हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 178 – “सिकुड़ते सब्यसाचियों के…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत  सिकुड़ते सब्यसाचियों के...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 178 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “सिकुड़ते सब्यसाचियों के...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

ऐसे कोहरे में ठिठुरन से

सूरज भी हारा

दिन के चढ़ते चढ़ते कैसे

लुढ़क गया पारा

 

जमें दिखे गाण्डीव

सिकुड़ते सब्यसाचियों के

धुंध लपेटे शाल, उलहने

सहें चाचियों के

 

चौराहे जलते अलाव भी

लगते बुझे बुझे

और घरों की खपरैलें

तक लगीं सर्वहारा

 

हाथ सेंकने जुटीं

गाँव की वंकिम प्रतिभायें

जो विमर्श में जुटीं

लिये गम्भीर समस्यायें

 

वृद्धायें लेकर बरोसियाँ

दरवाजे बैठीं

शांति पाठ के बाद पढ़

रहीं ज्यों कि कनकधारा

 

लोग रजाई कम्बल

चेहरे तक लपेट निकले

लगें फूस से ढके फूल के

हों सुन्दर गमले

 

आसमान से नीचे तक

है सुरमई अँधियारा

धुँधला सूरज दिखता

नभ में लगे एक तारा

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

06-02-2024 

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – उनींदा ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – उनींदा ??

आदमी ने स्वप्न देखा,

स्वप्न में

अपना ऊँचा कद देखा,

सपना जारी था;

सपने में

ऊँचे कद को

मध्यम होते देखा,

सपना अब भी

जारी था;

मध्यम कद को

बौना होते देखा,

नींद से हड़बड़ा कर

उठा आदमी,

दुनिया पर अपनी भड़ास

उतारने लगा आदमी,

इधर जच्चा वॉर्ड में

एक मासूम की

किलकारी गूँजी;

उधर श्मशान जाती

यात्रा में

‘राम नाम सत्य है’

का सामूहिक आलाप उठा,

जन्म और मृत्यु

के बीच की

सपनीली दुनिया में

खोया है आदमी,

अपनी ही आँखों में

पलते-बढ़ते-घटते

कद के सच को

काश समझ पाता

उनींदा आदमी!

© संजय भारद्वाज  

(प्रातः 10: 21 बजे, दि.16.12.2015)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना हम शीघ्र करेंगे। 🕉️ 💥

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 166 ☆ # सपने # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# सपने #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 166 ☆

☆ # सपने #

एक मज़दूर

छेनी हथौड़े से

तोड़ता रहता है पत्थर

उसकी पत्नी पास बैठी है

टूटी गिट्टी को

रखती है समेटकर

उसका बच्चा

साड़ी के झूले में

टंगा रहता है

पेड़ की डाल पर

वह स्त्री

दोनों को देखतीं हैं

कभी पति तो

कभी बच्चा

कहीं बैठ ना जाए उठकर

दोनों युगल लगें है

रोज की तरह

अपने काम में दिनभर

इस रोज़ी से, कमाई से

घर में चूल्हा जलता है

उन सबका पेट पलता है

दोपहर में

दोनों पति-पत्नी थककर

जब सुस्ताते है

तब भविष्य के बारे मे

सोचते जातें हैं

यह अपार्टमेंट बनते ही

हमें कहीं दूर जाना है

हमारा कहां स्थाई ठिकाना है

पत्नी बोली – सुनो जी!

हमारा बेटा

कब स्कूल जायेगा?

वह कैसे पढ़ पायेगा?

या सारा जीवन

हमारे जैसा ही

पत्थर तोड़ते ही बितायेगा ?

 

वह मजदूर

कुछ सोचते हुए

गमछे से

पसीना पोंछते हुए

बोला –

नहीं -?

मैं अपने बेटे को पढ़ाऊंगा

उसे इंजीनियर बनाऊंगा

वो भी ऐसी कालोनीज

अपार्टमेंट बनायेगा

अपना नाम कमायेगा

वह उठकर

जोर जोर से

पत्थर तोड़ने लगा

मन ही मन

कुछ जोड़ने लगा

उसकी आंखों में

अनगिनत सपने है

स्पष्ट हो या अस्पष्ट

पर उसके अपने है /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ सामर्थ्य… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता ‘सामर्थ्य…’।)

