आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत हैं – बाल गीत – सूरज।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 160 ☆
☆ बाल गीत – सूरज ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆
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पर्वत-पीछे झाँके ऊषा
हाथ पकड़कर आया सूरज।
पूर्व प्राथमिक के बच्चे सा
धूप संग इठलाया सूरज।
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योग कर रहा संग पवन के
करे प्रार्थना भँवरे के सँग।
पैर पटकता मचल-मचलकर
धरती मैडम हुईं बहुत तँग।
तितली देखी आँखमिचौली
खेल-जीत इतराया सूरज।
पूर्व प्राथमिक के बच्चे सा
नाक बहाता आया सूरज।
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भाता है ‘जन गण मन’ गाना
चाहे दोहा-गीत सुनाना।
झूला झूले किरणों के सँग
सुने न, कोयल मारे ताना।
मेघा देख, मोर सँग नाचे
वर्षा-भीग नहाया सूरज।
पूर्व प्राथमिक के बच्चे सा
झूला पा मुस्काया सूरज।
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खाँसा-छींका, आई रुलाई
मैया दिशा झींक-खिसियाई।
बापू गगन डॉक्टर लाया
डरा सूर्य जब सुई लगाई।
कड़वी गोली खा, संध्या का
सपना देख न पाया सूरज।
पूर्व प्राथमिक के बच्चे सा
कॉमिक पढ़ हर्षाया सूरज।
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© आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
बेंगलुरु, २२.९.२०१५
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