हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 24 – बही-खाते सब झूठे हैं… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – बही-खाते सब झूठे हैं।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 24 – बही-खाते सब झूठे हैं… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

कब मनुष्य समझा इनने

मजदूर किसानों को 

हमने तो अपनी छाती से 

पत्थर तोड़े हैं 

पर अपने बँधुआ पुरखों ने 

खाये कोड़े हैं 

भूल नहीं सकते हैं

बचपन के अपमानों को 

इनके घर में रखे 

बही-खाते सब झूठे हैं 

गिरवी जहाँ बाप-दादों के 

रखे अँगूठे हैं 

हमको जूठन और

दूध देते थे श्वानों को 

दमन नहीं सह सकते 

हमने मन में ठाना है 

दृढ़ निश्चय कर लिये 

जुल्म से अब टकराना है 

मिलकर ध्वस्त करेंगे

आतंकी तहखानों को

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 101 – पितर-पक्ष में आ गए… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “पितर-पक्ष में आ गए…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 101 – पितर-पक्ष में आ गए…

पितर-पक्ष में आ गए, पुरखे घर की ओर।

मुंडन होते देखते, नदी जलाशय भोर।।

व्याकुलता उनकी बढ़ी, पितर तुल्य भगवान।

पहन मुखौटा जी रहे, कलयुग के इंसान।

जल तर्पण सब कर रहे, पितृ पक्ष का शोर।

जब भूखे प्यासे रहे,  नहीं दिया कागोर।।

खिड़की से तब झाँकते, रखा न अपने साथ। 

अर्थी पर जब सो गए, पीट रहे थे माथ।।

अब परलोकी हो गए, करते इस्तुति गान।

जीवित रहते कब मिला, हमको यह सम्मान।

स्वर्ग लोक से झाँकते, स्वजनों की यह भीर।

पिंडदान करते फिरें, गया-त्रिवेणी तीर।।

छत पर अब कागा नहीं, आकर करते शोर।

श्राद्ध-पक्ष में निकलती, पर उनकी कागोर ।

गायें अब तो घरों से, सभी गईं हैं भाग।

पंछी सारे उड़ गए, दिखें न कोई काग।।

प्रेम नेह सम्मान के, छूट रहे नित छोर ।

निज स्वार्थों से दूर अब, चलो नेह की ओर।।

सुख-दुख में सब एक हों, मानवता की डोर।

संस्कृति अपनी श्रेष्ठ है, पकड़ें उसका छोर ।।

सत्य सनातन में छिपा, मानव का कल्यान।

जीव प्रकृति जन देश-हित,छिपा हुआ विज्ञान ।।

 ©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सत्य ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – सत्य ? ?

पहले ने कहा-

सत्य मेरे साथ है,

दूसरे ने कहा-

सत्य मेरे साथ है,

तीसरे ने कहा-

सत्य मेरे साथ है,

चौथे ने कहा-

सत्य मेरे साथ है,

इसने कहा-

सत्य मेरे साथ है,

उसने कहा-

सत्य मेरे साथ है,

एक-एक ने कहा-

सत्य मेरे साथ है,

प्रत्येक ने कहा-

सत्य मेरे साथ है,

फिर समय ने

उलट दी सबकी आँखें,

सार्वभौम सत्य

अब विहँस रहा है,

अपना-अपना सत्य

सबको दिख रहा है..!

© संजय भारद्वाज 

(दोपहर 12:59 बजे, 13.01.2020)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 श्राद्ध पक्ष में साधना नहीं होगी। नियमितता की दृष्टि से साधक आत्मपरिष्कार एवं ध्यानसाधना करते रहें तो श्रेष्ठ है। 💥

🕉️ नवरात्र से अगली साधना आरंभ होगी। 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 160 – गीत – मैं तुम्हारा हूँ… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण गीत – मैं तुम्हारा हूँ।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 160 – गीत – मैं तुम्हारा हूँ…  ✍

मैं तुम्हारा हूँ

कल तलक मुझको गलत समझा नहीं तुमने

आज दाखिल कर दिया है गुनहगारों में।

 

जानती हो दर्द क्या मैंने सहा है।

बेहिचक हो पाप भी मन का कहा है

एक निर्झर की तरह बहता रहा हूँ

मन हमेशा एक दरपन सा रहा है।

 

भूल आदम से हुई थी जानती हो

आदमी को देवता भी मानती हो

हूँ नहीं आदम मगर मैं आदमी हूँ

और कैसा बस तुम्हीं पहचानती हो।

 

मैं तुम्हारा हूँ, तुम्हारा ही रहूँगा

और किसके सामने सब कुछ कहूँगा

देह के तट पर भले हो भीड़ लेकिन

साफ झरने की तरह बहता रहूँगा।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 159 – “ओज पिता जी थे…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत  ओज पिता जी थे)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 159 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “ओज पिता जी थे” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

सभी सदस्यों को इस घर के

बोझ पिता जी थे

मन बहलाने को बच्चों का-

रोज, पिता जी थे i

 

सब के तानों का हुजूम

उन पर टूटा करता

सदा ठीकरा अगर बुरा

उन पर फूटा करता

 

अपनी आँखों में उदासियाँ

और हँसी मुख पर

इस घर की सारी खुशियों

की खोज पिता जी थे

 

बाहर के कमरे में लेटे

रहते खटिया पर

दरवाजे, चबूतरे के

पत्थर के पटिया पर

 

रहें खाँसते भोजन की

अनवरत प्रतीक्षा में

इस अतृप्ति के महासमर

के भोज पिता जी थे

 

चौथा चरण डसे जाता

सम्मान प्रतिष्ठा को

किन्तु कभी कम नहीं किया

घर के प्रति निष्ठा को

 

और सूर्य सा आभा-मंडल

थे बिखेर देते

पूरे घर की गरिमाओं का

ओज पिता जी थे

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

29-09-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – खोज ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – खोज  ? ?

