हिन्दी साहित्य – पुस्तक चर्चा ☆ “कि आप शुतरमुर्ग बने रहें” – श्री शांतिलाल जैन ☆ पुस्तक चर्चा – श्री शशिकांत सिंह ’शशि’ ☆

श्री शशिकांत सिंह ’शशि’

☆ “कि आप शुतरमुर्ग बने रहें” – श्री शांतिलाल जैन ☆ पुस्तक चर्चा – श्री शशिकांत सिंह ’शशि’ ☆

पुस्तक ‏: कि आप शुतरमुर्ग बने रहें

प्रकाशक‏ : बोधि प्रकाशन, जयपुर 

पृष्ठ संख्या‏ : ‎ 160 पृष्ठ 

मूल्य : 200 रु 

☆ सत्ता से सवाल करती रचनाएं – श्री शशिकांत सिंह ’शशि’ ☆

बतौर पाठक मैं मानसिक ऊर्जा और वैचारिक बहस के लिए साहित्य पढ़ना पसंद करता हूं। उन लेखकों को पढ़ना पसंद करता हूं जो सत्ता से सवाल करते हैं जिनकी कलम मशाल बनकर जलना चाहती है। विशेषकर व्यंग्य साहित्य में मुझे हमेशा वही रचनाएं पसंद आती हैं जो सत्ता को कठघरे में खड़ी करें। दुर्भाग्य यह है कि आजकल विसंगति के नामपर साहित्यिक पुरस्कार, और साहित्यिक गुटबाजियों को ही विषय बनाकर ज्यादातर लिखा जाता है क्योंकि ऐसी रचनाएं आसानी से छप जाती हैं चूंकि रोज छपना है इसलिए छपनीय रचनाएं लिखी जाती हैं। ऐसे में यदि कोई ऐसा संग्रह हाथ में आ जाये जिसकी हर रचना मन को ऊर्जा से भर दे तो मन आनंद से भर उठता है। शांतिलाल जैन साहब नई पीढ़ी के लेखकों में मेरे पसंदीदा लेखक हैं। इसका अर्थ यह नहीं कि मेरी सूची बहुत लंबी है, उसमें से एक नाम हैं बल्कि मेरी सूची में तीन या चार नाम हैं उसमें से एक हैं श्री शांतिलाल जैन। उनके नवीनतम् संकलन ’कि आप शुतरमुर्ग बने रहें की चर्चा यहां की जा रही है।

श्री शांतिलाल जैन 

सबसे पहले बात करते हैं शीर्षक की हम जानते हैं कि शुतरमुर्ग तूफान देखकर रेत में सिर छिपा लेता है क्योंकि वह रेत का सामना नहीं कर सकता। नहीं करना चाहता। वह संदेश तो यह देना चाहता है कि वह तूफान के मुकाबले में खड़ा है लेकिन ऐन मौके पर रेत में सिर छिपा लेता है। ठीक उसी तरह जिस तरह व्यंग्य लिखने के नाम पर अभिव्यक्ति के खतरों से बचने के लिए तरह-तरह के बहाने बनाते हैं लेखक। मंचों पर ताल ठोककर सिंह गर्जना करने वाले महामानव कलम हाथ में लेते ही मेमने की गति को प्राप्त हो जाते हैं और संपदकों की पसंद की रचनाएं लिखने लगते हैं। जो तुझको हो पसंद वही बात कहेंगे। बहरहाल, इस संकलन में पचास से अधिक रचनाएं संकलित हैं जो वर्त्तमान में व्याप्त अधिकांश विसंगतियों की पड़ताल करते हैं। राजनीति, धर्म, समाज, अर्थव्यवस्था, नई तकनीक, नई पीढ़ी, मोबाईल, सरकारी भोंपूवाद, प्रशासन, तमाम विषयों पर चिंतनजनित व्यंग्य रचनाएं दी हैं शांतिलाल जी ने।

कि आप शुतरमुर्ग बने रहें’ में आरामपसंद मध्यमवर्ग का पलायनवाद है जो चाहता तो है कि भगत सिंह जन्म लें लेकिन पड़ोसी के घर में। वह शब्दों का वीर है, समर का नहीं, हर चुनौती का मंुह छुपाकर सामना करता है। ’नलियबाखल से मंडीहाउस’ में गोबर के गणेश बनने की कथा है। रम्मू जो अखबार के हॉकर थे अखबार के मालिक बनकर, मीडियाहाउस चलाने लगते हैं, अगले वर्ष उनके संसद में जाने की पूरी संभावना है। गुण ? उनका अच्छी तरह चिल्लाने की क्षमता। ’अब आपकी नदी आपके द्वार’ में नगर की गंदगी का काव्यमय चित्रण है तो ’भाईसाहब हमारा नंबर कब आयेगा’ में एक सज्जन डॉक्टर के दुर्जन सहयोगी की बदतमीजी से आहत मरीज की व्यथा है।

पर मुझे जिस रचना ने सबसे अधिक अपनी ओर आकर्षित किया वह है ’बहिष्कृत सेब और परित्यक्त केला संवाद’ जैसी कलात्मक रचना जिसमें केला और सेब दोनों को कचरे में फेंक दिया जाता है। सेब इसलिए मुसलमां हो गया है क्योंकि उसे एक मुसलमान बेच रहा था और केला इसलिए हिंदू हो गया क्योंकि उसे एक हिन्दू बेच रहा था। खरीदने वालों ने उन्हें दूसरे धर्म की अमानत समझकर कचरे में फंेक दिया। उनके संवाद में जो गहराई है वह हमारे आज के समाज की हकीकत है। हम जो मंदिर-मस्जिद के नारे में फंसकर अपने असली रंग में आ गये हैं। अपने अंदर छुपे धार्मिक पशु को आवारा छोड़ दिया है जिसको मर्जी काट ले। अंत में सेब सोच रहा है कि मानव सभ्यता आदम और हव्वा के जमाने में लौट जाये अर्थात रिवाईंड कर जाये तो अच्छा है जब कोई धर्म नहीं था।

एक शानदार रचना है -’प्रतिध्वनियों में गुम सच’ कमाल की कला साधी गई है इस रचना में। हम मीडिया को कोसते हैं लेकिन यह रचना उनकी पीड़ा को भी स्वर देती है। ईको पाइंट की मजबूरी है कि जो भी शिला पर चढ़कर बोलेगा उसका ईको करेगा लेकिन वह सारा सच जानता है।  जब शिला पर आकर एक आदमी चीखता है कि ’मैने ’रिश्वत नहीं ली’तो इको पाईंट उसी पंक्ति को इको करता है लेकिन वह जानता है कि यह आदमी बहुत बड़ा रिश्वतखोर है। लेखक की सहानुभूति देखिये-’ईको पाईंट की मजबूरी ठहरी साहब। उसे वही दोहराना पड़ता है जो सत्ता की शिला पर खड़े लोग कहें। कई सारे ईको पाईंटस हैं हमारे देश में। ईका पांईट्स वही रहते हैं शिला पर चढ़ने वाले पांच साल में बदल जाते हैं।’ यह एक गहरे चिंतन से उपजी रचना है। जो दिखता है वह है नहीं, और जो है वह आप देख नहीं रहे। ’लक्ष्मी नहीं बेटी आई है’ इस रचना में लेखक इस बात का विरोध करता है कि बेटी को लक्ष्मी क्यों कहा जाये ? वह मनुष्य है उसे मनुष्य रहने दिया जाये। एक रचना में अलीबाबा सिमसिम के आगे खड़े हैं लेकिन पासवर्ड भूलगये हैं। पासवर्ड याद आये तो धन निकले। धन निकले तो अलीबाबा अपने घर जायें पत्नी के फोन आ रहे हैं। यंत्रीकरण के युग की तल्ख सच्चाई उकेरती रचना है। तकनीक हमारे लिए जितनी सुविधाएं पैदा करती है उतरी ही परेशानियां भी।

एक कमाल की रचना है -’कानून के हाथ’ जिसमें कानून की बेचारगी सामने आती है। पंक्ति देखिये कि ’कानून के हाथ लंबे हैं, प्रशासन के और लंबे और शासन के लंबेस्ट।’ लेखक की पीड़ा यह है कि बुलाडोजर ही अब सारे फैसले करने लगे हैं। न अपील होगी, न वकील, न दलील, न विधि, न विधि द्वारा स्थापित अदालतें। आदमी का धर्म देखकर जिस प्रकार बुलडोजरें न्याय करने लगी हैं उसका विराध करने का साहस बहुत कम लेखकों ने दिखाया है।

