मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 172 – कुटुंब ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे ☆

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

? कवितेचा उत्सव ?

☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 172 – कुटुंब ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे ☆

विश्वात्मक

कुटुंबाचा।

वारसा हा

भारताचा।

 

जीवसृष्टी

हो साकार

जगण्याचा

अधिकार ।

 

स्वार्थ सोडा

मैत्री करा ।

प्रेमाची हो

खात्री स्मरा।

 

एकमेका

देऊ साथ।

मदतीला

लाखो हात।

 

छोट्यासवे

होऊ सान।

थोरांनाही

देऊ मान।

 

सान थोर

संगतीला।

अंत नसे

प्रगतीला।

 

रुसवा नि

राग थोडा।

सोडुनिया

मने जोडा।

 

चूक भूल

द्यावी घ्यावी

आनंदाचे

गीत व्हावी।

 

चार दिस

जगायचे

कुढत का

बसायचे।

 

उगा नको

कुरवाळू।

मत्सराचा

द्रोह टाळू

 

धुंदीमधे

नको राहू।

नात्याचा तू

अंत पाहू।

 

हाताची ती

सारी बोटे।

कुणी मोठे

कुणी छोटे।

 

साऱ्यांनाच

एक माप ।

लावती ना

मायबाप।

 

आंतराची

भाषा घ्यावी।

शहाण्याने

समजावी।

 

आज जरी

इहलोकी।

उद्या असे

परलोकी।

 

वाहूनिया

श्रद्धांजली।

शांती मना

का लाभली।

 

विश्वासाचे

जपू धागे।

खेद खंत

नको मागे।

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #201 ☆ भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं भावना के दोहे)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 201 – साहित्य निकुंज ☆

☆ श्री गणेशाय नमः  डॉ भावना शुक्ल ☆

वाणी में मीरा बसी, कविता में रसखान।

शब्दों के माधुर्य से, है भावों में जान।।

घूम रहे थे बाग में, सुनी कली की बात।

तुमसे कहना है बहुत, मिलना आधी रात।।

तुममें दिखता चाँद है, तुम से रोशन प्यार।

बरस रहा है आज तो, तेरा ही शृंगार ।।

महक आपसे आ रही, धारण किया गुलाब।

निरख निरख़ कर बह रहा, है आपका शबाब।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – कुंदन ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – कुंदन ? ?

नित्य आग में

जलाया जाना,

तेज़ाब में रोज़

गलाया जाना,

लहुलुहान

की जाती वेदनाएँ,

क्षत-विक्षत

होती संवेदनाएँ,

अट्टहासों के मुकाबले

मेरे मौन पर चकित हैं,

कुंदन होने की प्रक्रिया से

वे नितांत अपरिचित हैं!

© संजय भारद्वाज 

प्रात: 6:29 बजे, 25.3.2019

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 श्रीगणेश साधना अनंत चतुर्दशी तदनुसार गुरुवार 28 सितंबर को सम्पन्न हुई। अगली साधना की जानकारी आपको शीघ्र दी जवेगी।💥 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #186 ☆ स्वर्ण-महल ठुकराकर सीता… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण कविता स्वर्ण-महल ठुकराकर सीता…। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 186 ☆

