आध्यात्म/Spritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – नवम अध्याय (18) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

नवम अध्याय

( सर्वात्म रूप से प्रभाव सहित भगवान के स्वरूप का वर्णन )

 

गतिर्भर्ता प्रभुः साक्षी निवासः शरणं सुहृत्‌ ।

प्रभवः प्रलयः स्थानं निधानं बीजमव्ययम्‌।।18।।

 

गति,भर्ता,प्रभु साक्षी हूँ निवास,विश्राम

जन्म मरण दाता अमर बीज प्रदीप ललाम।।18।।

 

भावार्थ :  प्राप्त होने योग्य परम धाम, भरण-पोषण करने वाला, सबका स्वामी, शुभाशुभ का देखने वाला, सबका वासस्थान, शरण लेने योग्य, प्रत्युपकार न चाहकर हित करने वाला, सबकी उत्पत्ति-प्रलय का हेतु, स्थिति का आधार, निधान (प्रलयकाल में संपूर्ण भूत सूक्ष्म रूप से जिसमें लय होते हैं उसका नाम ‘निधान’ है) और अविनाशी कारण भी मैं ही हूँ।।18।।

 

I am the goal, the support, the Lord, the witness, the abode, the shelter, the friend, the origin, the dissolution, the foundation, the treasure-house and the imperishable सीड। ।।18।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – नवम अध्याय (17) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

नवम अध्याय

( सर्वात्म रूप से प्रभाव सहित भगवान के स्वरूप का वर्णन )

 

पिताहमस्य जगतो माता धाता पितामहः ।

वेद्यं पवित्रमोङ्कार ऋक्साम यजुरेव च ॥

 

मै ही जग का पिता हूँ माता धाता वेद

मैं पवित्र ओंकार हूँ ऋक साम व यजुर्वेद।।17।।

 

भावार्थ :  इस संपूर्ण जगत्‌ का धाता अर्थात्‌ धारण करने वाला एवं कर्मों के फल को देने वाला, पिता, माता, पितामह, जानने योग्य, (गीता अध्याय 13 श्लोक 12 से 17 तक में देखना चाहिए) पवित्र ओंकार तथा ऋग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद भी मैं ही हूँ।।17।।

 

I am the father of this world, the mother, the dispenser of the fruits of actions, and the grandfather; the (one) thing to be known, the purifier, the sacred monosyllable (Om), and also the Rig-,the Sama-and Yajur Vedas.।।17।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – नवम अध्याय (16) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

नवम अध्याय

( सर्वात्म रूप से प्रभाव सहित भगवान के स्वरूप का वर्णन )

 

अहं क्रतुरहं यज्ञः स्वधाहमहमौषधम्‌ ।

मंत्रोऽहमहमेवाज्यमहमग्निरहं हुतम्‌ ।।16।।

मै ही कृति हूँ यज्ञ हूँ,स्वधा,मंत्र,घृत अग्नि

औषध भी मैं,हवन मैं प्रबल जैसे जमदाग्नि।।16।।

भावार्थ :  क्रतु मैं हूँ, यज्ञ मैं हूँ, स्वधा मैं हूँ, औषधि मैं हूँ, मंत्र मैं हूँ, घृत मैं हूँ, अग्नि मैं हूँ और हवनरूप क्रिया भी मैं ही हूँ।।16।।

 

I am the Kratu; I am the Yajna; I am the offering (food) to the manes; I am the medicinal herb and all the plants; I am the Mantra; I am also the ghee or melted butter; I am the fire; I am the oblation.।।16।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – नवम अध्याय (15) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

नवम अध्याय

( भगवान का तिरस्कार करने वाले आसुरी प्रकृति वालों की निंदा और दैवी प्रकृति वालों के भगवद्भजन का प्रकार )

 

ज्ञानयज्ञेन चाप्यन्ते यजन्तो मामुपासते।

एकत्वेन पृथक्त्वेन बहुधा विश्वतोमुखम्।।15।।

 

अन्य ज्ञान औ” यज्ञ से करते मुझे प्रणाम

पूजा करते विविध विधि दे विश्वेश्र्वर नाम।।15।।

 