ढूँढ़ो, तलाशो,

अपना पता लगाओ,

ग्लोब में तुम जहाँ हो

एक बिंदु लगाकर बताओ,

अस्तित्व की प्यास जगी,

खोज में ऊहापोह बढ़ी,

कौन बिंदु है, कौन सिंधु है..?

ग्लोब में वह एक बिंदु है या

ग्लोब उसके भीतर एक बिंदु है..?

© संजय भारद्वाज 

(रात्रि 10:11 बजे, दि. 25 नवंबर 2015)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 श्राद्ध पक्ष में साधना नहीं होगी। नियमितता की दृष्टि से साधक आत्मपरिष्कार एवं ध्यानसाधना करते रहें तो श्रेष्ठ है। 💥

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अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ ‘अक्स…’ श्री संजय भारद्वाज (भावानुवाद) – ‘Creativity…’ ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi poem अक्स.  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

श्री संजय भारद्वाज जी की मूल रचना

? संजय दृष्टि – अक्स ??

कैसे चलती है क़लम

कैसे रच लेते हो रोज़?

खुद से अनजान हूँ

पता पूछता हूँ रोज़,

खुदको हेरता हूँ रोज़,

दर्पण देखता हूँ रोज़,

बस अपने ही अक्स

यों ही लिखता हूँ रोज़!

© संजय भारद्वाज

(प्रातः 11:10 बजे, 6.6.2019)

मोबाइल– 9890122603, संजयउवाच@डाटामेल.भारत, [email protected]

☆☆☆☆☆

English Version by – Captain Pravin Raghuvanshi

? ~ Creativity…??

How does your pen move

so much every day…?

How  d’you  manage

to write so creatively..?

 

Unknown  to  self,  I’m

perennially in quest of myself,

I  just  keep  searching   for

the self-address  every  day…

 

As I look into  the mirror,

I  find  myriad  reflections

Of  myself  that  make  me

write every day, effortlessly..!

~Pravin

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ माइक्रो व्यंग्य # 210 ☆ पितृ पक्ष विशेष – “दो माइक्रो व्यंग्य…” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है आपके – पितृ पक्ष विशेष – ‘दो माइक्रो व्यंग्य)

☆ पितृ पक्ष विशेष – ‘दो माइक्रो व्यंग्य’ ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

एक 

कल गये थे घर,

कांव कांव करते हुए

मुंडेर पर बैठे रहे।

कुछ नहीं दिया

बहू ने……

 

दो

हमारी भी इच्छा थी

कि हो आएंगे

देख आएंगे

अपना पुराना घर

पर मंहगाई के डर से

नहीं गये

क्या मालूम

घर में दाना पानी

का जुगाड़

है कि नहीं……

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 151 ☆ # दिखावे की दुनिया # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी समसामयिक घटना पर आधारित एक भावप्रवण कविता “# तो ही इंकलाब लाओगे? #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 151 ☆

☆ # दिखावे की दुनिया #

नये जमाने का नया रिवाज़ है

नये रिश्तों से भरा आज है

सब संवेदनहीन बन गए

टूटते रिश्तों का आगाज है

 

कौन है अपना कौन पराया

हमको अब समझ में आया

अब तो बहुत देर हो चुकी

ईश्वर ने क्या दिन दिखाया ?

 

जिनके लिए लड़े रात-दिन

जिनके सपने गढ़े रात-दिन

जिनको बुलंदी पर पहुंचाया

जिनकी किस्मत मढ़े रात-दिन

 

वो हमको वृध्दाश्रम लायें

आखरी प्रहर में यह दिन दिखाये

तोड़कर सारी मोह माया

पल भर में बन गये पराये

 

घुट घुट कर जी रहे हैं 

हर पल ज़हर पी रहे हैं 

किससे कहें व्यथा अपनी

होंठों को अपने सी रहे हैं 

 

वो –

जीते-जी नहीं करते हैं दर्शन

मरने पर यह करेंगे तर्पण

श्राद्ध पक्ष में पंच पकवान बनाकर

काले कौवों को करेंगे अर्पण

 

दिखावे की दुनिया है

दिखावे का प्यार है

दिखावे की है सब मान्यताएं

दिखावे का यह संसार है /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 160 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 160 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 160) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 160 ?

☆☆☆☆☆

काश सीख पाते हम भी

मीठा झूठ बोलने का हुनर…

कड़वे सच ने तो  ना जाने

कितने लोग हमसे छीन लिए..!

☆☆

Wish I could also learn the

art of telling the sweet  lies…

Knoweth not how many people

bitter truth snatched from me..!

☆☆☆☆☆

 ☆ Double-faced people

एक जमाने से मुझे तलाश है

ख़ुद जैसों की, क्या करूँ

दोरूखी फितरत वालों से

कभी मेरी बनी ही नहीं

☆☆

I have been searching for

someone like me since long,

What to do, I cannot get along

with the double faced people…!

 ☆ Failing Prayers

नीचे आ गिरती है,

हर बार दुआ मेरी,

पता नहीं किस ऊंचाईं

पर रब रहता है…!

☆☆

At every effort, my benedictive

prayers keep crashing down…

Knoweth not at what height

does the God Almighty reside!

☆☆☆☆☆

 ☆ Popular Merchandise

जब आईने बेचा करता था

तो आता ना था कोई,

रखने लगा जब से मुखौटे

तो फुर्सत ही नहीं रही…!

☆☆

When I used to sell mirrors,

no one would come to buy

Ever since I started selling masks

I don’t get any free time…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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