हिन्दी साहित्य – कविता ☆ उस चश्मे मय का तोड़ कहाँ है… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “उस चश्मे मय का तोड़ कहाँ है “)

✍ कविता ☆ उस चश्मे मय का तोड़ कहाँ है… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

बोली थी मुझसे करिये मेरा इंतज़ार वो

पर लौट के न आई है फिर से बहार वो

उस चश्मे मय का तोड़ कहाँ है किसी के पास

तारी है उंसके हुस्न का अब भी ख़ुमार वो

ग़म का पहाड़ कैसे अकेले मैं लूँ उठा

मुझसे हुआ है दूर मेरा ग़म गुसार वो

होती ग़ज़ल न तुमसे जुदा होके क्या करें

सूखा पड़ा अहसास का है आबशार वो

दुनिया पे ऐतबार करे मुझको छोड़कर

मेरी अना को करता बहुत  शर्मसार वो

पतझड़ सा नौच लेता महाजन पकी फसल

नंगा खड़ा है खेत में लो काश्तकार वो

अपनी तरह मैं जिसपे यकीं कर सकूँ अरुण

अब तक नहीं मिला है मुझे राज़दार वो

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 71 – पानीपत… भाग – 1 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

श्री अरुण श्रीवास्तव

(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना   जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। आज प्रस्तुत है आपके एक विचारणीय आलेख  “पानीपत…“ श्रृंखला की पहली कड़ी।)   

☆ आलेख # 71 – पानीपत – भाग – 1 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

एक थी मुख्य शाखा और एक थे मुख्य प्रबंधक. शाखा अभी भी है, हालांकि, अब तो अपने स्थान से दूसरी जगह स्थानांतरित हो गई है. इसे बहुत साल पहले हिंदी में पानीपत और अंग्रेजी में वाटरलू कहा जाता था. वाटरलू वह स्थान है जहाँ नेपोलियन बोनापार्ट ने शिकस्त को टेस्ट किया था याने वरमाला का नहीं पर विजयरथ पर लगाम लगाने वाली “हार”का सामना किया था. इस शाखा के बारे भी यही किवदंती थी कि यहाँ के मुख्य नायक या तो अपना कार्यकाल पूरा करते हुये सहायक महाप्रबंधक के पथ पर अग्रसर होते हैं या फिर नेतृत्व के लायक मनोबल का अभाव महसूस करते हुये स्वेच्छिक सेवानिवृत्ति की ओर अग्रसर होते हैं. “भैया, हमसे ना हो पायेगा” का ही इंग्लिश रूपांतरण वीआरएस है और “यार जब आपसे संभलती नहीं तो फिर ‘चलो इक बार फिर से अजनबी बन जायें हम दोनों’ वाला गाना गाते हुये रुखसती क्यों नहीं लेते. ये या फिर ऐसा इनके सभी शुभचिंतकों और अशुभचिंतकों का सोचना रहता है. इस शाखा का तालघाट से या किसी भी ताल, तलैया, घाट, गढ़, पुर, गाँव, नगर से कोई संबंध नहीं है. कृपया ढूंढने में समय जाया न कर इस व्यंग्य का आनंद लेने की गुजारिश की जाती है. ऐसी चुनिंदा शाखा और आगे वर्णित मुख्य प्रबंधक से हम सभी का सर्विस के दौरान वास्ता पड़ा होगा या फिर दूर से देखा और सुना भी होगा. कुछ ने मन ही मन कहा भी होगा कि “अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे”या फिर इन तीसमारखाँ के तीस टुकड़े हो जाने हैं यहाँ पर, हमने तो पहले ही समझाया था भाई कि प्रमोशन वहीं तक लेना सही है जहाँ नौकरी सुरक्षित रहे. अब ये तो न पहले समझे न बाद में. वही “हाथ पैर में दम नहीं और हम किसी से कम नहीं”अब जब वास्ता पड़ेगा तो समझ में आ जायेगा कि कभी कभी दुश्मन भी सही और हितकारी सलाह दे देता है. आखिर उसे भी तो अदावत भंजाने के लिये विरोधी के होने की जरूरत पड़ती रहती है. अब नये नये विरोधी आये दिन तो मिलते नहीं.

