हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – खेल ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – खेल ??

शब्द पहेली,

सुडोकू,

अल्फाबेटिक क्विज,

बिल्ट योअर वोकेबुलरी,

अक्षर से खेलना;

शब्द से खेलना;

ब्रह्म से खेलना,

कौन कहता है;

केवल ब्रह्म ही

मनुष्य से खेलता है?

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ महादेव साधना- यह साधना मंगलवार दि. 4 जुलाई आरम्भ होकर रक्षाबंधन तदनुसार बुधवार 30 अगस्त तक चलेगी 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नमः शिवाय 🕉️ साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ  🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #10 ☆ कविता – “बाबाजी प्रणाम…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 10 ☆

 ☆ कविता ☆ “बाबाजी प्रणाम…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

बाबाजी प्रणाम,

मगर हमे धरम ना सिखाइये 

जिंदगी ने इतना सिखाया है

अब आप कष्ट ना लीजिये। 

 

बाबाजी, कभी बच्चे पालकर तो देखो

या जाके पूछो उस माँ से 

एक तप का समय कितना होता है

और कहते तपस्या किसे है ?

 

बाबाजी, कभी शादी करके देखिए  

या कभी किसी बाप से पूछिए 

संयम किसे कहते है

और विरक्ति कैसे हासिल होती है ।

 

बाबाजी, हमें रंग की बाते ना बताइए 

सब रंग तो हम संसार में देखते है

आपके हाथ में एक रंग की झोली है

हमारे लिए तो हर दिन एक होली है ।

 

बाबाजी, – तेज, ओज और प्राण की बातें ना करिए  

हम तो लड़ने वाले लोग हैं 

ये तीनों तो रोज शाम खोते हैं 

मगर अगली सुबह वापस पाते हैं।

 

बाबाजी, संसार ही एक सन्यास है

आप सन्यास में संसार ना करिए  

प्रणाम बाबाजी,

अगली बार मुझे ‘सुनो बेटा‘ ना कहिए 

एक बाप हूँ मैं, जरा इज्जत देना भी सीखिए।

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 171 ☆ बाल कविता – खट – मिट्ठे हैं काले – काले ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 131मौलिक पुस्तकें (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित तथा कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी संस्थान के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 171 ☆

☆ बाल कविता – खट – मिट्ठे हैं काले – काले ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

जामुन के हैं स्वाद निराले।

      खट- मिट्ठे हैं काले – काले।।

 

गदराए हैं बड़े रसीले।

        मुँह में पानी बड़े छबीले।।

 

डाल नमक कुल्हड़ में डाले।

    हाथ नचाकर उन्हें हिला ले।।

 

हुए मुलायम खाए लल्ला।

        बातें करता बड़ा चबल्ला।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #194 – कविता – प्रत्यासी मीमांसा… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता  “प्रत्यासी मीमांसा…)

☆ तन्मय साहित्य  #194 ☆

☆ प्रत्यासी मीमांसा… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

वोट डालना धर्म हमारा

और कुकर्म तुम्हारे हैं

तुम राजा बन गए

वोट देकर तो हम ही हारे हैं।

 

एक चोर इक डाकू है

ठग एक, एक है व्यभिचारी

एक लुटेरा हिंसक है इक,

एक यहाँ अत्याचारी,

ये हैं उम्मीदवार तंत्र के

इनके वारे न्यारे हैं……

 

चापलूस है कोई तो

कोई धन का सौदागर है,

है कोई आतंकी इनमें

तो कोई बाजीगर है,

इनके कोरे आश्वासन

औ’ केवल झूठे नारे हैं ……

 

इनमें हैं मसखरे कई

कोई नौटंकी वाले हैं

कुछ ने पहन रखी ऊपर

नकली शेरों की खाले हैं,

संत फकीर माफियाओं के

हिस्से न्यारे-न्यारे हैं ……

 

इनमें राष्ट्र विरोधी कुछ-

कुछ काले धंधे वाले हैं

कुछ एजेंट विदेशों के

कुछ के अपने मदिरालै हैं,

काले पैसों के जंगल में

सब केअलग नजारे हैं ……

 

नाते-पोते नेताओं के

कुछ के बेटे बेटी हैं

भरे पेट वालों के ही तो

कब्जे में मत पेटी है,

झूठ फरेबी, मक्कारी से

बनी हुई सरकारें हैं…..

 

जालसाज ये धूर्त खिलाड़ी

नाटक बाज मदारी है

कुर्सी कुर्सी खेल खेलते

लफ्फाजी अय्यारी हैं,

ठगबंधन कर शोर मचाते

नकली भाईचारे हैं……

 

चेहरे हैं जिनके उजले

उनमें कुछ गूंगे बहरे हैं

साफ़ छबि वालों के मुँह पर

आदर्शो के पहरे हैं,

जब्त जमात उन्हीं की

जो सीधे-साधे बेचारे है…

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 19 ☆ भरोसा है… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “भरोसा है…” ।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 19 ☆ भरोसा है… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

नदी को भरोसा है

आयेगी कोई लहर

भीगेंगे रेतीले मन।

 

जमे अँधेरों पर

छायेगी धूप

ढके पहाड़ों का

निखरेगा रूप

 

धुंध के मचानों से

सूरज का उजला घर

पिघलेंगे बर्फ़ीले मन।

 

तनकर पगडंडी

सड़क रही टेर

साँझ नदी तट पर

मुँह ठाड़ी फेर

 

