श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
अध्याय 18
(ज्ञाननिष्ठा का विषय )
बुद्ध्या विशुद्धया युक्तो धृत्यात्मानं नियम्य च।
शब्दादीन्विषयांस्त्यक्त्वा रागद्वेषौ व्युदस्य च।।51।।
विविक्तसेवी लघ्वाशी यतवाक्कायमानस।
ध्यानयोगपरो नित्यं वैराग्यं समुपाश्रितः।।52।।
अहङकारं बलं दर्पं कामं क्रोधं परिग्रहम्।
विमुच्य निर्ममः शान्तो ब्रह्मभूयाय कल्पते।।53।।
शुद्ध बुद्धि रख, संयमित, राग-द्वेष को त्याग
शब्द आदि सब विषय तज एकनिष्ठ कर ध्यान ।।51।।
मन वाणी औ” कर्म पर रख अपना अधिकार
कम भोजन, वैराग्ययुत कर एकांत में ध्यान ।।52।।
अहंकार, बल, दर्प, तज, काम, क्रोध से दूर
निमर्म, शांतिस्वरूप हो, ब्रह्म ध्यान मे डूब ।।53।।
भावार्थ : विशुद्ध बुद्धि से युक्त तथा हलका, सात्त्विक और नियमित भोजन करने वाला, शब्दादि विषयों का त्याग करके एकांत और शुद्ध देश का सेवन करने वाला, सात्त्विक धारण शक्ति के (इसी अध्याय के श्लोक 33 में जिसका विस्तार है) द्वारा अंतःकरण और इंद्रियों का संयम करके मन, वाणी और शरीर को वश में कर लेने वाला, राग-द्वेष को सर्वथा नष्ट करके भलीभाँति दृढ़ वैराग्य का आश्रय लेने वाला तथा अहंकार, बल, घमंड, काम, क्रोध और परिग्रह का त्याग करके निरंतर ध्यान योग के परायण रहने वाला, ममतारहित और शांतियुक्त पुरुष सच्चिदानन्दघन ब्रह्म में अभिन्नभाव से स्थित होने का पात्र होता है॥51-53॥
Endowed with a pure intellect, controlling the self by firmness, relinquishing sound and other objects and abandoning both hatred and attraction,।।51।।
Dwelling in solitude, eating but little, with speech, body and mind subdued, always engaged in concentration and meditation, taking refuge in dispassion,।।52।।
Having abandoned egoism, strength, arrogance, anger, desire, and covetousness, free from the notion of “mine” and peaceful,-he is fit for becoming Brahman.।।53।।
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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