English Literature – Poetry ☆ ‘भूमिकाएँ…’ श्री संजय भारद्वाज (भावानुवाद) – ‘Basic Nature…’ ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi poem ~ भूमिकाएँ ~.  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

श्री संजय भारद्वाज जी की मूल रचना

? संजय दृष्टि – भूमिकाएँ ??

उसने याद रखे काँटे;

पुष्प देते समय

अनायास जो

मुझसे, उसे चुभे थे,

मेरे नथुनों में

बसी रही

फूलों की गंध सदा;

जो सायास

मुझे काँटे

चुभोते समय

उससे लिपट कर

चली आई थी,

फूल और काँटे का संग

आजीवन है,

अपनी-अपनी भूमिका पर

दोनों कायम हैं।

© संजय भारद्वाज 

16 सितम्बर 2018

मोबाइल– 9890122603, संजयउवाच@डाटामेल.भारत, [email protected]

☆☆☆☆☆

English Version by – Captain Pravin Raghuvanshi

? ~ Basic Nature… ??

He remembered

the thorns,

pricking him,

while receiving the

flowers from me,

though unintentionally;

 

While the smell of

flowers perennially

remained in my nostrils

that came cuddling

while he deliberately

pricked thorns to me…

 

Accompaniment of flowers

and thorns is lifelong…

Both are firm on their

respective roles, unflinchingly..!

~Pravin

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ चाहतें हमने न पाली… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “चाहतें हमने न पाली“)

✍ चाहतें हमने न पाली… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

ज़िन्दगीं अपनी तरह से हम बसर करते रहे

पास रख अपनी अना का बस गुज़र करते रहे

चाहतें हमने न पाली कोठियाँ गाड़ी बनें

जिसमें खुशियाँ डेरा डाले ऐसा घर करते रहे

रौनकें दुनिया की भाईं हो गई वो बेवफा

प्यार की पर हम इबादत उम्र भर करते रहे

काट देते बेरहम हो आदमी जल्लाद बन

आक्सीजन को अता फिर भी शज़र करते रहे

दोसती को हाथ बढ़ते किस तरह से बीच में

तुम उधर नफरत करो और हम इधर करते रहे

मुश्किलों से सामना मैंने नहीं हरगिज़ किया

मेरे ऊपर तुम इनायत की नज़र करते रहे

जब हुआ राजा निकम्मा चाटुकारों से घिरा

ज़ुल्म मासूमों पे जालिम बे- ख़तर करते रहे

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 10 – भुतैली काली रातें हैं… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – भुतैली काली रातें हैं…।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 10 – भुतैली काली रातें हैं… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

दिन आतंकी, और

भुतैली काली रातें हैं

 

भूखी आँतों से

रोटी की कितनी दूरी है

स्वाभिमान तक

गिरवी रखने की मजबूरी है

व्यभिचारों को देख

मूक भयभीत कनातें हैं

 

खौफ़नाक मंजर चुभते हैं

नित्य निगाहों में

ओढ़ हिरण की खाल

भेड़िये फिरते राहों में

अमन-शांति बकवास

सिर्फ भाषण की बातें हैं

 

नेताओं ने चेहरे पर

ओढ़ी है बेशर्मी

सूर्योदय को, सूर्यास्त

कहने की हठधर्मी

राजनीति में, राष्ट्रघात की

बिछी बिसातें हैं

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 87 – मनोज के दोहे… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 87 – मनोज के दोहे… ☆

1 बूँदाबाँदी

बूँदाबाँदी ने भरा, तन-मन में उल्लास।

जेठ माह की ज्वाल से, मन था बड़ा उदास।।

2 बरसात

धरा मुदित हो कह उठी, लो आई बरसात।

अनुपम छटा बिखेर दी, गर्मी को दी मात।।

3 धाराधार

रूठे बादल घिर गए, बरसे धाराधार।

ग्रीष्म काल दुश्वारियाँ,बदल गया संसार।।

 4 पावस

प्रिय पावस की यह घड़ी, लगती सब को नेक।

नव अंकुर निकले विहँस, मुस्कानें हैं एक।।

5 चातुर्मास

भक्ति भाव आराधना, आया चातुर्मास।

धर्म धुरंधर कह गए, माह यही हैं खास।।

 ©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – भूमिकाएँ ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – भूमिकाएँ ??

उसने याद रखे काँटे;

पुष्प देते समय

अनायास जो

मुझसे, उसे चुभे थे,

मेरे नथुनों में

बसी रही

फूलों की गंध सदा;

जो सायास

मुझे काँटे

चुभोते समय

उससे लिपट कर

चली आई थी,

फूल और काँटे का संग

आजीवन है,

अपनी-अपनी भूमिका पर

दोनों कायम हैं।

© संजय भारद्वाज 

16 सितम्बर 2018

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ आषाढ़ मास साधना- यह साधना आषाढ़ प्रतिपदा तदनुसार सोमवार 5 जून से आरम्भ होकर देवशयनी एकादशी गुरुवार 29 जून तक चलेगी। 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 145 – मन रहता है प्यासा… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – मन रहता है प्यासा।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 145 – मन रहता है प्यासा…  ✍

कितनी बात करूँ मैं तुमसे

मन रहता है प्यासा।

 

कभी कभी हो मिलना जुलना

बेमतलब की बातें

स्पर्शों को बरजा करतीं

लज्जा भरी कनातें

आँखों के रतनारे डोरे, देते रहें दिलासा।

 

अगवानी करती हैं आँखें

करते होंठ नमस्ते

मौखिक में ही वक्त बीतता

कभी न खुलते बस्ते।

होगी कभी पढ़ाई आगे, बस इतनी है आशा।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 145 – “बन्द किताबों हुआ शब्द -…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है  आपका एक अभिनव गीत  बन्द किताबों हुआ शब्द – )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 145 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

बन्द किताबों हुआ शब्द –  ☆

प्यास भूमिका निभा रही

जीवन पराग में

कुआँ निरंतर रहा यहाँ

जिनके दिमाग में

 

कण्ठ सूखते रहे अभावों

प्रतिश्रुत जल के

शापित रहे यहाँ हर

घर मे रोपित नलके

 

लोग भूल न पाये हैं

अब भी पनघट को

जो भविष्य को देखा

करते हैं तड़ाग में

 

बन्द किताबों हुआ शब्द-

प्यारा, पनिहारिन

पूछ रही थी यही बात

पुनिया बनजारिन

 

बस विवाह के समय

सुनो हमने माँगा था-

दे देना जलस्रोत एक

हमको सुहाग में

 

वैकल्पिक कुछ नहीं

और कुछ भी न सांत्वना

करते हुये नहीं जी सकते

सहज कल्पना

 

जो कुछ है सब जल

की माया जग उद्यम में

धरती के लौकिक प्रभाग

या  बीतराग में

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

17-06-2023 

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – ऊहापोह ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – ऊहापोह ??

ऐसी लबालब

क्यों भर दी

रचनात्मकता तूने,

बोलता हूँ

तो चर्चा होती है,

मौन रहता हूँ तो

और अधिक

चर्चा होती है!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ चार दिवस गुरु साधना- यह साधना शुक्रवार  30 जून से आरम्भ होकर आज 3 जुलाई तक चलेगी। 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ श्री गुरवे नमः।। 🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 137 ☆ # मानसून… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# मानसून… #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 137 ☆

☆ # मानसून… #

मानसून की छोटी-छोटी बूंदें

जब तन मन भिगोती है

तब गुजरे जमाने की बातें

दिल में याद आती है

 

बचपन में –

मानसून की पहली बारिश में

बिंदास नंगे बदन भीगना 

बिजुरी की कड़क सुनकर

भय से जोर से चीखना

मस्ती में एक दूसरे पर

पानी उड़ाना

दोस्तों से लड़कर

खुद को छुड़ाना

स्कूल से घर आते वक्त

खुद भीगकर बस्ता बचाना

मां को रो रोकर भीगने के

नये नये बहाने बताना

यह शरारतें बारिश की बूंदें

साथ लाती है

तब गुजरें जमाने की बातें

दिल में याद आती है

 

जवानी में –

वो रिमझिम फुहारें

वो बरसता हुआ पानी

जवानी के दिनों की तो है

रंगीन कहानी

एक छाते में, भीगते हुए

दो बदन चल रहे थे

जलते हुए दावानल से

दोनों जल रहे थे

बारिश हर कदम पर

आग भड़का रही थी

दो जिस्मों को एक होने

तड़पा रही थी

हाथों में हाथ लिए

वो आगे बढ़ रहे थे

एक नयी प्रेम कहानी को

वो दोनों गढ़ रहे थे

घर आया, दोनों जुदा हो गए

एक दूसरे से अलविदा हो गए

जब फिर कोई बारिश

उनको नहीं मिलाती है

तब गुजरे जमाने की बातें

दिल में याद आती है

 

बुढ़ापे में –

ना वो दिन रहे, ना रातें

ना रंगीनियां रहीं

ना दिल लुभाने वाली

वो संगिनियां रही

ना वो दोस्त रहे

जो मुस्कुरा के मिलते थे

गले मिलकर सदा

फूलों की तरह खिलते थे

ना दुनिया में अब

पहले जैसे निश्वार्थ रिश्ते रहे

ना एक दूसरे पर

जान देने वाले फरिश्ते रहे

अपार्टमेंट की बालकनी में

हम पति पत्नी भीगते है

हाथों में हाथ लिए

नया रोमांस सीखते हैं 

हर मानसून की बूंदें

भीगने बुलाती हैं

जीने का नया संदेश लाती है

तब गुजरे जमाने की बातें

दिल में याद आती है /

 

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 146 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 146 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 146) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 146 ?

☆☆☆☆☆

☆ Self Assessment… ☆

बाजार जाके खुद का

दाम भी कभी पूछना,

तुम्हारे जैसे समान हर

दुकानों में भरे पड़े हैं…!

☆☆ 

Sometime go to the market and

inquire about your own price,

Every shop is abundantly

filled with goods like you…!

☆☆☆☆☆ 

 ☆ Loyalty Bond… ☆

 अंदाजे इश्क़ तो देखा है तुमने

पर फितरत-ए-वफा नहीं देखी,

पिंजरे खोल दो मगर, फिर भी

कुछ परिंदे उड़ा नहीं करते…

☆☆

You’ve seen the love, but not

the  true  nature  of   loyalty,

Even  if  you  open  the  cage, 

still some birds do not fly off…

☆☆☆☆☆

 ☆ Zestful Rains… 

Zestfully humming drops

keep falling from the sky,

As if an ecstatic cloud has

bumped into your anklet…

☆☆

 गुनगुनाती हुई आती हैं

फ़लक से मदमस्त बूंदें,

लगता है कोई बदली तेरी

पाजेब से टकराई है…

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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