तात्पर्य यह कि विषय चयन में श्री शांतिलाल जैन साहब सुरक्षित कोना नहीं ढूंढ़ते। न मनोरंजन के नाम पर सत्ता के वंदनवार सजाने लगते हैं। सीधे-सीधे सवाल करते हैं। उनके विषय कभी ’हल्के-फुल्के’ नहीं होते। यही कारण है कि मेरे जैसा पाठक जो विषय की गंभीरता को देखकर किताब उठाता है पूरी किताब पढ़ता चला जाता है।  हो सकता है कि सत्ता सेवी लोगों को शांतिलाल जी की रचनांए न पचें क्योंकि उनके लिए इस रामराज्य में व्यंग्यकारों का काम बस एक दूसरे को कोसना और मसखरी करना रह गया है। तो, विषय की गहराई भी है लेखक के पास, केवल समस्या परोसने भर के लिए नहीं लिखते। सुधार की संभावनाओं को भी दिखाते हैं। समाधान का पक्ष भी उनकी रचनाओं में झलकता है। यह कहना कि छोटी रचनाओं में विषय के साथ न्याय नहीं हो सकता। ठीक नहीं है, कम से कम शंातिलाल जी की रचनाओं को देखकर तो यही लगता है। कम शब्दांें में विषय की पूरी पड़ताल की जा सकती है बशर्ते शब्दों की जलेबी न बनाई जाये।

अनावश्यक रूप से कहीं भी कलाकारी दिखाने का मोह लेखक में नहीं दिखता। न बेवजह पंचलाईन, न जबरदस्ती का हास्य, न निरर्थक संवाद, बस सधी हुई और तपी हुई शब्दसाधना। पंच प्रेमी सज्जनों को एकदम से निराशा भी नहीं होगी। कुछ पंक्तियां देखिये-

  • ’आज वे विचार भी उसी शिद्दत से बेच लेता है जिस शिद्दत से कभी खटमलमार पावडर बेचा करता था।’
  • ’बिना जमीर की पत्रकारिता करने की उसने एक नयाब नजीर कायम की है।’
  • ’स्मार्ट फोन एक नहीं दो ले लीजिये, रोजगार नहीं दे पायेंगे।’
  • ’कुछ आत्माएं संसार कभी नहीं छोड़तीं। अब नीरो को ही ले लीजिये,दो हजार बरस पहले बादशाह हुये थे रोम में, मगर आत्मा आज तक देश दर देश भटक रही है।
  • ’अब आदमी के कान की सीमाएं होती हैं जनाब, जब डंका बज रहा हो, तो तूतियो का स्वर सुनाई नहीं देता।।
  • ’सुल्तान को अपने नाम का डंका बजवाने का जुनूं ऐसा है कि अपन के मुल्क की दवा अपन की रियाया को देने से पहले गैर मुल्कों को दे डाली।

कला और कथ्य दोनों में कमाल का संतुलन और भाषा की रवानगी के बावजूद कहीं-कहीं नये शब्द बनाने के जुनून से परेशानी हो रही थी। अंग्रेजी के शब्दों को हिन्दी में मिलाकर नये शब्द आजकल बनाते हैं लोग लेकिन वह भाषा को कमजोर करती है (ऐसा मुझे लगता है जरूरी नहीं कि मुझे सही लगे)। साहित्य से समाज शब्द और भाषा सीखता हैं अतः लेखक को मंुबइया भाषा के मोह में या जैसा बोलेंगे वैसा लिखेंगे की लालच मंे वही तो को वोईच, बहुत को भोत, जैसे प्रयोग से बचना चाहिए (ऐसा मुझे लगता है जरूरी नहीं कि मुझे सही लगे)। मैं लेखन में स्तरीय शब्द प्रयोग का हिमायती रहा हूं। लेखक की जिम्मेवारी समाज को भाषा की शिक्षा देने की भी है। पर, ऐसे प्रयोग बहुत कम हैं अधिकांश रचनाओं में विषय के अनुसार शब्द प्रयोग हैं।

अंत में बात इतनी ही कि मुझे यह सकंलन पढ़कर मानसिक संतुष्टि हुई। पुस्तक के प्रकाशक हैं-बोधि प्रकाशन, जयपुर। सुंदर पुस्तक है। कीमत है दो सौ रुपये जो आज के समय को देखते हुये ठीक ही है। एक सौ साठ पन्नों की किताब दो सौ में सौदा बुरा नहीं है। कम से कम पढ़कर आपको भी लगेगा कि लेखक के पास रीढ़ की हड्डी है जिसका आजकल नितांत अभाव चल रहा है।

© श्री शशिकांत सिंह ’शशि’ 

संपर्क : जवाहर नवोदय विद्यालय, सुखासन, मधेपुरा, बिहार

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक की पुस्तक चर्चा # 155 ☆ “विद्युल्लता… ” (काव्य संग्रह) – श्री रामनारायण सोनी ☆ चर्चा – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जो  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है श्री रामनारायण सोनी जी द्वारा रचित काव्य संग्रह – “विद्युल्लता” पर चर्चा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 155 ☆

☆ “विद्युल्लता… ” (काव्य संग्रह)– श्री रामनारायण सोनी ☆ चर्चा – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

कृति चर्चा

पुस्तक चर्चा

कृति  विद्युल्लता (काव्य संग्रह )

कवि  रामनारायण सोनी

चर्चा  विवेक रंजन श्रीवास्तव

 

☆ पुस्तक चर्चा – श्रीमदभगवदगीता हिन्दी पद्यानुवाद… विवेक रंजन श्रीवास्तव ☆

कविता न्यूनतम शब्दों में अधिकतम की अभिव्यक्ति का सर्वश्रेष्ठ संसाधन होती है। कविता मन को एक साथ ही हुलास, उजास और सुकून देती है। नौकरी और साहित्य के मेरे समान धर्मी श्री रामनारायण सोनी के कविता संग्रह विद्युल्लता को पढ़ने का सुअवसर मिला। संग्रह में भक्ति काव्य की निर्मल रसधार का अविरल प्रवाह करती समय समय पर रची गई सत्तर कवितायें संग्रहित हैं। सभी रचनायें भाव प्रवण हैं। काव्य सौष्ठव परिपक्व है। सोनी जी के पास भाव अभिव्यक्ति के लिये पर्याप्त शब्द सामर्थ्य है। वे विधा में पारंगत भी हैं। उनकी अनेक पुस्तकें पहले ही प्रकाशित हो चुकी हैं, जिन्हें हिन्दी जगत ने सराहा है। सेवानिवृति के उपरांत अनुभव तथा उम्र की वरिष्ठता के साथ रामनारायण जी के आध्यात्मिक लेखन में निरंतर गति दिखती है। कवितायें बताती हैं कि कवि का व्यापक अध्ययन है, उन्हें छपास या अभिव्यक्ति का उतावलापन कतई नहीं है। वे गंभीर रचनाकर्मी हैं।

सारी कवितायें पढ़ने के बाद मेरा अभिमत है कि शिल्प और भाव, साहित्यिक सौंदर्य-बोध, प्रयोगों मे किंचित नवीनता, अनुभूतियों के चित्रण, संवेदनशीलता और बिम्ब के प्रयोगों से सोनी जी ने विद्युल्लता को कविता के अनेक संग्रहों में विशिष्ट बनाया है। आत्म संतोष और मानसिक शांति के लिये लिखी गई ये रचनायें आम पाठको के लिये भी आनंद दायी हैं। जीवन की व्याख्या को लेकर कई रचनायें अनुभव जन्य हैं। उदाहरण के लिये “नेपथ्य के उस पार” से उधृत है … खोल दो नेपथ्य के सब आवरण फिर देखते हैं, इन मुखौटों के परे तुम कौन हो फिर देखते हैँ। जैसी सशक्त पंक्तियां पाठक का मन मुग्ध कर देती हैं। ये मेरे तेरे सबके साथ घटित अभिव्यक्ति है।

संग्रह से ही  दो पंक्तियां हैं … ” वाणी को तुम दो विराम इन नयनों की भाषा पढ़नी है, आज व्यथा को टांग अलगनी गाथा कोई गढ़नी है। ” मोहक चित्र बनाते ये शब्द आत्मीयता का बोध करवाने में सक्षम हैं। रचनायें कवि की दार्शनिक सोच की परिचायक हैं।

