हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #41 ☆ कविता – “कौन जाने मै कौन हूं…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 41 ☆

☆ कविता ☆ “कौन जाने मै कौन हूं…☆ श्री आशिष मुळे ☆

इतना जानू के मै हूं

ना जानू के कौन हूं

 *

ना आस्तिक हूं

ना नास्तिक हूं

ख़ुदको जान ना पाऊ

ख़ुदा को कैसे जाननेवाला हू

कौन जाने मै कौन हूं

 *

ना हिंदू हूं

ना मुस्लिम हूं

नहीं किसिके पास जवाब

फिर मै कैसे जवाबन हू

कौन जाने मै कौन हूं

 *

ना नाम हूं

ना खानदान हूं

अपने तो अपने नहीं लगते

परायों को क्या दिखाने वाला हूं

कौन जाने मै कौन हूं

 *

ना सोच हूं

ना खयाल हूं

नहीं खयालात खुदके काबू

सोच से थोड़ी चलने वाला हूं

कौन जाने मै कौन हूं

 *

ना जानवर हूं

ना फरिश्ता हूं

कैसे किसी को मिटाऊ

कैसे ख़ुदको बचाने वाला हूं

कौन जाने मै कौन हूं

 *

ना वंश हूं

ना निर्वंश हूं

जो लेके आया था

वहीं देके जानेवाला हूं

कौन जाने मै कौन हूं

 *

ना आदम हूं

ना हव्वा हूं

यूंही समय की डाली पे

क्या नाचता हुआ एक बंदर हूं

कौन जाने मै कौन हूं

 *

कौन जाने मै कौन हूं

कौन बताए मै क्या हूं

चाहें जो बन सकता हूं

चाहें वो दिखा सकता हूं

चलो फिर इंसान ही बन जाता हूं

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 198 ☆ बाल पहेली कविता – बूझो तो जानें ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 198 ☆

☆ बाल पहेली कविता – बूझो तो जानें ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

रोज निशा में करें उजाला

रोज रहें घटते – बढ़ते।

जो तारों में सबसे उजले

मौन रहें थोड़ा पढ़ते।।

सोम , सुधांशु ,शशांक कहाते

जिनको कहें सुधाकर भी।

रजनीपति हैं, निशापति हैं

उनको कहें सुधाधर भी।।

 *

जो राकेश , इंदु , हिमांशु

जो शशि , मयंक ,निशाकर।

विधु , मृगांक व कलानिधि हैं

फूल , फलों दें रस पर।।

 *

औषधीश , तारापति जो हैं

बच्चों के मामा प्यारे।

क्षपानाथ , राकापति जो हैं

खुश रहते जिनसे तारे।।

 *

जो सागर में हलचल करते

सागर में आ जाता ज्वार।

जब – जब घटते बढ़ते रहते

प्यारे लगें महीना क्वार।।

  

उत्तर – चंद्रमा।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #224 – कविता – ☆ नया पथ अपना स्वयं गढ़ो… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता नया पथ अपना स्वयं गढ़ो” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #224 ☆

नया पथ अपना स्वयं गढ़ो☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

कौन बड़ा है कौन है छोटा

कौन खरा है कौन है खोटा

कौन लाभप्रद किसमें टोटा

उलझन में न पड़ो

नया पथ अपना स्वयं गढ़ो।

 

बाधाएँ अनगिन आएगी

चट्टानें बन टकराएगी

गंध रूप रस रम्य रमणियाँ

शुभचिंतक बन उलझायेगी,

शांत चित्त होकर तटस्थ

गहरे से इन्हें पढ़ो

नया पथ अपना स्वयं गढ़ो।

 

है दृष्टि गड़ाए गगन गिद्ध

बगुले बन बैठे संत सिद्ध

हैं छिपे आस्तीन में विषधर

छल शिखर चढ़ा सच है निषिद्ध,

विपरीत हवाओं से जूझो

असत्य से सदा लड़ो

नया पथ अपना स्वयं गढ़ो।

 

