श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। आज से प्रत्यक शनिवार प्रस्तुत है यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा।)
यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – नरसिम्हा – भाग-१४ ☆ श्री सुरेश पटवा
विरुपाक्ष मंदिर दर्शन उपरांत हम लोग हम्पी के आइकोनिक पहचान वाले लक्ष्मी नरसिम्हा मंदिर पहुँचे। आप मुख्य सड़क मार्ग से इस स्थान तक पहुंच सकते हैं। यह मंदिर मुख्य सड़क पर मध्य में स्थित है जो इसको रॉयल सेंटर से जोड़ता है। कृष्ण मंदिर से लगभग 200 मीटर दक्षिण में मेहराब से होकर गुजरने वाली सड़क को पार करती हुई एक छोटी सी नहर दिखी। दाहिनी ओर एक कच्चा रास्ता आपको नरसिम्हा प्रतिमा और उसके बगल से मंदिर तक ले जाता है। मंदिर तो पूरी तरह ध्वस्त कर दिया गया था। लेकिन खंडित लक्ष्मी नरसिम्हा मूर्तिभंजक अत्याचार की कहानी कहती खड़ी है।
हेमकुटा पहाड़ी के विरुपाक्ष मंदिर से लगभग 1 किलोमीटर दक्षिण में इसी रास्ते ओर दूसरी ओर कृष्ण मंदिर है, जिसे बालकृष्ण मंदिर भी कहा जाता है। हम्पी परिसर के इस हिस्से को शिलालेखों में कृष्णपुरा कहा गया है। खंडहर हो चुके मंदिर के सामने एक बाज़ार के बीच स्तंभयुक्त पत्थर की दुकान के खंडहरों के बीच एक चौड़ी सड़क है जो रथों को बाजार से सामान लाने और ले जाने के काम आती थी। उत्सव समारोहों के जुलूस निकला करते थे। इस सड़क के उत्तर में और बाजार के मध्य में एक बड़ी सार्वजनिक उपयोगिता वाली सीढ़ीदार पानी की टंकी है। टंकी के बगल में लोगों के बैठने के लिए एक मंडप है। मंदिर पूर्व की ओर खुलता है; इसमें नीचे मत्स्य अवतार से शुरू विष्णु के सभी दस अवतारों की नक्काशी वाला एक प्रवेश द्वार है। अंदर कृष्ण का खंडहर हो चुका मंदिर और देवी-देवताओं के छोटे-छोटे खंडहर हैं। मंदिर परिसर मंडपों में विभाजित है, जिसमें एक बाहरी और एक आंतरिक घेरा शामिल है। परिसर में दो गोपुरम प्रवेश द्वार हैं। इसके गर्भगृह में रखी बालकृष्ण की मूल छवि अब चेन्नई संग्रहालय में है। पूर्वी गोपुरा के सामने से एक आधुनिक सड़क गुजरती है, जो हम्पी के सबसे नज़दीक बस्ती कमलापुरम को हम्पी से जोड़ती है। पश्चिमी गोपुरम में युद्ध संरचना और सैनिकों की भित्तिचित्र हैं।
कृष्ण मंदिर के बाहरी हिस्से के दक्षिण में दो निकटवर्ती मंदिर हैं, एक में सबसे बड़ा अखंड शिव लिंग है और दूसरे में विष्णु का सबसे बड़ा अखंड योग-नरसिम्हा अवतार है। 9.8 फीट का शिव लिंग एक घनाकार कक्ष में पानी में खड़ा है और इसके शीर्ष पर तीन आंखें बनी हुई हैं। इसके दक्षिण में 22 फीट ऊंचे नरसिम्हा – विष्णु के नर-शेर अवतार – योग मुद्रा में बैठे हैं। नरसिम्हा मोनोलिथ में मूल रूप से देवी लक्ष्मी भी थीं, लेकिन इसमें व्यापक क्षति के संकेत और कार्बन से सना हुआ फर्श दिखाई देता है – जो मंदिर को जलाने के प्रयासों का सबूत है। प्रतिमा को साफ कर दिया गया है और मंदिर के कुछ हिस्सों को बहाल कर दिया गया है।
नरसिम्हा हम्पी की सबसे बड़ी मूर्ति है। नरसिम्हा विशाल सात सिर वाले शेषनाग की कुंडली पर बैठे हैं। साँप का फन उसके सिर के ऊपर छत्र के रूप में है। भगवान घुटनों को सहारा देने वाली बेल्ट के साथ (क्रॉस-लेग्ड) पालथी योग मुद्रा में हैं। इसे उग्र नरसिम्हा अर्थात अपने भयानक रूप में नरसिम्हा भी कहा जाता है। उभरी हुई आंखें और चेहरे के भाव ही इस नाम का आधार हैं। तालीकोटा के युद्ध के बाद इस मूर्ति को पूरी तरह ध्वस्त करने के प्रयास आयातितों ने किए। पत्थर को जब नहीं तोड़ा जा सका तो इसे गंदगी से अपवित्र किया गया। चारों तरफ़ आग लगाकर नष्ट करने के प्रयास हुए। फिर भी यह मूर्ति वर्तमान स्वरूप में बच गई।
मूल प्रतिमा में लक्ष्मी की छवि भी थी, जो उनकी गोद में बैठी थीं। लेकिन मंदिर तोड़ने के दौरान यह मूर्ति गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो गई। यहां तक कि उनकी गोद में उकेरी गई लक्ष्मी की मूर्ति का क्षतिग्रस्त हिस्सा गायब है। संभवतः यह छोटे-छोटे टुकड़ों में इधर-उधर बिखर गई होगी। लेकिन देवी का हाथ आलिंगन मुद्रा में देव की पीठ पर टिका हुआ दिखाई देता है। अगर आपको इस घेरे के अंदर जाने का मौका मिले तो देवी का हाथ दिख सकता है। यहां तक कि उसकी उंगलियों पर नाखून और अंगूठियां भी बहुत अच्छी तरह से बनाई गई हैं। किसी तरह यह अकेली मूर्ति एक ही समय में प्रदर्शित कर सकती है कि मानव मन कितना रचनात्मक और विनाशकारी हो सकता है। नरसिम्हा दर्शन करके दाहिनी तरफ़ देखा तो कुछ दुकानों के बीच से विट्ठल मंदिर गोपुर दिखा। कदम बरबस ही इस बिट्ठल मंदिर की ओर बढ़ गए।
क्रमशः…
© श्री सुरेश पटवा
भोपाल, मध्य प्रदेश
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