आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – तृतीय अध्याय (33) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

तृतीय अध्याय

( अज्ञानी और ज्ञानवान के लक्षण तथा राग-द्वेष से रहित होकर कर्म करने के लिए प्रेरणा )

 

सदृशं चेष्टते स्वस्याः प्रकृतेर्ज्ञानवानपि ।

प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रहः किं करिष्यति ।।33।।

 

अपनी प्रकृति अनुसार कर्म सब ज्ञानी जन भी करते है

हठ क्या करेगा सारे प्राणी प्रकृति भाँति ही चलते है।।33।।

      

भावार्थ :  सभी प्राणी प्रकृति को प्राप्त होते हैं अर्थात अपने स्वभाव के परवश हुए कर्म करते हैं। ज्ञानवान्‌भी अपनी प्रकृति के अनुसार चेष्टा करता है। फिर इसमें किसी का हठ क्या करेगा ।।33।।

 

Even a wise man acts in accordance with his own nature; beings will follow nature; what can restraint do? ।।33।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

 

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

 

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – तृतीय अध्याय (32) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

तृतीय अध्याय

( अज्ञानी और ज्ञानवान के लक्षण तथा राग-द्वेष से रहित होकर कर्म करने के लिए प्रेरणा )

ये त्वेतदभ्यसूयन्तो नानुतिष्ठन्ति मे मतम्‌।

सर्वज्ञानविमूढांस्तान्विद्धि नष्टानचेतसः ।।32।।

मेरे मत अनुसार लोग वे द्वेष द्वंद जो रखते है

वे ही मूढ सफल न होते समझ स्वयं से डरते है।।32।।

भावार्थ :  परन्तु जो मनुष्य मुझमें दोषारोपण करते हुए मेरे इस मत के अनुसार नहीं चलते हैं, उन मूर्खों को तू सम्पूर्ण ज्ञानों में मोहित और नष्ट हुए ही समझ॥32॥

 

But those who carp at My teaching and do not practice it, deluded in all knowledge and devoid of discrimination, know them to be doomed to destruction. ।।32।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – तृतीय अध्याय (31) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

तृतीय अध्याय

( अज्ञानी और ज्ञानवान के लक्षण तथा राग-द्वेष से रहित होकर कर्म करने के लिए प्रेरणा )

 

ये मे मतमिदं नित्यमनुतिष्ठन्ति मानवाः ।

श्रद्धावन्तोऽनसूयन्तो मुच्यन्ते तेऽति कर्मभिः ।।31।।

 

श्रद्धा रख जो ,दोष दृष्टि तज,सदा कर्म निज करते है

मेरे मत से दोष मुक्त हो वे निश्चिंत बरतते हैं।।31।।

      

भावार्थ :  जो कोई मनुष्य दोषदृष्टि से रहित और श्रद्धायुक्त होकर मेरे इस मत का सदा अनुसरण करते हैं, वे भी सम्पूर्ण कर्मों से छूट जाते हैं।।31।।

 

Those men  who  constantly  practise  this  teaching  of  Mine  with  faith  and  without caviling, they too are freed from actions. ।।31।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – तृतीय अध्याय (30) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

तृतीय अध्याय

( अज्ञानी और ज्ञानवान के लक्षण तथा राग-द्वेष से रहित होकर कर्म करने के लिए प्रेरणा )

 

मयि सर्वाणि कर्माणि सन्नयस्याध्यात्मचेतसा ।

निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वरः ।।30।।

 

मुझमें हो अध्यात्म चित्त तू कर्म सभी मम अर्पण कर

आशा,ममता त्याग दुःख तज युद्ध के लिेये समर्पण कर।।30।।

 

भावार्थ :  मुझ अन्तर्यामी परमात्मा में लगे हुए चित्त द्वारा सम्पूर्ण कर्मों को मुझमें अर्पण करके आशारहित, ममतारहित और सन्तापरहित होकर युद्ध कर॥30॥

 

Renouncing all actions in Me, with the mind centred in the Self, free from hope and egoism, and from (mental) fever, do thou fight.

