आध्यत्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – एकादश अध्याय (44) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(भयभीत हुए अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति और चतुर्भुज रूप का दर्शन कराने के लिए प्रार्थना)

तस्मात्प्रणम्य प्रणिधाय कायंप्रसादये त्वामहमीशमीड्यम्‌।

पितेव पुत्रस्य सखेव सख्युः प्रियः प्रियायार्हसि देव सोढुम्‌।। 44 ।।

इससे मस्तक झुकाकर करता हूँ यह साध

पिता – पुत्र या प्रिय सा प्रिय , क्षमा करें अपराध  ।। 44 ।।

 

भावार्थ :  अतएव हे प्रभो! मैं शरीर को भलीभाँति चरणों में निवेदित कर, प्रणाम करके, स्तुति करने योग्य आप ईश्वर को प्रसन्न होने के लिए प्रार्थना करता हूँ। हे देव! पिता जैसे पुत्र के, सखा जैसे सखा के और पति जैसे प्रियतमा पत्नी के अपराध सहन करते हैं- वैसे ही आप भी मेरे अपराध को सहन करने योग्य हैं। ।। 44 ।।

 

Therefore, bowing down, prostrating my body, I crave Thy forgiveness, O adorable Lord! As a father forgives his son, a friend his (dear) friend, a lover his beloved, even so shouldst Thou forgive me, O God! ।। 44 ।।

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यत्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – एकादश अध्याय (43) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(भयभीत हुए अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति और चतुर्भुज रूप का दर्शन कराने के लिए प्रार्थना)

 

पितासि लोकस्य चराचरस्य त्वमस्य पूज्यश्च गुरुर्गरीयान्‌।

न त्वत्समोऽस्त्यभ्यधिकः कुतोऽन्योलोकत्रयेऽप्यप्रतिमप्रभाव ।। 43 ।।

 

पिता आप है जगत के श्रेष्ठ गुरू गुणवान

तुम समान कोई नहीं , जग में कहीं महान  ।। 43 ।।

 

भावार्थ :  आप इस चराचर जगत के पिता और सबसे बड़े गुरु एवं अति पूजनीय हैं। हे अनुपम प्रभाववाले! तीनों लोकों में आपके समान भी दूसरा कोई नहीं हैं, फिर अधिक तो कैसे हो सकता है।। 43 ।।

 

Thou art the Father of this world, unmoving and moving. Thou art to be adored by this world. Thou art the greatest Guru; (for) none there exists who is equal to Thee; how then can there be another superior to Thee in the three worlds, O Being of unequalled power?।। 43 ।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यत्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – एकादश अध्याय (41-42) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(भयभीत हुए अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति और चतुर्भुज रूप का दर्शन कराने के लिए प्रार्थना)

सखेति मत्वा प्रसभं यदुक्तं हे कृष्ण हे यादव हे सखेति।

अजानता महिमानं तवेदंमया प्रमादात्प्रणयेन वापि ।। 41।।

यच्चावहासार्थमसत्कृतोऽसि विहारशय्यासनभोजनेषु ।

एकोऽथवाप्यच्युत तत्समक्षंतत्क्षामये त्वामहमप्रमेयम्‌ ।। 42 ।।

 

तव महिमा अज्ञान वश , प्रेम से था कि प्रमाद

तुम्हें कभी क्या , क्या कहा , मुझे नहीं कुछ याद  ।। 41 ।।

कभी हास परिहास में या आहार विहार

यदि कुछ अनुचित कहा हो , क्षमा करें सरकार  ।। 42 ।।

 

भावार्थ :  आपके इस प्रभाव को न जानते हुए, आप मेरे सखा हैं ऐसा मानकर प्रेम से अथवा प्रमाद से भी मैंने ‘हे कृष्ण!’, ‘हे यादव !’ ‘हे सखे!’ इस प्रकार जो कुछ बिना सोचे-समझे हठात्‌ कहा है और हे अच्युत! आप जो मेरे द्वारा विनोद के लिए विहार, शय्या, आसन और भोजनादि में अकेले अथवा उन सखाओं के सामने भी अपमानित किए गए हैं- वह सब अपराध अप्रमेयस्वरूप अर्थात अचिन्त्य प्रभाव वाले आपसे मैं क्षमा करवाता हूँ॥41-42॥

 

Whatever I have presumptuously uttered from love or carelessness, addressing Thee as O  Krishna!  O  Yadava!  O  Friend!  regarding  Thee  merely  as  a  friend,  unknowing  of  this,  Thy greatness।। 41 ।।

 

In whatever way I may have insulted Thee for the sake of fun while at play, reposing, sitting or at meals, when alone (with Thee), O Achyuta, or in company—that I implore Thee, immeasurable one, to forgive!।। 42 ।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यत्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – एकादश अध्याय (40) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(भयभीत हुए अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति और चतुर्भुज रूप का दर्शन कराने के लिए प्रार्थना)

