हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 33 ☆ अपना इतिहास… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “अपना इतिहास…” ।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 33 ☆ अपना इतिहास… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

उम्र भर तलाश

लिखता है आदमी

अपना इतिहास ।

 

अक्षर की पगथली

शब्दों के जंगल

अर्थों के बियावान

खोजते सुमंगल

 

भाषाएँ झेलतीं

युग का संत्रास ।

 

सभ्यता के दोराहे

भ्रमित तरुणाई

संस्कार मीठे से

कड़वी सच्चाई

 

कथा पुराणों तक

सीमित विश्वास ।

 

पंखों पर हवाएँ

रोज़ नया दर्शन

समय की लकीरें

रचतीं परिवर्तन

 

दिशाओं से आगे

केवल वनवास ।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ बोझ तुम मान के बेटी नहीं रुखसत करना… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “बोझ तुम मान के बेटी नहीं रुखसत करनाए“)

✍ बोझ तुम मान के बेटी नहीं रुखसत करना… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे

क्या रखा दर्प में छोड़ो ये फ़ज़ीयत करना

चाह इज्जत की है तो सीख ले इज्जत करना

हर इबादत का शरफ़ दोस्त मिलेगा तुझको

दरमन्दों से गरीबों से मुहब्बत करना

पहले कर लेना हुक़ूमत से गुज़ारिश फिर भी

कान पर जूं न जो रेंगें तो बगावत करना

एक हद तक ही मुनाफे को कहा है जायज़

दीन को ध्यान में रखके ही तिज़ारत करना

आसतीनों के लिए नाग भी बन जाते हैं

आदमी देख के ही आज रफाक़त करना

हम सफ़र उंसके हो लायक जो उसे दे सम्मान

बोझ तुम मान  के बेटी नहीं रुखसत करना

दोसती करके निभाना है अरुण मुश्किल पर

कितना आसान किसी से भी अदावत करना

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 30 – बढ़ने लगी शुगर… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – बढ़ने लगी शुगर…।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 30 – बढ़ने लगी शुगर… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

व्याधिग्रस्त दिखते 

गाँवों से ज्यादा आज शहर 

शक्कर महँगी किन्तु

खून में बढ़ने लगी शुगर 

 

करते नहीं मशक्कत 

बैठे-बैठे खाते हैं 

खूब तेल घी खाकर 

अपनी तोंद बढ़ाते हैं 

क्यों चिन्ता रहती

भर देते इनकम टैक्स अगर

 

जो महनतकश 

उन्हें न कोई रोग सताते हैं 

चर्बी उन्हें न चढ़ती 

रूखा-सूखा खाते हैं 

उनके भूखे पेट

हजम कर जाते हैं पत्थर 

 

भले गरीबी, विपदाओं से 

घिरी रहे बस्ती 

लोक धुनों में नाचें-गायें 

करें श्रमिक मस्ती 

बंजर में भी फसल उगाते

इनके बैल बखर

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 107 – मनोज के दोहे… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 107 – मनोज के दोहे… ☆

1 मार्गशीर्ष

मार्गशीर्ष शुभ मास यह, मिलता प्रभु सानिध्य।

भक्ति भाव पूजन हवन, ईश्वर का आतिथ्य ।।

2 हेमंत

छाई ऋतु हेमंत की, बहती मस्त बयार।

मोहक लगता आगमन, झूम रहा संसार।।

3 अदरक

अदरक औषधि में निपुण, वात पित्त कफ रोग।

तन को रखे निरोग वह, कर मानव उपयोग।।

4 चाय

विकट ठंड में चाय की, सबको रहती चाह।

अदरक वाली यदि मिले, सब करते हैं वाह।।

5 रजाई

गया रजाई का समय, हल्के कंबल देख।

ठंड नहीं अब शहर में, मौसम बदले रेख।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – गुपित ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – गुपित ? ?

