हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – ऊहापोह ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 भास्कर साधना संपन्न हुई। अगली साधना की सूचना आपको शीघ्र दी जाएगी । 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – ऊहापोह ??

वह चला,

लक्ष्य पा गया,

वह भी चला,

भटक कर रह गया,

फिर मार्ग बदला

लक्ष्य पा गया,

वह चलने-रुकने की

ऊहापोह में थमा रहा,

शनै:-शनै: वह रीत गया,

देखते-देखते जीवन बीत गया..!

© संजय भारद्वाज 

रात्रि 11:44 बजे, 9 जनवरी 2023

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 147 – मिलती हर दुआ… ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ ☆

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है  एक भावप्रवण कविता “मिलती हर दुआ नसीब नहीं होती”।) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 147 ☆

🌺कविता 🥳 मिलती हर दुआ… 🥳

 🌹

जिन्दगी जीना आसान नहीं होता,

बिना संघर्ष के कोई महान नहीं होता।

 🌹

चुगली के बिना कोई बात नहीं होती,

  बिना बात के चुगली खास नहीं होती।

🌹

बाग का हर पुष्प गुलाब नहीं होता,

और हर गुलाब लाजवाब नहीं होता।

 🌹

मिलती हर दुआ नसीब नहीं होती,

वर्ना इतनी दुआ फकीर नहीं होती।

🌹

हर चेहरा कुछ न कुछ खास होता है,

चेहरे के पीछे चेहरा छिपा होता है।

🌹

सूखे फूल किताबों में मिला करते,

अब किताबें माँग कर पढता कौन हैं।

🌹

सच्चे प्रीत की मिसाल बना करती हैं,

लिव इन रिलेशन सिर्फ सौदे होती हैं।

🌹

कहते हैं प्रेम उधार की कैची है,

आज प्रेम बाँटना कौन चाहता है।

🌹

काँटा चुभने पर बनतीं प्रेम कहानी है,

आज पगडंडियों पर चलता कौन हैं।

🌹

कभी दादा की छड़ी बन पोता चलता है,

अब परिवार में क्या दादा कोई बनता है।

🌹

ठहाके छोड़ आए कच्चे मकानों में हम,

रिवाज इन पक्के छतों में मुस्कुराने का है।

🌹

लिख लिख कर कर दस्तखत बनाएं हम,

कमबख्त जमाना बदल के अंगूठे पे आ गया।

🌹

हौसले को देखे गुगल से मिले ज्ञान,

नौ साल का बच्चा समझे अपने को जवान।

🌹

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 120 – गीत – शब्द नहीं हैं शेष… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  एक भावप्रवण गीत – शब्द नहीं हैं शेष।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 120 – गीत – शब्द नहीं हैं शेष…  ✍

कहने को नहीं विशेष

शब्द नहीं हैं शेष।

 

तोड़ दिये शंका के ताले

प्रश्नों को उत्तर दे डाले

सींचा हृदय प्रदेश।

 

जो वश में था सो कर डाला

शुभ शब्दों की सौंपी माला

बदल गया परिवेश ।

 

आखिर कब तक सहन करूँ मैं

इच्छाओं का हवन करूँ मैं

कब तक सहूँ कलेश।

 

कहने को नहीं विशेष

शब्द नहीं हैं शेष।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 122 – “है सुरमई अँधियारा…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – “है सुरमई अँधियारा।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 122 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || “है सुरमई अँधियारा…” || ☆

ऐसे कोहरे में ठिठुरन से

सूरज भी हारा

दिन के चढ़ते चढ़ते कैसे

लुढ़क गया पारा

 

जमें दिखे गाण्डीव

सिकुड़ते सब्यसाचियों के

धुंध लपेटे शाल, उलहने

सहें चाचियों के

 

चौराहे जलते अलाव भी

लगते बुझे बुझे

और घरों की खपरैलें

तक लगीं सर्वहारा

 

हाथ सेंकने जुटीं

गाँव की वंकिम प्रतिभायें

जो विमर्श में जुटीं

लिये गम्भीर समस्यायें

 

वृद्धायें लेकर बरोसियाँ

दरवाजे बैठीं

शांति पाठ के बाद पढ़

रहीं ज्यों कि कनकधारा

 

लोग रजाई कम्बल

चेहरे तक लपेट निकले

लगें फूस से ढके फूल के

हों सुन्दर गमले

 

आसमान से नीचे तक

है सुरमई अँधियारा

धुँधला सूरज दिखता

नभ में लगे एक तारा

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

03-01-2023

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – संजय ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 भास्कर साधना संपन्न हुई। अगली साधना की सूचना आपको शीघ्र दी जाएगी । 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – संजय ??

सारी टंकार, 

सारे कोदंड,

डिगा नहीं पा रहे,

हुंकार और प्रहार

मुझे हिला नहीं पा रहे,

जीवन के

महाभारत का

दर्शन कर रहा हूँ,

घटनाओं का

वर्णन कर रहा हूँ,

योगेश्वर उवाच

श्रवण कर रहा हूँ,

‘संजय’ होने का

निर्वहन कर रहा हूँ..!

