हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – जीवन ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि –  जीवन  ? ?

जुग -जुग जीते सपने 

थोड़े-से पल अपने,

सूक्ष्म-स्थूल का

दुर्लभ संतुलन है,

नश्वर और ईश्वर का

चिरंतन मिलन है,

जीवन, आशंकाओं के पहरे में

संभावनाओं का सम्मेलन है!

(रात्रि 8.11 बजे, 30.3.2019)

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मार्गशीर्ष साधना 28 नवंबर से 26 दिसंबर तक चलेगी 💥

🕉️ इसका साधना मंत्र होगा – ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🕉️

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #24 ☆ कविता – “मौत…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 24 ☆

☆ कविता ☆ “मौत…☆ श्री आशिष मुळे ☆

ए मेरी दिलरुबा, किसी दिन तो मिलोगी

मेरे इश्क की कयामत, कभी तो लाओगी ।

वैसे लोग बहुत डरते है तुझसे

लेकिन इश्क करते है तेरी बहन से ।

 

बहन से बहन कब तक अलग रहेगी

आज नहीं तो कल जरूर मिलेगी ।

शायर हूँ मै, प्यार करता हूँ तुम दोनों से

जानता हूँ कीमत दोनों की, तुम रूठो ना मुझसे ।

 

अगर समय पे तुम ना आओ,

 तो तुम्हारी बहन बेकाबू होती है

तुम्हारे हवाले मुझे, वही तो सौंपती है ।

वैसे जुनून पैदा तो, वो करती है

मगर समझदार तो, तुम्हारी याद बनाती है ।

 

जो कमिया बदली नहीं जाती

उन्हें समाप्त तुम ही करती हो ।

तुम्हारी बहन की गलतियां

माफ़ तो तुम ही करती हो ।

 

तुम दोनों जरूरी हो

असल मे जीने के लिए

वक्त पर आ जाना

मेरी हयात अमीर बनाने के लिए ।

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 184 ☆ बाल कविता – शक्ति खुद की जानो जी ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 184 ☆

☆ बाल कविताशक्ति खुद की जानो जी ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

मुश्किल में जो ना घबराए

     उसे कहें हिम्मतवाला।

धैर्य रखे जो मुसीबतों में

      होता विजयी मतवाला।।

 

इन्द्रियों पर करे नियंत्रण

      उसे कहें संयमवाला।

अलख जगाए अन्नकोश की

      कभी न पीए वह हाला।।

 

करता शाकाहार सदा ही

       प्रेम पगा भोजन खाए।

खूब चबाकर शांत चित्त से

      सदा ईश के गुण गाए।।

 

सिद्धान्तों पर जीने वाले

    यश वैभव को पाते हैं।

मीठी वाणी हो विवेक यदि

     वे महान कहलाते हैं।।

 

मन, मस्तिष्क से अच्छा सोचो

     अच्छा ही अच्छा करना।

जीवन को सार्थक ही करके

        मन में मैल नहीं भरना।।

 

इसको कहते प्राणकोश हम

      जो भी सबल बना लेते।

चले सफलता साथ उन्हीं के

       जो चाहें सो पा लेते।।

 

मन भागेगा इधर – उधर को

      उसको वश में तुम रखना।

द्वेष ,कपट , ईर्ष्या से बचना

       लोभ लालची मत बनना।।

 

जो भी रखते मन को वश में

    उनका देव साथ हैं देते।

मनोकोश को प्रबल बनाकर

     जीवन सुंदर कर लेते।।

 

सभी देवता अपने अंदर

     उनको खुद पहचानो जी।

दूर न जाओ इन्हें देखने

       शक्ति अपनी जानो जी।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #207 – कविता – ☆ हाथ मिलाये फसलों ने… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपके हाथ मिलाये फसलों ने…”।)

☆ तन्मय साहित्य  #207 ☆

हाथ मिलाये फसलों ने☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

(फेसबुक के स्मृतिकोष से 2011में लिखा एक गीत)

हाथ मिलाये फसलों ने

खरपतवारों से

मठों, आश्रमों ने

राजा के दरबारों से।

 

सजा मिली सच्चाई को

तो झूठ हँसा

मुफ़्त गवाही दी,सच की

ईमान फँसा,

बिका हुआ हाकिम

फरेबी उपकारों से। हाथ मिलाए……….

 

विद्या ने वैभव से मिलकर

जुगत भिड़ाई

और कलम ने लफ्फाजों से

प्रीत बढ़ाई,

भटक रहा इंसान

भ्रमित हो बाजारों से। हाथ मिलाए………

 

संत, मौलवी अभ्यासी

सब भोगों के

अस्पताल में रोगाणु

सब रोगों के,

अमन शांति के हैं प्रयास

अब हथियारों से।

 

हाथ मिलाये फसलों ने

खरपतवारों से।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 32 ☆ शहर के मकान… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “शहर के मकान…” ।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 32 ☆ शहर के मकान… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

आँगन को तरस गए

शहर के मकान।

 

खिड़कियों पर लेटी

थोड़ी सी धूप

दरवाज़े पर ठिठके

सूरज के रूप

 

छज्जों पर झुलस गए

लतिका के प्रान।

 

सटे-सटे घर हैं पर

दूर-दूर मन

अपने अपनेपन में

सभी हैं मगन

 

प्रीति गंध बिना छुए

फूलों के गान।

 

भटकता सा हर दिन

फ़ुरसत की रात

परिचित सी चुप्पियाँ

बहरे हालात

 

बोझिल से पंख लिए

हवा पर उड़ान ।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – विलोम ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – विलोम ? ?