रामनारायण जी पहली ही कविता में लिखते हैं ” तुम वरेण्य हो, हे वंदनीय तुम असीम सुखदाता हो …. सौ पृष्ठीय किताब की अंतिम  रचना में ॠग्वेद की ॠचा से प्रेरित शाश्वत संदेश मुखर हुआ है। सोनी जी की भाषा में ” ए जीवन के तेजमयी रथ अपनी गति से चलता चल, जलधारा प्राणों की लेकर ब्रह्मपुत्र सा बहता चल “।

यह जीवन प्रवाह उद्देश्य पूर्ण, सार्थक और दिशा बोधमय बना रहे। इन्हीं स्वस्ति कामनाओ के साथ मेरी समस्त शुभाकांक्षा रचना और रचनाकार के संग हैं। मैं चाहूंगा कि पाठक समय निकाल कर इन कविताओ का एकांत में पठन, मनन, चिंतन करें रचनायें बिल्कुल जटिल नहीं हैं वे अध्येता का  दिशा दर्शन करते हुये आनंदित करती हैं।

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

समीक्षक, लेखक, व्यंगयकार

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३, मो ७०००३७५७९८

readerswriteback@gmail.कॉम, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – पुस्तक चर्चा ☆जब सारा विश्व राममय हो रहा है, तब प्रासंगिक कृति – “रघुवंशम” – श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆ पुस्तक चर्चा – आचार्य कृष्णकांत चर्तुवेदी ☆

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक की पुस्तक चर्चा # 154 ☆ “श्रीमदभगवदगीता हिन्दी पद्यानुवाद… ” – श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆ चर्चा – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जो  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी द्वारा रचित पुस्तक – श्रीमदभगवदगीता हिन्दी पद्यानुवादपर चर्चा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 154 ☆

☆ “श्रीमदभगवदगीता हिन्दी पद्यानुवाद… ” – श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆ चर्चा – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

कृति चर्चा

पुस्तक चर्चा

कृति … श्रीमदभगवदगीता हिन्दी पद्यानुवाद

अनुवादक …. प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ” विदग्ध ”

प्रकाशक …. ज्ञान मुद्रा पब्लीकेशन, भोपाल

पुस्तक प्राप्ति हेतु संपर्क +918720883696

 पृष्ठ … 300

चर्चा… विवेक रंजन श्रीवास्तव, भोपाल

☆ पुस्तक चर्चा – श्रीमदभगवदगीता हिन्दी पद्यानुवाद… विवेक रंजन श्रीवास्तव ☆

श्रीमदभगवदगीता एक सार्वकालिक ग्रंथ है . इसमें जीवन के मैनेजमेंट की गूढ़ शिक्षा है . आज संस्कृत समझने वाले कम होते जा रहे हैं, पर गीता में सबकी रुचि सदैव बनी रहेगी, अतः संस्कृत न समझने वाले हिन्दी पाठको को गीता का वही काव्यगत आनन्द यथावथ मिल सके इस उद्देश्य से प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव “विदग्ध” ने मूल संस्कृत श्लोक, फिर उनके द्वारा किये गये काव्य अनुवाद तथा शलोकशः ही शब्दार्थ  पहले हिंदी में फिर अंग्रेजी में को उम्दा कागज व अच्छी प्रिंटिंग के साथ यह बहुमूल्य कृति भोपाल के ज्ञान मुद्रा पब्लीकेशन ने पुनः प्रस्तुत किया  है . अनेक शालेय व विश्वविद्यालयीन पाठ्यक्रमो में गीता के अध्ययन को शामिल किया गया है, उन छात्रो के लिये यह कृति बहुउपयोगी बन पड़ी है .

भगवान कृष्ण ने  द्वापर युग के समापन तथा कलियुग आगमन के पूर्व (आज से पांच हजार वर्ष पूर्व) कुरूक्षेत्र के रणांगण मे दिग्भ्रमित अर्जुन को, जब महाभारत युद्ध आरंभ होने के समस्त संकेत योद्धाओ को मिल चुके थे, गीता के माध्यम से ये अमर संदेश दिये थे व जीवन के मर्म की व्याख्या की थी .श्रीमदभगवदगीता का भाष्य वास्तव मे ‘‘महाभारत‘‘ है। गीता को स्पष्टतः समझने के लिये गीता के साथ ही  महाभारत को पढना और हृदयंगम करना भी आवश्यक है। महाभारत तो भारतवर्ष का क्या ? विश्व का इतिहास है। ऐतिहासिक एवं तत्कालीन घटित घटनाओं के संदर्भ मे झांककर ही श्रीमदभगवदगीता के विविध दार्शनिक-आध्यात्मिक व धार्मिक पक्षो को व्यवस्थित ढ़ंग से समझा जा सकता है।

जहॉ भीषण युद्ध, मारकाट, रक्तपात और चीत्कार का भयानक वातावरण उपस्थित हो वहॉ गीत-संगीत-कला-भाव-अपना-पराया सब कुछ विस्मृत हो जाता है फिर ऐसी विषम परिस्थिति मे गीत या संगीत की कल्पना बडी विसंगति जान पडती है। क्या रूद में संगीत संभव है? एकदम असंभव किंतु यह संभव हुआ है- तभी तो ‘‘गीता सुगीता कर्तव्य‘‘ यह गीता के माहात्म्य में कहा गया है। अतः संस्कृत मे लिखे गये गीता के श्लोको का पठन-पाठन भारत मे जन्मे प्रत्येक भारतीय के लिये अनिवार्य है। संस्कृत भाषा का जिन्हें ज्ञान नहीं है- उन्हे भी कम से कम गीता और महाभारत ग्रंथ क्या है ? कैसे है ? इनके पढने से जीवन मे क्या लाभ है ? यही जानने और समझने के लिये भावुक हृदय कवियो साहित्यकारो और मनीषियो ने समय-समय पर साहित्यिक श्रम कर कठिन किंतु जीवनोपयोगी संस्कृत भाषा के सूत्रो (श्लोको) का पद्यानुवाद किया है, और जीवनोपयोगी ग्रंथो को युगानुकूल सरल करने का प्रयास किया है।

 इसी क्रम मे साहित्य मनीषी कविश्रेष्ठ प्रो. चित्रभूषण श्रीवास्तव जी ‘‘विदग्ध‘‘ ने जो न केवल भारतीय साहित्य-शास्त्रो धर्मग्रंथो के अध्येता हैं बल्कि एक कुशल अध्येता भी हैं स्वभाव से कोमल भावो के भावुक कवि भी है। निरंतर साहित्य अनुशीलन की प्रवृत्ति के कारण विभिन्न संस्कृत कवियो की साहित्य रचनाओ पर हिंदी पद्यानुवाद भी आपने प्रस्तुत किया है . महाकवि कालिदास कृत ‘‘मेघदूतम्‘‘ व रघुवंशम् काव्य का आपका पद्यानुवाद दृष्टव्य, पठनीय व मनन योग्य है।गीता के विभिन्न पक्षों जिन्हे योग कहा गया है जैसे विषाद योग जब विषाद स्वगत होता है तो यह जीव के संताप में वृद्धि ही करता है और उसके हृदय मे अशांति की सृष्टि का निर्माण करता है जिससे जीवन मे आकुलता, व्याकुलता और भयाकुलता उत्पन्न होती हैं परंतु जब जीव अपने विषाद को परमात्मा के समक्ष प्रकट कर विषाद को ईश्वर से जोडता है तो वह विषाद योग बनकर योग की सृष्टि श्रृखंला का निर्माण करता है और इस प्रकार ध्यान योग, ज्ञान योग, कर्म योग, भक्तियोग, उपासना योग, ज्ञान कर्म सन्यास योग, विभूति योग, विश्वरूप दर्शन विराट योग, सन्यास योग, विज्ञान योग, शरणागत योग, आदि मार्गो से होता हुआ मोक्ष सन्यास योग प्रकारातंर से है, तो विषाद योग से प्रसाद योग तक यात्रासंपन्न करता है।

इसी दृष्टि से गीता का स्वाध्याय हम सबके लिये उपयोगी सिद्ध होता हैं . अनुवाद में प्रायः दोहे को छंद के रूप में प्रयोग किया गया है .  कुछ अनूदित अंश बानगी के रूप में  इस तरह  हैं ..

 अध्याय ५ से ..