भावार्थ :  दूसरे ज्ञानयोगी मुझ निर्गुण-निराकार ब्रह्म का ज्ञानयज्ञ द्वारा अभिन्नभाव से पूजन करते हुए भी मेरी उपासना करते हैं और दूसरे मनुष्य बहुत प्रकार से स्थित मुझ विराट स्वरूप परमेश्वर की पृथक भाव से उपासना करते हैं।।15।।

 

Others also, sacrificing with the wisdom-sacrifice, worship Me, the all-faced, as one, as distinct, and as manifold.।।15।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – नवम अध्याय (14) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

नवम अध्याय

( भगवान का तिरस्कार करने वाले आसुरी प्रकृति वालों की निंदा और दैवी प्रकृति वालों के भगवद्भजन का प्रकार )

 

सततं कीर्तयन्तो मां यतन्तश्च दृढ़व्रताः ।

नमस्यन्तश्च मां भक्त्या नित्ययुक्ता उपासते ।।14।।

 

योगी ज्ञानी भक्ति से करते कीर्तन गान

और दृढव्रती कर नमन देते सब सम्मान।।14।।

      

भावार्थ :  वे दृढ़ निश्चय वाले भक्तजन निरंतर मेरे नाम और गुणों का कीर्तन करते हुए तथा मेरी प्राप्ति के लिए यत्न करते हुए और मुझको बार-बार प्रणाम करते हुए सदा मेरे ध्यान में युक्त होकर अनन्य प्रेम से मेरी उपासना करते हैं।।14।।

 

Always glorifying Me, striving, firm in vows, prostrating before Me, they worship Me with devotion, ever steadfast.।।14।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विशाखा की नज़र से # 16 – लालन – पालन  ☆ श्रीमति विशाखा मुलमुले

श्रीमति विशाखा मुलमुले 

 

(श्रीमती  विशाखा मुलमुले जी  हिंदी साहित्य  की कविता, गीत एवं लघुकथा विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती  रहती हैं.  आपकी कविताओं का पंजाबी एवं मराठी में भी अनुवाद हो चुका है। आज प्रस्तुत है उनकी एक  मातृत्व की भावना से परिपूर्ण भावप्रवण रचना लालन – पालन अब आप प्रत्येक रविवार को श्रीमती विशाखा मुलमुले जी की रचनाएँ  “साप्ताहिक स्तम्भ – विशाखा की नज़र से” में  पढ़ सकेंगे. )

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 16  – विशाखा की नज़र से

☆ लालन – पालन  ☆

 

माँ हूँ मै तुम्हारी अपने कर्तव्य करती रहती हूँ

उपस्थित हूँ तुम्हारे, सम्मुख हूँ तुम्हारे

तो ध्येय भरती रहती हूँ ,

माँ हूँ मै तुम्हारी …….

 

कोख से तुम मुझसे विभक्त हुए

गर्भनाल टूटी तुम धरा पर जन्म हुए

ममत्व का तुमने मुझे भान दिया

कर्तव्यों का संग सोपान दिया

माँ हूँ मै तुम्हारी …..

 

तुम्हारे जन्म के संग ही मेरा पुनर्जन्म हुआ

जीवन के रंगमंच पर मातृत्व का अंक हुआ

मेरे अंक का विस्तार बढ़ता गया

तू भी तो नित नए आयाम गढ़ता गया

तुझे सफल बनाने का प्रयास करती रहती हूँ

मुख्य किरदार से अपने संवाद करती रहती हूँ

माँ हूँ मैं तुम्हारी …….

 

नाट्य की सफलता कथा पर निर्भर है

किरदारों की अदाकारी उनके ऊपर है

तेरा मेरा नाट्य भी सफल तभी होगा

जब दर्शक भावविभोर और तालियों का शोर होगा

तेरे सम्मुख आदर्शों का वर्णन करती रहती हूँ

माँ हूँ मैं तुम्हारी तो ध्येय भरती रहती हूँ ।

 

© विशाखा मुलमुले  

पुणे, महाराष्ट्र

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आध्यात्म/Spritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – नवम अध्याय (13) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

नवम अध्याय

( भगवान का तिरस्कार करने वाले आसुरी प्रकृति वालों की निंदा और दैवी प्रकृति वालों के भगवद्भजन का प्रकार )

