हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #14 ☆ कविता – “बह जाने दो…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 14 ☆

☆ कविता ☆ “बह जाने दो…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

ये सितम है, या है

कोई गिरते सितारे

पत्थर है या, है फूल

यू मोल इनके ना तोलो

 

आंसुओं को मेरे तुम

यूं  हीं बह जाने दो….

 

ये पानी है बस, या है

ना समझी ज़ुबानी

प्यार है या, है जरूरत

बहस ये तुम ना छेड़ो

 

आंसुओं  को मेरे तुम

यूं हीं बह जाने दो….

 

टूटते पहाड़ों की यूं 

तस्वीरें ना बनाओ

आंसुओं से मेरे

रंग उनमें ना डालो

 

आंसुओं को मेरे तुम

यूं  हीं बह जाने दो….

 

मेरी हार को यूं

अपनी जीत ना समझो

इन फूलों का हार

अपने गले में ना पहनो

कहीं गले से उतरकर

दिल को ना छू दो

बीमारी हमारी कहीं

अपनी ना बना दो

 

आंसुओं को मेरे तुम

यूं  हीं बह जाने दो….

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – हास्यपाद ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – हास्यास्पद ??

हिमखंड की

क्षमता से अनजान,

हिम का टुकड़ा

अपने जलसंचय  पर

उछाल मार रहा है,

अपने-अपने टुकड़े को

हरेक ब्रह्मांड मान रहा है,

अनित्य हास्यास्पद से

नित्य के मन में

हास्य उपजता होगा,

ब्रह्मांड का स्वामी

इन क्षुद्रताओं पर

कितना हँसता होगा..!

© संजय भारद्वाज 

प्रात: 10:11 बजे, 5.12.2021

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 महादेव साधना- 30 अगस्त 2023 को सम्पन्न हुई। हम शीघ्र ही आपको अगली साधना की जानकारी देने का प्रयास करेंगे। 🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #197 ☆ भावना के दोहे… ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं “भावना के दोहे…।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 197 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे… ☆

जीवन में तुम दर्द का, मत लेना अब नाम।

अंधकार अब ढल चुका, पिएं खुशी का जाम।।

अब तो हमने तोड़ दी, मिलने की हर आस।

खुशियों ने भी ले लिया, जीवन से सन्यास।।

सोच समझकर आजकल, मुख अपना तू खोल।   

प्यार सभी का चाहिए, वाणी मीठी बोल।।

गड़बड़ मौसम ने किया, होती हमसे भूल।

आकर उसने दे दिया, इक गुलाब का फूल।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #182 ☆ संतोष के दोहे – “सफल सोम अभियान” ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है संतोष के दोहे  – “सफल सोम अभियान”. आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 182 ☆

☆ संतोष के दोहे  – “सफल सोम अभियान”  ☆ श्री संतोष नेमा ☆

जय जय जय माँ भारती, धन्य धन्य विज्ञान

उतरा लेंडर चाँद पर, सफल सोम अभियान

एक नया इतिहास रच, खूब बढ़ाया मान

दुनिया में सब कर रहे, भारत का गुणगान

भारत की सरकार ने, खूब बढ़ाया जोश

देकर वांछित धन उन्हें, लेकर निर्णय ठोस

चंद्रयान की सिद्धि अब, बढ़ा रही विस्वास

नया मिशन आदित्य का, जगा रहा नव आस

इसरो की अब विश्व में, अलग बनी पहचान

उसके अथक प्रयास से, सफल कई अभियान

भू-बन्धन स्वीकार कर, रखी बहिन की लाज

रक्षाबंधन पर सभी, बहुत करें हम नाज़

भेज रहा है चांद से, तस्वीरें प्रज्ञान

खनिज,गैस भंडार के, नित्य नए संधान।।

दक्षिण ध्रुव पर चाँद भी, ताक रहा था राह

नीरसता भी दूर हो, ऐसी उसकी चाह

कहते मोदी आजकल, चाँद न हमसे दूर

हुआ सिमटकर फासला, इसका बस इक टूर

इस दुनिया को था नहीं, भारत पर विश्वास

नतमस्तक है आज वह, देख नया इतिहास

चूम रहा है चंद्र-मुख, अपना भारत देश

गर्वित है संतोष भी, देख नया परिवेश

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “हनुमान दर्शन…” ☆ सौ.विद्या पराडकर ☆