 नैव किंचित्करोमीति युक्तो मन्येत तत्ववित्‌।

पश्यञ्श्रृण्वन्स्पृशञ्जिघ्रन्नश्नन्गच्छन्स्वपंश्वसन्‌ ॥

प्रलपन्विसृजन्गृह्णन्नुन्मिषन्निमिषन्नपि ॥

इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेषु वर्तन्त इति धारयन्‌ ॥

 

स्वयं इंद्रियां कर्मरत, करता यह अनुमान

चलते, सुनते, देखते ऐसा करता भान।।8।।

सोते, हँसते, बोलते, करते कुछ भी काम

भिन्न मानता इंद्रियाँ भिन्न आत्मा राम।।9।।

 

भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम्‌।

सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति ॥

 

हितकारी संसार का, तप यज्ञों का प्राण

जो मुझको भजते सदा, सच उनका कल्याण।।29।।

 

अध्याय ९ से ..

 

अहं क्रतुरहं यज्ञः स्वधाहमहमौषधम्‌।

मंत्रोऽहमहमेवाज्यमहमग्निरहं हुतम्‌ ॥

 

मै ही कृति हूँ यज्ञ हूँ, स्वधा, मंत्र, घृत अग्नि

औषध भी मैं, हवन मैं, प्रबल जैसे जमदाग्नि।।16।।

इस तरह प्रो श्रीवास्तव ने  श्रीमदभगवदगीता के श्लोको का पद्यानुवाद कर हिंदी भाषा के प्रति अपना अनुराग तो व्यक्त किया ही है किंतु इससे भी अधिक सर्व साधारण के लिये गीता के दुरूह श्लोको को सरल कर बोधगम्य बना दिया है .गीता के प्रति गीता प्रेमियों की अभिरूचि का विशेष ध्यान रखा है। गीता के सिद्धांतो को समझने में साधको को इससे बडी सहायता मिलेगी, ऐसा मेरा विश्वास है। अनुवाद बहुत सुदंर है। शब्द या भावगत कोई विसंगति नहीं है। अन्य गीता के अनुवाद या व्याख्येायें भी अनेक विद्वानो ने की हैं पर इनमें  लेखक स्वयं अपनी संमति समाहित करते मिलते हैं जबकि इस अनुवाद की विशेषता यह है कि प्रो श्रीवास्तव द्वारा ग्रंथ के मूल भावो की पूर्ण रक्षा की गई है।

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

समीक्षक, लेखक, व्यंगयकार

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३, मो ७०००३७५७९८

readerswriteback@gmail.कॉम, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक की पुस्तक चर्चा # 153 –☆ “स्वप्नदर्शी” (भारत रत्न मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरैया जी के जीवन पर केंद्रित उपन्यास) – श्री अश्विनी कुमार दुबे ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जो  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है श्री अश्विनी कुमार दुबे जी द्वारा रचित पुस्तक – “स्वप्नदर्शी” (भारत रत्न मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरैया जी के जीवन पर केंद्रित उपन्यास)  पर चर्चा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 153 ☆

☆ “स्वप्नदर्शी” (भारत रत्न मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरैया जी के जीवन पर केंद्रित उपन्यास) – श्री अश्विनी कुमार दुबे ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

कृति चर्चा

पुस्तक चर्चा

पुस्तक – “स्वप्नदर्शी” (भारत रत्न मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरैया जी के जीवन पर केंद्रित उपन्यास)

लेखक – श्री अश्विनी कुमार दुबे

प्रकाशक – इंद्रा पब्लिशिंग हाउस, भोपाल

मूल्य – २५० रु, वर्ष २०१७

पृष्ठ – २२४

चर्चा… विवेक रंजन श्रीवास्तव, भोपाल

☆ पुस्तक चर्चा – स्वप्नदर्शी … विवेक रंजन श्रीवास्तव ☆

मन से अश्विनी कुमार दुबे व्यंग्यकार हैं, उपन्यासकार और कथाकार हैं।  दुबे जी को म प्र साहित्य अकादमी, भारतेंदु पुरस्कार, अम्बिका प्रसाद दिव्य पुरस्कार, स्पेनिन सम्मान आदि से समय समय पर सम्मानित किया गया है। यद्यपि रचनाकार का परिचय किसी पुरुस्कार या सम्मान मात्र से बिल्कुल नहीं दिया जा सकता। दरअसल सच ये होता है कि श्री अश्विनीकुमार दुबे के रचना कर्म के समदृश्य बहुविध लेखन करने वाले गंभीर रचनाकर्मी का ध्यान पुरुस्कार और सम्मानो के लिये नामांकन करने की ओर नहीं जाता, वे अपने सारस्वत लेखन अभियान को अधिक वरीयता देते हैं। आजीविका के लिये अश्विनी कुमार दुबे अभियंता के रूप में कार्यरत रहे हैं। उनका रचनात्मक कैनवास वैश्विक रहा है। भारत रत्न मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरैया जी के जीवन पर केंद्रित उनका उपन्यास “स्वप्नदर्शी” बहुचर्चित है। यह उपन्यास केवल व्यक्ति केंद्रित न होकर विश्वेश्वरैया जी के जीवन मूल्यों, संघर्ष और कार्य के प्रति उनकी ईमानदारी तथा निष्ठा को प्रतिष्ठित करता है। भगवान को भी जब रातों रात सुदामा पुरी का निर्माण करवाना हो तो उन्हें विश्वकर्मा जी की ओर देखना ही पड़ता है। बदलते परिवेश में भ्रष्टाचार के चलते इंजीनियर्स को रुपया बनाने की मशीन समझने की भूल घर, परिवार, समाज कर रहा है।  इस आपाधापी में अपना जमीर बचाये न रख पाना इंजीनियर्स की स्वयं की गलती है। समाज व सरकार को देखना होगा कि तकनीक पर राजनीति हावी न होने पावे। मानव जीवन में विज्ञान के विकास को मूर्त रूप देने में इंजीनियर्स का योगदान रहा है और हमेशा बना रहेगा। किन्तु जब अश्विनी जी जैसे अभियंता लिखते हैं तो उनके लेखन में भी वैज्ञानिक दृष्टि का होना लेखकीय गुणवत्ता और पाठकीय उपयोगिता बढ़ाकर साहित्य को शाश्वत बना देता है।

अश्विनी जी के विश्वेश्वरैया जी पर केंद्रित उपन्यास “स्वप्नदर्शी” में पाठक देख सकते हैं कि किस तरह वैचारिक तथ्य तथ्यो को भाषा, शैली और शब्दावली का प्रयोग कर अश्विनी जी ने अपनी लेखकीय प्रतिभा का परिचय दिया है। उन्होंने विषय वस्तु को शाश्वत, पाठकोपयोगी, और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है। यह जीवनी केंद्रित उपन्यास वर्ष २०१७ में प्रकाशित हुआ है अर्थात पाठक को  इसमें लेखन यात्रा में एक परिपक्व लेखक की अभिव्यक्ति देखने मिलती है। इसके लेखन के दौरान अश्विनी जी मधुमेह और उच्च रक्तचाप की बीमारियों से ग्रसित रहे हैं पर उन्होंने योजनाबद्ध तरीके से उपन्यास की सामग्री संजोई और कल्पना के रंग भरकर उसे जीवनी परक उपन्यास के रोचक फार्मेट में पाठको के लिये प्रस्तुत किया है। मेरे पढ़ने में आया स्वप्नदर्शी  विश्वेश्वरैया जी पर केंद्रित पहला ही उपन्यास है। किसी के जीवन पर लिखने हेतु रचनाकार को उसके समय परिवेश और परिस्थितियों में मानसिक रूप से उतरकर तादात्म्य स्थापित करना वांछित होता है। स्वप्नदर्शी में अश्विनी जी ने विश्वेश्वरैया जी के प्रति समुचित न्याय करने में सफलता पाई है। उपन्यास से कुछ पंक्तियां उधृत हैं, जिन से पाठक अश्विनी कुमार दुबे के लेखन में उनकी वैज्ञानिक दृष्टि की प्रतिछाया का आभास कर सकते हैं।

” तुम्हें खुली आँखों से देखना और जिज्ञासु मन से समझना है। अपनी जिज्ञासा को कभी मरने मत देना “

” सिर्फ कृषि कार्यों पर निर्भर रहकर हम अपनी गरीबी दूर नहीं कर सकते, निर्धनता से लड़ने के लिये हमें अपने उद्योग और व्यापार को बढ़ाना होगा “