अब बात इन” काल्पनिक रिपीट काल्पनिक “पात्र की जो अपने कैडर की प्रमोशन पाने की निर्धारित रफ्तार से बहुत आगे चल रहे थे और इस मुगालते में थे कि हर कुरुक्षेत्र में हर अर्जुन को कोई न कोई श्रीकृष्ण मिल ही जाता है और अगर कहीं न भी मिल पाये तो सामने कौरव, भीष्म पितामह, कर्ण और द्रोणाचार्य जैसे परमवीर नही मिलते. “खुदी को कर बुलंद इतना कि खुदा बंदे से खुद पूछे कि भाई तेरी रज़ा क्या है. ऐसे आत्मविश्वास की बुलंदियों पर आसमां को छूने की कोशिश इसलिए भी कर पाने की सोच बन गई कि प्रायः नंबर दो, तीन, चार पर काम करते हुये ये धारणा पाल बैठे कि मेहनत तो हम ही करते हैं और हमारी मेहनत और ज्ञान के दम पर जब नंबर वन क्रेडिट भी लेते रहे और ऐश भी करते रहे तो अब जब हमको यही सुअवसर मिला है तो हम भी इसका फायदा क्यों न उठायें और फिर झंडे गाड़कर ये साबित कर दें कि भाई हमारा कोई कैडर नहीं पर ऊपरवाला याने ईश्वर योग्यता और बुद्धि देते समय ये सब नहीं देखता. उसका न्याय सटीक और सर्वश्रेष्ठ होता है।

तो इस बुलंद आत्मविश्वास के साथ वो पहुंच गये राजा के सिंहासन पर बैठकर हुकूमत चलाने. चूंकि जिस स्थान से पदोन्नत हुये थे वो बहुत दुर्गम और खतरनाक था इसलिए यह भी एहसास बना रहा कि टाईमबाउंड स्टे के बाद जो कि इन्होंने स्वयं ही निर्धारित कर लिया था, वापस उस स्थान पर एक कर्तव्यनिष्ठ और बलिदानी सेनापति के समान वापस चले जायेंगे जहाँ परिवार विराजमान था, भार्या भी बैंकिंग की भाषा में अभ्यस्त थी. ये डबल इंजन की सरकार थी जो परिवार रूपी गाड़ी चला रही थी तो स्वाभाविक था कि हर सुविधा, होमडेकोरेशन की हर लक्जरी याने हर बेशकीमती वस्तु सबसे पहले इनके दरवाजे पर ही दस्तक देती थी. डबल इंजन की सरकार पद और लक्जरी के समानुपात को नहीं मानती इसलिए इनकी सौम्यता, विनम्रता और सज्जनता के बावजूद इनके उच्चाधिकारियों के रश्क का टॉरगेट, यही हुआ करते. जब वहाँ से ये पदोन्नति पाकर स्थानांतरित हुये तो परिवार स्थानांतरित नहीं हुआ पर फिर भी गृहणियों की तुलनाबाजी से परेशान पड़ोसियों ने राहत की सांस ली कि अब तो कम से कम एक इंजन का परिचालन खर्च भी बढ़ेगा.

पानीपत का युद्ध भी चलता रहेगा, तालघाट की तरह.

© अरुण श्रीवास्तव

संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस – “योग से मिले नया जीवन…” ☆ डॉ निशा अग्रवाल ☆

डॉ निशा अग्रवाल

☆ अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस – “योग से मिले नया जीवन…” ☆ डॉ निशा अग्रवाल

ऋषि मुनियों और संतों की पावन भूमि कहा जाने वाला हमारा देश आज योग गुरु देश बन गया है। भारतीय योग गुरुओं ने विदेशी जमीन पर योग की उपयोगिता और महत्व के बारे में जागरूक किया है।

वर्ष 2015 से विश्व भर में 21जून को विश्व योग दिवस मनाया जा रहा है। योग दिवस मनाने की तारीख 21 जून ही निश्चित की गई है। इसका कारण भारतीय परंपरा के अनुसार, ग्रीष्म संक्रांति के बाद सूर्य दक्षिणायन होना है। सूर्य दक्षिणायन का समय ही आध्यात्मिक सिद्धियों को प्राप्त करने के लिए असरदार माना गया है। इसलिए प्रतिवर्ष 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाते हैं।

