराने पत्तों पर नयी ओस उतरती है,

अतीत का चक्र वर्तमान में ढलता है,

सृष्टि यौवन का स्वागत करती है,

अनुभव की लाठी लिए बुढ़ापा साथ चलता है।

प्रकृति पग-पग पर जीवन के सूत्र पढ़ाती है। हम  देखते तो हैं पर बाँचते नहीं। जो प्रकृति के सूत्र  बाँच सका, विश्वास करना वही अपने समय का सबसे बड़ा साक्षर और साधक भी हुआ।

© संजय भारद्वाज 

अपराह्न 3:26 बजे, 12.9.2020

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️💥 बुधवार 26 फरवरी को श्री शिव महापुराण का पारायण कल सम्पन्न हुआ। अगले कुछ समय पटल पर छुट्टी रहेगी। जिन साधकों का पारायण पूरा नहीं हो सका है, उन्हें छुट्टी की अवधि में इसे पूरा करने का प्रयास करना चाहिए। 💥 🕉️ 

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 616 ⇒ गीतकार इन्दीवर ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “पंचवटी।)

?अभी अभी # 616 ⇒  गीतकार इन्दीवर ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

एक संस्कारी बहू की तरह, मैंने जीवन में कभी आम आदमी की दहलीज लांघने की कोशिश ही नहीं की। बड़ी बड़ी उपलब्धियों की जगह, छोटे छोटे सुखों को ही तरजीह दी। कुछ बनना चाहा होता, तो शायद बन भी गया होता, लेकिन बस, कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे

गीतकार इन्दीवर से भी मुंबई में अचानक ही एक सौजन्य भेंट हो गई, वह भी तब, जब उनके गीत लोगों की जुबान पर चढ़ चुके थे। मैं तब भी वही था, जो आज हूं। यानी परिचय के नाम पर आज भी, मेरे नाम के आगे, फुल स्टॉप के अलावा कुछ नहीं है। कभी कैमरे को हाथ लगाया नहीं, जिस भी आम और खास व्यक्ति से मिले, उसके कभी डायरी नोट्स बनाए नहीं। यानी जीवन में ना तो कभी झोला छाप पत्रकार ही बन पाया और न ही कोई कवि अथवा साहित्यकार।।

सन् 1975 में एक मित्र के साथ मुंबई जाने का अवसर मिला। उसकी एक परिचित बंगाली मित्र मुंबई की कुछ फिल्मी हस्तियों को जानती थी।

तब कहां सबके पास मोबाइल अथवा कैमरे होते थे। ऋषिकेश मुखर्जी से फोन पर संपर्क नहीं हो पाया, तो इन्दीवर जी से बांद्रा में संपर्क साधा गया। वे उपलब्ध थे। तुरंत टैक्सी कर बॉम्बे सेंट्रल से हम बांद्रा, उनके निवास पर पहुंच गए।

वे एक उस्ताद जी और महिला मित्र के साथ बैठे हुए थे, हमें देखते ही, उस्ताद जी और महिला उठकर अंदर चले गए। मियां की तोड़ी चल रही थी, इन्दीवर जी ने स्पष्ट किया। बड़ी आत्मीयता और सहजता से बातों का सिलसिला शुरू हुआ। कविता अथवा शायरी में शुरू से ही हमारा हाथ तंग है। उनके कुछ फिल्मी गीतों के जिक्र के बाद जब हमारी बारी आई तो हमने अंग्रेजी कविता का राग अलाप दिया। लेकिन इन्दीवर जी ने स्पष्ट रूप से स्वीकार किया कि उन्हें अंग्रेजी साहित्य का इतना इल्म नहीं है। हमने उन्हें प्रभावित करने के लिए मोहन राकेश जैसे लेखकों के नाम गिनाना शुरू कर दिए, लेकिन वहां भी हमारी दाल नहीं गली।।

थक हारकर हमने उन्हें Ben Jonson की एक चार पंक्तियों की कविता ही सुना दी। कविता कुछ ऐसी थी ;

Drink to me with thine eyes;

And I will pledge with mine.

Or leave a kiss but in the cup

And I will not look for wine…

इन्दीवर जी ने ध्यान से कविता सुनी। कविता उन्हें बहुत पसंद आई। वे बोले, एक मिनिट रुकिए। वे उठे और अपनी डायरी और पेन लेकर आए और पूरी कविता उन्होंने डायरी में उतार ली।

इतने में एक व्यक्ति ने आकर उनके कान में कुछ कहा। हम समझ गए, हमारा समय अब समाप्त होता है। चाय नाश्ते का दौर भी समाप्ति पर ही था। हमने इजाजत चाही लेकिन उन्होंने इजाजत देने में कोई जल्दबाजी नहीं दिखाई और बड़ी गर्मजोशी से हमें विदा किया।।

इसे संयोग ही कहेंगे कि उस वक्त उनकी एक फिल्म पारस का एक गीत बहुत लोकप्रिय हुआ था। मुकेश और लता के इस गीत के बोल कुछ इस प्रकार थे ;

तेरे होठों के दो फूल प्यारे प्यारे

मेरी प्यार के बहारों के नजारे

अब मुझे चमन से क्या लेना, क्या लेना।।

एक कवि हृदय ही शब्दों और भावों की सुंदरता को इस तरह प्रकट कर सकता है। ये कवि इन्दीवर ही तो थे, जिनके गीतों को जगजीत सिंह ने होठों से छुआ था, और अमर कर दिया था।

सदाबहार लोकप्रिय कवि इन्दीवर जी और जगजीत सिंह दोनों ही आज हमारे बीच नहीं हैं। हाल ही में पंकज उधास का इस तरह जाना भी मन को उदास और दुखी कर गया है ;

जाने कहां चले जाते हैं

दुनिया से जाने वाले।

कैसे ढूंढे कोई उनको

नहीं कदमों के निशां

दुनिया से जाने वाले …

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 225 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

 

? Anonymous Litterateur of social media # 225 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 225) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 225 ?

