हिन्दी साहित्य – पितृ पक्ष विशेष – ☆ श्राद्ध – एक तथ्यात्मक विवेचना ☆ – श्री आशीष कुमार

श्री आशीष कुमार

 

(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में  साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। आज प्रस्तुत है उनका आलेख  “श्राद्ध – एक तथ्यात्मक विवेचना”।  यह आलेख उनकी पुस्तक  पूर्ण विनाशक  का एक महत्वपूर्ण  अंश है। इस आलेख में आप  श्राद्ध के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकते हैं ।  आप पाएंगे  कि  कई जानकारियां ऐसी भी हैं जिनसे हम अनभिज्ञ हैं।  श्री आशीष कुमार जी ने धार्मिक एवं वैज्ञानिक रूप से शोध कर इस आलेख एवं पुस्तक की रचना की है तथा हमारे पाठको से  जानकारी साझा  जिसके लिए हम उनके ह्रदय से आभारी हैं। )

 

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☆ श्राद्ध – श्राद्ध – एक तथ्यात्मक विवेचना

 

यहाँ तक कि एक वशिष्ठ कार्य के लिए चन्द्रमा का पूरा पक्ष निर्धारित है  जिसे पितृ पक्ष कहा जाता है । जिसे पितृ पक्ष (पश्चिम और दक्षिण में) या पितृ रक्षा (उत्तर और पूर्व में) के रूप में भी लिखा जाता है, जिसका शाब्दिक अर्थ है “पूर्वजों के पखवाड़े” हिन्दू कैलेंडर में 15-चंद्र दिन की अवधि है जब हिंदू अपने पूर्वजों (पितरों) को श्रद्धांजलि देते हैं, खासकर खाद्य प्रसाद के माध्यम से । अश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक पंद्रह दिन लोग अपने पितरों (पूर्वजों) को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर पार्वण श्राद्ध करते हैं । पिता-माता आदि पारिवारिक मनुष्यों की मृत्यु के पश्चात्‌ उनकी तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक किए जाने वाले कर्म को पितृ श्राद्ध कहते हैं । इस अवधि को पितृ पक्ष, पितरी पोखो, सोला श्रद्धा (सोलह शरद), कनागत, जितिया, महालय पक्ष और अपारा पक्ष भी कहा जाता है । पितृ पक्ष को हिंदुओं द्वारा अशुभ माना जाता है, समारोह के दौरान किए गए मृत्यु के संस्कार को देखते हुए, श्रद्धा या तरण (मुक्ति) के रूप में जाना जाता है । दक्षिणी और पश्चिमी भारत में, यह हिंदू चंद्र महीने ‘भाद्रपद’ (सितंबर) के दूसरे पक्ष (पखवाड़े) में आता है और यह गणेश उत्सव के तुरंत बाद आता है । अधिकांश वर्षों में, शरद ऋतु विषुव इस अवधि के भीतर आता है, यानी इस अवधि के दौरान उत्तरी से दक्षिणी गोलार्ध में सूर्य का संक्रमण होता है ।

हमारे पूर्वजों की तीन पिछली पीढ़ियों की आत्माएँ  पितृ-लोक में रहती हैं, जो स्वर्ग और पृथ्वी के बीच एक क्षेत्र है । यह क्षेत्र यम, मृत्यु के देवता द्वारा शासित है, जो पृथ्वी से मरने वाले व्यक्ति की आत्मा को पितृ-लोक में ले जाते है । जब अगली पीढ़ी के व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो पहली पीढ़ी स्वर्ग में चली जाती है और भगवान के साथ मिल जाती है, इसलिए उनके श्राद्ध करने बंद कर दिए जाते हैं । इस प्रकार, पितृ-लोक में केवल तीन पीढ़ियों को श्राद्ध संस्कार दिया जाता है, जिसमें यम एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है । श्रद्धया इदं श्राद्धम्‌ (जो श्र्द्धा से किया जाय, वह श्राद्ध है) भावार्थ है प्रेत और पित्त्तर के निमित्त, उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक जो अर्पित किया जाए वह श्राद्ध है ।

आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक ब्रह्माण्ड की ऊर्जा तथा उस उर्जा के साथ पितृप्राण पृथ्वी पर व्याप्त रहता है । पितृ पक्ष की शुरुआत में, सूर्य राशि चक्र की तुला राशि में प्रवेश करता है । इस पल के साथ मिलकर, ऐसा माना जाता है कि आत्माएँ  पितृ-लोक छोड़ती हैं और एक महीने तक अपने वंशज घरों में रहती हैं जब तक कि सूर्य अगले राशि चक्र की अगली राशि वृश्चिक में प्रवेश नहीं करता है, पूर्णिमा तक । धार्मिक ग्रंथों में मृत्यु के बाद आत्मा की स्थिति का बड़ा सुन्दर और वैज्ञानिक विवेचन भी मिलता है । मृत्यु के बाद दशगात्र और षोडशी-सपिण्डन तक मृत व्यक्ति की प्रेत संज्ञा रहती है । पुराणों के अनुसार वह सूक्ष्म शरीर जो आत्मा भौतिक शरीर छोड़ने पर धारण करती है प्रेत होती है । प्रिय के अतिरेक की अवस्था “प्रेत” है क्योंकि आत्मा जो सूक्ष्म शरीर धारण करती है तब भी उसके अन्दर मोह, माया भूख और प्यास का अतिरेक होता है । सपिण्डन के बाद वह प्रेत, पित्तरों में सम्मिलित हो जाता है । पितृपक्ष भर में जो तर्पण किया जाता है उससे वह पितृप्राण स्वयं आप्यापित होता है । पुत्र या उसके नाम से उसका परिवार जो यव (जौ) तथा चावल का पिण्ड देता है, उसमें से अंश लेकर वह अम्भप्राण का ऋण चुका देता है । ठीक आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से वह चक्र उर्ध्वमुख होने लगता है । 15 दिन अपना-अपना भाग लेकर शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से पितर उसी ब्रह्मांडीय उर्जा के साथ वापस चले जाते हैं । इसलिए इसको पितृपक्ष कहते हैं और इसी पक्ष में श्राद्ध करने से वह पित्तरों को प्राप्त होता है । भारतीय धर्मग्रंथों के अनुसार मनुष्य पर तीन प्रकार के ऋण प्रमुख माने गए हैं- पितृ ऋण, देव ऋण तथा ऋषि ऋण । इनमें पितृ ऋण सर्वोपरि है । पितृ ऋण में पिता के अतिरिक्त माता तथा वे सब बुजुर्ग भी सम्मिलित हैं, जिन्होंने हमें अपना जीवन धारण करने तथा उसका विकास करने में सहयोग दिया ।

