(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ “कवितेच्या प्रदेशात” में उनकी जीवन के अनुभव और सत्य को उजागर करती हुई कविता लवंगलता– वृत्त. सुश्री प्रभा जी की प्रत्येक कविता हमें जीवन के अनुभवों और गूढ़ रहस्यों से रूबरू कराती हैं. उनके सांकेतिक प्रतीक अद्भुत एवं हृदयस्पर्शी हैं. इस जन्म का लेखा जोखा रखना है और इस जीवन का सांकेतिक उत्सव ह्रदय में है. वास्तव में हम अपने जीवन में अक्सर घानी के बैल की भाँति गृहस्थी -परिवार के एक ही पथ पर चलते रहते हैं . जीवन में कई क्षण आते हैं जब हमें और कोई पथ सूझता ही नहीं है. कई क्षण ऐसे भी आते हैं जब हम वह नहीं पाते हैं जिसकी अपेक्षा करते हैं, हम फूल बोते हैं और कांटे उग आते हैं. जन्म मृत्यु का प्रश्न सदैव अनुत्तरित है और ऐसे कई प्रश्न हैं जिनका कोई उत्तर हमारे पास नहीं है. फिर कभी वह क्षण भी आता है जब एक चिंगारी हमें नवजीवन प्रदान करती है. जैसे -जैसे पढ़ने का अवसर मिल रहा है वैसे-वैसे मैं निःशब्द होता जा रहा हूँ। यह भी संभव है कि प्रत्येक पाठक कवि के विचारों की विभिन्न व्याख्या करे. हृदय के उद्गार इतना सहज लिखने के लिए निश्चित ही सुश्री प्रभा जी के साहित्य की गूढ़ता को समझना आवश्यक है। यह गूढ़ता एक सहज पहेली सी प्रतीत होती है। आप प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी के उत्कृष्ट साहित्य का साप्ताहिक स्तम्भ – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते हैं।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 16 ☆
☆ लवंगलता– वृत्त ☆
आयुष्याचा लेखाजोखा मांडायाचा आहे
या जन्माचा सौख्य सोहळा मनात भरुनी राहे
ओंजळ माझी रिक्त राहिली असे आजही वाटे
फुले वाहिली ज्या वाटेवर, तिथे उगवले काटे
त्या काट्यांनी बहरुन आल्या इथल्या मळक्या वाटा
रानामधल्या मूक फुलांचा उगाच का बोभाटा
काही केल्या या प्रश्नाचे उत्तर गवसत नाही
पराधीन हे जगणे मरणे, नसे कशाची ग्वाही
प्रत्येकाची नवी लढाई, नवा लढाऊ बाणा
माझे जगणे मात्र असे की, बैल चालवी घाणा
एकेजागी फिरत राहिले, मार्ग मिळाला नाही
सौख्य जरासे असे लाभले, दिशा मिळाल्या दाही
कधी अचानक ठिणगी मधुनी पेटून उठे ज्वाला
पुन्हा नव्याने एक झळाळी येई आयुष्याला
© प्रभा सोनवणे,
“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011
मोबाईल-९२७०७२९५०३, email- [email protected]