☆☆☆☆☆

लब तो खामोश रहेंगे…

ये वादा है मेरा  तुमसे…

अगर कह बैठी कुछ निगाहें…

तो  बस खफा मत होना…

☆☆

Lips shall always remain silent…

This is my promise to you …

Please don’t  get upset

If eyes just utter something…

☆☆☆☆☆

माना कि इश्क़

ज़बरदस्ती नहीं होता

मगर कमबख़्त

होता जबरदस्त है…

☆☆

Agreed  that  the  love

Never happens  by coercing

But then, this wretched thing

Happens to be awesome…

☆☆☆☆☆

जो ज़ाहिर हो जाए,

वो दर्द कैसा, और…

जो ख़ामोशी ना पढ़ पाए,

वो हमदर्द ही कैसा….

☆☆

What  kind of  pain is that,

That  gets  expressed, and

What kind of soul mate is that

Who cannot read the silence…

☆☆☆☆☆

और कोई नहीं है जो

मुझको तसल्ली देता हो,

बस तेरी यादें  ही हैं जो

दिल पर हाथ रख देती है…

☆☆

There is no one else who can 

Give me comforting solace,

It is just your memories that 

give consolation to the heart…

☆☆☆☆☆

~ Pravin Raghuvanshi

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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English Literature – Articles ☆ Positive Education # 02:  The Science of happiness and well-being ☆ Shri Jagat Singh Bisht ☆

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

Authored six books on happiness: Cultivating Happiness, Nirvana – The Highest Happiness, Meditate Like the Buddha, Mission Happiness, A Flourishing Life, and The Little Book of HappinessHe served in a bank for thirty-five years and has been propagating happiness and well-being among people for the past twenty years. He is on a mission – Mission Happiness!

Positive Education # 02: The Science of happiness and well-being ☆

Positive Psychology and Positive Education

The Science of happiness and well-being

“Psychological wealth includes life satisfaction, the feeling that life is full of meaning, a sense of engagement in interesting activities, the pursuit of important goals, the experience of positive emotional feelings, and a sense of spirituality that connects people to things larger than themselves.”

Edward Deiner

Schools teach history, geography, science, maths, and grammar. Parents desire their children to do well in life and flourish. Children want to play freely and explore their dreams. Where do all these lines meet?

Positive Psychology, the science of happiness, and Positive Education, the combination of traditional education with the study of well-being, provide us an answer to this question.

Positive Psychology is the modern science of happiness and well-being. It provides a new understanding of happiness and well-being and how to achieve them.

It dispels myths and wrong notions about happiness and suggests evidence-based happiness-enhancing strategies from which one may choose activities suitable for oneself.

The science of positive psychology seeks to understand positive emotion, build strength and virtue, and provide guideposts for finding what Aristotle called the “good life.”

Positive psychology has three pillars:

  • First is the study of positive emotions like gratitude, joy, and hope. 
  • Second is the study of the positive traits, foremost among them the strengths and virtues, but also the ‘abilities’ such as intelligence and athleticism.
  • Third is the study of positive institutions, such as democracy, strong families, and free enquiry, that support the virtues, which in turn support the positive emotions.

Positive Education

“All young people need to learn workplace skills, which has been the subject matter of the education system in place for two hundred years. In addition, we can now teach the skills of well-being – of how to have more positive emotion, more meaning, better relationships, and more positive accomplishment.”

Martin Seligman

Positive Education is the combination of traditional education with the study of happiness and well-being.

It is an approach to education that blends academic learning with character and well-being.

It is preparing students with life skills, such as, grit, optimism, resilience, growth mindset, engagement, and mindfulness, amongst others.

Positive education pairs traditional schooling with positive psychology interventions to improve well-being.

Positive Education focuses on specific skills that assist students to strengthen their relationships, build positive emotions, enhance personal resilience, promote mindfulness and encourage a healthy lifestyle.

It brings together the science of Positive Psychology with best practice teaching to encourage and support individuals, schools and communities to flourish.

We refer to flourishing as a combination of ‘feeling good and doing good’.

Institute of Positive Education

According to Anthony Seldon, “Positive Education is preparing students for the tests of life, not just a life of tests. Well-being should be at the heart of education – not the periphery.”

The concept has support from a range of prominent psychologists and practising teachers. The idea is the wellbeing of students enhances learning and develops them as good citizens.

Intelligence and Character

  • Angela Duckworth says, “Intelligence plus character – that is the goal of true education. Character education is made up of three things:
  • strengths of heart (give to, and receive, from others),
  • strengths of mind (think, imagine, create),
  • and strengths of will (self-control, choice, grit).”

“Successful painters, dancers, poets, novelists, physicists, biologists, and psychologists seem to have crafted lives for themselves around a consuming passion. These are admirable lives, desirable lives, the sort that many young people dream of having when they look to these people as role models.”

Jonathan Haidt

♥ ♥ ♥ ♥

Please click on the following links to read previously published posts “Positive Education” 👉

English Literature – Articles ☆ Positive Education # 01: Fundamentals of happiness and well-being for children and their parents ☆ Shri Jagat Singh Bisht ☆

© Jagat Singh Bisht

Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker

FounderLifeSkills

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga. We conduct talks, seminars, workshops, retreats and training.

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 224 – गीत – यार शिरीष! ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक कविता – हे नारी!)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 224 ☆

☆ गीत – यार शिरीष! ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

यार शिरीष!

तुम नहीं सुधरे

*

अब भी खड़े हुए एकाकी

रहे सोच क्यों साथ न बाकी?