त्रिविधं श्राद्ध मुच्यते के अनुसार मत्स्य पुराण में तीन प्रकार के श्राद्ध बतलाए गए है, जिन्हें नित्य, नैमित्तिक एवं काम्य श्राद्ध कहते हैं । यमस्मृति में पाँच प्रकार के श्राद्धों का वर्णन मिलता है । जिन्हें नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि और पार्वण के नाम से श्राद्ध है ।

नित्य श्राद्ध– प्रतिदिन किए जानें वाले श्राद्ध को नित्य श्राद्ध कहते हैं । इस श्राद्ध में विश्वेदेव को स्थापित नहीं किया जाता । केवल जल से भी इस श्राद्ध को सम्पन्न किया जा सकता है ।

नैमित्तिक श्राद्ध– किसी को निमित्त बनाकर जो श्राद्ध किया जाता है, उसे नैमित्तिक श्राद्ध कहते हैं । इसे एकोद्दिष्ट के नाम से भी जाना जाता है । एकोद्दिष्ट का अर्थ किसी एक को निमित्त मानकर किए जाने वाला श्राद्ध जैसे किसी की मृत्यु हो जाने पर दशाह, एकादशाह आदि एकोद्दिष्ट श्राद्ध के अन्तर्गत आता है । इसमें भी विश्वेदेवोंको स्थापित नहीं किया जाता।

काम्य श्राद्ध- किसी कामना की पूर्ति के निमित्त जो श्राद्ध किया जाता है । वह काम्य श्राद्ध के अन्तर्गत आता है ।

वृद्धि श्राद्ध- किसी प्रकार की वृद्धि में जैसे पुत्र जन्म, वास्तु प्रवेश, विवाह आदि प्रत्येक माँगलिक प्रसंग में भी पितरों की प्रसन्नता हेतु जो श्राद्ध होता है उसे वृद्धि श्राद्ध कहते हैं । इसे नान्दीश्राद्ध या नान्दीमुखश्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है, यह एक प्रकार का कर्म कार्य होता है। दैनंदिनी जीवन में देव-ऋषि-पितृ तर्पण भी किया जाता है ।

पार्वण श्राद्ध– पार्वण श्राद्ध पर्व से सम्बन्धित होता है । किसी पर्व जैसे पितृपक्ष, अमावास्या या पर्व की तिथि आदि पर किया जाने वाला श्राद्ध पार्वण श्राद्ध कहलाता है । यह श्राद्ध विश्वेदेवसहित होता है ।

सपिण्डनश्राद्ध– सपिण्डन शब्द का अभिप्राय पिण्डों को मिलाना । पितर में ले जाने की प्रक्रिया ही सपिण्डन है । प्रेत पिण्ड का पितृ पिण्डों में सम्मेलन कराया जाता है । इसे ही सपिण्डनश्राद्ध कहते हैं।

गोष्ठी श्राद्ध- गोष्ठी शब्द का अर्थ समूह होता है । जो श्राद्ध सामूहिक रूप से या समूह में सम्पन्न किए जाते हैं । उसे गोष्ठी श्राद्ध कहते हैं ।

शुद्धयर्थ श्राद्ध- शुद्धि के निमित्त जो श्राद्ध किए जाते हैं । उसे शुद्धयर्थ श्राद्ध कहते हैं । जैसे शुद्धि हेतु ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए ।

कर्माग श्राद्ध– कर्माग का सीधा साधा अर्थ कर्म का अंग होता है, अर्थात् किसी प्रधान कर्म के अंग के रूप में जो श्राद्ध सम्पन्न किए जाते हैं । उसे कर्मागश्राद्ध कहते हैं ।

यात्रार्थ श्राद्ध- यात्रा के उद्देश्य से किया जाने वाला श्राद्ध यात्रार्थ श्राद्ध कहलाता है । जैसे- तीर्थ में जाने के उद्देश्य से या देशान्तर जाने के उद्देश्य से जिस श्राद्ध को सम्पन्न कराना चाहिए वह यात्रार्थश्राद्ध ही है । इसे घृतश्राद्ध भी कहा जाता है ।

पुष्ट्यर्थ श्राद्ध– पुष्टि के निमित्त जो श्राद्ध सम्पन्न हो, जैसे शारीरिक एवं आर्थिक उन्नति के लिए किया जाना वाला श्राद्ध पुष्ट्यर्थश्राद्ध कहलाता है ।

धर्मसिन्धु के अनुसार श्राद्ध के 96 अवसर बतलाए गए हैं । एक वर्ष की अमावास्याएं (12) पुणादितिथियां (4),मन्वादि तिथियां (14) संक्रान्तियां (12) वैधृति योग (12), व्यतिपात योग (12) पितृपक्ष (15), अष्टकाश्राद्ध (5) अन्वष्टका (5) तथा पूर्वेद्यु:(5) कुल मिलाकर श्राद्ध के यह 96 अवसर प्राप्त होते हैं । पितरों की संतुष्टि हेतु विभिन्न पितृ-कर्म का विधान है ।

जब महाभारत युद्ध में दानवीर कर्ण की मृत्यु हो गई, तो उनकी आत्मा स्वर्ग में चली गई, जहाँ उन्हें भोजन के रूप में सोने और गहने की पेशकश की गई । कर्ण को खाने के लिए असली खाना चाहिए था तो कर्ण ने स्वर्ग के राजा इंद्र देव से पूछा, की उन्हें सोना खाने के तौर पर क्यों दिया जा रहा है उन्हें असली खाना चाहिए तब  इंद्र ने कर्ण को बताया कि उन्होंने अपना पूरा जीवन स्वर्ण दान किया था, लेकिन उन्होंने श्राद्ध में कभी भी अपने पूर्वजों को भोजन दान नहीं किया । इसलिए जो वस्तु जीवित अवस्था में पितरो को दान की जाती है मृत्य के बाद वो ही वस्तु मिलती है ।  इस पर कर्ण ने कहा कि चूंकि वह अपने पूर्वजों से अनजान था, इसलिए उन्होंने कभी भी अपनी स्मृति में कुछ दान नहीं किया । संशोधन करने के लिए, कर्ण को 15 दिनों की अवधि के लिए पृथ्वी पर लौटने की इजाजत दी गयी, ताकि वह श्राद्ध कर सके और अपनी याद में अपने पूर्वजो को भोजन और पानी दान कर सके । तब से इस अवधि के 15 दिनों को पितृ पक्ष के रूप में जाना जाता है । कुछ किंवदंतियों में इंद्र के स्थान पर यम ने कर्ण को 15 दिन पृथ्वी पर रह कर श्राद्ध करने की अनुमति दी थी ।

