हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #221 – 108 – “तुमने मुझ पर नाराज़ होना छोड़ दिया,…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल तुमने मुझ पर नाराज़ होना छोड़ दिया…” ।)

? ग़ज़ल # 108 – “तुमने मुझ पर नाराज़ होना छोड़ दिया…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

तुमको  कहते हैं  लोग  मेरी जाने जाँ,

लेकर मेरा दिल बन गई मेरी जाने जाँ।

*

तुम आग तन बदन में लगाकर जाती हो

लहराती हो जब ज़ुल्फ़ें छत पर जाने जाँ।

*

तुमने मुझ पर नाराज़ होना छोड़ दिया,

नाराज़ी इतनी  ठीक ना  है जाने जाँ।

*

दुनियादारी में खोई हो तुम तो जानम,

तुम खूब बहाने क्यूँ  बनाती जाने जाँ।

*

तुम खुलकर भी तो मिल नहीं पाती हो,

आतिश को रहती हो  भर्माती जाने जाँ।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अमर प्रेम ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – अमर प्रेम ? ?

उड़ती वायु

द्रवीभूत हुई,

निर्मल जल

बह निकला,

प्रवाह घनीभूत हुआ

ठोस हिम उभरा,

सिकुड़ी लाजवंती में

दुबका हरापन,

कवच के भीतर

कछुए का जीवन,

जल में अंतर्निहित वायु,

ठोस में अंतर्भूत जल,

शल्क डाल लेने से

भीतर नहीं बदलता,

कितना ही अनदेखा करें

प्रेम कभी नहीं मरता!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

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नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 98 ☆ मुक्तक ☆ ।। हर धड़कन हिंदी, हिन्द, हिंदुस्तान चाहिये।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 98 ☆

☆ मुक्तक ☆ ।। हर धड़कन हिंदी, हिन्द, हिंदुस्तान चाहिये।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

हर रंग से हमें  रंगीन   हिंदुस्तान चाहिये।

खिलते बाग बहार सा गुलिस्तान  चाहिये।।

चाहिये विश्व में  नाम  ऊँचा  भारत  का।

विश्व गुरु भारत का ऊँचा सम्मान चाहिये।।

[2]

मंगल चांद को  छूता भारत महान चाहिये।

अजेयअखंड विजेता सा हिंदुस्तान  चाहिये।।

दुश्मन नज़र उठा कर देख भी ना   सके।

हर शत्रु का  हमको काम तमाम  चाहिये।।

[3]

हमें गले  मिलते राम और रहमान चाहिये।

एक   दूजे के लिए प्रणाम सलाम चाहिये।।

चाहिये हमें मिल कर रहते हुए सब लोग।

एक दूजे के लिए दिलों में एतराम चाहिये।।

[4]

एक सौ पैंतीस  करोड़  सुखी अवाम चाहिये।

कश्मीर कन्याकुमारी प्रेम का पैगाम चाहिये।।

चाहिये  विविधता  में एकता शक्ति दर्शन।

अपने देश का सम्पूर्ण संसार में यशोगान चाहिये।।

[5]

पुरातन  संस्कार मूल्यों का गुणगान चाहिये।

हर  भारतवासी चेहरे पर गर्व मुस्कान चाहिये।।

चाहिये गौरव अभिमान अपने देश भारत पर।

हर धड़कन हिन्दी, हिन्द का ही पैगाम चाहिये।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 161 ☆ ‘चारुचन्द्रिका’ से – कविता – “बलिदानी वीरों की याद…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण रचना  – “बलिदानी वीरों की याद। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ ‘चारुचन्द्रिका’ से – कविता – “बलिदानी वीरों की याद” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

वतन पर मिटने वालों की लगन जब याद आती है

तो मन हो जाता भारी, साँस दुख में डूब जाती है।

 *

मिटाकर अपनी हस्ती देश को जिनने दिया जीवन

उन्हें सब याद करते, माँ सिसक आँसू बहाती है।

 *

हमेशा आँधी-तूफानों से जो लड़ते रहे भरसक

उन्हें श्रद्धा सुमन की भेंट हर बस्ती चढ़ाती है।

 *

लड़े बेखौफ आगे बढ़ सहे सौ वार दुश्मन के

समर की यही गाथाएँ अमर उनको बनाती हैं।

 *

सुरक्षित स्वर्ण पृष्ठों पर उन्हें इतिहास रखता है

जिन्हें निस्वार्थ जीवन औ’ मरण की रीति आती है।

 *

जिन्होंने जान दी अपनी विजय की भोर लाने को

सदा जनता उन्हीं की वीरता के गीत गाती है।

 *

दिवस, मेले औ’ प्रतिमाएँ सजायी जाती उनकी ही

जिन्हें आदर से मन मंदिर में जनता नित बिठाती है।

 *

उन्हीं के त्याग ने हमको बनाया आज जो हम हैं

विदग्ध’ उनकी विमल स्मृति हमें जीना सिखाती है।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिंदी साहित्य – कविता ☆ “नादान मछलियां” ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

सुश्री इन्दिरा किसलय

☆ कविता – “नादान मछलियां” ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

🐟

केवल तुम से  तुम तक  है

समझो बात   सुरक्षित है।

🐠

चंदनवन की राह विकट है

सांपों से  अभिरक्षित   है।

🐟

खुद से खुद तक नहीं पहुंचा

वो दुनिया भर में चर्चित है।

🐠

जीते जी   पुतले  बनवाए

कैसे  कहें वो मूर्छित है  ।

🐟

लुटे पिटे बेबस  हैं  लाखों

पत्थर को प्यार समर्पित है।

🐠

 नादान मछलियां देख रहे हैं

 बगुले कितने      हर्षित हैं ।

🐟

 बहुरूपिए का कसूर क्या?

