मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ श्रीमहिषासुरमर्दिनी स्तोत्र – भाग 3 (मूळ संस्कृत स्तोत्र व त्याचा मराठी भावानुवाद) ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री ☆

डाॅ. निशिकांत श्रोत्री 

? इंद्रधनुष्य ?

☆ श्रीमहिषासुरमर्दिनी स्तोत्र – भाग 3 (मूळ संस्कृत स्तोत्र व त्याचा मराठी भावानुवाद) ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री  ☆

(रचैता : शंकराचार्य  — वृत्त : दुसरी सवाई) 

करमुरलीरव वीजितकूजित लज्जितकोकिल मञ्जुमते

मिलितपुलिन्द मनोहरगुञ्जित रञ्जितशैल निकुञ्जगते ।

निजगणभूत महाशबरीगण सद्गुणसम्भृत केलितले

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१५॥ 

 

मधुर सुरांनि तुझी मुरली  करिते पिकद्विज  लज्जित  कंठा 

मधुर तुझा घुमतो स्वर पर्वतकंदर गात पुलींद पहा

शबर कुळातिल सद्गुणि चारुसवे तव  खेळ कितीक रंगे 

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि मोहक पार्वति  सुकुंतले ||१५|| 

कटितटपीत दुकूलविचित्र मयुखतिरस्कृत चन्द्ररुचे

प्रणतसुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुलसन्नख चन्द्ररुचे

जितकनकाचल मौलिमदोर्जित निर्भरकुञ्जर कुम्भकुचे

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१६॥ 

 

झगमगते कटिलाच  पितांबर  चंद्र चंदेरि झळाळि तया 

मुकुटमणीहि  असूरसुरांचे झळाळित पादनखांनि तुझ्या

नगशिखरे गजशीर्ष उरोज तुझे  बघुनी लपुनी बसले 

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि मोहक पार्वति  सुकुंतले ||१६|| 

 

विजितसहस्रकरैक सहस्रकरैक सहस्रकरैकनुते

कृतसुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनुसुते ।

सुरथसमाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरते ।

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१७॥ 

 

सहस्र करांनि सहस्रअसूरा रणातसहस्रे विजीत जशी

असूर वधीसि ग तारकसूर रिपूसि जिवा प्रसवूनी उमे

सुरथ नृपासि समाधिस  वैश्य प्रसन्न समान ग गिरीसुते  

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि मोहक पार्वति  सुकुंतले ||१७|| 

पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं सुशिवे

अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत् ।

तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१८॥ 

 

तव करुणापदि पद्मनिवास पवित्र  असूनि उमे कमले

पदकमलांचि करीत सेवा कमला निवास प्राप्त करे

पदकमलांवर  दृष्टि खिळोनि अत्युच्च पदासि सुप्राप्त करे  

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि मोहक पार्वति सुकुंतले ||१८|| 

 

कनकलसत्कलसिन्धुजलैरनुषिञ्चति तेगुणरङ्गभुवम्

भजति स किं न शचीकुचकुम्भतटीपरिरम्भसुखानुभवम् ।

तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवम्

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१९॥ 

 

सिंचन करीत सुवर्ण झळाळि जलासि तुझीच  भक्ती भवनी 

शचिकुचकुंभ करीत सुखी जणु इंद्र तसे सुख ही मिळुनी  

तव चरणी शरणागत गौरि महान सुतागिरि देवि  शिवे 

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि मोहक पार्वति सुकुंतले ||१९|| 

तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं सकलं ननु कूलयते

किमु पुरुहूतपुरीन्दु मुखी सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते ।

मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुत क्रियते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥२०॥ 

 

विमल शशीसम शुभ्र वदनानि वधीसि  हसूनि  दुरीत जना

नंदनवनातिल मोहकशा असुनी मज मोहविती न स्त्रिया    

शिवधन प्राप्ति कृपेविण कैसि  कधी न कुणास तशी मिळते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि मोहक पार्वति  सुकुंतले ||२०|| 

अयि मयि दीन दयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे

अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथानुमितासिरते ।

यदुचितमत्र भवत्युररीकुरुतादुरुतापमपाकुरुते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥२१॥

 

मजसि देई तव आशिष गे जननी नगपुत्रि दयाळु रमे 

कणव असेल नसेल तरीहि  अपाप करीसि ग शैलसुते

उचित तुला गमते करुनी जवळी मजलाचि धरी गिरिजे 

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि मोहक पार्वति  सुकुंतले ||२१||

— समाप्त —

भावानुवाद : डॉ. निशिकांत श्रोत्री 

९८९०११७७५४

[email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ श्रीमहिषासुरमर्दिनी स्तोत्र – भाग 2 (मूळ संस्कृत स्तोत्र व त्याचा मराठी भावानुवाद) ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री ☆

डाॅ. निशिकांत श्रोत्री 

? इंद्रधनुष्य ?

☆ श्रीमहिषासुरमर्दिनी स्तोत्र – भाग 2 (मूळ संस्कृत स्तोत्र व त्याचा मराठी भावानुवाद) ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री  ☆

(रचैता : रामकृष्ण —-वृत्त : दुसरी सवाई) 

धनुरनुषङ्ग रणक्षणसङ्ग परिस्फुरदङ्ग नटत्कटके

कनकपिशङ्ग पृषत्कनिषङ्ग रसद्भटशृङ्ग हताबटुके ।

कृतचतुरङ्ग बलक्षितिरङ्ग घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥८॥

 

कंगण लखालख होत जयांचि धनूसह शोभत  युद्धभुमी 

शर कनकासह शोणित होती रुधीर तयांवर लाल मणी   

करुनि निनाद बटू बनवूनि असूर वधीसि रिपूस रणी 

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि मोहक पार्वति  सुकुंतले ||८|| 

 

सुरललना ततथेयि तथेयि कृताभिनयोदर नृत्यरते

कृत कुकुथः कुकुथो गडदादिकताल कुतूहल गानरते ।

धुधुकुट धुक्कुट धिंधिमित ध्वनि धीर मृदंग निनादरते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥९॥

 

तत ततथा थयि ताल घुमोनि पदे थिरकीत तुझीच रमे  

कुकुथ गडाद ददीक रमून मनातुनि मृदुंग ताल घुमे 

रंगुनि धुधूकुट धुक्कुट मृदुंग धिंधिमिता करितात  स्वरे

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि मोहक पार्वति  सुकुंतले ||९|| 

 