 

नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व।

अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वंसर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः ।। 40 ।।

 

आगे , पीछे , सब तरफ से प्रभु तुम्हें प्रणाम

परम पराक्रम आपका , आप ही पूरन काम ।। 40 ।।

 

भावार्थ :  हे अनन्त सामर्थ्यवाले! आपके लिए आगे से और पीछे से भी नमस्कार! हे सर्वात्मन्‌! आपके लिए सब ओर से ही नमस्कार हो, क्योंकि अनन्त पराक्रमशाली आप समस्त संसार को व्याप्त किए हुए हैं, इससे आप ही सर्वरूप हैं।। 40 ।।

 

Salutations to Thee from front and from behind! Salutations to Thee on every side! O All! Thou infinite in power and prowess, pervadest all; wherefore Thou art all.।। 40 ।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

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आध्यत्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – एकादश अध्याय (38) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(भयभीत हुए अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति और चतुर्भुज रूप का दर्शन कराने के लिए प्रार्थना)

 

त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणस्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्‌ ।

वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप ।। 38 ।।

 

आदि देव इस जगत के , परम विश्व आधार

तुम्हीं व्याप्त सब सृष्टि में तुमसे जग विस्तार  ।। 38 ।।

 

भावार्थ :  आप आदिदेव और सनातन पुरुष हैं, आप इन जगत के परम आश्रय और जानने वाले तथा जानने योग्य और परम धाम हैं। हे अनन्तरूप! आपसे यह सब जगत व्याप्त अर्थात परिपूर्ण हैं।। 38 ।।

 

Thou art the primal God, the ancient Purusha, the supreme refuge of this universe, the knower,  the  knowable  and  the  supreme  abode.  By  Thee  is  the  universe  pervaded,  O  Being  of infinite forms।। 38 ।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यत्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – एकादश अध्याय (37) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(भयभीत हुए अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति और चतुर्भुज रूप का दर्शन कराने के लिए प्रार्थना)

कस्माच्च ते न नमेरन्महात्मन्‌ गरीयसे ब्रह्मणोऽप्यादिकर्त्रे।

अनन्त देवेश जगन्निवास त्वमक्षरं सदसत्तत्परं यत्‌ ।। 37 ।।

ब्रम्हा देव से भी बड़े व्यापक देव महान

अक्षर आप ओंकार को , क्यों न करें प्रणाम  ।। 37 ।।

भावार्थ :  हे महात्मन्‌! ब्रह्मा के भी आदिकर्ता और सबसे बड़े आपके लिए वे कैसे नमस्कार न करें क्योंकि हे अनन्त! हे देवेश! हे जगन्निवास! जो सत्‌, असत्‌ और उनसे परे अक्षर अर्थात सच्चिदानन्दघन ब्रह्म है, वह आप ही हैं।। 37 ।।

 

And why should they not, O great soul, bow to Thee who art greater (than all else), the primal cause even of (Brahma) the creator, O Infinite Being! O Lord of the gods! O abode of the universe! Thou art the imperishable, the Being, the non-being and That which is the supreme (that which is beyond the Being and non-being).।। 37 ।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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हिन्दी साहित्य ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र # 22 ☆ आध्यात्मिक दोहे ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। अब आप डॉ राकेश ‘चक्र’ जी का साहित्य प्रत्येक गुरुवार को  उनके  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  आत्मसात कर सकेंगे । इस कड़ी में आज प्रस्तुत हैं  आपके  अतिसुन्दर एवं सार्थक “आध्यात्मिक दोहे.)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 22 ☆

☆ आध्यात्मिक दोहे ☆

 

पत्ता टूटा पेड़ से, आया मेरे पास  ।

जीवन सबका इस तरह, मत हो मित्र उदास।।

 

ॐ मन्त्र ही श्रेष्ठ है, जप तप का आधार ।

चक्र सदा इसमें रमो, करता बेड़ा पार।।

 

माया के बहु रूप हैं,  माया दुख का सार।

माया ही करती रही ,चक्र सदा अपकार।।

 

समय अभी है चेत जा, चक्र लगा ले ध्यान।

शोर शराबा हर तरफ, दुष्ट करें अपमान।।

 

वेदों में हैं जो रमे, करते गीता पाठ।

ज्ञान बुद्धि सन्मति बढ़े, भ्रम, संशय हो काठ।।

 

दो ही मानव जातियाँ, असुर औ एक देव।

देव करें शुभ काम ही, असुर रखें मन भेद।।

 

काम, क्रोध, मद, लोभ ही; यही नरक के द्वार।

जो इनसे बच के रहें, हो उनका उद्धार।।

 