क्या आपने कभी ध्यान दिया है की पितृ पक्ष वास्तव में वह समय है जब पृथ्वी पर दिन और रात्रि लगभग बराबर अवधि के होते है । जैसे की मैंने पहले भी बताया है की आमतौर पर पितृ पक्ष के दौरान ही शरद ऋतु विषुव आता है । यह तब आता है जब सूर्य राशि चक्र के तुला चिन्ह में प्रवेश करता है । तुला का अर्थ बराबर या संतुलन है । अच्छे और बुरे का संतुलन, या प्रकाश और अंधेरे का संतुलन, शारीरिक और मानसिक संतुलन, भौतिकवाद और आध्यात्मिकता का संतुलन, और इसी तरह । तुला खुद भी राशि चक्र की 12 राशियों में से 7 वा चिन्ह है अथार्त राशि चक्र के लगभग मध्य । उपर्युक्त संतुलन के अतरिक्त, इस पितृ पक्ष के दौरान होने वाली एक और आध्यात्मिक संतुलन भी है । यह जीवन और मृत्यु का संतुलन है । इसके अतिरिक्त इस पितृ पक्ष के दौरान कुछ लोगों को ऊर्जा की कमी, थकान अनुभव होती है और उन्हें अधिक नींद भी आती है, वर्ष के बाकी दिनों के मुकाबले । क्या आपको जानना है क्यों?

असल में श्राद्ध के दिनों में कई व्यक्ति अपने मृत्यु रिश्तेदारों को विशेष अनुष्ठानों के साथ आमंत्रित करते है । इसलिए कुछ आत्माएँ जिनके पास नया शरीर है, लेकिन फिर भी वह अपने पूर्व जन्म के रिश्तेदारों से भावनाओ से जुड़े हुए हैं, वो अपने अंतिम जीवन के रिश्तेदारों के आह्वान पर अपने नए शरीर से बाहर जाने का प्रयास करते है उनके पास जो उन्हें आमंत्रित कर रहे है । क्योकि उनसे उनकी भावनाएँ मृत्यु के बाद एवं नया शरीर मिलने के बाद भी जुड़ी हुई है । तो वो आत्माएँ अपने नए शरीर से बाहर जाने की कोशिश करती हैं, लेकिन नई शरीर की इच्छाएँ और कर्म इस आत्मा को इस नए शरीर के अंदर पकड़ने की कोशिश करते हैं । और उस नए शरीर में एक तरह का द्वन्द चलता है । इसलिए आत्मा को नए शरीर में पकड़ने के लिए शरीर और मस्तिष्क की ऊर्जा का अधिक उपयोग होता है, जिसके कारण हमारे शरीर और मस्तिष्क ऊर्जा की कमी अनुभव करते है”

© आशीष कुमार  

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हिन्दी साहित्य – आलेख – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – यह पल ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

 

☆ संजय दृष्टि  – यह पल ☆

 

सामान्य निरीक्षण है कि हम में से अधिकांश की मोबाइल गैलरी एक बड़ा भंडारघर है। पोस्ट पर पोस्ट, ढेर सारी पोस्ट मनुष्य इकट्ठा करता रहता है, डिलीट नहीं करता। फिर एक दिन सिस्टम एकाएक सब कुछ डिलीट कर देता है।

गड्डियाँ बाँधे निरर्थक संचित धन हो या थप्पियाँ लगाकर संजोये रखे सपने, चलायमान न हों तो सब व्यर्थ है। जीवन न बीता कल है, जीवन न आता कल है। जीवन बस इस पल है।

पल, पल रहा है, इसके साथ पलो।  पल चल रहा है, इसके साथ चलो। पल तो रुकने से रहा, नहीं चले तो तुम रुके रह जाओगे।

जो रुका रह गया, वह जड़ हो गया। चलायमान का ठहर जाना, चेतन का जड़ हो जाना, जीवन की इससे बड़ी विडंबना और क्या होगी?

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

writersanjay@gmail.com

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हिन्दी साहित्य – आलेख – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – कृतिका ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

 

☆ संजय दृष्टि  – कृतिका ☆

 

(“जीवन में अद्भुत होते हैं वे क्षण जब आगे चलनेवाला पिता अपनी संतान के पीछे चलने लगे।”  कल्पना मात्र से ह्रदय गौरवान्वित हो जाता है, जब हम किसी पिता की लेखनी से ऐसे वाक्यों को पढ़ते हैं.  यह अपने आप में एक आत्मसंतुष्टि की भावना को जन्म देती है. ऐसा लगता है जीवन सार्थक हो गया.  भावनाओं को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता.  मैंने सुश्री कृतिका (श्री संजय भारद्वाज जी की बिटिया) का ब्लॉग पढ़ा.  अब सुश्री कृतिका ने अपना एक स्थान अर्जित कर लिया है. सुश्री कृतिका के ब्लॉग को पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें >>  Glazedshine.

अनायास ही लगा सब कुछ विरासत में नहीं मिला उसने विरासत को आगे बढ़ाने  के लिए कठोर परिश्रम किया है. साथ ही मुझे  पुलित्ज़र पुरस्कार विजेता स्व. केविन कार्टर के पुरस्कार जीतने के बाद आत्मग्लानि में आत्महत्या की घटना याद आ गई जिसे आप गूगल में सर्च कर सकते हैं. (लिंक को कॉपी राइट के कारण यहाँ नहीं दे सकता).   मैं श्री संजय भरद्वाज जी की भावनाओं को आपसे साझा करने से नहीं रोक सका.)