जय जय जप्य जयेजयशब्द परस्तुति तत्परविश्वनुते

झणझणझिञ्झिमि झिङ्कृत नूपुरशिञ्जितमोहित भूतपते ।

नटित नटार्ध नटी नट नायक नाटितनाट्य सुगानरते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१०॥ 

 

जयजयकार करीतच  विश्व समस्त तुलाच प्रणाम करी

झणझणझीझिमि नाद करोनी भुताधिपतीसि मुदीत करी

नटनटिनायक अर्धनटेश्वर तल्लिन होउनि  नृत्य करे 

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि मोहक पार्वति  सुकुंतले ||१०|| 

 

अयि सुमनःसुमनःसुमनः सुमनःसुमनोहरकान्तियुते

श्रितरजनी रजनीरजनी रजनीरजनी करवक्त्रवृते ।

सुनयनविभ्रमर भ्रमरभ्रमर भ्रमरभ्रमराधिपते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥११॥ 

 

अग सुमने सुमनासह सूमन कांति तुझी लखलाति रणी 

रजनि तुझी रजनीधव जैसि रजनि प्रभा दिपवीत झणी  

भ्रमर जसे तव नेत्र पतीभ्रमरि भ्रमरास जशी भुलवी

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि मोहक पार्वति  सुकुंतले ||११|| 

 

सहितमहाहव मल्लमतल्लिक मल्लितरल्लक मल्लरते

विरचितवल्लिक पल्लिकमल्लिक झिल्लिकभिल्लिक वर्गवृते ।

शितकृतफुल्ल समुल्लसितारुण तल्लजपल्लव सल्ललिते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१२॥ 

 

मुकुल जशी दिसशी अतिकोमल वा सुमनासम भिल्ल दिसे

सुमन जसे दिसते रुधिरासम वर्ण तुझा अरुणासम गे

मदत करीत तुझी शुर येउनि साथ रणांगणि देत तुला     

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि मोहक पार्वति  सुकुंतले ||१२|| 

 

अविरलगण्ड गलन्मदमेदुर मत्तमतङ्गजराजपते

त्रिभुवनभूषण भूतकलानिधि रूपपयोनिधि राजसुते ।

अयि सुदतीजन लालसमानस मोहन मन्मथराजसुते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१३॥ 

 

अविरत वाहत मत्त गजा मद उल्हसिता जणु भाससि तू

बलरुप शोभित तीहि जगात कलावति शोभित राजसुते

मधुर सुहास्य अती तव  लाघवि सुतामदनासम  मोहविते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि मोहक पार्वति  सुकुंतले ||१३|| 

 

कमलदलामल कोमलकान्ति कलाकलितामल भाललते

सकलविलास कलानिलयक्रम केलिचलत्कल हंसकुले ।

अलिकुलसङ्कुल कुवलयमण्डल मौलिमिलद्बकुलालिकुले

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१४॥ 

 

कमलदलासम कोमल कांति विशाल सुभाल असून तुला

तव पदि डोलत  नाचत  हंस जणू भरुनी अति मोद भला

कमल  सुशोभित कुंतल मंडित साथ तयांस  बकूळ फुले  

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि मोहक पार्वति  सुकुंतले ||१४|| 

– क्रमशः भाग दुसरा

भावानुवाद : डॉ. निशिकांत श्रोत्री 

९८९०११७७५४

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≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ श्रीमहिषासुरमर्दिनी स्तोत्र – भाग 1 (मूळ संस्कृत स्तोत्र व त्याचा मराठी भावानुवाद) ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री ☆

डाॅ. निशिकांत श्रोत्री 

? इंद्रधनुष्य ?

☆ श्रीमहिषासुरमर्दिनी स्तोत्र – भाग 1 (मूळ संस्कृत स्तोत्र व त्याचा मराठी भावानुवाद) ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री  ☆

(रचैता : रामकृष्ण —-वृत्त : दुसरी सवाई) 

अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते

गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते ।

भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१॥ 

 

जय नगनंदिनी अवनिनंदिता धरणीमोदिते नंदिपुजे

गिरिशिखरावर विन्ध्यशिखावर वास करिशी रमणा ग रमे

भगवति हे निलकण्ठ पत्नी बहु कुटुंबिणी मनस्वीनि भजे 

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि मोहक पार्वति  सुकुंतले ||१|| 

सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते

त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते

दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥२॥ 

 

सुर वरदायिनि दुष्ट निवारिणि दुर्मुखप्रितीणि मोदरमे

त्रिभुवन पोषिसि शंकर तोषवि  कुकर्महारिणि घोषरमे

असुर निवारिणि देव संतोषिणि गर्वा हरिसी समुद्र सुते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि मोहक पार्वति  सुकुंतले ||२|| 

अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्ब वनप्रियवासिनि हासरते

शिखरि शिरोमणि तुङ्गहिमलय शृङ्गनिजालय मध्यगते ।

मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि कैटभभञ्जिनि रासरते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥३॥ 

 

जय जगदंब कदंब वनाचि निवासिनि हास्य तरंगतसे

हिमनग तुंगशिखाशृंगशिरि  निजालयि वास धीमगते 

 मधुमद ताडिणि कैटभ भंजिणि गोड मधूर संगीत लुभे

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि मोहक पार्वति  सुकुंतले ||३|| 

अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्ड वितुण्डितशुण्द गजाधिपते

रिपुगजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रमशुण्ड मृगाधिपते ।

निजभुजदण्ड निपातितखण्ड विपातितमुण्ड भटाधिपते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥४॥ 

 

गजशिर तोडुन शुंड विदारण  चंड पराक्रम हत्ति जिंके 

रिपुगजगंड विदारक शार्दुलआरुढ घोर बलाढ्य उमे

चंडविर तू  रिपुनायक हस्त  धरूनि वधीसि करानि लिले

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि मोहक पार्वति  सुकुंतले ||४|| 

अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते

चतुरविचार धुरीणमहाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते ।

दुरितदुरीह दुराशयदुर्मति दानवदुत कृतान्तमते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥५॥ 

 

जय रणरागिणि शत्रु वधोनि अतुल्य अमोघचि शक्ति धरी 

चतुर विचारि पती प्रमथासि सदाशिव होउन  दूत तुझे

असुर दुराचर मर्दिसि दुष्ट वधीसि रणांगणि शौर्य तुझे

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि मोहक पार्वति  सुकुंतले ||५||