सुख -दुख में है साथ प्रिय, तुझसे पावन प्यार।

पवन गगन सर्वत्र है, तुझमें है संसार।।

 

लघुता में रहकर जिया, मन में सुक्ख अपार।

जीवन ही देता रहा, मौन सुखी संसार।।

 

लाभ हानि सुख छोड़कर ,गुरु देता है ज्ञान।

गुरुवर के सानिध्य से,सबका हो कल्याण।।

 

‘चक्र’ कबीरा बाबरा,  हँसे अकेला रोज।

मायावी संसार में, करे स्वयं की खोज।।

 

कृपण कभी देता नहीं, प्यार और सत्कार।

चाहे भर लूँ मुट्ठियाँ, भर लूँ सब संसार।।

 

संशय , शक जो जन करें, वही भाग्य के हीन।

कर ले शुभ- शुभ बाबरे, श्वाश मिलीं दो तीन।।

 

योग,परिश्रम नित करू, सोचूँ शुभ -शुभ काम।

सभी समर्पित ईश को, मुझे कहाँ  विश्राम।।

 

 

डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001

उ.प्र .  9456201857

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ हनुमान जयंती विशेष – हनुमान स्तुति ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

हनुमान जयंती विशेष 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा  आज हनुमान  जयंती पर विशेष रचना ‘हनुमान स्तुति ‘। ) 

 

☆ हनुमान जयंती विशेष – हनुमान स्तुति ☆

 

संकट मोचन दुख भंजन हनुमान तुम्हारी जय होवे

बल बुद्धि शक्ति साहस श्रम के अभिमान तुम्हारी जय होवे

 

दुनिया के माया मोह जाल में फंसे सिसकते प्राणों को

मिलती तुमसे नई  चेतनता और गति निश्छल पाषाण को

 

दुख में डूबे जग से ऊबे हम शरण तुम्हारी हैं भगवन

संकट में तुमसे संरक्षण पाने को आतुर है यह मन

 

तुम दुखहर्ता नित सुखकर्ता अभिराम तुम्हारी जय होवे

हे करुणा के आगार सतत निष्काम तुम्हारी जय होवे

 

सर्वत्र गम्य,  सर्वज्ञ , सर्वसाधक प्रभु अंतर्यामी तुम

जिस ने जब मन से याद किया आए उसके बन स्वामी तुम

 

देता सबको आनंद नवल निज  नाथ तुम्हारा संकीर्तन

होता इससे ही ग्राम नगर हर घर में तव वंदन अर्चन

 

संकट कट जाते लेते ही तव नाम तुम्हारी जय होवे

तव चरणों में मिलता मन को विश्राम तुम्हारी जय होवे

 

संतप्त वेदनाओ से मन उलझन में सुलझी आस लिए

गीले नैनों में स्वप्न लिए ,  अंतर में गहरी प्यास लिए

 

आतुर है दृढ़ विश्वास लिए , हे नाथ कृपा हम पर कीजे

इस जग की भूल भुलैया में पथ खोज सकें यह वर दीजे

 

हम संसारी तुम दुख हारी भगवान तुम्हारी जय होवे

राम भक्त शिव अवतारी हनुमान तुम्हारी जय होवे

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

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मो ७०००३७५७९८

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे # 41☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के हृदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)  

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे # 41 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

 

सुख व्यापे इस जगत में, दुखिया रहे न कोय ।

सबके मन जागे धरम, सबका मंगल होय ।।

– आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

Our Fundamentals:

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga.  We conduct talks, seminars, workshops, retreats, and training.

Email: [email protected]

Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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आध्यत्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – एकादश अध्याय (36) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(भयभीत हुए अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति और चतुर्भुज रूप का दर्शन कराने के लिए प्रार्थना)

 

अर्जुन उवाच

स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या जगत्प्रहृष्यत्यनुरज्यते च ।

रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसङ्‍घा: ।। 36 ।।

अर्जुन ने कहा-

सच , प्रभु कीर्तन आपका देता सुख – आनंद

असुरों को भय आपका , साधक परम प्रसन्न ।। 36 ।।

भावार्थ :  अर्जुन बोले- हे अन्तर्यामिन्! यह योग्य ही है कि आपके नाम, गुण और प्रभाव के कीर्तन से जगत अति हर्षित हो रहा है और अनुराग को भी प्राप्त हो रहा है तथा भयभीत राक्षस लोग दिशाओं में भाग रहे हैं और सब सिद्धगणों के समुदाय नमस्कार कर रहे हैं।। 36 ।।

 

It is meet, O Krishna, that the world delights and rejoices in Thy praise; demons fly in fear to all quarters and the hosts of the perfected ones bow to Thee!।। 36 ।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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