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – तृतीय अध्याय (29) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

तृतीय अध्याय

( अज्ञानी और ज्ञानवान के लक्षण तथा राग-द्वेष से रहित होकर कर्म करने के लिए प्रेरणा )

 

प्रकृतेर्गुणसम्मूढ़ाः सज्जन्ते गुणकर्मसु ।

तानकृत्स्नविदो मन्दान्कृत्स्नविन्न विचालयेत्‌ ।।29।।

 

प्रकृति गुण जो नहीं समझते वही लिप्ति वश होते है

मंद बुद्धि अज्ञानी जन को,समझदार सह ढोते है।।29।।

      

भावार्थ :  प्रकृति के गुणों से अत्यन्त मोहित हुए मनुष्य गुणों में और कर्मों में आसक्त रहते हैं, उन पूर्णतया न समझने वाले मन्दबुद्धि अज्ञानियों को पूर्णतया जानने वाला ज्ञानी विचलित न करे।।29।।

 

Those deluded by the qualities of Nature are attached to the functions of the qualities. A man of perfect knowledge should not unsettle the foolish one of imperfect knowledge. ।।29।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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मो ७०००३७५७९८

 

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

 

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – तृतीय अध्याय (28) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

तृतीय अध्याय

( अज्ञानी और ज्ञानवान के लक्षण तथा राग-द्वेष से रहित होकर कर्म करने के लिए प्रेरणा )

तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयोः ।

गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते ।।28।।

गुण कर्मो के तत्व जानने वाले, न्यारे रहते है

निरासक्त रह, प्रकृति कार्य करती है ऐसा कहते हैं।।28।।

भावार्थ :  परन्तु हे महाबाहो! गुण विभाग और कर्म विभाग (त्रिगुणात्मक माया के कार्यरूप पाँच महाभूत और मन, बुद्धि, अहंकार तथा पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, पाँच कर्मेन्द्रियाँ और शब्दादि पाँच विषय- इन सबके समुदाय का नाम ‘गुण विभाग’ है और इनकी परस्पर की चेष्टाओं का नाम ‘कर्म विभाग’ है।) के तत्व (उपर्युक्त ‘गुण विभाग’ और ‘कर्म विभाग’ से आत्मा को पृथक अर्थात्‌निर्लेप जानना ही इनका तत्व जानना है।) को जानने वाला ज्ञान योगी सम्पूर्ण गुण ही गुणों में बरत रहे हैं, ऐसा समझकर उनमें आसक्त नहीं होता। ।।28।।

 

But he who knows the truth, O mighty-armed Arjuna, about the divisions of the qualities and their functions, knowing that the Gunas as senses move amidst the Gunas as the sense-objects,  is not attached. ।।28।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – तृतीय अध्याय (27) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

तृतीय अध्याय

( अज्ञानी और ज्ञानवान के लक्षण तथा राग-द्वेष से रहित होकर कर्म करने के लिए प्रेरणा )

प्रकृतेः क्रियमाणानि गुणैः कर्माणि सर्वशः ।

अहंकारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते ।।27।।

प्राकृत गुण सूत्रों के द्वारा कर्म सभी खुद होते है

किंतु मूढ़ जन अंहकार से कहते वे यह करते हैं।।27।।

 

 

भावार्थ :  वास्तव में सम्पूर्ण कर्म सब प्रकार से प्रकृति के गुणों द्वारा किए जाते हैं, तो भी जिसका अन्तःकरण अहंकार से मोहित हो रहा है, ऐसा अज्ञानी ‘मैं कर्ता हूँ’ ऐसा मानता है ।।27।।

 

All actions are wrought in all cases by the qualities of Nature only. He whose mind is deluded by egoism thinks: “I am the doer” ।।27।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – तृतीय अध्याय (26) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

तृतीय अध्याय

( अज्ञानी और ज्ञानवान के लक्षण तथा राग-द्वेष से रहित होकर कर्म करने के लिए प्रेरणा )

 

न बुद्धिभेदं जनयेदज्ञानां कर्मसङि्गनाम्‌।

जोषयेत्सर्वकर्माणि विद्वान्युक्तः समाचरन्‌ ।।26।।

 

अज्ञानी की लिप्ति बुद्धि में ज्ञानी कभी न भेद करें

स्वतः समत्तव बुद्धि से अपने निश्चित सारे कर्म करें।।26।।

 

भावार्थ :  परमात्मा के स्वरूप में अटल स्थित हुए ज्ञानी पुरुष को चाहिए कि वह शास्त्रविहित कर्मों में आसक्ति वाले अज्ञानियों की बुद्धि में भ्रम अर्थात कर्मों में अश्रद्धा उत्पन्न न करे, किन्तु स्वयं शास्त्रविहित समस्त कर्म भलीभाँति करता हुआ उनसे भी वैसे ही करवाए।।26।।

 

Let no wise man unsettle the minds of ignorant people who are attached to action; he should engage them in all actions, himself fulfilling them with devotion. ।।26।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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मो ७०००३७५७९८

 

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

 

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ Stooping for a noble cause – a blog from prison! ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer,  Author, Blogger, Educator and Speaker.)