अयि शरणागत वैरिवधुवर वीरवराभय दायकरे

त्रिभुवनमस्तक शुलविरोधि शिरोऽधिकृतामल शुलकरे ।

दुमिदुमितामर धुन्दुभिनादमहोमुखरीकृत दिङ्मकरे

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥६॥ 

  

अभय  तयासि पदी शरणागत  तू असुरस्त्रि उराशि धरी

त्रिभुवन पीडित दैत्य विनाशिनि शस्त्र  करी त्रिशुलासि धरी

दुमदुम नाद करूनि  दिशांसि तुझी दुंदुभी विजयात  सुरे  

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि मोहक पार्वति  सुकुंतले ||६|| 

अयि निजहुङ्कृति मात्रनिराकृत धूम्रविलोचन धूम्रशते

समरविशोषित शोणितबीज समुद्भवशोणित बीजलते ।

शिवशिवशुम्भ निशुम्भमहाहव तर्पितभूत पिशाचरते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥७॥

 

रुधिर बिजांसि समूळ  नाशिसी लपालप तू पिउनी रक्ता 

निकुंभ शुंभा बलि देउनि तू  शिव तोषविसी  गण आणि भुता

समर रणांगणि धुम्रसुरासि भस्म  करि  हुं करुनी असुरे 

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि मोहक पार्वति  सुकुंतले ||७|| 

– क्रमशः भाग पहिला

भावानुवाद : डॉ. निशिकांत श्रोत्री 

९८९०११७७५४

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≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ हनुमान चालीसा… ☆ प्रस्तुती – श्री सुनीत मुळे ☆

? इंद्रधनुष्य ?

☆ हनुमान चालीसा☆ प्रस्तुती – श्री सुनीत मुळे ☆

हनुमान चालीसा कधी लिहिली गेली हे तुम्हाला माहीत आहे का? नसेल तर जाणून घ्या. 

कदाचित काही लोकांनाच हे माहित असेल? सर्वजण पवनपुत्र हनुमानजींची पूजा करतात आणि हनुमान चालीसाही पाठ करतात. पण ते केव्हा लिहिले गेले, कुठे आणि कसे झाले हे फार कमी लोकांना माहीत असेल.

गोष्ट इ.स. १६०० ची आहे* हा काळ *अकबर आणि तुलसीदासजींच्या काळातील होता.

एकदा तुलसीदासजी मथुरेला जात होते. रात्र होण्यापूर्वी त्यांनी आग्रा येथे मुक्काम केला. लोकांना कळले की तुलसीदासजी आग्रा येथे आले आहेत. हे ऐकून त्यांच्या दर्शनासाठी लोकांची झुंबड उडाली.

सम्राट अकबराला जेव्हा ही गोष्ट कळली तेव्हा त्याने बिरबलाला विचारले की “ हा तुलसीदास कोण आहे?”

तेव्हा बिरबलाने अकबराला सांगितले की, “ त्याने रामचरितमानसचा अनुवाद केला आहे. हे रामभक्त तुलसीदासजी आहेत. मीही त्यांना पाहून आलो आहे, त्यांची एक अद्भुत आणि अलौकिक प्रतिमा आहे.” 

अकबरनेही त्यांना भेटण्याची इच्छा व्यक्त केली आणि “ मलाही त्यांना भेटायचे आहे,” असे सांगितले.

सम्राट अकबराने आपल्या सैनिकांची एक तुकडी तुलसीदासजींकडे पाठवली आणि तुलसीदासजींना सम्राटाचा निरोप दिला की ‘ तुम्ही लाल किल्ल्यावर उपस्थित रहा.’  हा संदेश ऐकून तुलसीदासजी म्हणाले की, “ मी प्रभू श्रीरामाचा भक्त आहे, माझा सम्राट आणि लाल किल्ल्याशी काय संबंध?” त्यांनी लाल किल्ल्यावर जाण्यास स्पष्ट नकार दिला.

हे प्रकरण सम्राट अकबरापर्यंत पोहोचल्यावर त्याला फार वाईट वाटले. आणि सम्राट अकबर रागाने लाल लाल झाला आणि त्याने तुलसीदासजींना बेड्या ठोकून लाल किल्ल्यावर आणण्याचा आदेश दिला. तरी बिरबलाने अकबराला असे न करण्याचा सल्ला दिला. पण अकबराला ते मान्य नव्हते, आणि तुळसीदासांना साखळदंडांनी बांधून आणण्याची आज्ञा केली.

तुलसीदासजींना साखळदंड घालून लाल किल्ल्यावर आणण्यात आले तेव्हा अकबर म्हणाला की “ तुम्ही करिष्माई व्यक्ती आहात, थोडा करिष्मा दाखवा आणि सुटका करुन घ्या .”

तुलसीदासजी म्हणाले-“ मी फक्त भगवान श्री रामचा भक्त आहे, जादूगार नाही, जो तुम्हाला काही करिष्मा दाखवू शकेल.”

हे ऐकून अकबर संतापला. आणि त्यांना बेड्या ठोकून अंधारकोठडीत टाकण्याचा आदेश दिला.

दुसऱ्या दिवशी लाखो माकडांनी मिळून आग्राच्या लाल किल्ल्यावर हल्ला करून संपूर्ण किल्ला उद्ध्वस्त केला.

लाल किल्ल्यावर सगळीकडे गोंधळ माजला होता, मग अकबराने बिरबलला बोलावून विचारले,” बिरबल काय चालले आहे?”

तेव्हा बिरबल म्हणाला, “महाराज, मी तुम्हाला आधीच सावध केले होते. पण तुम्ही सहमत झाला नाहीत. आणि आता करिश्मा बघायचा असेल तर बघा.”

अकबराने तुलसीदासांना ताबडतोब अंधारकोठडीतून बाहेर काढले.  आणि साखळ्या उघडल्या गेल्या.

तुलसीदासजी बिरबलाला म्हणाले की “ मला अपराधाशिवाय शिक्षा झाली आहे. मला अंधारकोठडीतील भगवान श्री राम आणि हनुमानजींची आठवण झाली. मी रडत होतो.आणि रडताना माझे हात स्वतःहून काहीतरी लिहीत होते. हे ४० –चतुर्भुज हनुमान जी यांच्या प्रेरणेने लिहिलेले.”