पूछते हैं, अपनी प्रकृति का

संतुलन कैसे रख पाता है?

न फूलकर कुप्पा होता है,

न कुढ़कर दमित होता है,

आलोचनाओं, प्रशंसाओं का

घोल बनाकर पी जाता है,

तब जैसा था, अब वैसा है,

वैसे का वैसा रह पाता है..!

© संजय भारद्वाज 

( प्रात: 11:40 बजे, 21.1.2020)अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मार्गशीर्ष साधना 28 नवंबर से 26 दिसंबर तक चलेगी 💥

🕉️ इसका साधना मंत्र होगा – ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🕉️

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 166 – गीत – लौटाता हूँ रथ सपनों का… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण गीत – लौटाता हूँ रथ सपनों का।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 166 – गीत – लौटाता हूँ रथ सपनों का…  ✍

लौटाता हूँ रथ सपनों का

शायद आगे राह नहीं है।

 

तिमिर वनों में भटक रहा था

तभी किरन सी पड़ी दिखाई

मावस ने ही जाते जाते

परिचय देकर कहा- ‘जुन्हाई’।

चाँदनिया चंदा की रानी, मुफलिस की दरगाह नहीं हैं

लौटाता हूँ रथ सपनों का, शायद आगे राह नहीं है।

 

नहीं दोष कुछ और किसी का

मैं ही ऐसा करमजला हूँ

जब भी कदम बढ़े हैं आगे

मैं खुद अपनी ओर चला हूँ

कोई आये कोई जाये मंजिल को परवाह नहीं है।

लौटाता हूँ रथ सपनों का शायद आगे राह नहीं है।

 

क्या है मन में कह न सकूँगा

यद्यपि बड़ी विकलता है

बार बार कहता है कोई

प्यास कंठ की दुर्बलता है

प्यासा ही रहने दो प्रियवर सहज विनय है आह नहीं है

लौटाता हूँ रथ सपनों का शायद आगे राह नहीं है।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 165 – “लुकाछिपी करती किंवदन्ती…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत  लुकाछिपी करती किंवदन्ती...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 165 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “लुकाछिपी करती किंवदन्ती ...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

उसके घर अनाज आया

सब की उम्मीद जगी

अपनी पुस्तक मे लिखते हैं

पंकज रोहतगी

 

आगे लिखते, लगी झाँकने

छिप छिप आंगन में

सब कुछ छोड़ घरेलू बिल्ली

जो थी प्रवचन में

 

कुछ कुछ अच्छा ही होगा अब

घर के मौसम में

यह सारे बदलाव देखती

है घर की मुरगी

 

चिडियाँ मुदिता दिखीं

फूस के छप्पर में अटकीं

दीवारें खुश हुई जहाँ पर

छिपकलियाँ लटकी

 

लुकाछिपी करती किंवदन्ती

दरवाजे बाहर

देख नहीं पायी पेटों में

कैसी आग लगी

 

आज समूचे घर में उत्सव

सा माहौल बना

किसी पेड़ का पहले था

जैसे बेडौल तना

 

वही सुसज्जित , छायादार

वृक्ष में था बदला

जिसने घर की खुशियों में

जोड़ी है यह कलगी

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

08-10-2023

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – नामकरण..(2) ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – नामकरण..(2) ? ?

हार्ट अटैक..,

ब्रेन डेड..,

मृत्यु के

नये नाम गढ़ रहे हम,

सोचता हूँ,

संवेदनशून्यता को

मृत्यु कब घोषित करेंगे हम?

फिर सोचता हूँ,

ऐसा हुआ तो

जनसंख्या का अनुपात

कितना बिगड़ जाएगा,

जन्म लेनेवालों की तुलना में

मृतकों का आँकड़ा

बेतहाशा बढ़ जाएगा..!