तुमको भाते घर, माँ, बहिनें

हम चाहें मधुशाला-साकी।

तुम तुलसी को पूज रहे हो

सदा सुहागन निष्ठा पाले।

हम महुआ की मादकता के

हुए दीवाने ठर्रा ढाले।

चढ़े गिरीश

पर नहीं बिगड़े

यार शिरीष!

तुम नहीं सुधरे

*

राजनीति तुमको बेगानी

लोकनीति ही लगी सयानी।

देश हितों के तुम रखवाले

दुश्मन पर निज भ्रकुटी तानी।  

हम अवसर को नहीं चूकते 

लोभ नीति के हम हैं गाहक।

चाट सकें इसलिए थूकते 

भोग नीति के चाहक-पालक।

जोड़ रहे

जो सपने बिछुड़े

यार शिरीष!

तुम नहीं सुधरे

*

तुम जंगल में धूनि रमाते

हम नगरों में मौज मनाते।

तुम खेतों में मेहनत करते 

हम रिश्वत परदेश-छिपाते।

ताप-शीत-बारिश हँस झेली

जड़-जमीन तुम नहीं छोड़ते।

निज हित खातिर झोपड़ तो क्या

हम मन-मंदिर बेच-तोड़ते।

स्वार्थ पखेरू के

पर कतरे।

यार शिरीष!

तुम नहीं सुधरे

*

तुम धनिया-गोबर के संगी

रीति-नीति हम हैं दोरंगी।

तुम मँहगाई से पीड़ित हो

हमें न प्याज-दाल की तंगी।  

अंकुर पल्लव पात फूल फल

औरों पर निर्मूल्य लुटाते।

काट रहे जो उठा कुल्हाड़ी

हाय! तरस उन पर तुम खाते। 

तुम सिकुड़े

हम फैले-पसरे।

यार शिरीष!

तुम नहीं सुधरे

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (3 मार्च से 9 मार्च 2025) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (3 मार्च से 9 मार्च 2025) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

 साप्ताहिक राशिफल आपको एक सप्ताह में बरतने योग्य सावधानियों एवं लाभ के बारे में बताता है। जिससे आप सप्ताह को लाभदायक ढंग से व्यतीत कर सकें। इसी श्रृंखला में आज मैं पंडित अनिल पाण्डेय आपको 3 मार्च से 9 मार्च 2025 तक के सप्ताह के साप्ताहिक राशिफल के बारे में बताऊंगा।

इस सप्ताह सूर्य और शनि कुंभ राशि में, मंगल मिथुन राशि में, बुध, वक्री शुक्र और बक्री राहु मीन राशि में और गुरु वृष राशि में गोचर करेंगे।

आइये अब हम राशिवार राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

इस सप्ताह आपका आपके जीवनसाथी का माता-पिता का और बच्चों का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। 11 में भाव में बैठे सूर्य के कारण थोड़ा बहुत धन आने की उम्मीद है। 11 में भाव का सूर्य और तीसरे भाव का मंगल आपके भाई बहनों के बीच में तनाव पैदा कर सकता है। आपको अपनी संतान का सहयोग प्राप्त हो सकता है कचहरी के कार्यों में बिल्कुल रिस्क ना लें। इस सप्ताह आपके लिए तीन चार और पांच की दोपहर तक का समय कार्यों को करने के लिए अनुकूल है। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

वृष राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। वक्री शुक्र तथा वक्री राहु के कारण गलत रास्ते से धन आने का योग है। नीच भंग राजयोग बना रहा बुध आपके आपके व्यापार में लाभ दिलाएगा। कार्यालय में आपको थोड़ी बहुत परेशानी हो सकती है। आपको भी संतान से सहयोग प्राप्त होगा। माता जी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा परंतु उनके गर्दन और कमर में दर्द हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 5 तारीख के दोपहर के बाद से 6 और 7 के दोपहर तक का समय विभिन्न कार्यों को करने के लिए उचित है। तीन, चार और पांच के दोपहर तक आपको सतर्क होकर के कार्यों को करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन मंदिर पर जाकर बाहर बैठे हुए भिखारियों के बीच में चावल का दान करें और शुक्रवार को सफेद वस्त्र का दान करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मिथुन राशि

इस सप्ताह आपके माता जी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। भाग्य से आपको थोड़ी बहुत मदद मिल सकती है। वक्री शुक्र और नीच के बुध के कारण कार्यालय के कार्यों में आपको थोड़ी परेशानी आ सकती है। आपको अपने कार्यालय में सतर्क होकर कार्य करना चाहिए। आपका स्वास्थ्य भी थोड़ा खराब हो सकता है। कृपया उसका ध्यान रखें। जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। इस सप्ताह आपके लिए 8 और 9 मार्च किसी भी कार्य को करने के लिए लाभदायक हैं। 5, 6 और 7 मार्च को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप भगवान शिव का दूध और जल से प्रतिदिन अभिषेक करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कर्क राशि

इस सप्ताह आपका आपके जीवनसाथी का माता जी और पिताजी का तथा आपके सन्तान का सभी का स्वास्थ्य ठीक रहने की उम्मीद है। इस सप्ताह आपके पास अल्प मात्रा में धन आएगा। कचहरी के कार्यों में सावधान रहें अन्यथा आपको नुकसान हो सकता है। अगर आप प्रयास करेंगे तो आप अपने शत्रु को पराजित कर सकते हैं। इस सप्ताह आपके लिए तीन-चार और 5 तारीख के दोपहर तक का समय किसी भी कार्य को करने के लिए फल दायक है। 7 मार्च को दोपहर के बाद से तथा 8 और 9 तारीख को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन स्नान करने के उपरांत तांबे के पत्र में जल अक्षत और लाल पुष्प लेकर भगवान सूर्य को जल अर्पण करें। सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

