हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – प्रमाणपत्र ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – प्रमाणपत्र ? ?

जन्म प्रमाणपत्र,

शिक्षा प्रमाणपत्र,

चरित्र प्रमाणपत्र,

आय प्रमाणपत्र,

विवाह प्रमाणपत्र,

निवास प्रमाणपत्र,

जीवन प्रमाणपत्र,

मृत्यु प्रमाणपत्र,

जीते हो या साँस भर भरते हो,

चैतन्य हो या निष्प्राण,

प्रमाणपत्रों की दुनिया में

जीना पड़ता है सप्रमाण..!

?

© संजय भारद्वाज  

संध्या 5:07 बजे, 9 जून 2025

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

writersanjay@gmail.com

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

 

🕉️ हमारी अगली साधना श्री विष्णु साधना शनिवार दि. 7 जून 2025 (भागवत एकादशी) से रविवार 6 जुलाई 2025 (देवशयनी एकादशी) तक चलेगी 🕉️

💥 इस साधना का मंत्र होगा – ॐ नमो नारायणाय।💥

💥 इसके साथ ही 5 या 11 बार श्री विष्णु के निम्नलिखित मंत्र का भी जाप करें। साधना के साथ ध्यान और आत्म परिष्कार तो चलेंगे ही –

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम्
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ||

💥 संभव हो तो परिवार के अन्य सदस्यों को भी इससे जोड़ें💥  

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 256 ☆ गीत – ग्राम, नगर स्वच्छ हो जाएँ… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक लगभग तेरह दर्जन से अधिक मौलिक पुस्तकें ( बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य ) तथा लगभग चार दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित तथा कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन।लगभग चार दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित तथा कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मानबाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंतउत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित बारह दर्जन से अधिक राजकीय प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य प्रत्येक गुरुवार को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 256 ☆ 

☆ गीत – ग्राम, नगर स्वच्छ हो जाएँ ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

ग्राम, नगर स्वच्छ हो जाएँ

हम सब शुभ-शुभ काम करें।

धरा महक जाए चंदन-सी

चारों पावन धाम करें।।

उज्ज्वल तन-मन करे सवेरा,

हर बाला सीता बन महके।

हरियाली चहुँ ओर ज्योति-मय,

डाल-डाल पर पक्षी चहके।।

 **

अर्जुन, भीम सरीखे बच्चे,

हर घर में बलराम करें।।

 *

धन की बर्बादी को रोकें,

अंध-दौड़ की छुट्टी होए।

काम मिले सब ही हाथों को,

खाली कभी न मुट्ठी होए।।

 *

सदा देश-हित जीएँ सब ही,

जग में ऊँचा नाम करें।।

 **

दूषित जल की सही निकासी

गलियों, सड़कों की चौकस हो।

भ्रष्टाचारी-अधिकारी पर,

शासन का बस फोकस हो।।

 *

जो भी खाए दुष्ट दलाली,

उसका काम तमाम करें।।

 **

बुनियादी सुविधाएँ जन को,

सभी ओर खुशहाली होगी।

योगी हों, सब लोग निरोगी,

हर घर ईद-दिवाली होगी।

 *

सत्य, श्रम बूटी अपनाकर,

हर उजली हम शाम करें।।

 **

बिजली, पानी सभी बचाकर,

एसी के आदी ना होंगे।

सादा जीवन, उच्च सोच से,

नहीं यहाँ जेहादी होंगे।

 *

हर बच्चा शिक्षित बन जाए,

मनमाफिक परिणाम करें।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

Rakeshchakra00@gmail.com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 240 – दोहा सलिला ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है  – दोहा सलिला)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 240 ☆

☆ दोहा सलिला ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

☆ 

ब्रम्ह अनादि-अनन्त है, रचता है सब सृष्टि

निराकार आकार रच, करे कृपा की वृष्टि

*

परम सत्य है ब्रम्ह ही, चित्र न उसका प्राप्त

परम सत्य है ब्रम्ह ही, वेद-वचन है आप्त

*

ब्रम्ह-सत्य जो जानता, ब्राम्हण वह इंसान

हर काया है ब्रम्ह का, अंश सके वह मान

*

भेद-भाव करता नहीं, माने ऊँच न नीच

है समान हर आत्म को, प्रेम भाव से सींच

*

काया-स्थित ब्रम्ह ही, ‘कायस्थ’ ले जो जान

छुआछूत को भूलकर, करता सबका मान

*

राम श्याम रहमान हरि, ईसा मूसा एक

ईश्वर को प्यारा वही, जिसकी करनी नेक

*

निर्बल की रक्षा करे, क्षत्रिय तजकर स्वार्थ

तभी मुक्ति वह पा सके, करे नित्य परमार्थ

*

कर आदान-प्रदान जो, मेटे सकल अभाव

भाव ह्रदय में प्रेम का, होता वैश्य स्वभाव

*

पल-पल रस का पान कर, मनुज बने रस-खान

ईश तत्व से रास कर, करे ‘सलिल’ गुणगान

*

सेवा करता स्वार्थ बिन, सचमुच शूद्र महान

आत्मा सो परमात्मा, सेवे सकल जहान

*

चार वर्ण हैं धर्म के, हाथ-पैर लें जान

चारों का पालन करें, नर-नारी है आन

*

हर काया है शूद्र ही, करती सेवा नित्य

स्नेह-प्रेम ले-दे बने, वैश्य बात है सत्य

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: salil.sanjiv@gmail.com

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – लेखन ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – लेखन ? ?

भाव कैसे उपजते हैं?

अक्षर कैसे उमगते हैं?

शब्दों का रूप पाना बताओ,

अपने लेखन का डेमो दिखाओ..,

मैंने हल्के से चुभो दी

क़लम की नोंक उनकी उंगली में..,

जिस रोज़ व्यष्टि की पीड़ा में

समष्टि की पीड़ा अनुभव करने लगोगे,

बिना किसी डेमो के,

स्वयंमेव लिखने लगोगे..!

?

© संजय भारद्वाज  

प्रातः 10:17 बजे, शनिवार 26 मई 2018

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

writersanjay@gmail.com

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

 

🕉️ हमारी अगली साधना श्री विष्णु साधना शनिवार दि. 7 जून 2025 (भागवत एकादशी) से रविवार 6 जुलाई 2025 (देवशयनी एकादशी) तक चलेगी 🕉️

💥 इस साधना का मंत्र होगा – ॐ नमो नारायणाय।💥

💥 इसके साथ ही 5 या 11 बार श्री विष्णु के निम्नलिखित मंत्र का भी जाप करें। साधना के साथ ध्यान और आत्म परिष्कार तो चलेंगे ही –

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम्
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ||

💥 संभव हो तो परिवार के अन्य सदस्यों को भी इससे जोड़ें💥  

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 164 ☆ मुक्तक – ।। प्रभु हमारे दाता सतबुद्धि सबको दिजिए ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

 

☆ “श्री हंस” साहित्य # 164 ☆

☆ मुक्तक – ।। प्रभु हमारे दाता सतबुद्धि सबको दिजिए ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

=1=

प्रभु हमारे दाता कृपा अवश्य कर दीजिए।

मन में हमारे प्यार और स्नेह भर दीजिए।।

भावना और संवेदना हो बस तन-मन में।

सौहार्द अपनत्व भरा कर हर घर दीजिए।।

=2=

अंहकार का भाव मन में नहीं आए कभी।

मिल जुल कर साथ-साथ  रहें हम सभी।।

वसुधैव कुटुंबकम् भाव हो मन के भीतर।

सुख और शांति की धारा भी बहेगी तभी।।

=3=

सहयोग और सदभावना सबमें जमा लाए।

हर व्यक्तिअपने हिस्से का जरूर कमा पाए।।

सरोकार समरसता हो कण-कण में समाई।

रिश्तों की गर्माहट हर किसी में समा जाए।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा #229 ☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – कविता – वर्षा ही सारे भारत में है सोना बरसाती… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “कविता  – वर्षा ही सारे भारत में है सोना बरसाती। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 229

☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – वर्षा ही सारे भारत में है सोना बरसाती…  ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

कृषि प्रधान है देश हमारा हम सब भारतवासी

धर्म-कर्म के क्षेत्र अनेकों, ज्यों मथुरा औ’ काशी।

कई ऋतुएँ आ समय-समय पर सुन्दर इसे बनाती

फल सब्जी, अनाज भेदों सब झोली में भर जाती।

*

सूरज तपता यहाँ तेज तब होती धरती प्यारी

सभी एक से व्याकुल होते राही हो या संन्यासी।

आग बरसती, लू चलती है बहता बहुत पसीना

ठंडी जगह और पानी बिन मुश्किल होता जीना।

*

तब काले मेघों के सँग आ नभ में वर्षा रानी

लाती हवा फुहारों के संग बरसाती है पानी।

वर्षा के स्वागत में खुश हो पेड़ हरे हो जाते

पशु-पक्षी हर्षित होते नर-नारी हँसते गाते ।

*

खेत, बाग, वन सुन्दर सजते पहने चूनर धानी

चारों ओर नदी नालों में दिखता पानी-पानी ।

पावस की बूँदें दुनिया में नया रंग भर जाती

बहू-बेटियाँ खुश गाँवों में नित त्यौहार मनाती ।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

vivek1959@yahoo.co.in

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – निर्बुद्धि ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – निर्बुद्धि ? ?