☆ कविता – सामर्थ्य… ☆

बादल का एक टुकड़ा, बरसने के बाद,

लौटते हुए, मेरे आंगन के ऊपर रुक गया,

आंगन की मिट्टी को देखने लगा,

जो बारिश की उम्मीद लगाए बैठी थी,,

कि पानी की बूंदों से उसकी

जलन मिटेगी,

तप्त होकर सौंधी सौंधी महक से, वह भी महक जाएगी,

 पर निराश भाव से वह तकती रही, बादल को,

क्या कहती,, बादल भी तो पुरुष था,

क्या जाने वो स्त्री की व्यथा,,

जलती देह की अगन की तपन,

तभी नम हवा ने आकर मिट्टी को सहलाया,

पुचकारा और कहा,और कहा,

निष्ठुर है ये,व्यथा न जानेगा,

मै बूंदों से कहूंगी,वो तुम्हारी तपन को जानेगी,

और तुमसे मिलकर सृजन करेंगी,उस बीज का, जो मै अपने साथ लाऊंगी,,

वो पेड़ बनेगा,

और फिर बाद ल उस पर बरसेगा, क्योंकि,

वह पेड़ भी पुरुष है,, वही समझेगा,,उसी को,,,

मिट्टी अपनी व्यथा,मजबूरी, परिस्थिति को जान गई,,

हवा से कहा, हां तुम बीज लाओ,

मै सृजन करूंगी, अपनी कोख से,

उस पेड़ का, जो सबको फल दे छाया दे,

और जो जवाब दे बादल के टुकड़े को,

कोई भी कार्य,परोपकार भाव से करो,

वृष्टि भी सम भाव से करो,,

हवा के सहारे न उड़ना पड़े,

इतना सामर्थ्य पैदा करो… 

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

 

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 176 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 176 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 176) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com.  

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IMM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..!

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 176 ?

☆☆☆☆☆

तूफ़ां के से  हालात  है

ना किसी सफर में रहो.

पंछियों से है गुज़ारिश 

रहो सिर्फ अपने शज़र में

☆☆ 

There’re stormy conditions

Don’t set sail for any voyage

Pleading with the avian-world

To keep nestled in their trees

☆☆☆☆☆

ईद का चाँद बन, बस रहो 

अपने ही घरवालों के संग,

ये उनकी खुशकिस्मती है

कि बस हो उनकी नज़र में…

☆☆ 

Even in once in blue moon,

Don’t step out, be with family

It’s a  blissful  fortune only

That you’re before their eyes

☆☆☆☆☆

माना बंजारों की तरह

घूमते ही रहे डगर-डगर…

वक़्त का तक़ाज़ा है अब 

☆☆ 

Agreed like gypsies, you’ve

Been wandering endlessly

It’s  the  need  of  hour that

You stay in your own town…

☆☆☆☆☆

रहो सिर्फ अपने ही शहर में …

तुमने कितनी खाक़ छानी 

हर  गली  हर  चौबारे  की,

थोड़े  दिन की  तो बात है 

बस रहो सिर्फ अपने घर में…

☆☆ 

Much did you wander around

Every nook and every corner,

It’s a matter of few days only

Keep staying in your house…

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 175 ☆ सॉनेट – सैनिक ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है सॉनेट – सैनिक।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 175 ☆

☆ सॉनेट – सैनिक ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

सीमा मुझ प्रहरी को टेरे।

*

फल की चिंता करूँ न किंचित।

करूँ रक्त से धरती सिंचित।।

*

शौर्य-पराक्रम साथी मेरे।।

अरिदल जब-जब मुझको घेरे।

*

माटी में मैं उन्हें मिलाता।

दूध छठी का याद कराता।।

महाकाल के लगते फेरे।।

*

सैखों तारापुर हमीद हूँ।

होली क्रिसमस पर्व ईद हूँ।

वतन रहे, होता शहीद हूँ।।

*

जान हथेली पर ले चलता।

अरि-मर्दन के लिए मचलता।

काली-खप्पर खूब से भरता।।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१७-२-२०२२

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #224 – 111 – “शहादत तय होती है परवाना की…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल शहादत तय होती है परवाना की…” ।)

? ग़ज़ल # 111 – “शहादत तय होती है परवाना की…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

मुहब्बत में अक्सर रोना पड़ता है,

आसुओं से दामन धोना पड़ता है।

शहादत तय होती है परवाना की,

रोशन शम्मा  को होना पड़ता है।

इश्क़ कितना  भी सच्चा हो जाये,

इल्ज़ामे जफ़ा  तो ढोना पड़ता है।

वस्ल के हालत कितने भी बनते हों,

यूँ कभी तन्हा  भी सोना  पड़ता है।

बन गए अगर शौहर बीबी तो भी तो,

बीज  झूठे  सच्चे  बोना  पड़ता  है। 

आख़िरी मंज़िल फ़िराक़ की होती है,

यदाकदा लिहाफ़ भिगोना पड़ता है।

इश्क़ की फ़ितरत इस तरहा ही होती,

महबूब को  आतिश खोना पड़ता है।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – संजय उवाच ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – संजय उवाच ? ?

