प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे
☆ संदर्भ – जश्न-ए-आज़ादी – गीत – “हमारा लोकतंत्र 🇮🇳” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆
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हिम्मत, ताक़त, शौर्य विहँसते, तीन रंग हर्षाये हैं।
सम्प्रभु हम, जनतंत्र हमारा, जन-जन तो मुस्काये हैं।।
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क़ुर्बानी ने नग़मे गाये, आज़ादी का वंदन है।
ज़ज़्बातों की बगिया महकी, राष्ट्रधर्म -अभिनंदन है।।
सत्य, प्रेम और सद्भावों के, बादलतो नित छाये हैं ।
सम्प्रभु हम, जनतंत्र हमारा, जन-जन तो मुस्काये हैं ।।
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ज्ञान और विज्ञान की गाथा, हमने अंतरिक्ष जीता।
सप्त दशक का सफ़र सुहाना, हर दिन है सुख में बीता।।
कला और साहित्य प्रगतिके, पैमाने तो भाये हैं ।
सम्प्रभु हम, जनतंत्र हमारा, जन-जन तो मुस्काये हैं ।।
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शिक्षा और व्यापार मुदित हैं, उद्योगों की जय-जय है।
अर्थ व्यवस्था, रक्षा, सेना, मधुर-सुहानी इक लय है।।
गंगा-जमुनी तहज़ीबें हैं, विश्व गुरू कहलाये हैं ।
सम्प्रभु हम, जनतंत्र हमारा, जन-जन तो मुस्काये हैं ।।
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जीवन हुआ सुवासित सबका, जन-गण-मन का गान है।
हमने जो पाया है उस पर, हम सबको अभिमान है।।
भगतसिंह, आज़ाद, राजगुरु, विजयगान मेंआये हैं ।
सम्प्रभु हम, जनतंत्र हमारा, जन-जन तो मुस्काये हैं ।।
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चारों ओर उजाला बिखरा, अँधियारा बस्ती छोड़ा।
खुशहाली ने नगर-गाँव को, अपना तो अब मुँह मोड़ा।।
सूर्यदेव तो रोज़ाना ही, नव मुस्कानें लाये हैं।
सम्प्रभु हम, जनतंत्र हमारा, जन-जन तो मुस्काये हैं ।।
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© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661
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