स्वर्ण-महल ठुकराकर सीता… ☆ श्री संतोष नेमा ☆

मिलन की आस लगा कर बैठीं

विरह की आग जला कर बैठीं

व्याकुल हैँ  बिरहाकुल सीता

सब सन्त्रास  भुला कर बैठीं

जँह अशोक वहां शोक कहां है

ध्यान योग पर रोक कहाँ  है

स्वर्ण-महल  ठुकराकर  सीता

तृण धरी ओट लगा कर बैठीं

दृण विश्वास दृण प्रेम आपका

धीरज धरम अरु नेम आपका

मन पर रख कर लगाम स्वयं ही

दिल में उजास जला कर बैठीं

दशानन ने भी  खूब  डराया

ख़ौफ़ किसी का काम ना आया

चंद्रहास  भी  चमकाई   पर

जानकी  शांत  करा  कर बैठीं

झूठ छलावा कर करके हँसता

पर सिय के हिय सत्य ही बसता

हर न सका मन को कभी रावण

सिया विश्वास लगा  कर  बैठीं

त्याग और  बलिदान  आपका

संकल्पों का जय गान आपका

अग्निपथ पर खुद चलकर सीता

नया उल्हास  जगा कर  बैठीं

पति दुख में बन कर हमजोली

वन- गमन संग राम के  होली

चल कर नंगे पैर सिया प्रभु संग

स्वयं उपवास लगा कर  बैठीं

जीवन  से  सीता  हार  जाती

यदि  त्रिजटा न  समझा पाती

आठों पहर जप नाम राम का

मन में निवास बना कर बैठीं

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सापेक्ष ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – सापेक्ष ? ?

भारी भीड़ के बीच 

कर्णहीन नीरव,

घोर नीरव के बीच

कोलाहल मचाती मूक भीड़,

जाने स्थितियाँ आक्षेप उठाती हैं

या परिभाषाएँ सापेक्ष हो जाती हैं,

कुछ भी हो पर हर बार

मन हो जाता है क्वारंटीन

…क्या कहते हो आइंस्टीन?

© संजय भारद्वाज 

(11.28 बजे, 19.1.2020)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 श्रीगणेश साधना, गणेश चतुर्थी मंगलवार दि. 19 सितंबर को आरम्भ होकर अनंत चतुर्दशी तदनुसार गुरुवार 28 सितंबर तक चलेगी। 💥

🕉️ इस साधना का मंत्र होगा- ॐ गं गणपतये नमः🕉️

💥 साधक इस मंत्र के मालाजप के साथ ही कम से कम एक पाठ अथर्वशीर्ष का भी करने का प्रयास करें। जिन साधकों को अथर्वशीर्ष का पाठ कठिन लगे, वे कम से कम श्रवण अवश्य करें।💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #18 ☆ कविता – “राज़ की बात…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 18 ☆

☆ कविता ☆ “राज़ की बात…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

बता दूँ आज तुम्हें

बात ये राज़ की

दिखाऊं आज तुम्हें

चाबी जिंदगी की

 

बात है ऐसे डर की

मेरी तुम्हारी और सब की

बड़ी परेशानी है दिल की

अनहोनी के हो जाने की

 

चाहें जितनी पूजा कर लो

बात ये तो तय है

आज नहीं तो कल

वो तो आनी ही है

 

वो ना प्रार्थनाओं से डरती

ना ही आसुओं से है बुझती

गर अनादि अनंत कुछ है

तो वो है बस अनहोनी

 

अच्छा है अगर

डर को उसके भूल जाओ

हसीन पल ये जिंदगी के

भला क्यों न आजमाओ

 

वो तो कुछ तुमसे

छीनकर जानी ही है

जो ख़ुशी हाथ में है

उससे क्यूं हाथ छुड़ाओ

 

दे कर जाती है गर वो

चार पल दुख के

कब्ज़ा क्यूं न लो

पल आठ ख़ुशी के

 

यहीं एक रास्ता है

बाकी बस रोना है

सांस चलती आज ये,

सुन मेरी सोणिए..

सांस में तुम्हारी मिलानी है….

