हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – मौन ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – मौन ? ?

हर बार परिश्रम किया है,

मूल के निकट पहुँचा है

मेरी रचनाओं का अनुवादक,

इस बार जीवट का परिचय दिया है,

मेरे मौन का उसने अनुवाद किया है,

पाठक ने जितनी बार पढ़ा है

उतनी बार नया अर्थ मिला है,

पता नहीं उसका अनुवाद बहुआयामी है

या मेरा मौन सर्वव्यापी है..!

© संजय भारद्वाज 

( रात्रि 10:40 बजे, 19.1.2020)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 श्राद्ध पक्ष में साधना नहीं होगी। नियमितता की दृष्टि से साधक आत्मपरिष्कार एवं ध्यानसाधना करते रहें तो श्रेष्ठ है। 💥

🕉️ नवरात्र से अगली साधना आरंभ होगी। 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 233 ☆ 2 अक्तूबर विशेष – गांधी जिंदा हैं, है न…? ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है गांधी जयंती पर एक विशेष कविता – गांधी जिंदा हैं, है न)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 233 ☆

? कविता – गांधी जिंदा हैं, है न…? ?

गांधी जिंदा हैं!

कागज के नोटों पर छपे,

बेजुबान चित्र में नहीं।

बापू की उपाधि में नहीं

संगमरमरी समाधि में भी नहीं।

समाधि पर जलते

दिये की अनवरत लौ में नहीं।

योजनाओ के नामों की

रौ में नहीं।

गांधी जिंदा हैं! हैं न!

 

गांधी जिंदा हैं!

छलावे के अनशन और

राजनीतिक आंदोलन में नहीं

निबंध में लिखे कोट्स में ही नहीं

इमारतों के साइन बोर्डस 

की इबारतों में भी नहीं।

गांधी जिंदा हैं! हैं न!

 

गांधी जिंदा हैं!

स्वच्छता के चश्मे

या झाड़ू के निशान में नहीं।

हाथ में लाठी

या खादी की धोती में भी नहीं।

चरखे में नहीं, सूत में नहीं।

बकरी के दूध में भी नहीं।

गांधी जिंदा हैं! हैं न!

 

गांधी जिंदा हैं!

दफ्तरों की दीवारों पर टंगें

फ्रेम किये अपने ही फोटो में नहीं।

वाशिंगटन, न्यूयार्क, मास्को,

देश विदेश में स्मारकों में लगी

त्रिआयामी

आदमकद मूर्तियों में भी नहीं।

गांधी जिंदा हैं! हैं न!

 

गांधी जिंदा हैं!

जिल्द बंद सफों में लिखी गई

अनगिनत जीवनियों में नहीं।

विकीपीडीया, व्हाट्सअप के भ्रामक संदेशों

गूगल पे क्लिक से निकली

इंफार्मेशन में भी नहीं।

गांधी जिंदा हैं! हैं न!

 

गांधी जिंदा हैं!

परिवार के

नाती पोते पड़पोते में नहीं।

ब्लाक बस्टर किसी मुन्ना भाई या

आस्कर पुरस्कार से सम्मानित

फिल्म में भी नहीं।

गांधी जिंदा हैं! हैं न!

 

गांधी जिंदा हैं!

अष्ट धातु या चांदी के सिक्के

पर मुद्रित जानी पहचानी मुद्रा

में नहीं।

पी एच डी की थिसिस में ही नहीं

क्विज के सवालों

और चार विकल्पों के जबाबों में भी नहीं।

गांधी जिंदा हैं! हैं न!

 

गांधी जिंदा हैं!

मुंह बंद, आंख बंद और

कान बंद, तीन बंदरों की

मूर्तियों में नहीं

संग्रहालयों के वाङ्मय

और कमर में लटकाने वाली

उनकी अब बंद घड़ी में भी नहीं।

गांधी जिंदा हैं! हैं न!

 

दरअसल, गांधी जिंदा हैं!