तुलसीदासजी तुरुंगातून सुटल्यावर म्हणाले, “ ज्याप्रमाणे हनुमानजींनी मला तुरुंगातील संकटातून बाहेर काढून मदत केली आहे, त्याचप्रमाणे जो कोणी संकटात सापडला आहे आणि हे पाठ करतो, त्याचे दुःख आणि सर्व संकटे दूर होतील. ती हनुमान चालीसा म्हणून ओळखली जाईल.”

अकबरला खूप लाज वाटली आणि त्याने तुलसीदासजींची माफी मागितली आणि त्यांना पूर्ण आदर आणि पूर्ण संरक्षण देऊन, लगेच मथुरेला पाठवले.

आज सर्वजण हनुमान चालिसाचे पठण करत आहेत. आणि या सर्वांवर हनुमानाची कृपा आहे. आणि सर्वांचे संकट दूर होत आहेत.—– म्हणूनच हनुमानजींना “संकट मोचन” असेही म्हणतात.

संग्राहक : श्री सुनीत मुळे 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ दृष्टांत…तांबड्या गणपती ☆ प्रस्तुती – सुश्री लता निमोणकर ☆

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☆ दृष्टांत… तांबड्या गणपती ☆ प्रस्तुती – सुश्री लता निमोणकर

श्री गजानन विजय ग्रंथानुसार श्री निमोणकर हे महाराष्ट्रात राहणारे गृहस्थ होते व यांना योगाभ्यास यावा अशी इच्छा होती. अनेक ठिकाणी फिरून अनेक लोकांना भेटून त्यांची इच्छा पूर्ण झाली नाही तेव्हा ते हताश झाले व आपल्या दैवाला दोष देऊ लागले. तेव्हा अहमदनगरजवळ इगतपुरी तालुक्यात कपिलधारा नावाचे तीर्थ आहे, त्या तीर्थाजवळ त्यांना एक योगी भेटले.. त्या योग्यांनी त्यांना एक तांबडा खडा दिला व सांगितलं की या तांबड्या खड्यासमोर रोज योगाभ्यास करत जा….  असं म्हणून ते योगी गुप्त झाले. निमोणकरांना हुरहुर वाटायला लागली की हे योगी कोण होते, यांचं नाव गाव काय, तांबडा खडा दिला याचा अर्थ काय… काही दिवसांनी त्यांना तेच योगी पुन्हा भेटले.   निमोणकरांनी विचारलं की “ त्या दिवशी आपली भेट झाली, पण आपण आपलं नावगाव सांगितलं नाही,” तेव्हा महाराज थोडंसं रागवून त्यांना म्हणाले, “ तुला तांबडा खडा दिला होता त्यातच माझं नाव आहे. हा लाल रंगाचा दगड नर्मदेत सापडतो आणि याला नर्मद्या गणपती असे म्हणतात आणि म्हणून माझं नाव गणपती हे मी तुला सुचित केलं होतं. पण तुला ते समजलं नाही. म्हणून आता तुला आदेश आहे या खड्याच्या प्रभावाने तुला योगाभ्यास येईल. हा खडा आपल्या देवघरात ठेवून त्याच्यासमोर योगाभ्यास करत जा”… 

एवढे कथानक, एवढा दृष्टांत श्री गजानन विजयामध्ये आहे. परंतु या पुढील कथानक हे आम्हाला निमोणकरांच्या नातसुनेने सांगितले. ती म्हणाली की तेव्हा घरातल्या कोणालाही हे माहिती नव्हतं की यांच्याजवळ म्हणजेच निमोणकर या गृहस्थाजवळ हा तांबडा खडा आहे. ते काहीतरी नेहमी आपल्या कमरेतल्या धोतरात बांधून ठेवायचे.   बाह्य अंगावरून काही कोणाला कळत नव्हतं. कालमानाप्रमाणे काही दिवसांनी वार्धक्याने त्यांचा मृत्यू झाला. त्यावेळेस ते अहमदाबादकडे होते. गृहस्थ असल्यामुळे तिथेच त्यांना अग्निसंस्कार करण्यात आला. तो अग्निसंस्कार होत असताना कमरेच्या वरचा व खालचा भाग जळून राख झाला पण कमरेचा तेवढा भाग– त्याला अग्नी लागत नव्हता. तेव्हा सगळे आश्चर्यचकित झाले व विचार करू लागले की असं का झालं असेल? तेव्हा त्यांच्या मुलाला असं आठवलं की वडील काहीतरी आपल्या धोतराच्या सोग्यात बांधायचे. ते जर आपण काढलं तर कदाचित या भागाला सुद्धा अग्नी लागेल. तेव्हा बास घेऊन तो तांबडा खडा काढला गेला व लगेच त्या भागाला अग्नीस्पर्श झाला. तो तांबडा खडा आणि काही वस्तू त्यांनी अनेक वर्ष पेटीमध्ये जपून ठेवल्या. काही वर्षांनी एक अधिकारी गृहस्थ त्यांना भेटले.  निमोणकरांच्या मुलाला  त्यांनी असं सांगितलं की ‘ तुमच्या पेटीत तुम्ही काहीतरी कुलूप लावून ठेवलेलं आहे, ते  आपण बाहेर काढा व पूजा करा.’ तेव्हा त्यांनी पुन्हा पेटी उघडून तांबडा खडा काढला आणि रोज त्याची पूजा करायला लागले. असा हा ‘ तांबड्या गणपती ‘ ज्याला ‘ नर्मदा गणपती ‘ सुद्धा म्हणतात, तो आज ४० वर्ष त्यांच्या नातवाकडे आहे, जे रतलामला वास्तव्य करून आहेत. असा हा प्रासादिक गणपती.  महाराजांच्या कृपेने आम्हा सर्वांना त्याचे दर्शन घडले . जे लोक नाही येऊ शकले त्यांना सुद्धा दर्शन घडावं या हेतूने ही कथा व हा फोटो.  

– जय गजानन –

माहिती संग्राहिका : लता निमोणकर

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ आनंदाची गंगोत्री…अज्ञात ☆ प्रस्तुती – श्री शामसुंदर महादेवराव धोपटे ☆

श्री शामसुंदर महादेवराव धोपटे

? इंद्रधनुष्य ? 

☆ आनंदाची गंगोत्री…अज्ञात ☆ प्रस्तुती – श्री शामसुंदर महादेवराव धोपटे ☆

बागेत रोजच्याप्रमाणे सकाळी फिरायला गेलेलो मी आणि माझी बायको एका बाकावर बसलो होतो. थोडावेळ निवांत गप्पा मारल्यानंतर ती म्हणाली की ती आयुष्यात आनंदी नाही आहे. माझा विश्वास बसेना. कारण लौकिकदृष्ट्या तिच्याकडे सर्व काही उत्तम आहे. मी विचारले, “असे का वाटते तुला? “

” मला माहित नाही. सगळेजण म्हणतात की माझ्याकडे सर्व काही आहे, पण मला आतून आनंदी वाटत नाही आहे.”

—आता मी स्वतःला विचारू लागलो की ‘ खरच मी स्वतः आनंदी आहे का?’

काही वेळानंतर मला माझा आतला आवाज सांगू लागला – ‘ नाही! मला सुद्धा आनंदी वाटत नव्हते.’

माझ्यासाठी हा एक धक्का होता. मी त्या दिशेने विचार करण्यास सुरुवात केली, असे का वाटत आहे ?—-

आता मी या गोष्टीचा शोध घेण्याचे ठरवले. काही लेख वाचले, तज्ञ व्यक्तींशी बोललो, पण काहीच मेळ बसत नव्हता. शेवटी माझ्या एका डॉक्टर मित्राने मला एक उत्तर दिले, ज्यामुळे माझे समाधान झाले.

त्याने जे सांगितले ते मी अमलात आणले, आणि आता मी म्हणू शकतो की मी पूर्वीपेक्षा कितीतरी अधिक आनंदी मनुष्य आहे.

—-तो म्हणाला, आपल्या शरीरात चार संप्रेरके असतात यांच्यामुळे आपल्याला आनंदी, प्रसन्न वाटत राहते-

१. एंडॉर्फिंस

२. डोपामाईन

३. सेरोटोनिन

४. ऑक्सिटोसिन

आपण ही संप्रेरके समजून घेणे महत्त्वाचे आहे, कारण आपल्याला आनंदी राहण्यासाठी या चारही संप्रेरकांची गरज आहे.

इंडॉर्फिंस

–आपण जेव्हा व्यायाम करतो तेव्हा हे संप्रेरक तयार होते. हे संप्रेरक शरीराला वेदना सहन करण्यास आणि दुःखावर मात करण्यास मदत करते. मग आपण व्यायामाचा आनंद घेऊ लागतो, कारण इंडॉर्फिंस आपल्याला आनंदी वाटण्यास मदत करतात.

–हसणे हा इंडॉर्फिंस निर्मितीसाठी आणखी एक चांगला मार्ग आहे.

–आपल्याला दररोज तीस मिनिटे व्यायाम करणे किंवा काही तरी विनोदी वाचणे ऐकणे किंवा पाहणे हे पुरेसे इंडॉर्फिंस निर्मितीसाठी मदत करू शकते.

डोपामाइन

आपल्या जीवन यात्रेत आपण अनेक लहान मोठी कामे पार पाडत असतो आणि त्यामुळे कमी जास्त प्रमाणात डोपामाइन तयार होत असते.

– जेव्हा आपण केलेल्या कामाचे कौतुक कोणीतरी घरी किंवा कामाच्या ठिकाणी करते तेव्हा आपल्याला सार्थक आणि आनंदी वाटते, कारण तेव्हा शरीरात डोपामाइन तयार होत असते.

–यातून आपल्याला समजते की घरातील अनेक कामे करणाऱ्या आणि करतच राहणाऱ्या गृहिणींना अनेकदा निराश का वाटते.. कारण त्यांनी केलेल्या कामाचे कौतुक फार क्वचित केले जाते.  

–आपण जेव्हा काम करतो, पैसे मिळवतो, नवीन वस्तू खरेदी करतो तेव्हासुद्धा डोपामाइन तयार होते. आता आपल्याला समजले का, खरेदी केल्यानंतर आपल्याला इतके उत्साही का वाटते?

सेरोटोनिन

जेव्हा पण आपण इतरांच्या आनंदासाठी किंवा फायद्यासाठी काही करतो तेव्हा सेरोटोनिन तयार होते. जेव्हा आपण स्वार्थापलीकडे जाऊन निसर्गासाठी, समाजासाठी, इतर लोकांसाठी किंवा आप्तेष्टांसाठी काही कृती करतो, तेव्हा सिरोटोनिन तयार होते. एवढेच नव्हे तर इंटरनेटवर अथवा सामाजिक जीवनात इतरांना उपयुक्त अशी माहिती पुरवणे किंवा अशा प्रकारचे लिखाण करणे यामुळेसुद्धा सिरोटोनिन तयार होते.

— हे अशासाठी कारण आपण आपला बहुमूल्य वेळ इतरांना मदत करण्यासाठी खर्च करत असतो.

ऑक्सिटोसिन

हे तेव्हा तयार होते जेव्हा आपण कोणाशीही जवळीक साधतो, आपलेपणाने वागतो. 

–जेव्हा आपण आपल्या जवळच्या एखाद्या व्यक्तीला अलिंगन देतो तेव्हा ऑक्सिटोसिन तयार होते.  मुन्नाभाई सिनेमा मध्ये दाखवलेली जादू की झप्पी खरंच काम करते.   

–तसेच मैत्रीच्या भावनेने हात मिळवणे किंवा खांद्यावर हात ठेवणे यामुळेसुद्धा ऑक्सिटोसिन रिलीज होते.

 

तर मित्रांनो, खूपच सोपे आहे—

दररोज व्यायाम करून इंडॉर्फिंस मिळवा . 

छोट्या-मोठ्या पण अर्थपूर्ण अशा गोष्टी साध्य करून  डोपामाइन मिळवा.  

इतरांना मदत करून सर्वांशी चांगले वागून बोलून सेरोटोनिन  मिळवा .  

आणि आप्तेष्टांना बिलगून ऑक्सिटोसिन  मिळवा !

अशाप्रकारे तुम्ही आनंदी राहायला शिकलात, की तुम्हाला येणाऱ्या अडचणी किंवा आव्हानांना तुम्ही आत्मविश्‍वासाने सामोरे जाल.

आता आपल्याला समजले की उदास दिसणाऱ्या एखाद्या छोटुकल्याला किंवा चिमुरडीला आपण मिठीत घेण्याची गरज असते. 

आपला आनंद दिवसागणिक वाढवत नेण्यासाठी…

१. कोणतातरी खेळ खेळण्याची सवय लावून घ्या आणि खेळाचा आनंद  लुटा….  इन्डॉर्फिन

२. आपल्या आजूबाजूच्या लोकांचे छोट्या मोठ्या गोष्टींसाठी कौतुक करा. कौतुक करण्याची संधी कधीच दवडू नका…..  डोपामाइन

३. जे काही चांगले आपल्याकडे आहे ते इतरांनाही मिळावे यासाठी जमेल तितके प्रयत्न करा….  सेरोटोनिन

४. जवळच्या माणसांना विनासंकोच आलिंगन द्यायला शिका.  यातून मिळणारा आनंद हा वाटणाऱ्या संकोचापेक्षा कितीतरी पटींनी अधिक असतो…. ऑक्सिटोसिन

आनंदी राहा, मस्त जगा !

लेखक –  अज्ञात

संग्राहक – श्री शामसुंदर महादेवराव धोपटे

चंद्रपूर,  मो. 9822363911

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ सीट बेल्ट… श्री दिवाकर बुरसे ☆ संग्राहक – श्री अमोल अनंत केळकर ☆

श्री अमोल अनंत केळकर

? इंद्रधनुष्य ? 

☆ सीट बेल्ट… श्री दिवाकर बुरसे ☆ संग्राहक – श्री अमोल अनंत केळकर  ☆ 

कार चालविताना सुरक्षिततेचे नियम पाळा. 

काल टाटा सन्सचे माजी अध्यक्ष श्री सायरस मिस्त्री यांचा कार अपघातात दुर्देवी मृत्यू झाल्याची वार्ता सर्वांनी वाचली असेल. ते कारच्या मागच्या आसनावर सीट बेल्ट धारण न करता बसले होते.

मित्रहो, कारच्या मागच्या सीटवर बसणारासाठीही सीट बेल्टची सुविधा उपलब्ध करून देणे कार उत्पादकांना अनिवार्य आहे. ते देतातही. कार विकत घेताना आपण त्याचे पैसे देतो. तरीही हे बेल्ट मागे बसणारे सहसा वापरतच नाहीत असे निरीक्षण आहे.

अपघाताच्या वेळी मागे बसणारा ग्रॅव्हिटीच्या ४० पट वजनाने पुढे फेकला जातो. म्हणजे ८० किलो वजन असलेला माणूस ८०x४०=३२०० किलो वजनाने पुढील चालकावर कोसळतो. मागे बसणारे आणि  कार चालक यात गंभीरपणे दुखावले जातात. कदाचित त्यांचा मृत्यू ओढवतो. केवढा हा निष्काळजीपणा !  

म्हणून मित्रांनो, कारमधून प्रवास करताना ड्रायव्हर आणि मागे बसणाराने कटाक्षाने सीट बेल्ट लावले पाहिजेत. त्यात हलगर्जीपणा, निष्काळजीपणा करणे सर्व प्रवाश्यांच्या जिवावर बेतू शकते.

सीट बेल्ट वापरा, सुरक्षित प्रवास करा, ही ‘ यंत्रदासा ‘ची सर्व प्रवाशांना कळकळीची विनंती.

लेखक – श्री दिवाकर बुरसे, पुणे.

संग्राहक –  श्री अमोल अनंत केळकर

बेलापूर, नवी मुंबई, मो ९८१९८३०७७९

poetrymazi.blogspot.in, kelkaramol.blogspot.com

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ शास्त्रीय सत्य… ☆ संग्रहिका – सुश्री आनंदी केळकर

?इंद्रधनुष्य? 

☆ शास्त्रीय सत्य… ☆ संग्रहिका – सुश्री आनंदी केळकर ☆

 १. बायका पंचेंद्रियांचा वापर करताना डावा आणि उजवा या दोन्ही मेंदूंचा वापर एकाच वेळी करतात. पुरुष फक्त डावा मेंदू वापरतात. त्यामुळे एकाच वेळेस अनेकविध काम करण्याची क्षमता पुरुषांपेक्षा बायकांकडे जास्त आहे.

२. पूर्वीच्या काळी बायका घर संभाळणे, मुले, संकटांपासून संरक्षण अशी अनेक कामे एकाच वेळेस करायच्या. त्यामुळे उत्क्रांतीच्या टप्प्यात त्यांची peripheral vision तयार झाली. कारण सगळीकडे एकाच वेळी लक्ष द्यायचे असल्याने त्यांच्या डोळ्यातील बुब्बुळे जलद हालचाल करतात . पुरूषांच्या तुलनेत बायकांची बुब्बुळेआकाराने  लहान आणि डोळ्यांतील पांढरा भाग मोठा असतो. त्यामुळे पुरुषांच्या तुलनेत बायकांची नजर जास्तीत जास्त गोष्टी झटक्यात निरीक्षित करते. याउलट पुरुषांनी पूर्वी शिकारीचे काम केले आहे. त्यामुळे त्यांची tunnel vision तयार झाली. त्यांच्या बूब्बुळ्ळांची वेगाने हालचाल होत नाही. बायकांच्या तुलनेत हं ! driving साठी अशी  tunnel vision चांगली. तर जबाबदारीच्या किंवा मोठ्या कामांकरता बायकी नजर चांगली. 

३. बायकांच्या शरीरात अँक्सिटोसिनचे प्रमाण पुरुषांपेक्षा जास्त असते. त्यामुळे पुरुषांपेक्षा त्यांचे स्पर्शज्ञान चांगले असते.

४. पुरुषांचा मेंदू विश्रांती घेतो तेव्हा मेंदूचे 70% कार्य बंद असते. बायकांच्या मेंदूने विश्रांती घेतली तरी 90% कार्य सुरू असते. बोला आता, कोणाचा मेंदू किती active आहे ! दरवर्षी परीक्षांमध्ये बाजी मारणाऱ्या मुलींचे इथे उदाहरण देते. ……..

अजून काय सांगू ? गांधीजींनी म्हटले आहे, ‘ सत्याग्रहाच्या काळात पुरुषांपेक्षा जास्त सहनशक्ती स्त्रियांच्यात दिसून आली आहे.‘ — “रंग आणि नक्षीकाम यापलिकडेही आम्ही बरेच काही आहोत !!!! “ 

संग्राहिका : आनंदी केळकर 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ म्हातारपणी भारतातच का रहावं ? ☆ प्रस्तुती – सुश्री हेमा फाटक ☆

? इंद्रधनुष्य ?

☆ म्हातारपणी भारतातच का रहावं ? ☆ प्रस्तुती – सुश्री हेमा फाटक ☆ 

अमेरिकेला पाच महिने राहिल्यानंतर मनात आलेले विचार सहज पणे लिहावे असं वाटलं—- यात कोणाला काही सल्ले देण्याचा हेतू नाही. आमचे पाच महीने मजेत गेले पण कायम परदेशात रहायची वेळ आली तर काय? या संबंधी विचारांच वादळ उठलं.