सिंह राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। गरदन या कमर में दर्द हो सकता है। अगर आप प्रयास करेंगे तो इस सप्ताह आप अपने शत्रुओं को पराजित कर सकते हैं। इस सप्ताह आपको दुर्घटनाओं से बचने का प्रयास करना चाहिए। इस सप्ताह आपके लिए 5 तारीख के दोपहर के बाद से लेकर 6 और 7 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए परिणाम दायक है। आपको चाहिए कि आप अपने सभी पेंडिंग कार्यों को इस अवधि में करने का प्रयास करें। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन रुद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

कन्या राशि

इस सप्ताह आपको अपने भाग्य से मदद प्राप्त हो सकता है। अविवाहित जातकों के लिए विवाह के उत्तम प्रस्ताव आ सकते हैं। इस सप्ताह आपको अपने शत्रुओं से सावधान रहना चाहिए। कार्यालय में भी आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपके लिए 7 मार्च के दोपहर के बाद से लेकर 8 और 9 मार्च कार्यों को करने के लिए उचित है। तीन, चार और पांच मार्च को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गणेश अथर्व शीर्ष का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

तुला राशि

इस सप्ताह आपके पूरे परिवार का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। परंतु आपकी संतान को थोड़ा कष्ट हो सकता है। भाग्य से इस सप्ताह आपको मदद नहीं मिलेगी। इस सप्ताह आपको अपने शत्रुओं से सावधान रहना चाहिए। व्यापारिक कार्यों में आपको सावधानी से कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपके लिए तीन चार और पांच मार्च के दोपहर तक का समय लाभदायक है। 5 के दोपहर के बाद से लेकर 6 और 7 तारीख को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गायत्री मंत्र की तीन माला का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपका और आपके पिताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपके जीवन साथी और माता जी के स्वास्थ्य में कुछ समस्या आ सकती है। इस सप्ताह आपको दुर्घटनाओं से बचने का प्रयास करना चाहिए। संतान के सहयोग में कमी आएगी। बुध द्वारा बनाए जा रहे नीच भंग राजयोग के कारण संतान के व्यवसाय के उन्नति की संभावना है। इस सप्ताह आपके लिए 5 तारीख के दोपहर के बाद से लेकर 6 और 7 तारीख के दोपहर तक का समय कार्यों को करने के लिए अनुकूल है। बाकी समय आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन शिव पंचाक्षरी मंत्र का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। माता जी और जीवनसाथी के स्वास्थ्य में थोड़ी परेशानी आ सकती है। भाई बहनों के साथ संबंध तनावपूर्ण हो सकते हैं। कार्यालय में आपकी स्थिति सामान्य से अच्छी रहेगी। भाग्य आपका साथ देगा। इस सप्ताह आपके लिए 8 और 9 मार्च कार्यों को करने के लिए उचित है। पांच के दोपहर के बाद से लेकर 6 और 7 मार्च को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गाय को हरा चारा खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

मकर राशि

इस सप्ताह आपका, आपके जीवनसाथी का, आपके माता-पिता जी का तथा संतान का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। अल्प मात्रा में धन आने का योग है। लंबी यात्रा का योग भी बन सकता है। आपका अपने भाई बहनों के साथ तनाव संभव है। छात्रों की पढ़ाई ठीक चलेगी। इस सप्ताह आपके लिए तीन, चार और 5 मार्च के दोपहर तक का समय कार्यों को करने के लिए शुभ है। 7 तारीख के दोपहर के बाद से लेकर 8 और 9 तारीख को आपको सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कुंभ राशि

इस सप्ताह आपके चतुर्थ भाव में गजकेसरी योग बन रहा है। यह अत्यंत शुभ योग होता है। इसके कारण आपको प्रतिष्ठा आदि प्राप्त हो सकती है। आपको इस सप्ताह मानसिक कष्ट संभव है। व्यापार में थोड़ी परेशानी हो सकती है। इस सप्ताह आपको अपने संतान से सहयोग नहीं मिल पाएगा। इस सप्ताह आपके लिए 5 मार्च के दोपहर के बाद से लेकर 6 और 7 मार्च कार्यों को करने के लिए फलदायक हैं। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मीन राशि

यह सप्ताह अविवाहित जातकों के लिए ठीक-ठाक है। उनके विवाह के प्रस्ताव आ सकते हैं। व्यापार ठीक चलेगा। कचहरी के कार्यों में सतर्क रहें। कर्ज लेने से बचें। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक-ठाक रहेंगे। माता जी का स्वास्थ्य थोड़ा खराब हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 7 , 8 और 9 मार्च शुभ फलदायक है। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

ध्यान दें कि यह सामान्य भविष्यवाणी है। अगर आप व्यक्तिगत और सटीक भविष्वाणी जानना चाहते हैं तो आपको मुझसे दूरभाष पर या व्यक्तिगत रूप से संपर्क कर अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाना चाहिए। मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ 💃 ती, ती, ती, आणि ती सुद्धा ! 💃 ☆ श्री प्रमोद वामन वर्तक ☆

श्री प्रमोद वामन वर्तक

? कवितेचा उत्सव ? 

