हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 150 – गीत – इसका अर्थ गुलाम नहीं… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण गीत – इसका अर्थ गुलाम नहीं।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 150 – गीत – इसका अर्थ गुलाम नहीं…  ✍

अर्पित है तन मन सब लेकिन

इसका अर्थ गुलाम नहीं।

 

मन लादे था गौन

मन भर का था मौन

तुझे मिला था कौन?

जिसने मौन किया है मुखरित, भेजा उसे सलाम नहीं।

 

तुझे मिला मन मीत

रचे गंध के गीत

जानी बूझी प्रीत

विदा किया अँधियारा जिसने, क्या वह ललित ललाम नहीं।

 

किसको देता दोष

 ही  के अवगुन कोष

हो जा रे ख़ामोश

जिसने तेरी जड़ता तोड़ी, उस पर कहा कलाम नहीं।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 150 – “मन में फिर भी शेष रहे…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है  आपका एक अभिनव गीत  मन में फिर भी शेष रहे.)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 150 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆
☆ “मन में फिर भी शेष रहे” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

उम्मीदों की काट दी गई

ज्यों कि पतंग यहाँ

मन में फिर भी शेष रहे

जीवन के रंग यहाँ

 

बेटे का मुँह ताक ताक कर

थकीं विवश आंखें

चेहरे पर पड़ गई झुर्रियां

ज्यों सूखी दाखें

 

सूरत का अनुपात बिगड़ता

देख हुई चिंतित

खुद का चेहरा घूर घूर कर

रहती दंग यहाँ

 

एक अकेली साड़ी में जब

चार बरस बीते

जीत नहीं पायी संतति-सुख

जिसने जग जीते

 

जितने अर्थ छिपे होते

माँ के सम्बोधन में

सारे अर्थ हो गये हैं

जैसे बदरंग यहाँ

 

माँ, जिसने सर्दी व घाम सहा

भूखे रह कर

वही मर रही अब भी भूखी

जैसे रह रह कर

 

रोज लड़ा करती है

भूखे तन हालातों से

घर से खुद से जर्जर हो

जो भीषण जंग यहाँ

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

21-07-2023 

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – शॉर्टकट ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – शॉर्टकट ??

रातों रात

वे कहलाना चाहते हैं सिद्ध,

तिस पर रात भी

बारह घंटे की नहीं चाहते,

सुनो उतावलो!

मूलभूत में

कभी परिवर्तन नहीं होता,

तपस्या का

कोई शॉर्टकट नहीं होता..!

© संजय भारद्वाज

(प्रात: 9:30 बजे, 12 अगस्त 2022)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ महादेव साधना- यह साधना मंगलवार दि. 4 जुलाई आरम्भ होकर रक्षाबंधन तदनुसार बुधवार 30 अगस्त तक चलेगी 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नमः शिवाय 🕉️ साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ  🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 142 ☆ # लिव-इन और ब्रेक-अप… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी समसामयिक घटना पर आधारित एक भावप्रवण कविता “# लिव-इन और ब्रेक-अप… #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 142 ☆

☆ # लिव-इन और ब्रेक-अप… #

महानगर की चकाचौंध में

दो पंछी उड़ रहे थे

कभी-कभी, कहीं-कहीं पर

आपस में जुड़ रहे थे

बार-बार टकराने से

दोनों हिल गये

उनके बेकाबू दिल

आपस में मिल गये

प्यार की सौंधी-सौंधी खुशबू से

सराबोर हुए

बार-बार मिलने को

बेकरार हुए

मल्टीनेशनल कंपनी में

कार्यरत थे

मोटी तनख्वाह के कारण

जीवन में मस्त थे

दोनों लिव-इन-रिलेशनशिप में

रहने लगे

प्यार के समंदर में बहने लगे

कुछ समय जवानी की

रंगीनियों में बीत गया

प्यार का खुमार भी

धीरे-धीरे रीत गया

तब

दोनों के बीच दूरियां बढ़ गई

‘रिलेशनशिप’ इगो की भेंट चढ़ गई

दोनों लड़कर एक दूसरे से

अलग हो गए

प्यार भरे रिश्ते

कहीं खो गए

 

आजकल लिव-इन और

ब्रेक-अप साथ साथ चल रहे हैं

युवा पीढ़ी के रिश्ते

हर रोज जल रहे हैं

क्या युवा पीढ़ी

विवाह का अर्थ

समझ पायेंगे?

पति-पत्नी के

संबंधों को निभायेंगे ?

या

लिव-इन और ब्रेक-अप के

जाल में फँसते ही जायेंगे ?/

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 151 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 151 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 151) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 151 ?

☆☆☆☆☆

जब  लबों  पर

जगह नहीं मिलती,

तब  लफ़्ज़  आँखों

में  रहने  लगते  हैं…

☆☆

When there is no

space on the lips,

Then the words start

living in the eyes…

☆☆☆☆☆

थी मिलावट इस कदर

अपनों की चाहत में कि

आखिर तंग आकर हम  

दुश्मनों के पास चले गए..!

☆☆ 

So much of adulteration was

there in the love of loved ones

that I got disheartened, forcing

me  to  go  to  the  enemies..!

☆☆☆☆☆

क्या कोई नई बात नजर 

आती  है  हममें ?

आईना हमें देख कर

हैरान सा  क्यूँ  है ?