” इंग्लैँड में एक प्रतिष्ठित नागरिक ने विश्वेश्वरैया जी से उपहास की दृष्टि से पूछा जब सारी दुनिया अस्त्र शस्त्र बना रही थी, तब अपका देश क्या कर रहा था ? विश्वेश्वरैया जी ने तपाक से उत्तर दिया तब हमारा देश आदमी बना रहा था। उन्होंने स्पष्ट किया कि विवेकानंद, रवींद्रनाथ टैगोर, महात्मा गांधी इसी दौर के भारतीय हैं जिन्होंने दुनिया को शाश्वत दिशा दी है। विश्वेश्वरैया जी के इस जबाब का उस अंग्रेज के पास कोई उत्तर नहीं था “

” चमत्कारों में मेरा भरोसा नहीं है। मैं आदमी के हौसलों का कायल हूं। मैने एक स्थान देखा है जहाँ विशाल बांध बनाया जा सकता है ” …. ये मैसूर के निकट सुप्रसिद्ध कृष्णराज सागर बांध के विश्वेश्वरैया जी द्वारा किये गये रेकनाइसेंस सर्वे का वर्णन है। 

“शेष अंत में”, “जाने अनजाने दुख” और “किसी शहर में” स्वप्नदर्शी के अतिरिक्त अश्विनी कुमार दुबे  के अन्य उपन्यास हैं। यह पठनीय उपन्यास है।

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

समीक्षक, लेखक, व्यंगयकार

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३, मो ७०००३७५७९८

readerswriteback@gmail.कॉम, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक की पुस्तक चर्चा # 152 – “स्टार्टअप शुरू करना चाहते हैं तो…” ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जो  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है स्टार्ट-अप प्रारम्भ करने के लिए कुछ विशेष पुस्तकों पर चर्चा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 152  ☆

☆ स्टार्टअप शुरू करना चाहते हैं तो… ☆ विवेक रंजन श्रीवास्तव ☆

स्टार्टअप शुरू करना चाहते हैं तो ये पुस्तकें प्रारंभिक जानकारी देंगी

1. स्टार्टअप प्लेबुक – इस किताब में सबसे तेज़ी के साथ बढ़ने वाले स्टार्टअप्स के फ़ाउंडर्स ने अपने राज़ साझा किए हैं, जिसे पुस्तक में संजोया है डेविड किडर ने।

2. द फ़ोर आवर वर्कवीक, तिमोती फ़ेरिस की यह किताब बताती है कि किस तरह से आप आय के स्रोत तैयार कर सकते हैं और उन्हें ऑटोमेट कर सकते हैं ताकि आप पूरी तरह से अपने पैशन को अंजाम देने पर ध्यान केंद्रित कर सकें।

इस किताब के लेखक तिमोती मानते हैं कि ऑन्त्रप्रन्योरशिप के ज़रिए आप अपने जीवन पर नियंत्रण हासिल कर सकते हैं और एक हफ़्ते में 40 घंटे से भी कम समय तक काम करके आप अपने जीवन का पूरा आनंद उठा सकते हैं। यह किताब आपको बताती है कि किस तरह से आप परंपरागत 9 से 5 बजे तक की नौकरी से मुक्ति पाकर, अन्य रोचक काम कर सकते हैं ।

3. जेसन फ़्रायड और डेविड हेनीमियर हैनसन की पुस्तक ‘रीवर्क’ आपको अपने बिज़नेस में सफलता पाने का बेहतर, तेज़ और आसान रास्ता सुझाती है।

स्टार्ट अप फाउंडर्स को इस किताब को पढ़कर जानना चाहिए कि किस तरह की योजनाएं, उनके लिए नुकसानदायक हो सकती हैं; क्यों हमें बाहरी निवेशकों की ज़रूरत नहीं; और क्यों आपको किसी भी क्षेत्र में काम करने से पहले उसमें मौजूद प्रतियोगियों के बारे में बहुत ज़्यादा नहीं सोचना चाहिए।

4. एरिक राइज़ की द लीन स्टार्टअप किताब में एरिक राइज़ ने इनोवेशन ईको सिस्टम से जुड़े एक महत्वपूर्ण तथ्य का ज़िक्र किया है कि ज़्यादातर स्टार्टअप्स असफल क्यों हो जाते हैं। किताब के लेखक का मानना है कि असफल होने वाले इन स्टार्टअप्स में से ज़्यादातर सफल हो सकते थे और किताब में उन्होंने इसके तरीक़े बताए हैं।

5. जिम कॉनिल्स की “गुड टू ग्रेटः वाय सम कंपनीज़ मेक द लीप ऐंड अदर्स डोन्ट” 2001 में इस किताब को लॉन्च किया गया था। इस किताब में अर्श से फ़र्श तक पहुंचने वाली कंपनियों की ख़ासियतों के बारे में चर्चा की गई है। किताब में बताया गया है कि आप किस तरह से, सफलता के एक स्तर पर मिलने वाली तारीफ़ों के दौरान अपने आप को शांत रखें और अपने बड़े लक्ष्य से ध्यान को भटकने न दें और अपना काम जारी रखें।

6. नाथन फ़र और पॉल ऐहल्सट्रॉम की “नेल इन देन स्केल इटः द ऑन्त्रप्रन्योर्स गाइड टू क्रिएटिंग ऐंड मैनेजिंग ब्रेक आईओएथ्रू इनोवेशन” 

यह किताब संघर्ष के दौर से गुज़र रहे स्टार्टअप्स को सफलता से जुड़े कई अहम राज़ बताती है। इस किताब में लेखक ‘नेल इट देन स्केल इट’ की ख़ास विधि के बारे में बताता है, जिसमें आपको बतौर ऑन्त्रप्रन्योर सफल व्यवसाइयों के काम करने के तरीक़े और सिद्धान्त पहचानने और समझने होते हैं।

7. क्रिस गुलीबियू की “द 100 डॉलर स्टार्टअपः रीइनवेन्ट द वे यू मेक अ लिविंग, डू वॉट यू लव ऐंड क्रिएट अ न्यू फ़्यूचर “

इस किताब में क्रिस गुलीबियू ने 1500 से ज़्यादा उन लोगों  के साथ अपनी बातचीत को प्रस्तुत किया है, जिन्होंने 100 डॉलर या इससे भी कम पैसों के साथ अपने बिज़नेस की शुरुआत की थी और फिर सफलता हासिल की और जिनका मानना है कि सफल होने के लिए आपके पास करोड़ों रुपए की फ़ंडिंग हो ऐसा ज़रूरी नहीं है।

8. बिज़ स्टोन की “थिंग्स अ लिटिल बर्ड टोल्ड मीः कन्फ़ेशन्स ऑफ़ द क्रिएटिव माइन्ड”

ट्विटर के को-फ़ाउंडर बिज़ स्टोन ने इस किताब में बताया कि क्रिएटिविटी की क्या ताक़त होती है और इसे कैसे भुनाया जा सकता है। इसके लिए उन्होंने अपनी ज़िंदगी और करियर से जुड़ीं कई रोचक समझने वाली बातों का ज़िक्र किया है। 

9. ऐलिस स्रोडर की “द स्नोबॉलः वॉरेन बफ़े ऐंड द बिज़नेस ऑफ़ लाइफ़ “

यह किताब दुनिया के बहुचर्चित अरबपति उद्योपतियों में से एक वॉरेन बफ़े के काम करने और सोचने के तरीक़ों के बारे में जानकारी देती है। वॉरेन बफ़े ने लिखित रूप से या मीडिया के सामने मौखिक रूप से कभी अपने अनुभवों को बहुत अधिक साझा नहीं किया, इसलिए आप इस किताब से उनके बारे में जान सकते हैं।

10. जेसिका लिविंग्स्टन की “फ़ाउंडर्स ऐट वर्कः स्टोरीज़ ऑफ़ स्टार्टअप्स अर्ली डेज़”

यह किताब टेक कंपनियों के फ़ाउंडर्स जैसे कि स्टीव वोज़नियक (ऐपल), कैटरीना फ़ेक (फ़्लिकर), मिच कैपर (लोटस), मैक्स लेवचिन (पे पाल) और सबीर भाटिया (हॉटमेल) आदि के प्रोफ़ाइल्स का संकलन है।

इस किताब की लेखिका जेसिका लिविंग्स्टन वाय कॉम्बिनेटर में फ़ाउंडिंग पार्टनर हैं। यह किताब आपको बताएगी किस तरह से इन बुद्धिजीवियों ने अपने विनिंग आइडिया पर काम किया और इसे सफल बनाने के लिए किस तरह की रणनीति अपनाई।

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

समीक्षक, लेखक, व्यंगयकार

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३, मो ७०००३७५७९८

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 162 ☆ पुस्तक चर्चा – ‘सुंदर सूक्तियाँ’ – पठनीय मननीय कृति – श्री हीरो वाधवानी