💃 ती, ती, ती, आणि ती सुद्धा ! 💃 श्री प्रमो वामन वर्तक ⭐ 

 शब्दांच्या झुल्यावर

झुलते ती कविता

वृत्तांच्या तालावर

नाचते ती कविता

*

 भाव मनातले

 जाणते ती कविता

 जखम हृदयात

 करते ती कविता

*

शब्दांशी खेळत

हसवते ती कविता

घायाळ शब्दांनी

रडवते ती कविता

*

 साध्या शब्दांनी

 सजते ती कविता

 वेळी अवेळी

 आठवते ती कविता

*

मनाचा गाभारा

उजळवते ती कविता

जखम बरी करून

व्रण ठेवते ती कविता

व्रण ठेवते ती कविता

© श्री प्रमोद वामन वर्तक

संपर्क – दोस्ती इम्पिरिया, ग्रेशिया A 702, मानपाडा, ठाणे (प.) – 400610 

मो – 9892561086 ई-मेल – [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ ।। साधूया संवाद ।। ☆ म. ना. दे. (श्री मयुरेश देशपांडे) ☆

म. ना. दे. (श्री मयुरेश देशपांडे)

? कवितेचा उत्सव ?

।। साधूया संवाद ।। ☆ म. ना. दे. (श्री मयुरेश देशपांडे) ☆

काहीच संवाद। त्यात विसंवाद।

म्हणूनी विवाद। नेहमीची।।

 *

नेहमीची चाले। तक्रारे निवाले।

अहंती हवाले। स्वतःच्याच।।

 *

स्वतःच्याच मापे। इतरांसी नापे।

म्हणे महापापे। हरिकृत्ये।।

 *

हरिकृत्ये बाणू। उभय सुकाणू।

मीपणा विषाणू। विग्रहाने।।

 *

विग्रहाने वाद। त्यात सुसंवाद।

साधुया संवाद। नेहमीची।।

कवी : म. ना. देशपांडे

(होरापंडीत मयुरेश देशपांडे)

+९१ ८९७५३ १२०५९ 

https://www.facebook.com/majhyaoli/ 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ “ह्याचा इन्श्युरन्स निघत नाही” ☆ श्री मयुरेश उमाकांत डंके ☆

श्री मयुरेश उमाकांत डंके

? विविधा  ?

☆ “ह्याचा इन्श्युरन्स निघत नाही” ☆ श्री मयुरेश उमाकांत डंके ☆

माझा एक दुकानदार मित्र आहे. वडिलोपार्जित व्यवसायात आहे. कधीही येता जाता त्याच्या दुकानापाशी हात करताना मला दुकानाबाहेर ठेवलेले उंदरांचे दोन पिंजरे दिसतात. पण त्यात पकडले गेलेले उंदीर मात्र कधी दिसले नाहीत. मी त्याला एकदा सहज विचारलं, “बाबा रे, आजतागायत एकदा तरी उंदीर सापडला का पिंजऱ्यात?” तो हसून म्हणाला,” दुकान सुरुवातीला नवं होतं,तेव्हां सहा महिने उंदीर सापडायचे. नंतर पुन्हा कधी सापडले नाहीत. सगळे उद्योग करुन झाले. भजी ठेवली,कॅडबरी ठेवली,चीज क्यूब्ज ठेवून पाहिले,नॉनव्हेजचे तुकडे ठेवून बघितले. पण हे उंदीर अफाट हुशार झालेत. त्यांच्या आवडीची कुठलीही गोष्ट त्यात ठेवा,तो सापळा आहे,हे त्यांना अगदी बरोबर समजतं. ते सगळ्या दुकानात धुडगूस घालतात, पण सापळ्याकडे फिरकतच नाहीत. मी आपला रित म्हणून रोज मोठ्या आशेनं पिंजरा लावूनच दुकान वाढवतो.” मीही हसण्याचा आनंद घेऊन त्याचा निरोप घेतला. पण त्याचं वाक्य मात्र डोक्यात घुमत राहिलं – आजकालचे उंदीरसुद्धा हुशार झालेत…!

असाच एक दुसरा प्रसंग माझ्या अगदी चांगला लक्षात राहिला आहे. आमच्या दारी गायींसाठी एका मोठ्या सिमेंटच्या पात्रात पाणी ठेवलेलं असतं. उन्हाळ्यात अनेकदा गायी फार लांबून लांबून पाण्यासाठी येतात. त्या कुणालाही कसलाही त्रास देत नाहीत. त्या येतात आणि पाणी पिऊन शांतपणे निघून जातात. पण एकानं त्या गायींना हुसकून लावण्याचा उद्योग सुरु केला. दगड मारणे, काठीने मारणे असे प्रकार सुरु केले. गायींचं त्यांच्या दारात थांबणं बंद झालं. आमच्याकडे येऊन पाणी पिऊन जायच्या. पुढं एका दिवाळीत वसुबारसेच्या दिवशी मी गायींना खाऊ घालत होतो, तेव्हां तेच गृहस्थ पुरणाची पोळी घेऊन आले आणि गायीला खाऊ घालण्याचा प्रयत्न करु लागले. त्या गायीनं बाकी सगळ्यांचे गोग्रास घेतले, पण ह्यांच्याकडे ढुंकूनही न पाहता शांतपणे निघून गेली. गायीसुद्धा हुशार झाल्यात..!

हीच गोष्ट मधमाशांची आणि मुंग्यांची. एखाद्या ठिकाणी त्यांच्या जिवाला धोका असेल तर त्या ठिकाणी त्या वसत नाहीत. उलट त्या त्यांची अधिकाधिक सुरक्षितता शोधतात. माणसांचा उपद्रव होणार नाही, याची पूर्ण दक्षता घेतात. ‘लक्ष्मणरेषा’ नावाचा मुंग्यांचा उपद्रव टाळण्यासाठी उपयुक्त असा खडू मिळतो. त्याच्या रेषा धान्याच्या पोत्याभोवती मारल्या तर मुंग्या त्या बाजूनं फिरकत नाहीत. पण त्यावरचा मार्ग बरोब्बर शोधून काढतात. एकदा उन्हात आईनं वाळवणं घातली होती आणि बाजूनं लक्ष्मणरेषा मारल्या होत्या. पण मुंग्या असल्या बिलंदर की, त्यांनी गच्चीत पडलेलं एक छोटंसं वाळकं भुईमुगाच्या शेंगेचं टरफल ढकलत आणलं आणि त्या रेषेवर ठेवून वेढा फोडला. संध्याकाळी उन्हं कलल्यावर गोळा करायला गेलो तर सगळा प्रताप लक्षात आला. पण तोवर मुंग्यांचा डाव बऱ्यापैकी यशस्वी झाला होता. म्हणजे, मुंग्यासुद्धा शहाण्या झाल्यात..!