गोधूली बेला में

लौटेंगे पाँव सभी

टूटेंगे पथरीले मन।

 

रात के बिछौने

धूप ने भिगोए

कलियों के होंठ

ओस ने निचोए

 

भोर के उजाले में

बहकेंगे आँखों में

काजल सँग सपनीले मन।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ ख्वाहिशें इंसान की जीने नहीं देती है जब… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “ख्वाहिशें इंसान की जीने नहीं देती है जब“)

✍ ख्वाहिशें इंसान की जीने नहीं देती है जब… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

आपके जीवन में होती तीरगी कैसे भला

दूर रहती नेकियों की रोशनी कैसे भला

 

परवरिश में मां पिता ने सीख दीं अच्छी सभी

आपके किरदार में रहती कमी कैसे भला

 

रौब रुतबे के नशे में  डूबकर जब जी रहे

आपकी फितरत में होती आज़जी कैसे भला

 

ख्वाहिशें इंसान की जीने नहीं देती है जब

कट रही संजीदगी से ज़िन्दगीं कैसे भला

 

रच रहे फ़ितने भ्रमर उनका है हामी बागवां

रह सके महफ़ूज़ गुलशन में कली कैसे भला

 

भाई भाई का बना दुश्मन फ़ज़ा बिगड़ी हुई

खून की बहती नहीं ऐसी नदी कैसे भला

 

ऐ अरुण तुम रहनुमा को राहजन बतला रहे

वो करेगा अब तुम्हारी रहबरी कैसे भला

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – “मित्रता के दोहे…” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ कविता – “मित्रता के दोहे…” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

नेहिल होती मित्रता, होती सदा पवित्र।

दुख में कर ना छोड़ता, हो यदि सच्चा मित्र ।।

वही मित्र है ख़ास जो, कह दे चोखी बात।

रहे संग वह नित मगर, बनकर के सौगात।।

कृष्ण-सुदामा से सखा, नहीं मिलेंगे और।

ऐसा ही चलता रहे, सख्य भाव का दौर।।

पावनता का तेज हो, निश्छल हों सम्बंध।

बनें सखा मजबूत कर, अनुपम यह संबंध।।

अंतर्मन था निष्कलुष, गहन चेतना भाव।

अमर बने तब मैत्री, होगा नहीं अभाव।।

कृष्ण-सुदामा मैत्री, ने पाया सम्मान।

पनपे ना कोई कपट, केवल मंगलगान।।

एक देव था, एक नर, पर थे चोखे यार।

सख्य भाव देता सदा, हर युग में उजियार।।

ऊँचनीच को भूलकर, बनना चोखे यार।

तब ही यह रिश्ता बने, आजीवन उपहार।।

मित्र करे ग़ल्ती अगर, बतला देना भूल।

पर तजकर के साथ तुम, नहीं चुभाना शूल।।

 रखना हित का भाव नित, रखना उर में प्रीत।

जय होगी तब मित्रता, जय हो ऐसी रीत।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 15 – पूजी जाने लगी नग्नता… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – पूजी जाने लगी नग्नता…।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 15 – पूजी जाने लगी नग्नता… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

आम आदमी की पीड़ा

से विमुख हुआ चिन्तन

पूजी जाने लगी नग्नता

इतना हुआ पतन

 

बुद्धिवादियों की कविता है

नीरस और उबाऊ

मात्र मंच की चुहुलबाजियाँ

औ मसखरी बिकाऊ

नैतिकता औ राष्ट्रवाद से

वंचित हुआ सृजन

 

कविता में युगबोध नहीं

बस आडम्बर है झूठा

मौलिकता है लुप्त

षिष्टपेषण मिलता है जूठा

मजदूरों की किस्मत में

संत्रास, भूख, ठिठुरन

 

आम आदमी की पीड़ा को

जिन कवियों ने गाया

अकादमिक सम्मान कभी भी

उन्हें नहीं मिल पाया

आज चाटुकारी, जुगाड़ से

होता अभिनन्दन

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 92 – मनोज के दोहे… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 92 – मनोज के दोहे… ☆

१ अंकुर

अंकुर निकसे प्रेम का, प्रियतम का आधार।

नेह-बाग में जब उगे, लगे सुखद संसार ।।

☆ 

२ मंजूषा

प्रेम-मंजूषा ले चली, सजनी-पिय के द्वार।

बाबुल का घर छोड़कर, बसा नवल संसार ।।

☆ 

३ भंगिमा

भाव-भंगिमा से दिखें, मानव-मन उद्गार।

नवरस रंगों से सजा, अन्तर्मन  शृंगार।।

☆ 

४ पड़ाव

संयम दृढ़ता धैर्यता, मंजिल तीन पड़ाव ।

मानव उड़े आकाश में, सागर लगे तलाव।।

☆ 

५ मुलाकात

मुलाकात के क्षण सुखद, मन में रखें सहेज।

स्मृतियाँ पावन बनें, बिछे सुखों की सेज।।

 ©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – मौन… ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – मौन… ??

उनके शब्दों से

उपजी वेदना

शब्दों के परे थी

सो होना पड़ा मौन,

अब अपने मौन पर

शब्दों से उपजी

उनकी प्रतिक्रियाएँ

सुन-बाँच रहा हूँ मैं..!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ महादेव साधना- यह साधना मंगलवार दि. 4 जुलाई आरम्भ होकर रक्षाबंधन तदनुसार बुधवार 30 अगस्त तक चलेगी 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नमः शिवाय 🕉️ साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ  🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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