© संजय भारद्वाज 

(13:05 बजे, 09.12.23)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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💥 मार्गशीर्ष साधना 28 नवंबर से 26 दिसंबर तक चलेगी 💥

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नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 157 ☆ # परिनिर्वाण दिन # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी समसामयिक घटना पर आधारित एक भावप्रवण कविता “# परिनिर्वाण दिन #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 157 ☆

☆ # परिनिर्वाण दिन #

(बाबासाहेब डॉ भीमराव आंबेडकर जी के परिनिर्वाण दिन के निमित्त उस महामानव को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि)

आंख भर आती है,जब याद तुम्हारी आती है

है महामानव यह तिथि हमें कितना रूलाती है

 

जब जीवन था दूभर, भयावह चुभते साये थे

सब तरफ था तिरस्कार,  कैसा जीवन पाये थे

पग पग पर अपमान,  हम जुल्म से घबरायें थे

आवाज़ नहीं थी होंठों पर,  सामंतों के सताये थे

स्याह अंधेरे में तुम,  सूरज बनकर आए थे

काले मेघों को चीरकर,  नया सवेरा लाए थे

वो शोषित, पीड़ित जनता,  आज अश्रु धारा बहाती है

आंख भर आती हैं, जब याद तुम्हारी आती है

 

हम तो थे पेड़ सूखे,  तुमने देह में प्राण फूंके

रक्त कोशिकाओं में हलचल हुई, तुमने जब देखा छुंके

हम थे अज्ञानी, विवश,  हम लाचार थे रूखे

तुमने शिक्षा की ज्योति जलाई, हम थे शिक्षा के भूखें

जीवन में बदलाव आ गया,  आंखों से हट गए धूंके

शिक्षा शेरनी का दूध है,  बोलने लगे जो थे मुके

रूदन देख जन सैलाब का, आज धरती भी थर्राती है

आंख भर आती है, जब याद तुम्हारी आती हैं

 

अब हमें अधिकार मिले हैं, पर दिन बीते नहीं संघर्षो के

अब मांगने लगे हैं हक अपना, जो वंचित थे वर्षों से

खुशियां आई जीवन में, दिन लौटे हैं हर्षों के

सपने देख रहे हैं सब, अपने अपने उत्कर्षों के

भेदभाव मिटा नहीं है पर, अर्थ बदलें है स्पर्शो के

हमें संगठित होना होगा, वर्ना आयेंगे दिन अपकर्षों के

यह परिनिर्वाण की बेला, क्या सामाजिक क्रांति लाती हैं ?

आंख भर आती है, जब याद तुम्हारी आती है

हे महामानव यह तिथि हमें कितना रूलाती हैं

 © श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 166 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 166 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 166 ) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 16६ ?

☆☆☆☆☆

 ☆ Fake People… ☆

इन  बेगैरत  अय्यारों  की  झूठी 

मासूमियत का मुज़ाहरा तो देखिए

धूल इनके चेहरे पर जमी होती है मगर

तोहमत ये  आईने  पर  लगाते हैं..!

☆☆

Just look at the display of false

innocence of these fake people

Dust  settles on  their  faces

But they blame the mirror..!

☆☆☆☆

Dreamy Character ☆

ख्वाब में भी देर तलक

जागा किए हम…

नींद खुद भी एक किरदार थी

उस गहरे ख्वाब में…!

 ☆

Remained awake till late,

even  in  the  dream…

Sleep itself was a character

in that astral dream..!

 ☆  ☆  ☆  ☆  ☆

 ☆ Stark Darkness ☆  

चारों तरफ तो बिछी हैं

अँधेरों की चादरें…

फिर फ़िजूल में क्यों

जगाया गया मुझे…!

  ☆  

Sheet of darkness are

spread all around…

Then why was I woken

up unnecessarily…!

Mortal Fear 

अरे, इतना क्यूँ डर रहे हो

इन घने जंगलों से…

यहाँ कोई आदमी की

बस्ती थोड़ी ही न है…!

What are you so scared of

in this dense forest….

They doesn’t exist any

human settlement here…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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