श्री यशोवर्धन पाठक
(ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक सोमवार प्रस्तुत है नया साप्ताहिक स्तम्भ कहाँ गए वे लोग के अंतर्गत इतिहास में गुम हो गई विशिष्ट विभूतियों के बारे में अविस्मरणीय एवं ऐतिहासिक जानकारियाँ । इस कड़ी में आज प्रस्तुत है एक बहुआयामी व्यक्तित्व “शिक्षाविद और सहकारिता मनीषी – स्व. डा. सोहनलाल गुप्ता” के संदर्भ में अविस्मरणीय ऐतिहासिक जानकारियाँ।)
☆ कहाँ गए वे लोग # ४९ ☆
☆ “शिक्षाविद और सहकारिता मनीषी – स्व. डा. सोहनलाल गुप्ता” ☆ श्री यशोवर्धन पाठक ☆
कर्मवीर के आगे पथ का
हर पत्थर साधक बनता है
दीवारें भी दिशा बताती
तब मानव आगे बढ़ता है
हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि स्व. श्री ब्रजराज पांडव की इन पंक्तियों की सार्थकता सिद्ध की थी जबलपुर के चर्चित सहकारिता मनीषी और शिक्षा शास्त्री स्व. डा. सोहनलाल गुप्ता ने जिन्होंने अपनी कर्मठता और विद्वत्ता से शैक्षणिक, आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में प्रतिष्ठा अर्जित की जिसके कारण आज भी जनमानस के स्मृति पटल डा. एस एल गुप्ता की छवि और प्रभाव अंकित है।
डा. सोहन लाल गुप्ता एक बहुआयामी व्यक्तित्व के रुप में समाज में प्रतिष्ठित और प्रेरक स्तंभ थे। शिक्षाविद और सहकारिता मनीषी के रुप में उन्होंने अनेक कीर्तिमान स्थापित किए। एक सबके लिए और सब एक के लिए के सिद्धांत के पोषक और प्रचारक डा, सोहनलाल गुप्ता सिर्फ सहकारिता चिंतक और लेखक ही नहीं थे बल्कि उन्होंने सहकारी आंदोलन को सशक्त नेतृत्व भी प्रदान किया था।
जबलपुर नागरिक सहकारी बैंक के प्रथम अध्यक्ष के रूप में उन्होंने सहकारी बैकिंग को कमजोर वर्ग के आर्थिक विकास का एक महत्वपूर्ण माध्यम बनाने में सक्रिय योगदान भी दिया। वर्ष १९७०३ के दशक में मात्र दो लाख रुपए की पूंजी से शुरू किए गए इस नागरिक सहकारी बैंक में उस समय बैंक की प्रारंभिक स्थिति में डा. गुप्ता की लगभग ८० हजार रुपए की पूंजी शामिल थी। १९७९ तक उन्होंने बैठक के अध्यक्ष पद का सफलतापूर्वक निर्वाह किया। यह डा, एस. एल. गुप्ता का सहकारिता के प्रति गहरे लगाव और लगन का परिचायक था।
सहकारिता और ग्रामीण विकास के अंतर्गत कृषिगत गतिविधियों में शोध कार्यों के लिए भी डा. सोहनलाल गुप्ता के की प्रभावी सोच और योगदान को भी शासन ने स्वीकार करते हुए उन्हें पुरस्कृत किया था। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के संदर्भ में डा. गुप्ता ने जो शोध कार्य किये, उसके लिए भी विश्व विद्यालय अनुदान आयोग द्वारा उनकी सराहना की गई। ५ अगस्त १९१८ को जन्मे डा. सोहनलाल गुप्ता की महाविद्यालयीन शिक्षा सेंट कालेज में हुई थी। बाद में उन्होंने वर्ष १९४२ में एम. ए. की परीक्षा और वर्ष १९४३ मं एल. एल. बी. परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। शिक्षा के प्रति डा. गुप्ता का लगाव बड़ा गहरा था। उन्होंने १९४६ में एम. काम. की