 वो आका से आकर्षित है।

💧🐣💧

©  सुश्री इंदिरा किसलय 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – संतृप्त ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – संतृप्त ? ?

दुनिया को जितना देखोगे,

दुनिया को जितना समझोगे,

दुनिया को जितना जानोगे,

दुनिया को उतना पाओगे,

अशेष लिप्सा है दुनिया,

जितना कंठ तर करेगी,

तृष्णा उतनी ही बढ़ेगी,

मैं अपवाद रहा

या शायद असफल,

दुनिया को जितना देखा,

दुनिया को जितना समझा,

दुनिया में जितना उतरा,

तृष्णा का कद घटता गया,

भीतर ही भीतर एक

संतृप्त जगत बनता गया!

© संजय भारद्वाज 

(रात्रि 12:25 बजे, 16.6.2019)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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☆ आपदां अपहर्तारं ☆

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नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #217 ☆ कविता – अपना संविधान ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण कविता अपना संविधान )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 217 – साहित्य निकुंज ☆

☆ कविता – 🇮🇳 अपना संविधान 🇮🇳 ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

 

 

संविधान जबसे बना,है गणतंत्र महान।

हमको अपने देश का, रखना होगा मान।।

संविधान देता हमें, जीने का अधिकार।

बदला हुआ राजतंत्र, हमें यही स्वीकार।।

संविधान की भावना, जिसके मन में आज।

वही कर रहा है अभी,सभी दिलों पर राज।।

कहे तिरंगा शान से, बसे देश के प्रान।

कहता गाथा देश की,दिए बहुत बलिदान।।

देश भक्ति के भाव का, करते  है गुणगान।

मिलजुल कर करते सभी, देश का सम्मान।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #198 ☆ मोरे मन में रम गए राम… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज भगवान श्री राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर प्रस्तुत है मोरे  मन  में  रम  गए   रामआप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 198 ☆

☆ मोरे मन में रम गए राम.. ☆ श्री संतोष नेमा ☆

दर्श बिनु मोहि कहाँ विश्राम

मोरे  मन  में  रम   गए   राम

*

आज अवध में  राम बिराजे

ढोल-मृदंग    मंजीरा   बाजे

अवध  में  नाचें  चारों   धाम

मोरे  मन  में  रम  गए   राम

*

सरयू सलिला पुलकित भारी

प्राण प्रतिष्ठित अवध  बिहारी

जिनकी छवि सुंदर  अभिराम

मोरे  मन  में  रम   गए   राम

*

धर्म-ध्वजा  घर-घर  फहराएं

दीप   आरती  थाल   सजाएं 

प्रफुल्लित नगर नगर हर ग्राम

मोरे  मन  में  रम   गए   राम

*

सरयू   तीर   लगा   है   मेला

राम  भक्ति  की  सुंदर   वेला

सबको मिलता सुखद मुकाम

मोरे  मन  में  रम   गए   राम

*

सबके सफल करें प्रभु  काम

“सतोष” राम  शरण  सुखधाम

मोरे  मन  में  रम   गए   राम

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ ‘अलिखित…’ श्री संजय भारद्वाज (भावानुवाद) – ‘Unwritten ‘Un’ Dictionary…’ ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of n

ational and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi poem “अलिखित.  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

श्री संजय भारद्वाज जी की मूल रचना

? संजय दृष्टि –  अलिखित ? ?

सुनो-

कलरव से

नीरव हो जाने में

समय नहीं लगता

पर नीरव से

कलरव लाने में

बीत जाते हैं युग,

चुक जाती हैं सदियाँ,

उपसर्ग भर बदलने से

कितने बदल जाते हैं शब्द,

उनका अर्थ और

अ-लिखा शब्दकोश!

© संजय भारद्वाज

मोबाइल– 9890122603, संजयउवाच@डाटामेल.भारत, [email protected]

☆☆☆☆☆

English Version by – Captain Pravin Raghuvanshi

? – Unwritten ‘Un’ Dictionary… ??

Listen-

It doesn’t take much

time to go from vivacious

chirping to  stark silence…

But,  centuries  go  by,

Or even it takes many ages

to bring festive liveliness

from sombre lifelessness,

Just imagine how many

words turn topsy-tervy 

just by changing the prefix,

Rewriting their meaning and

creating an ‘un’written dictionary!

~Pravin

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #31 ☆ कविता – “नक़्श-ए-इश्क़…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 31 ☆

☆ कविता ☆ “नक़्श-ए-इश्क़…☆ श्री आशिष मुळे ☆

उसे जबान की क्या जरूरत

कहे जो शख़्स प्यार बुरा है

नहीं समझा वो सदियों से

होना जानवर से इंसान क्या है

 

जिस किताब को नहीं इश्क के मायने

उसे पढ़कर क्या पाना

बस जिंदगी की सीख भूलना

और मौत में जनम खोजना

 

कहे जो दोस्त, मत कर मोहब्बत

उसे सुनकर क्या फायदा

बस दिलोदिमाग को गिरवी रखना

और सांप को ख़ैर-ख़्वाह समझना

 

बड़ी से बड़ी दौलत

नहीं ख़रीद सकती इसे

नक़्ल इसकी मगर

बिकती बड़ी सस्ते में

 

नक़्ल तो नक़्ल सही

मगर खरीद वो जज़्बात से

नक़्ल के पीछे भी है एक शक्ल

देखो गर जुनून-ए-इश्क़ से

 

जो ना समझे नक़्श-ए-इश्क़

वो जन्नत की तलाश करते है

दर्द-ए-इश्क़ दे सुकून जिसको

जन्नत उसे तलाश करती है….

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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