  – हेमन्त बावनकर

 

जीवन में अद्भुत होते हैं वे क्षण जब आगे चलनेवाला पिता अपनी संतान के पीछे चलने लगे। अनन्य विजय के क्षण होते हैं यह। बिटिया कृतिका ने यह अनन्यता जीवन में  अनेक बार दी है।
कुछ ऐसा ही आज भी हुआ। दो दिन से पशुओं के साथ मनुष्य के व्यवहार को लेकर भीतर एक मंथन चल रहा था। बस कलम उठानी शेष थी कि बिटिया ने अपने ब्लॉग का एक लिंक पढ़ने के लिए भेजा। लेख पढ़ा और रक्त सम्बंध कैसे अदृश्य काम करता है, यह भी जाना। गदगद हो गया उसकी भावनाएँ और उसकी कलम की संभावनाएँ पढ़कर।
यह कृतिका का चौथा ब्लॉग है। पढ़ियेगा और अंकुरित हो रही एक लेखिका को उसके ब्लॉग के कमेंट बॉक्स में आशीर्वाद अवश्य दीजियेगा।
कृतिका के ब्लॉग का लिंक है-  Glazedshine.

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ सकारात्मक सपने – #16 – कागज जलाना मतलब पेड़ जलाना  ☆ सुश्री अनुभा श्रीवास्तव

सुश्री अनुभा श्रीवास्तव 

(सुप्रसिद्ध युवा साहित्यकार, विधि विशेषज्ञ, समाज सेविका के अतिरिक्त बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी  सुश्री अनुभा श्रीवास्तव जी  के साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत हम उनकी कृति “सकारात्मक सपने” (इस कृति को  म. प्र लेखिका संघ का वर्ष २०१८ का पुरस्कार प्राप्त) को लेखमाला के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने के अंतर्गत आज अगली कड़ी में प्रस्तुत है “कागज जलाना मतलब पेड़ जलाना ” ।  इस लेखमाला की कड़ियाँ आप प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे।)  

 

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने  # 17 ☆

 

☆ कागज जलाना मतलब पेड़ जलाना ☆

 

स्कूलों में, कार्यालयों में प्रतिदिन ढ़ेरों कागज साफ सफाई के नाम पर जला दिया जाता है……. कभी आपने जाना है कि कागज कैसे बनता है ? जब हम यह समझेंगे कि कागज कैसे बनता है, तो हम सहज ही समझ जायेंगे कि एक कागज जलाने का मतलब है कि हमने एक हरे पेड़ की एक डगाल जला दी.रद्दी  कागज को रिसाइक्लिंग के द्वारा पुनः नया कागज बनाया जा सकता है और इस तरह जंगल को कटने से बचाया जा सकता है.

हमारे देश में जो पेपर रिसाइक्लिंग प्लांट हैं, जैसे खटीमा, उत्तराखण्ड में वहां रिसाइक्लिंग हेतु रद्दी कागज अमेरिका से आयात किया जाता है. दूसरी ओर हम सफाई के नाम पर जगह जगह रोज ढ़ेरो कागज जलाकर प्रदूषण फैलाते हैं.

अखबार वाले, अपने ग्राहकों को समय समय पर तरह तरह के उपहार देते हैं. क्या ही अच्छा हो कि अखबार की रद्दी हाकर के ही माध्यम से प्रतिमाह वापस खरीदने का अभियान भी अखबार वाले चलाने लगें और इसका उपयोग रिसाइक्लिंग हेतु किया जावे. अभियान चलाकर स्कूलो, अदालतो, अखबार, पत्र पत्रिकाओ को व अन्य संस्थाओ को  रद्दी कागज को जलाने की अपेक्षा कागज बनाकर पुनर्उपयोग करने के लिये प्रोत्साहित करने के प्रयास होने चाहिये. ई बुक्स व पेपर लैस कार्यालय प्रणाली को अधिकाधिक प्रोत्साहन दिये जाने की भी जरूरत है.  इससे जंगल भी कटने से बचेंगे.

 

© अनुभा श्रीवास्तव

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ संजय उवाच – #13 – चौरासी कोसी परिक्रमा ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।

श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से इन्हें पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली   कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच # 13 ☆

 

☆ चौरासी कोसी परिक्रमा ☆

 

लगभग एक घंटे पहले छिटपुट बारिश हुई है। भोजन के पश्चात घर की बालकनी में आया तो वहाँ का दृश्य देखकर मन प्रफुल्लित हो उठा। सुरक्षा जाली की सलाखों पर पानी की मोटी बूँदें झूल रही थीं। बालकनी के पार खड़े विशाल पेड़ अपनी फुनगियों पर गुलाबी फूलों से लकदक यों झूम रहे थे मानों सुबह-सवेरे कोई मुनिया अपनी चोटियों पर दो गुलाबी रिबन कसे इठलाती हुई स्कूल जा रही हो। इस दृश्य को कैमरे में उतारने का मोह संवरण न कर सका।

मोबाइल के कैमरे ने चित्र उतारा तो मन का कैमरा चित्र को मस्तिष्क की तरंगों तक ले गया और मन-मस्तिष्क क गठजोड़ विचार करने लगा। क्या हमारा क्षणभंगुर जीवन साँसों का आलंबन लिए इन बूँदों जैसा नहीं है? हर बूँद को लगता है  जैसे वह कभी न ढलेगी, न ढलकेगी। सत्य तो यह है कि अपने ही भार से बूँद प्रतिपल माटी में मिलने की ओर बढ़ रही है। कालातीत सत्य का अनुपम सौंदर्य देखिए कि बूँद माटी में मिलेगी तो माटी उम्मीद से होगी। माटी उम्मीद से होगी तो अंकुर फूटेंगे। अंकुर फूटेंगे तो पौधे पनपेंगे। पौधे पनपेंगे तो वृक्ष खड़े होंगे। वृक्ष खड़े होंगे तो बादल घिरेंगे। बादल घिरेंगे तो बारिश होगी। बारिश होगी तो बूँदें टपकेंगी। बूँदें टपकेंगी तो सलाखें भीगेंगी। सलाखें भीगेंगी तो उन पर पानी की मोटी बूँदें झूलेंगी…!

वस्तुत: सलाखें, बूँदें, पेड़, सब प्रतीक भर हैं। जीवात्मा असीम आनंद के अनंत चक्र की चौरासी कोसी परिक्रमा कर रहा है। बरसाती बादल की तरह छिपते-दिखते इस चक्र को अद्वैत भाव से देख सको तो जीवन के ललाट पर सतरंगा इंद्रधनुष उमगेगा।…इंद्रधनुष उमगने के पहले चरण में चलो निहारते हैं सलाखें, बूँदें और पेड़…!

