आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – त्रयोदश अध्याय (26) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

त्रयोदश अध्याय

(ज्ञानसहित प्रकृति-पुरुष का विषय)

 

यावत्सञ्जायते किञ्चित्सत्त्वं स्थावरजङ्‍गमम्‌ ।

क्षेत्रक्षेत्रज्ञसंयोगात्तद्विद्धि भरतर्षभ ।।26।।

 

स्थावर जंगम जो भी कुछ ,का होता निर्माण

क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के ,योग से सदा विधान ।।26।।

 

भावार्थ :  हे अर्जुन! यावन्मात्र जितने भी स्थावर-जंगम प्राणी उत्पन्न होते हैं, उन सबको तू क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के संयोग से ही उत्पन्न जान।।26।।

 

Wherever a being is born, whether it be unmoving or moving, know thou, O best of the Bharatas (Arjuna), that it is from the union between the Field and its Knower.।।26।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

Please share your Post !

Shares

आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – त्रयोदश अध्याय (25) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

त्रयोदश अध्याय

(ज्ञानसहित प्रकृति-पुरुष का विषय)

 

अन्ये त्वेवमजानन्तः श्रुत्वान्येभ्य उपासते ।

तेऽपि चातितरन्त्येव मृत्युं श्रुतिपरायणाः ।।25।।

 

कुछ औरो से सुनी का , करते है उपयोग

वे भी पाते लीन हो , मृत्यु पार का योग ।।25।।

 

भावार्थ :  परन्तु इनसे दूसरे अर्थात जो मंदबुद्धिवाले पुरुष हैं, वे इस प्रकार न जानते हुए दूसरों से अर्थात तत्व के जानने वाले पुरुषों से सुनकर ही तदनुसार उपासना करते हैं और वे श्रवणपरायण पुरुष भी मृत्युरूप संसार-सागर को निःसंदेह तर जाते हैं।।25।।

 

Others also, not knowing thus, worship, having heard of it from others; they, too, cross beyond death, regarding what they have heard as the supreme refuge.।।25।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

Please share your Post !

Shares

आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – त्रयोदश अध्याय (24) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

त्रयोदश अध्याय

(ज्ञानसहित प्रकृति-पुरुष का विषय)

 

ध्यानेनात्मनि पश्यन्ति केचिदात्मानमात्मना ।

अन्ये साङ्‍ख्येन योगेन कर्मयोगेन चापरे ।।24।।

 

कोई ध्यान से देखते ,आत्मा को निज ओर

कोई सांख्य योग से, कर्म योग से और ।।24।।

भावार्थ :  उस परमात्मा को कितने ही मनुष्य तो शुद्ध हुई सूक्ष्म बुद्धि से ध्यान (जिसका वर्णन गीता अध्याय 6 में श्लोक 11 से 32 तक विस्तारपूर्वक किया है) द्वारा हृदय में देखते हैं, अन्य कितने ही ज्ञानयोग (जिसका वर्णन गीता अध्याय 2 में श्लोक 11 से 30 तक विस्तारपूर्वक किया है) द्वारा और दूसरे कितने ही कर्मयोग (जिसका वर्णन गीता अध्याय 2 में श्लोक 40 से अध्याय समाप्तिपर्यन्त विस्तारपूर्वक किया है) द्वारा देखते हैं अर्थात प्राप्त करते हैं।।24।।

 

Some by meditation behold the Self in the Self by the Self, others by the Yoga of knowledge, and others by the Yoga of action.।।24।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

Please share your Post !

Shares

आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – त्रयोदश अध्याय (23) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

त्रयोदश अध्याय

(ज्ञानसहित प्रकृति-पुरुष का विषय)

 

य एवं वेत्ति पुरुषं प्रकृतिं च गुणैः सह ।

सर्वथा वर्तमानोऽपि न स भूयोऽभिजायते ।।23।।

 

जिसे इस तरह पुरूष, गुण और प्रकृति का ज्ञान

उसके लिये जहाँ भी हो, पुर्नजन्म न विधान।।23।।

 

भावार्थ :  इस प्रकार पुरुष को और गुणों के सहित प्रकृति को जो मनुष्य तत्व से जानता है (दृश्यमात्र सम्पूर्ण जगत माया का कार्य होने से क्षणभंगुर, नाशवान, जड़ और अनित्य है तथा जीवात्मा नित्य, चेतन, निर्विकार और अविनाशी एवं शुद्ध, बोधस्वरूप, सच्चिदानन्दघन परमात्मा का ही सनातन अंश है, इस प्रकार समझकर सम्पूर्ण मायिक पदार्थों के संग का सर्वथा त्याग करके परम पुरुष परमात्मा में ही एकीभाव से नित्य स्थित रहने का नाम उनको ‘तत्व से जानना’ है) वह सब प्रकार से कर्तव्य कर्म करता हुआ भी फिर नहीं जन्मता ।।23।।

 

He who thus knows Spirit and Matter, together with the qualities, in whatever condition he may be, he is not reborn.।।23।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

Please share your Post !

