हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – प्रसव ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – प्रसव ??

उपज रही हैं

रचनाएँ ही रचनाएँ;

किसी गर्भवती की कोख में

आश्चर्यजनक ढंग से

पनपती अनेक धड़कनों की तरह,

पुंसवन, अंकुरण, मंथन, सृजन,

गर्भ में पनपता आकार;

कागज़ पर उतरता शब्दों का संसार,

जन्म देने की भावना;

जन्म देने से दूर होती वेदना,

इस अनुभूति को

समानुभूति ही समझ सकती है,

विज्ञान झूठ कहता है कि,

केवल स्त्रियाँ ही माँ बन सकती हैं..!

(कवितासंग्रह ‘मैं नहीं लिखता कविता’ से।)

© संजय भारद्वाज 

21/8/2013, रात्रि 8:43 बजे

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 आपदां अपहर्तारं साधना श्रीरामनवमी अर्थात 30 मार्च को संपन्न हुई। अगली साधना की जानकारी शीघ्र सूचित की जावेगी ।💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 133 – प्रार्थना के स्वर… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपकी एक भावप्रवण रचना– प्रार्थना के स्वर…।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 133 – प्रार्थना के स्वर …  ✍

भाव संपदा हो घनी, हो चरणों की चाह।

शब्द ब्रह्म आराधना, घटे नहीं उत्साह।

करुण, वीर ,वात्सल्य रस ,श्रंगारिक रसराज।

रस की हो परिपूर्णता, माने रसिक समाज।।

सत शिव -सुंदर काव्य ही,मौलिक रचे रचाव।

नयन प्रतीक्षा में निरत ,हार्दिक रहे प्रभाव।।

रस ही जीवन प्राण है, सृष्टि नहीं रसहीन ।

पृथ्वी का मतलब रसा, सृष्टि स्वयं रसलीन ।।

प्रथम वर्ण उपचार से, रचता रंग विधान।

प्रेम रंग में जो रंगी, उसको खोजे प्राण।।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 132 – “सहन नही कर पायी ऑंसू…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है  आपका एक अभिनव गीत  सहन नही कर पायी ऑंसू)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 132 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

सहन नही कर पायी ऑंसू… ☆

मरे जिस समय, संस्कार को

ढोते हुये पिता

पर मुखाग्नि न दे पाये बेटे,

थी सजी चिता

 

बेटी जो थी व्याही अपने

मैके के ही पास

रोती आई मन में ले अंतिम

दर्शन की आस

 

वही पिता को दे मुखाग्नि

पंचो ने नियत किया

पता चला कितनी क्या पुत्री

होती समर्पिता

 

और बाप के अस्थिकलश को

ले पहुंचीं गंगा

इस समाज के दीन धरम को

करके अधनंगा

 

जार जार रोती थी पुत्री

अपने बापू को

सहन नही कर पायी ऑंसू

सुरसरि की सिकता

 

जब त्रियोदशी भी करली

तब नालायक बेटे

पहुंचें गाँव स्वांग को भरते

किस्मत के हेटे

 

इधर एक हरकारा मरघट से

आकर बोला –

“उन लकड़ी के पैसे दे दो ,

जिन से जली चिता “

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

29-03-2023

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – वाचाल ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – वाचाल ??

दोनों बनाते-बढ़ाते रहे

साउंडप्रूफ दीवारें अपने बीच,

नटखट बालक-सा वाचाल मौन;

कूदता-फांदता रहा;

शोर मचाता रहा,

दीवार के दोनों ओर;

उन दोनों के बीच..!

© संजय भारद्वाज 

11.28 बजे, 19.1.2020

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 आपदां अपहर्तारं साधना श्रीरामनवमी अर्थात 30 मार्च को संपन्न हुई। अगली साधना की जानकारी शीघ्र सूचित की जावेगी ।💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ ‘अपने वरक्स’… श्री संजय भारद्वाज (भावानुवाद) – ‘Trial…’ ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi poem “~ अपने वरक्स ~.  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

श्री संजय भारद्वाज जी की मूल रचना

? संजय दृष्टि – अपने वरक्स – ??