सौ.विद्या पराडकर

☆ “हनुमान दर्शन…”  ☆ सौ.विद्या पराडकर ☆

☆ सौ.विद्या पराडकर जी रचित भजन ☆

दर्शन  दो हनुमान इश मोरे

अखियां प्यासी रे

मनमंदिर मे ज्योत जगाए

श्रीराम भक्ति की रे ।१। 🌷

 

अवगुण मेरे ध्यान न धरिए 

विकार मुझे छलते हैं 

मन को मेरे चंचल करते हैं 

हनुमान इनसे रक्षा करो रे

दर्शन दो…………… ।२।🌷

 

हे केसरी नंदन सदा ध्यान में तुम

भक्ति जहाँ श्री राम की है

तू संकटमोचन है हनुमान रे

मनोकामना पूर्ण करे रे

दर्शन दो …………….।३।🌷

 

चारो युग मे आप विराजे

अमरता का वरदान मिला है

त्रेता युग मे राम के साथ हैं 

द्वापार मे अर्जुन के रथ पर बैठे

दर्शन दो…………..।४।🌷

 

श्रीराम जी को प्रिय हो सबसे

बडे बडे असुर सब डरते तुमसे

रामदूत तुम प्रभू हितकारी

सीता खोज मे ढूंढली लंका सारी

दर्शन दो…………।५।🌷

 

महादेव जी का अवतार हो तुम

ग्यारह रुद्र से सुशोभित हो तुम

श्री राम जी के भक्त अनोखे रे

त्रिभुवन मे ऐसे ना देखे रे

दर्शन दो हनुमान इश मोरे

अंखिया प्यासी रे।६।🌷

© सौ.विद्या पराडकर ‌

बी 6- 407, राहुल निसर्ग सोसाइटी, नियर  विनायक हॉस्पिटल, वारजे, पुणे मो 9225337330

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सार्थक ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – सार्थक ??

कुछ हथेलियाँ

उलीचती रहीं

दलदल से पानी,

सूखी धरती तक

पहुँचाती रहीं

बूँद-बूँद पानी,

जग हँसता रहा

उनकी नादानी पर..,

कालांतर में

मरुस्थल तो

तर हुआ नहीं पर

दलदल की जगह

उग आया

लबालब अरण्य..,

साधन की कभी

बाट नहीं जोहते,

संकल्प और श्रम

कभी व्यर्थ नहीं होते!

© संजय भारद्वाज 

14.9.20, रात्रि 12.07 बजे

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 महादेव साधना- 30 अगस्त 2023 को सम्पन्न हुई। हम शीघ्र ही आपको अगली साधना की जानकारी देने का प्रयास करेंगे। 🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 227 ☆ कविता – प्रतिबिंब… ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण कविता  – प्रतिबिंब)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 227 ☆

? कविता – प्रतिबिम्ब?

हर बार एक नया ही चेहरा कैद करता है कैमरा मेरा …

खुद अपने आप को अब तक

कहाँ जान पाया हूं, 

खुद की खुद में तलाश जारी है

हर बार एक नया ही रूप कैद करता है कैमरा मेरा

प्याज के छिलकों की या

पत्ता गोभी की परतों सा

वही डी एन ए किंतु

हर आवरण अलग आकार में ,

नयी नमी नई चमक लिये हुये

किसी गिरगिट सा,

या शायद केलिडेस्कोप के दोबारा कभी

पिछले से न बनने वाले चित्रों सा 

अक्स है मेरा .

झील की अथाह जल राशि के किनारे बैठा

में देखता हूं खुद का

प्रतिबिम्ब .

सोचता हूं मिल गया मैं अपने आप को

पर

जब तक इस खूबसूरत

चित्र को पकड़ पाऊं

एक कंकरी जल में

पड़ती है

और मेरा चेहरा बदल जाता है

अनंत

उठती गिरती दूर तक

जाती

लहरों में गुम हो जाता हूं मैं .