कोरोना काल के बाद से योग का महत्व अधिक बढ़ गया है। संक्रमण से लड़ने के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के उद्देश्य से लोग योग अभ्यास करने लगे हैं। योग दिवस 2023 की थीम ‘वसुधैव कुटुंबकम के लिए योग’ है। धरती ही परिवार है। धरती जब ही स्वस्थ और शुद्ध रहेगी, जब मानव स्वस्थ रहेंगे। योग भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के सबसे बड़े प्रतीकों में से एक रहा है। यह एक प्राचीन अभ्यास है, जिसकी सृष्टि भारत में हुई है। योग शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विषयों को शामिल करता है। यह शरीर और मन के बीच सद्भाव को बढ़ावा देता है और व्यक्तियों को अच्छी तरह से एक संम्पूर्ण आधुनिक जीवन प्राप्त करने में मदद करता है।

जब भी दुनिया ने मानवता कल्याण के लिए समग्र स्वास्थ्य और जीवन के लिए आवाज उठाया है तो भारत के प्राचीन ज्ञान की हमेशा चर्चा की और सराहना की है. दुनिया भर में इस अभ्यास की एक बढ़ती स्वीकृति, इसकी व्यापक लोकप्रियता इसका एक साक्ष्य है, जिससे दुनिया में आध्यात्मिक गुरु के रूप में भारत का कद बढ़ रहा है. अब, दैनिक जीवन शैली के एक हिस्से के रूप में योग का तेज पश्चिमी दुनिया में भी देखा जा रहा है. इसकी लोकप्रियता कोविड महामारी के दौरान काफी बढ़ गई , जब शारीरिक और मानसिक फिटनेस को लेकर विश्व स्तर पर ज्यादा जोर दिया गया था, लाखों लोगों को इसी उद्देश्य के लिए योग में घुसना पड़ा।

योग दुःखों को कम करने में मानवता प्रदान करता है और लोगों को एक साथ आनन्द की भावना को बढ़ावा देने और एक साथ दुनिया के बीच लचीलापन बनाने के अलावा लोगों को एक साथ लाता है. अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस ने विश्व स्तर पर विशाल लोकप्रियता प्राप्त की है, और लाखों लोग इस दिन योग-संबंधित घटनाओं में भाग लेते हैं. यह समग्र स्वास्थ्य और कल्याण की खोज में विभिन्न पृष्ठभूमि, संस्कृतियों और धर्मों से लोगों को एकजुट करने का अवसर बन गया है. योग दिवस के निरंतर समारोह को इस अभ्यास के बारे में लोगों के बीच जागरूकता फैलाने और यह सुनिश्चित करने के लिए किसी व्यक्ति की आंतरिक चेतना और बाहरी दुनिया के बीच निरंतर संबंध की भावना को गहरा करता है।

☆ योग से मिले नया जीवन ☆

नित उठ करो योग साधना।

   स्वस्थ रहने की यही प्रार्थना।।

 

सारे रोग योग से भागे।

    ह्रदय रोग भी पास ना आवै।।

 

योग से हो जीवन उजियारा।

    मिटे व्याधियों का अंधियारा।।

 

दर्द दवा और दुआ योग है।

    सुखी जीवन का यही संयोग है।।

 

योग उपचार और औषधि है।

    योग बढ़ाए जीवन अवधि है।।

 

योग साधना में जो जुट जाए।

     तनाव मुक्त जीवन हो जाए।।

 

रोग भगाए योग, करो साधना सारे।

     ताजा रहे मनोयोग मिट जाए सारे।।

 

योग प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाए।

   जीवाणु, विषाणु से लड़ना सिखाए।।

 

शक्तिवर्धक औषधि योग है।

     बुद्धि प्रबर्धक, चेतन्य योग है।।

 

काया प्रबल बनाता योग है।

       रूप सौंदर्य भी देता योग है।।

©  डॉ निशा अग्रवाल

(ब्यूरो चीफ ऑफ जयपुर ‘सच की दस्तक’ मासिक पत्रिका)

