हिन्दी साहित्य – कविता ☆ एक आज़ाद परिंदे सी थी उड़ान कभी… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “एक आज़ाद परिंदे सी थी उड़ान कभी“)

✍ एक आज़ाद परिंदे सी थी उड़ान कभी… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

बाँकपन छोड़ दिया है सगीर लगने लगे

एक थे लाख में अब बे-नज़ीर लगने  लगे

एक आज़ाद परिंदे सी थी उड़ान कभी

इश्क़ जब उनसे हुआ है असीर लगने लगे

साथ का उनके असर मुफ़लिसी में ऐसा हुआ

हम अपने दिल से यकायक अमीर लगने लगे

वक़्त का ये नहीं बदलाव है तो फिर क्या है

आज के दौर के बच्चे मुशीर लगने लगे

ज़िंदगी से वो गया दूर तीरगी करके

पास असबाव सभी हम फ़क़ीर लगने लगे

☆ 

दूसरा था जो कभी हो गया है अब अपना

प्यार का जबसे मुझे वो सफीर लगने लगे

पढ़ लिए हो जो अरुण चार पोथियाँ केवल

ये गलत फहमी है जो खुद को मीर लगने लगे

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ नवरात्रि के दोहे ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ नवरात्रि के दोहे ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे 

दुर्गा माँ तुम आ गईं, हरने को हर पाप।

संभव सब कुछ है तुम्हें, तेरा अतुलित ताप।।

बढ़ता ही अब जा रहा, जग में नित अँधियार।

करना माँ तुम वेग से, अब तो तम पर वार।।

भटका है हर आदमी, बना हुआ हैवान।

हे माँ! दे दो तुम ज़रा, मानव-मन को मान।।

सद्चिंतन तजकर हुआ, मानव गरिमाहीन।

दुर्गा माँ दुर्गुण हरो, सचमुच मानव दीन।।

छोटी-छोटी बच्चियाँ, हैं तेरा ही रूप।

उन पर भी तुम ध्यान दो, बाँटो रक्षा-धूप।।

हम सब हैं तेरा सृजन, तू सचमुच अभिराम।

दुर्गा माँ तू तो सदा, रखती नव आयाम।।

ये पल पावन हो गए, लेकर तेरा नाम।

यह जग दुर्गे है सदा, तेरा ही तो धाम।।

दुर्गा माँ तुम वेगमय, तुम तो हो अविराम।

धर्म, नीति तुमसे पलें, साँचा तेरा नाम।।

दुर्गा माँ तुमने किया, मार असुर कल्याण।

नौ रूपों में तुम रहो, पापी खाते बाण।।

सिंहवाहिनी दिव्य तुम, हम सब तेरे लाल।

दर्शन दो, हमको करो, हे माँ !आज निहाल।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 25 – निर्जला हैं नदियां बेचारी… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – निर्जला हैं नदियां बेचारी…।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 25 – निर्जला हैं नदियां बेचारी… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

निर्जला हैं नदियां बेचारी

सुबह-सुबह ही झरने लगती

अम्बर से चिन्गारी 

आग बबूला हो जाती है 

तपकर क्रुद्ध दुपहरी 

चीख-चीखकर ताने 

मारा करती रोज टिटहरी 

किरणों के कोड़े बरसाता

सूरज गगन-बिहारी 

पाँव कुल्हाड़ी मारी 

हमने उल्टे पढ़े पहाड़े 

मातु-पिता जैसे हितकारी 

जंगल सभी उजाड़े 

रहती है ज्वर ग्रस्त हमेशा

यह धरती महतारी 

अपशकुनी हो रही हवाएँ 

करतीं जादू-टोना 

चिथड़ा-चिथड़ा हुआ 

धरा का वो मखमली बिछौना 

सूख गये तालाब

निर्जला हैं नदियां बेचारी

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 102 – नयन हँसे तो दिल हँसे… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना  “नयन हँसे तो दिल हँसे। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 102 – नयन हँसे तो दिल हँसे… ☆