हो सजग स्वयं से भेंट करो

कालिमा चित्त की श्वेत करो

निष्पक्ष शांत निश्छल मन से

जन-हित में निर्णय नेक करो

बाहर-भीतर जो चोर उन्हें

निर्मोही हो पकड़ो

नया पथ अपना स्वयं गढ़ो।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 48 ☆ नया पथ अपना स्वयं गढ़ो… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “नया पथ अपना स्वयं गढ़ो…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 48 ☆ नया पथ अपना स्वयं गढ़ो… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

कौन बड़ा है कौन है छोटा

कौन खरा है कौन है खोटा

कौन लाभप्रद किसमें टोटा

उलझन में न पड़ो

नया पथ अपना स्वयं गढ़ो।

 

बाधाएँ अनगिन आएगी

चट्टानें बन टकराएगी

गंध रूप रस रम्य रमणियाँ

शुभचिंतक बन उलझायेगी,

शांत चित्त होकर तटस्थ

गहरे से इन्हें पढ़ो

नया पथ अपना स्वयं गढ़ो।

 

है दृष्टि गड़ाए गगन गिद्ध

बगुले बन बैठे संत सिद्ध

हैं छिपे आस्तीन में विषधर

छल शिखर चढ़ा सच है निषिद्ध,

विपरीत हवाओं से जूझो

असत्य से सदा लड़ो

नया पथ अपना स्वयं गढ़ो।

 

हो सजग स्वयं से भेंट करो

कालिमा चित्त की श्वेत करो

निष्पक्ष शांत निश्छल मन से

जन-हित में निर्णय नेक करो

बाहर-भीतर जो चोर उन्हें

निर्मोही हो पकड़ो

नया पथ अपना स्वयं गढ़ो।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – तार-तार ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – तार-तार ? ?

तार-तार चिथड़ों में लिपटी थी

काली कोठरियों में जा छिपती थी,

अकस्मात अंधेरे की

रंगीनियों ने दबोच लिया,

अब दिन तो दिन

उसकी रातें भी उजली थी

पर एक तस्वीर

अब भी नहीं बदली थी,

तार-तार गुरबत

तब उसकी म़ज़बूरी थी

तार-तार अस्मत

खुशहाली के लिये

अब ज़रूरी थी!

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ महाशिवरात्रि साधना पूरा करने हेतु आप सबका अभिनंदन। अगली साधना की जानकारी से शीघ्र ही आपको अवगत कराया जाएगा। 🕉️💥

 अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ अब है उस पर निभाये या कि नहीं… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “अब है उस पर निभाये या कि नहीं“)

✍ अब है उस पर निभाये या कि नहीं… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

अपने घर को सजा के बैठे हैं

हम खुशी को बुला के बैठे हैं

 *

पांसे सत्ता के है शकुनि मलता

न्यायविद सर झुका के बैठे हैं

 *

काम पर लग गए गधे सारे

डिग्रियाँ हम दिखा के बैठे है

 *

अब अयोध्या से देखिये बाहर

कुछ शिवाले दबा के बैठे हैं

 *

अब है उस पर निभाये या कि नहीं

हम तो वादा निभा के बैठे हैं

 *

तेरी मर्ज़ी है दे न दे छप्पर

हम तो नीचे ख़ला के बैठे हैं

 *

सारे शिकबे गिले मैं भूल गया

जब वो पहलू में आ के बैठे हैं

 *

कौन पनपेगा उंनके नीचे अब

बरगदों से जो छा के बैठे हैं

 *

अपने अंदर भी वो अरुण झांकें

आइना जो दिखा के बैठे हैं

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 47 – अहसास की बातें… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – अहसास की बातें…।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 47 – अहसास की बातें… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