अंत्योदय के व्यवहार में!

सत्य के लिये संघर्ष में!

गीता के सार में!

अहिंसा में, शाकाहार में

चुटकी भर नमक में

परस्पर प्रेम और विश्वास में।

सादगी और दुनियाई भाई चारे में।

गांधी जिंदा हैं! है ना!

 

गांधी को भारत की सीमा में

मत बांधो दुनियांवालों

हे राम! के साथ अचानक रोक दिया गया

अधूरा स्वप्न हैं गांधी।

गांधी विचार हैं, और

विचार वैश्विक होते हैं। विचार मरते नहीं कभी।

गांधी जिंदा हैं! है ना!

 

गांधी यात्रा हैं, विचारों की अंतहीन यात्रा।

गांधी महज १४० करोड़ भारत वासियों के नहीं

आठ अरब की दुनियां की थाथी हैं

गांधी हर दुर्बल के साथी हैं

जब, जहां कहीं बुनियादी बातें होंगीं

धोती संभाले कृशकाय

हे राम कहते

वे अपनी लाठी उठा उठ आयेंगे

क्योंकि गांधी जिंदा हैं! है ना!

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 150 ☆ # तो ही इंकलाब लाओगे? # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी समसामयिक घटना पर आधारित एक भावप्रवण कविता “# तो ही इंकलाब लाओगे? #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 151 ☆

☆ # तो ही इंकलाब लाओगे? #

पांव के छालों को मत देखो

इनमें क्या पाओगे ?

ज़ख्म ही ज़ख्म है

इतना मरहम कहां से लाओगे ?

 

कांटों भरी सड़कों पर

कोमल पुष्प ढूंढते हो

कांटों का दंश

क्या कभी भूल पाओगे?

 

कीलें बिछा दी है

जमाने ने तुम्हारी राहों में

इनसे बचकर क्या

तुम चल पाओगे?

 

आंधियां, तूफान तो

रोज उठाते हैं

नशेमन पर बिजलियां

रोज गिराते हैं

इन बवंडरों से

तुम कैसे टकराओगे ?

 

हारना कैसा जीतने की सोचो

दुश्वारियों को ताकत से रोको

घुट घुट कर जीना

कोई जीना है

मौत से लड़ोगे

तो ही इंकलाब लाओगे? /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 159 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 159 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 159) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 159 ?

☆☆☆☆☆

 ☆ Richly Poor

न जाने कहाँ से खरीद

लाया है इतनी फुरसतें ,

वो जो बहुत अमीर भी 

नहीं दिखाता है…!

☆☆

Knoweth not from where has he

bought so much of leisure,

The one who does not even

look rich from any angle…!

☆☆☆☆☆

 ☆ Palmistry

कमबख्त एक भी काम

की ना निकली,

और हाथ भरा पड़ा है

तमाम लकीरों से…

☆☆

Alas! Not even a single    

one was of any use,

While, the hand was full

of these wretched lines…

☆☆☆☆☆

Adorable Weather

कितना सुहाना सा लगता है

तुम्हारे शहर का मौसम,

अगर इजाजत हो तो

मैं एक शाम चुरा लूँ…

☆☆

How endearing is the

weather of your city

If you permit me, then I’d

like to steal an evening.

☆☆☆☆☆

Maze of Relationships

अगर  दिलों  में  फर्क  और

रिश्तों  में  गांठ  पड़  जाये

तो सारी दलीलें, मिन्नतें और

फलसफे बेमानी हो जाते  हैं..!

☆☆

If there’re differences in the hearts

and bitterness in the relationships

Then all the arguments, pleadings and

philosophies become meaningless…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 159 ☆ नवगीत: संजीव ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत हैं – नवगीत: संजीव)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 159 ☆

☆ नवगीत: संजीव ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

एक शाम

करना है मीत मुझे

अपने भी नाम

.

अपनों से,

सपनों से,

मन नहीं भरा.