आमच्या किटी गृपमधे ” म्हातारपणी मुलांकडे जाऊन रहावं” असा विचार मांडला गेला. मग परत नटसम्राट हे संपूर्ण नाटक आठवलं. हे नाटक म्हणजे काही फक्त  कल्पना विलास नव्हता. नटसम्राट या नाटकाचा माझ्यावर खूप प्रभाव आहे. या नाटकात तरूण आणि वृद्ध असं द्वंद्व आहे. हे नाटक मी तरूणपणी पाहिलं तेव्हा मला तरूणांचंच बरोबर असतं असं वाटलं, आणि आता मी लवकरच 58 होईन तेव्हा पण मला तरूणांचंच बरोबर असतं असं आजही वाटतंय. त्यामुळे असा प्रश्न मनात येतो की म्हातारपण काढण्यासाठी कोणता देश चांगला? मी जरी अजून ” तसा ” म्हातारा झालो नसलो, तरी विचार करून ठेवायला काय हरकत आहे? 

तरूणपणी परदेशात जरूर रहावं. भरपूर पैसे कमवावेत. पण साठी सत्तरीनंतर कुठे रहावं ?

” ते  ८० वर्षाचे गृहस्थ अमेरिकेत असतात सध्या त्यांच्या मुलीकडे ” हे भारतात ऐकलं की ऐकणाऱ्या भारतीयाला, ते मरण्यापूर्वीच जणू स्वर्गात गेलेत असा फील येतो. ” मोठा माणूस ! ” असं तो मनात म्हणतो. पण असं खरंच राहिलंय का ?——

एक जमाना होता की भारतात लाल गहू मिळायचा आणि मुंबई पुणे एवढ्या अंतरासाठी कधी कधी दहा तास लागायचे. नर्गीसला उपचारासाठी अमेरिकेत जावं लागायचं. आणि पाऊस पडला की अख्ख्या मुंबईत खड्डे पडायचे.

जुन्या काळात या दुर्व्यवस्थेमुळे म्हातारे काय…. तरुणांना पण भारत नकोसा वाटायचा.

पण आता नाही तसं….भारत बदललाय—-

म्हातारा माणूस म्हणून लागणाऱ्या आणि भारतात असणाऱ्या सुविधांकडे आता आपण बघू या.—-

दैनंदिन सुविधा

जमाना बदलला. Express ways आले. Foreign च्या गाड्या आल्या. Superspeciality hospitals आली

ओला उबर झोमॅटो स्विगी डंझो अमेझाॅन झेप्टो गीपे अरबन कंपनी वगैरेनी भारताचा स्वर्ग बनवला आहे. बटन दाबलं की काही क्षणात तुम्हाला आपण ठाकूर असल्याचा भास होतो, आणि गाववाले तुमची सेवा करून लुप्त होतात. अगदी माफक दरात. वस्तू नाही आवडली की परत घ्यायला दारात हजर.

अमेरिकेत अजूनही Door delivery नाही. असलीच तर फारच महाग असते. वस्तू आणायला जावी लागते. फर्नीचर स्वतः assemble करावं लागतं. शिवाय वस्तू परत करायची असेल तर गाडी काढून एका विशिष्ट पत्यावर वस्तू देऊन यावी लागते. तुमची गाडी तुम्हालाच धुवावी लागते, कपडयांना  इस्त्री स्वतःच करावी लागते. घराची साफसफाई, स्वैपाकानंतरची भांडी तुम्हालाच घासावी लागतात. अगदी एक कप चहासुद्धा आयता मिळत नाही. तरूणपणी हे ठीक आहे. पण म्हातारपणी असं काम होईल का ? तरूणपणी आपण काम करतो कारण म्हातारपणी आराम करता यावा म्हणून. मग आता म्हातारपणी सुद्धा काम काम आणि काम ?

प्रवासी सुविधा 

अमेरिकेची थंडी बघितली, आणि वसंत ग्रीष्म हे ॠतू पण बघितले. भारतात ३६५ दिवसांपैकी ३६० दिवस तरी हवा उबदार असते. बाहेर जाण्यासाठी कोणतीही नैसर्गिक विपदा वगैरे नसते. Occasional driver मागवून, ओला, उबर, रिक्षा वगैरेने सहज प्रवास करता येतो. हे मी खूप वय झालेल्या किंवा  driving न येणाऱ्यांसाठी लिहीत आहे. परदेशात हीच गोष्ट dependency निर्माण करते. बऱ्याच ठिकाणी public transport नसतो. मग घरात अडकून राहिल्यासारखं वाटू शकतं. प्रचंड थंडी असल्यामुळे घरात कपड्यांचा एक लेयर, घराबाहेर पडताना चार लेयर, परत गाडीत दोन लेयर आणि उतरताना चार लेयर असे सोपस्कार करत बसावं लागत. तरूणपणी याची चटकन सवय होते, पण म्हातारपणी movement स्लो होतात. आणि त्याचा त्रास होतो. थंडीचे सात महिने बाहेर वाॅक वगैरे करता येत नाही.  घरात सोय नसेल तर शरीराला चालतं ठेवण्यासाठी असलेला किमान व्यायाम कसा करणार ? भारतात धुळीने भरलेले रस्ते आहेत, किचाट आहे, गर्दी आहे, घाणेरड्या सवयी असलेले लोक आहेत. पण सगळा भारत काही घाणेरडा नाही…हे सहन करणं शक्य नाही का ? तेवढे एरियाज टाळणं शक्य नाही का ?

आरोग्याच्या तक्रारी 

भारतात X ray, sonography वगैरे OPD सुविधा सहज accessible असतात. त्यासाठी Dr वगैरेचं prescription लागत नाही.  पुन्हा त्याचे result normal असतील तर ते लगेच कळतं. “सगळं काही नाॅर्मल आहे” असं तो Technician च आपल्याला सांगतो. रिपोर्ट हातात ठेवतो. अमेरिकेत Specialist च्या उरावर परत डाॅलर घालून तुम्हाला तुम्ही नाॅर्मल असल्याचं ऐकाव लागतं.

भारतात दर तीन वर्षानी माफक दरात Full check up करता येतो. अमेरिकेत दाढ भरायला कमीत कमी हजार डाॅलर खर्च येतो—–यावरून इतर रोगांचा अंदाज करा. कॅनडा यूकेत वगैरे फ्री मेडिकल system आहे, पण आपल्याच भारतीयांनी ती abuse केली आहे त्यामुळे आता ती अतिशय निकृष्ठ आहे.

साठीनंतर अशी बरीच औषधं जी OTC नसतात, पण भारतात ती फार्मसीमधे ओळखीवर मिळतात. भारतात पुन्हा पुन्हा त्याच निदानासाठी आणि prescription साठी स्पेशालिस्टच्या उरावर शेकडो डाॅलर घालावे लागत नाही. त्यामुळे जीवन सुसह्य होतं. कधी कधी आपल्यालाच माहीत असतं की आपल्याला विशेष काही झालेलं नाही. काही औषधं केमिस्टकडून आणून पटकन बरं होता येतं. याउलट अमेरिकेत तुम्हाला तडफडत रहावं लागतं. कारण 

US मधे Prescription शिवाय औषधं मिळत नाहीत—Appointment शिवाय डाॅक्टर भेटत नाही— आणि Appointment लगेच मिळत नाही.—-आणि अगदी मरायला टेकल्याशिवाय emergency मधे घेत नाहीत. औषधं तर प्रचंड महाग. अगदी डाॅलरला रुपया समजलात तरी. परावलंबी झाल्यावर भारतात माणूस ठेवणं जास्त स्वस्त नाही का ?

उदरभरण

भारतात मनुष्यबळ सहज उपलब्ध आहे. एकटं असणाऱ्या म्हाताऱ्यांसाठी वेगवेगळे फूड options आहेत. स्वैपाकाला माणूस ठेवण्यापासून डबा आणण्यापर्यंत सोई आहेत. एखाद्या बाईला जरी स्वैपाकाची खूप आवड असली, तरी कधीतरी आयतं जेवायला द्यावं असं वाटतं. अमेरिकेत ते कसं करणार ? घरपोच काही मिळत नाही. घरगुती अन्न आणायचं तरी स्वतः गाडी काढून घ्यायला जावं लागतं. 

अर्थार्जन

कोणी कितीही उच्च पदस्थ म्हणून रिटायर झाला तरी जर developed country मधे उर्वरीत आयुष्य काढायचं असेल तर नोकरी ही करावीच लागते. डबोल्यावर दिवस काढता येत नाहीत. परदेशातील बहुसंख्य देशात आता retirement age 67 ते 69 आहे. त्याशिवाय पेन्शन मिळत नाही—मला वाटतं हा एक अमानुष प्रकार आहे. नोकरीमुळे माणसाला जीवनात मोकळा वेळ मिळालेला नसतो, जो रिटायरमेंट नंतर मिळतो. काही माणसं मुश्किलीने सत्तरी गाठतात आणि लुडकतात. मग या लोकानी काय नोकरी करताकरताच देह ठेवायचा का ?

एकटेपणा

अमेरिकेत पाचपाचशे घरं असलेल्या कम्युनिटींमधे चिटपाखरू रस्त्यावर दिसत नाही. आज माझ्या नातीला मी खिडकीत उभं राहिलो तरी चालणारी पंपं दाखवू शकत नाही, पक्षी दाखवू शकत नाही. अर्ध्या तासाने एक गाडी येते. एखादा पक्षी दिसतो. अशा ठिकाणी म्हातारा माणूस बोअर होणार नाही का?. माझे सत्तरीपूर्वी खूप अबोल असलेले आजोबा, सत्तरीनंतर खूप बोलू लागले होते. त्यांच्या तरूणपणच्या खूप गोष्टी ते परत परत सांगत असत. पण परदेशात म्हाताऱ्यांना श्रोता कोण ? आणि केवळ मुलं जवळ आहेत म्हणून हा एकटेपणा सहन करायचा का ?

स्पेशल assistance साठी किती डाॅलर मोजायचे ?

बघा विचार करा. तुमचे विचार तुम्ही मांडाल अशी अपेक्षा आहे.

लेखक : अज्ञात 

संग्रहिका : हेमा फाटक

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ भारतीय अंतराळ संशोधन संस्था (इसरो) ची स्थापना ☆ प्रस्तुती – सुश्री प्रभा हर्षे ☆

सुश्री प्रभा हर्षे

? इंद्रधनुष्य ?

☆ भारतीय अंतराळ संशोधन संस्था (इसरो) ची स्थापना –  संकलन मिलिंद पंडित ☆ प्रस्तुती – सुश्री प्रभा हर्षे  ☆

भारतीय अंतराळ संशोधन संस्था (इसरो)  स्थापना : १५ ऑगस्ट १९६९

‘इसरो’— (Indian Space Research Organization (ISRO)) या संस्थेची स्थापना १५ ऑगस्ट १९६९ रोजी करण्यात आली. याचे मुख्यालय बंगळुरू येथे आहे. “ मानवी सेवेसाठी अंतराळ तंत्रज्ञान “ हे या संस्थेचे ब्रीदवाक्य आहे. येथे मुख्यत: कृत्रिम उपग्रह तयार करण्यासाठी व त्यांचे प्रक्षेपण करण्यासाठी आवश्यक तंत्रज्ञान विकसित केले जाते. 

आजपर्यंत इस्रोने अनेक उपग्रहांचे यशस्वीरीत्या प्रक्षेपण केले आहे. स्वतंत्र भारताच्या यशस्वी कार्यक्रमांमध्ये इस्रोचे कार्य अग्रगण्य आहे.

भारताने अंतराळशास्त्रात केलेल्या प्रगतीचे राष्ट्रीय व सामाजिक विकासात मोठे योगदान आहे. दूरसंचार, दूरचित्रवाणी प्रसारण आणि हवामानशास्त्र सेवा, यासाठी INSAT व GSAT उपग्रह मालिका कार्यरत आहे. यामुळेच देशात सर्वत्र दूरचित्रवाणी, दूरध्वनी आणि इंटरनेट सेवा उपलब्ध होऊ शकली. याच मालिकेतील EDUSAT उपग्रह तर फक्त शिक्षणक्षेत्रासाठी वापरला जातो. 

देशातील नैसर्गिक संसाधनांचे नियंत्रण आणि व्यवस्थापन आणि आपत्ती व्यवस्थापन यासाठी IRS उपग्रह मालिका कार्यरत आहे.

संकलन : मिलिंद पंडित, कल्याण

संदर्भ : फेसबुक

संग्राहिका : सुश्री प्रभा हर्षे 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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