फिर खड़ा होअपने वरक्सता हूँ

अपने कठघरे में,

अपने अक्स के आगे

अपना ही मुकदमा लड़ने,

अक्स की आँख में

पिघलता है मेरा मुखौटा,

उभरने लगता है

असली चेहरा..,

सामना नहीं कर पाता,

आँखें झुका लेता हूँ

और अपने अक्स के वरक्स

हार जाता हूँ अपना मुकदमा

हर रोज़ की तरह…!

संजय भारद्वाज🙏

9890122603
[email protected]

( कविता संग्रह ‘मैं नहीं लिखता कविता’ से।)

© संजय भारद्वाज 

मोबाइल– 9890122603, संजयउवाच@डाटामेल.भारत, [email protected]

☆☆☆☆☆

English Version by – Captain Pravin Raghuvanshi

? ~ Trial ~ ??

I stand up again

in my testimony box,

before my own image

to fight my own case…

In the eyes of image

melts my mask…

There begins to emerge

my real face…

Unable to cope up

I lowered down my

eyes shamefully

And, before my

own reflection,

yet again, I lose my case

like everyday…!

~Pravin

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 123 ☆ # सत्यमेव जयते… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# सत्यमेव जयते… #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 123 ☆

☆ # सत्यमेव जयते… # ☆ 

मै एक पहाड़ी के चोटी पर खड़ा हूँ 

हाथ जोड़कर आंखें मूंदा पड़ा हूँ

चारों तरफ घंटियां बज रहीं हैं

आरतियां प्रार्थना की सज रही है

रंग बिरंगे परिधानों में

धरती और आसमानों में

रून-झुन पांव चल रहे हैं

संग संग गांव चल रहे हैं

आंखों में एक आस है

मन में कुछ पानें की प्यास है

भीनी भीनी सुगंध है

पवन चल रही मंद मंद है

थाल रखा जब मूर्ति के आगे

उसको लगा भाग है जागें

भक्ति मे लीन वो अनंत में खो गई

अपनें आराध्य के हृदय में सो गई

तंद्रा टूटी और वो जागी

अकेली खड़ी थी वो अभागी

वो सीढ़ियां चढ़ कर पहाड़ी पर आई

मुझको प्रसाद देकर मुस्कुराई

मुझसे पूछा –

क्या मांगा आपने?

क्या चाहा आपने?

मैं बोला –

मांगने तो तुम गई थी

अपने मन की बात तुमने कही थी

मै तो निसर्ग के सौंदर्य में मगन था

फैली सुंदरता का  मन में लगन था

वो बोली –

मैंने तो अपने लिए मांगा सब कुछ

मेरे जीवन में ना आए कोई दुःख

और तुमने –

मैंने कहा –

प्रेम ही जीवन है

जीवन में प्रेम की लगन हो

धीमे धीमे तपिश दे

ऐसी मधुर अगन हो

बस प्रभु –

झूठ  कभी ना सर चढ़ पाए 

असत्य कभी सत्य से ना लढ़  पाए 

झूठ, पाखंड, मक्कारी के युग में

असत्य कोई इतिहास ना गढ़ पाए 

आखरी सांस के रहते तक

हम सब कहे,

सत्यमेव जयते, सत्यमेव जयते/

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 133 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media# 133 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 133) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 133 ?

☆☆☆☆☆

Friendship 

बेपरवाह वक्त तो चलता रहा,

पर जिंदगी सिमटती गई

दोस्त तो तमाम बढ़ते गए,

पर दोस्ती घटती गई… !

☆☆ 

Unheeding time kept on moving

But the life kept shrinking…

Though friends kept on increasing,

But friendship kept decreasing.

☆☆☆☆☆

बस निभाने वाले ही तो

नहीं मिलते हैं, साहब,

चाहने वाले तो हर

एक मोड पर खड़े हैं…!

☆☆

Those who can fulfill promises

are just not found, Sire…

While adorers are waiting at

every nook and corner…!