अनजाने-

अनदेखे

से रहा डरा.

परिवर्तन का मंचन

जब कभी हुआ,

पिंजरे को

तोड़ उड़ा

चाह का सुआ.

अनुबंधों!

प्रतिबंधों!!

प्राण-मन कहें

तुम्हें राम-राम.

.

ज्यों की त्यों

चादर कब

रह सकी कहो?

दावानल-

बड़वानल

सह, नहीं दहो.

पत्थर का

वक्ष चीर

गंग

सलिल सम बहो.

पाये को

खोने का

कुछ मजा गहो.

सोनल संसार

हुआ कब कभी कहो

इस-उस के नाम?

.

संझा में

घिर आयें

याद मेघ ना

आशुतोष

मौन सहें

अकथ वेदना.

अंशुमान निरख रहे

कालचक्र-रेख.

किस्मत में

क्या लिखा?,

कौन सका देख??

पुष्पा ले जी भर तू

ओम-व्योम, दिग-दिगंत

श्रम कर निष्काम।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

बेंगलुरु, २२.९.२०१५

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #209 – 95 – “तयशुदा है मुलाक़ात उस नाज़नीन से…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल “तयशुदा है मुलाक़ात उस नाज़नीन से…”)

? ग़ज़ल # 95 – “तयशुदा है मुलाक़ात उस नाज़नीन से…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

जो हमें मिले वो दिल खुले ही नहीं,

जो खुल पाते वो दिल मिले ही नहीं।

ज़िंदगी गुमसुम लिबास में लिपटी रही,

किताब के कुछ सफ़े तो खुले ही नहीं।

तेज बारिश में अरमान सारे बह गए,

वक़्ते ज़रूरत दो बूँद टपके ही नहीं।

हमारे अपने बिछाते रहे राहों में काँटे,

परायों से कोई शिकवे गिले ही नहीं।

ताउम्र जिन्हें अपने सपने कहते रहे,

ख़्वाब शायद कभी अपने थे ही नहीं।

रिश्ते भी अब सड़े पत्तों से गलने लगे,

यक़ीनन रिश्तेदार कभी वे थे ही नहीं।

आँसुओं का भी लम्बा सिलसिला रहा,

बारिश में बहे किसी को दिखे ही नहीं।

एक झलक दिखा कर छुप गई माशूका,

हिल गए  ‘आतिश’ ख़ाली डरे ही नहीं।

तयशुदा है  मुलाक़ात उस नाज़नीन से,

साथ ले जाएगी वो पड़ेगी गले ही नहीं।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कविता – अब वक़्त  को बदलना होगा – भाग -1 ☆ सुश्री दीपा लाभ ☆

सुश्री दीपा लाभ 

(सुश्री दीपा लाभ जी  का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत। आप बर्लिन (जर्मनी) में एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। हिंदी से खास लगाव है और भारतीय संस्कृति की अध्येता हैं। वे पिछले 14 वर्षों से शैक्षणिक कार्यों से जुड़ी हैं और लेखन में सक्रिय हैं।  आपकी कविताओं की एक श्रृंखला “अब वक़्त  को बदलना होगा” को हम श्रृंखलाबद्ध प्रकाशित करने का प्रयास कर रहे हैं। आप प्रत्येक शनिवार को इस श्रृंखला की कविता आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ कविता ☆ अब वक़्त  को बदलना होगा – भाग -1 सुश्री दीपा लाभ  ☆ 

[1]

इस धरती पर जो आये हो

मन को कठोर करना होगा

एक दिन में कुछ बदलता नहीं

वर्षों तक तप करना होगा

समाज जगाना है गर आज

भाषण नहीं, आचरण होगा

अब वक्त को बदलना होगा

कुछ सरल-सहज नहीं होता

जब तक अन्दर झंकार ना हो

उस हासिल का कोई मोल नहीं

मेहनत जिसमें दिन-रात ना हो

दुर्दशा का रोना बहुत हुआ

अब दशा आप बदलना होगा

हो गया बहुत आरोप-प्रत्यारोप

अब वक़्त को बदलना होगा

© सुश्री दीपा लाभ 

बर्लिन, जर्मनी 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – गुपित ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – गुपित ? ?