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 174 ☆ बाल कविता – जीवन है अनमोल ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 174 ☆

☆ बाल कविता – जीवन है अनमोल ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

टमटम में बैठे हम सब ही

चले शहर की ओर।

पों – पों – पीं – पीं गाड़ी करतीं

अति का होता शोर।।

 

भालू जी की बाइक की थी

बहुत तेज रफ्तार।

मोबाइल से बात कर रहे

जा टकराए कार।

 

बाइक टूटी गिरे जोर से

दुख गई पोर- पोर।।

 

शेर, लोमड़ी गीदड़ उनको

अस्पताल में लाए।

हाल अजब अपना था पाया

जब वे होश में आए।

 

नहीं करूँ मनमानी अब मैं

जीवन है अनमोल।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #198 – कविता – रक्षाबंधन पर्व पर कुछ दोहे… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है रक्षाबंधन पर्व पर कुछ दोहे…” । )

☆ तन्मय साहित्य  #198 ☆

☆ रक्षाबंधन पर्व पर कुछ दोहे… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

रक्षाबंधन पर्व यह, भाई-बहन  का  प्यार।

शुभ संकल्पित भाव का, शुभ पुनीत त्यौहार।।

इन धागों में है छुपा, असीमित  निश्छल नेह।

ज्यूँ भादो में अनवरत, बरसे बादल मेह।।

राखी पर्व पवित्र यह, रखें बहन का ध्यान।

बहनों के आशीष से, मिले सुखद सम्मान।।

रक्षाबंधन सूत्र यह, बाँधे स्नेहिल गाँठ।

भाई-बहन के प्रेम का, पुण्यमई यह पाठ।।

विपदाओं के वक्त में, इक-दूजे के साथ।

कष्ट मिटे सहयोग से, लें हाथों में हाथ।।

बंधु अनुज है पुत्र सम, अग्रज पिता समान।

बँध कर रक्षा सूत्र में, बढ़े  सभी की शान।।

 स्नेहिल पावन पुण्यमय, सौम्य-शिष्ट यह पर्व।

 सनातनी  सद्भाव  की, परम्परा पर गर्व।।

मेह, नेह के सावनी, बरसे सुखद फुहार।

राखी के धागे भीगे, पुलकित पावन प्यार।।

 भाई-बहन के बीच में, जीवन भर की प्रीत।

 रक्षाबंधन पर्व यह, सुखद मधुर संगीत।।

 पर्वोत्सव व्रत धर्म का, पारंपरिक प्रवाह।

 बहन बेटियों पर टिकी, सत्पथ की ये राह।।

 संस्कृति की संवाहिका, संस्कारों की खान।

 स्नेहिल मन भाई-बहन, बनी रहे मुस्कान।।

 झिरमिर झिरमिर सावनी, पावस प्रीत फुहार।

 राखी हाथ लिए खड़ी, मन में संचित प्यार।।

बहनों में माँ के सदृश, ममता नेह अपार।

निश्छल निर्मल प्रेममय, करुणा का आगार।।

सुधापान सद्भावमय, प्रीत प्रेममय भाव।

संबंधों की ताप के, बुझे न कभी अलाव।।

बहन बेटियों का रखें, निश्छल मन से ध्यान।

नहीं भूल से भी कभी, हो इनका अपमान।।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 22 ☆ रोशनी की आस… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “रोशनी की आस…” ।)

हिमाचल एवं उत्तराखंड की त्रासदी पर…

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 22 ☆ रोशनी की आस… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

पास सब कुछ

पर है लगता

कुछ नहीं है पास।

 

आस्थाओं

पर है भारी

प्रकृति का यह दंड

हो गया

है आदमी की

उजागर पाखंड

 

रो रही है

धरा पावन

हँस रहा आकाश ।

 

हाहाकारों

से पटी

छाती हिमालय की

हिल गईं

सब मान्यताएँ

पूजा शिवालय की

 

डगमगा कर

रह गया है

लोगों का विश्वास ।

 

दृष्टियाँ

बस खोजती हैं

अपनेपन की धूप

बेचती है

नियति पल-पल

विवशता के रूप

 

मौन करुणा

में छुपी है

रोशनी की आस।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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