☆☆

Do you see anything 

new  in  me…

Why is the mirror

surprised to see me?

☆☆☆☆☆

यूं तो सब, कुछ रूठे-रूठे

से रहते  हैं  मुझसे,

पर बचपन की मासूमियत

कुछ ज्यादा  खफा  है…

☆☆

As such, everyone remains

sullen  only  with  me,

But the innocence of childhood

is a bit more upset with me!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 149 ☆ व्यंग्य गीत – “न्याय-अन्याय” ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक व्यंग्य गीत बंदर मामा न्याय करे)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 148 ☆

☆ व्यंग्य गीत ☆ न्याय अन्याय  ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

बंदर मामा

चीन्ह -चीन्ह कर

न्याय करे

*

जो सियार वह भोगे दण्ड

शेर हुआ है अति उद्दण्ड

अपना & तेरा मनमानी

ओह निष्पक्ष रचे पाखण्ड

जय जय जय

करता समर्थ की

वाह करे

*

जो दुर्बल वह पिटना है

सच न तनिक भी पचना है

पाटों बीच फँसे घुन को

गेहूं के सँग पिसना है

सत्य पिट रहा

सुने न कोई

हाय करे

*

निर्धन का धन राम हुआ

अँधा गिरता खोद कुँआ

दोष छिपा लेता है धन

सच पिंजरे में कैद सुआ

करते आप 

गुनाह रहे, भरता कोई 

विवश मरे

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१२-१२-२०१५, जबलपुर

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #201 – 87 – “ख़्यालों संग ख़्वाबों को सजाए रखिये …” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल “ख़्यालों संग ख़्वाबों को सजाए रखिये…”)

? ग़ज़ल # 87 – “ख़्यालों संग ख़्वाबों को सजाए रखिये…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

ज़िक्र छेड़ा है तो माहौल बनाए रखिये,

हमेशा लौ अरमानों की जलाए रखिये।

सिर रोज खपायेंगी अजीब दुश्वारियाँ,

ख़्यालों संग ख़्वाबों को सजाए रखिये।

हरेक शख़्स को कूच करना एक दिन,

भरोसा कन्धों का साथ बनाए रखिए।

बूढ़ा शेर कभी घास खाते नहीं दिखता,

शिकारी अन्दाज़ यूँ ही दिखाए रखिए।

‘आतिश’ ज़ाया न पल चिंता चिता में,

कूच तक क़िस्सा  लय बचाए रखिये।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ ज़िंदगी, ख़्वाहिश और वक़्त… ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम् ☆

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आई आई एम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। आप सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत थे साथ ही आप विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में भी शामिल थे।)

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी ने अपने प्रवीन  ‘आफ़ताब’ उपनाम से  अप्रतिम साहित्य की रचना की है। आज प्रस्तुत है आपकी अप्रतिम पंक्तियाँ  “ज़िंदगी, ख़्वाहिश और वक़्त…

? ज़िंदगी, ख़्वाहिश और वक़्त… ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम् ☆ ?

ज़िंदगी कोई आफ़त तो नहीं,

   पर ज़िंदगी कोई राहत भी नहीं,

ये तो सफ़र है,  सिर्फ़ चंद पलों का,

   कुछ दोस्ती का, तो कुछ अदावत का

ख्वाहिश है सब कुछ फतेह करने की

    ढेरों खुशियां हों, और हों सिफ़र ग़म

हासिल-ए-चाहत हर दुश्वार मंज़िल की,

    मगर अफसोस! ये है सरासर भरम…

वक़्त तो एक मदमस्त दरिया है

    सारे नामोनिशान बहा ले जाएगा,

क्या हस्ती तेरी, क्या मस्ती मेरी

    सब कुछ ख़ाक में मिल जायेगा…

~ प्रवीन रघुवंशी ‘आफताब’

© कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

पुणे

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – त्रिकालदर्शी ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – त्रिकालदर्शी ??

भविष्य से

सुनता है

अपनी कहानी,

जैसे कभी

अतीत को

सुनाई थी

उसकी कहानी,

वर्तमान में जीता है

पर भूत, भविष्य को

पढ़ सकता है,

प्रज्ञाचक्षु खुल जाएँ तो

हर मनुज

त्रिकालदर्शी हो सकता है!

© संजय भारद्वाज 

प्रात: 9.31 बजे, 9.4.2020

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ महादेव साधना- यह साधना मंगलवार दि. 4 जुलाई आरम्भ होकर रक्षाबंधन तदनुसार बुधवार 30 अगस्त तक चलेगी 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नमः शिवाय 🕉️ साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ  🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 78 ☆ हाइकु ☆ ।। क्रोध/गुस्सा ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ हाइकु ☆ ।। क्रोध/गुस्सा ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

।।पांच।।वर्ण 5=7=5 पंक्ति अनुसर।।

[1]

क्रोध आग है

खुद का घर जले

वह   दाग है।

[2]

बुद्धि  हरण

गुस्से में   धैर्य नष्ट

दोस्ती क्षरण।

[3]

दंभ से क्रोध

घृणा ईर्ष्या ओ द्वेष

होए न बोध।

[4]

क्रोध शत्रु है

स्वयं का नुकसान

जैसे मृत्यु है।

[5]

अधीरता है

गुस्से का भी कारण

न वीरता है।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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