हिन्दी साहित्य – कविता ☆ आँखों से बयाँ और कहानी है तुम्हारी… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “आँखों से बयाँ और कहानी है तुम्हारी“)

✍ आँखों से बयाँ और कहानी है तुम्हारी… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

सर मेरा किसी शख़्स को  झुकने से बचा है

अहसान कभी मैंने किसी का न लिया है

सूरज जो लुटाता है जमाने को  उजाला

जब मुझको जरूरत थी  ग्रहण में वो रहा है

इंसान तुझे हिंदू यवन सिख्ख दिखेगें

आँखों पे तेरी रंग जो मज़हब का चढ़ा है

दावे जो मुलाकात के करता तू सभी से

जाहिर यही होता नहीं तू खुद से मिला है

आँखों से बयाँ और कहानी है तुम्हारी

हौठों पे तबस्सुम को भले ओढ़ रखा है

ताला मैं अलीगढ़ का हूँ तारीफ ये काफी

जो दूसरी चाबी से खुलेगा न खुला है

आईने सा किरदार न रख पाए तुम अपना

शुहरत पे तभी छाने लगा धुन्द घना है

इमदाद से इनकार किसी को न अरुण की

बरक़त का खज़ाना सदा वो मेरा भरा है

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 14 – दानों के लाले हैं… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – दानों के लाले हैं।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 14 – दानों के लाले हैं… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

बाज, गिद्ध, क्या रोक सकेंगे

नई उड़ानों को

 

नन्ही चिड़ियों ने

उड़ने के सपने पाले हैं

गौरइयों के चूजों को

दाने के लाले हैं

मुखिया ने कब्जाया है

आँगन, चौगानों को

 

पिंजरों के बाहर भी

जाने कितने खतरे हैं

जाल बिछाये हुए शिकारी

छिपकर पसरे हैं

झुण्ड बनाकर तोड़ेगे

सारे व्यवधानों को

 

शोषणकारी क्रूर

किया करते मनमानी हैं

अब इन दमितों ने

मरने-मिटने की ठानी है

एक साथ मिलकर लूटेंगे 

ये तहखानों को

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 91 – मनोज के दोहे… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 91 – मनोज के दोहे… ☆

१ अंकुर

अंकुर निकसे प्रेम का, प्रियतम का आधार।

नेह-बाग में जब उगे, लगे सुखद संसार ।।

२ मंजूषा

प्रेम-मंजूषा ले चली, सजनी-पिय के द्वार।

बाबुल का घर छोड़कर, बसा नवल संसार ।।

३ भंगिमा

भाव-भंगिमा से दिखें, मानव-मन उद्गार।

नवरस रंगों से सजा, अन्तर्मन  शृंगार।।

४ पड़ाव

संयम दृढ़ता धैर्यता, मंजिल तीन पड़ाव ।

मानव उड़े आकाश में, सागर लगे तलाव।।

५ मुलाकात

मुलाकात के क्षण सुखद, मन में रखें सहेज।

स्मृतियाँ पावन बनें, बिछे सुखों की सेज।।

 ©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – कमाल ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – कमाल ??

नाराज़ हो मुझसे,

उसने पूछा…,

मैं हँस पड़ा,

कमाल है,

नाराज़ हो गई वह मुझसे..!

© संजय भारद्वाज 

प्रात: 9.06 बजे, 27.10.2020

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ महादेव साधना- यह साधना मंगलवार दि. 4 जुलाई आरम्भ होकर रक्षाबंधन तदनुसार बुधवार 30 अगस्त तक चलेगी 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नमः शिवाय 🕉️ साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ  🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 149 – गीत – दूर रहो तुम तन से… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण गीत – दूर रहो तुम तन से।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 149 – गीत – दूर रहो तुम तन से…  ✍

दूर रहो तुम तन से

कह दूँगा मैं मन से।

समझ नहीं पाया हूँ अब तक

पाप पुण्य की परिभाषा

देह गेह में जलती रहती

अनलमुखी सी अभिलाषा |

वरुण लता सी कांति तुम्हारी

रखना दूर अगन से।

 

ज्वालामुखी खौलता मुझमें

शांत कौन कर पायेगा

किसको गरज पड़ी है ऐसी

जो मल्हार सुनायेगा

चर्चा राग रागिनी वाली

कहाँ किसी निर्धन से।

 

कृष्ण न लौटें

मथुरा से पर

राह तकेंगी ब्रज बाला

अनुभरी आँखों के पीछे

झाँक रहा मुरली वाला

साँसों का संगीत उठा है

मन के वृन्दावन से।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 149 – “खत वह मेहबूब का…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है  आपका एक अभिनव गीत  खत वह मेहबूब का..)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 149 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆
☆ “खत वह मेहबूब का…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

सिर उठाये

स्वाभिमान दूब का

लोग देख बोलते

जुमला ‘क्या खूब’ का

 

ओस बिन्दु मैदानी

बाहों में थाम कर

उठता मजदूर तनिक

सुस्ता आराम कर

 

जैसे नातेदारों मे

कोई पाहुना

बाँचने खड़ा उत्सुक

खत वह मेहबूब का

 

हवा के बहावों में

रह रह सकुचाता है

दिनके ढलते ढलते

संशय रह जाता है

 

लगता हो सूचना

दिन के समापन की

या फिर संदेशा यही

सूरज की डूब का

 

धरती पर हरियाले

बिम्बको उभार कर

सो जाता  रोज शाम

सब को पुकार कर

 

आँखो में भरे हुये

शीत सुरमई ठंडक

दूर किया करता दुख

हम सब की ऊब का

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

26-06-2023 

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – डी एन ए ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि –  डी एन ए ??