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताeह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी  द्वारा  पुस्तक चर्चा  ‘सुंदर सूक्तियाँ’ – पठनीय मननीय कृति – श्री हीरो वाधवानी।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 162 ☆ 

☆ ☆ पुस्तक चर्चा – ‘सुंदर सूक्तियाँ’ – पठनीय मननीय कृति – श्री हीरो वाधवानी ☆ 

[कृति विवरण: कृति विवरण – सुंदर सूक्तियाँ, सूक्ति संग्रह, हीरो वाधवानी, आकार डिमाई, पृष्ठ संख्या २७५, मूल्य ₹ ५००,  प्रथम संस्करण २०२३, अयन प्रकाशन दिल्ली।]

‘सुंदर सूक्तियाँ’ – पठनीय मननीय कृति

चर्चाकार: आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

किसी भी भाषा में उसे बोलने वालों के जीवन अनुभवों को सार रूप में व्यक्त करने के लिए सूक्तियाँ कही जाती हैं।

सूक्तियों के दो रूप देखने में आते हैं- गद्य और पद्य। सूक्तियाँ, लोकोक्तियों से सृजीत होती हैं, मुहावरे बनकर जन-जन के अधर पर विराजमान रहती हैं और वर्तमान काल में जब शिक्षा सर्व सुलभ है, मुद्रण सहज और मितव्ययी हो गया है, सूक्तियाँ अधरों से उठकर पन्नों पर अंकित हो गई हैं।

श्री हीरो वाधवानी 

सूक्तियाँ परंपरागत भी होती हैं और नई सूक्तियाँ भी रची जाती हैं। चिंतक हीरो वाधवानी अपने विचार सागर से जो विचार बिंदु विचार मणिया प्राप्त करते हैं उन्हें सूक्ति के रूप में सर्वसुलभ कराते हैं। उनकी पूर्व कृतियाँ ‘प्रेरक अर्थपूर्ण कथन और सूक्तियाँ’, ‘सकारात्मक सुविचार’, ‘सकारात्मक अर्थपूर्ण सूक्तियाँ’, ‘मनोहर सूक्तियाँ’ पूर्व में प्रकाशित हो चुकी हैं और अब इस क्रम में उनकी छठवीं कृति ‘सुंदर सूक्तियाँ’ पाठक पंचायत में प्रस्तुत हुई है। भाई हीरो वाधवानी सूक्ति सृजन करते हुए हिंदी साहित्य को एक लोकोपयोगी विधा से संपन्न कर रहे हैं।

सूक्ति सजन का कार्य पूर्व में वियोगी हरि जी, प्रभाकर माचवे जी तथा कुछ अन्य साहित्यकारों ने किया है।

सूक्ति का उद्देश्य सामान्य जन को कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक सारगर्भित संदेश देना होता है।

सूक्ति मानव मन की धरती पर भावनाओं के बीज बोकर कामनाओं की खरपतवार को नियंत्रित करती है, सूक्ति मानवीय आचरण को दिशा दिखाती है। सूक्ति का कार्य किसी डंडधारी की तरह प्रताड़ित करना नहीं होता अपितु किसी सद्भावी मार्गदर्शख की तरह अँगुली पकड़ कर सत्पथ पर चलाना होता है। सूक्ति था

जीवनानुभवों से प्राप्त सीख को सर्वजन सुलभ बनाती है, सूक्ति गागर में सागर है, सूक्ति बिंदु में सिंधु है, सूक्ति अंगार में छपी मशाल है।

सूक्ति का सृजन बहुत सरल प्रतीत होता है किंतु होता नहीं है। एक सूक्ति के सृजन के पूर्व गहन चिंतन की पृष्ठभूमि होती है। हीरो वाधवानी जी सूक्ति के माध्यम से कम से कम शब्दों में सार्थक संदेश देते हैं, आदर्श का मंत्र देते हैं, आचरण का सूत्र देते हैं। जिस तरह सड़क पर यातायात को नियंत्रित करने के लिए संकेतक चिन्ह लगाए जाते हैं, उसी तरह मानव जीवन के पथ पर आचरण को संतुलित और सम्यक बनाने के लिए सूक्ति का सृजन अध्ययन और अनुसरण किया जाता है।

शिशु को शैशव काल काल में ही सूक्तियाँ सुनाई जाएँ तो वह उसके मानस पर अंकित होकर उसके आचरण का भाग बन सकती हैं। आज समाज में जो अराजकता व्याप्त है, जो पारिवारिक विघटन हो रहा है, पारस्परिक विश्वासघात रहा है,़ आदर्श सिमट रहे हैं और उपभोक्तावादी संस्कृति बढ़ रही है उसका निदान सूक्ति के माध्यम से किया जा सकता है। सूक्ति की सरलता, सहजता संक्षिप्तता तथा बोधगम्यता मनोवैज्ञानिकता तथा आचरण परकता है। यह सूक्तियाँ सिर्फ किताबी नहीं है, इन्हें पढ़-समझ कर आचरण में उतारि जा सकता है।

‘सुंदर वह है जिसका व्यवहार और वाणी सुंदर है’ यह सूक्ति मनुष्य जीवन में सुंदरता को परिभाषित करती है कि सुंदरता तन की नहीं होती, वस्तुओं में नहीं होती, व्यवहार और वाणी में होती है।

‘ब्याज पर लिया गया धन कृपा और आशीर्वाद रहित होता है’ इस सूक्ति को अगर आचरण में उतार लिया जाए तो ऋण लेकर न चुका पाने वाले आत्महत्या कर रहे लोगों को जीवन मिल सकता है। विडंबना है उपभोक्तावादी संस्कृति ऋण लेने को प्रोत्साहित करती है। यह सूक्ति उसे नियंत्रित करती है।

‘ईश्वर परिश्रम करने वाली की पहले और प्रार्थना करने वाले की बाद में सुनता है’ इस सूक्ति में समस्त धर्म का मर्म छिपा हुआ है। लोक इसे स्वीकार कर लें तो अंध श्रद्धा के व्याल-जिल से मुक्त होकर श्रम देवता की उपासना करने लगेगा जिससे देश समृद्ध और संपन्न होगा।

एक और सूक्ति देखें जो आचरण के लिए महत्वपूर्ण है। ‘बाल की खाल निकालने वाला बुद्धिमान नहीं मूर्ख है’

सामान्य तौर पर बुद्धि का प्रदर्शन करने के लिए लोग छिद्रान्वेषण की प्रवृत्ति अपनाते हैं। यह उक्ति इस प्रवृत्ति का निषेध करती है।

दांपत्य जीवन को लेकर एक बहुत सुंदर सूक्ति देखिए ‘पत्नी और पति दाईं और बाईँ आँख हैं’, जिस तरह एक आँख के न रहने पर भी दूसरी आँख से देखा तो जा सकता है किंतु वह अशुभ या कुरूप हो जाती है, सम्यक दृष्टि तो तभी है जब दोनों आँखें हों। दोनों का समान महत्व हो, दोनों से समान दिखाई देता हो।

इस सूक्ति में पति-पत्नी दोनों की समानता और पारस्परिक पूरकता का भाव अंतर्निहित है।

‘ईश्वर गाना देता है, गुड़ और शक्कर नहीं’, इस सूक्ति में पुरुषार्थ और प्रयास दोनों की महत्ता अंतर्निहित है। ईश्वर उपादान तो देता है स्वास्थ्य देता है किंतु आस पूरी करने के लिए प्रयास मनुष्य को ही करना होता है।

एक और सूक्ति देखें- ‘अच्छी नींद नर्म बिस्तर की नहीं, कठोर परिश्रम की दीवानी है’, यह कटु सत्य हम दैनिक जीवन में देखते हैं जो श्रमिक दिन भर हाड़ तोड़ मेहनत करता है, रिक्शा चलाता है कुली बनकर सामान उठाता है वह पत्थर पर भी घोड़े बेचकर सोता है और समृद्धिमान पूँजीपति नींद न आने के कारण रेशमी मखमली गद्दे होते हुए भी नींद की गोलियों का सेवन करते हैं।

इस संग्रह के हर पृष्ठ पर अंकित हर सूक्ति जीवन में उतारने योग्य है। मुझे तो ऐसा लगता है कि यह सूक्ति संग्रह हर विद्यालय में होना चाहिए और सूक्तियाँ दीवारों पर लिखी जानी चाहिए।

भाई हीरो वाधवानी इस सार्थक सृजन हेतु साधुवाद के पात्र हैं। ऐसी लोकोपयोगी कृति अल्प मोली होनी चाहिए ताकि वे बच्चे खरीद सकें जिनके लिए यह आवश्यक है।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक की पुस्तक चर्चा # 151 – “आलोक पुराणिक-व्यंग्य का ATM” – संपादन अनूप शुक्ल ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जो  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है श्री अनूप शुक्ल जी द्वारा संपादित पुस्तक – “आलोक पुराणिक-व्यंग्य का ATM” पर चर्चा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 151 ☆

☆ “आलोक पुराणिक-व्यंग्य का ATM” – संपादन अनूप शुक्ल ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

कृति चर्चा

पुस्तक – आलोक पुराणिक व्यंग्य का ATM

संपादन – श्री अनूप शुक्ल

प्रकाशक – रुझान पब्लिकेशंस, जयपुर

मूल्य  – १७५ रु

चर्चा … विवेक रंजन श्रीवास्तव, भोपाल

☆ आलोक पुराणिक व्यंग्य का एटीएम … विवेक रंजन श्रीवास्तव ☆

हास्य एवं व्यंग्य समय की अत्यंत लोकप्रिय विधा के रूप में स्थापित होता जा रहा है । आलोक पुराणिक हिंदी ब्लॉगिंग के प्रारंभ से ही सक्रिय व्यंगकार हैं । प्रायः सभी समाचार पत्रों में उनके व्यंग्य पढ़ने को मिलते हैं। देश के लगभग 32 प्रसिद्ध व्यंग्यकारों ने अपने मंतव्य आलोक पुराणिक जी के विषय में इस कृति में संकलित किए हैं। साथ ही आलोक पुराणिक की 16 लोकप्रिय व्यंग कृतिया भी किताब में संकलित है । संपादक अनूप शुक्ल जी ने विभिन्न विषयों पर आलोक पुराणिक से साक्षात्कार लेकर उसे भी प्रश्न उत्तर के रूप में किताब में संग्रहित किया है ।इस किताVब को पढ़ने से आलोक पुराणिक की रचना प्रक्रिया उन के व्यंग के सफ़र के विषय में ऐसी जानकारी मिलती है जिससे नए व्यंग्यकार प्रेरणा ले सकते हैं। किताब मनोरंजक है और पढ़ने योग्य है। ईबुक के रूप मे भी पुस्तक किंडल पर सुलभ है ।
समीक्षक।

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

समीक्षक, लेखक, व्यंगयकार

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३, मो ७०००३७५७९८

readerswriteback@gmail.कॉम, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – पुस्तक समीक्षा ☆ संवेदना के स्वर – कृतिकार – डॉ. संध्या शुक्ल ‘मृदुल’ ☆ समीक्षक – प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ पुस्तक समीक्षा ☆ संवेदना के स्वर – कृतिकार – डॉ. संध्या शुक्ल ‘मृदुल’ ☆ समीक्षक – प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे 

कृति  –     संवेदना के स्वर

कृतिकार  –  डॉ. संध्या शुक्ल ‘मृदुल’

पृष्ठ संख्या  – 80

मूल्य  –  101 रू.

प्रकाशन – पाथेय प्रकाशन, जबलपुर

‘‘संवेदना के स्वर’*’ लघुकथाओं का बेहतरीन समुच्चय है – प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे 

“संवेदना के स्वर” लघु कथाओं का बेहतरीन समुच्चय है। वर्तमान की सुपरिचित लेखिका, कवयित्री, लघुकथाकार डॉ. संध्या शुक्ल ’मृदुल’ की ताजातरीन कृति लघुकथा संग्रह के रूप में जो पाठकों के हाथ में आयी है, वह है ‘संवेदना के स्वर’। इस उत्कृष्ट लघुकथा संग्रह में समसामयिक चेतना, परिपक्वता, चिंतन, मौलिकता, विशिष्टता, उत्कृष्टता व एक नवीन स्वरूप को लिए हुए उनसठ लघुकथाएं समाहित हैं। 

डॉ. संध्या शुक्ल ’मृदुल’

पाथेय प्रकाशन, जबलपुर से प्रकाशित यह लघुकथा संग्रह अस्सी पृष्ठीय है जिसमें वर्तमान के मूर्धन्य साहित्यकारों एवं स्वनामधन्य व्यक्तित्वों ने अपनी भूमिका, आशीर्वचन लिखा है जिनमें डॉ. कृष्णकांत चतुर्वेदी, डॉ. राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’, प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे, कांताराय, डॉ. हरिशंकर दुबे आदि प्रमुख हैं। वर्तमान में लघुकथाएं व्यापक रूप में लिखी जा रहीं हैं, पढ़ी जा रहीं हैं और सराही भी जा रहीं हैं, पर यह नहीं कहा जा सकता है कि सभी लघुकथाएं, लघुकथाएं होती हैं, स्तरीय होती हैं और सभी को पढ़ा जाता है, सभी को सराहा जाता है, पर निःसंदेह मैं यह कहूंगा कि यदि वे लघुकथाएं ‘संवेदना के स्वर’ जैसी लघुकथाएं होंगी तो उन्हें पढ़ा भी जाएगा, उन्हें सराहा भी जाएगा और उन्हें लघुकथाओं की मान्यता भी दी जाएगी। 

समीक्ष्य कृति में डॉ. संध्या शुक्ल ‘मृदुल’ ने विभिन्न विषयक लघुकथाएं प्रस्तुत की हैं। हर लघुकथा वास्तव में लघुकथा है। कहीं पर भी कोई लघुकथा न तो आत्मकथ्य हैे, न संस्मरण है और न वृत्तांत है। बल्कि हर लघुकथा में लघुकथा का शिल्प समाहित है, उसमें एक संदेश है और कथ्य भी है। वर्तमान में सामाजिक विडंबनाएं हैं, नैतिक मूल्य गिर रहे हैं, रिश्ते-नाते बिखर रहें हैं, व्यक्ति स्वार्थ केन्द्रित हो रहा है राजनैतिक अवमूल्यन भी है, नारी का भी अवमूल्यन हो रहा है, पुरुष का भी अवमूल्यन हो रहा है, और दाम्पत्य का भी अवमूल्यन हो रहा है। शिक्षा के नाम पर भी व्यापार चल रहा है और व्यापार-व्यवसाय में भी लूट है। व्यापक रूप में जो विकार व्याप्त हैं, विद्रूपताएं, नकारात्मकताएं व्याप्त हैं, जो दर्द और टीस व्याप्त है उसको देखकर निश्चित रूप से हर संवंदनशील व्यक्ति की संवेदनाएं आहत होती हैं, संवेदनाएं मुखर भी होती हैं और यदि वह रचनाकार, कलाकार हैे तो वह अपनी कलाकृति, अपनी रचना के माध्यम से अपनी संवेदनाओं को अभिव्यक्ति देगा, भावनाओं को अभिव्यक्ति देगा क्योंकि रचना के सृजन के मूल में भावनाएं और संवेदनाएं ही होती हैं। डॉ. संध्या शुक्ल ‘मृदुल’ की पूर्व की कृतियों को मैं पढ़ा हूं। उनमें भी संवेदनाएं हैं और उनकी लघुकथाओं में भी अच्छी गहरी संवेदनाएं दिखलाई देती है। वो सामाजिक विडंबनाओं को अपना दर्द और अपनी संवेदना बना करके प्रस्तुत करती हैं। इसी कसौटी व सत्य पर यह लघुकथा संग्रह भी खरा उमरता है।

देखा जाए तो वो कर्तव्य की बात भी करती हैं, अन्नदान की बात भी करती हैं, स्वच्छता का संदेश भी देती हैं, स्वतंत्रता का अहसास भी हमें कराती हैं, रोजी-रोटी की बात भी करती हैं। वे संतान के दायित्व का उल्लेख भी करती हैं, कहीं पुरानी साइकिल से भी उनका नाता जुड़ा दिखाई देता है, कहीं कन्या भोज की विडंबनाएं और यथार्थ है और वे विसंगतियों पर पिन पॉइंट करती हैं, वोे इंसानियत का जो बिगड़ता हुआ स्वरूप है, उस पर भी प्रहार करती हैं। वो सुकून सहृदयता और गुरु दक्षिणा की बात करके समाज को एक संदेश देती दिखाई देती हैं, वो मां की सीख को भी गांठ में बांधे दिखाई देती हैं। नानी का गांव की बात भी याद आती है। बुजुर्गों की छाया के माध्यम से वो भारतीय संस्कृति का बखान करती हैं। वो गोरैया की संख्या जो घटती जा रही है, खत्म ही लगभग होती जा रही है, वो चिड़ियों का चहचहाना भी याद करती हैं और ये अपेक्षा, कामना भी करती हैं, काश चिड़िया, गोरैया फिर से चहचहाए। वो अपने देश का गौरव अभिव्यक्त करती हैं। वो लघुकथा के माध्यम से भलाई की बात भी करती हैं, मानवीय मूल्यों की, चेतना की बात भी करती हैं। वो मूल में परोपकार, नैतिकता, करुणा, दया की बात भी करती हैं। उनमें श्रद्धांजली को और उसकी सच्चाई को व्यक्त करने का साहस भी है। वे बिटिया के दान की भी बात करती हैं। 

