आध्यात्म / Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – प्रथम अध्याय (11) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रथम अध्याय

अर्जुनविषादयोग

( दोनों सेनाओं के प्रधान शूरवीरों की गणना और सामर्थ्य का कथन )

अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिताः ।

भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्तः सर्व एव हि ।।11।।

अपने अपने अयन में आप सभी तैनात

भीष्म पितामह की सुनें,रक्षा हित सब बात।।11।।

भावार्थ : इसलिए सब मोर्चों पर अपनी-अपनी जगह स्थित रहते हुए आप लोग सभी निःसंदेह भीष्म पितामह की ही सब ओर से रक्षा करें॥11॥

“Therefore, do ye all, stationed in your respective positions in the several divisions of the army, protect Bhishma alone”.

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

 

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)




आध्यात्म / Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – प्रथम अध्याय (10) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रथम अध्याय

अर्जुनविषादयोग

( दोनों सेनाओं के प्रधान शूरवीरों की गणना और सामर्थ्य का कथन )

अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम्‌।

पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम्‌।।10।।

है विशाल अपना कटक भीष्माधीन पर्याप्त

उनकी सेना भीम की रक्षा में अपर्याप्त।।10।।

भावार्थ :  भीष्म पितामह द्वारा रक्षित हमारी वह सेना सब प्रकार से अजेय है और भीम द्वारा रक्षित इन लोगों की यह सेना जीतने में सुगम है॥10॥

 

“This  army  of  ours  marshalled  by  Bhishma  is  sufficient,  whereas  their  army, marshalled by Bhima, is insufficient. ।।10।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

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(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)




आध्यात्म / Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – प्रथम अध्याय (9) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रथम अध्याय

अर्जुनविषादयोग

( दोनों सेनाओं के प्रधान शूरवीरों की गणना और सामर्थ्य का कथन )

 

अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्तजीविताः ।

नानाशस्त्रप्रहरणाः सर्वे युद्धविशारदाः ।।9।।

अन्य अनेकों वीर वर , मरने को तैयार

मेरे हित कई शस्त्रों के चालन में होशियार।।9।।

भावार्थ :  और भी मेरे लिए जीवन की आशा त्याग देने वाले बहुत-से शूरवीर अनेक प्रकार के शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित और सब-के-सब युद्ध में चतुर हैं॥9॥

 

And also many other heroes who have given up their lives for my sake, armed with various weapons and missiles, all well skilled in battle. ।।9।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

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आध्यात्म / Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – प्रथम अध्याय (8) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रथम अध्याय

अर्जुनविषादयोग

( दोनों सेनाओं के प्रधान शूरवीरों की गणना और सामर्थ्य का कथन )

भवान्भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिञ्जयः ।

अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च ॥

आप,भीष्म,कृप,कर्ण,सब अति उत्कृष्ट आधार

अश्वत्थामा,सोम दत्ति औ” विकर्ण सरदार।।8।।

 

भावार्थ :  आप-द्रोणाचार्य और पितामह भीष्म तथा कर्ण और संग्रामविजयी कृपाचार्य तथा वैसे ही अश्वत्थामा, विकर्ण और सोमदत्त का पुत्र भूरिश्रवा ॥8॥

 

“Thyself and Bhishma, and Karna and Kripa, the victorious in war; Asvatthama, Vikarna, and Jayadratha, the son of Somadatta. ॥8॥

 

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आध्यात्म / Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – प्रथम अध्याय (7) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रथम अध्याय

अर्जुनविषादयोग

( दोनों सेनाओं के प्रधान शूरवीरों की गणना और सामर्थ्य का कथन )

 

अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम ।

नायका मम सैन्यस्य सञ्ज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते ॥

कौरव सेना का वर्णन-

अपने पक्ष जो प्रमुख हैं,उन्हें सुनें व्दिज श्रेष्ठ

निज सेना के नायकों में , जो परम् विशिष्ट।।7।।

 

भावार्थ :  हे ब्राह्मणश्रेष्ठ! अपने पक्ष में भी जो प्रधान हैं, उनको आप समझ लीजिए। आपकी जानकारी के लिए मेरी सेना के जो-जो सेनापति हैं, उनको बतलाता हूँ॥7॥

 

“Know also,  O  best  among  the  twice-born,  the  names  of  those  who  are  the  most distinguished amongst ourselves, the leaders of my army! These I name to thee for thy information.॥7॥

 

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आध्यात्म / Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – प्रथम अध्याय (4-6) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रथम अध्याय

अर्जुनविषादयोग

( दोनों सेनाओं के प्रधान शूरवीरों की गणना और सामर्थ्य का कथन )

 

अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि ।

युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथः ।।4।।

 

भीमार्जुन सम वीर है , रण में शूर महान

ध्रुपद विराट औ सात्यकी ,धनुधर कुशल समान।।4।।

 

धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान्‌।

पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैब्यश्च नरपुङवः ।।5।।

 

धृष्टकेतु,चेकितान है, काशिराज बलवान

पुरूजित,कुंतीभोज, सब नर श्रेष्ठ,शैव्य समान।।5।।

 

युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान्‌।

सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः ।।6।।

 

युधामन्यु सा पराक्रमी उतमौजा बलवान

अभिमन्यु व द्रौपदी सुत सब रथी महान।।6।।

 

भावार्थ :  इस सेना में बड़े-बड़े धनुषों वाले तथा युद्ध में भीम और अर्जुन के समान शूरवीर सात्यकि और विराट तथा महारथी राजा द्रुपद, धृष्टकेतु और चेकितान तथा बलवान काशिराज, पुरुजित, कुन्तिभोज और मनुष्यों में श्रेष्ठ शैब्य, पराक्रमी युधामन्यु तथा बलवान उत्तमौजा, सुभद्रापुत्र अभिमन्यु एवं द्रौपदी के पाँचों पुत्र- ये सभी महारथी हैं॥4-6॥

 

4. “Here are heroes, mighty archers, equal in battle to Bhima and Arjuna, Yuyudhana, Virata and Drupada, of the great car (mighty warriors),

5. “Drishtaketu, Chekitana and the valiant king of Kasi, Purujit, and Kuntibhoja and Saibya, the best of men,

6. “The strong Yudhamanyu and the brave Uttamaujas, the son of Subhadra (Abhimanyu, the son of Arjuna), and the sons of Draupadi, all of great chariots (great heroes)

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

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आध्यात्म / Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – प्रथम अध्याय (3) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रथम अध्याय

अर्जुनविषादयोग

( दोनों सेनाओं के प्रधान शूरवीरों की गणना और सामर्थ्य का कथन )

पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्‌।

व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता ॥

दुर्योधन ने कहा (पांडव सेना का वर्णन)

योग्य शिष्य,गुरू आपके द्रुपद पुत्र के हाथ

व्यूह रचित पांडवों की ,सेना देखें नाथ।।3।।

भावार्थ :  हे आचार्य! आपके बुद्धिमान्‌शिष्य द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न द्वारा व्यूहाकार खड़ी की हुई पाण्डुपुत्रों की इस बड़ी भारी सेना को देखिए॥3॥

Behold,  O  Teacher,  this  mighty  army  of  the  sons  of  Pandu,  arrayed  by  the  son  of Drupada, thy wise disciple! ॥3॥

 

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आध्यात्म / SPIRITUAL – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – प्रथम अध्याय (2) – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रथम अध्याय

अर्जुनविषादयोग

( दोनों सेनाओं के प्रधान शूरवीरों की गणना और सामर्थ्य का कथन )

संजय उवाच

दृष्टवा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा ।

आचार्यमुपसंगम्य राजा वचनमब्रवीत्‌॥

संजय ने कहा-

पांडव सेना व्यूह रत दुर्योधन ने देख

गुरू द्रोण के पास जा बोला बचन विशेष।।2।।

भावार्थ :  संजय बोले- उस समय राजा दुर्योधन ने व्यूहरचनायुक्त पाण्डवों की सेना को देखा और द्रोणाचार्य के पास जाकर यह वचन कहा॥2॥

Sanjaya said:     Having seen the army of the Pandavas drawn up in battle array, King Duryodhana then

approached his teacher (Drona) and spoke these words ॥2॥

 

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ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

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(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)




आध्यात्म / Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – प्रथम अध्याय (1) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रथम अध्याय

अर्जुनविषादयोग

( दोनों सेनाओं के प्रधान शूरवीरों की गणना और सामर्थ्य का कथन )

धृतराष्ट्र उवाच

धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः ।

मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय ॥

धृतराष्ट्र ने (संजय से) पूछा-

धर्म क्षेत्र कुरूक्षेत्र में , युद्ध हेतु तैयार

मेरों का पांडवों से , संजय ! क्या व्यवहार  ।।1।।

भावार्थ :  धृतराष्ट्र बोले- हे संजय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में एकत्रित, युद्ध की इच्छावाले मेरे और पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया?॥1॥

1 Dhritarashtra said   ..  What did the sons of Pandu and also my people do when they had assembled together,

eager for battle on the holy plain of Kurukshetra, O Sanjaya?

 

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ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

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(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)




आध्यात्म / Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्राक्कथन

हर जन-मन पावन बने, सबका हो कल्याण

मानव मानव बन सके यह वर दो भगवान।।

वर्तमान समय विज्ञान का युग है। भौतिकवाद विश्व में परिव्याप्त है। विज्ञान ने छोटे बड़े विभिन्न यंत्रो और उनके सहयोग से नये-नये उत्पादों को गति दी है बहुमुखी विकास ने प्रखर बाजारवाद को जन्म दिया है। मानव की वृत्ति और रूचि में विकार हो गया है। धन अर्जन और उसके संग्रह तथा संवर्धन की मनोवृत्ति विकसित हुई है। धन का महत्व और प्रभाव बहुत बढ़ गया है पर दुर्भाग्य है कि इसी के परिणाम स्वरूप समाज का चारित्रिक पतन हुआ है। नौतिक मूल्यों का निरंतर ह्नास हो रहा है। धर्म निरपेक्ष राजनीति ने धर्म की उपेक्षा की है अतः धार्मिक भावना पर आघात हुआ हैं मन असंयमित और उच्छृंखल हो गया हैं। नई पीढ़ी के आचरण में पुराना धार्मिक भाव दिखाई नहीं देता । भड़कीले दिखावों की वृद्धि हुई है। सारा वातावरण बदला-बदला है। प्रेम, सहायोग, सद्भाव सहानुभूति, उदारता, ईमानदारी और कर्म निष्ठा के मूल्यवान मानवीय मूल्यों की आभा कम हुई है। स्वार्थ परता बढ़ी है। आर्थिक विषमता और वर्ग भेद को बढ़ावा मिला है। सारा विकास धन मूलक एवं एकांगी दिखता हैं परिस्थितियों में का बारीक विश्लेषण तो यही बताता है कि समाज में असमानता असंवेदनशीलता और असहयोग की भावना ने बढ़ती हुई भौतिक सुविधाओं के बीच भी, दुख और दैन्य को कम नहीं किया हैं उल्टे मानसिक वेदनायें बढ़ाई हंै और वे गुण जो यक्ति को व्यक्ति से जोड़ते है उनका सामयिक विकास नहीं हो पा रहा है। धार्मिक विचार जो मन में मृदुता और उदारता घोलते है, उनका घर परिवार में बड़े-बूढ़ों से जो शिक्षण और आदर्श मिलना चाहिये वह नहीं मिल पा रहा है। व्यस्तता के कारण समयाभाव ने जीवन सारणी को बिलकुल नया मोड़ दे दिया है। परिणामतः शारीरिक, मानसिक न सामाजिक विकृतियों ने जन्म ले लिया है। जीवन में सरलता के स्थान पर जटिलता बढ़ती जा रही है।

हमारा भारत जो कभी अपने मानवीय गुणों तथा धार्मिक आचरण और आध्यात्मिक चेतना के कारण अद्वितीय था और विश्व गुरू कहलाता था आज पश्चिम की अनावश्यक नकल के कारण अपनी उच्च चिंतन धारा से विमुख सा हो चला दिखाता है। हमारा देश आध्यात्मिक धरोहर का धनी है। वेदों, उपनिषदों के साथ गीता और रामायण सरीखे ऐसे उत्कृष्ट ग्रंथ है जिनमें मानवीय आदर्श और जीवन की कला का विशद विवेचन और मार्गदर्शन सुलभ है। ये विश्व साहित्य के अनुपम ग्रंथ है परन्तु आज अधिकांश लोगों का ध्यान उस और नहीं जाता। इनका अनुशीलन हमें जीवन में नयी दिशा दे सकता है। जो उनका पठन, चिन्तन, मनन करता है वह सदाचारी, सहिष्णु और विवेकी बनकर उत्थान कर सकता है। अपना और समाज का कल्याण कर सकता है तथा वास्तविक आनन्द प्राप्त कर सकता है। दोनों ंमें अनेकों ऐसे सरल सूत्र हैं जो मंत्रों की भाॅति सरलता से अपनाये जा सकते है और आदर्श जीवन जिया जा सकता है।

तुलसी दास जी कृत ‘‘रामचरित मानस‘‘ तो हिन्दी में है परन्तु योगिराज भगवान कृष्ण के मुख से उद्भूत गीता संस्कृत भाषा में है। बहुत से पढ़े लिखे विद्वान भी संस्कृत भाषा के ज्ञान के अभाव में उसे पढ़ और समझ नहीं पाते। इसी दृष्टि से मेरे मन में उसका हिन्दी में श्लोकशः सरल अनुवाद उपलब्ध करने का भाव जगा।

ईश्वर की कृपा से अनुवाद बहुत अच्छा बन पड़ा है। प्रत्येक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी दिया गया है,  जिससे हर कोई पढ़ सके समझ सके, और गीता के मूल पाठ सा आनन्द लेते हुये चिन्तन-मनन कर सके , व यह वैश्विक रूप से उपयोगी पुस्तक बन सके . मेरे पुत्र विवेक रंजन श्रीवास्तव ने कृति को इस स्वरूप में प्रस्तुत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

मुझे विश्वास है कि सुधी पाठक कम से कम उत्सुकता वश इस गीतानुवाद को पढ़कर लाभान्वित हो सकेंगे। कुछ थोड़े पाठक भी यदि इस से लाभ पा सके तो मैं अपने श्रम को सफल समझूंगा।

जन साधारण से मेरा सादर विनम्र निवेदन है कि गीता व रामायण सरीखे पवित्र अद्धुत हितकारी ग्रंथों का आत्मशुद्धि और शांति के लिये प्रतिदिन समय निकाल कर पारायण अवश्य करें। ये सदाचार और आनंद देने वाले विश्व स्तरीय साहित्यिक ग्रंथ है। अस्तु।

 प्रो चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विद्ग्ध‘

              (सेवानिवृत्त-प्राध्यापक)

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

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(कल से हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

(हम गुरुवर प्रो चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विद्ग्ध‘  एवं  उनके सुपुत्र श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव जी के विशेष आभारी हैं जिन्होने उपरोक्त ग्रंथ 

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