(प्रथम कवितासंग्रह से)

ये क़लम से निकले,

काग़ज़ पर उतरे,

शब्द भर हो सकते हैं

तुम्हारे लिए,

मेरे लिए तो

मन, प्राण और देह का

डी एन ए हैं..!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ महादेव साधना- यह साधना मंगलवार दि. 4 जुलाई आरम्भ होकर रक्षाबंधन तदनुसार बुधवार 30 अगस्त तक चलेगी 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नमः शिवाय 🕉️ साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ  🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 141 ☆ # प्रतिकार… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी समसामयिक घटना पर आधारित एक भावप्रवण कविता “# प्रतिकार… #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 141 ☆

☆ # प्रतिकार… #

तू मत कर अब क्रंदन

संयमित कर सांसों का स्पंदन

ना कर किसी को वंदन

तोड़ दे सारे बंधन

 

आंसुओं से सैलाब ला

धरती पर वेग से बहा

डुबो दे सारे जग को

तूने हर पल कितना है सहा

 

तूने देखा वो सपना नहीं है

सच्चाई है, कोरी कल्पना नहीं है

इस वहशी खूंखार भीड़ में

तेरा कोई अपना नहीं है

 

यह तेरे नंगें जिस्म की नुमाइश है

तेरी भी इसी कोख से पैदाइश है

कलंकित कर दिया है मानवता को

क्योंकि तू इस भीड़ की फरमाइश है

 

लोक लाज सबने त्याग दिए हैं 

सबने मिलकर मज़े लिए हैं 

एक बेबस, लाचार,निर्बल स्त्री के

भीड़ ने क्या क्या हाल किए हैं 

 

अब तू ,चल उठ,

बन जा दुर्गा और उठा हथियार

तीक्ष्ण कर दे उसकी धार

जब भी हो तेरी अस्मत पर वार

कर इन वहशियों के पुरुषार्थ पर वार 

 

यहां सदियों से ताकतवर का

कमजोर पर अत्याचार है

प्रशासन मौन ओर लाचार है

कब तक सहोगे जुल्म और अन्याय

इसका उपाय खुलकर बस प्रतिकार है  /

(यह रचना मणिपुर की घटना में पीड़ित स्त्री को समर्पित है)

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – “सोलह आने सच…” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ कविता – “सोलह आने सच…” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

पिता सदा भगवान हैं,माँ देवी का रूप। 

मात-पिता से ही सदा,संतानों को धूप।। 

–यह सोलह आने सच है। 

 

संतति के प्रति कर्म कर,रचते नव परिवेश।

मात-पिता संतान प्रति,सहते अनगिन क्लेश।।

    –यह सोलह आने सच है। 

 

चाहत यह ऊँची उठे,उनकी हर संतान।

पिता त्याग का नाम है,माँ भावुकता का गान।।

   -यह सोलह आने सच है। 

 

निर्धन पितु भी चाहता,सुख पाए औलाद।

माता देती पौध को,हवा,नीर अरु खाद।।

   -यह सोलह आने सच है। 

 

माँ भूखा रह दुख सहे,तो भी नहिं है पीर।

कष्ट,व्यथा को सह रहा,पिता बना नित धीर।।

    -यह सोलह आने सच है। 

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 148 ☆ नवगीत – शब्दों की भी मर्यादा है  ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक नवगीत “सॉनेट – महर्षि महेश योगी)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 148 ☆

☆ नवगीत – शब्दों की भी मर्यादा है ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

हल्ला-गुल्ला, शोर-शराबा

क्यों उल्लास-ख़ुशी हुडदंगा?

शब्दों का मत दुरूपयोग कर.

शब्द चाहता यह वादा है

शब्दों की भी मर्यादा है

*

शब्द नाद है, शब्द ताल है.

गत-अब-आगत, यही काल है

पल-पल का हँस सदुपयोग कर  

उत्तम वह है जो सादा है

शब्दों की भी मर्यादा है

*

सुर, सरगम, धुन, लय, गति-यति है

समझ-साध सदबुद्धि-सुमति है

कर उपयोग न किन्तु भोग कर

बोझ अहं का नयों लादा है?

शब्दों की भी मर्यादा है

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१४-१२-२०१६, जबलपुर

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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