© संजय भारद्वाज 

रात्रि 9:14 बजे, 3अक्टूबर 2015

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कविता # 169 ☆ “ऑनलाइन प्रेम” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपकी एक अतिसुन्दर एवं  विचारणीय कविता  – “ऑनलाइन प्रेम”)

☆ व्यंग्य # 169 ☆ “ऑनलाइन प्रेम” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

वे प्रेम करते करते 

जब थक गये

उन्होंने मोबाइल का 

 नेटवर्क चेक किया

प्रेम सर्च किया

ऑनलाइन प्रेम देखा

कन्फर्म किया कि प्रेम

 ऑनलाइन  मिलता है

फिर अचानक

नेटवर्क चला गया

या गलती से भी 

ऑफलाइन हुए

अचानक प्रेम

डिलीट हो गया

सारा उत्साह

खत्म हो गया

फिर वही

पुराना प्रेम

ख्वाबों में

तैरने लगा

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 111 ☆ # खुशियों भरा नववर्ष… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है दीप पर्व पर आपकी एक भावप्रवण कविता “#खुशियों भरा नववर्ष …#”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 111 ☆

☆ # खुशियों भरा नववर्ष … # ☆ 

उल्लास है, उमंग है

आंखों में है हर्ष

नये सुनहरे सपने लेकर

आया खुशियों भरा नववर्ष

 

किरणों की डोली में

ओस की बूंदें झूमे

भ्रमर दीवाने मदमस्त

कली कली को चूमे

खिलते हुए पुष्प

गंध लुटा रहे सहर्ष

 

नयी सुबह है, नये गीत है

बहती तरंगों पर, नया संगीत है

चारों दिशाएं आलोकित है

छन के आ रही प्रीत ही प्रीत है

प्रेम में डूबी है पुरवाई

हृदय को करती स्पर्श

 

उतार फेंको पुराना चोला

जीवन जियो हरफनमौला

हर कण में है नव अंकुर

कहीं आग तो कहीं शोला

नई रोशनी, नया प्रहर है

जीवन तो है एक संघर्ष

 

अब नफरत की कोई जगह नही है

अब भेदभाव की कोई वजह नहीं है

हम सब है भाई भाई

अब विचारों में कोई कलह नहीं है

खुद जियो औरों को जीने दो

यही है सबको परामर्श

 

नये सुनहरे सपने लेकर

आया है खुशियों भरा नववर्ष

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 122 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 122 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 122) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 122 ?

☆☆☆☆☆

खुलती है… पढ़ी जाती है…,

फिर रद्दी हो जाती है….

ऐ जिंदगी… तू भी कुछ-कुछ

किताब सी है…है ना…!!

It gets opened, read, and

then discarded as a trash…

O’ life! You’re also somewhat

like a book only…Isn’t..!!

☆☆☆☆☆ 

तीर-ए-इश्क़ से नामुमकिन है

बचना है इस दिल का,

दर्द उठ उठ के बताता है ख़ुद

ठिकाना अपने दिल का…!

It’s difficult for the heart to

escape from the arrows of love

Pain pops itself up to tell

the whereabouts of the heart…!

☆☆☆☆☆

वो उँगली उठाये तो

दर्द होना लाजिमी है

दो हाथ उठा कर के

माँगा था जिसे हमने…!

 

It is bound to be painful,

if the one raises finger,

For whom we had prayed for

with the raised hands…!

☆☆☆☆☆

 करता नहीं कभी ज़िक्र तेरा

किसी तीसरे के साथ

तेरे बारे में बातें सिर्फ

ख़ुदा से ही होती हैं…!

Never ever I mention your

name with any third person

Conversations about you

happen only with the God…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 122 ☆ ~ सॉनेट ~ तुलसी ~ ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित “~ सॉनेट ~ तुलसी ~”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 122 ☆ 

☆ सॉनेट ~ तुलसी ~ ☆

*

तुलसी जग कल्याणिका।

रामा-श्यामा रूप मनोहर।

पति हितकारी साधिका।।

आत्मशक्ति की लिए धरोहर।।

*

छली विश्वपालक कर दंडित।

देह त्याग हो गई अमर है।

है त्रिलोक में महिमामंडित।।

चढ़ी छली के भी सिर पर है।।

*

भाव-भक्तिमय जीवन अनुपम।

अंग हरेक रोग उपचारक।।

तन-मन स्वस्थ्य करे यह माँ सम।

दिव्यौषधि शत-शत गुणधारक।।

*

शीश चढ़ा हर आत्मा हुलसी।

काल हलाहल अमरित तुलसी।।

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१८-१२-२०२२, ७•३२, जबलपुर

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #171 – 57 – “चेहरा मोहरा पहनावा सजधज महज़ छल…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “चेहरा मोहरा पहनावा सजधज महज़ छल…”)

? ग़ज़ल # 57 – “चेहरा मोहरा पहनावा सजधज महज़ छल…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

ख़ैरात  बँट  रही  है  सियासत के नाम पर।

लूट मची अब  केवल रियायत के नाम पर।

चेहरा मोहरा  पहनावा सजधज महज़ छल,

चलता खेल हवस का मोहब्बत के नाम पर।

खुलकर बोल न देखे जो यहाँ कुछ हुआ ग़लत,

चुप मत रह  तू  अब यहाँ शराफ़त के नाम पर।

अपनो  की  बेरुख़ी  तन्हा  बद  है  सरेआम,

यह बचता अब मेरे पास दौलत के नाम पर।

पाबंदियां     पामालियां    मक्कारियां    फ़रेब,

क्या कर रहे हैं आतिश अब सत्ता के नाम पर।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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