Shares

योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ Happiness Activity: How  to attain real and lasting happiness? ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆ Happiness Activity: How  to attain real and lasting happiness? ☆ 

Video Link >>>>

Happiness Activity: How  to attain real and lasting happiness?

DISCOVER YOUR SIGNATURE STRENGTHS AND FLOURISH!

According to Dr Martin Seligman, founder of Positive Psychology, authentic happiness comes from identifying and cultivating your most fundamental strengths and using them every day in work, love, play, and parenting.

If you want to be happy, you have to discover your signature strengths and put them into action.

Every major religious and cultural tradition endorses six virtues: Wisdom and knowledge, courage, love and humanity, justice, temperance, and spirituality and transcendence.

There are several distinct routes to each of these six: for example, ‘Love of Learning’ is a route to ‘Wisdom’, ‘Integrity’ is a route to ‘Courage’, ‘Kindness and generosity’ is a route to ‘Humanity’.

To discover your signature strengths, go to the website: www.authentichappiness.org

and take the VIA Strengths Survey test.

Here is a complete list of the six virtues and the twenty-four signature strengths:

6 VIRTUES & 24 SIGNATURE STRENGTHS

 

  1. WISDOM and KNOWLEDGE
    1. Curiosity/Interest in the World
    2. Love of Learning
    3. Judgement/Critical Thinking/Open-Mindedness
    4. Ingenuity/Originality/Practical Intelligence/Street Smarts
    5. Social Intelligence/Personal Intelligence/Emotional Intelligence
    6. Perspective

2. COURAGE

    1. Valour and Bravery
    2. Perseverance/Industry/Diligence
    3. Integrity/Genuineness/Honesty

 

3. HUMANITY and LOVE

    1. Kindness and Generosity
    2. Loving and Allowing Oneself to Be Loved

4. JUSTICE

    1. Citizenship/Duty/Teamwork/Loyalty
    2. Fairness and Equity
    3. Leadership

 

5. TEMPERANCE

    1. Self-Control
    2. Prudence/Discretion/Caution
    3. Humility and Modesty

6. TRANSCENDENCE

    1. Appreciation of Beauty and Excellence
    2. Gratitude
    3. Hope/Optimism/Future-Mindedness
    4. Spirituality/Sense of Purpose/Faith/Religiousness
    5. Forgiveness and Mercy
    6. Playfulness and Humour
    7. Zest/Passion/Enthusiasm

(excerpted from Authentic Happiness by Martin Seligman)

LifeSkills

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga. We conduct talks, seminars, workshops, retreats and trainings.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

Please share your Post !

Shares

आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – त्रयोदश अध्याय (22) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

त्रयोदश अध्याय

(ज्ञानसहित प्रकृति-पुरुष का विषय)

उपद्रष्टानुमन्ता च भर्ता भोक्ता महेश्वरः ।

परमात्मेति चाप्युक्तो देहेऽस्मिन्पुरुषः परः ।।22।।

 

दृष्टा, पोषक भोक्ता, ईश्वर का आगार

इसी देह में है अलख , परमात्मा जगदाधार ।।22।।

 

भावार्थ :  इस देह में स्थित यह आत्मा वास्तव में परमात्मा ही है। वह साक्षी होने से उपद्रष्टा और यथार्थ सम्मति देने वाला होने से अनुमन्ता, सबका धारण-पोषण करने वाला होने से भर्ता, जीवरूप से भोक्ता, ब्रह्मा आदि का भी स्वामी होने से महेश्वर और शुद्ध सच्चिदानन्दघन होने से परमात्मा- ऐसा कहा गया है।।22।।

 

The Supreme Soul in this body is also called the spectator, the permitter, the supporter, the enjoyer, the great Lord and the Supreme Self.।।22।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

Please share your Post !