करते हो, आज क्यों फिर उल्लास की बातें 

पूछीं न तुमने मुझसे संन्यास की बातें

*

पतझर के सिवा, हमने जीवन में कुछ न पाया 

करती रहीं छलावा, मधुमास की बातें

*

दो बोल अपनेपन के, सुनने को तरसे हैं हम 

सबसे मिली हैं सुनने, उपहास की बातें

*

रस-रंग की कथाएँ, कैसे उसे सुहायें 

जिसने सुनी हैं हर पल, संत्रास की बातें

*

आस्थाएँ हैं अपाहिज, श्रद्धा हुई है घायल 

लगतीं फरेब जैसी, विश्वास की बातें

*

हारा नहीं है जीवन, मेरा विपत्तियों से 

विपदा ने की हैं मुझसे, उल्लास की बातें

*

है खंडहर ही केवल, अब साक्षी समय का 

हर ईंट ने सुनी हैं, अहसास की बातें

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 123 – रिश्तों में खट्टास का… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “रिश्तों में खट्टास का…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 123 – रिश्तों में खट्टास का… ☆

रिश्तों में खट्टास का, बढ़ता जाता रोग ।

समय अगर बदला नहीं, तो रोएँगे लोग ।।

 *

लोभ मोह में लिप्त हैं, आज सभी इंसान ।

ऊपर बैठा देखता, समदर्शी भगवान ।।

 *

अगला पिछला सब यहीं, करना है भुगतान ।

पुनर्जन्म तक शेष ना, कभी रहेगा जान ।।

 *

जीवन का यह सत्य है, ग्रंथों का है सार ।

जो बोया तुमने सदा, वही काटना यार ।।

 *

संस्कृति कहती है सदा, यह मोती की माल ।

गुथी हुयी उस डोर सेटूटे ना हर हाल ।।

 *

रिश्तों में बंधकर रहें, हँसी खुशी के साथ ।

बरगद सी छाया मिले, सिर पर होवे हाथ ।।

 *

रिश्ते नाते हैं सदा, खुशियों के भंडार ।

सदियों से हैं रच रहे, उत्सव के संसार  ।।7

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – कवित्व ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी का छत्रपति शिवाजी महाराज राष्ट्रीय एकता जीवन गौरव सम्मान से सम्मानित होने पर श्री संजय भारद्वाज जी को हार्दिक बधाई एवं अभिनंदन। 

(इस संदर्भ में श्री आनंद सिंह द्वारा लिया संक्षिप्त साक्षात्कार)

? संजय दृष्टि – कवित्व ? ?

वह बाँच लेती है

मेरे शब्दोेंं में

अपना नाम,

मेरी कलम का

कवित्व

निखरने लगा है या

उसकी आँंख में

कवित्व उतरने लगा है,

…पता नहीं!

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ महाशिवरात्रि साधना पूरा करने हेतु आप सबका अभिनंदन। अगली साधना की जानकारी से शीघ्र ही आपको अवगत कराया जाएगा। 🕉️💥

 अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 271 ☆ कविता – लंदन से 7 – उस तरह का धन ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय कविता लंदन से 7 – उस तरह का धन। 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 271 ☆

? कविता – उस तरह का धन ?

मेरे पास उस तरह का धन

शून्य है

पर मेरे

बड़ी मेहनत से कमाए ,इस तरह के धन को

तो मेरे पास रहने दो सरकार

कितना प्रगट, परोक्ष, टैक्स लगाओगी सरकार

टैक्स लोगों को मजबूर करता है

इस तरह के धन को उस तरह के धन में बदलने के लिए

अग्रिम टैक्स ले लेती हो

कभी अग्रिम वेतन भी दे सकती हो?

अपना ही इस तरह का धन

बेटी को विदेश भेजना हो तो

ढेर सा अग्रिम टैक्स कट जाता है

बिना किसी देयता के

तभी तो हवाला बंद नहीं होता

और

इस तरह का धन उस तरह के धन में

बदलता रहता है।

* * * *

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार

इन दिनों, क्रिसेंट, रिक्समेनवर्थ, लंदन

संपर्क – ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798, ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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