विद्यालय में विलोम का पाठ ठीक से नहीं पढ़ पाया था। फिर जीवनभर पढ़ना पड़ा विलोम का पाठ।

जिससे सुख की आस रही, उसने पीड़ा दी। जिस पर विश्वास किया, उसने विश्वासघात किया। जिनसे अपनापन अपेक्षित था, वे व्यवहार करते रहे परायों-सा। जीने ने भी साथ नहीं दिया, सो मर-मरकर जिया।

सचमुच मरा तब तक विलोम को जीता रहा वह।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मार्गशीर्ष साधना 28 नवंबर से 26 दिसंबर तक चलेगी 💥

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ एक ग़ज़ल – इबादत में अक़ीदत की कसर होगी… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “प्यार जब रूह नहीं सूरत से…“)

✍ एक ग़ज़ल – इबादत में अक़ीदत की कसर होगी… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

(एक ग़ज़ल – 1222  1222  1222  1222, रदीफ़ टूट जाता है, काफ़िया आ स्वर)

जरा सी चोट लगते प्रेम धागा टूट जाता है

वफ़ा में खोट आते दिल का शीशा टूट जाता है

पड़ेगी गांठ चुभती उम्र भर जो जोड़कर फिर से

किसी इंसा से जब इंसा का रिश्ता टूट जाता है

समझ के साथ बढ़ता आदमी का नजरिया सच है

लुटा समझे जो बच्चे का खिलौना टूट जाता है

गुनाहों की सज़ा मुजरिम को दो  रोको ये बुलडोजर

भुगतता है घराना जब घरौदा टूट जाता है

बड़ी जब शख्सियत कोई जहां से कूच है करती

फ़लक से लोग कहते हैं सितारा टूट जाता है

दिलों में फासला होता दिखावा करना जो कर लो

किसी का जब किसी पर से भरोसा टूट जाता है

ये मेरी बद नसीबी का सितम भी देखिये साहिब

जो साक़ी भेजती मुझको वो प्याला टूट जाता है

बचाना जिसको वो चाहे उसे फिर कौन मारेगा

शिकारी जो भी फैलाये वो फंदा टूट जाता है

शरीफों के लिए घर में लगाया जाता है इनको

हो कोई चोर तो कोई भी ताला टूट जाता है

इबादत में अक़ीदत की कसर होगी तो ये समझो

करोगे लाख कोशिश फिर भी रोज़ा टूट जाता है

जो तैयारी बिना मैदान में आ पेंच लड़वाओ

उड़ाओगे पतंग ऊँची तो मांजा टूट जाता है

अरुण कमजोर कड़ियों पर नजर  दुश्मन रखें बचन

रहेगी गर पकड़ कच्ची तो घेरा टूट जाता है

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 29 – राजनीति का अधोपतन… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – गये चाटने पत्तल जूठी।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 29 – राजनीति का अधोपतन… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

सत्ता परिवर्तन के लक्षित 

जब सिलसिले हुए 

पद हथियाने को नेता

कितने दोगले हुए

रातों रात बदल जाती हैं 

पुष्तैनी निष्ठायें 

मुद्रा मिले उठाने तो 

ये दलदल में फँस जायें 

दृढ़ निश्चय वाले चरित्र

पल में पिलपिले हुए

राजनीति का अधोपन 

कुछ दशकों में आया 

पुरखों का बलिदान, त्याग 

मिट्टी में दफनाया 

ज्यादा और गरीब-अमीरों के

फासले हुए 

दिखता नहीं विकास 

बनाये गये राज्य कितने 

अब क्या जितने नेता हैं 

होंगे टुकड़े उतने जितने प्रान्त बनाये

उतने ज्यादा जिले हुए

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 106 – आँखें अश्रु बहा रहीं… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत  है आपके प्रिय अनुज स्व विनोद शुक्ल जी की स्मृति में आपकी एक भावप्रवण रचना “आँखें अश्रु बहा रहीं… आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 106 – आँखें अश्रु बहा रहीं…

आँखें अश्रु बहा रहीं, यादें अनुज विनोद।

कदम मिला कर तुम चले,मन आह्लाद  प्रमोद।।

भाई थे हम चार पर, जोड़ी थी अनमोल। 

कंधे दोनों के सबल,भवन रहा था बोल।।

मिलजुल सपने बुन लिये, उठालिया सब भार।

मात-पिता की आस पर, पूरा था अधिकार।।

कानों में वह गूँजती, भाई की आवाज।

चलो बड़े भैया अभी, निपटाते कुछ काज।।

बिगड़े जितने काम थे, उनको रहे सुधार।

मात-पिता के दीप पर, चढ़ा रहे थे हार।।

टूटा हृदय विछोह से, चैन नहीं दिन-रात।

कदम-कदम पर साथ था, तुम संबल थे भ्रात।।

अविरल आँसू कोर से, छलक रहे दिन-रात।

मुझे अकेला छोड़ कर, दिया बड़ा आघात।।

प्रेम-नेह निश्चल बसा, कभी दिया ना क्लेश।

छोटा जीवन जी गया, बनकर के दरवेश।।

 ©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सापेक्ष ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – सापेक्ष ? ?

भारी भीड़ के बीच 

कर्णहीन नीरव,

घोर नीरव के बीच

कोलाहल मचाती मूक भीड़,

जाने स्थितियाँ आक्षेप उठाती हैं

या परिभाषाएँ सापेक्ष हो जाती हैं,

कुछ भी हो पर हर बार

मन हो जाता है क्वारंटीन

…क्या कहते हो आइंस्टीन?

© संजय भारद्वाज 

(11.28 बजे, 19.1.2020)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मार्गशीर्ष साधना 28 नवंबर से 26 दिसंबर तक चलेगी 💥

🕉️ इसका साधना मंत्र होगा – ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🕉️

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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