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ आशीष साहित्य – # 9 – सीता की गीता ☆ – श्री आशीष कुमार

श्री आशीष कुमार

 

(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में  साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। अब  प्रत्येक शनिवार आप पढ़ सकेंगे  उनके स्थायी स्तम्भ  “आशीष साहित्य”में  उनकी पुस्तक  पूर्ण विनाशक के महत्वपूर्ण अध्याय।  इस कड़ी में आज प्रस्तुत है   “अद्भुत पराक्रम।)

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ आशीष साहित्य – # 9 ☆

 

☆ सीता की गीता

 

देवी सीता ने कहा, “मेरी प्यारी बेटी, पत्नी को केवल अपने पति की नियति का पालन करना चाहिए । एक स्त्री  के लिए उसके पिता, उसका बेटा, उसकी माँ, उसकी सखियों, बहन, भाई, एवं स्वयं से बढ़कर भी उसका पति ही है, जो इस संसार में और उसकी आने वाली आगामी जिंदगियों में मोक्ष का उसका एकमात्र साधन है । एक स्त्री के लिए सबसे बड़ी सजावट बाह्य आभूषण नहीं बल्कि उसके पति की खुशी है ।

अपनी बेटी को अपने पति और अपने सास- ससुर को प्यार, सम्मान और स्नेह देने के लिए प्रशिक्षित करना एक माता का परम कर्तव्य है ।

देवी सीता ने आगे कहा, “अब मैं आपको पत्नी के कुछ कर्तव्यों को बताऊँगी जिन्हें हर एक पत्नी को उसकी जाति, संस्कृति, पृष्ठभूमि, देश इत्यादि के बावजूद पालन करना चाहिए । वे निम्नलिखित हैं :

  • एक अच्छी पत्नी को अपने पति के घर में खुद को स्थायी रूप से स्थापित करना चाहिए ।
  • पत्नी को अपने पति की देख रेख में ही रहना चाहिए ।
  • पत्नी को अपने पति के प्रेमपूर्ण दृष्टिकोण की ओर आकर्षित रहना चाहिए और हमेशा अपने पति के प्रति ईमानदार रहना चाहिए ।
  • पत्नी को अपने पति के घर में इतना प्यार और स्नेह खोजना चाहिए कि उसे अपने माता-पिता के घर को याद ही ना आये ।
  • पत्नी को अपने पति के प्रति मधुर रूप से आचरण करना चाहिए ।

पत्नी के कुछ अन्य मुख्य गुण :

उसे केवल अपने पति की ओर कामुक होना चाहिए, उसे घर के कामो के प्रति मेहनती होना चाहिए, सर्वोत्तम व्यवहार करना चाहिए, घर को सर्वोत्तम तरीके से बनाए रखने, पति के धन- धान्य को संरक्षित करने और बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए, एवं ज़रूरत वाले लोगों पर पति की कमाई का भाग खर्च करना, घर को बहुत परिपक्व तरीके से बढ़ाने के लिए, पति की कमाई को सावधानी पूर्वक इस्तमाल करना चाहिए । उसे दुःख और क्रोध से प्रभावित नहीं होना चाहिए, हर किसी को अपने अच्छे व्यवहार से खुश रखना चाहिए, उसे हर रोज सूर्योदय से पहले जागना चाहिए एवं कभी भी अपने पति से अलग होने के विषय में नहीं सोचना चाहिए ।

त्रिजटा ने कहा, “माँ मुझे जो आपने अपने ज्ञान का आशीर्वाद दिया है वह अद्भुत है, अब कृपया मुझे पति के कर्तव्यों के विषय में बताएं”

देवी सीता ने कहा, “पुत्री अपने कर्तव्यों को पूर्णतय पालन करने का सबसे अच्छा उपाय यह है की हम दूसरों के कर्तव्यों से अपने कर्तव्यों की तुलना ना करे । मैं मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान की पत्नी हूँ और मैं केवल अपने पति और उनके परिवार के लिए अपने कर्तव्यों को पूरा करने के विषय में ही सोचती और जानती हूँ लेकिन पुत्री यदि तुम पूछ ही रही हो तो मैं तुमको बता दूँगी, एक बार मेरे पति ने मुझे पति के कर्तव्यों के विषय में समझाया था, वे ये हैं:

  • पति के प्यारे और प्यारे व्यवहार से पत्नी को उसके प्रति प्यार और स्नेह पैदा करना चाहिए ।
  • पति को पत्नी से कुछ छिपाना नहीं चाहिए ।
  • उसे एक अनुशासित, पवित्र जीवन जीना चाहिए ।
  • वह अपने विवाहित जीवन को बनाए रखने के लिए पैसे कमाने में सक्षम होना चाहिए।
  • पति को अपनी पत्नी का सम्मान करना चाहिए ।

मर्यादा पुरुषोत्तम मर्यादा का अर्थ है केवल वो ही कार्य करना जो एक व्यक्ति के उसकी जाति, राज्य, अवस्था आदि से निर्धारित उसके धर्म है । पुरुषोत्तम का अर्थ है पुरुषो में उत्तम या जो आदर्श पुरुष हो । पुरुषोत्तम भगवान विष्णु के नामों में से एक हैं और महाभारत के विष्णु सहस्रनाम में भगवान विष्णु के 24 वें नाम के रूप में प्रकट होता हैं । भागवत गीता के अनुसार, पुरुषोत्तम को क्षार और अक्षार के ऊपर और परे समझाया गया है या एक सर्वज्ञानी ब्रह्मांड के रूप में समझाया गया है । भगवान विष्णु के अवतार के रूप में भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है, जबकी भगवान विष्णु को भगवान कृष्णा के अवतार के रूप में लीला या पूर्ण पुरुषोत्तम के रूप में जाना जाता है ।

 

© आशीष कुमार  

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – चिंतन तो बनता है ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

☆ संजय दृष्टि – चिंतन तो बनता है ☆

 