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 178 ☆ बाल कविता – चले सैर को लंगूर ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 178 ☆

बाल कविता – चले सैर को लंगूर ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

आज सैर को चला रौब से

      एक अजूबा-सा लंगूर।

ऑटो उसको खूब सुहाया

       खुशियाँ मन में हैं भरपूर।।

 

घूमेगा वह शहर गुलाबी

       देखेगा वह जंतर – मंतर।

महल – किले भी वह घूमेगा

     खुशियों का देगा निज मंतर।।

 

बाग बगीचे वह देखेगा

     जो होगा मन के अनुकूल।

मनभावन खुशबू से महके

        प्यारे – मोहक सुंदर फूल।।

 

शादी होगी बच्चे होंगे

         उनको खूब घुमाएगा।

सपनों की खुशदिल दुनिया में

      सबसे प्यार बढ़ाएगा।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #201 – कविता – ☆ होकर खुद से अनजाने… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है एक विचारणीय कविता “होकर खुद से अनजाने…”।)

☆ तन्मय साहित्य  #201 ☆

☆ होकर खुद से अनजाने… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

पल पल बुनता रहता है ताने-बाने

भटके ये आवारा मन चौसर खाने।

*

बीत रहा जीवन

शह-मात तमाशे में

साँसें तुली जा रही

तोले माशे में

अनगिन इच्छाओं के

होकर दीवाने……..।

*

कुछ मिल जाए यहाँ

वहाँ से कुछ ले लें

रैन-दिवस मन में

चलते रहते मेले

रहे विचरते खुद से

होकर अनजाने……।

*

ज्ञानी बने स्वयं

बाकी सब अज्ञानी

करता रहे सदा ये

अपनी मनमानी

किया न कभी प्रयास

स्वयं को पहचानें……।

*

अक्षर-अक्षर से कुछ

शब्द गढ़े इसने

भाषाविद बन अपने

अर्थ मढ़े इसने

जाँच-परख के नहीं

कोई हैं पैमाने…….।

*

 रहे अतृप्त सशंकित

 सदा भ्रमित भय में

 बीते समूचा जीवन

 यूँ ही संशय में

 समय दूत कर रहा

 प्रतीक्षा सिरहाने..।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 26 ☆ धूप… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “तुमसे हारी हर चतुराई…” ।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 26 ☆ धूप… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

डर गई है धूप

घर के मुखौटों से

खिड़कियों से लौट जाती है।

 

एक चेहरा

धुंध में लिपटा हुआ

अँधेरे में हाँफता है

कोई जैसे

तंग गलियों से निकल

रोशनी में झाँकता है

कब हँसी है धूप

बैठी मुँडेरों पर

दिन गुजरता शाम गाती है।

भूख चूल्हा

सुलगता है पेट में

रोटियाँ सिकती रहीं हैं

मंडियों तक

दलालों के जाल में

मछलियाँ फँसती रहीं हैं

बाज़ारों में हो

रहे नीलाम रिश्ते

बेबसी बस कुनमुनाती है।

व्यक्तिवादी

सोच का ले आइना

देखते अपनी ही सूरत

गढ़ रहे हैं

अपने हाथों स्वयं की

अहंकारी एक मूरत

खेलते हैं खेल

जो मिल सभागारों में

उन्हें कुछ न शर्म आती है

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ फिर से दुनिया को बना… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “फिर से दुनिया को बना “)

✍ फिर से दुनिया को बना… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

मुझको सागर न सही कतरा अता कर मौला

तिश्नगी कुछ तो घटा हौठ भिगा कर मौला

तीरगी के है अलावा नहीं तक़दीर में कुछ

रोशनी कर दे मेरा ज़िस्म जला कर मौला

ज़ुल्म मज़लूम पँ होते है तेरी दुनिया में

फिर से दुनिया को बना इसको मिटा कर मौला

मैं भी वंदा हूँ तुम्हारा ही भले नेक नहीं

अपनी औलाद को क्या मिलना सता कर मौला

आँख से काम न ले कान से सुनता केवल

ऐसे कानून से रख मुझको बचा कर मौला

जिसने गुलशन के लिए जान तसद्दुक कर दी

है वो सादाब चमन उसको भुलाकर मौला

साँप को घर से निकाला तो घुसा है अजगर

हाथ मलता है अरुण चोट ये ख़ा कर मौला

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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