प्रश्न आहे तो आपण माणसांचाच..! पर्यावरणातला सर्वात बुद्धिमान प्राणी असूनसुद्धा जगण्यासाठी आणि सुरक्षिततेसाठी आवश्यक असणारं शहाणपण माणसाला का मिळवता येत नाही? स्वतःच्या बुद्धीचा वापर करुन मार्ग काढता येत नसेल तर किमान इतरांच्या अनुभवातून तरी योग्य तो बोध मनुष्यप्राणी का घेत नाही? ‘जब वुई मेट’ नावाच्या हिंदी सिनेमात भर रात्री अनोळखी प्रवाशाचा शोध घेण्यासाठी रेल्वेतून उतरलेल्या करिना कपूरला वयानं तिच्याहून वडील असणारा स्टेशन मास्तर “अकेली लडकी खुली हुई तिजोरी की तरह होती है” हे सांगत असतो. पण “यह ग्यान मुफ्त का है या इसके पैसे चार्ज करते हैं? क्योंकी चिल्लर नहीं है मेरे पास” असं मोठ्या तोऱ्यात सुनावणाऱ्या त्या करिना कपूरच्या तोंडचं ते वाक्य आपल्याला विनोदी वाटतं. पण त्या स्टेशन मास्तरच्या सांगण्यातली काळजी एकालाही दिसत नाही,जाणवत नाही. हाच तर आपल्या माणसांच्या शहाणपणातला उसवलेला टाका आहे.

रात्री तीन वाजता कुणालाही न सांगता, मित्रांसोबत घराबाहेर भटकणारी तरुण मुलंमुली दिसणं पुणेकरांना नवीन नाही. पावसाळ्यात कुणालाच न सांगता, कॉलेजला दांडी मारुन, खोटं बोलून परस्पर लोणावळा, भुशी डॅम, ताम्हिणी घाट अशा ठिकाणी भटकणारी मुलंमुली खरोखरच व्यवहारज्ञानी असतात का? सेल्फी काढण्याच्या नादात कड्यावरून कोसळलेली मुलं मुली, धोकादायक धबधब्यात उतरलेली माणसं खरोखरच प्रॅक्टिकली शहाणी असतात का? हा प्रश्न माझ्यासारखाच अनेकांना पडत असेल.

“आईवडील म्हणजे आपले सर्वात मोठे शत्रू” असं वाटणाऱ्या तरुण पिढीची आपल्या समाजात मुळीच वानवा नाही. मुलांच्या आयुष्यात घडणाऱ्या कित्येक गोष्टी अनेकांना ठाऊक असतात, पण त्यांच्या पालकांनाच ठाऊक नसतात. कित्येकांच्या सोशल मीडिया अकाऊंटवर त्यांचे पालक ॲड नसतात. आपल्या मुलामुलींचं मित्र-मैत्रीण मंडळ पालकांना माहितच नसतं. आपल्या आयुष्यात काहीही घडलं तरी घरच्यांना सांगावंसं मुलांना का वाटू नये? हा खरोखरच काळजीचा मुद्दा आहे. आपल्याच परिवारातल्या माणसांपासून मुलंमुली गोष्टी लपवून का ठेवतात? अत्यंत महत्वाच्या गोष्टींबाबत सुद्धा आईवडीलांपेक्षा त्यांना मित्र अधिक जवळचे का वाटतात? आपल्या आयुष्यातली अत्यंत मोठी घटना घडल्यानंतर सुद्धा मुलंमुली पहिला फोन आपल्या पालकांना का करत नाहीत? या प्रश्नाचं उत्तर गांभीर्यानं शोधलं पाहिजे.

नागरिकशास्त्र हा विषय १०० गुणांचा केला पाहिजे,असं आता अनेकांना वाटतं. ते समाजातली एकूण परिस्थिती पाहता खरंच आहे. पण त्याहीआधी व्यवहारज्ञानाचं आणि स्वतःची सुरक्षितता जपण्याचं शिक्षण आपल्या कुटुंबातूनच मुलामुलींना मिळणं नितांत आवश्यक आहे. जगण्यातलं शहाणपण शिकण्यासाठी मुंग्या,उंदीर,गायी किंवा अन्य प्राणिमात्र कुठल्याही वेगळ्या व्यवस्थेकडे जात नाहीत. त्यांना ते शिक्षण त्यांच्या पालकांकडून मिळतं. मधमाशा सुद्धा त्यांची कुटुंब प्रमुख असलेल्या राणीमाशीचं ऐकतात. जगण्यातली शिस्त मोडत नाहीत. मन मानेल तसं वागत नाहीत किंवा वडीलधाऱ्यांचं सांगणं धुडकावून सुद्धा लावत नाहीत. त्यांच्या जगण्यातले निसर्गधर्म आणि परिवार व्यवस्था ते पूर्ण निगुतीनं आणि आदरानं जपतात, मोडीत काढत नाहीत.