वास्तव में यदि देखा जाए तो इस लघुकथा संग्रह के माध्यम से ‘मृदुल’ जी ने समाज को संदेश दिया है। उनकी लघुकथाएं केवल प्रेरक प्रसंग नहीं हैं या लघुकथाएं केवल उपदेश नहीं देती हैं, बल्कि वे एक ताने-बाने के माध्यम से एक आदर्श का बिखराव करती हैं, एक आदर्श को लोगों तक पहुंचाती हैं। कहा भी जाता है की साहित्य वो है जिसमें समाज का हित समाहित हो। संध्या जी की जो लघुकथाएं हैं उनमें समाज के लिए बहुत कुछ दिशा है, बहुत कुछ सार्थकता है और हर लघुकथा पाठक को अपने जीवन की कथा इसलिए लगेगी क्योंकि जो भी संवेदनशील पाठक होता हैे वह धरातल से जुड़ा होता है, भावनाओं से युक्त होता है और वह अपने हृदय में बहुत सारी भावनाएं, बहुत सारी कामनाएं, बहुत सारे अरमान, बहुत सारी यादें, बहुत सारा अतीत समाहित किए होता है। जैसे ही लघुकथा उसके किसी अरमान, उसकी किसी याद या उसके किसी अतीत को स्पर्श करती है वो लघुकथा उसको अपनी लगने लगती है। सशक्त रचनाकार की यह बहुत बड़ी विशेषता होती है कि वो अपने सृजन को पाठक का सृजन बना देता है। अपनी संवेदना को पाठक की संवेदना बना देता हैे, अपनी भावना को पाठक की भावना बना देता है और अपने लेखन को पाठक के जीवन का यथार्थ बना देता हैे। 

निश्चित रूप से इस संग्रह की जो लघुकथाएं हैं उनको सफलता पूर्वक संध्या जी ने न केवल लिखा है, न केवल सृजा है बल्कि गढ़ा भी है। इसीलिए ये लघुकथाएं एक प्रकार से दस्तावेज हैं, समाज का दस्तावेज हैं, समाज की मूर्तता का दस्तावेज हैं, समाज की बयानी हैं। इन लघुकथाओं को हम पाठक की लघुकथाएं समझ सकते हैं, समाज की लघुकथाएं समझ सकते हैं, सार्वजनिक लघुकथाएं समझ सकते हैं। चिंतन और लेखन-सृजन तो लेखक का अपना होता है किंतु जब वो व्यापकता के साथ में लिखता है, जब वो समग्रता के साथ में लिखता है, जब वो उत्कृष्टता के साथ में लिखता है, जब वो गहनता के साथ में लिखता है, जब वो उसका केनवास बहुत विस्तृत कर देता है तो उस लेखक का सृजन, कवि का सृजन, कृतिकार का सृजन, लघुकथाकार का सृजन समाज का, पाठक का और सर्व का सृजन बन जाता है। मैं डॉ. संध्या शुक्ल जी को एक सार्थक कृति एक सार्थक सृजन के लिए बधाई देता हूं और इस कृति की उत्कृष्ट सफलता और सुयश के लिए बहुत-बहुत मंगल कामनाएं अर्पित करता हूं।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक की पुस्तक चर्चा # 150 – “हेलो पेरेंट्स (लालन पालन)” – लेखिका – सुश्री मंजू वशिष्ठ ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जो  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है सुश्री मंजू वशिष्ठ जी की पुस्तक – “हेलो पेरेंट्स (लालन पालन)” पर चर्चा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 150 ☆

☆ “हेलो पेरेंट्स (लालन पालन)” – लेखिका – सुश्री मंजू वशिष्ठ ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

कृति चर्चा

पुस्तक – हेलो पेरेंट्स (लालन पालन)

लेखिका – श्री मंजू वशिष्ठ 

प्रकाशक – नोशन प्रेस, चेन्नई

मूल्य  – २९५ रु, पृष्ठ  – १५०

चर्चा … विवेक रंजन श्रीवास्तव, भोपाल

☆ माता पिता को छोटी बड़ी सही सलाह… विवेक रंजन श्रीवास्तव ☆

बढ़ते एकल परिवार, माता पिता दोनो की नौकरी, बच्चों की परवरिश के प्रति शिक्षित पैरेंट्स में अति सतर्कता आदि वे कारण हैं जिनके चलते शायद प्रसिद्ध रेकी ग्रेँड मास्टर मंजू वशिष्ठ को इस किताब को लिखने की प्रेरणा हुई। विदेशों में तो स्कूलों में बच्चे पिस्तौल चलाने जैसे अपराध करते दिखते हैं। इंटरनेट और टी वी पर हिंसा तथा बच्चों की इस सब तक निर्बाध पहुंच ने तथा सायबर मोबाईल गेम्स ने बच्चों की परवरिश के प्रति सजगता जरूरी कर दी है। पब्जी जैसे गेम्स से बच्चे हत्या, आत्महत्या तक करते पाये जा रहे हैं। वर्तमान स्कूली शिक्षा में बेहिसाब प्रतियोगी दौड़ ने बच्चों को मानसिक दबाव में ला दिया है। इस सारे परिवेश ने प्रस्तुत पुस्तक को बहुत प्रासंगिक कर दिया है। पुस्तक में ढ़ेरों ऐसी छोटी छोटी बातें सरल भाषा में चैप्टर्स के रूप में लिखी गई हैं जिनका हमें ज्ञान तो है पर ध्यान नहीं। उदाहरण के रूप में बच्चों को समय दें माता पिता, गलती पर पनिशमेंट जरूरी पर बच्चे को पता होना चाहिये क्यों ?, स्क्रीन टाइम का निर्धारण, मोबाईल का झुनझुना बच्चों को देना बंद करें, बच्चे क्यों बोलते हें झूठ, जैसा खाओ अन्न वैसा रहेगा मन, गलती मानने में हिचक न हो, धन्यवाद कहने में कंजूसी न करें, आचरण से सिखायें, बच्चों की गलतियों पर पर्दा न डालें, किशोरावस्था की विशेष बातें आदि आदि चैप्टर्स में लेखिका ने बहुत सामान्य किन्तु उपयोगी परामर्श दिया है। किताब रीडर्स फ्रेंडली प्रिंत में सचित्र है। संस्कृत सूक्तियां, कवितायें , प्रचलित कहानियां और उदाहरणो के माध्यम से सामान्य जनो के लिये अपनी बात

बताने में रचनाकार सफल रही है। नये एकाकी माता पिता शिशु की छोटी सी बीमारी से भी घबरा जाते हैं, उनके लिये बच्चों के सामान्य रोग और उन्हें जानने के तरीके पर पूरा एक बिन्दुवार चैप्टर ही है। पैरेंट्स के झगड़ों का बच्चो पर प्रभाव होता है इससे बचाव आवश्यक है। जहाँ एकल परिवार में बच्चों की परवरिश की कठिनाईयां हैं वहीं संयुक्त परिवार में भी कई बार मनमाफिक पेरेंटिंग नहीं हो पाती उस पर भी एक चैप्टर में सविस्तार चर्चा है। कुल मिलाकर अच्ची पेरेंटिंग एक अनिवार्य निवेश होती है। यह समझना सबके लिये आवश्यक है। मेरी दृष्टि में यदि प्रत्येक दम्पति समाज को सुसंस्कृत बच्चे ही दे दें तो समाज से अपराध, महिला उत्पीड़न, स्वयमेव कम हो जाये। इस दिशा में यह पुस्तक पाठको का मार्ग दर्शन करने में सफल है। नव दम्पति को उपहार स्वरूप दिये जाने योग्य किताब है।

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

समीक्षक, लेखक, व्यंगयकार

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३, मो ७०००३७५७९८

readerswriteback@gmail.कॉम, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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