 

महात्मानस्तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिमाश्रिताः ।

भजन्त्यनन्यमनसो ज्ञात्वा भूतादिमव्यम्‌ ।।13।।

 

दैवी प्रकृति स्वभाव के आश्रित सज्जन लोग

जान मुझे अव्यय अमर पा पूजन का योग।।13।।

 

भावार्थ :  परंतु हे कुन्तीपुत्र! दैवी प्रकृति के (इसका विस्तारपूर्वक वर्णन गीता अध्याय 16 श्लोक 1 से 3 तक में देखना चाहिए) आश्रित महात्माजन मुझको सब भूतों का सनातन कारण और नाशरहित अक्षरस्वरूप जानकर अनन्य मन से युक्त होकर निरंतर भजते हैं।।13।।

But the great souls, O Arjuna, partaking of My divine nature, worship Me with a single  mind (with the mind devoted to nothing else), knowing Me as the imperishable source of beings।।13।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – नवम अध्याय (12) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

नवम अध्याय

( भगवान का तिरस्कार करने वाले आसुरी प्रकृति वालों की निंदा और दैवी प्रकृति वालों के भगवद्भजन का प्रकार )

 

मोघाशा मोघकर्माणो मोघज्ञाना विचेतसः ।

राक्षसीमासुरीं चैव प्रकृतिं मोहिनीं श्रिताः ।।12।।

 

उनकी आशा कर्म ओै” ज्ञान सभी हैं व्यर्थ

क्योकिं भ्रामक आसुरी प्रकृति ही उनका अर्थ।।12।।

      

भावार्थ :  वे व्यर्थ आशा, व्यर्थ कर्म और व्यर्थ ज्ञान वाले विक्षिप्तचित्त अज्ञानीजन राक्षसी, आसुरी और मोहिनी प्रकृति को (जिसको आसुरी संपदा के नाम से विस्तारपूर्वक भगवान ने गीता अध्याय 16 श्लोक 4 तथा श्लोक 7 से 21 तक में कहा है) ही धारण किए रहते हैं।।12।।

 

Of vain  hopes,  of  vain  actions,  of  vain  knowledge  and  senseless,  they  verily  are possessed of the deceitful nature of demons and undivine beings.।।12।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – नवम अध्याय (11) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

नवम अध्याय

( भगवान का तिरस्कार करने वाले आसुरी प्रकृति वालों की निंदा और दैवी प्रकृति वालों के भगवद्भजन का प्रकार )

 

अवजानन्ति मां मूढा मानुषीं तनुमाश्रितम्‌।

परं भावमजानन्तो मम भूतमहेश्वरम्‌ ।।11।।

 

विश्व महेश्वर भाव से मूढ मेरे अनजान

सहज मानवी रूप में देते कम सम्मान।।11।।

 

भावार्थ :  मेरे परमभाव को (गीता अध्याय 7 श्लोक 24 में देखना चाहिए) न जानने वाले मूढ़ लोग मनुष्य का शरीर धारण करने वाले मुझ संपूर्ण भूतों के महान्‌ ईश्वर को तुच्छ समझते हैं अर्थात्‌ अपनी योग माया से संसार के उद्धार के लिए मनुष्य रूप में विचरते हुए मुझ परमेश्वर को साधारण मनुष्य मानते हैं॥11॥

 

Fools disregard Me, clad in human form, not knowing My higher Being as the great Lord of (all) beings.।।11।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – नवम अध्याय (10) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

नवम अध्याय

( जगत की उत्पत्ति का विषय)

 

मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरं ।

हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते ।10।।

 

मेरे ही संकल्प से प्रकृति सृजित,हर बात

इससे ही कौन्तेय सब,परिवर्तन दिन रात।।10।।

 

भावार्थ :  हे अर्जुन! मुझ अधिष्ठाता के सकाश से प्रकृति चराचर सहित सर्व जगत को रचती है और इस हेतु से ही यह संसारचक्र घूम रहा है।10।।

 

Under Me as supervisor, Nature produces the moving and the unmoving; because of this, O Arjuna, the world revolves!।10।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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