कुरुक्षेत्र में

केवल योगेश्वर

और पार्थ का

संवाद नहीं हुआ था,

केवल गीता का

महत ज्ञान

बखान नहीं हुआ था,

दुर्योधन, दुःशासन,

शकुनि, कौरवों ने

ढेर सारा गरल

वमन किया था;

जिसका संजय ने

कभी वर्णन नहीं किया था,

उसने सुनाया केवल

योगेश्वर उवाच,

अमानवीयता को

मानवता

प्रदान करने के लिए,

सुनो,

अमानवीयता के पक्षधरो!

सतर्क रहना

‘अ’ को हटाने के

इस कर्णधार के

अभियान से,

सजग रहना

हलाहल छिपाने;

अमृत चखाने के

इस सूत्रधार के

सूत्र ज्ञान से,

भीतर बसे राक्षसो!

सतर्क रहना

कन्हाई शब्द रास से,

सजग रहना

‘संजय उवाच’ से…!

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 103 ☆ ग़ज़ल – वक्त किस्मत हालात  किससे  शिकवा करें ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 103 ☆

☆ ग़ज़ल – वक्त किस्मत हालात  किससे  शिकवा करें ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1] मतला

अपने ही आज अब क्यों बेगाने हो गए।

नहीं मिलने के ही  लाखों बहाने हो गए।।

[2]    हुस्ने मतला

उनके अब तो आसमानी निशाने हो गए।

न जाने कौन से उनके   दोस्ताने हो गए।।

[3]

अब वो मुस्कराते नहीं हैं   देख  कर भी।

तरीके बात करने के   अनजाने हो गए।।

[4]

नए दौर के नए चलन में अब वो आए हैं।

लगता है कि  हम तो माल  पुराने हो गए।।

[5]

नजर से नजर देख कर  अब मिलाते नहीं।

अंदाज ही उनके नजर को   बचाने हो गए।।

[6]

देख देख कर ही रुख  की बेरुखी उनकी।

हमारे अब तो रास्ते सारे ही वीराने हो गए।।

[7]

वक्त किस्मत हालात  किससे  शिकवा करें।

दुनिया सामने सारे अफसाने फसाने हो गए।।

[8]

जिनके बिन कटती नहीं थी इक पल जिंदगी।

बात करे हुए    उनसे ही अब  जमाने हो गए।।

[9]

हंस समझ   कर बदलते तौर तरीके आज के।

शहर में कदम कदम पर अब मयखाने हो गए।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 165 ☆ ‘चारुचन्द्रिका’ से – कविता – “कृषि प्रधान है देश हमारा…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण रचना  – “कृषि प्रधान है देश हमारा ..। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ ‘चारुचन्द्रिका’ से – कविता – “कृषि प्रधान है देश हमारा ” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

कृषि प्रधान है देश हमारा हम सब भारतवासी

धर्म-कर्म के क्षेत्र अनेकों, ज्यों मथुरा औ’ काशी।

 

कई ऋतुएँ आ समय-समय पर सुन्दर इसे बनाती

फल सब्जी, अनाज भेदों सब झोली में भर जाती।

 

सूरज तपता यहाँ तेज तब होती धरती प्यारी

सभी एक से व्याकुल होते राही हो या संन्यासी।

 

आग बरसी, लू चलती है बहता बहुत पसीना

ठंडी जगह और पानी बिन मुश्किल होता जीना।

 

तब काले मेघों के सँग आ नभ में वर्षा रानी

लाती हवा फुहारों के संग बरसाती है पानी।

 

वर्षा के स्वागत में खुश हो पेड़ हरे हो जाते

पशु-पक्षी हर्षित होते नर-नारी हँसते गाते ।

 

खेत, बाग, वन सुन्दर सजते पहने चूनर धानी

चारों ओर नदी नालों में दिखता पानी-पानी ।

 

पावस की बूँदें दुनिया में नया रंग भर जाती

बहू-बेटियाँ खुश गाँवों में नित त्यौहार मनाती ।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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