सोमवार 16 सितम्बर 2019 को हिंदी पखवाड़ा के संदर्भ में केंद्रीय जल और विद्युत अनुसंधान संस्थान, खडकवासला, पुणे में आमंत्रित था। कार्यक्रम के बाद सैकड़ों एकड़ में फैले इस संस्थान के कुछ मॉडेल देखे। केंद्र और विभिन्न राज्य सरकारों के लिए अनेक बाँधों की देखरेख और छोटे-छोटे चेकडैम बनवाने में  संस्थान महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह संस्थान चूँकि जल अनुसंधान पर काम करता है, भारत की नदियों पर बने पुल और पुल बनने के बाद जल के प्रवाह में आनेवाले परिवर्तन से उत्पन्न होनेवाले प्रभाव का यहाँ अध्ययन होता है। इसी संदर्भ में यमुना प्रोजेक्ट का मॉडेल देखा। दिल्ली में इस नदी पर कितने पुल हैं, हर पुल के बाद पानी की धारा और अविरलता में किस प्रकार का अंतर आया है, तटों के कटाव से बचने के लिए कौनसी तकनीक लागू की जाए,  यदि राज्य सरकार कोई नया पुल बनाने का निर्णय करती है तो उसकी संभावनाओं और आशंकाओं का अध्ययन कर समुचित सलाह दी जाती है। आंध्र और तेलंगाना के लिए बन रहे नए बाँध पर भी सलाहकार और मार्गदर्शक की भूमिका में यही संस्थान है। इस प्रकल्प में पानी से 900 मेगावॉट बिजली बनाने की योजना भी शामिल है। देश भर में फैले ऐसे अनेक बाँधों और नदियों के जल और विद्युत अनुसंधान का दायित्व संस्थान उठा रहा है।

मन में प्रश्न उठा कि पुणे के नागरिक, विशेषकर विद्यार्थी, शहर और निकटवर्ती स्थानों पर स्थित ऐसे संस्थानों के बारे में कितना जानते हैं? शिक्षा जबसे व्यापार हुई और विद्यार्थी को विवश ग्राहक में बदल दिया गया, सारे मूल्य और भविष्य ही धुँधला गया है। अधिकांश निजी विद्यालय छोटी कक्षाओं के बच्चों को पिकनिक के नाम पर रिसॉर्ट ले जाते हैं। बड़ी कक्षाओं के छात्र-छात्राओं के लिए दूरदराज़ के ‘टूरिस्ट डेस्टिनेशन’ व्यापार का ज़रिया बनते हैं तो इंटरनेशनल स्कूलों की तो घुमक्कड़ी की हद और ज़द भी देश के बाहर से ही शुरू होती है।

किसीको स्वयं की संभावनाओं से अपरिचित रखना अक्षम्य अपराध है। हमारे नौनिहालों को अपने शहर के महत्वपूर्ण संस्थानों की जानकारी न देना क्या इसी श्रेणी में नहीं आता? हर शहर में उस स्थान की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक धरोहर से कटे लोग बड़ी संख्या में हैं। पुणे का ही संदर्भ लूँ तो अच्छी तादाद में ऐसे लोग मिलेंगे जिन्होंने शनिवारवाडा नहीं देखा है। रायगढ़, प्रतापगढ़ से अनभिज्ञ लोगों की कमी नहीं। सिंहगढ़ घूमने जानेवाले तो मिलेंगे पर इस गढ़ को प्राप्त करने के लिए छत्रपति शिवाजी महाराज के जिस ‘सिंह’ तानाजी मालसुरे ने प्राणोत्सर्ग किया था, उसका नाम आपके मुख से पहली बार सुननेवाले अभागे भी मिल जाएँगे।

लगभग एक वर्ष पूर्व मैंने महाराष्ट्र के तत्कालीन शालेय शिक्षामंत्री को एक पत्र लिखकर सभी विद्यालयों की रिसॉर्ट पिकनिक प्रतिबंधित करने का सुझाव दिया था। इसके स्थान पर ऐतिहासिक व सांस्कृतिक महत्व के स्थानीय स्मारकों, इमारतों, महत्वपूर्ण सरकारी संस्थानों  की सैर आयोजित करने के निर्देश देने का अनुरोध भी किया था।

धरती से कटे तो घास हो या वृक्ष, हरे कैसे रहेंगे? इस पर गंभीर मनन, चिंतन और समुचित क्रियान्वयन की आवश्यकता है।

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

writersanjay@gmail.com

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – सफलता का सूत्र ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

☆ संजय दृष्टि – सफलता का सूत्र  ☆

किसी टाइल या एसबेस्टॉस की शीट के छोटे टुकड़े को अपनी तर्जनी से दबाएँ। फिर यही प्रक्रिया क्रमशः मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा और अंगूठे से करें। हर बार कम या अधिक दबाव शीट या टाइल पर पड़ेगा पर वह अखंडित रहेगी। अब उंगलियों और अंगूठे को एक साथ भींच लीजिए, मुट्ठी बन जाएगी। मुट्ठी की गुद्दी से वार कीजिए। टाइल या शीट चटक जाएगी।

जीवन का गुपित और निहितार्थ इस छोटे-से प्रयोग में छिपा है। प्रत्येक का अपना सामर्थ्य और अपना अस्तित्व है। इस अस्तित्व की सीमाओं का भान रखनेवाला बुद्धिमान होता है जबकि अपने  गुमान में जीनेवाला नादान होता है। अकेले अस्तित्व के अहंकार से मुक्त होकर सामूहिकता का भान करना जिसने सीख लिया, सफलता और आनंद का रुबिक क्यूब उसने हल कर लिया।

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – भाषा और अभिव्यक्ति ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

☆ संजय दृष्टि – भाषा और अभिव्यक्ति  ☆

 

नवजात का रुदन

जगत की पहली भाषा,

अबोध की खिलखिलाहट

जगत का पहला महाकाव्य,

शिशु का अंगुली पकड़ना

जगत का पहला अनहद नाद,

संतान का माँ को पुकारना

जगत का पहला मधुर निनाद,

प्रसूत होती स्त्री केवल

एक शिशु को नहीं जनती,

अभिव्यक्ति की संभावनाओं के

महाकोश को जन्म देती है,

संभवतः यही कारण है

भाषा स्त्रीलिंग होती है।

 

अपनी भाषा में अभिव्यक्त होना अपने अस्तित्व को चैतन्य रखना है।….आपका दिन चैतन्य रहे।

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ सकारात्मक सपने – #16 – कचरे के खतरे ☆ सुश्री अनुभा श्रीवास्तव

सुश्री अनुभा श्रीवास्तव 

(सुप्रसिद्ध युवा साहित्यकार, विधि विशेषज्ञ, समाज सेविका के अतिरिक्त बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी  सुश्री अनुभा श्रीवास्तव जी  के साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत हम उनकी कृति “सकारात्मक सपने” (इस कृति को  म. प्र लेखिका संघ का वर्ष २०१८ का पुरस्कार प्राप्त) को लेखमाला के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने के अंतर्गत आज अगली कड़ी में प्रस्तुत है “कचरे के खतरे” ।  इस लेखमाला की कड़ियाँ आप प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे।)  