पूछते हैं, अपनी प्रकृति का

संतुलन कैसे रख पाता है?

न फूलकर कुप्पा होता है,

न कुढ़कर दमित होता है,

आलोचनाओं, प्रशंसाओं का

घोल बनाकर पी जाता है,

तब जैसा था, अब वैसा है,

वैसे का वैसा रह पाता है..!

© संजय भारद्वाज 

( प्रात: 11:40 बजे, 21.1.2020)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 श्रीगणेश साधना अनंत चतुर्दशी तदनुसार गुरुवार 28 सितंबर को सम्पन्न हुई। अगली साधना की जानकारी आपको शीघ्र दी जवेगी।💥 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 85 ☆ मुक्तक ☆ ॥ वीर सपूत महान क्रांतिकारी शहीदे आजम भगत सिंह॥ ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 85 ☆

☆ मुक्तक ☆ ॥ वीर सपूत महान क्रांतिकारी शहीदे आजम भगत सिंह☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

(भारत माता के वीर सपूत महान क्रांतिकारी शहीदे आजम भगत सिंह जी के जयंती दिवस (28 सितंबर) पर श्रद्धा सुमन व ह्रदय उदगारअर्पित।)

[1]

भगत सिंह की गाथा तो है, आज भी प्रेरणा की कारण।

आज़ादी के लिए हँसते हँसते, किया था मृत्यु को धारण।।

पराधीनता सपनेहुँ सुख नाही, चढ़ गए वह सूली पर।

गुलामी में नहीं किया, कभी भी वंदना चारण।।

[2]

जालियाँ वाला बाग का समय, और समय उसके बाद।

भारत की स्वाधीनता को बेताब, थे भगत सिंह और आजाद।।

प्राण किये न्यौछावर और हो गए वह शहीद।

आज सब भारतवासी कर रहे, नम आँखों से याद।।

[3]

नमन है इन शहीदों को, जो देश पर कुरबान हो गए।

वतन के लिये देकर जान वह बेजुबान हो गए।।

उनके प्राणों की आहुति से ही स्वाधीन है देश हमारा।

उठ कर जमीन से ऊपर वह आसमान हो गए।।

भारत माता की जय ।।जय हिंद।। वन्देमातरम।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 149 ☆ “वर्षा बीती खुशियां ले कर आई दीवाली” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक ग़ज़ल  – “वर्षा बीती खुशियां ले कर आई दीवाली। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ कविता – “वर्षा बीती खुशियां ले कर आई दीवाली” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

वर्षा बीती सुखद शरद ऋतु खुशियाँ ले आई दीवाली।

नई उमंगें, नये फूल-फल नई बहारें लाई दीवाली॥

 

गाँव, गली, घर, शहर, सड़क सब दिखते सुन्दर रूप सजाये।

हर मन में उत्साह अनोखा, जैसा प्रिय पहुनों के आये॥

 

कुटी, महल, दुकान, बाजारें, सजी दुल्हिन-सी दिखती सारी ।

लोग खरीदी,लेन-देन-बिक्री करते दिखते व्यापारी ॥

 

आनंद का भण्डार बाँटती, डगर-डगर भरती उजियारा। 

धरती पर परियों सी आकर, हर लेती सारा अंधियारा ॥

 

बिजली-दीपों की मालायें, जलतीं बुझती जुगनू जैसी ।

सारे भारत देख रोशनी भोंचक रह जाते परदेशी ॥

 

लक्ष्मी-पूजा की तैयारी में हर मन दिखती है खुशहाली।

कपड़े, माल, मिठाई, पटाके, खील बताशे लाई दिवाली ॥

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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