आईवडील आणि कुटुंबातल्या अन्य मोठ्या माणसांच्या संपर्कात राहणं, त्यांच्याशी चांगला संवाद असणं, वागण्याबोलण्यात पारदर्शकता असणं म्हणजे बिनकोठडीचा तुरुंगवास नसतो. उलट तेच आपल्यासाठीचं अतिशय सुरक्षित आणि सहृदय वातावरण असतं, हे शहाणपण आपण माणसं कधी शिकणार? कारण, जगण्यातलं शहाणपण नसल्यापोटी जी किंमत मोजावी लागते, तिचा इन्श्युरन्स निघत नसतो..!

© श्री मयुरेश उमाकांत डंके

मानसतज्ज्ञ, संचालक-प्रमुख, आस्था काऊन्सेलिंग सेंटर, पुणे.

 8905199711, 87697 33771

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ उल्हास… ☆ श्री सुनील शिरवाडकर ☆

श्री सुनील शिरवाडकर

? जीवनरंग ❤️

☆ उल्हास… ☆ श्री सुनील शिरवाडकर

दरवर्षी उल्हास ठरवायचा.. पुढच्या वर्षी नक्की दिंडी बोलवायची.. पण मग वर्ष असंच निघून जायचं.. गावात दिंड्या यायच्या.. मुक्काम करायच्या.. एक दिवस थांबून त्र्यंबकेश्वरकडे निघून जायच्या.. उल्हासचं स्वप्न तसंच राहून जायचं.

नासिकपासून पंचवीस तीस किलोमीटर उल्हासचं गाव होतं. उल्हासला नाशिकमध्ये स्थायिक होऊनही पंचवीस वर्षे झाली होती. पण लहानपणीच्या आठवणी मनात रुतुन बसलेल्या असतातच ना!त्याचे वडील वारकरी.. घरात एकादशीचं व्रत.. एकादशीला त्यांचे बाबा पहाटे लवकर उठायचे.. दिड तास त्यांची पुजा चालायची.. त्यांच्या देवघरात एक शाळीग्राम होता.. त्यावर अभिषेक पात्रातुन संततधार चालायची.. उल्हासच्या मनावर ते दृश्य.. ती पुरुषसूक्ताची आवर्तने कायमची कोरली गेली होती.. बाबांची वद्य एकादशीची निवृत्तीनाथांची वारी कधीच चुकली नाही.. ते संस्कार मनात रुजलेले.

पौष महिन्यात त्र्यंबकेश्वरला निवृत्तीनाथांची यात्रा असते. गावागावातुन दिंड्या निघतात.. त्यांच्या गावातुनही दिंडी निघायची.. त्याचं पुढारीपण असायचं उल्हासच्या बाबांकडेच. गावातुन दिंडी निघाली की पहिला मुक्काम असायचा नाशिकमध्ये.

आता बाबा नाही.. पण दिंडी निघते.. नासिकला एक दिवस मुक्काम करते.. उल्हासला वाटायचं.. आपल्या गावची दिंडी नासिकमध्ये आली की ती एखाद्या वर्षी आपल्या सोसायटीत एक दिवस रहावी.. पण हे जमणार कसं?तशी दिंडी काही फार मोठी नसायची.. जेमतेम साठ सत्तर माणसं.. पण एवढी माणसं रहाणार कुठं.. कशी?

डिसेंबरमध्ये उल्हासने सोसायटीच्या चेअरमनशी हा विषय काढला. एक रात्र आपल्या सोसायटीत कार्यक्रम करायचा का?चेअरमनने मिटींग बोलावली.. उल्हासचं म्हणणं मांडलं.. कोणी हो म्हणाले.. कोणी विरोध दर्शवला.. पण हो.. ना करता करता ठरलं..

यावर्षी दिंडी बोलवायची.

उल्हास लगेच पुढच्या रविवारी गावी गेला. दिंडी आयोजित करणारी गावची जी मुख्य माणसं होती.. त्यांना रितसर आमंत्रण दिलं. किती माणसं असणार.. त्यात स्त्रिया किती.. पुरुष किती.. गाड्या किती असणार.. किती वाजता येणार.. परत किती वाजता निघणार.. ही सगळी माहिती जाणून घेतली.

नासिकला आल्यावर पुन्हा एकदा सोसायटीची मिटींग झाली.. कार्यक्रमाची आखणी झाली.. जबाबदार्यांचं वाटप झालं..

पण..

.. उल्हास निश्चिंत झाला नव्हता.. त्याने हा सगळा घाट घातला होता.. दिंडी पण त्याच्या गावची होती.. त्यामुळे हे सगळं व्यवस्थित पार पडेपर्यंत त्याला चैन पडणार नव्हतं.. एक प्रकारचं दडपण त्याला जाणवत होतं.

उल्हासच्या घरी हे सगळं अजिबात पसंत नव्हतं.. कुणी सांगितलेय नसते उद्योग करायला असंच सुषमा वहीनींचं म्हणणं होतं. पण आता नवर्यानी ठरवलंच आहे तर मदत करणं भाग होतं.

सोसायटीच्या आवारात मांडव घालण्यात आला.. केटररशी बोलुन झालं.. मेनू ठरवला.. आणि तो दिवस उजाडला ‌

उल्हासनं गावी फोन लावला.. दिंडी निघाली होती.. संध्याकाळी पाच पर्यंत पोहोचणार होती.. उल्हास ची धावपळ सुरू झाली.. खरंतर आठ दिवसांपासूनच ही धावपळ चालू होती.. दिंडी अजुन यायची होती.. पण तो आत्ताच थकला होता.. नाही म्हटलं तरी त्याची पन्नाशी उलटली होती.

पाच पर्यंत पोहोचणारी दिंडी प्रत्यक्षात सहा वाजता आली.

दुरुनच ज्ञानोबा तुकाराम.. ज्ञानोबा तुकाराम असा आवाज यायला सुरुवात झाली… टाळांचे आवाज कानावर पडुन लागले.. आणि मग उल्हासचा थकवा गायब झाला.