 

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने  # 16 ☆

 

☆ कचरे के खतरे ☆

 

घर-आँगन सब आग लग रही, सुलग रहे वन-उपवन
दर-दीवारें चटख रही हैं, जलते छप्पर-छाजन

तन जलता है, मन जलता है जलता जन-धन जीवन
एक नहीं जलते सदियों से जकड़े गर्हित बन्धन।

दूर बैठकर ताप रहा है, आग लगाने वाला
मेरा देश जल रहा, कोई नहीं बुझाने वाला।

….. डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन

विकास का सूचक और अर्थव्यवस्था का आधार  बढ़ता मशीनीकरण आज आधुनिक जीवन के हर क्षेत्र को संचालित कर रहा है । आधुनिक जीवन मशीनों पर इस कदर निर्भर है कि इसके बिना कई काम रूक जाते हैं । इंटरनेट और मोबाइल  दूरी व समय की सीमाओं को लांघ कर सारी दुनिया को अपने में समेटने का दावा करते हैं । इस यंत्र युग में सारी दुनिया में हिंसा, शोषण, विषमता और बेरोजगारी भी बढ़ रही है । स्वास्थ्य समस्याएँ और पर्यावरण विनाश भी अपने चरम पर हैं । दौड़ती-भागती जिंदगी में समय का अभाव प्राय: आम शिकायत रहती है । रिश्तों में कृत्रिमता और दूरियाँ बढ़ रही हैं।  लोग स्वयं को बेहद अकेला महसूस करने लगे हैं । बढ़ती मशीनों ने मनुष्य की शारीरिक श्रम की आदत को कम करके स्वास्थ्य समस्याओ का आधार तैयार किया है । दूरदर्शी गांधीजी ने चेताया था – ”अगर मशीनीकरण की यह सनक जारी रही, तो काफी संभावना है कि एक समय ऐसा आएगा जब हम इतने असमर्थ और लाचार हो जाएगे कि अपने को ही यह कोसने लगेंगे कि हम भगवान द्वारा दी गई शरीर रूपी मशीन का इस्तेमाल करना क्यों भूल गए” । बढ़ता मशीनीकरण उपभोक्तावाद को बढ़ावा देकर समाज में विषमता की नींव को पुख्ता करता आया है । एक औद्योगिककृत अर्थव्यवस्था में अंधाधुंध बढ़ता मशीनीकरण वस्तुत: स्थानीय जरूरतों व सीमाओ को लांघकर व्यापक स्तर पर वस्तुओ के उत्पादन, बिक्री या खपत को बढ़ाने की महत्वाकांक्षाओ से प्रेरित होता है । औद्योगिक कचरे को व्यापाकता से बढ़ाता है ! ग्लोबल वार्मिंग को जन्म देता है । पर्यावरण प्रदूषण की  ऐसी आग को जन्म देता है जिसे बुझाने वाला सचमुच  कोई नहीं है ।

भोपाल गैस त्रासदी को २३ वर्ष हो गए हैं । वहां पर पड़ा जहरीला अपशिष्ट प्रत्येक मानसून में जमीन में रिस कर प्रति वर्ष  क्षेत्र को और अधिक जहरीला बना रहा है । कंपनी को इस बात के लिए मजबूर किया जाना चाहिये कि वह इसे अमेरिका ले जाकर इसका निपटान वहां के अत्याधुनिक संयंत्रों में करे । परन्तु इसके बजाय सरकारें अब भोपाल ही नहीं गुजरात में अंकलेश्वर व म.प्र. के पीथमपुर के भस्मकों में इसे जला कर इस औद्योगिक कचरे को नष्ट करना चाहती है ।

इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के अनुपयोगी हो जाने से इकट्ठा हो रहे कचरे का निपटान सही ढंग से नहीं हो पाने के कारण पर्यावरण के खतरे बढ़ रहे है । एक अध्ययन के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष डेढ़ लाख टन ई-वेस्ट या इलेक्ट्रॉनिक कचरा बढ़ रहा है । इसमें देश में बाहर से आने वाले कबाड़ को जोड़ दिया जाए तो न केवल कबाड़ की मात्रा दुगुनी हो जाएगी, वरन् पर्यावरण के खतरों और संभावित दुष्परिणामों का सही अनुमान नहीं लगाया जा सकेगा । प्रतिवर्ष भारत में बीस लाख कम्प्यूटर अनुपयोगी हो जाते हैं । इनके अलावा हजारों की तादाद में प्रिंटर, फोन, मोबाईल, मॉनीटर, टीवी, रेडियो, ओवन, रेफ्रिजरेटर, टोस्टर, वेक्यूम क्लीनर, वाशिंग मशीन, एयर कंडीशनर, पंखे, कूलर, सीडी व डीवीडी प्येयर, वीडियो गेम, सीडी, कैसेट, खिलौने, फ्लोरेसेंट ट्यूब, बल्ब, ड्रिलिंग मशीन, मेडिकल इंस्टूमेंट, थर्मामीटर और मशीनें आदि भी बेकार हो जाती हैं । जब उनका उपयोग नहीं हो सकता तो ऐसा औद्योगिक कचरा खाली भूमि पर इकट्ठा होता रहता है, इसका अधिकांश हिस्सा जहरीला और प्राणीमात्र के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होता है । कुछ दिनों पहले इस तरह के कचरे में खतरनाक हथियार व विस्फोटक सामगी भी पाई गई थी । इनमें धातुओ व रासायनिक सामग्री की भी काफी मात्रा होती है जो संपर्क में आने वाले लोगों की सेहत के लिए खतरनाक होती है । लेड, केडमियम, मरक्यूरी, एक्बेस्टस, क्रोमियम, बेरियम, बेटीलियम, बैटरी आदि यकृत, फेफड़े, दिल व त्वचा की अनेक बीमारियों का कारण बनते हैं । अनुमान है कि यह कचरा एक करोड़ से अधिक लोगों को बीमार करता है । इनमें से ज्यादातर गरीब, महिलाएँ व बच्चे होते हैं । इस दिशा में गंभीरता से कार्रवाई होना जरूरी है । मगर देश के लोगों की मानसिकता अभी कबाड़ संभालने व कचरे से आजीविका कमाने की बनी हुई है ।