नयन हंँसें तो दिल हँसे, हँसें चाँदनी – धूप।

नयन जलें क्रोधाग्नि से, देख डरें सब भूप।।

नयन विनोदी जब रहें, करें हास परिहास।

व्यंग्य धार की मार से, कर जाते उपहास।।

नयन रो पड़ें जब कभी,आ जाता तूफान।

पत्थर दिल पिघलें सभी, बन आँसू वरदान।।

नयनों की अठखेलियाँ, जब-जब होतीं तेज।

नेह प्रीत के सुमन से, सजती तब-तब सेज।।

इनके मन जो भा गया, खुलें दिलों के द्वार।

नैनों की मत पूछिये, दिल के पहरेदार ।।

नयनों की भाषा अजब, इसके अद्भुत ग्रंथ।

बिन बोले सब बोलते, अलग धर्म हैं पंथ।।

बंकिम नैना हो गये, बरछी और कटार।

पागल दिल है चाहता, नयन करें नित वार।।

प्रकृति मनोहर देखकर, नैना हुए निहाल।

सुंदरता की हर छटा, मन में रखे सँभाल।।

नैंना चुगली भी करें, नैना करें बचाव।

नैना से नैना लड़ें, नैंना करें चुनाव।।

नैना बिन जग सून है, अँधियारा संसार।

सुंदरता सब व्यर्थ है, जीवन लगता भार।।

सम्मोहित नैना करें, चहरों की है जान ।

मुखड़े में जब दमकतीं, बढ़ जाती है शान।।

प्रभु की यह कारीगिरी, नयन हुए वरदान।

रूप सजे साहित्य में, उपमाओं की खान।।

 ©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – आत्मतत्व ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – आत्मतत्व ? ?

आत्मतत्व है तो

देह प्राणवान है,

बिना आत्मतत्व

देह निष्प्राण है..,

दो पहलुओं से

सिक्का ढलता है,

पस्परावलंबिता से

जगत चलता है,

माना आत्मऊर्जा से

देह प्रकाशवान है पर

देह बिना आत्म भी

दिवंगत विधान है..!

© संजय भारद्वाज 

(प्रात: 5.56 बजे, 7.12.19)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

नवरात्रि साधना के लिए मंत्र इस प्रकार होगा-

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता,

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

🕉️ 💥 देवीमंत्र की कम से कम एक माला हर साधक करे। अपेक्षित है कि नवरात्रि साधना में साधक हर प्रकार के व्यसन से दूर रहे, शाकाहार एवं ब्रह्मचर्य का पालन करे। सदा की भाँति आत्म-परिष्कार तथा ध्यानसाधना तो चलेंगी ही। मंगल भव। 💥 🕉️

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 161 – गीत – मूरत रखकर मन मंदिर में… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण गीत – मूरत रखकर मन मंदिर में।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 161 – गीत – मूरत रखकर मन मंदिर में…  ✍

मूरत रखकर मन मंदिर में

पूजा किया करूँगा

हाजिर नहीं रहूँगा

 

भीड़ भरा है तीरथ तेरा

अविरल यात्री आते

आँखों के इस घटाटोप में

तेरा चेहरा देख न पाते

धक्का मुक्की के ये करतब, मैं तो नहीं करूँगा।

 

सब दर्शन की खातिर आते

पर पूजन का ढोंग रचाते

तेरा रूप चुराने वाले

गढ़ लेते हैं रिश्ते नाते

रिश्तों की इस भागदौड़ में मैं तो नहीं पडूंगा।

 

सिर्फ हाजिरी से क्या होता

असली चीज समर्पण होती

अपनी अपनी प्रेम पिपासा

अपना अपना दर्पण होती

यह जीवन तुमको ही अर्पित क्या उपयोग करूँगा।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 160 – “सम्भव नहीं हुआ है अब…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत  सम्भव नहीं हुआ है अब)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 160 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “सम्भव नहीं हुआ है अब” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

नहीं खा सकी कभी पेट या

जी भर कर खाना

बेचारी सुरसतिया ढोती

परिचय अनजाना

 

क्या था घर ? बस सुअर

टहलने का लम्बा बाड़ा

बसती थी दुर्गंध जहाँ

क्या गर्मी क्या जाड़ा

 

बरस गया पानी तो बस

आफत ही आफत थी

कभी कभी तो धूप किया

करती थी मनमाना

 

सारे रोग इसी बस्ती के

जैसे ग्राहक थे

लोग रहे मजबूर वहाँ

जैसे वे नाहक थे

 

पसरी रहती स्थितियों

में एक अदद चुप्पी

सम्भव नहीं हुआ है अब

तक जिसको समझाना

 

तार-तार थे वस्त्र और

था टपरे का रहना

इसी मोहल्ले की वह

लेकिन बनी रही गहना

 

जो उदाहरण बनती आयी

भूखों मर कर भी

कुछ न कहते , बनी रही

बस आँखो का झरना

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

05-10-2023

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – आशा ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – आशा ? ?