परीक्षा भी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। वर्ष १९५२ में डा. गुप्ता ने पी. एच. डी. की उपाधि अर्जित की और इसके बाद १९५३ में उन्होंने जबलपुर के जी. एस. कामर्स कालेज में सहायक प्राध्यापक के पद पर अपनी सेवाएं देना शुरू किया। डा. गुप्ता की सक्रिय और समर्पित सेवाओं का मूल्यांकन करते हुए उन्हें १९६० में कालेज में प्राध्यापक के पद पर पदोन्नत किया गया। इसके बाद डा. सोहनलाल गुप्ता ने जब महाविद्यालय में प्राचार्य का दायित्व संभाला तो उनसे उस समय उनकी विद्वता और योग्यता को देखते हुए कालेज को काफी आशाएं थीं। डा. गुप्ता ने कुशलता और सफलता के साथ उन अपेक्षाओं को पूर्ण किया और कालेज के विकास की अद्भुत कहानी लिखते हुए १९७७ में प्राचार्य पद से सेवानिवृत्त हुए। प्राचार्य पद से सेवानिवृत्त होने के बाद भी शिक्षा जगत के लिए जीवन पर्यंत पूरी तरह समर्पित डा. सोहनलाल गुप्ता शैक्षणिक क्षेत्र में नित नये लाभकारी और उपयोगी पाठ्यक्रमों के संचालन हेतु प्रयत्नशील रहे। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में अर्थ वाणिज्य उच्च अध्ययन एवं अनुसंधान केन्द्र की स्थापना की और संचालक के रुप में अनेक वर्षों तक उस केंद्र को महाकोशल क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण और उपयोगी संस्थान बनने में सफलता अर्जित की। इस संस्थान की स्थापना के पीछे डा. गुप्ता की सार्थक सोच यह थी कि आज का शिक्षित युवा अपने आर्थिक भविष्य के निर्माण के लिए व्यावसायिक और औधौगिक प्रबंध में व्यापक प्रशिक्षण प्राप्त करे। अपने शिक्षकीय जीवन के दौरान डा. एस. एल. गुप्ता ने पाठ्यक्रमों से संबंधित अनेक पुस्तकें का लेखन किया जो कि अर्थ वाणिज्य के क्षेत्र में विभिन्न कालेजों में छात्रों के लिए अध्ययन हेतु सहायक सिद्ध हुई।
गांधीवादी विचारक डा. गुप्ता संत विनोबा भावे के वैचारिक दृष्टिकोण से भी काफी प्रभावित थे और यहीं कारण था कि उन्होंने जिला सर्वोदय मंडल के अध्यक्ष पद पर काफी वर्षों तक सक्रियता पूर्वक अपने दायित्वों का का निर्वाह भी किया। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपने कर्तव्यों और दायित्वों का ईमानदारी से निर्वाह करने वाले डा. सोहनलाल गुप्ता का स्वर्गवास दिनांक २२ अक्टूबर १९९६ को हुआ था लेकिन उनकी प्रेरक स्मृतियां सदा हमारा मार्ग प्रशस्त करती रहेंगी। सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. राजकुमार सुमित्र जी के शब्दों में व्यक्ति बीत जाता है और समय भी किंतु स्मृतियां अशेष होती हैं। कुछ चित्र और कुछ स्मृतियां ऐसी होती हैं जिनके कारण स्मृति कोष सार्थक हो जाया करता है। श्रद्धेय डा. सोहनलाल गुप्ता जी की छवि और स्मृतियां ऐसी ही है।
© श्री यशोवर्धन पाठक
संकलन – श्री प्रतुल श्रीवास्तव
संपर्क – 473, टीचर्स कालोनी, दीक्षितपुरा, जबलपुर – पिन – 482002 मो. 9425153629
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