ढगळ पॅन्ट.. आणि चेक्सचा लांब बाह्यांचा शर्ट हा उल्हासचा वेष.. मुलीनं त्याला सुचवलं होतं..

“बाबा तुम्ही मस्त नाडीचं धोतर आणा.. आणि वर लांब कुर्ता.. छानसा फेटापण बांधा.. दिंडीत असतीलच कुणीतरी फेटा बांधणारे. “

पण उल्हासनं ते उडवून लावलं.. त्याला स्वतःला असला शो ऑफ अजिबात पसंत नव्हता. त्याचा आपला नेहमीचाच ड्रेस.. आणि पायात साधी चप्पल.

गेटवर दिंडीचं स्वागत झालं. सत्तर ऐंशी जण होते.. त्यात वीस पंचवीस महिला. मांडवात जाड जाजम अंथरलं होतं.. त्यावर सगळेजण विसावले. स्टीलचा धर्मास, आणि कागदी कप घेऊन चायवाला फिरु लागला.. गेटपाशी माऊलींचा मानाचा घोडा बांधला होता.. त्याच्या पुढ्यात चारा टाकला.

एका लहान ट्रॅक्टरला गाडी जोडली होती.. त्यावर भगव्या पताका फडकत होत्या. ती गाडी सोडवुन आत आणली.. त्यात पालखी होती. पालखीत चांदीच्या पादुका होत्या.. सोसायटीतील लोक जाता येता पादुकांना हात लावून नमस्कार करत होते.. डोके टेकवत होते.

चहापाणी झालं.. किर्तनाची तयारी सुरु झाली.. उल्हासचा पाय एका जागी ठैरत नव्हता.

.. उल्हासभाऊ त्या पाण्याच्या बाटल्या कुठं ठेवल्या?

.. भाऊ तो स्पिकरवाला अजुन आला नाही 

.. भाऊ तो केटरर म्हणतोय.. पुर्या तळुन ठेवलेल्या चालतील का?

जबाबदार्या वाटल्या होत्या.. तरीसुद्धा उल्हासचं लक्ष सगळ्या गोष्टीत होतं..

सात वाजता किर्तन सुरू झालं.. गावातल्या वारकरी शिक्षण संस्थेतील पंधरा बाल वारकरी मागे ओळीत उभे राहिले.. पुंडलिक बुवा म्हणजे गावातले ज्येष्ठ किर्तनकार.. सुंदरसा पांढरा शुभ्र फेटा.. स्वच्छ सदरा उपरणं.. कपाळी विष्णु गंध.. त्यांनी हातात वीणा घेतला.. सुरांवर लावला.. पखवाजावर थाप पडली..

‘जय जय राम कृष्ण हरी’.. मागे उभ्या असलेल्या बाल वारकऱ्यांनी टाळ्यांची साथ दिली..

“नामसंकीर्तन साधन पै सोपे.. जळतील पापे जन्मांतरीची.. “

बुवा निरुपण करता करता रंगुन गेले.. सोसायटीची पंढरी झाली.. अवघं वातावरण विठ्ठलमय झालं..

उल्हासला किर्तन एंजॉय करायचं होतं.. पण असं एका जागी बसून कसं चालेल?पुढची जेवणाची तयारी करायची होती.. साडेआठला कीर्तन झालं.. मग टाळ मृदुंगाच्या तालावर सगळ्यांनी फेर धरला.. काही बायका फुगड्या खेळु लागल्या.. कुणी दोन्ही कान पकडून उड्या मारु लागले..

तोवर पत्रावळी मांडल्या गेल्या.. उल्हास ने तरुण मुलांवर ही जबाबदारी सोपवली होती.. पहीली पंगत वारकऱ्यांची झाली.. मग सोसायटीतले.. रात्री दहा वाजता आपापल्या पथार्या सोडून हळूहळू सगळे झोपी गेले.

पहाटे पाच वाजता दिंडीला जाग आली.. एवढ्या लोकांचं प्रातर्विधी.. स्नान.. आवरणं व्यवस्थित झालं पाहिजे.. लाकडाच्या काटक्या गोळा करून शेगडी पेटवली.. त्यावर मोठी कढई.. कढईत पाणी गरम करून छोट्या छोट्या बादल्यांमध्ये घेऊन कुणी बाथरूममध्ये.. कुणी बाहेरच उभ्या उभ्या डोक्यावरून पाणी घेऊ लागले.

चहाचा थर्मास फिरत होता.. पहाटेच्या गुलाबी थंडीत.. स्पिकरवरुन येणार्या भजनाच्या निनादात वारकरी चहा घेत होते.. सगळा कार्यक्रम ठरल्याप्रमाणे पार पडला होता. बांधाबांध झाली.. कानावर टोप्या चढल्या.. मफलरची गाठ घट्ट झाली.. पालखी मधील पादुकांचे पूजन झाले..

एकामागून एक गाड्या निघाल्या..

‘हेची दान देगा देवा.. तुझा विसर न व्हावा’

ट्रॅक्टरवर असलेल्या दोन स्पिकरमधुन येणारा आवाज दुर दुर जाऊ लागला.. त्या भगव्या पताका… पाठमोरे वारकरी नजरेआड होत गेले.. उल्हासनं पाहीलेलं एक छोटंसं स्वप्न पुरं झालं होतं..

आपल्या बाबांच्या आठवणीने त्याला एकदम गलबलून आलं.. वर आकाशाकडे पाहत त्याने हात जोडले.. भरल्या डोळ्यांनी तो घराकडे वळला.

© श्री सुनील शिरवाडकर

मो.९४२३९६८३०८

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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