जानवरों में भी हुए संघर्ष,

संघर्ष शिकार के लिए,

संप्रभुता की रक्षा के लिए,

क्षेत्र पर आधिपत्य के लिए,

मादा को आकर्षित करने के लिए,

पर जानवरों ने

कभी नहीं बरसाए बम,

कभी नहीं छोड़ी मिसाइलें,

कभी नहीं नष्ट की प्रकृति,

कभी नहीं राख की धरती,

आप कह सकते हैं-

वे ऐसा कर ही नहीं सकते

उनमें बुद्धि जो नहीं होती,

इन निर्बुद्धियों ने सीखी

घोसला बनाने की अद्भुत कला,

निर्बुद्धि रोपते रहे बीज

प्रकृति को हरा रखने के लिए,

निर्बुद्धि सेते रहे दूसरों के अंडे,

देते रहे जीवन अन्य प्रजातियों को भी,

निर्बुद्धि मिलकर सामना करते रहे

समुदाय पर आए संकटों का,

सुनो बुद्धिमानो,

जीव सृष्टि का इतिहास कहता है,

निर्बुद्धि होना,

कुबुद्धि होने से अच्छा होता है..!

?

© संजय भारद्वाज  

प्रातः 9:11 बजे, 25 जून 2025

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

writersanjay@gmail.com

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

 

🕉️ हमारी अगली साधना श्री विष्णु साधना शनिवार दि. 7 जून 2025 (भागवत एकादशी) से रविवार 6 जुलाई 2025 (देवशयनी एकादशी) तक चलेगी 🕉️

💥 इस साधना का मंत्र होगा – ॐ नमो नारायणाय।💥

💥 इसके साथ ही 5 या 11 बार श्री विष्णु के निम्नलिखित मंत्र का भी जाप करें। साधना के साथ ध्यान और आत्म परिष्कार तो चलेंगे ही –

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम्
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ||

💥 संभव हो तो परिवार के अन्य सदस्यों को भी इससे जोड़ें💥  

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार #54 – गीत – ढोल -मजीरे स्वयं बजाती… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीतढोल -मजीरे स्वयं बजाती

? रचना संसार # 54 – गीत – ढोल -मजीरे स्वयं बजाती…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

वोट बैंक के खाते से बस,

खेलें नेता होली है।

अवसरवादी राजनीति में,

रोज़ पदों की डोली है।।

 *

धुत्त नशे में अब नेता हैं,

कालिख मुख गद्दारी की।

हुड़दंगी दल बदलू नाचें,

हद होती मक्कारी की।।

ढोल -मजीरे स्वयं बजाती,

बड़ी प्रजा यह भोली है।

 *

घर-घर राजदुलारे जाते,

भूल गये सब मर्यादा।

दीप-तले ख़ुद अँधियारा है,

कुचल गया चलता प्यादा।।

फिरती झाड़ू उम्मीदों पर,

लगे जिगर में गोली है।

 *

दल्लों की भरमार हुई है,

आप जान लो सच्चाई ।

पिचकारी ई डी की चलती,

रँगें जेल की अँगनाई।।

मुखिया आँख बँधीं पट्टी है,

शैतानों की टोली है।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- meenabhatt18547@gmail.com, mbhatt.judge@gmail.com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #281 ☆ भावना के दोहे – मौसम ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं – भावना के दोहे – मौसम)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 281 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे – मौसम ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

पुरवाई चलने लगी, बनता मौसम खास।

दिल को अब अच्छा लगे, गर्म नहीं अहसास।।

नयन नयन को देखते, बैठे साजन पास।

दिल में उनके बहुत कुछ, बस सुनने की आस।।

 *

महक रहा सौन्दर्य यों, प्रकृति करे शृंगार।

मिलने साजन आ रहे, लिए प्यार उपहार।।

 *

घटा हुई घनघोर है, होगी अब बरसात।

लेंगे रिमझिम का मज़ा, दिन हो चाहे रात।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : bhavanasharma30@gmail.com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #263 ☆ संतोष के दोहे – जीवन ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है संतोष के दोहे – जीवन आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

 ☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 263 ☆

☆ संतोष के दोहे – जीवन ☆ श्री संतोष नेमा ☆

क्रूर काल के सामने, नत मस्तक सब लोग |

उसकी मर्जी जब तलक, जीवन के सुख भोग ||

*

जाने कब किस मोड़ पर, हो जीवन का अंत |

नेक काम करते रहें, कहते सज्जन संत ||

*

करते हैं जिसकी स्वयं, रक्षा जब भगवान |

बाल न बाँका हो सके, समझो यह श्रीमान ||

*

केवल उसके हाथ है, जीवन की यह डोर |

दबे पैर आती सदा, मौत न करती शोर ||

*

कौन समझ सकता यहाँ, अजब नियति का  खेल |

करता वही बिछोह भी, और कराता  मेल ||

*

जला न पाई आग भी, ऐसा गीता ग्रंथ |

जिससे खुद श्रीकृष्ण ने, हमें दिखाया पंथ ||

*

एक राह पर सब चलें, हम सब राही साथ |

दुर्घटना कहती स्वयं, सब कुछ उसके हाथ ||

*

दृश्य विदारक देख कर, बहे अश्रु की धार |

हुआ एक पल में प्रलय, छूट गया संसार ||

*

चूड़ी बिंदिया चीख कर, करती रहीं पुकार |

क्रूर नियति के सामने, खाक हुआ शृंगार ||

*

नेकी कभी न छोड़िए, सदा चले यह साथ |

मिलता है संतोष भी, रख हितकारी हाथ ||

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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