☆ Stooping for a noble cause – a blog from prison!

New Delhi, 17 April 2015, 11:00 AM: We reported at the Delhi Prison Headquarters and were straightaway driven to the adjoining Tihar Jail – the biggest prison complex in Asia.

We were first taken to Jail no. 6 which is a prison meant exclusively for women inmates and under-trials. At the entrance, we were frisked and our wallets and mobiles were deposited.

Being a law-abiding citizen all through my life, I never ever imagined that I would land in a prison some day. It felt a bit awkward stooping and getting in through the small gate that I had only seen in movies.

Within a few minutes, we were before the superintendent and warden of the jail. We were taken to a hall where around 200 lady prisoners were present. They belonged to all ages – young, middle-aged and old.

Looking at their plight, I felt deep empathy for them and found it difficult to control my tears. But they were full of life and hope. There were no signs of despair in their eyes; at least they pretended to be normal.

At this point, I must disclose the purpose of our visit and also tell you who all were with me or, rather, with whom I was there.

We were here for a noble purpose – to add a dash of cheer and happiness in the routine life of the prisoners and bring some smile on their faces.

I was in the august company of Dr Madan Kataria and Madhuri Kataria, the founders of Laughter Yoga, along with Dr Santosh Sahi who has done commendable service at the prison, and some members of the Delhi Laughter Club and my colleagues from theLaughterYogaUniversity,Bangalore.

Within minutes, there were echoes of “hoho hahaha” and “very good. very good, yay!” reverberating within the walls of the prison. We could sense a silent gratitude in the eyes of the inmates for bringing a shower of relief and some respite from the frightening monotony of the closed walls.

Bidding good-bye to them with a heavy heart, we moved to the adjacent prison meant for the adolescents. The boys there were all between 18 and 21 years of age.

A first glance at them and I observed an eerie look in their eyes. I felt sad for them. They should be studying somewhere but suddenly find that their future is quite hazy and uncertain.

This age group, especially with a closed mindset, is sometimes a hard nut to crack.

Dr Madan Kataria started with clapping and breathing exercises. Soon, they were laughing like all other kids – the child-like playfulness had re-appeared and they were laughing whole heartedly.

I guided them to hearty laughter, age laughter and lion laughter. The response was immense. Vinayaka thrilled them with his banana trick.

Ohh, the prison was brimming with energy and joy. The eerie look in the eyes of the boys had vanished and they appeared like little kids.

I could hardly hold my tears!

******

P.S. – I must express my deep gratitude, on behalf of the entire laughter yoga team that visited the prison, to the wonderful staff at the prison who served us tea, pakoras and good lunch with so much care and concern, and to the senior officers of the jail who made our visit free of any hassles and duly released us in the evening without bail.

 

Jagat Singh Bisht

Founder: LifeSkills

Seminars, Workshops & Retreats on Happiness, Laughter Yoga & Positive Psychology.
Speak to us on +91 73899 38255
[email protected]

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – तृतीय अध्याय (25) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

तृतीय अध्याय

( अज्ञानी और ज्ञानवान के लक्षण तथा राग-द्वेष से रहित होकर कर्म करने के लिए प्रेरणा )

 

सक्ताः कर्मण्यविद्वांसो यथा कुर्वन्ति भारत ।

कुर्याद्विद्वांस्तथासक्तश्चिकीर्षुर्लोकसंग्रहम् ।।25।।

 

हे भारत! आसक्त भाव से ज्यों अज्ञानी करते है

वैसे ही आसक्ति छोडकर ज्ञानी कर्म बरतते है।।25।।

      

भावार्थ :  हे भारत! कर्म में आसक्त हुए अज्ञानीजन जिस प्रकार कर्म करते हैं, आसक्तिरहित विद्वान भी लोकसंग्रह करना चाहता हुआ उसी प्रकार कर्म करे।।25।।

 

As the ignorant men act from attachment to action, O Bharata (Arjuna), so should the wise act without attachment, wishing the welfare of the world! ।।25।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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