Shares

आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – त्रयोदश अध्याय (21) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

त्रयोदश अध्याय

(ज्ञानसहित प्रकृति-पुरुष का विषय)

पुरुषः प्रकृतिस्थो हि भुङ्‍क्ते प्रकृतिजान्गुणान्‌ ।

कारणं गुणसंगोऽस्य सदसद्योनिजन्मसु ।।21।।

प्रकृति से उपजे गुणों का ,करता पुरूष है भोग

यही गुणों के संग से , जनम-मरण का रोग ।।21।।

भावार्थ :  प्रकृति में (प्रकृति शब्द का अर्थ गीता अध्याय 7 श्लोक 14 में कही हुई भगवान की त्रिगुणमयी माया समझना चाहिए) स्थित ही पुरुष प्रकृति से उत्पन्न त्रिगुणात्मक पदार्थों को भोगता है और इन गुणों का संग ही इस जीवात्मा के अच्छी-बुरी योनियों में जन्म लेने का कारण है। (सत्त्वगुण के संग से देवयोनि में एवं रजोगुण के संग से मनुष्य योनि में और तमो गुण के संग से पशु आदि नीच योनियों में जन्म होता है।)॥21॥

 

The soul seated in Nature experiences the qualities born of Nature; attachment to the qualities is the cause of his birth in good and evil wombs.।।21।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

Please share your Post !

Shares

आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – त्रयोदश अध्याय (20) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

त्रयोदश अध्याय

(ज्ञानसहित प्रकृति-पुरुष का विषय)

 

कार्यकरणकर्तृत्वे हेतुः प्रकृतिरुच्यते ।

पुरुषः सुखदुःखानां भोक्तृत्वे हेतुरुच्यते ।।20।।

 

प्रकृति ही है अनिवार्यतः, कार्य कारण का हेतु

और पुरूष सब सुख दुखों, के भोगो का हेतु ।।20।।

 

भावार्थ :  कार्य (आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी तथा शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध -इनका नाम ‘कार्य’ है) और करण (बुद्धि, अहंकार और मन तथा श्रोत्र, त्वचा, रसना, नेत्र और घ्राण एवं वाक्‌, हस्त, पाद, उपस्थ और गुदा- इन 13 का नाम ‘करण’ है) को उत्पन्न करने में हेतु प्रकृति कही जाती है और जीवात्मा सुख-दुःखों के भोक्तपन में अर्थात भोगने में हेतु कहा जाता है।।20।।

 

In the production of the effect and the cause, Nature (matter) is said to be the cause; in the experience of pleasure and pain, the soul is said to be the cause.।।20।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

Please share your Post !

Shares

आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – त्रयोदश अध्याय (19) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

त्रयोदश अध्याय

(ज्ञानसहित प्रकृति-पुरुष का विषय)

 

प्रकृतिं पुरुषं चैव विद्ध्‌यनादी उभावपि ।

विकारांश्च गुणांश्चैव विद्धि प्रकृतिसम्भवान्‌ ।।19।।

पुरूष प्रकृति दो अनादि है, गुण विकार प्रतिरूप

जान कि सब होते सदा , प्रकृति से ही उद्भूत ।।19।।

 

भावार्थ :  प्रकृति और पुरुष- इन दोनों को ही तू अनादि जान और राग-द्वेषादि विकारों को तथा त्रिगुणात्मक सम्पूर्ण पदार्थों को भी प्रकृति से ही उत्पन्न जान।।19।।

 

Know  thou  that  Nature  and  Spirit  are  beginningless;  and  know  also  that  all modifications and qualities are born of Nature.।।19।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

Please share your Post !

Shares

आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – त्रयोदश अध्याय (18) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

त्रयोदश अध्याय

(ज्ञानसहित क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का विषय)

इति क्षेत्रं तथा ज्ञानं ज्ञेयं चोक्तं समासतः ।

मद्भक्त एतद्विज्ञाय मद्भावायोपपद्यते ।।18।।

ज्ञान ज्ञेय और क्षेत्र का यह है सुगम विचार

इसे जान मम भक्त का होता है उद्धार ।।18।।

भावार्थ :  इस प्रकार क्षेत्र (श्लोक 5-6 में विकार सहित क्षेत्र का स्वरूप कहा है) तथा ज्ञान (श्लोक 7 से 11 तक ज्ञान अर्थात ज्ञान का साधन कहा है।) और जानने योग्य परमात्मा का स्वरूप (श्लोक 12 से 17 तक ज्ञेय का स्वरूप कहा है) संक्षेप में कहा गया। मेरा भक्त इसको तत्व से जानकर मेरे स्वरूप को प्राप्त होता है॥18॥

 

Thus the Field as well as knowledge and the Knowable have been briefly stated. My devotee, knowing this, enters into My Being.

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

Please share your Post !

Shares
image_print