उर्जा उत्पादन हेतु ताप विद्युत संयंत्र , बड़े बाँध , प्रत्यक्ष, परोक्ष बहुत अधिक मात्रा में औद्योगिक कचरा फैला रहे हैं।  सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा, ऊर्जा के बेहतरीन विकल्प माने गए हैं । राजस्थान में इन दोनों विकल्पों के अच्छे मानक स्थापित हुए हैं । सोलर लैम्प, सोलर कुकर जैसे कुछ उपकरण प्राय: लोकप्रिय रहे हैं।   एशियन डेवलपमेंट बैंक के साथ मिलकर टाटा पॉवर कंपनी लिमिटेड देश में (विशेषकर महाराष्ट्र में) कई करोड़ों रूपये के बड़े पवन ऊर्जा प्लांट लगाने की योजना बना रही है । इसी तरह से दिल्ली सरकार भी ऐसी कुछ निजी कंपनियों की ओर ताक रही हैं जो राजस्थान में पैदा होती पवन ऊर्जा दिल्ली पहुंचा सकें । परमाणु ऊर्जा के निर्माण से पैदा होते परमाणु कचरे में प्लूटोनियम जैसे ऐसे रेडियोएक्टिव तत्वों का यह प्रदूषण पर्यावरण में भी फैल सकता है और भूमिगत जल में भी ।

एशियन डेवलपमेट बैक ने हाल ही गंगा के प्रदूषण रोकने के लिए एक योजना तैयार की है । गंगा के किनारे के  नगरों की पानी, सवरेज, सॉलिड वेस्ट मेनेजमेंट, सड़क, ट्रेफिक व नदियों के प्रदूषण को दूर किया जायेगा।संयुक्त राष्ट्र ने एक रिपोर्ट में कहा है कि व्यापक औद्योगिक कचरे ,भूमि का जरूरत से ज्यादा दोहन और सिंचाई के गलत तरीकों से  जलवायु परिवर्तन हो रहा है .मरूस्थलों के बढ़ते क्षैत्रफल के कारण लाखों लोग अपने घर छोड़ने को मजबूर हो सकते हैं।  रिपोर्ट में कहा गया है कि भूमि का मरूस्थल में बदलना पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा है और विश्व की एक तिहाई जनसंख्या इसका शिकार बन सकती है । रिपोर्ट के अनुसार औद्योगिक संतुलन, कृषि के कुछ सरल तरीके अपनाने आदि से वातावरण में कार्बन की मात्रा कम हो सकती है । इसमें सूखे क्षैत्रों में पेड़ उगाने जैसे कदम शामिल हैं।औद्योगिक अपशिष्ट से दिल्ली की जीवन धारा यमुना, इस कदर मैली हो चुकी है कि राज्य सरकार १९९३ से ही ‘यमुना एक्शन प्लान’ जैसी कई योजनाओ द्वारा सफाई अभियान चला रही है, जिस पर करोड़ों-अरबों रूपए लगाए जा चुके हैं। किसी भी नदी को जिंदा रखने के लिए ‘इको सिस्टम’ की सुरक्षा उतनी ही जरूरी है जितनी उसमें बहते पानी की गुणवत्ता।

पर्यटन जनित डिस्पोजेबल प्लास्टिक कचरे से बढ़ता प्रदूषण खतरनाक स्तर तक पहुँच रहा है ,जिस पर त्वरित नियंत्रण जरूरी है .सरकार ने  रिसायकल्ड पॉलिथिन के उपयोग पर पाबंदी लगा रखी है । केवल नए प्लास्टिक दानों से बनी बीस माइक्रोन से अधिक की थैलियों का ही उपयोग किया जा सकता है । 25 माइक्रोन से कम की रिसायकल्ड प्लास्टिक की थैलियां और २० माइक्रोन से कम की नई प्लास्टिक की थैलियों के उपयोग पर प्रतिबंध रहेगा। किसी भी नदी-नाले, पाइप लाइन और पार्क आदि सार्वजनिक स्थलों पर इन थैलियों का कचरा डालने पर रोक रहेगी । नगरीय निकाय इन थैलियों के लिए अलग-अलग कचरा पेटी रखेंगे।  पॉलीथिन के कारण सीवर लाइन बंद हो जाती है । इस वजह से दूषित पानी बहकर पाइप लाइन तक पहुंचकर पेयजल को दूषित करता है जिससे बीमारियां फैलती है । इसे उपजाऊ जमीन में फेंकने से भूमि बंजर होती जाती है । कचरे के साथ जलाने से जहरीली गैसे निकलती है जो वायु प्रदूषण फैलाती  है और ओजोन परत को क्षति पहुंचाती है ।गाय बैल आदि जानवर पालिथिन में चिपके खाद्य पदार्थ खाने के प्रलोभन में पतली पालीथिन की पन्नियां गुटक जाते हैं जो उनके पेट में फँस कर रह जाती हैं एवं उनकी मृत्यु हो जाती है . अतः पालीथिन पर प्रभावी नियंत्रण जरूरी है ।

प्रधानमंत्री जी ने बेहद महत्वपूर्ण देशव्यापी स्वच्छता अभियान चलाया हुआ है । रोजमर्रा शहरो से निकलने वाले घरेलू कचरे का सुरक्षित निष्पादन बहुत जरूरी है । ज्वलनशील कचरे को जलाकर बिजली उत्पादन की परियोजनायें बनाई जा रही हैं . जबलपुर में एक ऐसी ही परियोजना से प्रतिदि ८ मेगावाट बिजली इन दिनो बन रही है । जो प्लास्टिक, कागज, पुट्ठे का कचरा रिसाइकिल हो सकता है उसे निरंतर पुनरूपयोग किया जाना आवश्यक है । इसके लिये भी उद्योग स्थापित किये जाने को प्रोत्साहन की आवश्यकता है । जो बायो डिग्रेडबल कचरा कम्पोस्ट जैसी खाद बना सकता है उससे खाद बनाने की इकाईयां लगानी जरूरी हैं ।  समग्र रूप से कहा जा सकता है कि  कचरा प्रगति का दूसरा पहलू है जिससे बचना मुश्किल है, पर उसके समुचित तरीके से डिस्पोजल से ही हम मानव जीवन और प्रगति के बीच तादात्म्य बना कर विज्ञान के वरदान को अभिशाप बनने से रोक सकते हैं ।

 

© अनुभा श्रीवास्तव

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