☆☆☆☆☆

इन संगदिल चलते-फिरते बुतों  को

भला क्यों कर कोई इंसान माने

इंसान तो वो ही कहलाता है

जिसके जिस्म में एक जिंदा रूह हो…!

☆☆  

Why must these heartless statues

be considered as human beings,

They only deserve to be humans,

Who’ve a live soul in their body…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 132 ☆ – गीत – नदी मर रही है… – ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित  गीत “~ नदी मर रही है… ~”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 132 ☆ 

~ गीत ~ नदी मर रही है ~ ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

नदी नीरधारी, नदी जीवधारी,

नदी मौन सहती उपेक्षा हमारी

नदी पेड़-पौधे, नदी जिंदगी है-

भुलाया है हमने नदी माँ हमारी

नदी ही मनुज का

सदा घर रही है।

नदी मर रही है

*

नदी वीर-दानी, नदी चीर-धानी

दी ही पिलाती बिना मोल पानी,

नदी रौद्र-तनया, नदी शिव-सुता है-

नदी सर-सरोवर नहीं दीन, मानी

नदी निज सुतों पर सदय, डर रही है

नदी मर रही है

*

नदी है तो जल है, जल है तो कल है

नदी में नहाता जो वो बेअकल है

नदी में जहर घोलती देव-प्रतिमा

नदी में बहाता मनुज मैल-मल है

नदी अब सलिल का नहीं घर रही है

नदी मर रही है

*

नदी खोद गहरी, नदी को बचाओ

नदी के किनारे सघन वन लगाओ

नदी को नदी से मिला जल बचाओ

नदी का न पानी निरर्थक बहाओ

नदी ही नहीं, यह सदी मर रही है

नदी मर रही है

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१२.३.२०१८, जबलपुर

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “ आवारा ” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ कविता ☆ “आवारा” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

मन में ना कोई धरम है

ना किसी की नफरत है

बस जीने की एक ख्वाहिश है

सीने में एक धड़कता दिल है

कहते हमे आवारा है ।

 

हमें जाना कहीं नहीं है

रास्ता यही हमारा घर है

जन्नत कहाँ है पता नहीं है

जन्नम का हमें डर नहीं है

कहते हमे आवारा है ।

 

प्यार खुले आसमां में उड़ता है

नफ़रत बंद गलियों में दौड़ती है

इंसानियत जंगल में रहती है

हैवानियत अब घर में क़ैद है

और कहते हमे आवारा है ।

 

खयाल पत्थरों को जान देते हैं

पत्थर मासूमों की जान लेते है

कहानियों के पीछे जिंदगी भागती है

वहां मौत सड़कों पे नाचती है

और कहते हमे आवारा है ।

 

रहमत है खुदा की भगवान की कृपा है

हाथों पे खून किसी मासूम का नहीं है

किसी होशियार के प्यादे नहीं है

किसी कहानी के हम गुलाम नहीं है

शुक्र है हम आवारा है

शुक्र है हम आवारा है ।

 

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #183 – 69 – “वक़्त ने बदल कर रख दी तहरीर…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “वक़्त ने बदल कर रख दी तहरीर …”)

? ग़ज़ल # 69 – “वक़्त ने बदल कर रख दी तहरीर…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

ज़िंदगी खुशनुमा है जब दिल से दिल मिलता है,

जमाने में किसी को कहाँ सच्चा दिल मिलता है।

वक़्त ने बदल कर रख दी तहरीर आशियाने की,

एक घर में रहकर नहीं कोई हिलमिल मिलता है।

मुहब्बत में गुमसुम लोगों से क्या हाल पूछते हो,

ढूँढते माशूक़ पता उन्हें साँप का बिल मिलता है।

दोस्ती का खेल भी खूब खेला जा रहा आजकल,

काम निकला फिर कब दोस्त से दिल मिलता है।

रिश्ते नाते दिखावटी नुमाइश बनकर रह गए हैं,

आतिश को हाथ में नहीं कुछ हासिल मिलता है।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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