फुटपाथ पर डेरा लगाए

वह बुज़ुर्ग भिखारी,

अनामिका में पहनी

भाग्य पलटाने की

उस चमकती

नकली अँगूठी को

रात के इस प्रहर में भी

हसरत से निहारता है,

ये मरी आशा

आदमी को

किन-किन

हालातों में

ज़िंदा बनाये रखती है!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

नवरात्रि साधना के लिए मंत्र इस प्रकार होगा-

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता,

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

🕉️ 💥 देवीमंत्र की कम से कम एक माला हर साधक करे। अपेक्षित है कि नवरात्रि साधना में साधक हर प्रकार के व्यसन से दूर रहे, शाकाहार एवं ब्रह्मचर्य का पालन करे। सदा की भाँति आत्म-परिष्कार तथा ध्यानसाधना तो चलेंगी ही। मंगल भव। 💥 🕉️

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 152 ☆ # काले कौए # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी समसामयिक घटना पर आधारित एक भावप्रवण कविता “# काले कौए #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 152 ☆

☆ # काले कौए #

हमारे एक मित्र ने पूछा –

भाई!

आजकल पितृपक्ष में

काले कौए क्यूं नहीं

दिखाईं देते हैं ?

मैंने कहा –

क्योंकि, 

हम साल भर उनकी

सुध नहीं लेते हैं

ना दाना

ना पानी

देते है

वो बोला –

पर यार

पितृपक्ष में

हम उनको

श्रद्धा से बुलाते हैं

अपने पूर्वजों की तरह पूजते हैं

पितरों को जल अर्पित कर

पंच पकवान थाली में रखते हैं

मै बोला, भाई –

तुम्हारे यह टोटके

पुराने हो गए हैं

वो भी नये जमाने में

सयाने हो गए हैं

पहले मुंडेर पर

कौए बैठा करते थे

जब हम छोटे

हुआ करते थे

अब ना तो गांव रहे

ना पेड़ पर

कांव कांव रहे

जो बचे हैं

वो भी अकड़ में

रहते हैं

अपनी मर्ज़ी से आयेंगे

कहते हैं

आजकल शहर में

सफेद बगुलों की

संख्या कितनी बढ़ गई है

इसलिए कौओं की मति भी

थोड़ी चढ़ गई है

भाई, जब-तक सफेद बगुलों पर

नियंत्रण नही लगाओगे ?

तब तक काले कौओं को

बचा नही पाओगे?

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 161 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 161 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 161) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 161 ?

☆☆☆☆☆

पहले लोग फना होते थे

उनकी रूहें भटकती थीं,

आजकल रूहें मारा करतीं हैं

और लोग भटकते रहते हैं…!

☆☆

Earlier people used to die

their souls would wander-

Now souls keep dying and

people wander around…!

☆☆☆☆☆

 ☆ Knoweth not why

क्यूँ तुम्हारे नाम को सुनते ही

मेरी सांस महकने लगती है,

एहसास नशे का होता है और

हर फ़िक्र बहकने लगती है…

☆☆

Why my breaths become fragrant

moment I hear your name,

Feeling is of inebriation and

every worry starts to delude…

☆☆☆☆☆

 ☆ Sharing

माना कि सबको खुशियाँ

ना दे सके हम…

पर कुछ गम तो उनके बाँट लिए

जिससे भी हम मिले…!

☆☆

Agreed that I may not have

given happiness to everyone…

But I did share some of the

sorrows of whoever I met..!

☆☆☆☆☆

 ☆ God’s Status…

ऐ  फनकार  अगर  बना 

सके  मेरी  तस्वीर  में

मेरे दर्द भी तो तुझे ऊपर

वाले  का  दर्जा  दूंगा…!

☆☆

O’ Artist, if you can paint

my  pains  in  my  picture…

Then  I  shall  grant  you

the  status  of  the  God..!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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