एजुकेशनिस्ट, स्क्रिप्ट राइटर, लेखिका, गायिका, कवियत्री

जयपुर ,राजस्थान

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 08 – जड़ा नियंत्रण है फौलादी… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – जड़ा नियंत्रण है फौलादी।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 08 – जड़ा नियंत्रण है फौलादी… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

अपनों से कट गये आज हम

साथ नहीं हैं दादा-दादी

 

मम्मी-डैडी बहुत व्यस्त हैं

अधिक कमाने की मजबूरी

स्वर्णिम सपने पूरे करने

हुई बुजुर्गों से भी दूरी

हमें प्रसन्‍न व्यस्त रखने को

कम्प्यूटर की गुड़िया ला दी

 

मिला नहीं ममतालू आँचल

आया ने हमको पाला है

वृद्धों का आशीष न पाया

अपनी मस्ती पर ताला है

कोमल मन, सुकुमार हृदय पर

जड़ा नियंत्रण है फौलादी

 

शिशु मन पर वात्सल्य बड़ों का

अब तक खुशबू सा अंकित है

किन्तु प्रथम आने की तृष्णा

प्रतिपल करती आतंकित है

नई फसल को उन्नत करने

क्यों जहरीली खाद मिला दी

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 85 – मनोज के दोहे… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 85 – मनोज के दोहे… ☆

1 सच्चाई

सच्चाई परिधान वह, श्वेत हंस चितचोर।

धारण करता जो सदा, आँगन नाचे मोर।।

 

2 परिधान

नवल पहन परिधान सब, चले बराती संग।

द्वार-चार में हैं खड़ेस्वागत के नव रंग।।

3 सौभाग्य

कर्म अटल सौभाग्य है, बनता जीव महान।

फसल काट समृद्धि से, जीता सीना तान।।

4 बदनाम

मानव को सत्कर्म से, मिल जाते हैं राम ।

फँसता जो दुष्कर्म में, हो जाता बदनाम।।

5 आहत

सरल देह-उपचार है, औषधि दे परिणाम।

आहत मन के घाव को, भरना मुश्किल काम।

6 यात्रा

अंतिम यात्रा चल पड़ी, समझो पूर्ण विराम।

मुक्ति-धाम का सफर ही, सबका अंतिम धाम।

 

 ©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – धूप ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – धूप ??

एसी कमरे में अंगुलियों के

इशारे पर नाचते तापमान में,

चेहरे पर लगा लो कितनी ही परतें,

पिघलने लगती है सारी कृत्रिमता

चमकती धूप के साये में,

मैं सूरज की प्रतीक्षा करता हूँ,

जिससे भी मिलता हूँ;

चौखट के भीतर नहीं,

तेज़ धूप में मिलता हूँ !

© संजय भारद्वाज 

7:22 बजे, 25.1.2020

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ आषाढ़ मास साधना- यह साधना आषाढ़ प्रतिपदा तदनुसार सोमवार 5 जून से आरम्भ होकर देवशयनी एकादशी गुरुवार 29 जून तक चलेगी। 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “दोहे – पितृ अभिव्यक्ति…” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

 

“दोहे – पितृ अभिव्यक्ति…☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

पिता कह रहा है सुनो, उसके दिल की बात।

जीवन पितु का फर्ज़ है, मत समझो सौगात।।

संतति के प्रति कर्म कर, रचता नव परिवेश।

धन-अर्जन का लक्ष्य ले, सहता अनगिन क्लेश।।

चाहत यह ऊँची उठे, उसकी हर संतान।

पिता त्याग का नाम है, भावुकता का मान।।

निर्धन पितु भी चाहता, सुख पाए औलाद।

वह ही घर की पौध को, हवा, नीर अरु खाद।।

भूखा रह, दुख को सहे, तो भी नहिं है पीर।

कष्ट, व्यथा की सह रहा, पिता नित्य शमशीर।।

है निर्धन कैसे करे, निज बेटी का ब्याह।

ताने सहता अनगिनत, पर निकले नहिं आह।।

धनलोलुप रिश्ता मिले, तो बढ़ जाता दर्द।

निज बेटी की ज़िन्दगी, हो जाती जब सर्द।।

पिता कहे किससे व्यथा, यहाँ सुनेगा कौन।

नहिं भावों का मान है, यहाँ सभी हैं मौन।।

पिता ईश का रूप है, है ग़म का प्रतिरूप।

दायित्वों की पूर्णता, संघर्षों की धूप।।

पिता-व्यथा सुन लें ज़रा, करें आज सब गौर।

मुश्किल का चलता सदा, संग पिता, नित दौर।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 143 – कुछ का कुछ कर गई चाँदनी… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – कुछ का कुछ कर गई चाँदनी।)

  • ✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 144 – कुछ का कुछ कर गई चाँदनी…  ✍

ये आई, वो गई चाँदनी

कुछ का कुछ कर गई चाँदनी।

रात रोज आती है लेकिन

क्या थी कल की रात

खुली आँख से देख रहा था

सपनों की बारात

दुल्हिन जैसी लगी चाँदनी, वधूवेश में लगी मानिनी।

 

ये आई वो गई चाँदनी।

मेरे मन में भरी चाँदनी

फैला रही उजास

अब तो लगता आ जायेगा

मुट्ठी में आकाश।

जाने क्या कर गई चाँदनी, अमृत सा घर गई चाँदनी।

 

ये आई वो गई चाँदनी।

सबकी अपनी अलग चाँदनी

मेरी मेरे पास

प्राण हृदय नयनों में मेरे

है उसका अधिवास।

भक्ति मुक्ति दे गई चाँदनी, है मेरी आसक्ति चाँदनी।

ये आई वो गई चाँदनी।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 143 – “कतरब्योत में लगे रहे…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है  आपका एक अभिनव गीत  “कतरब्योत में लगे रहे)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 143 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

कतरब्योत में लगे रहे ☆

जिसकी बेटी व्याह योग्य हो

हम वह बाप रहे

हालातों के कोपभवन का

कठिन विलाप रहे

 

नीचा सिर करके निकाल दी

जीवन की आशा

शायद कोई क्रुद्ध हो गया

गति का दुर्वासा

 

ऐसी विकट परिस्थितियों का

दारुण ताप रहे

 

कतरब्योत में लगे रहे

या फिर उधेड सींते

याद नही कर पाते यह दिन

कैसे क्पा बीते

 

बे मौसम की बारिश का

जैसे अनुताप रहे

 

सूत कातते रहे मगर

ना बुन पाये कपड़ा

जिन्हें बनाया अपना

अब उन से भी है झगडा

 

ऐसी भिन्न परिस्थितियों में

हम चुपचाप रहे

 

हारे थके व्यथा अपनी यह

हम कहते किससे

जिससे कहते उसके भी

अनगिनत मौन किस्से

 

ऐसे आर्तनाद के क्षण बस

आत्म प्रलाप रहे

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

14-06-2022 

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – हरित शहर ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – हरित शहर ??

काट दिये गए हैं

पेड़ों के मुंड,

छील दी गई है

पूरी की पूरी छाल,

धरती को

पच्चीस-पचास मीटर तक

घनी छाँव से ढकनेवाले,

अब स्वयं खड़े हैं

निर्वस्त्र और विवश,

इनकी असहाय देह पर

घातक रंगों से

पोती जा रही हैं

रंग- बिरंगी पत्तियाँ,

उकेरे जा रहे हैं

कई तरह के फूल,

एल.ई.डी.की रोशनी में

प्रदर्शन के लिए रखी

अनावृत लाज पर

चस्पां हो रहे हैं

कई स्लोगन

और इसके इर्द-गिर्द

फल-फूल रही है

बेखौफ ब्यूरोक्रेटिक घास,

सारा माज़रा

आशंका मिश्रित भय से

निहार रहे हैं

जवानी की दहलीज पर खड़े

आसपास के कच्चे पेड़,

मैं लिखता हूँ ख़त

आयोजकों को-

माफ कीजियेगा

हरित शहर अभियान के

उद्घाटन के लिए

नहीं आ पाऊँगा।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ आषाढ़ मास साधना- यह साधना आषाढ़ प्रतिपदा तदनुसार सोमवार 5 जून से आरम्भ होकर देवशयनी एकादशी गुरुवार 29 जून तक चलेगी। 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares